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Monday, July 9, 2012

'समर्थन सिर्फ बहुगुणा को'

'समर्थन सिर्फ बहुगुणा को'
http://www.thesundaypost.in/10_06_12/rajniti.php

'समर्थन सिर्फ बहुगुणा को'
   
 
किरण मंडल का जन्म १२ सितंबर १९५० को पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में हुआ। १९५२ में शरणार्थी के रूप में भारत के पश्चिम बंगाल आए। सात साल बाद पलायन कर १९५९ में ऊआँामसिंहनगर के शक्तिफार्म में आकर बस गए। वर्ष २००३ से २००८ तक मंडल नगर पंचायत शक्तिफार्म के अध्यक्ष और २००९ में भाजपा के जिला
 

उपाध्यक्ष बने। बंगाली कल्याण समिति उत्तराखण्ड के दो बार निर्विरोध वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। विआँाानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर सितारगंज से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। हाल में भाजपा और विधायक सीट छोड़करघ्कांग्रेस में शामिल हुए किरण मंडल से 'दि संडे पोस्ट' के रोमिंग एसोसिएट एडीटर आकाश नागर की बातचीतः

   
  भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाने का क्या कारण रहा?
   
  भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाने का एकमात्र कारण बंगाली समाज को उसका अधिकार दिलाना है। पिछले ४०-४५ सालों से बंगाली समाज भूमिधरी अधिकार मांग रहा था। लेकिन नहीं मिला। अब वह मिल रहा है। मैंने ऐसा काम कर दिया है, जिसे आने वाली पीढ़ी याद करेगी। भूमिधरी अधिकार को दिलवाने के लिए मैंने पूर्व में राज्य की भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे कोश्यारी-खण्डूड़ी और निशंक तीनों से कहा था। सभी लालीपॉप देते रहे। यह मुद्दा हम तब से उठा रहे हैं, जब से दिनेशपुर वालों को यह अधिकार मिला था। असली आंदोलन उत्तराखण्ड बनने के बाद शुरू हुआ। २००० में जब भाजपा की अंतरिम सरकार थी तब भी हमने इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन किया। २००७ में जब भाजपा की सरकार बनी उस वक्त विधानसभा चुनाव के समय भाजपा ने तराई में बंगालियों को भूमिधरी अधिकार देने का वादा अपने द्घोषणा पत्र में किया था। लेकिन तीनों ही मुख्यमंत्रियों ने वादा नहीं निभाया। क्षेत्र में बंगाली समाज की ३३ हजार वोट हैं। ९० हजार की आबादी वाले बंगालियों को उनका भूमिधरी अधिकार मिल रहा है तो यह उनके लिए सबसे बड़ी खुशी है।
   
  मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से आपको मिलाने में किसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही?
   
  सितारगंज के कांग्रेस नेता भूपेश उपाध्याय और यशपाल आर्य की। दोनों ने पहले मुझसे बात की। मैंने उनके सामने क्षेत्र की समस्या को रखा तो उन्होंने मुझे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मिलाने का वादा किया। जिसको उन्होंने पूरा भी किया।
   
  भाजपा के नेता कह रहे हैं कि आपका कांग्रेस ने अपहरण किया और आपसे जबरन इस्तीफा दिलवाकर पार्टी ज्वाइन कराई है।
   
  नहीं ऐसा नहीं है। मेरा कोई अपहरण नहीं हुआ है। मैं कांग्रेस के साथ गया हूं तो सिर्फ इस शर्त के पर कि बंगाली समाज को उनका भूमिधरी का वह अधिकार दिलाया जाए जिसे समाज के लोग पिछले ४० साल से मांग रहे हैं। मैं देहरादून में अपने एक दोस्त के साथ रहा तथा सभी लोगों से बराबर फोन पर सम्पर्क करता रहा। इसमें अपहरण जैसी कोई बात नहीं और न ही कुछ जबरन कराया गया।
   
  क्षेत्र में इस बात की चर्चा है कि आपको कांग्रेस में शामिल करते समय बड़ी 'डील' की गई?
   
  कोई डील-वील नहीं हुई। इस मामले पर मुझे कोई बयान भी नहीं देना, जो बात हुई ही नहीं उस पर मैं क्यों बोलूं। सिर्फ एक ही बात हुई और वह बंगाली समाज के हित की बात है। हमने साथ ही बहुगुणा जी को यह भी विश्वास दिलाया है कि बंगाली समाज आपके इस अहसान को नहीं भूलेगा और आपको सितारगंज से जितवाकर इस अहसान का बदला चुकाएगा।
   
  चर्चा यह है कि आपकी इस 'कुर्बानी' पर कांग्रेस आपको
लालबत्ती का इनाम देने का मन बना रही है?
   
  लालबत्ती की बाबत मेरी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से कोई बात नहीं हुई। किसी अन्य कांग्रेसी नेता से भी मैंने ऐसी इच्छा जाहिर नहीं की है। हालांकि क्षेत्र से लोगों के फोन आ रहे हैं कि आपने अपनी विधायकी छोड़ी है तो कोई सम्मान तो मिलना ही चाहिए। यह मैं मुख्यमंत्री पर छोड़ता हूं कि वह लोगों की भावनाओं का कितना सम्मान करते हैं।
   
  आपकी सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। आपके द्घर पुलिस तैनात है।
   
  हां, यह सही है। क्षेत्र के कुछ भाजपा नेता मेरी जान के दुश्मन बन गए हैं। हालांकि मेरे पास किसी भाजपा नेता का कोई ऐसा धमकी भरा फोन नहीं आया है। मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे समाज के लोग मेरी तरफ आने वाले किसी खतरे को आगे नहीं बढ़ने देंगे।
   
  सितारगंज शायद प्रदेश का ऐसा पहला विधानसभा क्षेत्र है जहां डिग्री कॉलेज तक नहीं है। इससे क्षेत्र में शिक्षा का स्तर निरंतर गिर रहा है?
   
  यह पूरे सितारगंज विधानसभा क्षेत्र के लोगों की सबसे बड़ी समस्या है। चुनाव में मैंने इस समस्या को सबसे प्रमुखता पर रखा। लोगों से वादा किया है कि अपने कार्यकाल में डिग्री कॉलेज का निर्माण जरूर कराऊंगा। इस वादे को मैं पूरा करूंगा। इसके लिए मुझे शक्तिफार्म और सितारगंज के लोगों से भी बात करनी है। दोनों क्षेत्रों के लोगों की सहमति से ही डिग्री कॉलेज के लिए स्थान चयनित किया जायेगा।
   
  सिरसा-सिडकुल मार्ग सितारगंज और शक्तिफार्म में बाशिंदों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। एक साल पूर्व इसके लिए धन भी जारी हो गया बावजूद इसके यह मार्ग अभी तक अधूरा है?
   
  इसके बारे में मैंने जिलाधिकारी से चर्चा की है। डीएम ने कहा है कि पैसा अवयमुक्त नहीं हुआ है। इस संबंध में मैंने एडीबी सचिव से भी बात की है। उसने मुझसे पूछा है कि कार्य कहां होना है। अगर इसके लिए धन जारी हो चुका है तो कार्य हर हालत में होगा।
   
  इस क्षेत्र में बाढ़ की समस्या बहुत बड़ी है। पहाड़ से बरसात का पानी आकर यहां इकट्ठा हो जाता है जो सिडकुल तक को भी लपेटे में ले लेता है?
   
  बेगुल नदी और कैलाश नदी की बाढ़ से सितारगंज ही नहीं शक्तिफार्म भी प्रभावित होता है। सितारगंज की जमीन नष्ट हो रही है। जमीन को बचाने के लिए साइड पिचिंग, बंधा स्टैंड (ठोकर) लगाकर उस पानी के बहाव को रोका जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। बरसात के मौसम में हर साल यहां जमीनें तालाबों में परिवर्तित हो जाती हैं।
   
  आपके क्षेत्र में सिडकुल है, लेकिन बेरोजगारी कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसके लिए क्या योजना है?
   
  इसका सबसे बड़ा कारण सिडकुल में ठेकेदारी प्रथा का होना है। यहां एक मजदूर को २०० रुपया प्रति दिन मिलता है, लेकिन ठेकेदार उन्हें १५० रुपये देते है। १२ द्घंटे लेबर से काम लिया जाता है। जबकि इसको ८ द्घंटे होना चाहिए। कंपनी के माध्यम से
बेरोजगारों की नियुक्ति होनी चाहिए। उद्योग धंधों में ७० प्रतिशत स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार देने का वादा किया गया। लेकिन उनको आज तक पूरा नहीं किया गया है।
   
  अगर बहुगुणाजी सितारगंज से चुनाव नहीं लड़े और कांग्रेस ने यहां से किसी अन्य को टिकट दे दिया तो ऐसे में आपकी क्या भूमिका रहेगी?
   
  मेरा समर्थन सिर्फ बहुगुणा को है। बहुगुणाजी के अलावा किसी दूसरे ने यहां से चुनाव लड़ा तो हम उसके जीतने की कोई गारंटी नहीं देंगे और न ही हम किसी दूसरे प्रत्याशी के लिए कार्य करेंगे।
   
  विकास, रोजगार या भत्ता!
   
 
उत्तराखण्ड सरकार के शिक्षित बेरोजगारों को भत्ता देने के निर्णय ने कई आशंकाओं को भी जन्म दे दिया है। मसलन हजार-पांच सौ की राशि दो-चार साल के लिए किसी युवा को दे भी दी जाए तो इससे क्या उसका भविष्य संवर पाएगा? इसके साथ ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने संकेत दिये हैं कि युवाओं को भत्ता देने के लिए विधायकों की विकास निधि में कटौती की जा
  सकती है। यानी विकास की कीमत पर भत्ता। गौरतलब है कि राज्य में अभी विधायकों को सालाना २ ़५ करोड़ रुपये की विकास निधि दी जाती है। इस हिसाब से ७० विधानसभा क्षेत्रों में सालाना १७५ करोड़ की विकास निधि दी जाती है। बेरोजगारों को भत्ता देने के लिए सालाना १५० करोड़ रुपये चाहिए। अब सोचने की बात यह है कि आखिर सरकार विकास निधि में किस हद तक कटौती करेगी? यदि युवाओं को १५० करोड़ की राशि विकास निधि में कटौती कर दी जाती है तो फिर विकास का क्या होगा? खासकर पहाड़ के उन दूरगामी क्षेत्रों के लोगों को सरकार क्या धैर्य बंधाएगी जो देश की आजादी के वक्त से विकास की बाट जोह रहे हैं। बहरहाल विपक्ष के साथ ही सत्ता में शामिल बसपा विधायकों ने भी विकास निधि में कटौती पर प्रतिक्रिया करनी शुरू कर दी है। निर्दलीय विधायक भी शायद ही इस फैसले को पचा पाएं। उत्तराखण्ड के युवाओं का दुर्भाग्य ही रहा है कि राज्य गठन के बाद यहां बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। लेकिन सरकारें बेरोजगारों के आक्रोश को शांत करने के लिए ऐसी नीतियां अपनाती रही हैं, जो मजाक बनकर रह गई। सन्‌ २००२ में निर्वाचित राज्य की पहली कांग्रेस सरकार ने बेरोजगारी हटाने के नाम पर बनाई 'वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ेंेंस्वरोजगार योजना' के तहत ऋण हासिल करने के लिए इतनी कठिन शर्तें लाद दी कि पहाड़ का आम युवा इसका चाहकर भी फायदा नहीं उठा सका। इसी तरह राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो स्कूलों में शिक्षा मित्र और शिक्षा बंधु बनाकर युवाओं को कहीं का नहीं छोड़ा गया। उन्हें न तो पेट भरने लायक वेतन दिया गया और न ही नियमित किया गया। शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर लगभग हर विभाग में वर्षों से युवा संविदा पर काम करने को विवश हैं। युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने से कहीं अधिक बेहतर होगा कि सरकार प्रदेश में रोजगार के अवसर सृजित करे। सरकार में इच्छा शक्ति हो तो आज की जरूरत के हिसाब से रोजगार के तमाम अवसर पैदा किये जा सकते हैं। इतना ही नहीं दर्जनों ऐसे परंपरागत लद्घु उद्योग हैं जिन्हें बहुत कम खर्च पर शुरू कर युवाओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है। कभी उत्तराखण्ड में कुशल शिल्पकार हुआ करते थे। लोहे, तांबे, लकड़ी, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियां बनाने में उनका कोई सानी नहीं था। क्या राज्य सरकार भूमंडलीकरण के इस दौर में इन कलाकारों के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकती है? दुर्भाग्यवश राज्य में विकास और रोजगार की गलत परिभाषाएं दी जाती रही हैं। स्वयं को राज्य के कर्णधार बताने वाले बिजली परियोजनाओं के निर्माण की वकालत यह कहकर करते रहे हैं कि इनमें युवाओं को रोजगार मिलेंगे। लेकिन परियोजनाओं में रोजगार मिलने की असलियत यह है कि श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के लिए जिन गांवों की भूमि ली गई, वहां के युवाओं को चार-पांच हजार रुपये की मामूली और अस्थायी नौकरियों पर रखा गया है। परियोजना का कार्य पूरा होने बाद वे कहां जाएंगे? औद्योगिक विकास के लिए स्थापित सिडकुल की इकाइयों में युवाओं का रोजगार दिलाने में सरकारें इच्छा शक्ति क्यों नहीं दिखा पाई है? कायदे से यहां विशेष आर्थिक पैकेज का लाभ उठा रही इकाइयों को राज्य के ७० प्रतिशत युवाओं को रोजगार देना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। जिन इकाइयों में थोड़े बहुत युवा काम कर भी रहे हैं, तो वहां श्रम कानूनों का जमकर उल्लंद्घन हो रहा है। कर्मचरियों के शोषण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को इस संबंध में प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखना पड़ा। इसलिए बेरोजगारी भत्ता देने के साथ ही राज्य सरकार इस बारे में गंभीरता से सोचे कि रोजगार के अधिक से अधिक अवसर कैसे विकसित किये जाएं। कहीं सरकार का यह बेरोजगारी भत्ता मजाक न बनकर रह जाए।
   
  उत्तराखण्ड में युवाओं को दो-चार साल के लिए हजार-पांच सौ रुपए की राशि दे देने से उनका जीवन नहीं चल सकता। इसलिए उन्हें बेरोजगारी भत्ते से कहीं अधिक जरूरत रोजगार उपलब्ध कराने की है

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