Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, June 25, 2012

मलबा बन के रह गई है भीमताल की झील

http://journalistcommunity.com/index.php?option=com_content&view=article&id=1634:2012-06-23-16-23-48&catid=34:articles&Itemid=54

नैनीताल से प्रयाग पाण्डे 

तालों के जिले नैनीताल की एक और झील भीमताल के वजूद पर खतरे के बादल मंडराने लगे है। नैसर्गिक सौन्दर्य से मालामाल भीमताल झील में पानी का स्तर कम होने से झील का करीब एक चौथाइ हिस्सा इन दिनों मिट्टी के सूखे मैदान में तब्दील हो गया है। पानी से लबालब भरी रहने वाली इस झील के मल्लीताल वाले छोर में करीब चार सौ मीटर से ज्यादा लम्बा, करीब दो सौ मीटर से ज्यादा चौडा और करीब डेढ़ से दो मीटर ऊँचा मिट्टी-मलवे का बदसूरत टापू उभर आया है।

भीमताल कुमाऊँ मण्डल में मौजूद प्राकृतिक झीलों में सबसे बडी़ और खूबसूरत झील है। झील के बीच में मौजूद प्राकृतिक टापू भीमताल के सौन्दर्य को और बढ़ा देता है। इस त्रिभुजाकार झील की लम्बाइ 1701 मीटर चौडा़र्इ 451 मीटर और गहराइ 2 से 18 मीटर है। भीमताल झील 63.25 हेक्टेयर के विशाल क्षेत्रफल में फैली है। झील में 4.61 मिलियन घन मीटर पानी संग्रहित होने की क्षमता है। झील का कैचमेंट 1712 हेक्टेयर के इलाके में फैला है।

भीमताल के तालाब का पौराणिक महत्व है। इसके नाम और भीमकाय आकार के मददेनजर इसे पाण्डु पुत्र भीम से जोड़ते है। लोक मान्यता है कि महाबली भीम की गदा प्रहार से इस विशाल झील की उत्पत्ति हुई। कुछ लोग इसे कुमाऊँ के चंदवंशी राजाओं में से एक राजा भीष्म चंद से जोड़कर देखते है। माना जाता है कि कुमाऊँ के चंदवंशी शासकों में से एक राजा भीष्म चंद के नाम से इसका नाम भीमताल पड़ा। यहा झील के किनारे चंद वंशी राजा बाजबहादुर चंद के शासनकाल के दौरान सत्रहवीं शताब्दी में बना भीमेश्वर महादेव का पौराणिक मंनिदर भी मौजूद है। भीमताल के आस-पास द्वापर युग के कर्इ प्रतीकात्मक अवशेष मौजूद है। भीमताल के करीब सिथत सातताल से लगी पहाडी़ को महाभारत काल की राक्षसी हिडम्बा का निवास माना जाता है। इस पहाड़ का नाम हिडम्बा पर्वत है। भीमताल के ठीक ऊपर चोटी को कुषाणवंशी राजाओं के समकालीन माने जाने वाले कश्मीर के नागवंशी राजा क्रकोटक पहाड़ के नाम से जाना जाता है।

एककिन्सन के गजिटेयर में कुमाऊँ के इस इलाके में 60 झीलें होने का जिक्र किया गया है। शायद इसी वजह से बि्रटि्रश कालीन सरकारी दस्तावेजों में यह इलाका पटटी छ:खाता के नाम से दर्ज चला आ रहा है। छ:खाता शब्द षष्ठी खाता का बिगडा़ रूप है। छ:खाता या षष्ठी खाता यानी 60 तालाब।

अग्रेंजी शासन काल के दौरान भीमताल में व्यवसिथत नगरीकरण के कुछ बुनियादी काम हुए थे। ब्रिटिश हुकूमत ने 1880 के दशक में भीमताल के तालाब के एक छोर में डैम बनवाया था। यह डैम ब्रिटिश शासनकाल की इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूने के रूप में करीब 130 सालों बाद भी आज ज्यों का त्यों बना हुआ है। यह डैम गर्मियों के दिनों में हल्द्वानी के भावरी क्षेत्र को पानी मुहैया कराने की मंशा से बना था। हर साल 15 मर्इ से 30 जून तक इस बाध से रोजाना 50 क्यूसेक पानी गौला नदी में छोड़ा जाता हैं। यह व्यवस्था पिछले करीब एक सौ सालों से बदस्तूर जारी है। सिंचार्इ विभाग हर साल बरसात में तालाब में 44 फीट ऊँचाइ तक पानी भरता है। इससे अधिक पानी को डैम के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। गर्मियों के दिनों में पानी का स्तर 22 फीट आ जाने तक पानी छोड़ते रहने की व्यवस्था है। सिंचाइ विभाग के इंजीनियरों के मुताबिक इस साल जाडो़ में बारिश नहीं होने के चलते हल्द्वानी के इलाके में पानी की कमी को दूर करने के लिए जून के तीसरे हफ्ते तक भी बाध से हर रोज 50 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। बावजूद इसके डैम के पास 20 जून तक पानी का स्तर 26 फीट के आसपास है। दूसरी तरफ मल्लीताल की ओर से लीलावती इंटर कालेज के सामने तक तालाब का करीब 400 मीटर से ज्यादा हिस्से से पानी गायब है। तालाब के करीब एक चौथाइ हिस्से में मिटटी मलवे का ढेर जमा हो गया है। सिंचाइ विभाग के अफसरों की राय में यह सब भीमताल के कैचमेंट इलाकें में उग आये कंक्रीट के विशाल जंगल का नतीजा है।

दरअसल पहाड़ में फ्लैटस और काटेज संस्कृति का सूत्रपात करीब दो दशक पहले भीमताल की इसी हसीन वादी से हुआ। पहाड़ की शुद्ध आबोहवा में एक अदद फ्लैटस या काटेज खरीदने के फैशन ने जोर पकडा़। जमीन व्यावसायियों और बिल्डरों की बन आइ। जमीन के भाव आसमान पहुच गये। कुछ ही वक्त में भीमताल का प्रा—तिक कैंचमेंट के इस हरे-भरे इलाके में बेतरतीब कंक्रीट का जंगल उग गया। भीमताल के तालाब के सिरहाने से लगे तमाम गावों में बेहिसाब फ्लैटस, काटेज और कोठिया बन गइ। यह सिलसिला फिलहाल बरोकटोक जारी है। इस सब की कीमत चुकानी पड़ रही है - भीमताल के तालाब को।

आकर्षक रंग-रोगन वाले कीमती फ्लैटस और काटेजों ने न केवल भीमताल के तालाब के कैंचमेंट क्षेत्र को प्रभावित किया है, बलिक इनके निमार्ण में निकला मिटटी-मलुवा भी भगत्यूडा़ और खूटानी नालों के जरिये भीमताल के तालाब तक पहुच गया है। उत्तराखंड सिंचाइ विभाग के कुमाऊँ क्षेत्र के मुख्य अभियन्ता वी.सी.सी. खेतवाल के मुताबिक भीमताल के मल्लीताल वाले इलाके में चार सौ मीटर से ज्यादा लंबी, दो सौ मीटर से ज्यादा चौडी़ और डेढ़ से दो मीटर ऊची करीब बारह हजार घन मीटर मिटटी मलवे की परत जमा हो गइ है। इसने तालाब का करीब एक चौथार्इ हिस्सा पाट दिया है। इस मिटटी ने न केवल तालाब की पानी जमा करने की बारह हजार घन मीटर क्षमता कम कर दी है, बल्कि तालाब का भौगोलिक क्षेत्रफल भी कम हो गया है।

बकौल चीफ इंजीनियर खेतवाल भीमताल के तालाब को मौजूद दुर्दशा से उबारने के लिए सिंचार्इ विभाग ने भारत सरकार के जल संसाधन विकास मंत्रालय के पास 784 लाख रूपये की योजना का प्रस्ताव भेजा है। योजना में तालाब से मिटटी मलबा निकालने के अलावा संरक्षण के और भी कइ काम प्रस्तावित है। फिलहाल सिंचाइ विभाग को अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना के मंजूर होने का इंतजार है और भीमताल के तालाब को बरसात का।

No comments:

Post a Comment