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Monday, May 21, 2012

Fwd: [आरक्षण को बचाने के लिए आगामी 25 मई 2012 को रवीन्द्रालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में दलितों द्वारा जनांदो...



---------- Forwarded message ----------
From: Udit Raj <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2012/5/21
Subject: [आरक्षण को बचाने के लिए आगामी 25 मई 2012 को रवीन्द्रालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में दलितों द्वारा जनांदो...
To: "आरक्षण को बचाने के लिए आगामी 25 मई 2012 को रवीन्द्रालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में दलितों द्वारा जनांदोलन की मशाल जलाई जाएगी" <palashbiswaskl@gmail.com>


'परिसंघ संघर्ष जारी, पदोन्नति में आरक्षण के...
Udit Raj 3:20am May 21
'परिसंघ संघर्ष जारी, पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की मुहीम स्वागत"
नई दिल्ली, 19 मई, 2012, अनुसूचित जाति / जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. उदित राज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के गत 27 अप्रैल 2012 के फैसले में उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण वंचित किया है. दुसरे ही दिन परिसंघ द्वारा एक देशव्यापी आन्दोलन की शुरुवात की गयी . 30 अप्रैल, 2012 को परिसंघ की कर्नाटक इकाई द्वारा धरना-प्रदर्शन किया गया . 11 मई, 2012 को उत्तर प्रदेश के दलित कर्मचारियों और अधिकारियों ने राज्य के सभी जिला मुख्यालय पर धरना किया और एक ज्ञापन प्रधानमंत्री को दिया गया था. दो बैठकें श्री वी. नारायणस्वामी, कार्मिक राज्य मंत्री, भारत सरकार के साथ करके वार्तालाप किया गया. इस मुद्दे पर 15 मई, 2012 को राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के महासचिव श्री राहुल गांधी के साथ एक बैठक आयोजित की गई थी और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रभाव से अवगत कराया गया था. परिसंघ द्वारा सरकार पर दबाव बनाया गया जिसका असर हुआ और परिणाम के रूप में23 मई 2012 को प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई हैं . परिसंघ प्रधानमंत्री के इस कदम के लिए आभारी है. आने वाले दिनों में, परिसंघ द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में- 20 -21 मई को बंगाल, 25 मई को उत्तर प्रदेश, 26 मई को हरियाणा, 17 जून को आंध्र प्रदेश में और इसके बाद झारखण्ड में पदोन्नति में आरक्षण की वापसी, निजी क्षेत्र में आरक्षण और खाली पदों पर भर्ती आदि मुद्दों को लेकर आदोलन किये जायेंगे.
डा. उदित राज ने कहा कि जन प्रतिनिधियों की संस्थाओं जैसे संसद और विधान सभाओं द्वारा दलितों और गरीबों के लिए जो कुछ भी अधिकार दिया जाता है , उसे न्यायपालिका छीनने का कार्य करती है. 85 संवैधानिक संशोधन के आधार पर परिणामी ज्येष्ठता लाभ दिया गया था. 77 संवैधानिक संशोधन ने पदोन्नति में आरक्षण का रास्ता साफ़ कर दिया था. इस के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2012 को अपने निर्णय में पदोन्नति में आरक्षण और परिणामी ज्येष्ठता के लाभ से वंचित कर दिया. न्यायपालिका का काम कानून की व्याख्या करना हैं ,न की संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को ख़त्म करना. इस तरह उच्च न्यायपालिका दलितों के हितों के खिलाफ काम कर रही है. उन्होंने आगे कहा कि अब अवसर आ गया यह जानने और पहचानने का कि कौन सा राजनैतिक दल दलितों और पिछडो का हितैषी हैं ! हमे विश्वास है कि आगामी बैठक में 23 मई, 2012 को सभी राजनैतिक दल ठोस निष्कर्ष निकालेंगे कि कैसे न्यायपालिका के हस्तक्षेप से दलितों और गरीबो के हित में बने कानूनों को सुरक्षित किया जा सके. संसद देश की जनता के द्वारा चुनी गयी सर्वोच्य संस्था हैं और अगर वह जनता के हित में कार्य करती हैं तो उच्च न्यायपालिका का कोई औचित्य नहीं बनता कि वह हस्तक्षेप करें .
परिसंघ का ही गौरवशाली और जुझारू इतिहास रहा हैं कि पूर्व में तीन संवैधानिक अर्थात 81, 82 और 85 संशोधनों को करा कर दलित कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए आरक्षण को सुरक्षित कराया. परिसंघ के आन्दोलन की वजह से यूपीए प्रथम ने अपने घोषणा पत्र में निजी में आरक्षण देने और आरक्षण कानून बनाने का वादा किया था. इस सन्दर्भ में यूपीए प्रथम वर्ष 2009 में एक विधेयक लेकर आई थी जिसमें दलितों के हितों को नजरअंदाज किया गया था. परिसंघ ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया. यह विधेयक अभी भी लोकसभा में लंबित है. सभी अन्य दलित संगठनों से अपील की जाती हैं कि अब वे अलग अलग धरना प्रदर्शन करने के बजाय परिसंघ के देशव्यापी आंदोलन का साथ दें. ताकि संसद में लंबित विधेयक में संशोधन करा कर निजी में आरक्षण और आरक्षण कानून का बिल पास कराया जा सकें. जिससे कि दलित अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आरक्षण पूरी तरह से संरक्षित और सुरक्षित किया जा सके.

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