Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Monday, February 25, 2013

मजदूरों को एक सिरे से देश का घाटा कराने और असुविधा में डालने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. पर किसी अखबार या समाचार चैनल ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया कि देशभर के लगभग 40 करोड़ मजदूरों को आज तक कितना घाटा, कितनी असुविधा हुई...

मजदूरों को एक सिरे से देश का घाटा कराने और असुविधा में डालने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. पर किसी अखबार या समाचार चैनल ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया कि देशभर के लगभग 40 करोड़ मजदूरों को आज तक कितना घाटा, कितनी असुविधा हुई... 

हड़ताल पर जाने से पहले


मजदूरों को एक सिरे से देश का घाटा कराने और असुविधा में डालने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. पर किसी अखबार या समाचार चैनल ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया कि देशभर के लगभग 40 करोड़ मजदूरों को आज तक कितना घाटा, कितनी असुविधा हुई... 

गायत्री आर्य

घोटालों की सूची में पांच बड़े घोटालों की रकम कुल 5,73,191.34 करोड़ (वीवीआईपी हैलिकाप्टर घोटाला 3,600 करोड़, कोयला आवंटन घोटाला 1,85,591.34 करोड़, वक्फ बोर्ड जमीन घोटाला 2,00,000 करोड़, टूजी घोटाला 1,76,000 करोड़, कामनवैल्थ गेम्स घोटाला 8,000 करोड़) बैठती है. कुछ दिन पहले हुई दो दिन की देशव्यापी हड़ताल से 26 हजार करोड़ का घाटा होने की बात ऐसोचैम ने कही है.

strike-indian-trade-union

आश्चर्य कि 5,73,191.34 करोड (सिर्फ पांच घोटालों!) का घाटा झेलकर तो देश बिना चूं किये चल रहा है, लेकिन 26 हजार करोड़ का घाटा देश और देशवासियों को कितना हलकान किये दे रहा है! अर्थव्यवस्था, विकास दर, सरकार, पूंजीपति, सारी पार्टियां, मीडिया, आम आदमी, जसमें की मजदूर शामिल नहीं है, असल में वे तो कहीं भी नहीं हैं हमारी नजर में!, उद्योग धंधे, कारखाने, हर कोई परेशान है. लाखों-करोड़ों के घोटालों का घाटा झेलकर देश चल सकता है तो 26 हजार करोड़ का नुकसान क्यों नहीं झेल सकता?

सकल घरेलू उत्पाद को हुए नुकसान और आम आदमी को हुई परेशानी की मीडिया और सरकार को बहुत चिंता है, लेकिन करोड़ों मजदूरों को 66 सालों में हुए नुकसान और परेशानी का अंदाजा किसी ने नहीं लगाया. आखिर उसकी भरपाई कौन करेगा.

अधिकांशतः अखबारों, खबरिया चैनलों, पत्रिकाओं में हड़ताल के कारण देश को, अर्थव्यवस्था को, घरेलू उत्पाद को हुए घाटे की चर्चा एक स्वर में चल रही है. कब-कब किस-किस हड़ताल से देश को कितना घाटा हुआ है, सब खबरिया चैनलों, अखबारों के पास इसके आंकड़े हैं. कोई हड़ताल हुई नहीं कि अगली-पिछली सारी हड़तालों से हुए घाटों के आंकड़े सामने पेश कर दिये जाते हैं.

मजदूरों और कर्मचारियों को एक सिरे से देश का घाटा कराने और पूरे देश के लोगों को असुविधा में डालने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. पर आज तक किसी अखबार या समाचार चैनल ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया कि देशभर के लगभग 40 करोड़ मजदूरों को आज तक कितना घाटा हुआ, कितनी असुविधा हुई?

कुल कितने नवजात शिशु और माएं सही इलाज, डॉक्टर व दवा के अभाव में मर गए? कुल कितने बच्चे और युवा हैं जो अच्छी शिक्षा, सुविधा और मौके के अभाव में अच्छी नौकरियों तक नहीं पहुंच सके? कितने आदमी-औरत, लड़के-लड़कियां, बच्चे-बूढ़े, युवक, किशोर हर साल भरपेट खाना, साफ पानी, दवा के अभाव में तो कभी बाढ़, सूखे, ठंड और गर्मी के चलते बस यूं ही सालोंसाल मरते जा रहे हैं? कितने सपने, नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें और अरमान हैं जो पेट भरने की मजबूरी के कारण हमेशा कुचले गए हैं? कितने हैं जो मामूली बीमारियों तक से नहीं लड़ पाए और मर गए? इनके होली, दिवाली, ईद, क्रिस्मस और नया साल किस मायूसी और फीकेपन से बीतते हैं, इसकी खबर मीडिया कभी नहीं देता.

इन सबके आंकड़े कौन देगा, कौन रखेगा इसका हिसाब? हर रोज अखबार और समाचार चैनलों पर सोने-चांदी और सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव की विस्तार से खबर आती है. पूरे देश के मजदूरों की खुशियों का ग्राफ किस तेजी से गिर रहा है और समस्याओं, तकलीफों व आक्रोश का ग्राफ किस तेजी से बढ़ रहा है, इसकी खबर कोई नहीं देता.

किसी भी स्तर पर इस हड़ताल को इस तरह से सामने नहीं लाया गया कि आज तक इन करोड़ों मजदूरों ने हमारी खातिर, देश की खातिर, विकास की खातिर, चुपचाप अपनी बुनियादी जरूरतों को छोड़ा है, सुविधाओं को अनदेखा किया है. आज वे अपनी सुविधाएं तो दूर सिर्फ बुनियादी जरूरतों के लिए सामने आए हैं, तो हमे दो दिन असुविधा मोल लेकर उनके हक की लड़ाई में मौन समर्थन देना चाहिए था.

क्या आज तक खाता-पीता मध्य वर्ग, युवा वर्ग, पैसे वाले लोग, मीडिया कभी इन 40 करोड़ लोगों की बुनियादी जरूरतों के लिए सड़कों पर उतरा है. कभी नहीं! क्या कभी इनके लिए किसी पार्टी ने सदन का बहिष्कार किया है. किसी पार्टी ने मजदूरों-किसानों के समर्थन में संसद में हो-हल्ला किया है. सारी पाटिर्यों को अपने-अपने वोटबैंक की पड़ी है.

किसी को हिन्दू की पड़ी है, किसी को मुस्लिमों की पड़ी है, किसी को दलितों की पड़ी है, किसी को किसी की, किसी को किसी की. महिला संगठनों को औरतों की पड़ी है, वह भी पता नहीं किन और कितनी औरतों की? किसान-मजदूरों के हित उनके एजेंडे में हो सकते हैं अभी तक ऐसा उन्हें नहीं लगता. कुल मिलाकर मजदूरों और किसानों की किसी को नहीं पड़ी.

तमाम वामपंथी पार्टियां जो खुद को मजदूरों का मसीहा मानती हैं, उनकी भी औकात मजदूर वर्ग देख ही चुका. सिर्फ लाल झंडा उठाने और बातें बनाने से कुछ नहीं होता...66 साल कम नहीं होते हैं किसी समस्या से लड़ने के लिए...पूरा देश तो छोड़ दें, क्या कोई एक भी राज्य या जिला वामपंथी संगठन ऐसा बना सके हंै, जहां के मजदूरों के जीवन को पूरे देश के मजदूर अपना आदर्श बना सकें?

असल में मजदूरों और गरीबों की कोई जात नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता. इसी कारण ये किसी के नहीं हैं. हमारे यहां सारी पार्टियां और प्रमुख संगठन धर्म, जाति आधारित, लिंग आधारित, अर्थ आधारित हैं. वामपंथी पार्टियां खुद को विचार-विचारधारा आधारित प्रचारित करती हैं, पर व्यवहार में ये कभी भी अपने विचार/विचारधारा का व्यापक सार्थक प्रभाव साबित नहीं कर सके. मजदूर वर्ग चाहकर भी सबसे पहले हिंदू-मुसलमान, दलित-सवर्ण नहीं बन सकता. वे सबसे पहले मजदूर हैं और रहेंगे....यही मजबूरी उनकी ताकत बन सकती है क्योंकि वे संख्या में सबसे ज्यादा हैं!

हिंसा कैसी भी हो, उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता. मजदूरों ने जो हिंसा की वह भी किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराई जा सकती. आम आदमी और मीडिया दोनों ही मजदूरों द्वारा की गई हिंसा को काफी कोस रहे हैं, लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि क्या हिंसा सिर्फ वही है जो मजदूरों ने की? क्या पूरे देश कीसरकारों द्वारा जो घोटाले, जल-जंगल और जमीन के अवैध कब्जे किये जा रहे हैं, जन विरोधी नीतियां बनाई जा रही हैं, वह हिंसा नहीं है? देश की आबादी के सबसे बड़े हिस्से को उसकी मूलभूत जरूरतों से वंचित रखना हिंसा नहीं हैं? आम आदमी की गाढ़ी कमाई को अपनी पैसे की हवस शांत करने में फूंक देना क्या हिंसा नहीं है? किसान, मजदूरों और गरीबों की घोर तकलीफ की कीमत पर पैसे वालों को सुविधा देना हिंसा नहीं है?आम आदमी की बुनियादी चीजों को किनारे करके अपने लिए हरसंभव सुख-सुविधा जुटाना हिंसा नहीं है?

क्या हिंसा और हत्या सिर्फ वही है, जो परेशान लोग घोर हताशा और विकल्पहीनता में करते हैं? हिंसा और हत्या सिर्फ वही नहीं है जो एक झटके में हुई है और जो आम आदमी ने की है. हिंसा और हत्या वह भी है जो धीरे-धीरे हलाल करके सरकारें कर रही हैं! हिंसा और हत्या की भी तो नई परिभाषा गढ़े जाने की जरूरत है इस बदलते समय में. नहीं? वर्ष 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने और 14 फरवरी 2013 को कोलकाता हाईकोर्ट ने कहा कि यदि हड़ताल के दौरान संपत्ति को नुकसान होता है तो उसकी भरपाई हड़तालियों से ही की जानी चाहिए. जरूर की जानी चाहिए, लेकिन मजदूरों को हुए करोड़ों अरबों के नुकसान की भरपाई कौन करेगा? इस भरपाई कि जिम्मेदारी भी तो माननीय सुप्रीम कोर्ट को तय करनी चाहिए.

आजादी के बाद से सबसे बड़ी मानी जा रही मजदूरों की सिर्फ दो दिन की देशव्यापी हड़ताल से पूरा देश हांफ गया है. अब ठंडे दिमाग से उस दिन की तैयारी कीजिये, जब वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे....यदि हालात नहीं बदलते, जिसकी की बेहद कम संभावना है तो कोई आश्चर्य नहीं कि वे अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए भी एकजुट हो जाएं.

दो दिन में हमारा विकास रुक गया, करोड़ों का घाटा हो गया, विकास दर ठिठक गई, सुविधाएं लड़खड़ा गई, खुशियों का पारा गिर गया, सेंसेक्स लुढ़क गया, जश्न में खलल पड़ गया, योजनाएं धवस्त हो गई.....लेकिन उनके पास खोने के लिए विकास नहीं है, विकास दर नहीं है, संसेक्स नहीं है, सुविधाएं नहीं हैं, खुशियां नहीं है, योजनाएं नहीं हैं, जश्न नहीं है....!

उनके पास खोने के लिए सिर्फ भूख, तंगी, असुविधाएं, संत्रास, घुटन, बेचैनी, तकलीफ, यंत्रणा, आंसू और मजबूरी हैं...लेकिन हमारे पास, देश के पास, सरकारों के पास खोने के लिए उनसे कहीं ज्यादा है... वे अपना सबकुछ खोकर सिर्फ सुविधा, सुकून, हंसी, खुशी, और न्याय पाने की तरफ बढ़ेंगे और देशवासी व सरकारें अपना सबकुछ खोकर सिर्फ घोर असुविधा और तकलीफ की तरफ.....

gayatree-aryaगायत्री आर्य स्त्री मसलों की विश्लेषक हैं. 

http://www.janjwar.com/2011-06-03-11-27-02/71-movement/3721-strike-par-jane-se-pahale-janjwar

No comments:

Post a Comment