Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Friday, May 18, 2012

ज़हरीली व्यवस्था की भेंट चढ़ते ग़रीब

http://hastakshep.com/?p=19305

ज़हरीली व्यवस्था की भेंट चढ़ते ग़रीब

ज़हरीली व्यवस्था की भेंट चढ़ते ग़रीब

By  | May 18, 2012 at 1:25 pm | No comments | खोज खबर

अभिरंजन  कुमार

चम्पारण को हम इसलिए जानते हैं कि वहां से गांधी जी ने सत्याग्रह शुरू किया था, लेकिन आज हम चम्पारण की चर्चा इसलिए करने जा रहे हैं, क्योंकि वहां के एक स्कूल में बच्चों को छिपकली वाली खिचड़ी खिलाई गई है और हमारे 80 बच्चे बीमार हो गये हैं।

आज से 93 साल पहले जब गांधी जी ने यहां की धरती से देश की आज़ादी के लिए सत्याग्रह शुरू किया होगा, तो क्या उनके जेहन में ये बात रही होगी कि जब देश आज़ाद हो जाएगा, उसके 64 साल बाद भी बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए दोपहर के खाने का लालच देना पड़ेगा?

शायद गांधी जी ने ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा होगा। और कम से कम ये तो बुरे से बुरे सपने में भी नहीं सोच पाए होंगे कि उस दोपहर के भोजन में भी हमारे सिस्टम में बैठे भ्रष्ट लोगों की मेहरबानी से बच्चों को खाने की बजाय ज़हर की आपूर्ति की जाएगी।

चम्पारण के मेहसी प्रखंड के सलेमपुर मध्य विद्यालय में बच्चों को छिपकली वाली खिचड़ी खिलाया जाना बताता है कि कुछ भ्रष्ट लोगों का पेट पूरे देश का खाना हजम करके भी नहीं भरने वाला, वरना वो छोटे-छोटे मासूम बच्चों के निवाले में बेशर्म भ्रष्टाचार का ऐसा नमूना पेश नहीं करते।

जब देश का संविधान बनाया गया था तो उसमें ये लक्ष्य रखा गया था कि संविधान लागू होने के 10 साल के भीतर 14 साल से कम उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी और बाल-मजदूरी को बिल्कुल खत्म कर दिया जाएगा।

लेकिन आज 64 साल के बाद भी न तो सभी बच्चों को शिक्षा दी जा सकी, न बाल मजदूरी खत्म की जा सकी, लेकिन यह ज़रूर हो रहा है कि भ्रष्ट लोग उन बच्चो के कल्याण के नाम पर भी ऐसी योजनाएं बनाते हैं, जिनमें अपनी सात पुश्तों के लिए लाखों-करोड़ो का घपला किया जा सके।

इस बेशर्म व्यवस्था ने पढ़ाने के नाम पर बच्चों के हाथ में सरकारी कटोरा थमा दिया है। ज़ाहिर है, इस तरीके से न तो उन्हें शिक्षा मिल पा रही है, न उनका स्वाभिमान ज़िंदा रह पाता है और भ्रष्ट लोग न सिर्फ उनके करियर, बल्कि उनकी ज़िंदगी से भी खिलवाड़ करते रहते हैं।

इस देश में एक सोची-समझी साजिश के तहत सरकारी स्कूलों को कमज़ोर किया जा रहा है, और शिक्षा माफिया को बढ़ावा दिया जा रहा है, क्योंकि ज्यादातर शिक्षा माफिया किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े होते हैं।

चंपारण के स्कूल में ज़हरीली खिचड़ी खाकर 80 बच्चों के बीमार होने से सिर्फ एक दिन पहले एक ख़बर जहानाबाद से भी आती है, जहां 10 मजदूर ज़हरीला सत्तू खाकर काल के गाल में समा जाते हैं। इन दोनों घटनाओं से सरकारी अस्पतालों की भी पोल खुल गई।

जहानाबाद की घटना में 10 में से 5 लोग इसलिए मरे क्योंकि उन्हें वहां के सदर अस्पताल में उनका इलाज नहीं हो सका और उन्हें पटना के पीएमसीएच रेफर कर दिया गया और वक्त पर इलाज नहीं मिल पाने की वजह से रास्ते में उनकी मौत हो गई।

हमने बार-बार कहा है कि देश के अस्पतालों में उचित इलाज नहीं मिल पाने की वजह से जो मौतें होती हैं, वह मौत नहीं, बल्कि व्यवस्था द्वारा की जाने वाली हत्याएं हैं, लेकिन दुर्भाग्य ये कि इन हत्याओं के लिए हम किसी पर हत्या का मुकदमा भी नहीं चला सकते।

कभी-कभी ऐसा लगता है कि गांधी जी आज अगर ज़िंदा होते, तो उनके दुश्मन उन्हें गोलियों से नहीं मारते, बल्कि उन्हें भी ज़हरीला सत्तू या ज़हरीली खिचड़ी खिला देते, जैसा कि जहानाबाद और चंपारण में हमारे ग़रीब मज़दूरों और बच्चों के साथ हुआ है।

अभिरंजन कुमार,लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आर्यन टीवी में कार्यकारी संपादक हैं।

No comments:

Post a Comment