Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, January 30, 2012

कोल इंडिया प्रबंधन और केन्द्र की यूपीए सरकार ने कोयला उद्योग को निजी कंपनियों के हाथों सौंपने की तैयारी शुरू कर दी है। कोल ब्लॉकों को निजी क्षेत्रों को सौंपा जा रहा है। दस फीसदी शेयर बेचा गया। अब 16 प्रतिशत और शेयर बेचने की तैयारी कोल इंडिया कर रही ह

कोल इंडिया प्रबंधन और केन्द्र की यूपीए सरकार ने कोयला उद्योग को निजी कंपनियों के हाथों सौंपने की तैयारी शुरू कर दी है। कोल ब्लॉकों को निजी क्षेत्रों को सौंपा जा रहा है। दस फीसदी शेयर बेचा गया। अब 16 प्रतिशत और शेयर बेचने की तैयारी कोल इंडिया कर रही  है।

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कोल इंडिया प्रबंधन और केन्द्र की यूपीए सरकार ने कोयला उद्योग को निजी कंपनियों के हाथों सौंपने की तैयारी शुरू कर दी है। कोल ब्लॉकों को निजी क्षेत्रों को सौंपा जा रहा है। दस फीसदी शेयर बेचा गया। अब 16 प्रतिशत और शेयर बेचने की तैयारी कोल इंडिया कर रही  है।

भारतीय कोयला कंपनियां मुनाफा देने के बावजूद गहरे संकट में है। खुले बाजार में विदेशी कंपनियों की घुसपैठ, विदेशी कोयला का​ ​ आयात और सरकारी नीतियों की वजह से यह संटकट उत्पन्न हुआ है। कोल इंडिया बाजार में अव्वल नंबर की कंपनी तो बन गयी है,​ ​ पर कोल ब्लाकों की खुली बोली से को.ला खनन में उसका एकाधिकार अब समाप्त ही होने वाला है। नए खनन अधिनियम से कोयला उद्योग को ज्यादा फायदा होने के आसार नहीं दीखते।

शेयर के माध्यम से विदेशी कंपनियां कोयला उद्योग को अपनी गिरफ्त में ले रही हैं। कोयला उद्योग की पहचान खत्म हो रही है। सरकार ने निवेशकों को सलाह दी कि वे अपने निवेश को बढ़ाने के लिए कोल इंडिया लि. (सीआईएल) के साथ बने रहें। साथ ही सरकार कोल इंडिया की सोने से तुलना करते हुए कहा कि संपत्ति बनाने के लिए यह दीर्घावधि का बेहतरीन निवेश होगा। हाल ही में बाजार में

कदम रखने वाली सरकारी कंपनी कोल इंडिया ने सबसे अधिक बाजार हैसियत वाली वाली कंपनी का रिलायंस इंडस्ट्रीज का तगमा झटक लिया।

कोयलाउद्योग के प्रतिनिधियों के अलावा ऊर्जा मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को कोयला आयात के शुल्क ढांचे पर पुनर्विचार करने को कहा है। ऊर्जा मंत्रालय का यह दृष्टिकोण है कि जहां कोयले की वैश्विक कीमतों में 35-40 फीसदी बढ़ोतरी हुई है वहीं अतिरिक्त आयात शुल्क लागत को और बढ़ा रहा है।

बिजली उत्पादक कंपनियों और अन्य ढांचागत परियोजनाओं में कोयले की जरूरत को पूरा करने के लिए सरकार कोयले के आयात को आसान बना सकती है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि हालांकि सीमा शुल्क को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जाएगा। वित्त मंत्रालय बिजली क्षेत्र की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए आयात किए जाने वाले कोयले पर लगने वाली काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) में आंशिक कटौती करने पर विचार कर रहा है।

उन्होंने कहा कि सीवीडी में पांच फीसदी छूट के बारे में विचार किया जा रहा है। ताप विद्युत या कोयला आधारित बिजली संयंत्रों और संबंधित परियोजनाओं के लिए कोयला आयात करने की स्थिति में ही यह छूट दी जाएगी। वर्तमान में नॉन-कोकिंग कोल पर एक फीसदी उत्पाद शुल्क के अतिरिक्त पांच फीसदी सीमा शुल्क लगता है। पिछले बजट में 130 वस्तुओं पर एक फीसदी उत्पाद शुल्क की घोषणा की गई। इसकी घोषणा तब हुई जब सरकार ने 130 उत्पादों पर सेनवेट क्रेडिट के बिना एक फीसदी उत्पाद शुल्क का प्रस्ताव रखा था।

अगर सेनवेट क्रेडिट लिया जाता है तो इन उत्पादों पर पांच फीसदी सीमा शुल्क लगता है। यह लिग्नाइट, पीट, कोक, तार आदि सभी श्रेणियों के कोयले पर लागू होता है।

उन्होंने कहा कि घरेलू विनिर्माताओं को समान अवसर मुहैया कराने के लिए सीवीडी लागू किया गया और इसे उत्पाद शुल्क की दर के समान रखा गया। सेनवेट क्रेडिट का मतलब है कि एक वस्तु निर्माता को सरकार को चुकाए जाने वाले कुल कर में से कच्चे माल, स्थायी संपत्तियों, पैकेजिंग सामग्री आदि की खरीद पर चुकाए गए इनपुट टैक्स की छूट देना। सीवीडी को एंटी-सब्सिडी शुल्क कहा जाता है।

प्रमुख कोयला निर्यातक देश जैसे इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया ने हाल के महीनों में कोयले की कीमत निर्धारण के अपने तरीके में बदलाव किया है, जिससे कोयले की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) के तहत ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी को ग्राहकों पर नहीं डाला जा सकता, जिसके कारण बहुत सी कोयला आधारित परियोजनाएं व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य बन गई हैं। वार्षिक योजना दस्तावेज 2011-12 के मुताबिक देश में कोयले की अनुमानित मांग 69.603 करोड़ टन है और घेरलू कोयले का उत्पादन 55.4  करोड़ टन रहने की संभावना है।

ईस्टर्न फाइनेंशियर्स के रिसर्च हेड राजेश अग्रवाल के मुताबिक छोटी अवधि में कोल इंडिया में खबरों के चलते उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। लेकिन मध्यम से लंबी अवधि के लिहाज से शेयर में जरूर खरीदारी की जा सकती है।


राजेश अग्रवाल का कहना है कि कंपनी के पास भारत और विदेशों में भी काफी अच्छी कोल संपत्ति है और साथ ही कंपनी की बैलसशीट भी काफी मजबूत है। कोयले की बढ़ती मांग को देखते हुए आने वाले दिनों में कंपनी के कारोबार में अच्छी बढ़त देखी जा सकती है।


सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया जल्दी ही कोयले की कीमत में संतुलन स्थापित करने के बारे में निर्णय करेगी क्योंकि नई कीमत प्रणाली के कारण जीवाश्म ईंधन के दाम में जरूरत से अधिक वृद्धि हुई है।

पिछले सप्ताह कोयला मंत्रलय की समीक्षा बैठक में इस आशय का निर्णय किया गया। कोयला मंत्रलय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, समीक्षा बैठक में कीमत में संतुलन स्थापित करने का निर्णय किया गया। कोल इंडिया जल्दी ही कीमत में संतुलन स्थापित करने के बारे में निर्णय करेगी।

पिछले सप्ताह, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था कि कोल इंडिया नई कीमत प्रणाली की 20 जनवरी को समीक्षा करेगी और अगले सात दिन में कंपनी इस बारे में कोई समाधान निकालेगी ताकि दरों में वृद्धि जरूरत से अधिक नहीं हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि ग्रॉस कैलोरिफिक वैल्यू आधारित कोयले की कीमत निरस्त नहीं होगी लेकिन कीमत में उतार-चढ़ाव की समीक्षा की जाएगी।

31 दिसंबर 2011 तक सीआईएल यूजफुल हीट वैल्यू ग्रेडिंग प्रणाली के आधार पर कीमत प्रणाली का अनुकरण कर रही थी। इसके तहत राख तथा जलवाष्प की मात्र को मानक फामरूले से अलग कर दिया जाता है। बहरहाल, एक जनवरी से ग्रॉस कैलोरिफिक वैल्यू (जीसीवी) आधारित नई कीमत व्यवस्था अपनाई गई है। इस प्रणाली के तहत कोयले की कीमत को वास्तविक कैलोरिफिक मूल्य या कोयले की मात्र से जोड़ा जाता है।


कोल इंडिया (सीआईएल) के कार्यवाहक चेयरमैन एन सी झा के 31 जनवरी को सेवानिवृत्त होने से पहले कंपनी कोयले की नई कीमतों की घोषणा करेगी।कोयला कीमत तय करने का कोल इंडिया का नया फार्मूला आने वाले दिनों में बिजली दरों के साथ ही देश में स्टील व सीमेंट की कीमतें भी बढ़ा सकता है। इसके महंगाई पर पड़ने वाले असर को देखते हुए ही केंद्र सरकार कंपनी पर यह दबाव बनाने की कोशिश कर रही है कि कोयले की कीमत में वृद्धि चरणबद्ध तरीके से हो। वैसे कोकिंग कोल की कीमत में कोई बदलाव नहीं होगा। यह फार्मूला एक जनवरी, 2012 से लागू किया गया है।

कंपनी ने यह घोषणा ऐसे समय में की है जबकि कोयला मंत्रालय ने कंपनी से औपचारिक तौर पर कहा है कि वह अपनी एक जनवरी के मूल्य पर नए सिरे से विचार करे।

झा ने अनौपचारिक परिचर्चा में कहा, ' हम मार्च में कीमतों की नए सिरे से समीक्षा करने की योजना बना रहे थे। लेकिन कोयला मंत्रालय ने 25 जनवरी को पत्र भेजकर कीमतों की अभी समीक्षा को कहा है हालांकि सकल कैलोरिफिक मूल्य (जीसीवी) व्यवस्था को वापस नहीं लिया जाएगा। '

झा ने कहा कि जीसीवी मूल्य में संशोधन कोयला मंत्रालय के अधिकारियों के साथ विचार विमर्श में इस माह के अंत में किया जाएगा। उन्होंने कहा, ' उपयोगी ताप मूल्य ( यूएचवी ) से जीसीवी की ओर जाने का काम मेरे कार्यकाल में हुआ है। ऐसे में सेवानिवृत्ति से पहले मैं कीमत के मुद्दे को सुलझाऊंगा। '

कोल श्रमिकों के बच्चों का जीवन व शैक्षणिक स्तर का ग्राफ अब भी नीचे है। सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेश युद्ध स्तर पर होगा। यहां तक कि रेल जैसी पुरानी संस्था निजी हाथों में सौंपने की तैयारी की जा रही है। सभी तेल कंपनियों को भाव निश्चित करने की छूट होगी। कारखानों में काम के घंटे बढ़ाकर 12 किए जाएंगे, किंतु मजदूरों को वेतन की गारंटी कैसे मिलेगी? बेरोजगारी की रफ्तार बढ़ने का समाधान किस तरह होगा?

खान मंत्रालय के अनुसार अनुबंधित खनन के लिए कोयला और लिग्‍नाइट ब्‍लॉक के आवंटन में ज्‍यादा पारदर्शिता लाने के लिए प्रतिस्‍पर्द्धी बोली की प्रक्रिया अपनाई गई। इसके लिए खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, को संशोधित किया गया और सितंबर 2010 में यह प्रभावी हो गया।

पर्यावरण मंत्रालय ने नौ कोल फील्ड्स के आधे से ज्यादा कोयले वाले वन क्षेत्र को नो-गो क्षेत्र घोषित किया है। इसके चलते कोयला मंत्रालय ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऐसे क्षेत्रीकरण के चलते देश को आने वाले सालों के दौरान 50 करोड़ टन कोयले की कमी का सामना करना पड़ सकता है। वैकल्पिक तौर पर खदान सिर्फ उन कंपनियों को दी जाए जिन्हें नो-गो क्षेत्र में खदानों का आवंटन जून 2010 से पहले किया गया है। नए आवंटित कोल ब्लॉक बड़े हैं तो दो या उससे ज्यादा कंपनियों को संयुक्त रूप से भी दिए जा सकते हैं।

पर्यावरण मंत्रालय के नो-गो क्षेत्र में जिन कंपनियों की खदानें हैं और उन्होंने इनमें निवेश भी किया है तो उन कंपनियों को वैकल्पिक खदानें दी जाएंगी। योजना आयोग की एक हालिया बैठक में इस संदर्भ में सिफारिश की गई है। जिन कंपनियों की खदानें नो-गो ब्लॉक में हैं और उन्होंने ज्यादा निवेश नहीं किया है तो ऐसी कंपनियों को आने वाले कोल और लिग्राइट ब्लॉकों की बोली प्रक्रिया में आवंटन के लिए तरजीह मिल सकती है। लेकिन सभी कंपनियों को ब्लॉक मिल सकेंगे और इसकी कीमत क्या होगी इस बात को लेकर स्थिति साफ नही है। एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में यह बात सामने आई कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मंजूर ब्लॉकों में से आधे ब्लॉक नो गो में फंसी कंपनियों को दे दिये जाएं। लेकिन इनकी कीमत क्या होगी, इस पर संबंधित विभागों के बीच मतभेद हैं। यह बात भी सामने आई कि केवल उन कंपनियों को वैकल्पिक ब्लॉक दिये जाएं जो अपने प्रोजेक्ट में भारी निवेश कर चुकी हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें नये ब्लॉकों के लिए लगने वाली बोली के आधार पर कीमत चुकानी पड़ सकती है।

बड़ी संख्या में लोग आज भी गरीबी रेखा के नीचे हैं। हमारे आर्थिक रणनीतिकार 15 वर्षो तक नई आर्थिक नीति के नशे में थे। उनका आकलन था कि समग्र आर्थिक विकास होगा तो लोगों को स्वत: रोजगार मिलेगा, बेरोजगारी और गरीबी स्वत: नष्ट हो जाएगी।वंचित वर्ग की गणना पर भारत में अलग-अलग विचार हैं। क्या केवल सस्ता खाना खिलाकर हम गरीबी दूर कर लेंगे?नीति ऐसी होनी चाहिए कि गरीब उत्पादक कार्यो में शरीक हों और अपनी श्रमशक्ति ऐसे काम में लगाएं जो उनके लिए भी अतिरिक्त साधन जोड़ सके। इसलिए गरीबी उन्मूलन की बुनियाद होगी अधिकतम उत्पादक रोजगार के अवसर पैदा करना, जिसकी ओर सरकार का ध्यान नहीं है।

देश के जिन जिलों में खनिज संपदा भरपूर मात्रा में है, उनका विकास अब ज्यादा तेजी से हो सकेगा। इन जिलों के विकास के लिए देश की तमाम खनन कंपनियां मिलकर सालाना 10 हजार करोड़ रुपये देंगी। यह राशि जिला खनन व खनिज फाउंडेशन में हर वर्ष जमा कराई जाएगी। इस फाउंडेशन के गठन का प्रस्ताव नए खनिज और खनन विकास व नियमन अधिनियम में किया गया है।्रस्तावित विधेयक में सरकार ने उद्योग जगत के कड़े विरोध के बावजूद खनन कार्यो में संलग्न सभी कंपनियों से जिला विकास के लिए अतिरिक्त आर्थिक कोष देने को कहा है। सभी कोयला निकालने वाली कंपनियों को अपने शुद्ध मुनाफे (कर बाद लाभ) का 26 फीसदी जिला फाउंडेशन में देना होगा। लौह अयस्क, बॉक्साइट, कोबाल्ट, मैंग्नीज जैसे खनिज निकालने वाली कंपनियां राज्य सरकारों को जितनी रॉयल्टी देती हैं, उसके बराबर अतिरिक्त राशि का योगदान फाउंडेशन में करेंगी!

सूत्रों का कहना है कि हर साल खनिज कंपनियों द्वारा फाउंडेशन को दिए जाने वाले लगभग 10 हजार करोड़ रुपये के योगदान से देश के 60 जिलों को खास तौर पर फायदा मिलेगा। इन जिलों को हर वर्ष फाउंडेशन से 180-200 करोड़ रुपये विकास के लिए मिलेंगे। फाउंडेशन की अध्यक्षता जिलाधिकारी (डीएम) करेंगे, जबकि जिला परिषद के अध्यक्ष की भूमिका भी अहम होगी। चूंकि फाउंडेशन के तहत जमा राशि काफी ज्यादा होगी, इसलिए इनके इस्तेमाल की निगरानी के लिए दो स्तरीय व्यवस्था की जा रही है। एक राष्ट्रीय खान व खनिज प्राधिकरण के साथ ही राष्ट्रीय खान व खनिज ट्रिब्यूनल का गठन भी किया जाएगा। प्राधिकरण फाउंडेशन में जमा राशि, रॉयल्टी की दर वगैरह के बारे में फैसला करेगा।

किन जिलों को होगा फायदा
झारखंड के धनबाद, हजारीबाग, पश्चिम सिंहभूम, चतरा, गोड्डा, बोकारो, रांची व पलामू। उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला। पश्चिम बंगाल का वर्धमान। राजस्थान के भीलवाड़ा, सिरोही व पाली जिले। इसके अलावा आंध्र प्रदेश के छह, छत्तीसगढ़ के पांच, गोवा के दो और कनार्टक व महाराष्ट्र के भी कई जिलों को इस फाउंडेशन के विकास कार्यो का फायदा मिलेगा। इन 60 जिलों में 25 नक्सल प्रभावित हैं।

कोयला प्रक्षालन

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के दिशानिर्देंशों के अनुसार 34 प्रतिशत से अधिक राख वाले कोयले का उपयोग उन थर्मल पावर स्टेशनों में मना किया गया है जो लदान केन्द्रों से दूर तथा अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में हैं। ऐसे में प्रक्षालित कोयले का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण हो गया है। इससे ऐसे पावर स्टेशनों के संचालन से संबंधित खर्च में भी कमी आती है। धुले कोयले की आपूर्ति 10वीं पंचवर्षीय योजना के आरंभ में 170 लाख टन थी जो इस योजना के अंत में बढ़कर 550 लाख टन हो गई। 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक इसके 2500 लाख टन होने की संभावना है।

थर्मल पावर स्टेशनों के लिए कोयला धुलाई केंद्रों की मौजूदा क्षमता 1080 लाख टन है जिसे इस अवधि में बढ़ाकर 2500 लाख टन करने की कोशिश की जा रही है। इसमें से अधिकतर निजी क्षेत्र से संबंधित हैं। इसके अलावा कोल इंडिया लिमिटेड कंपनी ने भी अपनी खदानों से धुले कोयले की आपूर्ति करने का फैसला किया है। इसके लिए वह 20 कोयला धुलाई केंद्रों का निर्माण करेगी जिनकी क्षमता 1110 लाख टन होगी। 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक इन केंद्रों के शुरू होने की संभावना है।

सीबीएम तथा सीएमएम

जो मिथेन गैस कोयले की अनर्छुई परतों से निकाली जाती है उसे कोल बेड मीथेन (सीबीएम) कहते हैं और जो चालू खदानों से निकाली जाती है उसे कोल माइन मीथेन (सीएमएम) कहते हैं। कोल बेड मीथेन#कोल माइन मीथेन के विकास को भारत सरकार ने 1997 में एक नीति के ज़रिए बढ़ावा दिया था। इस नीति के अनुसार कोयला मंत्रालय तथा पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय दोनों मिलकर कार्य कर रहे हैं। सरकार ने वैश्विक बोली के तीन दौरों के ज़रिए कोल बेड मीथेन के लिए 26 ब्लॉकों की बोली लगाई थी। इनका कुल क्षेत्र 13,600 वर्ग किलोमीटर है और इसमें 1374 अरब घनमीटर गैस भंडार होने की संभावना है। वर्ष 2007 में रानीगंज कोयला क्षेत्र के एक ब्लॉक में वाणिज्यिक उत्पादन आरंभ कर दिया गया था और दो केंद्रों में भी उत्पादन जल्द ही आरंभ हो जाएगा। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (डीजीएच) कोल बेड मिथेन संबंधी गतिविधियों के लिए विनियामक की भूमिका निभाता है। डीजीएच ने सीबीएम-4 के तहत 10 नये ब्लॉकों की पेशकश की है।

भारत कोकिंग कोल लिमिटेड में भूमिगत बोरहोल के ज़रिए यूएनडीपी#ग्लोबल एन्वायरमेंटल फेसिलिटी के साथ मिलकर भारत कोकिंग कोल लिमिटेड में भूमिगत बोरहालों के माध्यम सीएमएम की एक प्रदर्शनात्मक परियोजना को लागू किया गया है। इस परियोजना में कोल बेड मीथेन को एक ऊर्ध्वाधर बोर के ज़रिए प्राप्त किया गया है जहां 500 कि.वा.. बिजली पैदा होती है और उसे बीसीसीएल को आपूर्ति की जाती है।

हाल ही में संयुक्त राज्य पर्यावरण संरक्षण अभिकरण के सहयोग से सीएमपीडीआईएल, रांची में सीबीएमसीएमएम निपटारा केन्द्र स्थापित किया गया है जो भारत में कोल बेड मीथेनकोल माइन मीथेन के विकास के लिए आवश्यक जानकारियां उपलब्ध कराएगा ।


--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

No comments:

Post a Comment