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Friday, December 12, 2014

क्या संस्कृति बचाणो ठेका गांवळुङ्क ही च ?

        क्या   संस्कृति बचाणो ठेका गांवळुङ्क ही च ?  

                                शहरी चबोड़्या   ::: भीष्म कुकरेती  


ग्रामीण चेतना - हैं ! क्या भै ! प्रवासी ! आज तो तू खुसी मा इन उछळणु छे जन भुज्यांद दैं मुंगरी उछळदन , भुज्यांद दैं जुंडळ तिड़कदन या बरखा हूंदी मिंडक  उछळदन ?  
प्रवासी  गढ़वळि मनिख -हाँ आज मीन एक कार्यक्रम मा भाषण दीणो जाण अर मीन भौत बढ़िया भाषण तयार कर याल !
ग्रामीण चेतना -कार्यक्रमौ नाम क्या च ?
प्रवासी  गढ़वळि मनिख - "गढ़वाल में समाप्त होती गढ़वाली संस्कृति ' अर मीन बि ये कार्यक्रम मा भाषण दीण। 
ग्रामीण चेतना -त्यार भाषणों शीर्षक क्या च ?
शहरी मनिख  -डाँड्यूं -कांठ्यूं की फिकर  समोदरौ छाल  पर !
ग्रामीण चेतना -अरे वाह ! सागर तट पर पहाडुं की चिंता हैं ?
शहरी मनिख  -हाँ मीन जोर दार ढंग से बताण कि कै हिसाब से गढ़वाळम गढवळि संस्कृति खतम हूणि च। 
ग्रामीण चेतना -अच्छा ! तीन उदाहरण बि देइ ह्वाल कि कै तरां से गढ़वाळम संस्कृति विणास हूणु च ? 
शहरी मनिख  -हाँ हाँ ! जन कि अब गढ़वाळम क्वी तैडु खुदणो जंगळ नि जांदन , बसिंगु नि खांदन अर लोग चाऊ -माउ पर पर ढब गेन। जब मि ये बारा मा भाषण देलु तो हॉल ताळयूं से गूंज जालो।   
ग्रामीण चेतना -अवश्य ही प्रवासी अपण चिंता ताळी पीटिक दर्शाला।  
शहरी मनिख  -कळि , बसिंगु , गींठी , सिरळ खाण हमारी संस्कृति छे अर हम गढ़वळियूंन कळि , बसिंगु , गींठी , सिरळ खाण बंद करि आल।  हमर लोग ऊख गाउँ मा संस्कृति भंजक चाऊ -माऊ खाण लग गेन।  पता नही हमारी संस्कृति का क्या होगा ?
ग्रामीण चेतना -भौत भौत बढ़िया ! यु भाषण इन लगणु च जन बुल्यां तुमर जिकुड़िक उमाळ  च। 
शहरी प्रवासी   -अरे भै जिकुड़ि  जळदि , जिकुड़ि पर छाळा पोड़ जांदन , दिमाग खराब ह्वे जांद जब हम दिखदा , सुणदा अर इंटरनेट मा पढ़दा कि गढ़वाळम  लोग अपण पारम्परिक भोजन छोड़िक दुसर देसौ भोजन शैली अपनाणा छन।  
ग्रामीण चेतना -हाँ प्रवास्युं तैं मातृ भूमि चिंता हूण लाजमी च भै। 
शहरी प्रवासी  -खान -पान -भोजन -पेय पदार्थ ही त संस्कृति संवाहक हूंदन। यदि पारम्परिक खाण -पीण इ बंद ह्वे ग्याइ गए तो समझि ल्यावो संस्कृति रसातल जोग ह्वे  ग्याइ । आज तकरीबन हरेक सजग , संवेदनशील , शिक्षित प्रवासी अपण गढ़वाळम खत्म होती परम्परा से परेशान च। वै प्रवासी की समज मा आणु इ नी च कि खतम हूँदि परम्परा तैं कनै रुके जावु ?
ग्रामीण चेतना -तुमर इख आज सुबेर क्यांक नास्ता बौण ?
शहरी प्रवासी  -आज हमन कॉन्टिनेंटल ब्रेकफास्ट कार।  माई चिल्ड्रन लाइक कॉन्टिनेंटल ब्रेकफास्ट। 
ग्रामीण चेतना -ब्याळि तुमर ड्यार क्या नास्ता बौण ?
शहरी प्रवासी  -ब्याळि ! हाँ ब्याळि हमर इख मेक्सिकन सिम्पल चिलाक्लीज विद फ्राइड एग्स बणीन।  मेरी वाइफ़न मेक्सिकन कुजीन बणाणो क्लास जि ज्वाइन कौर छे। 
ग्रामीण चेतना -परसि क्या ब्रेकफास्ट कौर ?
शहरी प्रवासी  -परसि ? हाँ !फिलिपाइनी ब्रेकफास्ट चैम्पोराइडो  कार मि तैं फिलिपाइनी कुजीन भौत पसंद च । मीन खुद फिलिपाइनी ब्रेकफास्ट  कुक  कार। 
ग्रामीण चेतना -भौत बढ़िया ! 
शहरी प्रवासी  -हम हर दिन ,  एक ना एक  फॉरेन डिशेज अवश्य बणौन्दा।  
ग्रामीण चेतना -किलै ?
शहरी प्रवासी  -अरे भै ! ग्लोबलिजेसन कु युग च तो सोसाइटी मा रौण तो इंटरनेशनल हैबिट तो अपनाण इ पोड़ल कि ना ?
ग्रामीण चेतना -हाँ सही बात च।  बाइ द वे आपक इख क्या क्या गढ़वळी भोजन बणद ? 
शहरी प्रवासी  -मेरी वाइफ अर बच्चों तैं गढ़वळि कुजीन बिलकुल पसंद नी च।  तो हमर इख क्वी बि गढ़वळि खाणक नि बणद।  
ग्रामीण चेतना -वाह ! जैक इख ढ़वळि कुजीन बिलकुल नि बणद वु रुणु च कि गढ़वाळम पारम्परिक खान -पान बंद हूणु। च मतबल गढ़वळि संस्कृति बचाणो ठेका गढ़वाळ का लोगुंक ही च !  अफु त इंटरनेसनल बणन चांदु अर दुसरौ तैं हिदैत दीणु च कि तू कुंवा कु मिंडक बण्यू रौ। 



13/12/14 ,Copyright Bhishma Kukreti , Mumbai India 


   *लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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