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Saturday, June 23, 2012

राजनीति के एजंडे से गायब रूपया

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राजनीति के एजंडे से गायब रूपया

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राजनीति के एजंडे से गायब रूपया
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सत्तावर्ग के सर्वाधिनायक प्रणव मुखर्जी का राष्ट्रपति बनना तीनों राजनीतिक गठबंधनों यूपीए, एनडीए और वाम में फूट के साथ तय तो​​ हो गया, पर अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण नहीं दीख रहे। ऐसा लग रहा है राष्ट्रपति चुनाव के कारण राजनीति के एजेण्डे से रूपया गायब हो गया है। प्रणव की अगुवाई में भारत के आर्थिक प्रबंधकों ने यह हाल ​​कर दिया, जिसकी सूरत बदलने के आसार नहीं है। रुपये में लगातार 5 दिन से गिरावट जारी है और आज इसने गिरावट का नया स्तर छू लिया। डॉलर के मुकाबले रूपया 57 रूपये के नये रिकार्ड को भी पार कर गया है।

इंपोर्टरों की ओर से डॉलर की बढ़ती मांग और शेयर बाजार से निवेशकों के पैसे निकालने की वजह से रुपये की कमजोरी बढ़ी है।। पिछले 3 दिन में रुपया 75 पैसे कमजोर हो चुका है। डॉलर के मुकाबले दूसरी मुद्राएं भी कमजोर हुई हैं और इसकी वजह से भी रुपये को कहीं से सहारा नहीं मिल पा रहा है।यूरोप में स्पेन को लेकर शुरू हुई चिंताओं ने एक बार फिर डॉलर को मजबूती दी है। भारतीय करेसी रुपया शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले 57.12 के रेकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। इससे पहले रुपया इसी माह के शुरू में डॉलर के मुकाबले 56.52 के रेकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा था। वैश्विक बाजारों के असर और आयातकों की तरफ से डॉलर की बढ़ी मांग ने रुपये में मंदी का दूसरा दौर शुरू कर दिया है।

जानकारों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की घरेलू वजहें रुपये की कीमत को नीचे ले जाने में ज्यादा बड़ी भूमिका तय कर रही हैं। माना जा रहा है कि ऐसा भारतीय मुद्रा की अंतर्निहित कमजोरी के चलते हो रहा है। वैसे तो शेयर बाजार में पिछले दो हफ्ते से विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] का प्रवाह भी लगातार बना हुआ है। दो सप्ताह में एफआइआइ ने 389 करोड़ रुपये बाजार में डाले हैं। इसके बावजूद रुपये की कीमत गिर रही है। रुपये की कीमत में कमजोरी का रुख अभी और बने रहने का अनुमान है।

सबसे बड़ी बुरी खबर यह है कि भारतीय कंपनियों के 5 अरब डॉलर के एफसीसीबी के भुगतान में डिफाल्ट का खतरा मंडराने लगा है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कहा है कि 48 भारतीय कंपनियों में से केवल 5 कंपनियां ही एफसीसीबी का का भुगतान करने में सक्षम दिखाई दे रही हैं, बाकी कंपनियों के डिफॉल्ट होने का खतरा है। साल 2012 में 500 करोड़ डॉलर के एफसीसीबी मैच्योर हो रहे हैं जो कन्वर्ट नहीं हो पाएंगे। एसएंडपी के मुताबिक करीब 24 कंपनियों को तो डिफाल्ट से बचने के लिए एफसीसीबी रीस्ट्रक्चर कराना पडे़गा। एसएंडपी के अनुसार शेयर बाजार में तेज गिरावट और रुपये में अब तक करीब 30 फीसदी की कमजोरी ने इन कंपनियों को तगड़ा झटका दिया है। जिसके चलते कंपनियां एफसीसीबी भुगतान के मामले में डिफॉल्ट हो सकती हैं।शेयर बाजार और रुपये में गिरावट ने भारत में अमीरों के पोर्टफोलियो को भारी नुकसान पहुंचाया है। कैपजैमिनी और आरबीसी वैल्थ मैनेजमेंट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 में भारत में अमीरों की संख्या सबसे ज्यादा 18 फीसदी घटी है।

साल 2011 में भारत में अमीरों की संख्या घटकर कुल 1,25,050 रह गई है। ये गिरावट उस वक्त आई है जब दुनिया में रईसों की संख्या 0.75 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 1.10 करोड़ के पार पहुंच गई है। यही नहीं दक्षिण कोरिया ने भारत को पछाड़ कर सूची में 12वें स्थान पर कब्जा भी कर लिया है।दरअसल ये वो लोग हैं जिनके पास डॉलर में 5.5 करोड़ रुपया निवेश के लिए हमेशा मौजूद होता है। ऐसे में शेयर बाजार में गिरावट और रुपये में कमजोरी ने रईसों के पोर्टफोलियो की हवा निकाल दी है। इस सूची में सबसे पहले पायदान पर अमेरिका का कब्जा बरकरार है।हालांकि अमेरिका में भी अमीरों की संख्या 1.25 फीसदी घटकर 3,068 पर पहुंच गई है। 1,822 अमीरों के साथ जापान दूसरे नंबर पर है। जापान में पिछले साल आए जबरदस्त भूकंप के बावजूद यहां अमीरों की संख्या में 4.75 फीसदी का इजाफा हुआ है।

बहरहाल वित्त मंत्रालय का निजाम बदलने की उम्मीद से शेयर मार्केट के सेंटिमेंट में सुधार हुआ है। और पिछले 12 महीनों में शायद पहली बार बाजार में ऐसा बदलाव नजर आया है। ब्रोकरों और फंड मैनेजरों पर किए ईटी के एक पोल में यह बात निकलकर सामने आई है। बाजार यह उम्मीद कर रहा है कि प्रणव मुखर्जी के प्रेजिडेंट बनने के बाद जो नया वित्त मंत्री आएगा वह आर्थिक सुधारों को बढ़ावा देगा। फंड मैनेजर और एनालिस्ट यहां तक दावा कर रहे हैं कि दिसंबर तक सेंसेक्स में 23.5 फीसदी तक की तेजी आ सकती है। ईटी के इस पोल में 20 ब्रोकर और फंड मैनेजर शामिल हुए थे। इनमें से दो लोगों का मानना था कि सेंसेक्स 20,000 का लेवल पार कर सकता है। जबकि 11 की राय थी कि 31 दिसंबर तक सेंसेक्स 17,000 से 19,000 के बीच ट्रेड कर रहा होगा। इस पोल के नतीजे ईटी के पिछले तीन पोल के नतीजों से बिल्कुल उलट हैं।

पिछले नतीजों में ज्यादातर ब्रोकर और फंड मैनेजर माकेर्ट को लेकर नेगिटिव थे। पोल के प्रतिभागी सेंसेक्स में तेजी आने की उम्मीद तो कर रहे हैं लेकिन ऊंची ब्याज दर, तेज महंगाई और यूरोजोन संकट को देखते हुए इसके बहुत ज्यादा ऊपर जाने पर दांव नहीं लगा रहे हैं। वहीं, निवेशकों की एक बड़ी चिंता इस सीजन में कम बारिश होने की आशंका है। हालांकि, इन सबके बीच एक अच्छी बात यह है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है। अमेरिकी फेडरेल के यह फैसला लेने के बाद कि वह कोई राहत पैकेज नहीं देगा गुरुवार को क्रूड की कीमतों में गिरावट आई, और इसी के साथ यह अक्टूबर के बाद अपने सबसे निचले स्तर पर चला आया।

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