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Wednesday, June 6, 2012

संघ का मोहरा बनते भाजपा नेता

संघ का मोहरा बनते भाजपा नेता



अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के समय संघ प्रचाराक पर भाजपा के कई नेताओं ने पैसा मांगने का आरोप लगाया था, जिसमें पंजाब के एक प्रचारक पर वहां के पूर्व विधायक ने टिकट की पैरवी के लिए 25 लाख रुपये की मांग की थी...

प्रदीप सिंह

भाजपा  में नेतृत्व का संकट और आपसी कलह गहराता जा रहा है.लंबे समय से पार्टी में नंबर वन बनने की होड़ लगी है.हर नेता एक दूसरे को पिछाड़ने में लगा है.इसके लिए वह पार्टी के अनुशासन और संगठन की नैतिकता की धज्जिया उड़ता दिख रहा है.राजनीतिक हलको में इसे आपसी कलह का नाम दिया जाता रहा है, लेकिन  इस कलह की असली वजह संघ परिवार है.वह आरएसएस जो अपने को गैर राजनीतिक संगठन बताता है,  अब उसके अधिकारियों ने भी  राजनैतिक महत्वाकांक्षा पाल रखी है.इसके लिए वे भाजपा में मौजूद बौने कद के नेताओं पर दांव लगाकर उनको नंबर वन घोषित कराने की फिराक में हैं.संघ नेताओं की इसी योजना ने भाजपा में घमासान मचा रखा है.
 
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आजादी के  बाद से ही इस संगठन की कार्यप्रणाली और तत्कालीन जनसंघ (अब भाजपा ) से संबंधों को लेकर सवाल उठते रहे हैं.तब यह सवाल विरोधी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से उठते थे.लेकिन अब भाजपा और संघ एक दूसरे की कार्य प्रणाली को लेकर सवाल करने लगे हैं.भाजपा को बौद्धिक खुराक और पार्टी को अनुशासन में रखने के लिए निष्ठावान और पूर्णकालिक कार्यकर्ता संघ मुहैया कराता रहा है.

राजनीति में भाजपा की जमीनी और वैचारिक आधार संघ तैयार करता रहा है.पहले भाजपा संघ से अपना सीधा संबंध नकारता रहा.लेकिन समय-समय पर भाजपा और संघ एक दूसरे से गर्भ नाल का संबंध बताते रहे हैं.दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा कहती है कि जो संबंध जल और कमल का होता है.वहीं संबंधभा जपा और संघ का है.लेकिनभा जपा और संघ का यह संबंध अब गुटों में बंटता जा रहा है.जल और कमल एक साथ सूखने के कगार पर है.लंबे समय से नेतृत्वहीनता से जूझ रहीभा जपा का अब संघ से रिश्तो ंमें तल्खी देखने को मिल रही है.

भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ ही सूबे के क्षत्रप कई गुटों में बंटे देखे जा रहे हैं.नरेंद्र मोदी, वसुंधरा राजे और येदियुरप्पा का मामला सामने है.तीनों नेताओं के सामने कई बार शीर्ष नेतृत्व घुटने टेकता रहा और ये नेता पार्टी नेतृत्व की खिल्ली उड़ाते रहे.पहले तो इसका कारणभा जपा के अंदर की समस्या बतायी जाती रही.लेकिन यह समस्या पार्टी के बाहर से आयी है.समाज सेवा का बाना ओढ़े संघ के कार्यकर्ताओं के मन में भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पनपने लगी है.अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए खुद तो वे सामने नहीं आ रहे हैं.बल्किभा जपा के अंदर मौजूद अपने प्यादे पर दांव लगा रहे हैं.जिसके कारणभा जपा के अंदर भूचाल आ गया है. 

संघ से जुड़े विश्वस्त सूत्रों का कहना है किभा जपा के अंदर जो लोग शीर्ष नेतृत्व को ठेंगे पर रख रहे हैं.उनको संघ के उच्च अधिकारियों का समर्थन प्राप्त है.ऐसे नेता हर मौके पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नीचा दिखाने का काम कर रहे हैं.सूत्रों का कहना है कि संघ का शीर्ष नेतृत्व ही दो गुटों में बंटा है.जिसनेभा जपा के अंदर अपना मजबूत लॉबी तैयार कर लिया है.भा जपा के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी सर संघचालक मोहनभा गवत की पसंद हैं.वहीं पर मदनदास देवी भी भा जपा और संघ में मजबूत पकड़ रखते हैं.दोनों संघ अधिकारियों में एक दूसरे को लेकर अविश्वास तो नहीं है, लेकिन किसी भी   मुद्दे पर दोनों के राग अलग-अलग देखने को मिलते हैं.

सूत्रों का कहना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर मदनदास देवी का ही वरदहस्त है.इसके साथ ही वसुंधरा राजे भी इसी खेमे की मानी जाती है.सबसे बड़ी बात यह है किभा जपा के दूसरी पंक्ति के नेताओं में प्रधानमंत्री बनने की चाह बलवती हो गयी है.नितिन गडकरी स्वयं भी इस दौड़ में अपने को शामिल होने की औपचारिक घोषणा भ ले न किए हों लेकिन 2014 तक वह अपने को इसके लिए तैयार कर रहे है.इसीलिए मोहनभा गवत के इशारे पर नितिन गडकरी पी मुरलीधर राव,धमेंद्र प्रधान और जेपी नड्ढा जैसे कम अनुभ वी नेताओं को आगे बढ़ाकर अपनी फौज बनाना चाह रहे हैं.जो 2014 में उनके लिए सेनापति की भूमिका निभा सके.
 
हिंदुत्व के लिए आजीवन संघ से जुड़े प्रचारकों को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं.अब संघ प्रचारक अपनी राजनीतिक और व्यक्तिगत महत्वकांक्षा कोभा जपा के नेताओं के माध्यम से पूरा करना चाह रहे हैं.चुनाव के समय संघ प्रचारकों का खेल सामने आने लगा है. अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के समय संघ प्रचाराक पर भाजपा के कई नेताओं ने पैसा मांगने का आरोप लगाया था, जिसमें पंजाब के एक प्रचारक पर वहां के पूर्व विधायक ने टिकट की पैरवी के लिए 25 लाख रुपये की मांग की थी. 

इसी तरह से बिहार में संघ से जुड़े कई नेताओं  पर आरोप है कि वे छोटे-छोटे लाभ के  पार्टी नेताओं के लिए इस्तेमाल होते रहते हैं.लिए  संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है किभा जपा के अंदर जब अटल,आडवाणी और जोशी  जैसे नेताओं का नेतृत्व था तो  संघ के अंदर प्रो. राजेंद्र सिंह 'रज्जू भैया'और बाला साहब देवरस जैसे शख्सियत विराजमान थे. उनके द्वारा कही गयी बातभा जपा और संघ के लिए  वेद वाक्य हुआ करता था.उन लोगों का पहला और अंतिम लक्ष्य  देश में हिंदुत्ववादी शक्तियों को मजबूत करना था. 

उस दौर मेंभा जपा और संघ के नेता  किसी मुद्दे पर वैचारिक मतभेद के बावजूद टकराव की कौन कहे सार्वजनिक बयान तक नहीं देते थे.लेकिन उसके बाद संघ औरभा जपा  में बौने कद के नेतृत्व ने सब किए पर पानी फेर फेर दिया. दोनों के बीच आपसी समझदारी की दीवार कमजोर होती गयी.संघ ने कई मुद्दों परभा जपा के शीर्ष नेताओं को एक झटके में अपना फैसला मानने के लिए बाध्य किया.

सबसे पहलेभा जपा और के बीच टकराव वाजपेयी शासनकाल में स्वदेशी के मुद्दे को लकर हुई.जिसमें संघ ने सरेआम अटल विहारी वाजपेयी सरकार की आलोचना की.इसके बाद मजदूर महासंघ के नेता दत्तोंपंत ठेंगणी ने उदारीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुद्दे पर अटल सराकर की तीखी आलोचना करते रहे.उस समय यह विरोध वैचारिक था.लेकिन अबभा जपा और संघ के रिश्तों में व्यक्तिगत मतभेद भी अहम बनते जा रहे हैं.

व्यक्तिगत पसंद और नापसंद के आधार पर राजनीतिक फैसले होने लगे  हैं.जिसके कारण दोनों संगठन एक दूसरे से दूर होते जा रहे  हैं।भा जपा और संघ के संबंधों को लेकर समय-समय पर विरोधी राजनीतिक दलभा जपा को निशाना बनाते रहे है।भा जपा और संघ कभी भी सीधे तौर पर एक दूसरे से संबंधित होने का दावा नहीं करते थे.सूत्रों का कहना है किभा जपा आज कहां खड़ी है इसको लेकर न सिर्फ पार्टी के अंदर बल्कि संघ में भी विचार विमर्श तेज हो गया है.

आंतरिक गुटबाजी की शिकारभा जपा को संघ बार-बार उबारने की कोशिश मे लगा है.लेकिन हर कोशिश नाकाम साबित हो रही है.सूत्रों का कहना है कि गुटबाजी न केवलभा जपा में है बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ खुद आंतरिक गुटबाजी की शिकार है.जिसके कारण संघ वि•िान्न धड़ेभा जपा के गुटों को समर्थन और विरोध करते रहते हैं.सही कारण है किभा जपा की गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है.सूत्रों का कहना है कि संघ खुलकर कभी भी राजनीति में नहीं आता है।
 
पहले वह भाजपा के माध्यम से ही अपने एजेंडे को लागू कराती थी.लेकिन अब वह पार्टी के अंदर अपने एजेंडे के आधार पर ही राजनीति करने लगी है.संघ के कई गुटों केभा जपा के अंदर अपने-अपने चहेते हैं.जिनको लेकर वे आपस में टकराते रहते हैं.संजय जोशी मामला इसका ताजा उदाहरण है.पार्टी के अंदर बागियों को संघ के एक मजबूत धड़े का समर्थन प्राप्त है.जिसके कारणभा जपा नेतृत्व ऐसे बागियों के पर कतरने से कतराती है.

संघ से जुड़े विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि 2012 मेंभा जपा कहा खड़ी है अगर इसका मूल्यांकन किया जाए,तो ऐतिहासिक घटनाक्रम में जाना होगा.जब हम जनसंघ को हीभा जपा  मानकर उसका मूल्यांकन करते हैं तो  जनसंघ के पहले नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के व्यक्तित्व को देखना होगा.मुखर्जी का कद पं नेहरू के समकक्ष था.ऐसा उनके विरोधी भी मानते थे.उनके अचानक देहांत के बाद जनसंघ नेतृत्वविहीन हो गया.उसके बाद जनसंघ का नेतृत्व दीन दयाल उपाध्याय के हाथों आया.उपाध्याय के समय जनसंघ और संघ का संबंध बहुत ही सहज था. तीसरा दौर  1968-73 के बीच का है.उस समय संघ और जनसंघ में आपसी द्वंद्व था.उसी तरह की स्थिति आज है. 

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बादभा जपा नेतृत्व के अंदर एक नए किस्म का राजनीतिक उबाल शुरू हुआ है.यह बहस तेज हो गई है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में शीर्ष पद के लिए मोदी चेहरा बनते हैं, तो इसका क्या नफा- नुकसान रहेगा .राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 24 - 25 मई को मुंबई में हुई थी.बैठक की औपचारिक शुरुआत के पहले ही संघ के चहेते माने जाने वाले नेता संजय जोशी को इस्तीफा देना पड़ा था.

पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पिछले साल जोशी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया था.इसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौर में संगठन प्रभारी की भी भूमिका दे दी थी.संजय जोशी का इस्तीफाभा जपा और संघ के अंदर की गुटबाजी का ताजा मिशाल है.सूत्रों का कहना है कि राजनाथ सिंह,अरुण जेतली और नरेंद्र मोदी ने संजय जोशी के खिलाफ जमकर लांबिंग की.इसमें नितिन गडकरी अकेले पड़ गए.जिसके कारण जोशी को कार्यकारिणी से इस्तीफा देना पड़ा.  
 
pradeep-singhप्रदीप सिंह सांध्य दैनिक 'डीएलए' में संवाददाता हैं.   

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