प्रणव की हैसियत को लेकर यूपीए में मारामारी,राहुल की ताजपोशी की तैयारी के बीच निवेशकों में घबड़ाहट!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
आउटलुक की कवरस्टोरी में ओबामा को अंडरएचीवर करारा देकर मनमोहन की छवि सुधारने की कवायद शुरू हो गयी है। कारपोरेट इंडिया भी उनके हक में खुलकर बोलने लगा है।टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने देश में विपरीत आर्थिक हालात के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दोषी ठहराए जाने को गलत बताया है। उन्होंने ट्वीट किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को साहस के साथ सही फैसले करने की जरूरत है जिससे सरकार के प्रति लोगों का भरोसा बहाल हो सके। संसद के मानसून सत्र में आर्थिक सुधारों के लिए जरूरी तमाम कानून पास करने की तैयारी हो गयी है। अब सत्ता वर्ग अन्य माध्यमों के अलावा मोबाइल क्रांति के जरिए भी खुला बाजार के हक में जनमत बनाने लगा है। आर्थिक सुधारों से ही आर्थिक विकास, इस आशय का एसएमएस अभियान थोक भाव से शुरू हो गया है। पर गार और जीएसटी मामलों में सरकार को बुरी तरह फंसा गये प्रणव दादा की हैसियत को लेकर मारामारी से युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी का मजा किरकिरा गया है।राष्ट्रपति चुनाव के बहाने कांग्रेस के पक्ष में बना फीलगुड राकांपा ने खत्म कर दिया है।गठबंधन सरकार चलाने के कांग्रेसी तौर-तरीकों पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के 'गंभीर एतराज' जताने के कारण संप्रग सरकार के मतभेद सतह पर आ गए. राकांपा अध्यक्ष एवं कृषि मंत्री शरद पवार तथा भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल के अपने मंत्रालय नहीं जाने से उनके इस्तीफे की अटकलों को और बल मिला। जिसका सीधा असर निवेशकों की आस्था पर होने लगा है। राष्ट्रपति चुनाव में जो ध्रूवीकरण हुआ, क्षत्रपों की मारामारी से वह तेजी से बिखरने लगा है और कोई लीपापोती काम नहीं आ रही।एनसीपी सूत्रों के अनुसार, पार्टी का मानना है कि अगर उसे सरकार के भीतर पूरा सम्मान नहीं मिला तो भी वह यूपीए से नहीं हटेगी, लेकिन सरकार छोड़ सकती है। कहा यह भी जा रहा है कि पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राहुल के साथ कैबिनेट में जगह दिलाना चाहते हैं। एनसीपी अगाथा संगमा को मंत्रिमंडल से हटा सकती है।राष्ट्रपति चुनाव के बहाने अपने लिए सबसे ज्यादा संकट पैदा करने वाली सहयोगी ममता बनर्जी को अलग-थलग करने में कामयाब रही कांग्रेस को राकांपा ने एक झटके में ही जमीन पर ला दिया। पवार के तेवरों से हैरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जहां पवार के साथ बैठक की, वहीं, प्रधानमंत्री समेत पूरी पार्टी उन्हें मनाने में जुट गई। साथ ही पूरे मसले पर विचार के लिए कोर कमेटी में भी मंत्रणा हुई।
बड़ी भूमिका के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के तैयार होने के साथ ही केंद्रीय मंत्रिमंडल और संगठन में बदलाव की राह तय हो गई है। इस बदलाव में राहुल गांधी की राय बेहद अहम होगी। पार्टी के ज्यादातर नेताओं में कांग्रेस महासचिव के करीब दिखने की होड़ इसी आस में है कि वे अब टीम राहुल में भी पहले की तरह ताकतवर बने रहें।बड़ी भूमिका में आने को लेकर अपनी पार्टी और देश भर में उठ रहे सवालों पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने विराम लगा दिया है। राहुल गांधी ने गुरुवार को साफ कर दिया वह इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिए कि उनके सामने पार्टी और संगठन दोनों में ही बड़ी भूमिका निभाने के विकल्प मौजूद हैं। सरकार की साख पर उठते सवाल और आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए माना जा रहा है कि राहुल संगठन की जगह सरकार में कोई पद संभाल सकते हैं। इस पर पार्टी में अभी विचार किया जा रहा है।अगर राहुल गांधी संगठन की जगह सरकार में शामिल होते हैं तो एक संभावना है कि उन्हें डेप्युटी पीएम बना दिया जाए। इसके पीछे तर्क यह है कि इससे जहां राहुल को सरकार चलाने का सीधा अनुभव मिलेगा, वहीं पीएमओ में रहकर वह सरकार व सहयोगी दलों के साथ संपर्क रख सकते हैं। अगर राहुल को डेप्युटी पीएम बनाया जाता है तो पार्टी के सामने लोकसभा में नेता सदन का संकट भी निपट जाएगा।कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। कांग्रेस सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि राहुल गांधी को सरकार के बजाय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। राहुल गांधी को ये जिम्मेदारी सितंबर में सौंपी जा सकती है।सूत्रों का कहना है कि सितंबर में मॉनसून सत्र के समाप्त होने के बाद कांग्रेस और सरकार में बडे़ बदलाव होंगे। हालांकि राहुल गांधी सरकार में शामिल नहीं होंगे। लेकिन वो संभावना के मुताबिक कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर काम करेंगे। साथ ही लोकसभा में सदन का नेता सुशील कुमार शिंदे को बनाया जा सकता है। प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नेता, लोकसभा के पद से इस्तीफा दे दिया था।
सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में राजनीतिक अनिश्चितता का नया दौर शुरू होने से निवेशकों की घबराहटपूर्ण बिकवाली से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 120 अंक नीचे आ गया। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ऋण पुनर्गठन नियमों को भी कड़ा बनाने की तैयारी कर रहा है, जिससे बाजार की धारणा प्रभावित हुई।सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया [सेल] में अपनी हिस्सेदारी कम करने का फैसला सरकारी विनिवेश की गाड़ी को फिलहाल आगे नहीं बढ़ा पाएगा। आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ने की सरकार की इस मुहिम को शेयर बाजार के हालात ब्रेक लगा सकते हैं। बाजार के जानकारों का मानना है कि शेयर बाजार के जरिए सेल की करीब 11 प्रतिशत इक्विटी बेचने के फैसले पर अमल में अभी वक्त लगेगा। बाजार की मौजूदा चाल ने सबको असमंजस में डाल दिया है। इस उतार-चढ़ाव वाले बाजार में निवेशकों और ट्रेडर्स के लिए सही फैसले ले पाना मुश्किल हो रहा है। हालांकि आर्थिक सुधारों की आस में बाजार बहुत ज्यादा नीचे का रुख तो नहीं कर रहे हैं। लेकिन ऊपर की ओर भी भरोसेमंद नहीं लग रहे हैं। मौजूदा समय में भारतीय बाजार निवेश के लिए लिहाज से बेहतर दिखाई दे रहे हैं। वहीं विदेशी संस्थागत निवेशक(एफआईआई) भारतीय बाजारों में अच्छा पैसा लगा रहे हैं। क्योंकि इस समय एफआईआई के पास भारतीय बाजारों के अलावा दूसरे देशों के बाजारों में निवेश के ज्यादा मौके नहीं है। ऐसे में लंबी अवधि के नजरिए से भारतीय बाजार सकारात्मक दिखाई दे रहे हैं। हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के बाद सरकार को आर्थिक सुधारों के लेकर अहम कदम उठाने हैं। लेकिन मौजूदा राजनीतिक हालात सरकार के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हैं। बाजारों को आर्थिक सुधारों का सहारा मिल जाता है तो बाजार हर साल 18-22 फीसदी की रफ्तार से बढ़ते नजर आएंगे। साथ ही अगले 3 साल में भारतीय बाजार दोगुना होने का अनुमान है, यानी निफ्टी करीब 10,000 और सेंसेक्स 35,000 तक के स्तर अगले 3 साल में छू सकते हैं। सप्ताह का अंतिम कारोबारी दिन शुक्रवार देश के शेयर बाजारों के लिए शुभ नहीं रहा। सुबह कारोबार के शुरुआत से ही शेयर बाजारों में गिरावट का रुख देखने को मिला और शाम को कारोबार बंद होने तक गिरावट का यह रुख बना रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 120.41 अंकों की गिरावट के साथ 17158.44 पर बंद हुआ। जबकि निफ्टी 37.60 अंकों की गिरावट के साथ 5205.10 पर बंद हुआ। सेंसेक्स ने दिन के कारोबार के दौरान 17275.20 के ऊपरी और 17129.69 के निचले स्तर को छुआ।बाजार में गिरावट बढ़ती दिख रही है। निवेशकों द्वारा की जा रही बिकवाली के चलते बाजार में करीब 0.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिल रही है।
यूपीए सरकार जहां एक तरफ कड़े आर्थिक फैसले लेने के संकेत दे रही है, वहीं दूसरी तरफ वह कुछ राहत देने वाले फैसले भी ले रही है। शुक्रवार को पेट्रोलियम मंत्रालय ने पेट्रोल पंपों के आवंटन में अति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत रिजर्वेशन देने की घोषणा की। यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू होगा।इसका मतलब है कि अब जब भी पेट्रोल पंपों का आवंटन किया जाएगा, उसमें 27 प्रतिशत ओबीसी को दिए जाएंगे। अब तक पेट्रोल पंपों के आवंटन में एससी/एसटी को 21 प्रतिशत, पूर्व सैनिकों को 5 प्रतिशत, महिलाओं को 5 का रिजर्वेशन देने का प्रावधान था। इसमें सैनिकों की विधवाएं प्रमुख रूप से शामिल हैं। अब इसमें ओबीसी भी जुड़ गया है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने कहा, ओबीसी को पेट्रोल पंप का आवंटन भी लॉटरी के जरिये ही किया जाएगा। इसमें पारदर्शिता बरती जाएगी। अधिकारी के अनुसार, ऐसा देश के संविधान के प्रावधानों के तहत किया गया है। एक सवाल के जवाब में अधिकारी ने कहा, ओबीसी को पेट्रोल पंपों को रिजर्वेशन देने पर लंबे वक्त से विचार चल रहा था। यह मामला काफी समय से पेट्रोलियम मंत्रालय में विचाराधीन था।
दूसरी ओर, वर्करों की हिंसा में जीएम (एचआर) की मौत और 100 से ज्यादा कर्मचारियों के घायल होने के बाद मारुति सुजुकी यहां अपने प्लांट को कुछ समय के लिए बंद करने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, कंपनी ने प्लांट को गुजरात शिफ्ट करने की संभावना से इनकार किया है। कंपनी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (ऐडमिनिस्ट्रेशन) एस.वाई. सिद्दीकी ने कहा कि कंपनी मानेसर में लंबे समय तक काम करना चाहती है, लेकिन कुछ समय के लिए हम कुछ विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जिनमें लॉकआउट भी शामिल है।मारुति सुजुकी इंडिया के एमडी शिंजो नाकानीशी ने कहा कि हरियाणा में निवेश के लिए हम कमिटेड हैं। मानेसर में यूनिट-सी के विस्तार, रोहतक में रिसर्च फैसिलिटी और गुड़गांव में डीजल इंजन प्लांट पर काम चलता रहेगा। हरियाणा के इंडस्ट्री सेक्रेटरी वाई.एस. मलिक ने कहा कि यह तालाबंदी नहीं है। पहले उन्हें अपने हालात नॉर्मल करना जरूरी है। उन्होंने मारुति में हिंसा का प्रदेश में निवेश पर बुरा असर पर पड़ने की संभावना से इनकार किया और कहा कि यह छिटपुट घटनाएं हैं। मानेसर प्लांट में कामकाज शुक्रवार को भी ठप रहा। हालांकि तैयार कारों को डिस्पैच किया गया।
उधर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी संडे से 5 दिन की जापान यात्रा पर जा रहे हैं। वह वहां मारुति सुजुकी के टॉप अफसरों से भी बात करेंगे। चर्चा है कि मोदी गुजरात में मारुति की प्रॉडक्शन कैपेसिटी बढ़ाने पर भी बात करेंगे।
इसी बीच दूरसंचार पर गृह मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाले अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह (ईजीओएम) ने आज 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी की कीमत दूरसंचार नियामक ट्राई की ओर से सुझाए गए आरक्षित मूल्य से कम करने की सिफारिश की है। माना जा रहा है कि देश भर के लिए 5 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए आरक्षित कीमत 14,000 से 16,000 करोड़ रुपये करने की बात कही गई है।ट्राई ने 18,110 करोड़ रुपये आधार मूल्य का सुझाव दिया था लेकिन ईजीओएम ने इसमें तकरीबन 20 फीसदी की कमी की सिफारिश की है। इसका मतलब है कि 1 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम का आधार मूल्य 2,800 से 3,200 करोड़ रुपये होगा, जबकि ट्राई ने 3622 करोड़ रुपये का सुझाव दिया था। हालांकि इस बारे में अंतिम निर्णय कैबिनेट को करना है। कैबिनेट की बैठक अगले हफ्ते संभव है।
स्पेक्ट्रम पर बनी ईजीओएम की बैठक खत्म हो गई है। बैठक में स्पेक्ट्रम के बेस प्राइस, यूसेज चार्जेस और भुगतान की शर्तों पर चर्चा हुई।टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल का कहना है कि तीनों पर मुद्दों पर ईजीओएम अपनी सिफारिशें कैबिनेट को भेजेगा। कपिल सिब्बल के मुताबिक कैबिनेट ही अंतिम फैसला लेगा।सूत्रों के मुताबिक ईजीओएम स्पेक्ट्रम की बेस प्राइस 14000-15000 करोड़ रुपये तय करने के पक्ष में है। जबकि ट्राई ने रिजर्व प्राइस 18000 करोड़ रुपये रखने की सिफारिश दी थी।वहीं, माना जा रहा है कि यूसेज चार्ज में बढ़ोतरी नहीं की जाएगी। यूसेज चार्ज मौजूदा स्तर पर बने रहेंगे।सूत्रों के मुताबिक ईजीओएम ने स्पेक्ट्रम के लिए किश्तों में भुगतान करने को मंजूरी दी है। कंपनियों को स्पेक्ट्रम की कुल कीमत का 33 फीसदी पहले साल में चुकाना होगा।इसके बाद कंपनियों को 2 साल की रियायत दी जाएगी। बाकी रकम चौथे साल से 10 सालाना किश्तों में देनी होगी।
ईजीओएम के इस कदम से उन जीएसएम ऑपरेटरों को थोड़ी राहत मिल सकती है, जो ट्राई की सिफारिशों का विरोध कर रहे थे और कॉल दरों में औसतन 44 से 60 पैसे प्रति मिनट बढ़ोतरी की बात कर रहे थे। बैठक के बाद संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, 'ईजीओएम में तीन मसलों पर विचार किया गया और इस बारे में हम अंतिम निर्णय के लिए कैबिनेट के पास सिफारिश भेजने जा रहे हैं।' हालांकि उन्होंने इस बारे में ब्योरा देने से मना कर दिया। ईजीओएम ने ट्राई की सिफारिश के आधार पर स्पेक्ट्रम के लिए किस्तों में भुगतान के विकल्प पर भी सहमति जताई है। हालांकि इस बारे में भी अंतिम निर्णय कैबिनेट को ही करना है। वित्तीय मामले में नरमी से यूनिनॉर जैसे ऑपरेटरों को कुछ राहत मिल सकती है। स्पेक्ट्रम इस्तेमाल शुल्क पर ईजीओएम ने ट्राई की सिफारिश को दरकिनार करते हुए मौजूदा स्पेक्ट्रम इस्तेमाल शुल्क 3 से 6 फीसदी रखने पर सहमति जताई है।उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत 31 अगस्त तक 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी की प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार को आधार मूल्य पर जल्द निर्णय लेना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार को दूसरी बार समय सीमा में बढ़ोतरी के लिए उच्चतम न्यायालय से अनुमति लेनी होगी। इस साल फरवरी में उच्चतम न्यायालय ने 122 स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द करने का फैसला सुनाया था और दूरसंचार विभाग से जून तक नए सिरे से नीलामी करने को कहा था। लेकिन बाद में नीलामी की समयसीमा 31 अगस्त तक के लिए बढ़ा दी गई थी।
प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति भवन पहुंचने का रास्ता भले ही साफ हो गया है लेकिन सरकार में उनकी जैसी हैसियत हासिल करने के मुद्दे पर कांग्रेस राकांपा प्रमुख शरद पवार के जाल में फंस गई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को लिखे खत में कहा है कि उनकी पार्टी सरकार से बाहर होना चाहती है। उन्होंने पार्टी कार्यों पर ध्यान देने के लिए यह इच्छा जताई है। हालांकि पवार ने सोनिया व प्रधानमंत्री को आश्वासन दिया है कि वह संप्रग का हिस्सा बने रहेंगे। उधर कांग्रेस कोर ग्रुप ने राकांपा की शिकायतों पर चर्चा की। साथ ही पार्टी सूत्रों ने दावा किया कि मामला शांत हो गया है। पवार ने सरकार एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के कामकाज पर अपनी पार्टी की चिंता तथा सहयोगियों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अवगत करा दिया है। राकांपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कल रात प्रधानमंत्री के साथ पवार का संवाद प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दों पर कांग्रेस द्वारा सहयोगी दलों की उपेक्षा पर केंद्रित रहा।सरकार में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता व केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने शुक्रवार को कहा कि जिस तरह सरकार चलाई जा रही है, उससे उनकी पार्टी नाराज थी लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।सूत्रों के मुताबिक, पवार के सामने नंबर दो विवाद पर तीन मंत्रियों की समिति बनाने का प्रस्ताव रखा गया है, जो प्रधानमंत्री की गैरमौजूदगी में फैसले लेगी। इसमें एंटनी, प्रणब की जगह बनने वाले लोकसभा में सदन के नेता और शरद पवार को शामिल करने का प्रस्ताव है। काग्रेस किसी भी हाल में नंबर दो की हैसियत सहयोगी दल को नहीं देना चाहती है। बताया जा रहा है कि पवार की असली बेचैनी महाराष्ट्र के ही सुशील कुमार शिदे को लोकसभा में नेता सदन बनाए जाने की योजना से है।
मनमोहन सिंह कैबिनेट में प्रणव को अघोषित तौर पर मिली नंबर-2 की जगह न मिलने से कृषि मंत्री शरद पवार नाराज हैं। सूत्रों के मुताबिक, पवार और एनसीपी के कोटे से दूसरे केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया है। संकट बढ़ता देख कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सीधे इसकी बागडोर संभाल ली और पवार को शुक्रवार सुबह मिलने के लिए बुलाया। पवार, सोनिया से मिलने 10 जनपथ अपनी सरकारी गाड़ी में नहीं बल्कि अपनी बेटी की निजी कार में गए। हालांकि, इस मुलाकात में भी कोई बात नहीं बनी। बताया जा रहा है कि एनसीपी ने अपने तेवर कड़े करते हुए फैसला किया है कि जब तक विवाद सुलझ नहीं जाता है पार्टी के मंत्री दफ्तर नहीं जाएंगे।करीब आधे घंटे तक सोनिया से बातचीत के बाद पवार अपने घर चले गए। दोनों की बातचीत को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सूत्रों के मुताबिक, सोनिया गांधी ने पवार के सामने सुलह का फॉर्म्युला रखा है। इसके तहत तीन मंत्रियों की कमिटी बनाने के प्रस्ताव रखा गया है, जो पीएम की गैरमौजूदगी में फैसले लेगी। इस कमिटी में रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी, प्रणव की जगह बनने वाले लोकसभा में सदन के नेता और शरद पवार को शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है। कांग्रेस किसी भी हाल में नंबर दो की हैसियत सहयोगी दल को नहीं देना चाहती है। बताया जा रहा है कि पवार, सुशील कुमार शिंदे को लोकसभा में नेता सदन बनाए जाने की योजना से भी नाराज हैं। पवार को लगता है कि शिंदे उनसे जूनियर हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं।
सोनिया से मुलाकात के बाद पवार ने एनसीपी नेताओं से विचार-विमर्श किया। बताया जा रहा है कि एनसीपी को कांग्रेस का फॉर्म्युला मंजूर नहीं है। मीटिंग के बाद प्रफुल्ल पटेल ने मीडिया को बताया कि हमने यूपीए सरकार के कामकाज के तरीके और गठबंधन में रिश्ते को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मीडिया में नंबर-2 की हैसियत को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके मुताबिक, कांग्रेस के कुछ नेता बेवजह इस तरह के विवाद को तूल दे रहे हैं। पटेल ने कहा कि पवार देश के कद्दावर नेता हैं और वह लोकसभा में सोनिया के बाद बैठते हैं। इसी से उनकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह और पवार अभी भी सरकार का हिस्सा हैं, तो उन्होंने केवल इतना कहा कि एनसीपी यूपीए में है। एनसीपी की अगली बैठक अब सोमवार को होगी, जिसमें आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
राकांपा प्रमुख शरद पवार की नाराजगी की वजहों में वरिष्ठता क्रम भले ही सबसे ऊपर हो, लेकिन यह आग बहुत दिनों से सुलग रही थी, जिसमें कई प्रमुख मामले शामिल थे। सरकार के भीतर कृषि व खाद्य संबंधी उनके उठाए मुद्दों को तरजीह न मिलने से भी पवार बेहद खफा थे।
खाद्य सुरक्षा विधेयक के कुछ प्रावधानों पर कृषि मंत्री शरद पवार की आपत्तियां हैं, जिसे सरकारी फोरम पर वह उठाते रहे हैं। लेकिन सरकार में उनकी बातों को तवज्जो नहीं मिली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को समय-समय पर उन्होंने खत भी लिखा। किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज करने को लेकर उन्होंने वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और खाद्य मंत्री केवी थामस की खुलेआम कड़ी आलोचना की।
कृषि उत्पादों के निर्यात से प्रतिबंध उठाने को लेकर सरकार की हीलाहवाली से पवार इतने नाखुश थे कि उन्होंने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद प्रधानमंत्री ने पवार के साथ अपने वरिष्ठ मंत्रियों को लेकर बैठक की। पवार के दबाव में सरकार ने कपास, दूध पावडर, प्याज, गेहूं और चीनी निर्यात का रास्ता खोल दिया। पवार ने इस फैसले में देरी से होने वाले नुकसान का विस्तार से जिक्र किया था।
खाद्य सुरक्षा विधेयक पर कृषि मंत्री ने चार चुनौतियों पर सरकार का ध्यान दिलाया था, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। उनके उठाए सवाल कुछ यूं हैं। विधेयक के लिए इतनी भारी सब्सिडी कहां से आएगी? इतने खाद्यान्न की उपलब्धता साल दर साल कैसे और कहां से होगी? घरेलू जिंस बाजार का क्या होगा? 70 फीसदी अनाज सरकार खरीद लेगी तो स्वतंत्र जिंस बाजार का ढांचा चरमरा जाएगा। पवार ने 1972-73 के उस सरकारी फैसले की याद दिलाई थी, जिसमें खाद्यान्न बाजार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। लेकिन सरकार को अपना यह फैसला जल्द ही वापस लेना पड़ा। इस आशय का पत्र उन्होंने जुलाई 2011 में लिखा था। इसके अलावा पवार का कहना था कि कृषि में निवेश को लेकर सरकार की चुप्पी उचित नहीं है। किसानों को वैधानिक तौर पर किसी प्रोत्साहन का प्रावधान नहीं किया जा रहा है।
पिछले रबी सीजन से ही पवार ने सरकार को गेहूं निर्यात खोल देने की सलाह दी थी। कई मर्तबा खत भी लिखा। निर्यात का फैसला इस साल मई में हुआ, जो उचित नहीं है। अब निर्यात के लिए सब्सिडी देनी पड़ रही है। यही मौका है जब पवार सारे मुद्दे निपटा लेना चाहते हैं।
पवार की प्रमुख मांगें
1. राकांपा नेता तारिक अनवर को राज्यसभा में उपसभापति बनाया जाए
2. उन्हीं की पार्टी के जनार्दन वाघमारे को राज्यपाल बनाया जाए।
3. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण को अपनी कार्यशैली बदलने को कहा जाए। आरोप है कि वह राकांपा नेताओं को भरोसे में लिए बगैर फैसले कर रहे हैं।
4. शरद पवार ने केंद्र में खाद्य मंत्रालय छोड़ दिया था, लेकिन उसके एवज में कोई भरपाई नहीं की गई।
5. प्रफुल्ल पटेल भी खुद को भारी उद्योग मंत्रालय दिए जाने से असंतुष्ट हैं।
6. सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति व नियुक्ति संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति में शरद पवार को रखा जाए।
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