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Sunday, April 1, 2012

आज हैप्‍पी सिब्‍बल्‍स डे है! राजघाट जाएं, चुटकुले सुनाएं!

आज हैप्‍पी सिब्‍बल्‍स डे है! राजघाट जाएं, चुटकुले सुनाएं!



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आज हैप्‍पी सिब्‍बल्‍स डे है! राजघाट जाएं, चुटकुले सुनाएं!

1 APRIL 2012 NO COMMENT

♦ आलोक दीक्षित

हाल ही में पत्रकारों की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स ने 'एनिमी आफ द इंटरनेट' नाम से एक लिस्ट तैयार की थी, जिसमें इंडिया भी शामिल था। लिस्ट में बर्मा, चीन, क्यूबा, ईरान, सउदी अरब, सीरिया, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान और वियतनाम को इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया था। दुख की बात है कि अपनी तानाशाही से सारी दुनिया को मुंह चिढ़ाता चीन और दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी भारत इस बार एक ही कार्नीवाल के पार्टीसिपेंट थे। हमारे लिए जो राहत की बात थी, वह यह कि इस सूची में हमारे देश को केवल ऑब्‍जर्वेशन लिस्ट में रखा गया था। क्या एक डेमोक्रेटिक देश के लिए यह एक शर्म की बात नहीं है। सरकार द्वारा पिछले एक साल में इंटरनेट को सेंसर करने की वकालतों, देश में वेब कंपनियों पर चल रहे तमाम केसेस और आईटी एक्ट में तकनीकी खामियों को इसका जिम्मेदार माना जा रहा है। इस पर आईटी मिनिस्ट्री का कहना है कि सरकार किसी भी तरह की सेंसरशिप नहीं ला रही है, पर फिलहाल सारे बयान लोगों के मन में केवल भ्रम ही पैदा करते हैं क्यूंकि देश में इनफॉर्मेशन टेक्नालाजी एक्ट 2011 अभी भी लोगों को मुंह ही चिढ़ा रहा है।

सबसे पहले न्यूयार्क टाइम्स ने यह खुलासा किया था कि कपिल सिब्बल ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स के रिप्रजेंटेटिव्स के साथ गुपचुप तरीके से एक मीटिंग की थी, जिसमें उन पर सरकार विरोधी कंटेंट को हटाने का दबाव डाला गया था। बाद में अपने बयान में भी सिब्बल ने यह दोहराया था कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नकेल कसे जाने की जरूरत है। हर तरफ से क्रिटिसिज्म मिलने के बाद कपिल सिब्बल सोशल नेटवर्किंग और इंटरनेट माध्यमों पर नियंत्रण के मुद्दे पर भले ही फिर से कोई बयानबाजी न की हो, पर गुपचुप तरीके से सरकार कई सारी वेबसाइटों पर लगाम लगा चुकी है। भारत सरकार ने अकेले गूगल और फेसबुक से लगभग 150 साइटों पर लगाम लगाने की सिफारिश की है। विदेशी साइटों पर सरकार का कोई सीधा नियंत्रण नहीं है, पर जो सर्वर इंडिया से चल रहे हैं, सरकार उन पर दबाव डालकर साइटों को बंद करवा देती है। गूगल ट्रांसपैरेंसी रिपोर्ट 2011 के मुताबिक भारत सरकार ने अपनी 68 शिकायती पत्रों के जरिये 358 आइटम्स को हटाने की रिक्वेस्ट की, जिनमें गूगल ने आधी शिकायतों पर ही कार्यवाही की। सरकार ने 1739 एकाउंट्स की पर्सनल डिटेल्स जानने की रिक्वेस्ट की और 2439 लोगों की यूजर एकाउंट डिटेल्स की जानकारी गूगल से मांगी। इनमें से 70 प्रतिशत की जानकारी दे दी गयी। दुखद बात यह है कि यह पूरी प्रक्रिया ही गैर-कानूनी है और इसके लिए सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है।

संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है आईटी एक्ट

दुनिया का हर संविधान 'प्रीजम्शन आफ इनोसेंस' के सिद्धांत को मानता है यानि नागरिक तब तक इनोसेंट है, जब तक कि यह सिद्ध न कर दिया जाए कि उसने कोई गुनाह किया है। संविधान कहता है कि 'भले ही हजार मुजरिम बिना सजा के बरी हो जाएं, पर एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए'। यही वजह है कि दुनिया के हर कंस्टीट्यूशन में गुनहगार साबित करने की जिम्मेदारी 'स्टेट' को दी गयी है। हमने अजमल कसाब को भी फेयर ट्रायल का मौका दिया और यह साबित करने के बाद कि वह गुनहगार है, उसे फांसी की सजा सुनायी गयी। इसके उलट इंटरनेट को सेंसर करने और उस पर लगाम लगाने के लिए हमने 'डेमोक्रेसी की आत्मा' कहे जाने वाले इस सिद्धांत को ही झुठला दिया है। इस कानून में कहा गया है कि बिना किसी जुडीशिअल आर्डर के किसी वेबसाइट या डोमेन को बंद किया जा सकता है। यानि अब आपकी वेबसाइट को गलत कंटेट के नाम पर बंद कर दिया जाएगा और यह साबित करना कि आपने अपनी वेबसाइट, कमेंट या आर्टिकल के जरिए कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है, आपकी जिम्मेदारी होगी। यह उसी तरह है कि आपको बिना किसी नोटिस के जेल में बंद कर दिया जाए और फिर आप साबित कीजिए कि आप सही हैं और फिर 5-10 साल चले केस के बाद कोर्ट आर्डर में आप खुद को बेगुनाह साबित कर लें।

आईटी मिनिस्टर कपिल सिब्बल के बयान में कहा गया था कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स को अपने कंटेंट पर निगरानी रखनी चाहिए। उनका मानना है कि सोशल साइट्स पर कुछ ऐसी तस्वीरें डाली जा रही हैं, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं। मिनिस्टर ने यह भी कहा कि अगर साइट्स कोई ठोस कदम नहीं उठाती हैं, तो सरकार इन पर कार्यवाही करेगी। उन्‍होंने इसके लिए एक कानून की भी वकालत की है। इंडिया में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का एक केस भी चल रहा है, जिसमें मांग की गयी है कि साइट्स अपने कंटेंट के लिए जिम्मेदार हों। अगर ऐसा होता है तो फेसबुक पर भद्दा कमेंट करने पर कमेंट करने वाले के साथ-साथ फेसबुक पर भी मुकदमा चलाया जाएगा। आप ब्‍लॉग लिखकर सरकार की बुराई करेंगे और आपका केस ब्‍लॉगर या वर्डप्रेस लड़ेंगे। यानि अब फेसबुक और गूगल को आपके लिखे हर कंटेंट की निगरानी करनी होगी। इसके लिए इन कंपनियों को बहुत बड़े स्टाफ की जरूरत पड़ेगी और जो सेवाएं एक आम आदमी को फ्री में मिल रही हैं, उनके लिए उसे भुगतान करना पड़ेगा। बात सिर्फ भुगतान तक ही सीमित नहीं रहेगी। आपका लिखा ब्‍लॉग या स्टेटस अपडेट कंपनी का कोई कर्मचारी चेक कर रहा होगा और वह अपने विवेक से आपको सही और गलत साबित कर रहा होगा। आपकी बनायी पेंटिंग को गूगल का एक आईटी एक्सपर्ट सेंसर करेगा। कपिल सिब्बल की कंटेंट सेंसर करने की मांग इतनी बेवकूफाना है कि सारी दुनिया ने इसकी खिल्ली उड़ायी है। यह वैसे ही हुआ कि कागज पर गलत लिखने के लिए जेके पेपर मिल पर मुकदमा चलाया जाए, गलत फोटो खींचने के लिए कोडेक पर केस हो और महिलाओं की लुट रही चेनों के लिए पल्सर गाड़ियों को जिम्मेदार ठहराकर बजाज कंपनी पर मुकदमा चलाया जाए।

खत्म हो जाएगा इंटरनेट

सेंसरशिप को लाने का एक और भी नुकसान है। इंटरनेट हमारे बीच अपनी कुछ खासियतों को लेकर ही इतना लोकप्रिय हुआ है। यह आपको सब कुछ फ्री में देता है और साथ ही आपको इसके लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है। आप अपना खुद का एक ब्‍लॉग बनाकर कम्युनिटी मैगजीन चला सकते हैं, लोकल न्यूज दे सकते हैं। आप चाहें तो अपनी पहचान छुपा कर भी इंटरनेट पर काम कर सकते हैं। आपको ढेरों ऐसे ब्‍लॉगर्स मिल जाएंगे, जो कि सरकारी कर्मचारी हैं और आधिकारिक रूप से नहीं लिख सकते हैं। अपनी पहचान को छिपा कर वे सूचना की दुनिया में ढेरों योगदान दे रहे हैं। आज इंटरनेट पर हिंदी सिर्फ ब्‍लॉगर्स के सहारे ही जिंदा है। वेब वर्ल्ड के बेहद इंटरैक्टिव होने के कारण यहां बुरी चीजों के लिए कोई जगह नहीं है। यह ऐसी दुनिया है, जहां डार्विन का 'सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट' का सिद्धांत सबसे बेहतर ढंग से लागू होता है। अगर हम इंटरनेट से उसके ये फीचर्स छीन लेंगे तो यह आम आदमी की पहुंच से काफी दूर हो जाएगा। देश में इंटरनेट का विरोध करनी वाली एक बड़ी लाबी प्रिंट मीडिया की ही है। इंटरनेट के आने के बाद जिस माध्यम को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, वह है प्रिंट मीडिया। देश में प्रिंट मीडिया का कारोबार लगभग 19,300 करोड़ रुपयों का है जो कि 2015 तक 31,010 करोड़ पहुंच जाएगा। फिलहाल देश में 35 करोड़ से भी ज्यादा रीडर्स हैं, जो कि आने वाले समय में तेजी से बढ़ कर 50-60 करोड़ तक पहुंच जाएंगे। प्रिंटिंग की दुनिया में हमारा देश दूसरा सबसे बड़ा बिजनेस हब है। इस सबके बावजूद यहां बिजनेस का काफी बड़ा हिस्सा उन राइटर्स को नहीं मिलता, जो कि वाकई इस कंटेंट के जन्मदाता हैं। यहां तक कि रीडर्स को भी किताबें सस्ते में नहीं मिल पातीं।

मतलब साफ है कि यह बिजनेस न तो राइटर्स का भला करता है और न ही रीडर्स का। पूंजीपतियों का एक बड़ा वर्ग फ्री इंटरनेट को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। 1956 में हिंद पाकेट बुक्स ने एक रुपये में किताबें निकाल कर सबको चौंका दिया था, पर उसकी किताबें भी अब 100 रुपये से कम की कीमत पर पढ़ने को नहीं मिल पातीं। प्रेमचंद से लेकर उदय प्रकाश और विनोद कुमार शुक्ल तक को भी उनकी लेखनी पर रायल्‍टी के लिए संघर्ष करना पड़ा है। प्रेमचंद के बारे में बताया जाता है कि उनके उपन्यास 'रंगभूमि' के लिए उन्‍हें मात्र 1800 रुपये रायल्टी दी गयी थी। छोटे राइटर्स को तो अपनी रचना छपवाने तक के लिए भी प्रकाशकों और संपादकों के चक्कर काटने पड़ते थे। ऐसे में इंटरनेट अगर ऐसे माध्यम के तौर पर सामने आया है, जो कि पूरी तरह फ्री है और बिना किसी विशेष मेहनत के ज्ञान को फैला रहा है, तो भला सरकार को दिक्कत क्यूं हो रही है। अगर इंटरनेट से उसकी खूबियों ही छीन ली जाएं, तो उसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा।

इंटरनेट है हमारी सॉफ्ट पावर

रकार शायद इस बात को लेकर बौखलायी हुई है कि इंटरनेट का इस्तेमाल सरकारी नीतियों के खिलाफ किया जा रहा है। इंटरनेट और बाकी दुनिया को अपने फायदे के लिए सेंसर करते समय सरकार शायद यही नहीं समझ रही कि आखिर देश के इंटरनेट यूजर्स उसकी सॉफ्ट पावर को ही बढ़ा रहे हैं। 'टेड' में बोलते हुए शशि थरूर ने कहा था हर देश के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ाये। सॉफ्ट पावर की संकल्पना करने वाले 'हार्वर्ड' के एक पंडित जोसेफ न्येयह के मुताबिक सॉफ्ट पावर एक देश की वह क्षमता है, जो दूसरो को अपनी ओर आकर्षित करती है। शशि थरूर के मुताबिक कोई देश अपनी संस्कृति से, अपने राजनीतिक मूल्यों से या अपनी विदेश नीतियों से ऐसा ही करते हैं। हर देश के पास कुछ ऐसी चीजें हैं जो उसकी सॉफ्ट पावर को बढ़ाती हैं। उदाहरण के लिए चीन का 'बीजिंग ओलिंपिक्स'। अमेरिकियों के पास 'वाइस आफ अमेरिका', फुलब्राइट स्कालरशिप', 'हालीवुड', 'एमटीवी' और 'मैकडानल्ड्स'। इन सॉफ्टपावर्स ने वह कुछ किया, जो अमेरिका सारी दुनिया पर हमला कर या बिजनेस फैला कर कभी नहीं कर सकता था।

हम इंडियंस के पास ढेर सारा ज्ञान है, जिसे हम हमारी सॉफ्ट पावर के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। देश में अभी भी कुल आबादी का 10 प्रतिशत भाग ही इंटरनेट जानता है और 3-5 प्रतिशत लोग ही इसे रेगुलर यूज करते हैं। इसके बावजूद भी हम दुनिया में आईटी की सबसे बड़ी मार्केट बन कर उभरे हैं। हमारा लिखा हुआ कंटेंट ही सारी दुनिया के इंटरनेट पर तैरता है। वह दिन दूर नहीं, जब आईटी और नॉलेज में हम दुनिया के लीडर होंगे। इन परिस्थितियों में क्या हम चीन की राह पर बढ़ सकते हैं। वह चीन जहां इंटरनेट पर निगरानी रखने के लिए 30 हजार एक्सपर्ट्स की एक बड़ी फौज है। चीन के पास अपना खुद का बनाया एक सर्च इंजन बायडू है और इंटरनेट कंटेट को फिल्टर करने के लिए कई तरह के टूल्स का इस्तेमाल किया जाता है। एक देश जहां वह देखा, सुना, लिखा और पढ़ा जाता है जो सरकार तय करती है। ऐसा न हो कि सेंसरशिप की चीनी राह पकड़ते हुए हम अपनी सबसे बड़ी सॉफ्टपावर को ही बर्बाद कर दें। आखिर हम अपनी ही कुल्हाड़ी से अपने पैरों पर चोट कैसे कर सकते हैं?

एक अप्रैल : 'फूल्स-डे' नहीं, (कपिल) 'सिब्बल्स-डे'

इंटरनेट सेंसरशिप के खिलाफ हमारे अभियान के तहत आज, रविवार एक अप्रैल को राजघाट पर हम सिब्बल्स डे मना रहे हैं। पिछले एक साल में मंत्री महोदय के प्री सेंसरशिप पर दिये गये बयान सारी दुनिया में हंसी का विषय बन गये। आईटी एक्ट में 2011 में किये गये संशोधनों के बाद दुनिया के बीच भारत की छवि एक डेमोक्रेटिक देश की न होकर तानाशाह की हो गयी है और इसके जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि माननीय कपिल सिब्बल जी ही हैं। यह हम नहीं जर्नलिस्ट्स के अंतर्राष्ट्रीय संगठन 'रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स' का कहना है।

मूर्खता से भरपूर रहेगा यह कार्यक्रम

देश से आईटी एक्ट को हटाने और इंटरनेट पर सरकार से सकारात्मक रवैये की मांग करते हुए दिल्ली के तमाम ब्‍लॉगर्स, इंटरनेट यूजर्स, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता रविवार को राजघाट परिसर में एकत्र हो रहे हैं। जोकर टोपी (जिसमें 'मैं हूं सिब्बल' लिखा होगा) पहने हुए हाथों में सीटी लेकर हम सभी लोग गांधीवादी तरीके से राजघाट पर मूर्खता के गीत गाएंगे और एक दूसरे को मूर्खतापूर्ण तरीकों से गिफ्ट देकर और केक काटकर फूल्स डे विश करेंगे। इस दौरान भारत में इंटरनेट को मूर्खतापूर्ण तरीकों से सेंसर किये जाने की पुरानी घटनाओं को याद कर ठहाके भी लगाये जाएंगे।

आपके लिए हमारा स्पेशल गिफ्ट हैंपर

पके लिए हमने एक स्पेशल गिफ्ट हैंपर भी तैयार कर रखा है, जिसमें एक सिब्बल कैप (जोकर कैप), सीटी, चुटकुलों की किताब, कुछ गुब्बारे, सांप सीढ़ी और लूडो शामिल है। अपनी आवाज बचाने के लिए राजघाट पर आयोजित इस कार्यक्रम में पहुंचें। और हां, कृपया वहां से अपना गिफ्ट लेना न भूलें।

(आलोक दीक्षित। अपनी आवाज बचाओ (सेव योर वॉयस) अभियान के सक्रिय सदस्‍य। टीवी9 और दैनिक जागरण के साथ टीवी और प्रिंट की पत्रकारिता करने के बाद पिछले कुछ सालों से न्‍यू मीडिया में सक्रिय। मार्च 2011 से Bangalured के संपादक। आलोक से writeralok@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)


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