पलाश विश्वास
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि मूलनिवासियों को ब्राह्मण बनिया राज के मुताबिक सूचना और ज्ञान, शिक्षण ,संपत्ति और शस्त्र के मूल अधिकारों से वंचित करके यह उत्तर आधुनिक मनुस्मृति व्यवस्था लागू करने के लिए ईजाद अंतरष्ट्रीय आधुनिकतम तकनीक हैऔर जिसके तहत भारतीय उपमहाद्वीप के ब्राह्मण शासकों ने ग्लोबल हिंदुत्व का प्रसार करते हुए भारत को खुला बाजार में तब्दील कर दिया है और मूलनिवासियों की गुलामी से आजादी के सारे रास्ते बंद कर दिये हैं।रेल मंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को साफ तौर पर कहा कि रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाएगा, अलबत्ता रेलवे के ढांचागत विकास के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढाने के वास्ते विशेष कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि निजी भागीदारी का काम तत्परता से करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे खेती और किसानों जो सारे के सारे मूलनिवासी हैं, तहाह कर दिया गया है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने वित्तीय वर्ष 2010-11के लिए आम बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था की
रीढ़ खेती और किसानों का खास खयाल रखा है।अपने बजट भाषण में प्रणव ने ग्रामीण इलाकों में फूड सिक्युरिटी मुहैया कराने पर जोर दिया है। प्रणब मुखर्जी ने फूड प्रोसेसिंग के लिए पांच मेगा फूड पार्क बनाने की बात कही। हरित क्रांति के विस्तार के लिए 400 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा गया है साथ ही 60,000 दलहन-तेल बीज ग्राम बनाने की भी बात की है। किसानों के लिए कर्ज़ चुकाने की अवधि को उन्होंने छह महीने बढ़ाकर जून 2010 तक कर दिया है, वहीं समय पर कर्ज़ चुकाने वालों को ब्याज में दो प्रतिशत की छूट मिलेगी।कृषि क्षेत्र में लोन के लिए 3 लाख 75 हजार रुपये दिए जाएंगे। साथ ही अब समय पर कर्ज चुकाने वाले किसानों को एक के बजाय दो प्रतिशत रियायत मिलेगी। हर रोज़ 20 किलोमीटर नैशनल हाईवे बनाने का लक्ष्य है। रेलवे की सहायता के लिए 16, 752 करोड़ रुपये का कर्ज दिया जाएगा। सोशल सेक्टर में सुधार प्राथमिकता के आधार पर होगा। नीति निर्धारण, पुनर्रचना प्रक्रिया और यहाँ तक कि कानूनों के प्रारूप भी अत्यधिक महँगे अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारों द्वारा बनाए जाते हैं। हालांकि सुधार को जलक्षेत्र की वर्तमान समस्याओं के संभावित हल की तरह प्रस्तुत किया जाता है लेकिन, इसमें ज्यादातर वित्तीय पक्ष की ही चिंता की जाती है। ये सुधार शायद ही समस्याओं के मूल कारणों के अध्ययन पर आधारित होते हैं। इन अध्ययनों की अनुसंशाएँ पहले से ही तय होती है। इस प्रकार, एक ही तरह के सुधार न केवल देश के कई हिस्सों में सुझाए जाते है बल्कि इन्हीं तरीकों को दुनिया के कई देशों में लागू किया जाता है। वर्तमान में देश के कई राज्यों में विश्व बैंक/एडीबी आदि की शर्तों के तहत सुधार प्रक्रिया विभिन्न चरणों में जारी है।मुखर्जी ने कहा खराब मॉनसून के चलते महंगाई बढ़ी है। सरकार की कोशिश होगी कि किसानों को सीधे सब्सिडी दी जाए। उन्होंने बताया कि सरकार खाद पर किसानों को राहत देने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई)के सिस्टम को भी सरल बनाए जाने की भी बात कही। उन्होंने कहा कि फूड प्रोसेसिंग के लिए पांच मेगा फूड पार्क बनेंगे। इसके अलावा हर रोज़ 20 किलोमीटर नैशनल हाईवे बनाने का लक्ष्य है। रेलवे की सहायता के लिए 16, 752 करोड़ रुपये का कर्ज देगी सरकार। वित्तमंत्री ने ऐलान किया कि 16, 500 करोड़ रुपये का फंड पब्लिक सेक्टर बैंकों को दिया जाएगा। वहीं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त फंड देने की बात वित्त मंत्री ने कही। मुखर्जी ने निर्यातकों को मंदी की मार से बचाने के लिए और एक साल तक 2 फीसदी की ब्याज छूट देने की बात कही। सरकार ने शुक्रवार को भरोसा जताया कि उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) और प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) के रूप में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में सुधार प्रक्रिया एक अप्रैल 2011 से लागू हो जाएगी। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा कि मुझे भरोसा है कि सरकार एक अप्रैल 2011 से डीटीसी लागू करने की स्थिति में होगी। मेरी पूरी कोशिश होगी कि डीटीसी के साथ जीएसटी को भी एक अपैल 2011 से लागू किया जाए। इसका मतलब है कि जीएसटी के लागू होने में तय समय सीमा एक अप्रैल 2010 से एक साल की देर होगी। डीटीसी जहां आयकर अधिनियम की जगह लेगा वहीं जीएसटी केंद्रीय और राज्य स्तर पर सेवा कर, उत्पाद शुल्क, वैट, चुंगी, अधिभार, और स्थानीय करों की जगह लेगा।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे भारत के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तक वाशिंगटन में तट होने लगे हैं और वे विदेशी कंपनियों, विश्व बैंक, आईएमएफ के चाकर हैं। पेंटागन के इशारे पर विदेश नीति तय करते हैं। विदेशी निवेशकों के हित में कानून बनाते हैं।विश्व बैंक अन्य द्विपक्षीय कर्जदाताओं के साथ मिलकर क्षेत्र निजीकरण एवं व्यावसायीकरण में पैसे देने के अलावा एक और महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। यह भूमिका ``शोध´´ और ``अध्ययन´´ के माध्यम निजीकरण को सही सिद्ध करने के ``ज्ञान´´ और अन्य सहयोग के रूप में है। इस नीति निर्धारण को ``हल´´ के रूप में प्रदर्शित करवाने के लिए इसे शोध और अध्ययन के निष्कर्षों की तरह प्रदर्शित किया जाता है। इसके लिए विश्व बैंक स्वयं अथवा सलाहकारों के माध्यम से बड़ी संख्या में शोध और अध्ययन करवाता है। उदाहरणार्थ, विश्व बैंक कुछ अंतर्राष्ट्रीय कर्जदाता एजेंसियों के साथ मिलकर जल एवं स्वच्छता कार्यक्रम (वाटर एण्ड सेनिटेशन प्रोग्राम) संचालित करता है। भारत में भी यह कार्यक्रम अध्ययनों की एक श्रंखला के साथ सामने आया है जिनमें जल क्षेत्र की समस्याओं जैसे शहरी और ग्रामीण जलप्रदाय, सिंचाई आदि का हल सुझाया गया है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि निजीकरण के दुष्परिणामों के ढेर सारे उदाहरणों के बावजूद विश्व बैंक के ऐसे अध्ययन किसी भी क्षेत्र के लिए हमेशा एक जैसा निजीकरण और उदारीकरण का घिसापिटा नुस्खा ही सुझाते हैं। इसे हम मोटे रूप में निजीकरण, निगमीकरण और भूमण्डलीकरण के पुलिंदे का ``बौद्धिक एवं सैद्धांतिक आधार´´ कह सकते हैं। विश्व बैंक की राष्ट्र सहायता रणनीति (CAS) 2005-2008 से स्पष्ट है कि निजीकरण और भूमण्डलीकरण को आगे धकेलने में विश्व बैंक अपनी ज्ञानदाता की भूमिका को कितना महत्व देता है। यह दस्तावेज भारत को इन 3 वर्षों में दिए जाने वाले कर्जों के संबंध में विश्व बैंक की रणनीति और प्राथमिकता निर्धारित करता रहा। विश्व बैंक के कार्यों के संबंध में तीन ``रणनैतिक सिद्धांतों´´ में से एक है-``बैंक का लक्ष्य व्यावहारिक, राजनैतिक ज्ञानदाता और उत्पादक की भूमिका का पर्याप्त विस्तार करना है।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे नागरिकता कानून बदलकर मूलनिवासी नागरिकों को दशनिकाला का इंतजाम पूरा हो गया है। युनिक आइडेंटिटी नंबर से सारे मूलनिवासी आदिवासी, शहरी गरीब और शरणार्थी बेनागरिक हो जाएंगे। 'युनिक आयडेंटीफिकेशन नंबर' (यूआयडी) या महत्त्वाकांक्षी प्रकल्प राबविण्यात केला जाईल. ... कि क्या यूनिक आइडेंटिटी नंबर का इस्तेमाल मोबाइल नंबर के रूप में किया जा सकता है।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे भारत के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तक वाशिंगटन में तट होने लगे हैं और वे विदेशी कंपनियों, विश्व बैंक, आईएमएफ के चाकर हैं। पेंटागन के इशारे पर विदेश नीति तय करते हैं। विदेशी निवेशकों के हित में कानून बनाते हैं।विश्व बैंक अन्य द्विपक्षीय कर्जदाताओं के साथ मिलकर क्षेत्र निजीकरण एवं व्यावसायीकरण में पैसे देने के अलावा एक और महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। यह भूमिका ``शोध´´ और ``अध्ययन´´ के माध्यम निजीकरण को सही सिद्ध करने के ``ज्ञान´´ और अन्य सहयोग के रूप में है। इस नीति निर्धारण को ``हल´´ के रूप में प्रदर्शित करवाने के लिए इसे शोध और अध्ययन के निष्कर्षों की तरह प्रदर्शित किया जाता है। इसके लिए विश्व बैंक स्वयं अथवा सलाहकारों के माध्यम से बड़ी संख्या में शोध और अध्ययन करवाता है। उदाहरणार्थ, विश्व बैंक कुछ अंतर्राष्ट्रीय कर्जदाता एजेंसियों के साथ मिलकर जल एवं स्वच्छता कार्यक्रम (वाटर एण्ड सेनिटेशन प्रोग्राम) संचालित करता है। भारत में भी यह कार्यक्रम अध्ययनों की एक श्रंखला के साथ सामने आया है जिनमें जल क्षेत्र की समस्याओं जैसे शहरी और ग्रामीण जलप्रदाय, सिंचाई आदि का हल सुझाया गया है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि निजीकरण के दुष्परिणामों के ढेर सारे उदाहरणों के बावजूद विश्व बैंक के ऐसे अध्ययन किसी भी क्षेत्र के लिए हमेशा एक जैसा निजीकरण और उदारीकरण का घिसापिटा नुस्खा ही सुझाते हैं। इसे हम मोटे रूप में निजीकरण, निगमीकरण और भूमण्डलीकरण के पुलिंदे का ``बौद्धिक एवं सैद्धांतिक आधार´´ कह सकते हैं। विश्व बैंक की राष्ट्र सहायता रणनीति (CAS) 2005-2008 से स्पष्ट है कि निजीकरण और भूमण्डलीकरण को आगे धकेलने में विश्व बैंक अपनी ज्ञानदाता की भूमिका को कितना महत्व देता है। यह दस्तावेज भारत को इन 3 वर्षों में दिए जाने वाले कर्जों के संबंध में विश्व बैंक की रणनीति और प्राथमिकता निर्धारित करता रहा। विश्व बैंक के कार्यों के संबंध में तीन ``रणनैतिक सिद्धांतों´´ में से एक है-``बैंक का लक्ष्य व्यावहारिक, राजनैतिक ज्ञानदाता और उत्पादक की भूमिका का पर्याप्त विस्तार करना है।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे नागरिकता कानून बदलकर मूलनिवासी नागरिकों को दशनिकाला का इंतजाम पूरा हो गया है। युनिक आइडेंटिटी नंबर से सारे मूलनिवासी आदिवासी, शहरी गरीब और शरणार्थी बेनागरिक हो जाएंगे। 'युनिक आयडेंटीफिकेशन नंबर' (यूआयडी) या महत्त्वाकांक्षी प्रकल्प राबविण्यात केला जाईल. ... कि क्या यूनिक आइडेंटिटी नंबर का इस्तेमाल मोबाइल नंबर के रूप में किया जा सकता है।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे वित्त मंत्री
ने बजट में टैक्सपेयर्स को बड़ी राहत दी है। टैक्स स्लैब में बदलाव का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि इससे 60 % टैक्स पेयर्स को राहत मिलेगी। अब वित्त मंत्री के नए ऐलान के अनुसार , अब 1 लाख 60 हजार रुपये से ज्यादा और 5 लाख रुपये तक की आमदनी पर 10 परसेंट टैक्स लगेगा। 5 लाख रुपये से 8 लाख रुपये तक की आमदनी पर 20 परसेंट टैक्स लगेगा और 8 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी पर 30 परसेंट टैक्स लगेगा।
देखें : बजट में क्या-क्या हुआ
पढ़ें : होना सदा हलाल, बजट कोई भी लाये
अब तक इंडिविजुअल को 1 लाख 60 हजार रुपये तक की आमदनी पर कोई टैक्स नहीं लगता है। 1 लाख 60 हजार रुपये से ज्यादा और 3 लाख रुपये तक की आमदनी पर 10 परसेंट टैक्स लगता है। 3 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की आमदनी पर 20 परसेंट टैक्स लगता है और 5 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी पर 30 परसेंट टैक्स लगता है।
नए टैक्स स्लैब से 3 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी वालों को तो कोई फायदा नहीं होगा लेकिन इससे अधिक आमदनी वालों को काफी फायदा होगा। इतना ही नहीं , इनकम टैक्स की धारा 80 सी के तहत 1 लाख रुपये के निवेश पर अब तक टैक्स छूट है। अब वित्त मंत्री ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति इस निवेश के अलावा साल में 20 हजार रुपये का लॉन्ग टर्म इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड खरीदता है तो उसे इस खरीद पर टैक्स छूट मिलेगी।
बजट में इनकम टैक्स के नए स्लैब इस प्रकार रखे गए हैं
आम इंडिविजुअल टैक्सपेयर
1,60,000 रुपये तक : शून्य
1,60,001 रुपये से 5 लाख रुपये : 10 प्रतिशत
5,00,001 रुपये से 8,00,000 रुपये : 20 प्रतिशत
8,00,001 रुपये से अधिक : 30 प्रतिशत
महिला टैक्सपेयर
1,90,000 रुपये तक : शून्य
1,90,001 रुपये से 5 लाख रुपये : 10 प्रतिशत
8,00,001 रुपये से अधिक : 30 प्रतिशत
सीनियर सिटिजन
2,40,000 रुपये तक : शून्य
2,40,001 रुपये से 5 लाख रुपये : 10 प्रतिशत
8,00,001 रुपये से अधिक : 30 प्रतिशत
आम इंडिविजुअल टैक्सपेयर पर क्या होगा असर
देखें : बजट में क्या-क्या हुआ
पढ़ें : होना सदा हलाल, बजट कोई भी लाये
अब तक इंडिविजुअल को 1 लाख 60 हजार रुपये तक की आमदनी पर कोई टैक्स नहीं लगता है। 1 लाख 60 हजार रुपये से ज्यादा और 3 लाख रुपये तक की आमदनी पर 10 परसेंट टैक्स लगता है। 3 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की आमदनी पर 20 परसेंट टैक्स लगता है और 5 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी पर 30 परसेंट टैक्स लगता है।
नए टैक्स स्लैब से 3 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी वालों को तो कोई फायदा नहीं होगा लेकिन इससे अधिक आमदनी वालों को काफी फायदा होगा। इतना ही नहीं , इनकम टैक्स की धारा 80 सी के तहत 1 लाख रुपये के निवेश पर अब तक टैक्स छूट है। अब वित्त मंत्री ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति इस निवेश के अलावा साल में 20 हजार रुपये का लॉन्ग टर्म इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड खरीदता है तो उसे इस खरीद पर टैक्स छूट मिलेगी।
बजट में इनकम टैक्स के नए स्लैब इस प्रकार रखे गए हैं
आम इंडिविजुअल टैक्सपेयर
1,60,000 रुपये तक : शून्य
1,60,001 रुपये से 5 लाख रुपये : 10 प्रतिशत
5,00,001 रुपये से 8,00,000 रुपये : 20 प्रतिशत
8,00,001 रुपये से अधिक : 30 प्रतिशत
महिला टैक्सपेयर
1,90,000 रुपये तक : शून्य
1,90,001 रुपये से 5 लाख रुपये : 10 प्रतिशत
8,00,001 रुपये से अधिक : 30 प्रतिशत
सीनियर सिटिजन
2,40,000 रुपये तक : शून्य
2,40,001 रुपये से 5 लाख रुपये : 10 प्रतिशत
8,00,001 रुपये से अधिक : 30 प्रतिशत
आम इंडिविजुअल टैक्सपेयर पर क्या होगा असर
टैक्सेबल इनकम | टैक्स पहले | टैक्स अब | अंतर |
200000 | 4120 | 4120 | 0 |
500000 | 55620 | 35019 | 20601 |
1000000 | 210120 | 158619 | 51501 |
1200000 | 271919 | 220419 | 51500 |
1500000 | 364619 | 313119 | 51500 |
2000000 | 519119 | 467619 | 51500 |
2500000 | 673619 | 622119 | 51500 |
4000000 | 1137119 | 1085619 | 51500 |
जानिए : टैक्स रेट में बदलाव के बाद आपके टैक्स स्लैब में क्या बदलाव आएगा ?
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टैक्स रेट में बदलाव से आपको कितना फायदा ? | | |||
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इंडिविजुअल्स | | |||
| टैक्सेबल इनकम | कितना टैक्स बनता है | अब कितनी बचत होगी | |
| मौजूदा | बजट के बाद | ||
| 160,000 | - | - | |
300,000 | 14,000 | 14,000 | - | |
500,000 | 54,000 | 34,000 | 20,000 | |
700,000 | 114,000 | 74,000 | 40,000 | |
800,000 | 144,000 | 94,000 | 50,000 | |
1,000,000 | 204,000 | 154,000 | 50,000 | |
1,200,000 | 264,000 | 214,000 | 50,000 | |
1,500,000 | 354,000 | 304,000 | 50,000 | |
2,000,000 | 504,000 | 454,000 | 50,000 | |
2,500,000 | 654,000 | 604,000 | 50,000 | |
3,000,000 | 804,000 | 754,000 | 50,000 | |
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नोट : ऊपर दिए गए कैलकुलेशन में एजुकेशन सेस शामिल नहीं है . | | |||
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महिलाएं | ||||
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टैक्सेबल इनकम | कितना टैक्स बनता है | अब कितनी बचत होगी | ||
| मौजूदा | बजट के बाद | ||
190,000 | - | - | ||
| 300,000 | 11,000 | 11,000 | - |
500,000 | 51,000 | 31,000 | 20,000 | |
700,000 | 111,000 | 71,000 | 40,000 | |
| 800,000 | 141,000 | 91,000 | 50,000 |
1,000,000 | 201,000 | 151,000 | 50,000 | |
1,200,000 | 261,000 | 211,000 | 50,000 | |
| 1,500,000 | 351,000 | 301,000 | 50,000 |
2,000,000 | 501,000 | 451,000 | 50,000 | |
2,500,000 | 651,000 | 601,000 | 50,000 | |
| 3,000,000 | 801,000 | 751,000 | 50,000 |
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नोट : ऊपर दिए गए कैलकुलेशन में एजुकेशन सेस शामिल नहीं है . | | |||
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सीनियर सिटिजन | | |||
| टैक्सेबल इनकम | कितना टैक्स बनता है | अब कितनी बचत होगी | |
| मौजूदा | बजट के बाद | ||
240,000 | - | - | ||
300,000 | 6,000 | 6,000 | - | |
| 500,000 | 46,000 | 26,000 | 20,000 |
700,000 | 106,000 | 66,000 | 40,000 | |
800,000 | 136,000 | 86,000 | 50,000 | |
| 1,000,000 | 196,000 | 146,000 | 50,000 |
1,200,000 | 256,000 | 206,000 | 50,000 | |
1,500,000 | 346,000 | 296,000 | 50,000 | |
| 2,000,000 | 496,000 | 446,000 | 50,000 |
2,500,000 | 646,000 | 596,000 | 50,000 | |
3,000,000 | 796,000 | 746,000 | 50,000 | |
| | |||
नोट : ऊपर दिए गए कैलकुलेशन में एजुकेशन सेस शामिल नहीं है . | |
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इसके तहत देश में प्रकृति और प्रकृति से जुड़े मूलनिवासी एससी,एसटी,, ओबीसी और धर्मांतरित अल्पसंख्यकों के खिलाफ ब्राह्मणों ने विकास और आतंकवाद, उग्रवाद के बहाने भारत को हिंदू राष्ट्र में तब्दील करके जिओनिस्ट अमरीकी इसराइल अगुवाई में ग्लोबल सत्ता वर्ग का निर्माणकरने में कामयाबी हासिल की है और मूलनिवासियों के खिलाफ विश्वव्यापी आणविक, रासायनिक और जैविकी युद्ध छेड़ दिया है, जिसके तहत भारत अमरीका परमाणु संधि के तहत हमें जबरन आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में शामिस करके
हिंद महासागर शांति क्षेत्र को असीम युद्ध इलाके में तब्दील कर दिया है और भारत देश को अमरीकी युद्ध गृहयुद्ध अर्थव्वयवस्था का उपनिवेश बना दिया है।यह एक टर्निंग प्वाइंट है, जहां से पुरानी और आगामी नई आर्थिक नीतियों में विश्व स्तर पर एक स्पष्ट विभाजन देखा जा सकेगा,यह अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से विदेशी पूंजी के हवाले कर देने का परिणाम था। केन्द्र सरकार ने भी पानी के निजीकरण और व्यावसायीकरण के बारे में अनेक कदम उठाए गए हैं। जैसे –
1991-बिजली क्षेत्र निजीकरण हेतु खोला गया जिससे जलविद्युत का निजीकरण प्रारंभ हुआ।
2002-नई जल नीति में निजीकरण को शामिल किया गया।
2004-शहरी जलप्रदाय और मलनिकास सुधार में जन-निजी भागीदारी की मार्गदर्शिका तैयार की।
2005-जेएनएनयूआरएम और यूआईडीएसएसएमटी जैसी योजनाओं के माध्यम से शहरी जलप्रदाय में निजी क्षेत्र के प्रवेश पर जोर दिया गया। जन-निजी भागीदारी को प्राथमिकता।
2006 - बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु 20% धन उपलब्ध करवाने हेतु भारतीय बुनियादी वित्त निगम लिमिटेड (IIFCL) का गठन किया गया।
2008 - परियोजना विकास खर्च का 75% तक वित्त उपलब्ध करवाने हेतु भारतीय बुनियादी परियोजना विकास कोष (IIPDF) का गठन किया गया।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आम बजट-2010- 11 पेश करते हुए कहा कि हम इकनोमी की रिकवरी को ल
ेकर आश्वस्त नहीं थे इसके बावजूद मंदी का बेहतर तरीके से मुकाबला किया। उन्होंने कहा भारतीय इकनॉमी के सामने अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं और हम इसे दूर करते हुए निकट भविष्य में 10% जीडीपी का लक्ष्य हासिल करेंगे। उन्होंने कहा कि डायरेक्ट टैक्स कोड और जीएसटी 1अप्रैल, 2011 से लागू होगा। वित्त मंत्री के मुताबिक सरकार को ग्रामीण इलाकों में साद्य सुरक्षा पर खास ध्यान देना है। सरकार का काम समाज के कमजोर तबके की मदद करना है। प्रणव मुखर्जी ने कहा कि सबसे पहली प्राथमिकता बेहतर सरकार चलाना है। वित्त मंत्री ने खाने पीने की चीजों के बढ़ते दामों पर चिंता जताते हुए इसपर लगाम लगाए जाने की बात कही। उन्होंने सदन को बताया कि सरकार महंगाई पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार विनिवेश के जरिए 25 हजार करोड़ रुपये जुटाएगी और इसे सोशल सेक्टर में खर्च किया जाएगा। टैक्स सिस्टम को आसान बनाने की बात भी उन्होंने कही है और कहा है कि इस बारे में काम चल रहा है। इसके लिए उन्होंने कहा है कि नया टैक्स कोड 1 अप्रैल 2011 से लागू कर दिया जाएगा। प्रणव का कहना है कि अप्रैल 2011 से ही जीएसटी को भी लागू कर दिया जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा है कि स्टिमुलस पैकेज का रिव्यू किए जाने की जरूरत है। प्रणव ने कहा कि सरकारी खर्चों की समीक्षा की भी जरूरत है और 6 महीने के भीतर सरकारी कर्जों में कटौती का रोडमैप तैयार कर लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार एफडीआई पॉलिसी को और आसान बनाएगी। अपने बजट भाषण में प्रणव ने ग्रामीण इलाकों में फूड सिक्युरिटी मुहैया कराने पर जोर दिया है। इकॉनमी को गति देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। महंगाई के बारे में उन्होंने कहा है कि खाने के सामान की बढ़ती हुई कीमतें चिंता का विषय हैं और महंगाई पर काबू पाना सरकार का बड़ा मकसद होगा। महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार हरसंभव कदम उठाएगी। पब्लिक डिलीवरी मेकानिज्म को मजबूत किए जाने की बात भी उन्होंने कही।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इसके तहत एलपीजी माफिया राजकाज में हावी हो गया है। भारत में न तो कोई सब-प्राइम संकट है, न ही बैंकिंग संकट है, और बुरे कर्जों के अनुपात अब भी निहायत कमतर हैं। प्रमोचरों, बिल्डरों की चांदी है और देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के हवाले कर दिया गया है।चीन ने हाल में विदेशी निवेशकों के साथ सख्ती करना शुरू कर दिया है। पूंजी सुधार और बाजार सुधार को इस अर्थ में समझा जा सकता है, कि पूंजी का स्वतंत्र आवागमन मानने वाली नीतियों को अपनाना और बाजार में, कंपनियों में विदेशी भागीदारी बढाने के लिए आवश्यक कदम उठाना। भारत या दूसरे एशियाई देशों की आर्थिक विकास की गाड़ी पिछले कुछ समय से विदेशी पूंजी (खासतौर से पश्चिमी निवेशकों की पूंजी) के ईंधन पर चलती रही है। ... भारत की अर्थव्यवस्था चीन की तुलना में छोटी है, फिर भी भारत की कई कंपनियां विश्व स्तर की है। ... बार-बार हमें बताया जाता था कि चीन की तरह भारत को विदेशी पूंजी और तकनीकें चाहिए। ... जिसके चलते वे तेजी से भाग नहीं पाए और इसके बाद उन्हे बीमार बताकर विदेशी निवेशकों को निमंत्रण दे दिया गया। ...विदेशी निवेशक किसी अन्य देश में निवेश करने से पहले उस देश के विषय में दो प्रमुख बातों पर ध्यान देते हैं- एक तो निवेश अनुकूल वातावरण। और दूसरा- राजनीतिक स्थिरता। अगर किसी देश का राजनीतिक ढांचा, निजीकरण में विशेष रूचि रखने वाला नहीं है। पर्याप्त पूंजी सुधारों और बाजार सुधारों की ओर उन्मुख नहीं है, तो उस देश में विदेशी निवेश आकर्षित नहीं होगा। 1991 में भारत में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू होने के साथ सरकार ने क्रमबद्ध रूप से अपनी प्रमुख कंपनियों/संस्थाओं में अपनी हिस्सेदारी कम करनी शुरू की और भारतीय बाजारों को अंतरराष्ट्रीय पूंजी और कंपनियों के लिए खोल दिया। भारत को पश्चिम में, एशिया के सर्वाधिक संभावनाशील देश (चीन के बाद) देखा गया। लिहाजा विदेशी निवेशक संस्थाओं की पूंजी का भारी मात्रा में भारतीय बाजार में आगमन हुआ, जिससे उत्साहित होकर भारतीय कंपनियों ने भी (कुछ ने तो अपनी हैसियत से बढ़कर) विकास करने के लिए उठा-पटक शुरू की। अमरीका में ऋण आधारित वित्तीय संकट ने पैर पसारने शुरू किए और धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपने लपेटे में ले लिया। वहां की प्रमुख संस्थाएं वित्तीय संकट का शिकार हुईं और विदेशियों की जो पूंजी एशियाई बाजारों में लगी थी, वह उन्होंने जबरदस्त बिकवाली के जरिए अपनी पूंजी वापस खींचना शुरु किया जिससे हमारे बाजार भी औंधे मुंह आ गिरे।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा क्योंकि इससे निजीकरण और विनिवेश के जरिए बाबा साहब भीमराव अंहेडकर प्रदत्त मूसनिवासियों को रोजगार के लिए आरक्षण और कोटा को खत्म करके मूलनिवासी शिक्षित बहुजनों को मौत के मुंह में धकेल दिया गया है।सरकार की नीतियों के चलते सरकारी विभागों में ठेका प्रथा, निजीकरण एवं आउटसोर्सिंग को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। सरकार भारत में भी पश्चिमी देशों की नीतियां धीरे-धीरे लागू करने में जुटी हुई है। पूर्व कम्युनिस्ट देशों में नब्बे के दशक में अपनाई गई व्यापक निजीकरण की नीतियों ने लगभग 10 लाख लोगों की जान ले ली। जल क्षेत्र में सुधार और पुनर्रचना ठीक उसी तरह जारी है जैसा बिजली के मामले में हुआ और वास्तव में यह दुनियाभर में होने वाले पानी के निजीकरण की तरह ही है। ये नीतियाँ विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक द्वारा पूरे क्षेत्र को बाजार में तब्दील करने पर जोर देते हुए आगे धकेली जा रही है। राजनैतिक सामाजिक आक्रोश और मुनाफा कमाने में कठिनाईयों का परिणाम ``गरीब हितैषी´´ निजीकरण और सार्वजनिक निजी भागीदारी (जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र को फायदा पहुँचाने के लिए स्वयं सारे जोखिम उठाता है।) जैसी योजनाओं के रूप में सामने आया। परन्तु, यह पर्याप्त सिद्ध नहीं हुआ और राजैनेतिक आक्रोश के कारण मुनाफा कमाने में परेशानियाँ जारी रही है। इस प्रकार क्षेत्र सुधार या सेक्टर रिफार्म पर जोर दिया गया। इसमें निजी क्षेत्र सीधे परिदृश्य में नहीं होते हैं। अलोकप्रिय और कड़े निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की सारी जिम्मेदारी सरकार और सार्वजनिक निकायों की होती है।
हिंद महासागर शांति क्षेत्र को असीम युद्ध इलाके में तब्दील कर दिया है और भारत देश को अमरीकी युद्ध गृहयुद्ध अर्थव्वयवस्था का उपनिवेश बना दिया है।यह एक टर्निंग प्वाइंट है, जहां से पुरानी और आगामी नई आर्थिक नीतियों में विश्व स्तर पर एक स्पष्ट विभाजन देखा जा सकेगा,यह अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से विदेशी पूंजी के हवाले कर देने का परिणाम था। केन्द्र सरकार ने भी पानी के निजीकरण और व्यावसायीकरण के बारे में अनेक कदम उठाए गए हैं। जैसे –
1991-बिजली क्षेत्र निजीकरण हेतु खोला गया जिससे जलविद्युत का निजीकरण प्रारंभ हुआ।
2002-नई जल नीति में निजीकरण को शामिल किया गया।
2004-शहरी जलप्रदाय और मलनिकास सुधार में जन-निजी भागीदारी की मार्गदर्शिका तैयार की।
2005-जेएनएनयूआरएम और यूआईडीएसएसएमटी जैसी योजनाओं के माध्यम से शहरी जलप्रदाय में निजी क्षेत्र के प्रवेश पर जोर दिया गया। जन-निजी भागीदारी को प्राथमिकता।
2006 - बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु 20% धन उपलब्ध करवाने हेतु भारतीय बुनियादी वित्त निगम लिमिटेड (IIFCL) का गठन किया गया।
2008 - परियोजना विकास खर्च का 75% तक वित्त उपलब्ध करवाने हेतु भारतीय बुनियादी परियोजना विकास कोष (IIPDF) का गठन किया गया।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आम बजट-2010- 11 पेश करते हुए कहा कि हम इकनोमी की रिकवरी को ल
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इसके तहत एलपीजी माफिया राजकाज में हावी हो गया है। भारत में न तो कोई सब-प्राइम संकट है, न ही बैंकिंग संकट है, और बुरे कर्जों के अनुपात अब भी निहायत कमतर हैं। प्रमोचरों, बिल्डरों की चांदी है और देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के हवाले कर दिया गया है।चीन ने हाल में विदेशी निवेशकों के साथ सख्ती करना शुरू कर दिया है। पूंजी सुधार और बाजार सुधार को इस अर्थ में समझा जा सकता है, कि पूंजी का स्वतंत्र आवागमन मानने वाली नीतियों को अपनाना और बाजार में, कंपनियों में विदेशी भागीदारी बढाने के लिए आवश्यक कदम उठाना। भारत या दूसरे एशियाई देशों की आर्थिक विकास की गाड़ी पिछले कुछ समय से विदेशी पूंजी (खासतौर से पश्चिमी निवेशकों की पूंजी) के ईंधन पर चलती रही है। ... भारत की अर्थव्यवस्था चीन की तुलना में छोटी है, फिर भी भारत की कई कंपनियां विश्व स्तर की है। ... बार-बार हमें बताया जाता था कि चीन की तरह भारत को विदेशी पूंजी और तकनीकें चाहिए। ... जिसके चलते वे तेजी से भाग नहीं पाए और इसके बाद उन्हे बीमार बताकर विदेशी निवेशकों को निमंत्रण दे दिया गया। ...विदेशी निवेशक किसी अन्य देश में निवेश करने से पहले उस देश के विषय में दो प्रमुख बातों पर ध्यान देते हैं- एक तो निवेश अनुकूल वातावरण। और दूसरा- राजनीतिक स्थिरता। अगर किसी देश का राजनीतिक ढांचा, निजीकरण में विशेष रूचि रखने वाला नहीं है। पर्याप्त पूंजी सुधारों और बाजार सुधारों की ओर उन्मुख नहीं है, तो उस देश में विदेशी निवेश आकर्षित नहीं होगा। 1991 में भारत में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू होने के साथ सरकार ने क्रमबद्ध रूप से अपनी प्रमुख कंपनियों/संस्थाओं में अपनी हिस्सेदारी कम करनी शुरू की और भारतीय बाजारों को अंतरराष्ट्रीय पूंजी और कंपनियों के लिए खोल दिया। भारत को पश्चिम में, एशिया के सर्वाधिक संभावनाशील देश (चीन के बाद) देखा गया। लिहाजा विदेशी निवेशक संस्थाओं की पूंजी का भारी मात्रा में भारतीय बाजार में आगमन हुआ, जिससे उत्साहित होकर भारतीय कंपनियों ने भी (कुछ ने तो अपनी हैसियत से बढ़कर) विकास करने के लिए उठा-पटक शुरू की। अमरीका में ऋण आधारित वित्तीय संकट ने पैर पसारने शुरू किए और धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपने लपेटे में ले लिया। वहां की प्रमुख संस्थाएं वित्तीय संकट का शिकार हुईं और विदेशियों की जो पूंजी एशियाई बाजारों में लगी थी, वह उन्होंने जबरदस्त बिकवाली के जरिए अपनी पूंजी वापस खींचना शुरु किया जिससे हमारे बाजार भी औंधे मुंह आ गिरे।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा क्योंकि इससे निजीकरण और विनिवेश के जरिए बाबा साहब भीमराव अंहेडकर प्रदत्त मूसनिवासियों को रोजगार के लिए आरक्षण और कोटा को खत्म करके मूलनिवासी शिक्षित बहुजनों को मौत के मुंह में धकेल दिया गया है।सरकार की नीतियों के चलते सरकारी विभागों में ठेका प्रथा, निजीकरण एवं आउटसोर्सिंग को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। सरकार भारत में भी पश्चिमी देशों की नीतियां धीरे-धीरे लागू करने में जुटी हुई है। पूर्व कम्युनिस्ट देशों में नब्बे के दशक में अपनाई गई व्यापक निजीकरण की नीतियों ने लगभग 10 लाख लोगों की जान ले ली। जल क्षेत्र में सुधार और पुनर्रचना ठीक उसी तरह जारी है जैसा बिजली के मामले में हुआ और वास्तव में यह दुनियाभर में होने वाले पानी के निजीकरण की तरह ही है। ये नीतियाँ विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक द्वारा पूरे क्षेत्र को बाजार में तब्दील करने पर जोर देते हुए आगे धकेली जा रही है। राजनैतिक सामाजिक आक्रोश और मुनाफा कमाने में कठिनाईयों का परिणाम ``गरीब हितैषी´´ निजीकरण और सार्वजनिक निजी भागीदारी (जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र को फायदा पहुँचाने के लिए स्वयं सारे जोखिम उठाता है।) जैसी योजनाओं के रूप में सामने आया। परन्तु, यह पर्याप्त सिद्ध नहीं हुआ और राजैनेतिक आक्रोश के कारण मुनाफा कमाने में परेशानियाँ जारी रही है। इस प्रकार क्षेत्र सुधार या सेक्टर रिफार्म पर जोर दिया गया। इसमें निजी क्षेत्र सीधे परिदृश्य में नहीं होते हैं। अलोकप्रिय और कड़े निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की सारी जिम्मेदारी सरकार और सार्वजनिक निकायों की होती है।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे मूलनिवासियों के जल, जंगल , जमीन पर विदेशी और स्वदेशी पूंजी के कब्जे के लिए पिछले दो दशक से आर्थिक सुधार के नाम पर कत्लआम जारी है और राजनीतिक आरक्षण मूलनिवासियों के सबसे बड़े दुश्मण गांधी बनिया के पूना पैक्ट विश्वासघात और ब्राह्मणबनिया को भारत विभाजन के जरिए सत्ता हस्तातंरण के बावजूद बंगाल के मूलनिवासियों के द्वारा निर्वाचित बाबा साहेब के बनाए संविधान और संसदीय लोकतंत्र वाले भारतीय गणराज्य के मूल पर कुठाराघात जारी है। सत्ता पार्टी ब्राह्मण, विपक्ष ब्राह्मण और मूलनिवासियों के लिए ब्राहमणों के चुने दलाल और भड़ुवा जनप्रतिनिधि आर्थिक सुधार के नाम पर कार्यपालिका यानी सरकार, विधायिका यानी संसद, न्यायपालिका, प्रशासन, मीडिया, नीति निर्धारण और अर्थव्यवस्था ब्राहमण बनिया ग्लोबल सत्ता वर्ग को सौंप चुके हैं। जिससे देश की सुरक्षा और आतंरिक सुरक्षा दोनों खतरों में हैं।पिछले साल के रक्षा बजट में 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी से रक्षा हल
कों में राहत महसूस की गई थी, लेकिन यह पूरी तरह खर्च नहीं हो पाया और पूंजीगत परिव्यय में से 7,066 करोड़ रुपये लौटाने पड़े थे। इस साल 1,47, 344 करोड़ रुपये दे कर चार प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी से रक्षा हलकों में निराशा है, लेकिन यदि पिछले साल अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की दर का हिसाब किया जाए तो पूंजीगत परिव्यय के तहत हथियारों की खरीद के लिए इस साल करीब 20 प्रतिशत अधिक प्रावधान किया गया है। पिछले साल पूंजीगत परिव्यय के तहत हथियारों और कलपुर्जों की खरीद के लिए 54,824 करोड़ रुपये का प्रावधान था जो इस साल बढ़ कर 60 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है। मार्च 2009 में डॉलर की दर 50 रुपये 95 पैसे थी जो इस साल एक जनवरी को घट कर 46 रुपये 64 पैसे रह गई है। इस तरह पिछले साल हथियारों और इनके कलपुर्जों की खरीद के लिए अमेरिकी डॉलर में करीब 10.5 अरब डॉलर मिला, लेकिन इस साल की दर के मुताबिक हथियारों पर खरीद के लिए करीब 13 अरब डॉलर मिलेंगे। चूंकि 70 प्रतिशत से अधिक हथियार आयात होते हैं, इसलिए डॉलर की तुलना में रुपये के मजबूत होने से पूंजीगत परिव्यय के तहत विदेशी मुद्रा में और राशि उपलब्ध होगी। एक साल में डॉलर की तुलना में रुपया 9.2 प्रतिशत मजबूत हुआ है। लेकिन, रक्षा हलकों में सबसे अधिक चिंता इस बात की है कि हथियारों की खरीद के लिए जो धन मुहैया कराया जाता है, वह रक्षा मंत्रालय की नौकरशाही और जटिल खरीद प्रक्रिया की वजह से पूरी तरह खर्च नहीं हो पाता। इससे रक्षा तैयारी पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। तीनों सेनाओं के हथियार और अन्य प्रणालियां कई दशक पुरानी हो चुकी हैं और इन्हें जल्द बदलने की जरूरत है। वायुसेना के साढ़े सात सौ लड़ाकू विमानों में से दो तिहाई पुराने पड़ चुके हैं, लेकिन फिलहाल 126 लड़ाकू विमानों के आयात की प्रक्रिया चल रही है। थलसेना में भी दो दशकों से नई तोपें नहीं शामिल की गईं हैं। करीब तीन हजार तोपों के आयात पर 17 हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने पड़ेंगे। चूंकि पाकिस्तान और चीन ने बलिस्टिक मिसाइलों की भारी संख्या में तैनाती कर ली है, इसलिए इनसे मुकाबले के लिए भारतीय सेनाओं को भी आने वाले सालों में भारी संख्या में बलिस्टिक मिसाइलों की खरीद की जरूरत तो पड़ेगी ही, मिसाइलों का नाश करने वाली एंटी मिसाइलों की भी जरूरत पड़ेगी। इन पर कई हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। इस तरह भारतीय सेनाओं को आने वाले सालों में कई नई तरह की शस्त्र प्रणालियों की जरूरत पड़ेगी जिन्हें समय पर हासिल करने के लिए समुचित प्रावधान करना होगा।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे लोकतंत्र की अवहेलना करके संसदीय नौटंकी और शोरगुल, सूचना के अधिकार , मीडिया और न्यायपालिका की
अधि सक्रियता के बावजूद रोजना नए नए कानून बन रहे हैं जिससे मनुस्मृति व्यवस्था मजबूत होती है और कहीं भी किसी भी स्तर पर लोकतंत्रात्मक विरोध की गुंजाइश न रहने से विद्रोह और गृहयुद्ध की परिस्थितियों के निर्माण के जरिए मूलनिवासियों को जल, जंगल, जमीन, घर, गांव , आजीविका
और जीवन से बेदखल किया जा रहा है।प्रिंट हो या टीवी कोई भी बाजार को नजरअंदाज नहीं कर सकता। नजरअंदाज करेगा तो उसकी लुटिया डूब जाएगी। वो अंतरराष्ट्रीय से राष्ट्रीय फिर स्थानीय...और फिर गायब हो या गायब होने के कगार पर झूलता रहेगा।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि इससे मनुष्य के श्रम और संसाधनों , पहचान, मातृभाषा, संस्कृति और नागरिकाता को बाजार के अनुकूल बनाया गया है और बुनियादी उत्पादन प्रणाली से मूलनिवासियों को बेदखल करने के वास्ते कलकाराखाने, उद्योग धंधे टौपट करके महज थोक कारोबार, शेयर बाजार, विलासिता की उपभोक्ता संस्कृति को बढावा देकर देश में बेरोजगारी और भुखमरी के हालात पैदा कर दिए गए हैं। जहां मोबाइल , टीवी, कंप्यूटर तो सस्ते हैं पर अनाज, दाल, खाद्य तेल, ईंधन, ऊर्जा, बिजली, दवाएं, चिकित्सा , शिक्षा महंगे हैं। बाजार का अस्तित्व पहले भी रहा है और आगे भी रहेगा। पहले पहल व्यापार के साक्ष्य हड़प्पा में मिलते हैं यानी बाजार के भी। लेकिन बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है। औद्योगिक क्रांति के बाद से दुनिया करीब आनी शुरू हुई। अब इसका उत्तरकाल चल रहा है। इसकी बहुत स्पष्ट विचारधारा है, जो आक्रामक तीव्रता लिए हुए है। बाजार होगा तो उपभोक्ता और उत्पादक भी होंगे। लेकिन बाजार की सर्वोच्चता व्यक्ति को मात्र उपभोक्ता में बदलने को तैयार है। भारत में भविष्य का उपभोक्तावादी समाज कैसा होगा, इसके बीज वर्तमान में मौजूद हैं। आजादी से ठीक पहले और बाद का इतिहास इसमें हमारी सहायता कर सकता है। यह तो स्पष्ट ही है कि उपभोक्तावादी समाज में भूमंडलीय नागरिक महत्वपूर्ण होंगे। ये सत्ता-व्यवस्था के संचालक भी होंगे, लेकिन ये नागरिक "वसुधैव कुटुंबकम" का कोई मिथकीय आदर्श नहीं होंगे। जवाहरलाल नेहरू के मिश्रित रक्त की संतान होने का आधुनिक आदर्श पिलपिलाने लगेगा। हालांकि समाज में मिश्रित संताने, संबंध बहुत आम होंगे, जो रूढ़ियों का नाश करेंगे। लेकिन इतने आम होंगे कि आने वाली पीढ़ी अपने ग्लोबलपने से ऊबकर बल्कि त्रस्त होकर अंतिम रूप से क्षेत्रियता में अपनी पहचान ढूंढेगी। भूमंडलीय नागरिक होने के बावजूद भारतीय होना कम औऱ गढ़वाली, पंजाबी, बिहारी, कैराली.....होना अधिक महत्व पा जाएगा। इसकी शुरूआत हो चुकी है।
ग्लोबीकरण यानी भूमंडलीकरण से मूलनिवासियों का चौतरफा सत्यानाश क्योंकि 1991 से भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में उदारीकरण, निजीकरण और भूमण्डलीकरण द्वारा बड़े बदलाव शुरू किए गए। बिजली के क्षेत्र में ये बदलाव प्रारंभ से ही लागू हो गए थे लेकिन जल क्षेत्र में ये अभी प्रारंभ हुए है। बगैर ठोस सोच-विचार के, जल्दबाजी में किए गए उदारीकरण और निजीकरण के कारण आज बिजली क्षेत्र संकट मंद है। सुधार की प्रक्रिया मानव निर्मित आपदा सिद्ध हुई है। बिजली के दाम और बिजली संकट दोनों ही बढ़े हैं और वर्षो के लिए देश पर महँगे समझौतों का बोझ लाद दिया गया है। यह सब अब अधिकृत रूप से भी स्वीकार कर लिया गया है। इस प्रक्रिया से सीख लेने के बजाय इसी प्रकार की उदारीकरण, निजीकरण और भूमण्डलीकरण की नीति अब जल क्षेत्र में भी दोहराई जा रही है।इसमें बीओटी (बनाओ, चलाओ और हस्तांतरित करो) परियोजनाएँ, कंसेशन अनुबंध, प्रबंधन अनुबंध, निजी पनबिजली परियोजनाएँ आदि शामिल हैं। इसी तरह की कई परियोजनाएँ या तो जारी है या फिर प्रक्रिया में है। जैसे छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी, तमिलनाडु की तिरूपुर परियोजना, मुंबई में के.-ईस्ट वार्ड का प्रस्तावित निजी प्रबंधन अनुबंध आदि। हिमाचल के अलियान दुहांगन, उत्तराखण्ड के विष्णु प्रयाग और मध्यप्रदेश की महेश्वर जल विद्युत परियोजना की तरह अनेक निजी पनबिजली परियोजनाएँ या तो निर्मित हो चुकी है या फिर निर्माणाधीन है। अलियान दुहांगन परियोजना को अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) ने कर्ज दिया है। निजी जल विद्युत परियोजनाओं के मामले में कंपनियों को नदियों पर नियंत्रण का अधिकार दे दिया जाता है जिसका विपरीत प्रभाव निचवास (Down-stream) में रहने वाले समुदायों पर पड़ता है।के.-ईस्ट वार्ड (मुंबई) में पानी के निजीकरण की प्रक्रिया जनवरी 2006 में उस समय शुरू हुई जब विश्व बैंक ने एक फ्रांसीसी सलाहकार फर्म `कस्टालिया´ को वार्ड में पानी के निजीकरण की प्रयोगात्मक योजना तैयार करने को कहा। विश्व बैंक ने तीसरी दुनिया के देशों में निजीकरण को बढ़ावा देने वाली अपनी संस्था `पब्लिक प्रायवेट इन्फ्रास्ट्रक्चर एडवायजरी फेसिलिटी´ (पीपीआईएएफ) के माध्यम से 5 6,92,500 डॉलर उपलब्ध करवाए। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर क्रियांवित स्वजलधारा परियोजना विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित है। गाँवों में साफ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करवाने हेतु यह योजना कई राज्यों में जारी है। परियोजना रिपोर्ट और अध्ययन बताते हैं कि इसके लिए संचालन और संधारण की पूर्ण लागत वापसी और ग्रामीणों का मौद्रिक अंशदान जरूरी है। जो लोग यह कीमत अदा नहीं कर सकते वे इस योजना से वंचित हो जाते हैं तथा उन्हें अपने संसाधन स्वयं तलाशने होते हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि इनमें से कुछ योजनाएँ स्थानीय दबंगों और ठेकेदारों ने हथिया ली है और वे लोगों से पैसे वसूल रहे हैं।
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