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Sunday, July 22, 2012

प्रणब मुखर्जी बने देश के 13वें राष्ट्रपति

प्रणब मुखर्जी बने देश के 13वें राष्ट्रपति

Sunday, 22 July 2012 14:02

नयी दिल्ली, 22 जुलाई (एजेंसी) रायसीना हिल्स प्रणब मुखर्जी के स्वागत को तैयार है। प्रणब को आज देश का नया राष्ट्रपति चुन लिया गया। उनके हिस्से सात लाख 13 हजार 763 मत मूल्य आये जबकि भाजपा समर्थित प्रतिद्वंद्वी पी ए संगमा को तीन लाख 15 हजार 987 मत मूल्य हासिल हुए ।
प्रणब को जीत के लिए बधाई देने के साथ संगमा ने ऐसे संकेत दिये हैं कि वह इन नतीजों को अदालत में चुनौती दे सकते हैं । आदिवासी कार्ड खेल रहे संगमा को उनके क्षेत्र पूर्वोत्तर के राज्यों से भी निराशा हाथ लगी है ।
देश का अगला राष्ट्रपति चुने जाने के बाद प्रणब ने आज कहा कि देश भर से मिले समर्थन के लिए वह सभी के आभारी हैं ।
प्रणब ने अपने आवास के बाहर संवाददाताओं से कहा, '' पूरे देश से मुझे जबर्दस्त समर्थन मिला है जिसके लिए मैं सभी का आभारी हूं । ''
उन्होंने कहा, '' मेरे पांच दशक के राजनीतिक जीवन में जितने लोगों ने मुझे सहयोग और समर्थन किया है उन सभी को मैं धन्यवाद देता हूं । ''
प्रणब ने कहा कि राष्ट्रपति के रूप में संविधान का संरक्षण और उसे बचाना उनकी जिम्मेदारी होगी । संगमा द्वारा बधाई दिये जाने की खबर पर प्रणव ने कहा कि वह संगमा का भी धन्यवाद करते हैं ।
इस महीने की 19 तारीख को हुए चुनाव में 776 सासंदों में से 748 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जिसमें से प्रणब को 527 और संगमा को 206 सांसदों ने मत दिया । सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सहित 15 सांसदों के मत अयोग्य करार दिये गये ।
मौजूदा राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को 1000 सैनिकों की सलामी के साथ बुधवार 25 जुलाई को विदाई दी जाएगी और प्रणब संसद के केन््रदीय कक्ष में नये राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे जिसके बाद वही 1000 सैनिक अपने नये '' मुख्य सेनापति '' को सलामी देंगे ।
जीत के साथ प्रणब मुखर्जी देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर 13वें व्यक्ति और 14वें राष्ट्रपति होंगे। डा. राजेन््रद प्रसाद दो बार इस पद के लिए चुने गए थे।
प्रणब के जीत के लिए जादुई आंकड़ा पार होने की घोषणा के कुछ समय बाद ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी महासचिव राहुल गांधी ने प्रणब दा को उनके मौजूदा 13 तालकटोरा रोड स्थित आवास पर जाकर बधाई दी। बधाई देने वालों में कई राजनीतिक दल, सांसद, विधायक, केन््रदीय मंत्री, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव आदि शामिल थे ।
उनके पुत्र अभिजीत मुखर्जी ने पिता की जीत पर कहा, ''उन्हें : प्रणब को : अपनी जीत का विश्वास शुरू से ही था और वह राष्ट्रपति के रूप में अपनी भूमिका साबित करेंगे। उन्हें इस बात का अफसोस नहीं है कि वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाये लेकिन अब वह राष्ट्रपति बने हैं जो समान रूप से और संवैधानिक रूप से सर्वोच्च पद है । ''

भारत और भारतीयता के तानेबाने को पूरी तत्परता और तार्किकता से समझने में सक्षम राजनीति के शब्दकोश, सत्ता के गलियारों में मान्य संकटमोचक, प्रशासक और दलों की सीमा के पार अपनी स्वीकार्यता के संवाहक प्रणब कुमार मुखर्जी के देश का राष्ट्रपति चुने को सुखद संकेत ही माना जाएगा ।
दलीय सीमाओं से परे उनकी स्वकार्यता ने ही विपक्षी गठबंधन राजग में राग द्वेष खडे हो गये और जद-यू शिवसेना जैसे धुर विरोधी उनके समर्थन में उनके सिरहाने खडे हैं । और तो और अरूण जेटली जैसे प्रखर विरोधी भी जब उनकी तुलना क्रिकेट के योद्धा सर डान ब्रैडमैन से से करने लगे तो यह संतोष हो जाता है कि देश में शीर्ष संवैधानिक पद प्रथम नागरिक और अपना सर्वोच्च सेनापति वाकई सक्षम और सुधि हाथों में है ।
राष्ट्रपति पद की चुनावी दौड में शुरूआत से ही कई उतार चढाव देखने को मिले । संप्रग की प्रमुख घटक तृणमूल कांग्रेस ने काफी ना नुकुर के बाद अंतत: प्रणब की उम्मीदवारी पर समर्थन दे दिया । उधर राजग के घटक जदयू और शिवसेना ने भी मुखर्जी का समर्थन किया।
भले ही प्रणव दा को महज विरोध के लिए विरोध के नाम पर पी ए संगमा से मुकाबला करना पडा हो पर उनका अनुभव उनको जीत के लिए बहुत पहले आश्वस्त कर चुका था । तभी तो उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें राष्ट्रपति भवन का लॉन काफी पसंद है। ''मुझे सुबह टहलने की आदत है। मैं अपने लॉन में 30..40 चक्कर लगाता हूं। राष्ट्रपति भवन का लॉन काफी बड़ा है। किसी को इतने चक्कर लगाने की जरूरत नहीं होगी।''
वह पहली बार 1969 में राज्यसभा के लिए चुने गए। एक बार राज्यसभा की ओर गए तो कई वषो' तक जनता के बीच जाकर चुनाव नहीं लड़ा। सियासी जिंदगी में करीब 35 साल बाद उन्होंने लोकसभा का रुख किया। 2004 में वह पहली बार पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय क्षेत्र से चुने गए। 2009 में भी वह लोकसभा पहुंचे।
अस्सी के दशक में प्रधानमंत्री पद की हसरत का इजहार करने के बाद उन्होंने कांग्रेस से बगावत कर दी थी। बाद में वह फिर से कांग्रेस में आए और सियासी बुलंदियों को छूते चले गए।
अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश मामलों पर पैनी पकड रखने वाले 77 वर्षीय प्रणब सियासत की हर करवट को बखूबी समझते हैं। यही वजह रही कि जब भी उनकी पार्टी और मौजूदा संप्रग सरकार पर मुसीबत आई तो वह सबसे आगे नजर आए। कई बार तो ऐसा लगा कि सरकार की हर मर्ज की दवा प्रणव बाबू ही हैं।

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