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Wednesday, August 28, 2013

शिक्षकों की निगरानी से बाहर हमारे बच्चों की दुनिया बेहद खतरनाक होती जा रही है, नालेज इकानामी के अंग बनाकर बच्चों को अमेरिकी बनाने की अंधीदौड़ में हम शायद यह भूल रहे हैं।

शिक्षकों की निगरानी से बाहर हमारे बच्चों की दुनिया बेहद खतरनाक होती जा रही है, नालेज इकानामी के अंग बनाकर बच्चों को अमेरिकी बनाने की अंधीदौड़ में हम शायद यह भूल रहे हैं।

पलाश विश्वास

हमारा सौभाग्य रहा है कि स्कूल में पांव रखते ही हमें पीतांबर पंत जैसे प्राइमरी शिक्षके के हवाले हो जाना पड़ा।प्राइमरी के दिनों से ही वे हमें हमारी लड़ाई के लिए तैयार करते रहे। जब हाम जूनियर कक्षाओं में पढ़ते थे तो प्रेम प्रकाश बुधलाकोटि ने हमें उत्पादन संबंधी पाठ पढ़ाते रहे।मार्क्सवाद की बुनियादी शिक्षा हमने उन्हींसे हासिल की। सुरेशचंद्र शर्मा अंग्रेजी के शिक्षक थे और भाषाएं कैसे सीखी जा सकती हैं,हमने उनसे सीखी।जिलापरिषद उच्चतर माध्यमिक हाईस्कूल दिनेशपुर में महेश चंद्र वर्मा भी थे, जिनसे हमने इतिहास बोध सीखा।

लेकिन हमारा असली कायाकल्प जीआईसी नैनीताल में ग्यारहवीं में दाखिला लेने के बाद हुआ। हमारे कक्षा अध्यापक थे हरीश चंद्र सती,.अंग्रेजी के शिक्षक थे जगदीश चंद्र पंत, अर्थशास्त्र पढ़ाते थे सुरेश चंद्र सती।

ताराचंद्र त्रिपाठी जीआईसी में थे और हमारी क्लास लेते नहीं थे। हम कला संकाय में थे और वे विज्ञान संकाय में हिंदी पढ़ाते थे। हमारी परीक्षा  की कापी जांचते हुए हमें उन्होंने पकड़ लिया।

अपने शिक्षकों को रिटायर होने के बुढ़ापा समय में याद करने का कारण आगे खुलासा करेंगे।

हमने आठवीं में पढ़ते हुए जिला परिषद के उस हाईस्कूल में देवनागरी लिपि में बांग्ला प्रश्नपत्र देने के विरुद्ध आंदोलन किया था। हमारी मुख्य मांग बांग्ला लिपि में ही बांग्ला  प्रश्नपत्र देने की थी। हमारी दूसरी बड़ी मांग हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक कुंदन लाल साह की बर्खास्तगी की थी।

वही कुंदनलाल साह जी उस हड़ताल के बाद चपरासी के साथ बसंतीपुर गांव में हमारे खलिहान में मेरे डेरे की तलाशी के लिए चपरासी के माथे पर टोकरी डालकर आते थे। उन दिनों मुझे बाकी गंभीर साहित्य पढ़ने जासूसी साहित्य पढ़ने का शौक था।आज बसंतीपुर पहुंचने के लिए चारों दिशाओं से पक्की सड़कें हैं।उन दिनों हालत यह थी कि खेतों और मेढ़ों से होकर स्कूल तक पहुंचने के लिए हम अंडरवीयर पहने होते थे।पैंट कमीज स्कूल पहुंचने पर ही पहनते थे। कुंदन लाल जी की चिंता थी कि हम वक्त कहीं जाया तो नहीं कर रहे हैं और कीचड़ में लथपथ हमारे खेतों तक पहुंच जाते थे।मेरी गैरजरुरी किताबें उनका चपरासी टोकरी में भरकर ले जाता था।

मैं बाहैसियत पत्रकार नैनीताल जब भी गया, मेरे कार्यक्रम में दर्शकों के बीच हमारे वह गुरुजी जरुर होते थे, जिनको हटाने के लिए हमने आंदोलन किया था।

ताराचंद्र त्रिपाठी से बचना और भी मुश्किल था। तमाम विधाओं और विषयों की अनिवार्य पुस्तकों की सूची बनाकर वे अपने प्रिय छात्रों को थमाते थे। पढ़कर फिर उन्हें कैपिटल कापी में उस पुस्तक का सार लिखकर सौंपना होता था।बाद में जब वे प्रधानाध्यापक बने तो दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी इस उन्होंने अनिवार्य कर दिया था।
वे हमेशा गर्व से कहते रहे हैं, `मेरे छात्र दुनिया बदल देंगे।'

बीए द्वितीय वर्ष में जब हम पढ़ रहे थे तब वे अल्मोड़ा में स्थानांतरित हो गये। लेकिन मुझे और मोहन यानी कपिलेश भोज को उन्होंने अपने घर मोहन निवास में डाल दिया। किताबों की सूची जो थी, सो थी, उनके घर में अनगिनत पुस्तकें थीं, जिन्हें हमें पढ़ना था।हमारा पाठ्यक्रम क्या है, यह बेमतलब है, `दास कैपियल' से लेकर `साइकोएनालिसिस' और `मिन कैंफ' तक उस सूची में दर्ज।

मोहन जीआईसी के दिनों से भगवान श्री रजनीश के भक्त था। जीआईसी में बतौर पुस्तकालय इंचार्ज उसने दर्जनों रजनीश पुस्तकें जमा कर लीं और अपने पास रख लीं।बाद में त्रिपाठी जी के कारण वे पुस्तकें उसे वापस भी करनी पड़ी। मोहन `संभोग से समाधि' से उन दिनों बुरी तरह प्रभावित था। हमेशा समाधि में रहने की उसकी आदत थी।

मोहन निवास में रहते हुए उसने अचानक निर्णय लिया की महर्षि वात्सायन से एक कदम आगे बढ़कर कामशास्त्र की पुनर्रचना करनी होगी और इससे ही मोहमय संसार से मुक्ति मार्ग निकलेगा।उसके तर्कों के सामने हम निरुत्तर हो गये।

मोहन अपनी उस महानतम पांडुलिपि में रम गया। लेकिन त्रिपाठी जी की नजर से बचा नहीं जा सकता था। पांडुलिपि उनके हाथ लग गयी।

हम दोनों को तत्काल दो मोटी पुस्तकों फ्रायड की `साइकोएनालिसिस' और हैवलाक एलिस की `साइक्लोजी आफ सेक्स' पढ़ने का आदेश हो गया।

फिर उन्होंने चेतावनी दी कि भारत वर्जनाओं का देश है।इन्हीं वर्जनाओं की वजह से यौनकुंठा भयंकर है। इस वर्जना और कुंठा से मुक्त हुए बिना जीवन में कोई सकारात्मक भूमिका निभाना असंभव है।

जाहिर है कि  यौनशिक्षा को वे अस्पृश्य नहीं मान रहे थे। लेकिन वर्जनाओं और कुंठा से निकालने की दिशा उन्होंने हमें दी।लोग उनसे अक्सर शिकायत करते थे कि सामान्य नहीं हैं आपके छात्र। इस पर वे कहते,सामान्य लोग तो विशुद्ध ग्राहस्थ होते हैं।उनसे कुछ नहीं सधता।

तब सत्तर का दशक था। अमिताभ एंग्री यंगमैन अवतार में छाने लगे थे और समांतर सिनेमा का भी जोर था। तभी गुरुजी ने कहा था कि इस देश में वर्जनाएं टूटेंगी तो उसमें पूरी की पूरी पीढ़ियां खत्म हो जायेगी।

धनाढ्यों और नवधनाढ्यों की महानगरीय यौन अराजकता अब थ्री जी फोर जी स्पेक्ट्रम तकनीक के सौजन्य से गांवों और कस्बों को भी अपनी चपेट में ले रही है।

सत्तर के दशक में भगवान रजनीश और हिपी कल्चर का असर शहरी आबादी तक केंद्रित था।

रैव पार्टियां अब तक बंगलूर और मुंबई जैसे बड़े नगरों में हो रही थी। लेकिन खुले बाजार की संस्कृति में फ्री सेक्स का कारोबार जनपदों को भी तेजी से संक्रमित कर रहा है।

अब गर्भधारण सत्तार दशक की तरह कोई समस्या है नहीं।

सहवास बस सहमति का मामला है।कामोत्तेजक गंध का समय है यह। बच्चे उस गंध के शिकार हो रहे हैं।

तकनीक उनके लिए सेक्सी टूल बन गये है।

माध्यमों में अनवरत विज्ञापनों के मूसलाधार से वे तमाम अनुभव बचपन में ही हासिल करने के फिराक में है।

इस जद्दोजहद में खुला बाजार का फ्री सेक्स उनसे छीन रहा है बचपन।

चिंता की बात यह है कि महानगरों से बाजार के गावों और कस्बों में विस्तृत हो जाने से यह रोग अब संक्रामक  ही नहीं, महामारी है।

जो भारतीय समाज भंकर सनातनी और धर्मोन्मादी है, विवाह संबंधों के जरिये जहां जातिप्रथा अटूट है, सामाजिक अन्याय और असमता को बनाये रखने के लिए कारपोरेट राज की बहाली के लिए जहां धर्मोन्मादी राष्ट्रीयताओं और अस्मिताओं की  बहार है, कन्या भ्रूण हत्या,अस्पृश्यता और आनर किलिंग सामाजिक अहंकार है, सगोत्र विवाह निषिद्ध है,स्त्री जहां यौन दासी हैं, वहीं वर्जनाएं बहुत तेजी से टूटने लगी हैं और इस पर अंकुश की कोई वैज्ञानिक दिशा है ही नहीं।

हिमालयी सुनामी से भी तेज है मुक्त सेक्स का यह सर्वग्रासी उन्माद।

गौर करें कि दिल्ली और मुंबई के बहुचर्चित बलात्कारकाडों में मुख्य अभियुक्त न सिर्फ नाबालिग हैं, बल्कि उनके लिए बलात्कार रोमांस और एडवेंचर का पर्याय है और अपने सेक्स अभियान में वे बालिगों से ज्यादा निर्मम है।

दो चार बलात्कारियों को फांसी की सजा देकर इस फ्रीसेक्स समय में स्त्री कहीं सुरक्षित नहीं है।हर विज्ञापन,हर विधा और हर माध्यम स्त्री को भोग बतौर बेच रहा है। स्त्री भी भोग का सामन बनने की अंदी दौड़ में शामिल है।

इस सिलसिले की शुरुआत लेकिन स्कूली शिक्षा से हो रही है।जहां ्ब पढ़ाई के सिवाय सबकुछ होता है।

स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं हो या न हो,अब हर स्कूल अमेरिकी फ्रीसेक्स और अराजक हिंसा की संस्कृति का उपनिवेश बनता जा रहा है।

वैदिकी सभ्यता के पाठ का हश्र यह है।

अमेरिकी स्कूलों में हथियारों की जो घुसपैठ है, वैसा हमारे यहां हो रहा है।

सबसे खास बात तो यह है कि शिक्षक यह किसी मिशन के लिए नहीं होते अब।नौकरी और कारोबार में फंसे शिक्षकों के नियंत्रण में हैं भी नहीं हमारे  बच्चे।

बच्चों के सुनहरे सपने खत्म हैं और सामाजिक यथार्थ उन्हें हिंसक,क्रूर और बलात्कारी बना रहा है।
रुपया का संकट कृत्तिम है।डालरखोर सत्तावर्ग के ग्लोबल हो जाने के बाद हमारी बेदखली का इंतजाम है यह संकट।

शेयर बाजार के उछलकूद और सांड़ों भालुओं के आईपीएल और उसके चियरिन फरेब से ज्यादा गंभीर मुद्दा है भारतीय देहात और कृषिजीवी समाज का अमेरिकी हो जाना।

सामाजिक पारिवारिक विघटन बाजार की अनिवार्य शर्त है तो यह भी भूलना नहीं चाहिए कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता, राष्ट्र की संप्रभुता का विखंडन भी कारपोरेट व्याकरण है।

सबसे खतरनाक बात तो यह है कि जल जंगल जमीन नागरिकता मानवाधिकार औरर आजीविका से बेदखली की तर्ज पर हम अपने बच्चों से बेदखल हो रहे हैं।

सिंहदवार पर दस्तक बहुत है तेज।
जाग सको तो जाग जाओ भइये।

पसंद के मुताबिक साथी चुनना और स्त्री की यौन स्वतंत्रता ,देहमुक्ति आंदोलन के मुद्दे, महानगरों में लिव इन कल्चर और डेटिंग सामाजिक बंधन को तोड़ रहे हैं। इससे समाज की जड़ता भी टूट रही है।

बलात्कार संस्कृति स्त्री को बाजार में माल बना देने की अपसंस्कृति का ही परिणाम है।इसी बलात्कार संसकृति के मध्य पल बढ़ रहे स्कूली बच्चे बालिगों के यौन आचरण की स्वतंत्रता बिन समझे बूझे आजमा रहे हैं और यह महानगरीय व्याधि ही नहीं है अब, संक्रमित होने लगे हैं गांव देहात।

सबसे खास बात तो यह है कि हमारे शिक्षक जब हमें कहीं भी निगरानी में रखते थे, गाइड करते थे ,दिशाएं तय करते थे हमारी और हम उनकी नजर बचाकर कोई अपकर्म करने का दुस्साहस करने की सपने में भी नहीं सोच सकते थे, वहीं नालेज इकानामी में यह देश अब अमेरिका हो गया है।

स्कूली बच्चे गर्भनिरोधक का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं अमेरिका की तरह।

हद तो यह है कि स्कूल के कमरे में बच्चे ग्रुप सेक्स भी करने लगे हैं और अपने कुकृत्य को फिल्माकर मोबाइल के जरिये प्रसारित भी कर रहे हैं।

प्रगतिशील जाति वर्चस्ववाले  बंगाल के हुगली जिले के आरामबाग के एक स्कूल में ग्यारहवीं और बारहवीं के बच्चों ने ऐसा ही किया है। यह इलाका दूर दराज का माना जाता है।  

स्कूल के प्रबंधन, शिक्षक और अभिभावक तक घटना की सच्चाई की पुष्टि करते हुए चिंता जता रहे हैं।पूरी खबर ब्यौरेवार देने की जरुरत नहीं है।बांग्ला दैनिक आनंदबाजार पत्रिका में प्रकाशित खबर नत्थी है।

मुद्दा यह नहीं कि बच्चों ने गलती की। मुद्दा यह है कि खुले बाजार खेल में हम बच्चों को सीधे अमेरिकी नागरिक बनाने पर तुले हैं।हादसा होते ही हमारी चेतना अंगड़ाई लेती है और समामाजिक वास्तव का मुकाबला करने के बजाय अत्यंत धार्मिक तरीके से हम नीति प्रवचन करने लगते हैं।

शिक्षकों की निगरानी से बाहर हमारे बच्चों की दुनिया बेहद खतरनाक होती जा रही है, नालेज इकानामी के अंग बनाकर बच्चों को अमेरिकी बनाने की अंधीदौड़ में हम शायद यह भूल रहे हैं।

भड़ास में छपी इस खबर पर भी इसी ालोक में गौर करें।

कुल जमा 15-16 साल की उमर होगी उसकी। लेकिन फ्रेंड के अलावा कोई 15-16 ब्वायफ्रेंड। पूरा इलाका जानता है, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता। सुना है, एक दिन उसकी मां ने उसको "यह सब" करने से रोका तो उसने धमकी दी, घर से उठवा देगी। आमतौर लोग पुलिस से डरते हैं, लेकिन पुलिसवाले भी उससे पनाह मांगते हैं। कोई कह रहा था कि अब तो उसने उगाही, वसूली के कारोबार में भी हाथ डाल दिया है। लड़कियों को लड़के पटाने की ट्रेनिंग अलग से देती है। फीस के बतौर क्या लेती है, पता नहीं लेकिन उसके किस्से बड़े रोचक होते जा रहे हैं।

हिन्दू लड़की है लेकिन उसके नब्बे फीसदी से ज्यादा दोस्त मुसलमान हैं। आमतौर पर मुस्लिम लड़कों के बारे में कहा जाता है कि वे जानबूझकर हिन्दू लड़कियों को "पटाते" हैं लेकिन यह ऐसी बंदी है जो मुसलमान लड़कों का "शिकार'' करती है, सीना ठोंककर। पूरी हिन्दू जेहादी नजर आती है। आंख में आंख डालकर ही बात नहीं करती, खुलेआम हाथ में हाथ पकड़कर बात करती है। कई बातें तो मैं लिख भी नहीं सकता लेकिन वह खुलेआम बोलती है। स्कूटी की सवारी ऊपर से सीख लिया है। अगर आधुनिक हन्टरवाली फिल्म बनानी हो तो बहुत बढ़िया किरदार है। लेकिन क्या करें, भारतीय दंड संहिता की परिभाषा के अनुसार फिलहाल वह नाबालिग है।

[B]विस्फोट डाट काम के एडिटर संजय तिवारी के फेसबुक वॉल से.[/B]



पेश है आनंबाजार की वह खबर



ক্লাসে যৌন সংসর্গ পড়ুয়াদের, ছবি ছড়াল এমএমএসে
পীযূষ নন্দী • আরামবাগ
ফাঁকা ক্লাসঘরে ছয় ছাত্রছাত্রী মেতেছে অবাধ যৌন-সম্পর্কে। মোবাইল ফোনে এমএমএসের (মাল্টি-মিডিয়া মেসেজ) মাধ্যমে সেই ছবি ছড়িয়ে পড়ায় শোরগোল পড়েছে আরামবাগের একটি স্কুল এবং লাগোয়া এলাকায়। দিন পাঁচেক আগের ঘটনাটি নিয়ে যারপরনাই অস্বস্তিতে পড়েছেন স্কুল কর্তৃপক্ষ। ডাকা হয়েছে সংশ্লিষ্ট পড়ুয়াদের অভিভাবকদের। স্থানীয় বাসিন্দাদের একাংশ আবার জড়িতদের দৃষ্টান্তমূলক শাস্তির দাবি তুলেছেন।
স্কুলের বহু ছাত্রছাত্রী এবং এলাকার লোকজনের মোবাইলে মোবাইলে এখন ওই এমএমএস দেখা যাচ্ছে। পরিস্থিতি সামলাতে কাল, বৃহস্পতিবার পরিচালন সমিতির বৈঠক ডেকেছেন স্কুল কর্তৃপক্ষ। প্রধান শিক্ষক আদিত্য খাঁ বলেন, "ওই ছাত্রছাত্রীরা স্কুলের। যে ক্লাসঘরে ঘটনা ঘটেছে তা-ও স্কুলের। এ নিয়ে আর কোনও কথা এখনই বলা যাবে না।" স্কুল পরিচালন সমিতির সম্পাদক কৃষ্ণপ্রসাদ ঘোষ বলেন, "ওই এমএমএস আমি দেখেছি। স্কুলের সুনাম নষ্ট করার জন্য এর পিছনে চক্রান্ত রয়েছে কি না, তা খতিয়ে দেখা হচ্ছে। বৃহস্পতিবারের বৈঠকে সংশ্লিষ্ট ছাত্রছাত্রীদের অভিভাবকদেরও ডাকা হয়েছে। অপরাধ প্রমাণিত হলে ওই ছাত্রছাত্রীদের তাড়িয়ে দেওয়া হবে। দৃষ্টান্তমূলক শাস্তি দেওয়া হবে।"
স্কুলটি আরামবাগ শহরের নামী স্কুলগুলির অন্যতম। স্কুল কর্তৃপক্ষের দাবি, এর আগে সেখানে স্কুলের সুনাম নষ্ট হয়, এমন কোনও ঘটনা ঘটেনি। স্কুল সূত্রে জানা গিয়েছে, ওই এমএমএসে যে সব ছাত্রছাত্রীদের দেখা যাচ্ছে, তারা একাদশ ও দ্বাদশ শ্রেণির। সবাই স্কুলের পোশাকে ছিল। সঙ্গে ব্যাগও ছিল। অন্তত দিন পাঁচেক আগে ওই ঘটনা ঘটে।
তার পরে ঘটনায় জড়িত কোনও ছাত্রের সঙ্গে বাকিদের কোনও কারণে গণ্ডগোল হওয়ায় সে ওই ছবি ছড়িয়ে দেয় বলে প্রাথমিক তদন্তে স্কুল কর্তৃপক্ষের অনুমান।
তবে ঘটনাটিকে অস্বাভাবিক বলে মানতে রাজি নন মনোবিদ জয়রঞ্জন রাম। তিনি বলেন, "কমবয়সীদের মধ্যে যৌন সংসর্গ অস্বাভাবিক কিছু নয়। এখন হাতে হাতে মোবাইল থাকায় হয়তো ওই ছাত্রছাত্রীদের মধ্যে কেউ বদমায়েসি করে ছবি তুলে তা ছড়িয়ে দিয়েছে। ফলে, বিষয়টি নজরে এসেছে।" কিন্তু স্কুলের পোশাকে স্কুলের মধ্যেই যৌনতা?
জয়রঞ্জনবাবুর মতে, "আজকাল আর সামাজিকতার আব্রু বলে কিছু নেই। তারই প্রভাব পড়ছে অল্পবয়সীদের মধ্যে।" সমাজতত্ত্ববিদ অভিজিৎ মিত্র মনে করেন, "অনেক সময়ে দুই ছাত্রছাত্রী যৌন সংসর্গ নিয়ে নিজেদের অপরাধবোধ কমানোর জন্যও আরও কয়েকজনকে দলে জুটিয়ে নেয়। ছবি তুলিয়েও অনেকে আনন্দ পায়। কিন্তু ওরা নিশ্চয়ই জানত না যে কেউ বিশ্বাসঘাতকতা করে ছবি বাইরে ছড়িয়ে দেবে।"
কিন্তু এই ঘটনায় আতঙ্কিত অভিভাবকেরা। ওই এমএমএস তাঁদের অনেকের ছেলেমেয়ের মোবাইলেও চলে এসেছে। ছাত্রছাত্রীদের মধ্যেও জোর আলোচনা চলছে। এক অভিভাবক বলেন, "আমার মেয়ে দশম শ্রেণিতে পড়ে। এখন তো মেয়েকে স্কুলে পাঠাতেই ভয় লাগছে। স্কুলে নজরদারি আরও বাড়ানো উচিত।" একাধিক অভিভাবকের বক্তব্য, "স্কুলের পরিবেশ ক্রমশ খারাপ হচ্ছে। এ সব স্কুল কর্তৃপক্ষের কঠোর ভাবে দমন করা উচিত।"
এই এমএমএস পুলিশের নজরেও এসেছে। যদিও তা নিয়ে মঙ্গলবার রাত পর্যন্ত থানায় কোনও লিখিত অভিযোগ দায়ের হয়নি। পুলিশ জানিয়েছে, বিভিন্ন সূত্রে বিষয়টি খতিয়ে দেখা হচ্ছে। প্রয়োজনে ব্যবস্থা নেওয়া হবে।

Sunday, August 25, 2013

तिलिस्म बेनकाब,अब हाथ तो बढ़ाइये!

तिलिस्म बेनकाब,अब हाथ तो बढ़ाइये!

पलाश विश्वास

अर्थ व्यवस्था के मौजूदा संकट के बारे में डालर की जमाखोरी और भारतीय कंपनियों के काले कारोबार का पर्दाफाश आज इकानामिक टाइम्स ने कायदे से कर दिया है।पूरी रपट  हमने अंतःस्थल में दर्ज की है। लिखा हैः

अर्थसंकट का भूत हमीं के कंधे वेताल
कर्ज खाये कंपनियां
ब्याज चुकाये हम
कालाधन उनका फिर फिर
शामिल अर्थ दुश्चक्र में
उन्हीं के हवामहल में कैद
हमारे ख्वाब तमाम
जिन साथियों ने नहीं पढ़ा कृपया पढ़ लें।अब सीनाजोरी देखिये कि मोंटेक सिंह आहलूवालिया रुपये के संकट को ही मटियाने लगे। कह रहे हैं कि रुपये के लिए कोई खतरे का निशान नहीं है। जाहिर है ,उनके हिसाब से अर्थ व्यवस्था के लिए भी कोई खतरे का निशान नहीं है।  

सरकार अब पूरी तरह से विदेशी बढ़ाने पर लग गई है। शनिवार को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) रेटिंग एजेंसियों के प्रमुखों और बैंकिंग सेक्टरों के उच्चाधिकारियों से मुंबई में मुलाकात की। बंद कमरे में हुयी इस बैठक में रुपये की विनिमय दर भारी उतार चढ़ाव से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा की गई।सूत्रों के अनुसार चिदंबरम ने साफ तौर पर एफआईआई से कहा कि उन्हें आर्थिक उदार नीतियों को लेकर किसी प्रकार की आशंका पालने की जरूरत नहीं है। यूपीए सरकार अपने तय कदमों को वापस नहीं लेगी। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी बॉन्ड खरीद योजना को वापस लेने की शुरुआत करता है तो इस चुनौती से निपटने के लिये सरकार ने तैयारी कर ली। ऐसे में विदेशी निवेशकों को खुले मन से भारतीय मार्केट में कारोबार करना चाहिए।

डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट को थामने के लिए भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। इसी संबंध में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने शनिवार को बैंकों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बंद दरवाजे में बैठक की। इस बैठक में रुपये की विनिमय दर में भारी उतार-चढ़ाव से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा की गई। चिदंबरम ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कोई चर्चा नहीं की। माना जा रहा है कि बैठक में चालू खाते के घाटे के लिए पूंजी की व्यवस्था के उपायों पर भी चर्चा की गई। इसके बाद चिदंबरम ने कुछ विदेशी संस्थागत निवेशकों से भी मुलाकात की।

चालू खाते के घाटे (सीएडी) के लिए फंड का प्रबंध करने में विदेशी संस्थागत निवेश को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बैंकों के साथ बैठक में वित्तमंत्री के साथ आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम और वित्तीय सेवा सचिव राजीव टकरू भी शामिल हुए। बैठक में भारतीय स्टेट बैंक के प्रतीप चौधरी, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एचडीएफसी बैंक के आदित्य पुरी, सिटी ग्रुप इंडिया के प्रमीत झावेरी, बैंक ऑफ इंडिया की विजय लक्ष्मी अय्यर, केनरा बैंक के आरके दुबे और स्टैंर्डर्ड चार्टर्ड इंडिया के अनुराग अदलखा और कुछ अन्य बैंकों के प्रमुख भी शामिल हुए।
बैठक के बाद आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख कोचर ने संवाददाताओं से कहा कि बैठक में मुख्य रूप से पूंजी प्रवाह को लेकर क्या किया जा सकता है, इस पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक बहुत अच्छी और सकारात्मक रही। भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन चौधरी से जब पूछा कि क्या वित्त मंत्री ने कोई निर्देश दिया है, तो उन्होंने कहा, कोई निर्देश नहीं दिया गया। केवल विचार-विमर्श किया गया।



देश बेचना अब वित्तीय प्रबंधन का पर्याय है और कारपोरेट प्रबंधकों को जनसमस्याओं से कोई मतलब है नहीं।दरअसल वे जनसमस्याओं की ही रचना में लगे हैं।उनकी इस रचनाधर्मिता की नायाब मिसालें मोंटेक के तमाम उद्गार हैं।

मीडिया के बनाये भारत उदय और सुपरपावर इंडिया है जो कब्रिस्तान में बदल गये भारतीय देहात के लहूलुहान सीने पर काबिज हैं।शुक्र है कि भारत की कृषि जीवी जनता को धर्म क्रम के अलावा कोई और बात समझ में नहीं आती।

अस्मिता की राजनीति कारपोरेट बंदबस्त को ही मजबूत करती जा रही है। जनादेश रचनाकर्म के तहतफिर बारुदी सुरंगों पर रख दिया गया है देश। पैदल सेनाएं एक दूसरे केखिलाप लामबंद हैं। किसीको अपने  कटे हुए अंग प्रत्यंग का होश है नहीं।

कंबंधों के जुलूस में मारामारी है बहुत। परिक्रमाएं और यात्राएं तेज हैं।मीडिया में रात दिन सातों दिन खबरें और सुर्खियां धर्मोन्माद के एजंडे को हासिल करने में लगी हैं।

सूचनाएं सिर्फ उद्योगजगत, कारोबारियों और सत्तावर्ग के लिए है। बाकी सबकुछ बलात्कार विशेषांक है या जबर्दस्त विज्ञापनी फैशन शो की चकाचौंध है।



अंध श्रद्धा आंदोलन के गैलिलिओ की हत्या के बाद कानून बने या न बने, अंध श्रद्धा का निरमूलन असंभव है। हम अपनी बनायी हुई मूर्तियों को कभी नहीं तोड़ सकते और यह व्यवस्था इसी तरह चलती जायेगी।

बंगाल में अंग्रेजी हुकूमतके दौरान जो भी समाज सुधार आंदोलन हुए, उसके पीछे आम जनता के सशक्तीकरण का तकाजा ज्यादा रहा है।

हरिचांद गुरुचांद ठाकुर का आंदोलन महाराष्ट्र में ज्योतिबा फूले से शुरु हुआ, लेकिन मतुआ आंदोलन और ज्योतिबा फूले सावित्री देवी फूले के आंदोलन में सशक्तीकरण ही मुख्य कार्यक्रम रहा है।

बंगाल के नवजागरण में भी इस सशक्तीकरण का कार्यक्रम मुख्य था।तब सत्ता में हिस्सेदारी या राजनीतिक लाब के समीकरण इन सामाजित आंदोलनो के प्रस्थानबिंदु थे ही नहीं।

समता ,सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और आर्थिक सशक्तीकरण ही इन आंदोलनों के मुख्य तत्व रहे हैं। अंबेडकरी आंदोलन के भी मुख्य बिंदु ये ही थे। जो अंबेडकर के बाद अंबेडकर आंदोलन से सिरे से गयाब हैं।

 विडंबना यह है कि स्वतंत्र भारत में अस्मिता आंदोलन से सशक्तीकरण का विमर्श ही खत्म  हो गया। जबकि अब  प्रकृति और मनुष्य के सर्वनाश के राजसूयसमय में  नवजागरण, मतुआ आंदोलन या फूले की वैचारिक क्रांति की प्रासंगितकता पहले से कहीं है।

अंबेडकर की प्रासंगिकता भी पहले की तुलना में कहीं ज्यादा है। लेकिन इन सारे आंदोलनों और समाजकर्म को कृषि अर्थव्यवस्था से जोड़े बिना,एक दूसरे से हाथ मिलाकर देशभर में संपूर्ण मानव वृत्त की रचना किये बिना इस तिलिस्म और बहुमंजिली सदारोशन कत्लगाह से निकल बचने का कोई रास्ता निकलता ही नहीं है।

बहुसंख्य कृषि जीवी समाज को ही खंडित करके मनुस्मृति व्यवस्था कायम है।सत्ता वर्चस्वजाति एकाधिकार में तब्दील अर्थ व्यवस्था है, जिसे न सत्ता में भागेदारी से  और न सिर्फ शिक्षा के अधिकार से तोड़ा जा सकता है। यह कोई धार्मिक परबंधन है ही नहीं। धार्मिकमिथकों और प्रक्षेपणों के विपरीत यह विशुद्ध अर्थव्यवस्था है और इसीलिए इस तिलिस्म को तोड़ने की कोई परिकल्पना अब तक नहीं बन सकी।

भूमि के स्वामित्व, संसाधनों के प्रबंधन और उत्पादन के तमाम संबंध अब भी उत्तरआधुनिक खुले बाजार के जमाने में भी पूरी तरह सामंती है। इस तंत्र को तोड़े बिना इस तिलिस्म  को तोड़ना असंभव है।

भूमि सुधार से इसीलिए सत्ता वर्ग को इतना परहेज है। किसी भी कीमत पर इसे मुख्य मुद्दा बनाने से रोकना ही राजनीति है।

अस्मिता आंदोलन सत्ता वर्ग के हितों को संवर्द्धित करने का माध्यम बन गया है।

कृषि व्यवस्था को प्रस्थान बिंदू बनाये बिना कोई विमर्श हमें परिवर्तन की दिशा में ले ही नहीं जा सकता।

परस्परविरोधी घृणा अभियान से भारतीय कृषि की हत्या का कोई प्रतिरोध हो ही नहीं सका।कृषि समाज को बेदखल करके सेवाओं पर आधारित नागरिक समाज का संगठन और जनपदों का विघटन भारत में सबसे बड़ा पूंजी निवेश है, जिसको हम अभी चिन्हित ही नहीं कर सकें है।

परिवर्तन की मशाले गांवों और जनपदों में ही जल सकती हैं, जहां योजनाबद्ध तरीके से समाज को विखंडित कर दिया गया है ताकि संसाधनों की खुली लूट निर्विरोध तरीके से जारी रह सके।

यही कारपोरेट राज का बीज मंत्र है और उसका मुख्य हथियार है जनसमुदायों में, सामाजिक व उत्पादक शक्तियों में परस्पर विरोधी वैमनस्य। जिसे तेज करने में धर्मोन्माद से ज्यादा धारदार कोई हथियार दूसरा हो ही नहीं सकता।

इसीलिए ग्लोबीकरण की प्रक्रिया में आर्थिक आक्रामक कारपोरेटीकरण और धर्मोन्मादी जिहाद का यह अद्बुत भारतीय सामंजस्य है, जिसमें जन गण के सशक्तीकरणके सारे पथ बंद हैं।

सबसे पहले सशक्तीकरण के वे तमाम  सामाजिक सांस्कृतिक लोक रास्ते खोलने होंगे।जो सामाजिक सांस्कृतिक अवक्षय विचलण में सिरे से गायब हैं।

इस वक्त संप्रभु भारत के राष्ट्रभक्त नागरिकों की साम्राज्यवाद और सामंतवाद के विरोध में गोलबंद होने की सबसे ज्यादा जरुरत है। अस्मिताओं के आंदोलन नहीं, बल्कि उत्पादक शक्तियों, सामाजिक शक्तियों और कृषिजीवी जाति विखंडित बहुसंख्य जनगण के जाति उन्मूलनकारी विराट आर्थिक कृषि आंदोलन की जरुरत सबसे ज्यादा है। सामाजिक एकीकरण और सशक्तीकरण के मार्फत ही एक प्रतिशत सत्तावर्ग के प्रभुत्व के खात्मे के लिए हम निनानब्वे फीसद जनता का मोर्चा बना सकते हैं,जिसक बिना इस अनंतअ अंधेरी रात का कोई अंत नहीं है।

मोंचेक सिंह आहलूवालिया निरंतर एक के बाद एक फतवा जारी करेंगे। एक के बाद एक वित्तमंत्री देश बेचने और प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी करते रहेंगे, जनसरोकार से जरा सा वास्ता रखने वाले तमाम तत्वों का निरंकुश दम न जारी रहेगा। फर्जी मुठभेड़ और आयातित युद्द गृहयुद्ध में मारे जाते रहेंगे लोग। जनविरोधी नीतियों और जनसंहार संस्कृति के मध्य हम एक अनंत आपात काल में जीने को अभिशप्त होंगे।

जाहिर है कि अब भी कृषि के यक्षप्रश्न निरुत्तर हैं जहां से तमाम संकटों की उत्पत्ति हो रही है। पर्यावरण का प्रश्न भी उतना ही कृषि से जुडा़है जितना कि तमाम आर्थिक प्रश्न प्रतिप्रश्न। हिमालयी सुनामी हो या समुंदर किनारे विपर्यय, कृषि से बेदखली से ही आपदाओं का उद्भव है। इस प्रश्थान बिंदू स विमर्श की शुरुआत न करें तो हम न प्रकृति और न मनुष्य को बचाने,न नागरिक और न मानवाधिकार हनन के कारपोरेट उपक्रम को रोकने में कामाब हो सकते हैं।

किसी पवित्र ग्रंथ, किसी ईश्वर या देवमंडल या ज्योतिष शास्त्र से हमें मोक्ष मिलने को कोई संभावना है ।

हमें अपना मुक्ति मार्ग का निर्माणस्वयं ही करना होगा, इस सामाजिक यथार्थ की जमीन पर खड़े हुए बिना हम भारत देश की एकता अखंडता और संप्रभुता को बताने में कामयाब हो नही सकते, जिन्हें खत्म करने के लिए लोकतंत्र और संविधान दोनो की हत्या हो रही है।स

संविधान और लोकतंत्र के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है हमारे पूर्वजों ने । हमने तो लोकतंत्र और संविधान को लागू करने के लिए भी कोई अभियान नहीं चलाया।

बेशर्म आत्मसमर्पण के तहत हम  इंफोसिस निलेकणि की डिजिटल बायोमेट्रीक प्रजा हैं और फिरभी उंगलियों की  छाप और पुतलियों की तस्वीर कारपोरेट हवाले करके अपनी निजता  गोपनीयता और संप्रभुता का सौदा करके हम अस्मिताओं की जली हुई रस्सियों में तब्दील हैं।

क्या हम अपनी विरासत को बचाने के लिए तनकर खड़े भी नहीं हो सकते?

डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में जारी गिरावट के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने आज कहा कि सरकार ने रुपये की विनिमय दर की कोई सीमा तय नहीं की है। हालांकि, मोंटेक का मानना है कि रुपया का मूल्य जरूरत से ज्यादा गिर गया है। एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि सरकार या रिजर्व बैंक ने यह सोचा है कि रुपये की कोई सीमा रेखा तय की जाये। मेरे विचार से फिलहाल, रुपया जरूरत से ज्यादा गिर चुका है। उल्लेखनीय है कि गत बृहस्पतिवार को डॉलर की तुलना में रुपया अब तक के रिकॉर्ड निचले स्तर 65.56 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया था, लेकिन शुक्रवार को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के अनुकूल बयान के बाद यह सुधर गया और 63.20 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।

इस साल अप्रैल के अंत से अब तक रुपया 17 प्रतिशत से अधिक कमजोर हो चुका है। अहलूवालिया ने कहा कि रिजर्व बैंक द्वारा किए गए उपायों का बाजार में गलत अर्थ समझा गया। अहलूवालिया ने आगे कहा कहा कि बाजार जब मुश्किल दौर में होता है उस समय गंभीर निवेशक अधिकारियों की बातों पर ध्यान देते हैं।

उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल चालू खाते के घाटे को सीमित रखने के लिए एक उपाय के तौर इस्तेमाल करने की वकालत की। उन्होंने कहा, मेरे विचार से यदि आप जरूरत के समय इस्तेमाल नहीं करते हैं तो आपके पास कितना भी विदेशी मुद्रा का भंडार है उसका कोई मतलब नहीं है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में इसे घटाकर 70 अरब डॉलर या जीडीपी के 3.7 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है।

अहलूवालिया ने कहा कि सोने का आयात घटने की वजह से चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा कम रहेगा और आर्थिक वृद्धि में नरमी की वजह से पेट्रोलियम उत्पादों की मांग भी सुस्त रहेगी। अटकी पड़ी परियोजनाओं से निपटने के लिए निवेश से संबद्ध मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा किए गए प्रयासों पर उन्होंने कहा कि 78,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता की बिजली परियोजनाओं के लिए इस महीने के अंत तक ईंधन आपूर्ति की व्यवस्था कर ली जाएगी।

कुमार मंगलम बिड़ला की अगुवाई वाले आदित्य बिड़ला समूह के इस बयान पर कि 10 अरब डालर मूल्य की उसकी परियोजनाएं अटकी हैं, अहलूवालिया ने कहा, हम स्पष्ट कर दें कि निवेश से संबद्ध मंत्रिमंडलीय समिति ने पहली प्राथमिकता उन बिजली परियोजनाओं को दी जो ग्रिड को बिजली आपूर्ति कर रही हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि आदित्य बिड़ला का मामला महत्व का नहीं है। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि हमें उसे भी महत्व देना चाहिए, लेकिन यह अगले दौर के कैप्टिव बिजली संयंत्र में दिया जाएगा। उन पर अब विचार किया जा रहा है। राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के बारे में उन्होंने कहा, अगर आप राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के प्रति गंभीर हैं और आप पाते हैं कि इसके लिए पर्याप्त राजस्व नहीं है तो आपको खर्चे में कटौती करनी होगी और कोई भी वित्त मंत्री यह कर सकता है। यह करना सुखद नहीं है, लेकिन उन्हें (वित्त मंत्री) यह करना होगा। अन्य देशों के साथ अदला-बदली की व्यवस्था पर उन्होंने कहा, यदि आप एक सामान्य देश हैं और आपको नकदी संरक्षण की दरकार है तो आप अदला बदली व्यवस्था अपनायेंगे या फिर आईएमएफ के पास जाएंगे। हमें यह करने की जरूरत नहीं है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के चलते सरकारी सब्सिडी में वृद्धि की संभावनाओं पर अहलूवालिया ने कहा, यह सब्सिडी का महज एक खंड है। अगर हम पूरी सब्सिडी को नियंत्रित रखना चाहते हैं तो मुझे नहीं लगता कि आपको खाद्य सब्सिडी को इसमें गिनना चाहिए जो काफी संवेदनशील है।

रुपए में पिछले शुक्रवार को आई 135 पैसे की मजबूती का रूझान इस सप्ताह भी जारी रह सकता है क्योंकि निवेशकों को उम्मीद है कि सरकार और रिजर्व बैंक बाजार को स्थिर रखने के प्रयास जारी रखेंगे। बैंकों के कोष प्रबंधकों ने यह बात कही।

अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा बांड खरीद प्रक्रिया धीमी करने की आशंका के चलते 22 अगस्त को कारोबार के दौरान रुपया 65.56 के न्यूनतम स्तर को छू गया था। बाद में चालू खाते के घाटे (कैड) और राजकोषीय घाटे के बारे में वित्त मंत्री के अनुकूल वक्तव्य से 23 अगस्त को यह मजबूत होकर 63.20 के स्तर पर आ गया। चालू वित्त वर्ष में रुपए में अब तक 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हो चुकी है।

धनलक्ष्मी बैंक के कोषाध्यक्ष श्रीनिवास राघवन ने कहा, रुपए में इस सप्ताह भी शुक्रवार की तेजी का रख जारी रहना चाहिए। निवेशकों को उम्मीद है कि सरकार और आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव पर लगाम लगाने के लिए प्रतिबद्ध है। विदेशी संस्थागत निवेशकों की पूंजी नियंत्रण की आशंका और धन जुटाने की योजनाओं पर चर्चा के लिए वित्त मंत्री पी चिदंबरम और वरिष्ठ अधिकारियों ने इस सप्ताहांत शीर्ष बैंकरों और विदेशी निवेशकों से मुलाकात की।

बैठक के बाद वित्तीय सेवा सचिव राजीव टक्रू ने संवाददाताओं से कहा कि हफ्ते भर में निवेश आकर्षित करने से जुड़ी पहल की घोषणा होगी। चिदंबरम के साथ मौजूद आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने कहा, कैड के लिए धन की व्यवस्था के संबंध में अधिक परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह अच्छा है जो पहली तिमाही में यह 70 प्रतिशत बढ़कर नौ अरब डॉलर रहा है।

मायाराम ने कहा, हमारा मानना है कि निवेश में तेजी आएगी इसलिए हमें देखना होगा कि रुपए के मामले में हम स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जितनी निकासी हुई है उसके मुकाबले बहुत अधिक निवेश होगा।

पिछले सप्ताह चिदंबरम ने कहा था कि रुपए का जितना मूल्य होना चाहिए उससे कम है और जिस स्तर पर होना चाहिए उससे बहुत अधिक गिर गया है। उन्होंने कहा था कि अत्यधिक और बेवजह निराश होने की कोई जरूरत नहीं है।

मायाराम ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार बढ़ते कैड के लिए धन की व्यवस्था ओर निवेशकों के रझान को प्रोत्साहित करने के लिए कई ढांचागत सुधार कर रही है। मायाराम ने कहा, इन सुधारों का नतीजा चालू वित्त वर्ष में ही दिखने लगेगा और हमें उम्मीद है कि इसका अगली तीन तिमाहियों की वृद्धि पर असर होगा।

वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम के अनुसार विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में हाल के दिनों में रुपये की गिरावट को थामने के लिये पूंजी नियंत्रण लौटने संबंधी आशंकाओं को कुछ ज्यादा ही तूल दिया गया। बाजार में ऐसी आशंका बन गई कि डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज गिरावट को थामने के लिये रिजर्व बैंक एक बार फिर से पूंजी नियंत्रण के उपाय कर सकता है, इस हौव्वे को जरूरत से ज्यादा तूल दे दिया गया जिससे बाजार में उहापोह की स्थिति बनी। एसोचैम के एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है।

एसोचैम के सर्वेक्षण के मुताबिक, रुपये में गिरावट को लेकर जरूरत से अधिक हौव्वा खड़ा किया गया। यह इतना अधिक था कि इसने सरकार और रिजर्व बैंक को पूरी तरह से बेचैन कर दिया और एक समय ऐसा लगने लगा कि सरकार विदेशी पूंजी प्रवाह वापस विदेशी बाजारों में जाने पर घबराहट में है।

उल्लेखनीय है कि रुपया पर लगातार दबाव रहने के बीच रिजर्व बैंक ने हाल ही में कुछ सख्त उपाय किए जिसमें विदेश में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों पर पाबंदियां एवं देश से विदेश भेजे जाने वाले धन में कटौती आदि शामिल हैं। सर्वेक्षण में कहा गया, स्थिति इतनी भयावह नहीं थी कि रिजर्व बैंक व वित्त मंत्रालय को कुछ खास उपाय करने को बाध्य करे। हालांकि, वित्त मंत्रालय और आरबीआई के पर्याप्त प्रयासों से नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो गई।

रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को छोड़कर अन्य घरेलू कंपनियों द्वारा स्वत: स्वीकृत मार्ग से विदेश में निवेश के लिये प्रत्यक्ष निवेश को उनकी नेटवर्थ के 400 प्रतिशत से घटाकर 100 प्रतिशत कर दिया। हालांकि, आयल इंडिया और ओएनजीसी विदेश को इस सीमा से मुक्त रखा गया।