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Tuesday, August 11, 2015

जिनने देखा नहीं बंटवारा,अब वे भी देख लें बंटवारा कि मुल्क सियासती मजहबी गुंडों के हवाले है मुहब्बत साबित हो तो पत्थर भी पिघले हैं हम वे गुनाहगार हैं,जो मुहब्बत साबित नहीं कर सकै हैं मसले न हिंदू हैं और न मुसलमान सारे मसले आर्थिक हैं बाकी सबकुछ झांसा नींद भर सोये,अब जाग जाग तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर जाग जाग कि आशियाना में लगी है आग पानी भी सर से ऊपर है धर्म बदलने से कयामत नहीं थमनेवाली मसलों को धार्मिक जो बना रहे हैं उनके खिलाफ जाग जाग पलाश विश्वास


जिनने देखा नहीं बंटवारा,अब वे भी देख लें बंटवारा

कि मुल्क सियासती मजहबी गुंडों के हवाले है

मुहब्बत साबित हो तो पत्थर भी पिघले हैं

हम वे गुनाहगार हैं,जो मुहब्बत साबित नहीं कर सकै हैं

मसले न हिंदू हैं और न मुसलमान

सारे मसले आर्थिक हैं

बाकी सबकुछ झांसा

नींद भर सोये,अब जाग जाग

तेरी गठरी में लागा चोर

मुसाफिर जाग जाग

कि आशियाना में लगी है आग

पानी भी सर से ऊपर है

धर्म बदलने से कयामत नहीं थमनेवाली

मसलों को धार्मिक जो बना रहे हैं

उनके खिलाफ जाग जाग

पलाश विश्वास

भगाना के दलित- माँगा इंसाफ, मिला इस्लाम!, यही है हिन्दू राष्ट्र?

भगाना के दलित- माँगा इंसाफ, मिला इस्लाम!, यही है हिन्दू राष्ट्र? धर्मपरिवर्तन दलित उत्पीड़न का हल नहीं है, दलितों को संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए

HASTAKSHEP.COM|BY AMALENDU UPADHYAYA

आज जरा थमके बैठियो।

सबसे पहले,पढ़ लें हमारे खास दोस्त भंवर मेघवंशी को।


मेघवंशी पाकिस्तान में भी होते हैं।

ऐसा कल रात आनंद तेलतुंबड़े के साथ लंबी बातचीत के सिलसिले में मालूम हुआ है।


कराची और सिंध में होते हैं मेघवंशी।हिंदू मेघ और मुसलमां मेघ में फासला बेहद कम होता है।बीच में बस मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा है।

इस परा कच्छ है तो उस पार सिंध है।बीटमें वीरान कंडहर हैं रण के।


यकीन मानों तो देश का बंटवारा दरअसल हुआ नहीं है।

यकीन मानों तो दरअसल बंटवारा मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा का हुआ है।


यकीन मानो चारों तरफ काफिरों का हुजुमोहुजुम से घिरे हैं हम,जो मजहबी हैं,दरअसल वे मजहबी नहीं है।


मुहब्बत के बिना दरअसल मजहब कोई होता नहीं है।

जिसे हम मजहब समझते हैं,

वह दरअसल नफरत का कारोबार है।


हम सारे लोग काफिरों की नफरत का नर्क जी रहे हैं,मुहब्बत दरअसल किसी को नहीं है।नहीं है।


मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा का बंटवारा हो गया जिस पल समझो उसी पल मुहब्बत का सिलसिला खत्म है और जो है वह है नफरत का जलजला बेहिसाब,बेइंतहा।


पनाह उस रब के दरवज्जे में भी नहीं है.जिसकी इबादत के बहाने सारे दंगे हम करै हैं।


भंवर का भंवर बूझ लें तो बाकी किस्सा साबित करने की भी जरुरत नहीं है।


तनिको खबरदार भी हो जायें हुजूर कम से कम आनंद और हमने कल रात तय पाया है कि अब हम न सोयेंगे और न किसी को सोने देंगे।सबकी नींद उजाड़ देंगे हम यकीनन।


सुबह उठकर सबसे पहले अमलेंदु को फोन लगाया और कह दिया कि जमकर बैठ जायें।

अब न कोई रियायत होगी और न कोई सियासत होगी।

बेपरवाह बेखौफ सच का ताना बाना बुनकर ही दम लेना है।


हिंदी,बांग्ला,अंग्रेजी या हो कोई दूसरी जुबां,जमकर फायरिंग करनी है और सियासती मजहबी गुंडों सा मुल्क फिर आजाद करना है।

बड़े मकसद के लिए यकीन भी बड़ा होना चाहिए।

यकीन चाहिए कि जो दोस्त साथ नहीं हैं फिलहाल,वे देर सवेर हमारे साथ होंगे और हाथों में हाथ भी होंगे।लबों पर मुहब्बत तो हो।


बहुत खस्तेहाल हैं हम यकीनन,लेकिन बेदम अभी हुए नहीं यकीनन।हमने अपने खासमखास पट्ठे को कह भी दिया कि जो बदलाव का ख्वाब देखे हैं,वे भौत जीते भी नहीं हैं।


जैसे गुंडे भी जीते नहीं है अरसा तलक।

पहले वे खबर बनाते हैं।

फिर खबर बन जाते हैं।


वैसे मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि हमउ मिलिटेंट बानी।

आजादी की बात वही कर सकै हैं जो होइबे करै हैं मिलिटेंटवा बेहिसाब।हमने ही बाबासाहेब से संविधान रचवाया है।


बंगाल के महार नमोशूद्र अछूत के खानदान से हूं।

पूरी जात,पूरा खानदान जल जंगल जमीन के जोद्धा रहे हैं।


लुकाछुपी का फायदा कोई नहीं है।

नफरत के हेजेमनी को सब मालूम ठैरा और निशाना भी उनर बहुतै अचूक बा।हो न हो,हमउ खबर बनी किसी न किसी दिन।


अबहुं जौन वोटों का हिसाब जोड़े हैं,जात पांत मजहब पहचान वगैरह वगैरह सियासत जो जोड़े हैं,उनसे गुजारिश है कि दिल जिनका जल रहा हो,उनसे तनिको डरियो कि दिल में आग लगी हो तो नफरत की दुनिया खाक हो जाती है यकीनन।आग फिर दिल में लगी है।


उनसे भी गुजारिश है,जो गाहे बगाहे बुलाते हैं क्योंकि अब न दुआ का कोई मौका है और न किसी को सलाम कहना है।

इबादत का वक्त भी नहीं है यह।


बचपन से हमने भाषण बहुतै झाड़ै हैं।जिन्हें भाषण का शौक है,वे यूट्यूब पर हमसे हों मुखातिब,बाकी हम किसी जलसे में नहीं हैं।


मजहब भी आखिर मुहब्बत का दूसरा नाम है।

मजहबी जो हों सचमुच उसका नफरत से कोई काम नहीं है।

उस मजहब को सलाम सलाम जो हो खालिस मुहब्बत का पैगाम।


सच्चा काफिर होने वास्ते बहुत जरुरी है कि कायदे से पहले मजहब को जान लें।कायदे सेसारे पाक किताब,कायदे कानून जान लें।


कोई कट्टर मजहबी हो तो शायद ऐतराज भी न होता।

अगर उसका दिलोदिमाग जहर का सिलसिला न होता।


कट्टर हों तो हुआ करें,दूसरे मजहब की भी इज्जत करें।

फिर न सियासत का यह जहरीला सिलसिला होता।


जिनने देखा नहीं बंटवारा,अब वे भी देख लें बंटवारा

कि मुल्क सियासती मजहबी गुंडों के हवाले है

मुहब्बत साबित हो तो पत्थर भी पिघले हैं

हम वे गुनाहगार हैं,जो मुहब्बत साबित नहीं कर सकै हैं

मसले न हिंदू हैं और न मुसलमान

सारे मसले आर्थिक हैं

बाकी सबकुछ झांसा

नींद भर सोये,अब जाग जाग

तेरी गठरी में लागा चोर

मुसाफिर जाग जाग

कि आशियाना में लगी है आग

पानी भी सर से ऊपर है

धर्म बदलने से कयामत नहीं थमनेवाली

मसलों को धार्मिक जो बना रहे हैं

उनके खिलाफ जाग जाग



आग दिल में जब लगी हो हमारे तब धुंआ हिंदी में निकरै है।

निगोड़ी हिंदी जुबां है दरअसल हमारी,मातृभाषा बांग्ला,तो क्या।

हिंदू नहीं हूं विशुध,पर हमउ पुरकश हिंदुस्तानी बानी।


भले उनके हिंदू राष्ट्र में हमारी कोई जगह हो न हो।

हम पहले से चेता रहे थे कि घर वापसी का खेल बहुतै खतरनाक बा।

देखियो कि कैसे बुमरैंग हुई जाय रै।


पंतगबाजी करनी हो तो पतंगबाजी की तमीजो चाहिए।

नागपुर में केसरिया और नीले के अलावा कोई रंग नहीं है।

देश में जो हो रहा है,वह फिर नागपुर का सिलसिला है।


मुल्क की परवाह न केसरिया को है।

न मुल्क की परवाह नीले को है।

लाल का किस्सा खुल्लमखुल्ला है।


अब बाबासाहेब के नाम जो सियासती दुकान चलावै हैं वे तनिको सोच समझकर जवाब दें कि बाबासाहेब ने हिंदुत्व छोड़कर जो बौद्ध धर्म अपनाया है और उसी हिसाब से बाबासाहेब का बसाया है नागपुर तो नागपुर उतना नीला भी क्यों नहीं है और नागपुरो मा जमीन आसमान क्यों केसरिया हुआ करै हैं।


उन्हीं बाबासाहेब की दीक्षाभूमि के आसोपास सारे भूकंप के एपिसेंटर क्यों हुआ करे हैं.यह भी बतइयो।


महार आंदोलन की विरासत के धारकों वाहकों,जरा यह भी बताना कि जिस मनुस्मृति का दहन कर दिया बाबासाहेब ने,मुल्क अब उसी मनुस्मृति का खुल्ला बाजार क्यों बना है और क्यों आपके सारे राम हनुमान हुआ करै हैं।


महार आंदोलन की विरासत के धारकों वाहकों,जरा यह भी बताना कि जाति उन्मूलन का एजंडा जो बाबासाहेब का सबकुछ है,उसको संघपरिवार की समरस रस में डुबोया किन किनने है और क्यों मुल्क की राजधानी बाबासाहेब के नीले नागपुर का केसरिया नागपुर है।क्यों मुल्क फिर केसरिया है,नीला क्यों नहीं है।


सवा ल समझ में नहीं आया तो अपने भंवर को जरुर पढ़ लें।चूंकि आनंद तेलतुंबड़े को पढ़कर समझना हर किसी के बस में नहीं है।


हमउ तो खैर पढ़ उढ़कर फिन वही बुरबक बानी कि हम गुनाहगार हैं कि अपनी मुहब्बत हमउ साबित न कर सकै हैं।


भंवर के सवाल बहुत मौजूं हैं और बहुजनों को इसका जवाब देना है।


खासतौर पर उन्हें जो फिर बाबासाहेब के ख्वाबों को हकीकत में बदलने खातिर मुल्क पिर बौद्धमय बनाना चाहते हैं और दरअसल वे लोग फिर हिंदूराष्ट्र की पैदल सेनाएं हैं।


सवाल फिर वहीं है कि देश के किसी भी कोने में कोई आदिवासी, कोई दलित,कोई पिछड़ा इतना तन्हा तन्हा क्यों हैं।


बहुत शोर है मुसलमां बिरादरी का,तो फिर मुसलमां भी इतना तन्हा तन्हा क्यों हैं।


माफ करें कि बेअदब हैं हम बहुत।

माफ करें कि बदतमीज भी हैं हम बहुत।

क्योंकि हमारा कोई रब नहीं है।


क्योंकि हमारा कोई रब नहीं है।

इंसानियत के मजहबके सिवाय।


मसलन जैसे हर सिख अब अकाली है।

जो अकाली नहीं है सियासत से,वह भी दिलोदिमग से अकाली है।


बहुत खून बहा है,बह रहा है पंजाब में।

फिर बंटवारे की दहलीज पर है मुल्क,मुल्क के पहरेदार सिख फिरभी सो रहे हैं।


मसलन खुदा के असल बंदा कौन है,बंदी भी कौन है,कहना मुश्किल है।सारे मुसलमां होते तो सियासती मजहबू गुंडों ने इस कदर मुल्क को बांट न लिया होता और काफिरों के फतवे का जलजला नहीं होता यकीनन।कहना बहुत मुश्किल कि कौन काफिर है और कौन मुसलमां इन दिनों।


पांच वक्त नमाज से कोई मुसलमां भी नहीं होता।

फिर गुजारिश है कि बदबख्त हूं,माफ भी कर दें।


असल सच यही है कि जिसे हम मजहब मान रहे हैं वह सियासत है दरअसल।मजहब दिलों का कारोबार है।

मजहब मुहब्बत का समुंदर है जो है ही नहीं कहीं भी इन दिनों।


विदेशी उपनिवेश में खुल्ला बाजार में जब बिक रहा हो देश,जब गुप्तांग के नमूने देकर डीएनए प्राफाइलिंग करवाने को बेताब हैं लोग तो फिर क्या तो हिंदू क्या फिर मुसलमां।


विदेशी उपनिवेश में खुल्ला बाजार में जब बिक रहा हो देश,जब सियासत के दांतों में फंसा हो वह कारतूज,जिसमें गाय और सूअर की चर्बी हों एकमुश्त तो समझ लीजिये फिर फिजां उसी अठारह सौ सत्तावन है,लेकिन कोई बागी अभी जिंदा बचा नहीं है।


वधस्थल का मजहब कोई बता दें तो जानें।

कातिलों के खूनी कंजर का कोई मजहब हो तो जानें।


बता दें कि भोपाल गैस त्रासदी,सिख नरसंहार,गुजारात कत्लेआम वगैरह वगैरह और फिर उस बेहद बदनाम बंटवारे का क्या मजहब है।जिसे आज भी हम फिर फिर दोहरा रहे हैं।


कातिलों के हाथ रंगे हों या नहीं,गौर से देख लीजिये,हमारे  हाथों से चूं क्या रिया है हो।चूं रिया है तो समझ लीजिये कि चूं क्या रिया है।


तनिकों दिल पर हाथ रखकर सोचिये कि कैसा कैसा मजहब हम जी रहे हैं।हमार दिल में मुहब्बत भी है या नहीं है।


बाबासाहेब के नाम दुकान चलानेवालों ,इस सवाल से बच नहीं सकते कि बहुजनों की सियासत और सत्ता की चाबी का इतना शोर हैं तो बाबासाहेब के मजहब के बदले दलित क्यों इस्लाम अपना रहे हैं जबकि इस हिंदू राष्ट्र में इस्लाम की कोई जगह भी नहीं है।


दलित होकर जो इंसान न हुआ करै हैं और डोर डंगरों की तरह मरे हैं,मुसलमां बनकर वे जिहादी करार दिये जायेंगे,उसीतरह जैसे कि सलूक मुसलमां के साथ हिंदू राष्ट्र में दस्तूर है।


हमें उन लोगों से सबसे सख्त नफरत हैं जो इस नाजुक घड़ी में मुल्क की न सोचकर किसी सूअरबाड़े की इबाजत में मजै हैं।


हमें उन लोगों से सबसे सख्त नफरत हैं जिन्हे न आवाम सेकोी सरोकार है और न आवाम की कोई परवाह हो।रब वे भी होंगे,तो भी हमारे दिलोदिमाग में उकी कोई जगह नहीं है।


हम तब भी डरे हुए थे दोस्तों,जब 2020 तक मुल्क और 2030 तक पूरी दुनिया को हिंदू बनाने का ऐलान हो रहा था।


हम तब भी उन आदमखोर दरिंदा का चारा बन रहे थे,जिनके मुंह लहू लगा है और फिरभी वे मुहब्बत नही कर रहे,गोलियों की रासलीला रचाकर इंसानी गोस्त लहू चाखै हैं वे दरिंदे।


घर वापसी का एजंडा बदस्तूर जारी है।

हम डरे हुए हैं कि दलित जब फिर इस्लाम अपना रहे हैं तो रंजिशन क्या क्या कारनामे फिर अंजाम होगें।


हम डरे हुए हैं कि दलित तो मारे ही जाते हैं और मारे ही जाते हैं मुसलमां भी किसी न किसा बहाने,अब कातिलों को कोई और बहाना नहीं चाहिये क्योंकि इससे बेहतर बहाना कोई नहीं है कि दलित कलमा पढ़ने लगे हैं।


अब जो कहर बरपेगा,उससे बचियो।

हम डर रहै हैं कि इस हिंदू मुस्लिम फसाद में फिर दलित आदिवासी और पिछड़े वे सारे के सारे मारे जायेंगे जो सत्ता से कहीं न कहीं नत्थी भी नहीं हैं।

वे सारे अब जिहादी बना दिये जायेंगे।


हम डर रहे हैं कि मसले जब हिदू मुस्लिम बन जाये सिर्फ तो न मजहब के लिए कोई जगह है और न इबादत और दुआ सलाम की भी कोई गुंजाइश है।


क्योंकि जिसे हम मजहब समझ रहे हैं वह सियासत है।

वह सियासत फिर सुखी लाला का कारोबार है।


मसले सारे जब हिंदू मुस्लिम हो जाये,तो दंगे भी जरूरी हैं।गंदों का सिलसिला जो खत्म न हुआ करै है।


हम डर रहे हैं दंगो के उस सिलसिले के अंदेशे से जो हकीकत भी है।

हम गलत समझते थे कि बंटवारे का हिसाब किताब हो गया ठैरा.

असल बंटवारा अब शुरु हुआ है।


हम समझ रहे थे कि तब कत्लेआम खूब हुआ होगा।

मसले जब सिर्फ हो जाये हिंदू मुसलमां तो समझ लीजिये कि कत्ले आम तो अब शुरु ही हुआ है,जिसकी कोई इंतहा नहीं है।


जिनने देखा नहीं बंटवारा,अब वे भी देख लें बंटवारा

कि मुल्क सियासती मजहबी गुंडों के हवाले है

मुहब्बत साबित हो तो पत्थर भी पिघले हैं

हम वे गुनाहगार हैं,जो मुहब्बत साबित नहीं कर सकै हैं

मसले न हिंदू हैं और न मुसलमान

सारे मसले आर्थिक हैं

बाकी सबकुछ झांसा

नींद भर सोये,अब जाग जाग

तेरी गठरी में लागा चोर

मुसाफिर जाग जाग

कि आशियाना में लगी है आग

पानी भी सर से ऊपर है

धर्म बदलने से कयामत नहीं थमनेवाली

मसलों को धार्मिक जो बना रहे हैं

उनके खिलाफ जाग जाग


भंवर ने लिखा हैः

धर्मपरिवर्तन दलित उत्पीड़न का हल नहीं है, दलितों को संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए

भगाना के दलितों ने ग्राम पंचायत के सरपंच से लेकर देश के महामहिम राष्ट्रपति महोदय तक हर जगह न्याय की गुहार लगायी, वे तहसीलदार के पास गए, उपखंड अधिकारी को अपनी पीड़ा से अवगत कराया, जिले के पुलिस अधीक्षक तथा जिला कलेक्टर को अर्जियां दी। तत्कालीन और वर्तमान मुख्यमंत्री से कई कई बार मिले। विभिन्न आयोगों, संस्थाओं एवं संगठनों के दरवाजों को खटखटाते रहे, दिल्ली में हर पार्टी के अलाकमानों के दरवाजों पर दस्तक दी मगर कहीं से इंसाफ की कोई उम्मीद नहीं जगी।….



भंवर ने लिखा हैः


हर स्तर पर, हर दिन वे लड़ते रहे, पहले उन्होंने घर छोड़ा, फिर गाँव छोड़ा, जिला और प्रदेश छोड़ा और अंततः थक हार कर धर्म को भी छोड़ गए, तब कहीं जाकर थोड़ी बहुत हलचल हुयी है, लेकिन अब भी उनकी समस्या के समाधान की बात नहीं हो रही है।


भंवर ने लिखा हैः

एक लोकतान्त्रिक देश में कोई भी नागरिक किसी भी धर्म को स्वीकारे या अस्वीकार करे ,यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा है और कानूनन इसमें कुछ भी गलत नहीं है ,इसलिए भगाना के दलितों द्वारा किये गए इस्लाम को कुबूलने के निर्णय से मुझे कोई आपति नहीं है ,मैं उनके निर्णय का आदर करता हूँ ,हालाँकि मेरी व्यक्तिगत मान्यता यह है कि धर्मान्तरण किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता है क्योंकि यह खुद ही एक समस्या है| संगठित धर्म के आडम्बर और पाखंड तथा उसकी घटिया राजनीती सदैव ही  धर्म का सक्षम तबका तय करता है ,भारत के जितने भी धर्म है ,उन सबमें जातियां पाई जाती है तथा कम ज्यादा जातिगत भेदभाव भी मौजूद रहता है ,इस्लाम भी इससे अछुता नहीं है.जैसा कि दलित चिन्तक एस आर दारापुरी का कहना  है कि-" धर्मपरिवर्तन दलित उत्पीडन का हल नहीं है ,दलितों को संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए ,हाँ अगर धर्म बदलना ही है तो बौद्ध धर्म अपनाना चाहिए जिसके सिद्धांत और व्यव्हार में अंतर नहीं है जबकि भारतीय इस्लाम ,इसाई और सिख धर्म में यह अंतर पाया जाता है | " वाकई यह एक विचारणीय प्रश्न है कि क्या हिन्दू धर्म का त्याग करके किसी और धर्म को अपना लेने मात्र से कोई व्यक्ति जातिगत घृणा से मुक्त हो जाता है या धार्मिक नफरत का भी शिकार होने लगता है| जैसा कि भगाना के धर्मान्तरित दलितों के साथ होने लगा है कि धर्म बदलते ही उनके प्रति राज्य और समुदाय दोनों का व्यवहार अत्यंत क्रूर हो गया है| फिर यह भी देखना होगा कि क्या आज मुसलमान खुद भी स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है ,जिस तरीके से बहुसंख्यक भीड़ के हमले उन पर बढ़ रहे है ,गुजरात ,मुज्जफरनगर ,अटाली जैसे हमले इसके उदहारण है ,ऐसे में भले ही दलित उनका दामन थाम रहे है ,मगर उनका दमन थमेगा ,इसकी सम्भावना बहुत क्षीण नजर आती है .


भंवर ने लिखा हैः

अंतिम बात यह है कि अब भगाना  के दलितों की आस्था बाबा साहेब के संविधान के प्रति उतनी प्रगाढ़ रह पायेगी या वो अपनी समस्याओं के हल कुरान और शरिया तथा अपने बिरदाराने मुसलमान में ढूंढेगे ? क्या लडाई के मुद्दे और तरीके बदल जायेंगे ,क्या अब भी भगाना के दलित मुस्लिम अपने गाँव के चमार चौक पर अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने हेतु संघर्ष करेंगे या यह उनके लिए बुतपरस्ती की बात हो जाएगी ,सवाल यह भी है कि क्या भारतीय मुसलमान भगाना के नव मुस्लिमों को अपने मज़हब में बराबरी का दर्जा देंगे या उनको वहां भी पसमांदा के साथ बैठ कर मसावात की जंग को जारी रखना होगा ? अगर ऐसा हुआ तो फिर यह  खाई से निकलकर कुएं में गिरने वाली बात ही होगी| भगाना के दलितों को इंसाफ मिले यह मेरी भी सदैव चाहत रही है ,मगर उन्हें इंसाफ के बजाय इस्लाम मिला है ,जो कि उनका अपना चुनाव है ,हम उनके धर्म बदलने के संवैधानिक अधिकार के पक्ष में खड़े है ,कोई भी ताकत उनके साथ जोर जबरदस्ती नहीं कर पायें और जो भी उनका चयन है ,वे अपनी चयनित आस्था का अनुपालन करे,यह सुनिश्चित करना अब भारतीय राष्ट्र राज्य की जिम्मेदारी है ,मगर अब भी मुझे दलित समस्याओं का हल धर्म बदलने में नहीं दिखाई पड़ता है| आज दलितों को एक धर्म छोड़कर दुसरे धर्म में जाने की जरुरत नहीं है ,उन्हें किसी भी धर्म को स्वीकारने के बजाय सारे धर्मों को नकारना होगा ,तभी मुक्ति संभव है ,संभवतः सब धर्मों को दलितों की जरुरत है ,मगर मेरा मानना है कि दलितों को किसी भी धर्म की जरुरत नहीं है .धर्म रहित एक लोकतंत्र जरुर चाहिए ,जहाँ पर  समता ,स्वतंत्रता और भाईचारा से परिपूर्ण जीवन जीने का हक सुनिश्चित हो|




जिनने देखा नहीं बंटवारा,अब वे भी देख लें बंटवारा

कि मुल्क सियासती मजहबी गुंडों के हवाले है

मुहब्बत साबित हो तो पत्थर भी पिघले हैं

हम वे गुनाहगार हैं,जो मुहब्बत साबित नहीं कर सकै हैं

मसले न हिंदू हैं और न मुसलमान

सारे मसले आर्थिक हैं

बाकी सबकुछ झांसा

नींद भर सोये,अब जाग जाग

तेरी गठरी में लागा चोर

मुसाफिर जाग जाग

कि आशियाना में लगी है आग

पानी भी सर से ऊपर है

धर्म बदलने से कयामत नहीं थमनेवाली

मसलों को धार्मिक जो बना रहे हैं

उनके खिलाफ जाग जाग


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