Himalayan Voice: Bamcef Unification
Reply of Abhinav Sinha on Dr. Teltumbde
डॉ. आनंद तेलतुंबड़े के स्पष्टीकरण "तथाकथित मार्क्सवादियों का रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी रवैया" पर हमें 'मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान' के संपादक अभिनव सिन्हा, का एक मेल सत्यम वर्मा जी की मार्फत मिला है। जो यथावत् यहाँ दिया जा रहा है-
"I am surprised to see the "clarification" of Mr. Anand Teltumbde! He has not even mentioned that he had withdrawn most of his allegations against us (for example, our being "casteist", etc), after our critique of his statement in the Seminar. In fact, Mr. Teltumbde, in his second statement, said that he agreed on most of the issues raised in the critique put forward by me and that he never said that he agrees with the views of Ambedkar and John Dewey! We are going to post the video of the entire debate between me and Mr. Anand Teltumbde, so that everybody could see how he revoked his charges and statements.
Secondly, about his statement regarding the 'grand failure of Ambedkar's experiments'. This was an unfortunate case of Hindi journalism. This statement made by Mr. Teltumbde in the course of his speech was highlighted out of context and then it went viral on the internet. However, he definitely said this, though in a different context. I would urge Mr. Teltumbde to comment on the video of the entire debate. We'll post it by tonight.
And I will also ask various "yellow" journalists, who are talking about "Communist giroh", etc and other crap, to listen carefully to what Mr. Teltumbde said in the seminar and what answers did he get, and stop wagging their tails in front of Deweyan Pragamatism of Ambedkar. There is no meeting point,philosophically speaking, between Ambedkarism and Marxism, as intellectuals like Mr. Teltumbde and surrenderist "left"-wing opportunists are trying to demonstrate.
- Abhinav Sinha, (Editor, 'Muktikami Chhatron-Yuvaon ka Aahwan')"
तथाकथित मार्क्सवादियों का रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी रवैया
हाँ, डॉ. अम्बेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई परियोजना नहीं थी
अगर लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता में आस्था हैं तो अंबेडकर हर मायने में प्रासंगिक हैं
हिन्दू राष्ट्र का संकट माथे पर है और वामपंथी अंबेडकर की एक बार फिर हत्या करना चाहते हैं!
- because of the hatred for the Brahmanism, Ambedkar failed to understand the conspiracy of colonialism
- All experiments of Dalit emancipation by Dr. Ambedkar ended in a 'grand failure'
- Ambedkar's politics does not move an inch beyond the policy of some reforms
- दलित मुक्ति को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अम्बेडकर से आगे जाना होगा
- ब्राह्मणवाद के विरुद्ध अपनी नफरत के कारण अंबेडकर उपनिवेशवाद की साजिश को समझ नहीं पाये
- अंबेडकर के सारे प्रयोग एक ''महान विफलता'' में समाप्त हुये – तेलतुंबड़े
तथाकथित मार्क्सवादियों का रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी रवैया
"I protest the distorted reporting of my statements in the conference, which was scathingly critical of the orthodox and brahmanic attitude of the so called Marxists there who trashed the entire anti-caste movement and were unashamedly disrespectful of Babasaheb Ambedkar. I had accused them of being casteist and likened them to the hindutva-brahmanist, the worst possible attribution to their tribe, doing further harm to Indian revolution and had stated among other things that the contribution of Ambedkar to democratization of the country was greater than all the communists together. Please do not spread canard in my name."
हाँ, डॉ. अम्बेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई परियोजना नहीं थी
अगर लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता में आस्था हैं तो अंबेडकर हर मायने में प्रासंगिक हैं
हिन्दू राष्ट्र का संकट माथे पर है और वामपंथी अंबेडकर की एक बार फिर हत्या करना चाहते हैं!
- because of the hatred for the Brahmanism, Ambedkar failed to understand the conspiracy of colonialism
- All experiments of Dalit emancipation by Dr. Ambedkar ended in a 'grand failure'
- Ambedkar's politics does not move an inch beyond the policy of some reforms
- दलित मुक्ति को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अम्बेडकर से आगे जाना होगा
- ब्राह्मणवाद के विरुद्ध अपनी नफरत के कारण अंबेडकर उपनिवेशवाद की साजिश को समझ नहीं पाये
- अंबेडकर के सारे प्रयोग एक ''महान विफलता'' में समाप्त हुये – तेलतुंबड़े
भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के अंतर्विरोधों से कन्नी काटकर हम अंबेडकर पर बहस नहीं कर सकते।
आदरणीय अभिनवकुमार जी, हस्तक्षेप संपादक, कॉरपोरेट मीडिया व सोशल मीडिया के साथी, संशोधनवादी वामपन्थी व क्रान्तिकारी मुक्तिकामी साथी और अंबेडकर के नाम राजनीति करने वाले तमाम लोग, अंबेडकर के अनुय़ायी बहिष्कृत समुदायों का मूक समाज और भारतवासियों !
अभिनवकुमार जी के लम्बे आलेख में विद्वता कूट-कूटकर भरी पड़ी है। दूसरी ओर, हम उच्चकोटि के अकादमिक अध्ययन के अवसरों से वंचित रहे हैं। हम न अर्थशास्त्री हैं और न समाजविज्ञानी। विद्वतजन तो हैं ही नहीं। तथाकथित बड़ा पत्रकार भी नहीं।क्योंकि पत्रकारों और मीडिया का इस वक्त कोई सामाजिक सरोकार है ही नहीं। होता, तो आज राष्ट्रीय संकट इस लाइलाज दौर में न होता। मैं विभाजनपीड़ित पुनर्वासित परिवार का भारतीय नागरिकता से बेदखल व देशनिकाला के लिये नियतिबद्ध शरणार्थी समाज की संतान हूँ। मेरे पिता आजीवन अपने समाज और बाकी देश के बहुजनों के जीवन मरण के संघर्ष में जुड़े रहे हैं। हम इस विरासत की वजह से अपने लोगों की जान बचाने के लिये आत्मरक्षा की गरज से देश भर में पीड़ितों का संयुक्त मोर्चा बनाने के प्रयास में बचपन से लगे हैं। सिलसिलेवार अध्ययन और सब कुछ सही-सही जान लेने का दावा हम नहीं करते। इसलिए बचकानी और नादानी से लिखने-पढ़ने का अभियोग का हम खंडन नहीं करना चाहते। हम तो एक मामूली सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो संयोग से पेशेवर पत्रकार है।
चंडीगढ़ के आलेख सार्वजनिक हों तो इससे अच्छी कोई बात नहीं होगी। अगर अंबेडकर को खारिज करके ही मुक्तिमार्ग निकलता है, तो ऐसे मुक्तिमार्ग पर चलने को हम भी तैयार हैं बशर्ते कि उस मुक्तिमार्ग की दशा और दिशा स्पष्ट करें पढ़े लिखे विद्वतजन, जिनका दुर्भाग्य से भारतीय सिद्धान्तों, अवधारणाओं के उत्तरआधुनिक पाठ और विमर्श के सुरक्षित आलाप के अलावा वधस्थल भारतवर्ष के कठोर सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक यथार्थ से, जमीनी हकीकत से कोई लेना देना नहीं है और न उन्हें अपने स्वजनों की जान बचाने की जद्दोजहद से होकर गुजरना होता है।
अभिनव जी और उनके समविचारी लोगों की आस्था न भारतीय संविधान में है और न लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के मौजूदा ढाँचे में। वे राजनीति में निष्णात वामपंथियों को संशोधनवादी बता रहे हैं और अंबेडरकरवादी जमात का मलाईदार अवसर प्राप्त तबका या सत्ता में भागेदारी हासिल करने के लिए आपस में लड़-कट मरने वाले राजनेता। यह भारी विडम्बना है। वे अराजनीति की बात करते हैं। क्रान्ति की और मुक्ति की बात करते हैं। तो संसदीय राजनीति से इस विमर्श का क्या मतलब?
उन्होंने बेहद अच्छा काम किया कि संशोधनवादी वामपंथ को किनारे लगा दिया। पर ऐतिहासिक सच तो यह है कि 1964 साल तक भारतीय़ कम्युनिस्ट आन्दोलन, अंबेडकर के जीवनकाल में एक था। मेरे पिता भी अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के किसान नेता थे, जिन्होंने ढिमरी ब्लॉक किसान विद्रोह का नेतृत्व किया। भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के अंतर्विरोधों को कन्नी काटकर हम अंबेडकर पर बहस नहीं कर सकते।
दूसरी बात यह कि भारतीय यथार्थ को सम्बोधित करते हुये अंबेडकर ही नहीं, बल्कि गांधी और लोहिया ने जाति व्यवस्था के विमर्श को अपना प्रस्थान बिन्दु बनाया है, संशोधनवादी और क्रान्तिकारी वामपंथियों ने ऐसा नहीं किया। वे वर्ग संघर्ष, पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का राग अलापते रहे। चंडीगढ़ आयोजन में अंबेडकर के व्यक्तित्व-कृतित्व की रचनात्मक आलोचना के बजाय उन्हें अकादमिक तौर पर खारिज करने की ठंडे दिमाग की हत्यारी मानसिकता को सर्जिकल प्रिसिजन के साथ समाजविज्ञानी आशीष नंदी और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन से बेहतर तरीके से अंजाम दिया गया।
इस मुक्तिकामी क्रान्ति का नतीजा देश भर का आदिवासी समाज भुगत रहा है। गुरिल्ला कार्रवाई के बाद भारतीय राष्ट्र की सैन्य शक्ति के सामने दमन के लिये निहत्था अकेला पड़ा या बिहार में निजी सेनाओं के आखेट के शिकार बहुजनों का सामाजिक यथार्थ एकदम गैर अकादमिक भोगा हुआ य़थार्थ है। क्रान्ति जंगल तक सीमाबद्ध है या फिर विश्वविद्यालयों के वातानुकूलित अध्ययनकक्षों में। क्या कॉरपोरेट साम्राज्यवाद और वंशवादी नस्ली हिन्दुत्व के एजंडे का विरोध प्रतिरोध का रास्ता इस तरह हासिल होगा?
हम अपने सामर्थ्य और सीमाबद्ध अध्ययन के मुताबिक मूक समाज के अपढ़ लोगों की तरह ही इसका जवाब देंगे। सिलसिलेवार देंगे। पर इससे पहले हमारा आग्रह है कि जो अंबेडकर के घोषित अनुयायी हैं और जो अंबेडकर के नाम पर अकामिक व राजनीतिक दुकान चला रहे हैं, वे इस बहस में अपना पक्ष जरुर रखें। हस्तक्षेप की ओर से ऐतिहासिक पहल हुआ है।
हम खासकर आभारी हैं कि अभिनव जी ने मेरा उल्लेख इतनी दफा किया है कि तज़िन्दगी मेरा इतना उल्लेख कभी नहीं हुआ। मेरे उपन्यास अमेरिका से सावधान पर महाश्वेता देवी के अलावा किसी ने लिखा नहीं। कहानियों और कविताओं की तो चर्चा भी नहीं हुयी। बतौर पत्रकार मैं काली सूची में हूँ। मजे कि बात अपने पूँजीवाद, साम्राज्यवाद, मुक्तबाजार के विरोध में अपनाये तेवर की वजह से।
पर यह मामला निजी नहीं है। सवालों से बचने की गुंजाइश नहीं है। बेहतर हो कि हम सब मिलकर एक लोकतान्त्रिक विमर्श के जरिये आगे का रास्ता निकालें, पानी सर से ऊपर है और वक्त कम है। तूफान में फँसे शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन घुसेड़े अपनी खाल बचाने के बजाय बाकी लोग भी अपने दड़बे से बाहर निकलकर इस खुली बहस में शिरकत करें तो इसका सार्थक नतीजा निकलेगा। हमें यकीन है कि कम से कम वैकल्पिक मीडिया के लोग इस बहस को यथोचित तवज्जो देंगे। हम चाहते हैं कि अभिनव कुमार के प्रश्नों का जवाब पहले विद्वतजन जो अकादमिक रुप से अधिकृत हैं और जिनमें नादानी और अपढ़ होने का दुर्गुण न हों, संशोधनवादी वामपन्थी, मलाईदार व राजनेता अंबेडकर अनुयायी पहले दें, तभी बहस का दायरा बढ़ेगा। फिर हम अपना जवाब भी अवश्व देंगे।
पलाश विश्वास
- तथाकथित मार्क्सवादियों का रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी रवैया
- अम्बेडकरवादी उपचार से दलितों को न तो कुछ मिला है, और न ही मिले
- हाँ, डॉ. अम्बेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई परियोजना नहीं थी
- अगर लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता में आस्था हैं तो अंबेडकर हर मायने में प्रासंगिक हैं
- हिन्दू राष्ट्र का संकट माथे पर है और वामपंथी अंबेडकर की एक बार फिर हत्या करना चाहते हैं!
- because of the hatred for the Brahmanism, Ambedkar failed to understand the conspiracy of colonialism
- All experiments of Dalit emancipation by Dr. Ambedkar ended in a 'grand failure'
- Ambedkar's politics does not move an inch beyond the policy of some reforms
- दलित मुक्ति को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अम्बेडकर से आगे जाना होगा
- ब्राह्मणवाद के विरुद्ध अपनी नफरत के कारण अंबेडकर उपनिवेशवाद की साजिश को समझ नहीं पाये
- अंबेडकर के सारे प्रयोग एक ''महान विफलता'' में समाप्त हुये – तेलतुंबड़े
ভীমরাও রামজি আম্বেডকর
উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকেডঃ ভীমরাও রামজি আম্বেডকর এপ্রিল ১৪, ১৮৯১ – ডিসেম্বর ৬, ১৯৫৬ (৬৫)
নাসিকের ঈওলায় এক র্যালীতে ভাষণরত আম্বেদকর, ১৩ই অক্টোবর ১৯৩৫ সাল।ডাক নাম: বাবা, বাবা সাহেব, বোধিসত্ত্ব, ভীমা, মুখ্যনায়ক, আধুনিক বুদ্ধ। জন্মস্থান: মোহ (Mhow), কেন্দ্রীয় প্রদেশ, (এখনমধ্যপ্রদেশ), ব্রিটিশ ইন্ডিয়া মৃত্যুস্থান: দিল্লি, ইন্ডিয়া জীবনকাল: এপ্রিল ১৪, ১৮৯১ – ডিসেম্বর ৬, ১৯৫৬(৬৫) জাতীয়তা: ভারতীয় উপাধি: ভারতের আইন-মন্ত্রী,
চেয়ারম্যান অব দ্যা কন্স্টিটিউশন ড্রাফটিং কমিটি।আন্দোলন: দলিত বৌদ্ধ আন্দোলন প্রধান সংগঠন: সমথ সৈনিক দল,
তফসীল সম্প্রদায়,
স্বনির্ভর শ্রমিক দল (ইন্ডিপেন্ডেন্ট লেবার পার্টি(ভারত)),
পূর্বেকার অস্পৃশ্য জাতি সিডিউল কাস্টেস ফেডারেশন,
Republican Party of India,
বুডিস্ট সোসাইটি অব ইন্ডিয়া (ভারতীয় বৌদ্ধ সংঘ)।রাজনৈতিক দল: প্রজাতান্ত্রিক দল (ভারত) পুরষ্কার: ভারতরত্ন (১৯৯০ সাল) ধর্ম: বৌদ্ধধর্ম দাম্পত্য সঙ্গী: রামাবাই (বিয়ে ১৯০৬ সাল) ও সভিতা (১৯৪৮ সাল) শিক্ষা: এম.এ.(M. A.);
পি.এইচ.ডি.(PhD.);
ডি.এস.সি.(D.Sc.);
এল.এল.ডি.(L.L.D.);
ডি.লিট.(D.Lit.),
ব্যরিস্টার(আইন) (Barrister(Law))শিক্ষাক্ষেত্র: (ইউনিভার্সিটি অব মুম্বাই),
(কলম্বিয়া ইউনিভার্সিটি),
লন্ডন বিশ্ববিদ্যালয়
ডক্টর ভীমরাও রামজি আম্বেডকর (মারাঠি: डॉ.भीमराव रामजी आंबेडकर) (১৪ই এপ্রিল১৮৯১ - ৬ই ডিসেম্বর ১৯৫৬) ছিলেন একজন ভারতীয় ব্যবহারশাস্ত্রজ্ঞ (জ্যুরিস্ট), রাজনৈতিক নেতা, বৌদ্ধ আন্দোলনকারী, দার্শনিক, চিন্তাবিদ, নৃতত্ত্ববিদ (Anthropologist), ঐতিহাসিক, বাগ্মী, বিশিষ্ট লেখক, অর্থনীতিবিদ, পণ্ডিত, সম্পাদক, রাষ্ট্রবিপ্লবী ও বৌদ্ধ পুনর্জাগরণবাদী। তিনি বাবাসাহেব নামেও পরিচিত ছিলেন। তিনি ভারতের সংবিধানের[১]খসড়া কার্যনির্বাহক সমিতির সভাপতিও ছিলেন। তিনি ভারতীয় জাতীয়তাবাদী এবং ভারতের দলিত আন্দোলনের অন্যতম পুরোধা। ইনি ভারতের সংবিধানের মুখ্য স্থাপক।পরিচ্ছেদসমূহ
[আড়ালে রাখো][সম্পাদনা]পরিচিতি
ভীমরাও রামজি আম্বেদকর ভারতের গরীব "মহর"(Mahar) পরিবারে (তখন অস্পৃশ্য জাতিহিসেবে গণ্য হত) জন্ম গ্রহণ করেন। আম্বেদকর সারাটা জীবন সামাজিক বৈষম্যতার (Social Discrimination), "চতুর্বর্ণ পদ্ধতি"-হিন্দু সমাজের চারটি বর্ন এবং ভারতবর্ষের অস্পৃশ্য (Untouchables or Untouchables community) প্রথার বিরুদ্ধে যুদ্ধ করে গেলেন। তিনি বৌদ্ধ ধর্মে ধর্মান্তরিত হন এবং হাজারো শত (Hundreds of Thousands) অস্পৃশ্যদের থেরবাদী বৌদ্ধ ধর্ম (Theravada Buddhism) স্ফুলিঙ্গের মতো রূপান্তরিত করে সম্মানিত হয়েছিলেন। আম্বেদকরকে ১৯৯০ সালে মরণোত্তর (Posthumous) "ভারত রত্ন" - ভারতের সর্বোচ্চ রাষ্ট্রীয় উপাধি'তে ভূষিত করা হয়। বহু সামাজিক ও অর্থনৈতিক বাধাবিপত্তি পেরিয়ে, ভারতের মহাবিদ্যালয় শিক্ষা অর্জনে আম্বেদকর প্রথম "সমাজচ্যুত ব্যক্তি" (Outcast) হিসেবে পরিণত হয়েছিলেন। অবশেষে কলম্বিয়া বিশ্ববিদ্যালয় এবং লন্ডন অর্থনীতি বিশ্ববিদ্যালয় (লন্ডন স্কুল অব ইকনোমিক্স) থেকে আইনে ডিগ্রি (বিশ্ববিদ্যালয়ের সর্বোচ্চ উপাধি) লাভ করার পর,আম্বেদকর বিদ্বান ব্যক্তি (Scholar) হিসেবে সুনাম অর্জন করেন এবং কিছু বছর তিনি আইন চর্চায় নিজেকে নিয়োজিত করেছিলেন, পরে তিনি ভারতের অস্পৃশ্যদের সামাজিক অধিকার ও সামাজিক স্বাধীনতার উপর ওকালতির সময় সমসাময়িক সংবাদপত্র প্রকাশ করেছিলেন। কিছু ভারতীয় বৌদ্ধালম্বীদের দ্বারা তিনি "বোধিসত্ত্ব" (গৌতম বুদ্ধের পূর্ব জন্ম) উপাধিতে সম্মানিত করেন, যদিও তিনি নিজেকে "বোধিসত্ত্ব" হিসেবে কখনো দাবি করেন নি।[২]
[সম্পাদনা]প্রথম জীবন এবং শিক্ষা
'মোহ' (Mhow) অঞ্চলের (বর্তমান মধ্য প্রদেশ) এবং কেন্দ্রীয় সামরিক সেনানিবাসে ব্রিটিশ কর্তৃক স্থাপিত শহরে আম্বেদকর জন্মগ্রহণ করেছিলেন।[৪]তিনি ছিলেন রামজী মালোজী শাকপাল (Ramji Maloji Sakpal) এবং ভীমাবাইের (Bhimabai) ১৪তম সর্বকনিষ্ঠ পুত্র।[৫]তাঁর পরিবার ছিলেন মারাঠী অধ্যূষিত বর্তমান কালের "মহারাষ্ট্র"-এর রত্নগিরি জেলার "আম্বোভাদ" (Ambavade) শহরে। তাঁরা হিন্দু সম্প্রদায়ের অধিভুক্ত ছিলো (মহর জাতি), যারা (অস্পৃশ্য জাতি)হিসেবে এবং প্রচণ্ড রকম আর্থ-সামাজিক বিভেদ সাপেক্ষে পরিগণিত হত। আম্বেদকরের পূর্বপুরুষেরা ছিলেন ব্রিটিশ ইস্ট – ইন্ডিয়া কোম্পানির সেনা এবং তাঁর পিতা "রামজী শাকপাল" মোহ সেনানিবাসের ভারতীয় সেনা নিবেদিত ছিলেন, তিনি সেকালে গতবাধা শিক্ষাপদ্ধতি থেকে মারাঠী এবং ইংরেজীতে ডিগ্রি লাভ করেছিলেন এবং সেইসাথে তিনি প্রাথমিক বিদ্যালয় শিক্ষা লাভে কঠোর পরিশ্রমে সন্তানদের উদ্বুদ্ধ করেন। কবির পান্থের মতে, রামজী শাকপাল তাঁর সন্তানদের হিন্দু সংষ্কৃতি পড়তে উদ্বুদ্ধ করতেন। সামরিক বাহিনীতে তিনি তাঁর জায়গা উপশালা ব্যবহার করতেন তাঁর সন্তানদের সরকারি বিদ্যালয়ে পড়াশুনার কাজে, যখন তাঁরা তাদের জাতি বৈষম্যতার সম্মুখীন হত। যদিও আম্বেদকর বিদ্যালয়ে যেতেন সাথে একই অস্পৃশ্য জাতির অন্যরাও, তাদের আলাদা করে দেয়া হত এবং শিক্ষকগণ দ্বারা অমনযোগী ও অসহায়ক ছিলেন। তাদের শিক্ষাকক্ষের ভেতরে বসার অনুমতি ছিলো না, এমনকি তাদের যদি তৃষ্ণা পেতো উচ্চশ্রেণীর কোনো একজন এমন উচ্চতা হতে সেই পানি ঢেলে পান করাতো, যেহেতু তাদের (নিন্মশ্রেণীদের) কোনো অনুমতি ছিলো না, পানি স্পর্শ করার বা যেটি তা ধারণ করে। এই কাজটি সাধারণত আম্বেদকরের জন্য করতো বিদ্যালয়ের চাপসারী (Peon) এবং যদি পিওন না থাকত বা না আসত তখন সারাদিন পানি ছাড়াই কাটাতে হতো, আম্বেদকরের এই আবস্থাকে বলেছিলেন যেন - "পিওন নাই,পানি নাই"(নো পিওন, নো ওয়াটার)।[৬]
রামজী শাকপালের ১৮৯৪ সালে অবসর নেন ও দুই বছর পরে তাঁর পরিবার "সতর"-এ (Satara) চলে আসে। জায়গা বদলের অল্পদিনের পরে, শিশু আম্বেদকরের মাতা মারা যান। তাঁরা (সন্তানরা) মাসীর সান্নিধ্যে কষ্টের পরিবেশে লালিত হন। শুধুমাত্র তিন ছেলে বালারাম, আনান্দ্রা ও ভীমরাও এবং দুই মেয়ে মঞ্জুলা ও তুলাসা'দের মধ্যে আম্বেদকরই পরীক্ষায় উত্তীর্ণ হতে সামর্থ হন এবং মহাবিদ্যালয়ের স্নাতক লাভে সক্ষম হন। ভীমরাও শাকপাল আম্বেদকরের কূলনামটি (বর্ণনামূলক অতিরিক্ত নাম) এসেছে তাঁর "রত্নগিরি" নিজগ্রাম আম্বভাদ(Ambavade) থেকে।[৭] তাঁর ব্রাহ্মণ শিক্ষক মহাদেব আম্বেদকর, যিনি তাঁর (আম্বেদকরের) প্রতি অত্যন্ত স্নেহ পরায়ণ ছিলেন,প্রাথমিক বিদ্যালয়ের তালিকায় তিনি নিজ গ্রাম আম্বোভাদকর (Ambavadekar) থেকে পরিবর্তন করে আম্বেদকর রাখেন।[৭]
[সম্পাদনা]উচ্চতর শিক্ষা
আম্বেদকর ১৯০৩ সালে (মাত্র ১২ বছর বয়সে) বিয়ে করেন এবং পরিবারসহ তিনি মুম্বাইয়ে (তারপর বোম্বে) চলে আসেন, যেখানে আম্বেদকরই হয়ে উঠেন এলফিন্স্টোন রাস্তার পাশের সরকারি বিদ্যালয়ের প্রথম অস্পৃশ্য (নিম্ম শ্রেণীর লোক হিসেবে) ছাত্র।[৮] যদিও তিনি তাঁর শিক্ষাদীক্ষায় সবাইকে ছাড়িয়ে যেতে সক্ষম হয়েছিলেন তথাপি আম্বেদকর যে স্বতন্ত্রতা ও বৈষম্যতার সম্মুখীন হয়েছিলেন তাতে তিনি ক্রমবর্ধমানভাবে বিরক্ত ছিলেন। ১৯০৭ সালে তিনি প্রবেশিকা পরীক্ষায় উত্তীর্ণ হয়ে প্রথম অস্পৃশ্য হিসেবে ভারতের বোম্বে বিশ্ববিদ্যালয়ে প্রবেশ করেন। এই সাফল্য তাঁর সম্প্রদায়ে গুণকীর্তনের উদ্দীপনা যোগায়, একটি সামাজিক অনুষ্ঠানের পরে তিনি তাঁর শিক্ষক কৃষ্ণজী অর্জুন বেলুস্কর (অন্য নাম দাদা কেলুষ্কর), যিনি ছিলেন মারাঠী জাতির একজন বৃত্তিপ্রাপ্ত ছাত্র, তাঁর পরামর্শে "গৌতম বুদ্ধের জীবনী"র উপর তিনি একটি জীবনচরিত প্রকাশ করেন। অবশ্য আম্বেদকরের বিয়ে যথারীতি হিন্দু রীতিতেই ৯ বৎসরের দাপোলির মেয়ে "রামাবাই"এর সাথে হয়।.[৮] ১৯০৮ সালে তিনি এলিফিন্স্টোন কলেজে ভর্তি হন এবং সেখানে থাকাকালীন তিনি বারোদা'র রাজা "গয়াকওয়াদ সায়াজী রাও ৩য়" (Maharaja Sayajirao Gaekwad III, ruler of Baroda, Sahyaji Rao III) কর্তৃক মাসিক ২৫ রুপির বৃত্তি অর্জন করেন। ১৯১২ সালে, তিনি বোম্বে বিশ্ববিদ্যালয় থেকে অর্থনীতি এবং রাজনৈতিক বিজ্ঞানে ডিগ্রি লাভ করেন। বারোদা সরকারী রাজ্যে চাকরি গ্রহণ করেন। সেই বছরেই তাঁর প্রথম সন্তান, ইশান্ত, জন্ম গ্রহণ করেন। আম্বেদকর তাঁর নব্য পরিবার নিয়ে অন্যত্র চলে আসেন, কিছুসময় পরে অবশ্য তাঁর অসুস্থ পিতাকে দেখতে মুম্বাই চলে আসেন। তাঁর বাবা ২রা ফেব্রুয়ারি, ১৯১৩ সালে মৃত্যুবরণ করেন। নিউইয়র্কের কলম্বিয়া বিশ্ববিদ্যালয়ে রাজনীতি বিভাগের স্নাতকোত্তর ছাত্র হিসেবে তিনি ১৯১৩ সালে তিন বছর মেয়াদী মাসিক সাড়ে এগার ব্রিটিশ পাউন্ডের বৃত্তি গ্রহণ করেন। নিউইয়র্কে তিনি তাঁর পারসী বন্ধু "নাভাল ভাতেনা"র সাথে লিভিংস্টোন হলে বসবাস করেন। তিনি প্রত্যহ "লো" লাইব্রেরিতে দৈনিক চার ঘন্টা পড়াশুনা করতেন। জুন, ১৯১৩ সালে তিনি এম. এ. পরীক্ষায়, প্রধানত অর্থনীতি উত্তীর্ণ হন, এছাড়াও তিনি অন্য বিষয় গুলোতে সমাজবিজ্ঞান, ইতিহাস, দর্শনশাস্ত্র এবং নৃতত্ত্ব পরীক্ষায় উত্তীর্ণ হন। তিনি গবেষণা লব্ধ প্রবন্ধ "প্রাচীন ভারতের ব্যবসা-বাণিজ্য" (Ancient Indian Commerce) প্রকাশ করেন। ১৯১৬ সালে তিনি অন্য আরেকটি এম. এ. গবেষণা প্রবন্ধ "ভারতের জাতীয় কারাগারের লভ্যাংশ – একটি ঐতিহাসিক ও বিশ্লেষণিক গবেষণা" (National Dividend of India-A Historic and Analytical Study)। ৯ই মে, নৃতত্ত্ববিদ প্রফেসর আলেকজান্ডার গোল্ডেনউইজার কর্তৃক আয়োজিত সেমিনারের আগে তিনি"ভারত জাতিঃ তাদের পদ্ধতি, উৎপত্তি এবং উন্নয়ন" বিষয়ক পত্র পাঠ করেন। ১৯১৬ সালের অক্টোবর মাসে তিনি ভর্তি হন "গ্রেস ইন্ন ফর ল"(Gray's Inn for Law) এবং লন্ডনের অর্থনীতি ও রাজনৈতিক অর্থনীতি বিজ্ঞান (London School of Economics and Political Science for Economics) যেখানে তিনি ডক্টরাল থেসিসের কাজ শুরু করেন। ১৯১৭ সালে জুন মাসে বারোদা বৃত্তির শেষান্তে তিনি ভারত|ইন্ডিয়া যেতে বাধ্য হন, অপরদিকে তাঁর গবেষনামূলক প্রবন্ধ জমা দেয়ার জন্য ৪ বছরের মধ্যে জমা দেয়া ও ফিরে আসার অনুমতি পান। তিনি তাঁর অতি মূল্যবান এবং অধিক পছন্দের গ্রন্থপুঞ্জিগুলো কুলের জাহাজযোগে (স্টিমার) পাঠানোর সময় একটি জার্মান ডুবোজাহাজ দ্বারা নিমজ্জিত হয়ে যায়।
ভারতের মূখ্য পন্ডিত (leading Indian Scholar) হিসেবে আম্বেদকরকে সাউথবোরো কমিটিতে সাক্ষ্য দেয়ার জন্য আমন্ত্রণ জানানো হয়েছিলো, ১৯১৯ সালে যেটি ছিলো ভারতের সরকারি আইন, ১৯১৯ এর প্রস্তুতিমূলক (কমিটি)। এটি শুনতেই, আম্বেদকর পৃথক নির্বাচকমন্ডলী এবং অন্ত্যজদের জন্য বাসস্থান সংরক্ষণ (তাঁর অনেকদিনের লুকায়িত মনের ভাব) এবং অন্য সকল ধর্মীয় সম্প্রদায়ের জন্য যুক্তি প্রদর্শন করেন। ১৯২০ সালে, তিনি মুম্বাইয়ের একটি সাপ্তাহিক "মূখ্যনায়ক – মৌনদের নেতা" [Mooknayak (Leader of the Silent)] প্রকাশ করেন, কোলহপুরের মহারাজা, শাহু ১ম (Shahu I) (১৮৮৪-১৯২২ সাল) আম্বেদকর এই পত্রিকাটিতে হিন্দু মৌলবাদী (Arthodox) রাজনীতিবিদদের কঠোর সমালোচনা করেন এবং ভারতের রাজনৈতিক সম্প্রদায়ের বিতৃষ্ণা উপলব্ধি করত জাতি বৈষম্যতার (Caste Discrimination) প্রতি যুদ্ধ করেছিলেন। কোলহপুরে তাঁর বক্তব্য অস্পৃশ্য সম্প্রদায়ের বৈঠকে আঞ্চলিক রাজ্যের রাজা শাহু ৪র্থ'কে মোহিত করেন, যিনি আম্বেদকরকে "ভবিষ্যতের জাতীয় নেতা" বলে গণ্য করেন এবং পরবর্তীতে গোঁড়াবাদী সম্প্রদায় সবাইকে অবাক করে দিয়ে আম্বেদকরের সাথে নৈশভোজে অংশগ্রহণ করেন। নিজের জমানো কিছু অর্থের সাথে কলহপুরের মহারাজা ও তাঁর বন্ধু নাভাল বাহেনার কাছ থেকে লোনকৃত কিছু অর্থ দিয়ে জুলাই মাসে তিনি শিক্ষক পদ থেকে অবসর গ্রহণ করে লন্ডনে প্রত্যাবর্তন করেন। তিনি "লন্ডন স্কুল অব ইকনোমিক্স" ও "গ্রে ইন্ন" আইনি সম্প্রদায়ে (Bar) পড়ার জন্য ফিরে আসেন। দরিদ্র জীবনযাপন শুরু করেন ও ব্রিটিশ যাদুঘরে নিয়মিত অধ্যয়ন করেন। ১৯২২ সালে অক্লান্ত পরিশ্রমের মাধ্যমে আরো একবার আম্বেদকর সকলের চাহিদাপূরণে সক্ষম হনঃ তিনি এম এস সি (অর্থনীতি) জন্য গবেষণা লব্ধ প্রবন্ধ সম্পূর্ণ করেন লন্ডন স্কুল অব ইকনোমিক্সে ও তাঁকে আইনি সম্প্রদায়ে ডাকা হয় এবং তাঁর পিএইচডি প্রবন্ধটি লন্ডন বিশ্ববিদ্যালয়ে জমা দেন। আম্বেদকর সফল আইনী চর্চা দ্বার করেন। আইনী চর্চার শুরুর দিকে, আম্বেদকর কিছু ব্রাহ্মণ কর্তৃক তিন অ-ব্রাহ্মণ নেতা কে বি বাগদে, কেশাভরাও জেদহে এবং দিনকোরাও জাভালকরের বিরুদ্ধে আনীত মকদ্দমায় জড়িয়ে পরেন। তাঁরা এই মর্মে মকদ্দমা চালান যে, ক্ষুদ্র পুস্তিকাতে লিখিত ব্রাহ্মণরা ভারত ধ্বংস করেছিলো। অভিযুক্ত পক্ষে ছিলেন পুনার বিখ্যাত উকিল এল বি বোপাটকর, আম্বেদকর তাঁর মামলা যুক্তিপূর্ণ তথ্য দক্ষতার সহিত স্থাপন করে বাকপটু প্রতিরক্ষার মাধ্যমে ১৯২৬ সালের অক্টোবর মাসে বিজয়ী হন। তাঁর সেই বিজয় গুণকীর্তন অনেক বিস্তার লাভ করেন। সামাজিকভাবেও বৈক্তিকভাবে।
[সম্পাদনা]লক্ষ্যসমূহ
যখন বোম্বে হাইকোর্টে চর্চারত অবস্থায় আম্বেদকর আস্পৃশ্যদের শিক্ষিত করে তুলতে অবিবেচকের মত দৌড়েছিলেন। এই লক্ষ্যগুলো অর্জনে তাঁর প্রথম প্রাতিষ্ঠানিক চেষ্টা ছিলো "বহিষ্কৃত হাতিকারিণী সাবা"। এই প্রাতিষ্ঠানটি শিক্ষা, আর্থ-সামাজিক উন্নয়ন এবং গৃহহীন ও অন্ত্যজ জাতির (Outcast) উন্নতির জন্য। ১৯২৭ সালে আম্বেদকর অস্পৃশ্যতা'র বিরুদ্ধে সক্রিয় আন্দোলন গড়ে তোলার সিদ্ধান্ত নেন। তিনি গণ আন্দোলন শুরু করেন এবং সুপেয় পানির উৎস দানে সংগ্রাম চালিয়ে যান (উল্লেখ্য সে সময় হিন্দু সম্প্রদায়ের মন্দিরে নিন্ম বর্ণের প্রবেশের অধিকার ছিলো না)। মহদে সত্যগ্রহ নামের অস্পৃশ্যদের (অন্ত্যজ জাতির) জন্য সংগ্রাম করে সুপেয় পানি পানের অধিকার আন্দোলনের নেতৃত্ব দেন। তাঁকে ১৯২৫ সালে বোম্বে প্রেসিডেন্সি কমিটিতে নিয়োগ করা হয়েছিলো যাতে করে তিনি সকল ইউরোপীয় সীমন কমিশনের সাথে কাজ করতে পারেন। সমগ্র ভারতজুড়ে স্ফুলিঙ্গের আকারে ব্যাপক আন্দোলন ছড়িয়ে পরে এবং যখন এই তালিকাটি অধিকাংশ ভারতীয় কর্তৃক ত্যাগ করা হয়েছিলো, আম্বেদকর নিজে ভবিষ্যৎ সাংবিধানিক সুপারিশের জন্য একটি পৃথক সুপারিশ নামা লিখিত দেন।
[সম্পাদনা]পূনে চুক্তি
আম্বেদকরের প্রসিদ্ধ এবং অস্পৃশ্য সম্প্রদায়ের জনপ্রিয় সমর্থনের কারণে, তাঁকে ১৯৩২ সালে লন্ডনে দ্বিতীয় গোলটেবিল বৈঠকে (Second Round Table Conference) আমন্ত্রণ জানানো হয়েছিল।[তথ্যসূত্র প্রয়োজন] মহাত্মা গান্ধী অস্পৃশ্যদের জন্য গঠিত পৃথক নির্বাচকমন্ডলীর প্রচণ্ডভাবে বিরোধিতা করেন, যদিও তিনি অন্য সকল সংখ্যা লঘুদের যেমন মুসলমানদের ও শিখদের পৃথক নির্বাচকমন্ডলী (Separate Electorate) বিনা দ্বিধায় মেনে নেন এই বলে যে, তিনি অস্পৃশ্য সম্প্রদায়ের গঠনকৃত নির্বাচকমন্ডলী হিন্দু সমাজকে ভবিষ্যতে বিভক্ত এবং উচ্চশ্রেণীর ক্ষমতা কমিয়ে দিতে পারে। ১৯৩২ সালে যখন ব্রিটিশরা আম্বেদকরের সাথে একমত হন এবং পৃথক নির্বাচকমন্ডলীদের ঘোষণা করেন, তখন মহাত্মা গান্ধী পূনের এরোদা কেন্দ্রীয় কারাগারে (Yerwada central jail) শুধুমাত্র অন্ত্যজ সম্প্রদায়ের পৃথক নির্বাচকমন্ডলীর প্রতি উপবাস শুরু করেন। গান্ধীর এই উপবাস (fast) ভারতজুড়ে বেসামরিকদের মাঝে প্রবল বিক্ষোভের উদ্দীপনা জোগায় এবং ধর্মীয় গোঁড়াবাদী নেতারা (Orthodox Politicians), কংগ্রেস নেতারা কর্মীদের মধ্যে মদন মোহন মালোভি ও পালঙ্কর বালো ও তাঁর সমর্থকরা আম্বেদকরের সহিত এরাভাদে (Yeravada) যৌথ বৈঠক করেন। গান্ধীবাদীদের প্রবল চাপের মুখে (Massive coercion) এবং সাম্প্রদায়িক প্রতিশোধ (Communal reprisal) ও অস্পৃশ্য সম্প্রদায়কে নির্মূলীকরণের আশংকায় আম্বেদকরপৃথক নির্বাচকমন্ডলী বাতিল করতে সম্মত হন। এই চুক্তির পরে গান্ধী উপবাস পরিত্যাগ করেন, ইতিহাসে এটি পূনে চুক্তি নামে পরিচিত। চুক্তির ফলশ্রুতিতে, আম্বেদকর পৃথক নির্বাচকমন্ডলী গঠনের দাবি ছেড়ে দেন যা আম্বেদকর গান্ধীর সাথে বৈঠকের আগে ব্রিটিশ সাম্প্রদায়িক কর্তৃক শর্ত সাপেক্ষে মঞ্জুর করে প্রতিশ্রুতি বদ্ধ হন। একটি নির্দিষ্ট সংখ্যক আসন অস্পৃশ্যদের জন্য সংরক্ষিত হয়। এই চুক্তিতে যাকে বলা হয় অস্পৃশ্য সম্প্রদায়(Depressed Class)।
[সম্পাদনা]রাজনৈতিক অবদান
আম্বেদকর ১৯৩৫ সালে মুম্বাইয়ের সরকারী আইন মহাবিদ্যালয়ের অধ্যক্ষ হিসেবে নিয়োগ পান, সেখানে দু'বছর অধিষ্ঠিত ছিলেন। মুম্বাইয়ে বসবাসের বাসনায় তাঁর তদারকিতে নিজের একটি ঘর মেরামত করেন এবং সেখানে তিনি ৫০,০০০ হাজারেরও বেশী বই সমৃদ্ধ একটি ব্যক্তিগত পাঠাগার প্রতিষ্ঠা করেন।.[৯] তাঁর প্রথম স্ত্রী রামাবাই দীর্ঘ অসুস্থতার পরে একই বছর মৃত্যুবরণ করেন। অসুস্থ অবস্থায় তাঁর স্ত্রী রামাবাইয়ের পান্দরপুর তীর্থে যাওয়ার আশাবাদ ব্যক্ত করেন কিন্তু আম্বেদকর তাঁকে যেতে দিতে অস্বীকৃতি জানান এই বলে যে, তিনি তাঁকে বরং একটি নতুন পান্দরপুর বানিয়ে দিবেন হিন্দু পান্দরপুরের পরিবর্তে - যেটা কিনা তাদের অস্পৃশ্য বলে গণ্য করে। ১৩ই অক্টোবর নাসিকের কাছে ঈওলার বৈঠকে বক্তব্যে আম্বেদকর তাঁর ভিন্ন ধর্মে দীক্ষিত হওয়ার অভিপ্রায় ঘোষণা করেন এবং তাঁর অনুগতদেরও হিন্দু ধর্ম ত্যাগে প্রণোদিত করেন।[৯] সমগ্র ভারতের বহুসংখ্যক জন সভায় তিনি তাঁর আহবানটি পুনর্ব্যক্ত করেন। ১৯৩৬ সালে আম্বেদকর স্বনির্ভর শ্রমিক দল (ইন্ডিপেন্ডেন্ট ল্যাবর পার্টি) প্রতিষ্ঠা করেন, যেটি ১৯৩৭ সালের কেন্দ্রীয় আইন প্রণয়ন পরিষদ বা বিধানসভার (Central Legislative Assembly) নির্বাচনে ১৫ আসন লাভ করেন। নিউইওর্কে লিখিত গবেষণালব্ধ উপাত্তের ভিত্তিতে একই বছর তিনি তাঁর বই দ্য এন্নিহিলেশন অব কাস্ট প্রকাশ করেন। ব্যাপক জনপ্রিয় সাফল্যে অর্জনের পর, আম্বেদকর গোঁড়াবাদী ধর্মীয় নেতাদের এবং নিন্ম সাধারণের জন্য অস্পৃশ্য, বর্ণ প্রথার তীব্র সমালোচনা করেন। আম্বেদকর প্রতিরক্ষা উপদেষ্টা সমিতির এবং রাজপ্রতিনিধির নির্বাহী সভায় শ্রম মন্ত্রী হিসেবে কাজ করেন। কংগ্রেস ও গান্ধী অস্পৃশ্যদের প্রতি যা করেছিল, আম্বেদকর কপটতার সহিত তীব্রভাবে গান্ধী ও কংগ্রেসকে আক্রমণ করেন।[১০] তাঁর কাজের মধ্যে "কারা শুভ্র ছিল?"তে (Who were Shudras?) বর্ণনা করতে চেষ্টা করেন শুভ্র বর্ণ গঠিত হয় অর্থাৎ পুরোহিত তন্ত্রের হিন্দু বর্ণ প্রথার (Hierarchy of Hindu Caste System) নিন্ম বর্ন গঠনের উপর আলোকপাত করেন। তিনি এও উল্লেখ করেন শুভ্র কীভাবে অস্পৃশ্য হতে আলাদা। তিনি তাঁর রাজনৈতিক দল বদলে তদারকি করেন সারা ভারতের সিডিউল কাস্টেস ফেডারেশনে, যদিও তা ১৯৪৬-এ ভারতের সংবিধান পরিষদের নির্বাচনে ভালো করে নি। পরিশিষ্ট লিখতে গিয়ে ১৯৪৮ সালে আম্বেদকর হিন্দুবাদকে কর্কশ ভাষায় সমালোচনা করেন তাঁর "দ্য আন্টাচেব্যলসঃ এ থিসিস অন দ্য অরিজিনস অব আন্টাচেব্যলিটি" তে এভাবেঃ
The Hindu Civilisation.... is a diabolical contrivance to suppress and enslave humanity. Its proper name would be infamy. What else can be said of a civilisation which has produced a mass of people.... who are treated as an entity beyond human intercourse and whose mere touch is enough to cause pollution?
- "হিন্দু সভ্যতা.... হচ্ছে মানবতাকে দমন এবং পরাভূত করতে একটি পৈশাচিক কৌশল। এর প্রকৃত নাম হবে সামাজিক কুখ্যাতি। কাকে সভ্যতা বলে ডাকা যায়, যার একগাদা মানুষ...., যাদের সত্ত্বা মানব সম্পর্কের নিচে গণ্য হয় ও শুধু যাদের ছোঁয়া দূষণের জন্য যথেষ্ট?"[১০]
[সম্পাদনা]পাকিস্তান বা ভারতের সীমানা
১৯৪১ থেকে ১৯৪৫ সালের মধ্যে, তিনি বহুসংখ্যক বই, ক্ষুদ্র পুস্তিকা প্রকাশ করেন যেমন থটস্ অন পাকিস্তান, যেখানে তিনি মুসলিম লীগ কর্তৃক দাবিকৃত আলাদা পাকিস্তান রাষ্ট্র কিন্তু যদি মুসলমানরা চায় তাদের সুবিধাজনক স্বীকৃতি।[১১]
উপরের বইটিতে আম্বেদকর একটি উপাধ্যায়ে লিখেছিলেন যদি মুসলমানেরা সত্যিই ও নিয়ত পাকিস্তান চায়, তাদের সিদ্ধান্ত গ্রহণ করা উচিত। তিনি আরো উল্লেখ করেন যে, যদি তারা পাকিস্তানের বশ্যতা স্বীকার করে তবে তাদের অবশ্যই সে অধিকার দেয়া হবে। ভারতের প্রতিরক্ষার ক্ষেত্রে সেনা বাহিনীতে নিয়োজিত মুসলমানদের বিশ্বাস করা যায় কিনা তা নিয়ে তিনি প্রশ্ন তোলেন। মুসলমানরা যদি ভারত আক্রমণ করে অথবা মুসলমান বিদ্রোহ হয়, তবে ভারতীয় মুসলিম সেনারা কার পক্ষ নেবে? ভারতের সুরক্ষাজনিত কারণে, মুসলমানরা যেভাবে চায় সেভাবে পাকিস্তানকে মেনে নেয়া উচিত। আম্বেদকরের মতে, হিন্দুদের ধারণা যে, যদিও হিন্দু ও মুসলমান দুটি ভিন্ন জাতি তাঁরা একটি রাষ্ট্রে একত্রে সহ-অবস্থান করতে পারে, যা কিনা একটি বিকৃত পরিকল্পনা, কোনো সুস্থ ব্যক্তি এতে সম্মত নয়।[১১]
আম্বেদকর দক্ষিণ এশিয়ায় ইসলাম চর্চারও সমালোচক ছিলেন। ভারত বিভক্তির সমর্থন করে, তিনি মুসলিম সমাজে বাল্য বিবাহ চর্চার, সাথে নারীদের ভুল পথে পরিচালিত করার নিন্দা জানান।- No words can adequately express the great and many evils of polygamy and concubinage, and especially as a source of misery to a Muslim woman. Take the caste system. Everybody infers that Islam must be free from slavery and caste.[While slavery existed], much of its support was derived from Islam and Islamic countries. While the prescriptions by the Prophet regarding the just and humane treatment of slaves contained in the Koran are praiseworthy, there is nothing whatever in Islam that lends support to the abolition of this curse. But if slavery has gone, caste among Musalmans [Muslims] has remained.
"কোনো শব্দই বহুবিবাহপ্রথা ও অবিবাহিত সহবাসের (Concubinage) ক্ষতি প্রকাশে পর্যাপ্ত নয়, বিশেষত মুসলিম নারীদের সীমাহীন দুর্ভাগ্যের কারণ। বর্নপ্রথা বিবেচনায় নিয়ে সকলকে সিদ্ধান্ত নিতে হবে যে, ইসলাম সমস্ত কৃতদাসত্ব ও বর্ন প্রথা মুক্ত। [কৃতদাসত্ব যখন ছিলো] ইসলাম ও ইসলামিক দেশগুলোর সমর্থন পাওয়া যায়। নবী কর্তৃক এই ব্যাপারে যখন দাসদের প্রতি মানুষের আচরণ নির্দেশিত হয় প্রশংসিত কোরানে, এই রকম কোনো কিছুই নেই যে ইসলামে যা এই অভিশাপ থেকে উত্তোলনের অনুমোদন দেয়। কিন্তু যদি ক্রীতদাসত্ব চলে যায়, শ্রেণী প্রথা মুসলিমে রয়ে যাবে।"[১১]
তিনি লিখেছিলেন যে, মুসলিম বিশ্ব হচ্ছে "হিন্দু সমাজের চেয়েও অনেকাংশে সামাজিক দুর্ভোগে ভরা" সমালোচনা করে তিনি বলেন, মুসলমানরা তাদের সাম্প্রদায়িক প্রথাকে (Sectarian Caste System) ভার্তৃত্বএর শুতিমধুরতা (Euphemisms) দিয়ে মোড়কিত করেছে।[১১]তিনি আরো বলেন, মুসলমানদের মধ্যে আযরাল শ্রেণীর (Azral Class) প্রতি বৈষম্যতা, যারা "পদানত" (Degraded) হিসেবে স্বীকৃত, এর সাথে মুসলিম সমাজে পীড়াদায়ক পুরদাহ প্রথার মাধ্যমে নারীদের উৎপীড়নেরও (Oppression) সমালোচনা করেন। তিনি দৃঢ় কন্ঠে অভিযোগ করেন যে, পুরদাহ প্রথা হিন্দুদের চর্চা হলেও মুসলমানরা ধর্মের মাধ্যমে তা অনুমোদন করে নেন। তাঁর মতে, ইসলামের প্রতি তাদের ধর্মোম্মত্ততা (fanaticism) এতটাই উপরে উঠে যে, আক্ষরিক অর্থে ইসলামের বাণী তাদের সমাজকে করেছে খুব দৃঢ় এবং অপরিবর্তনীয়। তিনি আরো লিখেন যে, অন্য দেশের মুসলমানদের মতো যেমন তুরষ্কের-এর মতো ভারতীয় মুসলমানরাও নিজেদের সমাজকে পুনর্গঠনে ব্যর্থ হয়েছে।[১১]
[সম্পাদনা]ভারতের সংবিধান খসড়ায় অবদান
১৫ই অগাস্ট ১৯৪৭ সালে ভারতের স্বাধীনতার দিন, নব্য গঠিত কংগ্রেস শাসিত সরকার আম্বেদকরকে জাতির প্রথম আইন মন্ত্রী পদ পদার্পণ করেন, যা তিনি সানন্দে গ্রহণ করেছিলেন। ২৯ই অগাস্ট, আম্বেদকরকেসংবিধান খসড়া সমিতির সভাপতি করা হয়, যা ভারতের নতুন মুক্ত সংবিধান রচনায় বিধানসভা কর্তৃক আরোপিত হয়। আম্বেদকর তাঁর সহপাঠীদের ও সমকালীন পর্যবেক্ষকদের কাছ থেকে প্রচুর প্রশংসা কুড়িয়েছিলেন। এই কাজে আম্বেদকর প্রাচীন বৌদ্ধ ধর্মে সঙ্ঘের-চর্চা নিয়ে বৌদ্ধ ধর্মীয় গ্রন্থে অধিক পড়াশোনাই অনেক সহায়ক হিসেবে কাজ করেছিলো। ব্যালটের দ্বারা ভোট প্রদান, তর্ক-বিতর্কের ও অগ্রবর্তী নীতিমালা, করণীয় বিষয়সূচী, সভা-সমিতি ও ব্যবসায় সংক্রান্ত প্রস্তাবনা সমূহের ব্যবহার ইত্যাদি সংঘ চর্চা দ্বারা সমন্বয় সাধিত হয়। সংঘ চর্চা প্রাচীন ভারতের কিছু রাষ্ট্রীয় প্রজাতান্ত্রিক উপজাতিগোষ্ঠী যেমন শাক্যবংশ (Shakyas) ও লিচ্ছবিররা (Lichchavis) কর্তৃক প্রতিষ্ঠিত। অতঃপর আম্বেদকর যদিও তাঁর সাংবিধানিক অবয়ব তৈরিতে পশ্চিমা প্রণালীর ব্যবহার করেন, বস্তুত এর অনুপ্রেরণা ছিলো ভারতীয়, বাস্তবিকপক্ষে উপজাতীয়।
গ্রানভিলে অস্টিন আম্বেদকর কর্তৃক প্রণীত ভারতীয় সংবিধান খসড়াকে বর্ণনা দেন এভাবে "একনিষ্ঠ ও সর্বোত্তম সামাজিক নথি পত্র।"... 'অধিকাংশ ভারতের সাংবিধানিক শর্ত সরাসরি সামাজিক বিপ্লবের সমর্থনে উপনীত হয়েছে অথবা প্রয়োজনীয় শর্ত আরোপের মাধ্যমে রাষ্ট্রবিপ্লবকে পরিপুষ্ট করার চেষ্টা। ' আম্বেদকর কর্তৃক লিখিত ভারতের সাংবিধানিক নিশ্চয়তা ও সুরক্ষা সর্বাধিক সাধারণ জনসাধারণের প্রতি প্রদান করা হয়েছে যেমন ধর্মীয় স্বাধীনতা, অস্পৃশ্যতা বিলোপ এবং সব ধরনের বৈষম্য বিধিবহির্ভূত করেন। আম্বেদকর নারীদের অধিক অর্থনৈতিক ও সামাজিক অধিকারের জন্য যুক্তি প্রদর্শন করেন। তিনি এতে বিধানসভার সমর্থন অর্জন করে সিডিউল কাস্টেসভুক্ত নারী সদস্যদের বা সিডিউল উপজাতীয়দের জন্য বেসরকারি খাতে বিদ্যালয়, মহাবিদ্যালয় কর্মক্ষেত্রে চাকরির বিধান প্রদান করে নির্দিষ্ট আসনের ব্যবস্থা করেন, যা একটি সম্মতিসূচক পদক্ষেপ। ভারতের আইন প্রণেতারা আশা করেন এর মাধ্যমে আর্থ-সামাজিক বিভাজন দূর হবে ও ভারতীয় অস্পৃশ্যরা সুযোগ-সুবিধা পাবে, যা ছিলো বস্তুত দৃষ্টিগোচরহীন যেমনটি যখন দরকার ঠিক তখনের মতো।
১৯৪৯ সালের ২৬ই নভেম্বর গণ-পরিষদ কর্তৃক সংবিধানটি গৃহীত হয়। আম্বেদকর ১৯৫১ সালে হিন্দু কোড বিল খসড়াটি সংসদের আস্তাবলে (stalling in parliament) রাখার কারণে মন্ত্রী পরিষদ থেকে পদত্যাগ করেন, যা পৈতৃক সম্পত্তি, বিবাহ ও অর্থনীতি আইনের আওতায় লিঙ্গ সমতাকে ব্যাখ্যা করেছিল। প্রধানমন্ত্রী নেহেরু, মন্ত্রীসভা ও অনেক কংগ্রেস নেতারা ইহাকে সমর্থন জানালেও বেশিরভাগ সাংসদ এর সমালোচনা করেন। আম্বেদকরস্বাধীনভাবে ১৯৫২'র নির্বাচনে লোকসভার হয়ে সাংসদে নিন্মপদে (lower house of parliament) প্রতিদ্বন্দ্বিতা করেন, কিন্তু হেরে যান। তাঁকে পরে রাজ্যসভার উচ্চ পদস্থ সাংসদ পদে সমাসীন করা হয় ১৯৫২ সালের মার্চ মাসে এবং মৃত্যুর আগ পর্যন্ত সদস্যপদে বহাল ছিলেন।[সম্পাদনা]বৌদ্ধ ধর্ম গ্রহণ
নৃতত্ত্বের ছাত্র হিসেবে আম্বেদকর আবিষ্কার করেন মহরেরা আসলে প্রাচীন ভারতীয় বৌদ্ধ। বৌদ্ধ ধর্ম ত্যাগে অস্বীকৃতি জানানোর কারণে তাদেরকে গ্রামের বাইরে সমাজচ্যুতদের ন্যায় থাকতে বাধ্য করা হলো, অবশেষে তারাই অস্পৃশ্যতে পরিণত হয়েছিলো। তিনি এই ব্যাপারে তাঁর পান্ডিত্যপূর্ণ বই "কারা শুভ্র ছিল?" তে বর্ণনা দেন।
আম্বেদকর তাঁর সারাজীবনে বৌদ্ধ ধর্ম অধ্যয়ন করেন, ১৯৫০ এর সময়ে তিনি এই ধর্মে তাঁর সম্পূর্ণ মনোযোগ দেন এবং শ্রীলঙ্কা ভ্রমণ করেন (তারপর শিলং) বৌদ্ধ পন্ডিতদের ও ভিক্ষুদের একটি সম্মেলনে যোগ দিতে। যখন তিনি পুনের কাছাকাছি একটি নতুন বৌদ্ধ মন্দির অর্পণ করেন, তখন আম্বেদকর ঘোষণা দেন যে, তিনি বৌদ্ধ ধর্মের উপর একটি বই লিখেছেন, যত শীঘ্রই তিনি বইটি শেষ করবেন, তিনি সাদামাটাভাবে এই ধর্মে গ্রহণ করবেন।[১২]আম্বেদকর ১৯৫৪ সালে দু'বার বার্মা সফর করেন, দ্বিতীয়বার অবশ্য রেঙ্গুনের বিশ্ব ৩য় বৌদ্ধ শিক্ষাবৃত্তি সম্মেলনে যোগদান করতে যান। ১৯৫৫ সালে তিনি ভারতীয় বৌদ্ধ মহাসভা (দ্য বুড্ডিস্ট সোসাইটি অব ইন্ডিয়া) গঠন করেন। ১৯৫৬ সালে তিনি তাঁর সর্বশেষ বই "বুদ্ধ ও তাঁর ধর্ম" (The Buddha and His Dhamma)-এর কাজ শেষ করেন, যেটি তাঁর মরণোত্তর ছাপানো হয়।
সভার পরে শ্রীলঙ্কার এক ভিক্ষু হামমালা সাদ্ধ্যতিষ্য,[১৩]আম্বেদকর তাঁর নিজের ও অনুসারীদের জন্যনাগপুরে ১৪ই অক্টোবর ১৯৫৬ সালে একটি অনাড়ম্বর অনুষ্ঠানের আয়োজন করেন। ঐতিহ্যবাহী প্রথায় বৌদ্ধ ভিক্ষুর কাছ থেকে ত্রিশরণ (Three Refuges) ও পঞ্চশীল (Five Precepts) গ্রহণের মাধ্যমে তিনি তাঁর ধর্মান্তরিতের কাজ সম্পন্ন করেন। তারপর তিনি তাঁর সহযোগীদের (সংখ্যায় ৫ লাখের মতো) যারা তাঁর পাশে ছিলেন, সবাইকে তিনি ধর্মান্তরিত করান।[১২] তারপর তিনি নেপালের কাঠমুন্ডুতে ৪র্থ বিশ্ব বৌদ্ধ সম্মেলনে অংশগ্রহণের উদ্দেশ্যে যাত্রা করেন। তিনি "বুদ্ধ ও কার্ল মার্ক্স" এবং "বিপ্লব ও বিপ্লব-বিরোধী প্রাচীন ভারত" সম্পর্কিত রচনা প্রকাশ করেন যা তাঁর বই বুদ্ধ ও তাঁর ধর্ম বুঝতে প্রয়োজনীয় ভূমিকা রাখে, যা তিনি শেষ করে যেতে পারেন নি।[সম্পাদনা]মৃত্যু
১৯৪৮ সাল থেকে আম্বেদকর ডায়াবেটিস রোগে ভুগছিলেন। শারীরিক অবনতির জন্য ১৯৫৪ সালে জুন থেকে অক্টোবর মাস পর্যন্ত তিনি শয্যাগত ছিলেন ও তাঁর দৃষ্টিশক্তি হারান।[১২] রাজনৈতিক কারণে তিনি ক্রমবর্ধমানভাবে অনেক তিক্তবিরক্ত হয়ে উঠেন, যা তাঁর স্বাস্থ্যের কাল হয়ে দাঁড়ায়। ১৯৫৫ সালের পুরোটা জুড়ে তিনি প্রচন্ডভাবে কাজ করার ফলে তাঁর শারীরিক অবস্থার অধিকতর অবনতি হয়। টানা তিন দিন "বুদ্ধ ও তাঁর ধর্ম" বইটির সর্বশেষ পান্ডুলিপি তৈরির পর বলা হয় যে, তিনি ৬ই ডিসেম্বর ১৯৫৬ সালে তাঁর নিজ বাড়ি দিল্লীতে ঘুমন্ত অবস্থায় চির নিদ্রায় শায়িত হন।
৭ই ডিসেম্বর তাঁর জন্য বৌদ্ধ ধর্মীয় আদলে দাদার চৌপাট্টি সমুদ্র সৈকতে একটি শাবদাহ নির্মাণ করেন। হাজারো শত অনুসারী, কর্মীবৃন্দ ও শুভানুধ্যায়ী ব্যক্তিবর্গ উপস্থিত হন। ১৬ই ডিসেম্বর ১৯৫৬ সালে একটি ধর্মান্তর অনুষ্ঠানের আয়োজন করা হয়, যারা শাবদাহ অনুষ্ঠানে অংশ নিয়েছিলেন তাঁরা একই স্থানে বৌদ্ধ ধর্ম গ্রহণ করেছিলেন।
আম্বেদকর তাঁর দ্বিতীয় স্ত্রী সভিতা আম্বেদকর (বিবাহ পূর্ব নামঃ সার্দা কবির), তাঁর স্বামীর সাথে তিনিওবৌদ্ধ ধর্ম গ্রহণ করেন এবং ২০০২ সালে বৌদ্ধালম্বী হিসেবেই মারা যান। উনার পুত্র ইশান্ত (অন্য নাম ভাইয়াসাহেব আম্বেদকর) ও তাঁর পুত্রবধূ মীরা তাই আম্বেদকর। আম্বেদকরের নাতি প্রকাশ যিনিইন্ডিয়ান বুড্ডিস্ট অ্যাসোসিয়েশান এর জাতীয় সভাপতি। পূর্ব নাম বালাসাহেব ঈশান্ত আম্বেদকর, ভারতীয় "বাহুযান মহাসঙ্ঘ"এর নেতৃত্ব দেন এবং উভয় ভারতীয় লোকসভায় নিয়োজিত।
আম্বেদকরের ব্যক্তিগত মন্তব্য খাতায় ও কাগজে বহু অসমাপ্ত মুদ্রলিখন (টাইপস্ক্রিপ্টস) ও হাতে লেখা খসড়া পাওয়া যায়, পরবর্তীতে ধীরে ধীরে তা প্রকাশিত হয়েছিলো। যার মধ্যে ছিলো "ওয়েটিং ফর অ্যা ভিসা", যার সম্ভাব্য লিখিত সময় ১৯৩৫ থেকে ১৯৩৬ এর মাঝামাঝি এবং একটি আত্মজীবনচরিত (Autobiographical work) ও "অস্পৃশ্য বা ভারতের গেটো শিশুরা" যেটি ১৯৫১'র আদমশুমারহিসেবে বিবেচিত।[১২]
আম্বেদকরের জন্য তাঁর দিল্লীসভা ২৬ আলীপুর রাস্তায় একটি স্মারক স্থাপিত হয়। তাঁর জন্মবার্ষিকী উপলক্ষে সরকারি ছুটির দিন ঘোষণা করেআম্বেদকর জয়ন্তী বা ভীম জয়ন্তী হিসেবে পালিত হয়। তাঁকে মরণোত্তর ১৯৯০ সালে ভারতের সর্বোচ্চ উপাধি "ভারত রত্ন" দেয়া হয়েছিল। তাঁর সম্মানে বহু সরকারি প্রতিষ্টানের নামকরণ করা হয় যেমন হায়দ্রাবাদের ডঃ বাবাসাহেব আম্বেদকর ওপেন ইউনিভার্সিটি, আন্দ্র প্রদেশের শ্রীকাকুলাম ডঃ বিআর আম্বেদকর ইউনিভার্সিটি, মুজাফ্ফরপুরের বি আর আম্বেদকর বিহার ইউনিভার্সিটি এবং জালান্দরের বি আর আম্বেদকর ন্যাশনাল ইনস্টিটিউট অব টেকনোলজি, ও নাগপুরের ডঃ বাবাসাহেব আম্বেদকর আন্তর্জাতিক বিমানবন্দর, শোনগাঁও বিমানবন্দর। ভারতের সংসদ ভবনে আম্বেদকরের একটি বিশাল প্রতিকৃতি প্রদর্শিত আছে।
নাগপুরে তাঁর জন্ম (১৪ই এপ্রিল) ও মৃত্যুবার্ষিকীতে (৬ই ডিসেম্বর) ও ধর্মচক্র প্রবর্তন দিন (১৪ই অক্টোবর), মুম্বাইয়ে কমপক্ষে ৫লাখ অনুসারীরা তাঁর স্মৃতির প্রতি শ্রদ্ধা জানাতে জড়ো হন। হাজারো বইয়ের দোকান বসে, বিক্রি হয় এই দিন। তাঁর অনুসারীদের প্রতি বার্তা ছিলঃ "শিক্ষিত হও!!! আন্দোলন কর!!! সংগঠিত হও!!!"
[সম্পাদনা]রচনাবলী ও বক্তব্যসমূহ
শিক্ষা মন্ত্রণালয়, মহারাষ্ট্র সরকার (বোম্বে) আম্বেদকরের সংকলিত রচনাবলী ও বক্তব্যসমূহ বিভিন্ন বই আকারে প্রকাশ করেন।[১৪]
ভলিউম নম্বর. বর্ণনা ভলি. ১. ভারত জাতিঃ তাদের পদ্ধতি, উৎপত্তি এবং উন্নয়ন এবং ১১টি অন্যান্য প্রবন্ধ ভলি. ২. ডঃ আম্বেদকর বোম্বে বিধানসভায়, সীমন কমিশনের সাথে এবং গোল টেবিল বৈঠকে, ১৯২৭-১৯৩৯ ভলি. ৩. হিন্দু দর্শনশাস্ত্র; ভারত এবং সাম্যবাদের পূর্বসর্তাবলী; রাষ্ট্রবিপ্লব ও বিপ্লব বিরোধী; বুদ্ধ বা কার্ল মার্ক্স ভলি. ৪. হিন্দুদের প্রহেলিকা[১৫] ভলি. ৫. অস্পৃশ্য ও অস্পৃশ্যতার উপর প্রবন্ধ ভলি. ৬. ব্রিটিশ ভারতে আঞ্চলিক অর্থনীতির বিবর্তন ভলি. ৭. কারা শুভ্র ছিলো? ; অস্পৃশ্য সম্প্রদায় ভলি. ৮. পাকিস্তান বা ভারতের সীমানা ভলি. ৯. কংগ্রেস ও গান্ধী অস্পৃশ্যদের প্রতি যা করেছিলো; জনাব গান্ধী এবং অস্পৃশ্যদের দাসত্ব মোচন ভলি. ১০. ডঃ আম্বেদকর রাষ্ট্র প্রধান কার্যনির্বাহক সমিতির সদস্য হিসেবে, ১৯৪২-১৯৪৬ ভলি. ১১. বুদ্ধ ও তাঁর ধর্ম ভলি. ১২. অপ্রকাশিত লেখা; প্রাচীন ভারতীয় ব্যবসা-বাণিজ্য; আইনের সংক্ষিপ্ত ব্যাখ্যাসমূহ; ওয়েটিং ফর অ্যা ভিসা ; অন্যান্য টীকাসমূহ, ইত্যাদি। ভলি. ১৩. ভারতের মুখ্য সংবিধান স্থপতি হিসেবে ভলি. ১৪. (২ খন্ডে) ডঃ আম্বেদকর এবং হিন্দু কোড বিল ভলি. ১৫. ডঃ আম্বেদকর স্বাধীন ভারতের প্রথম আইন মন্ত্রী হিসেবে এবং সংসদের বিরোধী সদস্য হিসেবে (১৯৪৭-১৯৫৬) ভলি. ১৬. ডঃ আম্বেদকরের পালি ব্যাকরণ ভলি. ১৭ (১ম অংশ) ডঃ বি. আর. আম্বেদকর এবং তাঁর Egalitarian রাষ্ট্র বিপ্লব – মানবাধীকার যুদ্ধ। Events starting from March 1927 to 17 November 1956 in the chronological order (২য় অংশ) ডঃ বি. আর. আম্বেদকর এবং তাঁর Egalitarian রাষ্ট্র বিপ্লব – সামাজিক-রাজনৈতিক এবং ধর্মীয় কর্মকান্ড। Events starting from November 1929 to 8 May 1956 in the chronological order (Part III) ডঃ বি. আর. আম্বেদকর এবং তাঁর Egalitarian রাষ্ট্র বিপ্লব – বক্তব্যসমূহ. Events starting from 1 January to 20 November 1956 in the chronological order ভলি. ১৮ (৩ খন্ডে) ডঃ বি. আর. আম্বেদকরের রচনাবলী এবং বক্তব্যসমূহ (মারাঠী) ভলি. ১৯ ডঃ বি. আর. আম্বেদকরের রচনাবলী এবং বক্তব্যসমূহ (মারাঠী) ভলি. ২০ ডঃ বি. আর. আম্বেদকরের রচনাবলী এবং বক্তব্যসমূহ (মারাঠী) ভলি. ২১ ডঃ বি. আর. আম্বেদকরের ছবিগুচ্ছ এবং চিঠি পত্র [সম্পাদনা]সমালোচনা ও উইল
আম্বেদকরের উইল একটি সামাজিক রাজনৈতিক সংস্কারক হিসেবে আধুনিক ভারতে এর প্রভাব লক্ষণীয় ছিলো। স্বাধীনতাত্তোর ভারতে তাঁর সামাজিক রাজনৈতিক চিন্তাধারা সমগ্র রাজনৈতিক ক্ষেত্রে সম্মান অর্জন করে। তাঁর যুগান্তকারী পদক্ষেপ অনেক জীবনাকাশে প্রভাব ফেলে এবং আজকের ভারতকে যেভাবে পরিচালিত করে আর্থ-সামাজিক বিচক্ষণভাবে, শিক্ষা ও স্বীকৃতি সূচক আর্থ-সামাজিক ও নৈতিক অভিপ্রায়। তাঁর পাণ্ডিত্য ভাবধারা তাঁকে স্বাধীন ভারতের প্রথম আইন-মন্ত্রী হতে ও সংবিধান খসড়া কমিটির সভাপতি হওয়ার নেতৃত্ব দেয়। তিনি একাগ্রভাবে ব্যক্তিগত স্বাধীনতা ও ধর্মীয় গোঁড়াবাদী সাম্প্রদায়িক তথাকথিত হিন্দু সমাজকে সমানভাবে সমালোচনা করেন। তাঁর হিন্দু নিন্দা ও বর্ণ প্রথার স্থাপনা, তাঁকে বিতর্কিত করে তুলে, যদিও তাঁর বৌদ্ধ ধর্মে ধর্মান্তরিত হওয়ার বিষয়টি ভারতে বৌদ্ধ দর্শন ও বিদেশে পূনর্জাগরণের সৃস্টি করে।
আম্বেদকরের রাজনৈতিক মতাদর্শ দলিত রাজনৈতিক দল গঠিত হয়, প্রচারণা এবং কর্মীদের ভারতজুড়ে সক্রিয় ছিল, বিশেষত মহারাষ্ট্র। আম্বেদকরের রাজনৈতিক মতাদর্শ দলিত রাজনৈতিক দল গঠিত হয়, প্রচারণা এবং কর্মীদের ভারতজুড়ে সক্রিয় ছিল, বিশেষত মহারাষ্ট্র। তাঁর অনুপ্রেরণায় দলিত বৌদ্ধ আন্দোলন ভারতের অনেকাংশে বৌদ্ধ দর্শনের পুনর্যৌবন দান করে। ১৯৫৬ সালের নাগপুরের অনুষ্ঠানের সাথে তাল মিলিয়ে দলিত কর্মীরা বর্তমান সময়ের বেশিরভাগ ধর্মান্তর অনুষ্ঠানের আয়োজন করে থাকেন।
কিছু পণ্ডিত, সাথে কিছু ক্ষতিগ্রস্থ অন্ত্যজদের মতে, ব্রিটিশরা তাদের প্রতি নিরপেক্ষ ছিল, ব্রিটিশ নীতিমালা অব্যাহত থাকার দরুণ অনেক কুসংস্কার দূর করা সম্ভব হয়েছিলো। এই ধরনের সহমত ব্যক্ত করেন জ্যোতিরাও ফুলে সহ অনেক সামাজিক কর্মীরা। বর্তমানে ভারতে আম্বেদকর কর্তৃক প্রদত্ত সংরক্ষিত প্রাতিষ্ঠানিক আসনগুলো ছিল সেকেলে ও অযাচিত। অবশ্য এই ধরনের বক্তব্যকে দলিত সংঘ দ্বারা সবসময় অস্বীকৃত হয়। তাঁরা একে ভারতের হিন্দু সমাজ কর্তৃক অস্পৃশ্যদের উপর ও দলিত বিরোধী বক্তব্য বলে মনে করেন এবং বর্ণদের জন্য ভারতে সংরক্ষিত আসন ঔপনিবেশিক সময়োত্তর দলিতদের উচ্চ মার্গে তোলে।
১৯৯০ দশকের শেষ দিকে, হাঙ্গেরী-রোমানীরা তাদের নিজস্ব অবস্থার সাথে ভারতের দলিতদের অবস্থার তুলনা করেন। আম্বেদকরের পদক্ষেপের জন্যই তাঁরা বৌদ্ধ ধর্মে ধরমান্তরিত হতে অনুপ্রাণিত হয়েছিলো।.[১৬]
[সম্পাদনা]গ্রামীণ সংস্কৃতি
আম্বেদকর নামটি উৎপীড়িত ও দীর্ঘমেয়াদী শোষণের প্রতীক হয়ে উঠে। "জয় ভীম" নামটি সমগ্র ভারতে বৌদ্ধদের কাছে প্রশংসিত হয়ে উঠে।[১৭] তাঁর জীবনী ও দর্শনের উপর কতিপয় চলচ্চিত্র, নাটক এবং সাহিত্য বিষয়ক লেখা তৈরি হয়। ২০০০ সালে, জব্বার প্যাটেল পরিচালিত তাঁর জীবনী নির্ভর ইংরেজী চলচ্চিত্র (পরে হিন্দি ও অন্য ভারতীয় ভাষায় অনুদিত) "ডঃ বাবাসাহেব আম্বেদকর"[১৮] ভারতীয় নামের তারকা অভিনেতা মম্মত্ত এই চরিত্রে অভিনয় করেন। ছবিটি স্পন্সর করেন ইন্ডিয়াস ন্যাশনাল ফিল্ম ডেভেলপমেন্ট কর্পোরেশন এবং মিনিষ্ট্রি অব সোস্যাল জ্যাস্টিস। ছবিটি বহু বিতর্কের অবতারণার মধ্য দিয়ে মুক্তিলাভ করে। আম্বেদকর চরিত্রের জন্য মম্মত্ত সেরা অভিনেতা হিসেবে জাতীয় চলচ্চিত্র পুরস্কারে লাভ করেন। ডেভিড ব্লান্ডেল,ইউসিএলএ নৃতত্ত্বের অধ্যাপক এবং মানবজাতিতত্ত্ববিদ এরাইজিং লাইট নামের একটি ধারাবাহিক ঘটনাবহুল চিত্র ভারতের সামাজিক সমৃদ্ধির জন্য নির্মাণ করেন। এরাইজিং লাইট হচ্ছে আম্বেদকরের জীবনী ও ভারতের উন্নতির উপর একটি চলচ্চিত্র। রাজেশ কুমার লিখিত অরভিন্দ গর পরিচালিতনাটক "আম্বেদকর ও গান্ধী" ইতিহাসের দুই ব্যক্তিত্ব মহাত্মা গান্ধী ও ভীমরাও আম্বেদকরকে তুলে ধরা হয়।[১৯]
আম্বেদকর যখন ছোট ছিলেন আম্বেদকরের বাবা রামজী চাইতেন যেন ভীমরাও যেন সংস্কৃত ভাষা শেখেন এবং সেই জন্য তাঁকে মুম্বাইয়েরএলিফিনস্টোন উচ্চ বিদ্যালয়ে ভর্তি করান। দলিত ছিলেন বিধায় তিনি তা পাঠে অস্বীকৃতি জানান। এইটা জেনে পুনের ৮৪ বছর বয়ষ্ক বৈদিক পন্ডিত প্রভাকর জোশি "ডঃ বি আর আম্বেদকর"এর উপর ২০০৪ সালে একটি জীবনী লেখেন। জোশি এর জন্য মহারাষ্ট্র সরকার কর্তৃক মহাকবি কালিদাসপুরস্কার লাভ করেন। কিছু শিক্ষক ছাত্র ভীমরাও-এর প্রতি যে অবিচার করেছিলেন গ্লুকোমার সাথে যুদ্ধ করতে করতে প্রায়শ্চিত্ত স্বরূপ বয়বৃদ্ধ জোশি১৫৭৭ শ্লোকের "ভীমায়ন" রচনা করেন।[২০]
লখনৌতে বিএসপি নেতা মায়াবতী ডঃ বি আর আম্বেদকর সামাজিক পরিবর্তন স্থল নির্মাণ করেন। আম্বেদকরের জীবনী ও উদ্ধৃতি দিয়ে চৈত্যটি নির্মাণ করা হয়। গ্রেট ব্রিটেন হোটেল (সরাইখানা), ৪৪৭ চার্চ স্ট্রিট, ভিক্টোরিয়া, অস্ট্রেলিয়ার সামনে, ডঃ আম্বেদকরের প্রতিকৃতি শোভা পায়।[২১][সম্পাদনা]তথ্যসূত্র
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Without rendering support, you may seequestion marks, boxes or other symbolsinstead of Indic characters; or irregular vowel positioning and a lack of conjuncts.ভীমরাও রামজি আম্বেডকর সম্পর্কে আরও তথ্য পেতে হলে উইকিপিডিয়ার সহপ্রকল্পগুলোতে অনুসন্ধান করে দেখতে পারেন:সংজ্ঞা, উইকিঅভিধান হতে
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ছবি ও অন্যান্য মিডিয়া, কমন্স হতে
ভ্রমণ নির্দেশিকা, উইকিভয়েজ হতে
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- ↑ Jamnadas, K.। "Jai Bhim and Jai Hind"।
- ↑ Dr. Babasaheb Ambedkar -ইন্টারনেট মুভি ডেটাবেজ
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- ↑ [১]
- ↑http://www.greatbritainhotel.com.au/
- Books
- Michael, S.M. (1999). Untouchable, Dalits in Modern India. Lynne Rienner Publishers. আইএসবিএন 9781555876975.
[সম্পাদনা]বহিঃসংযোগ
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[দেখাও] প্রথম ভারতীয় ক্যাবিনেট[দেখাও] ভারতের সংবিধান
উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকেThis article is part of the series:
ভারতীয় সংবিধানপ্রস্তাবনা ভারতের সংবিধান ভারতীয় প্রজাতন্ত্রের সর্বোচ্চ আইন। এই সংবিধানে সরকারের গঠন, কার্যপদ্ধতি, ক্ষমতা ও কর্তব্য নির্ধারণ; মৌলিক অধিকার, রাষ্ট্রপরিচালনার নির্দেশমূলক নীতি, এবং নাগরিকদের কর্তব্য নির্ধারণের মাধ্যমে দেশের মৌলিক রাজনৈতিক আদর্শের রূপরেখাটি নির্দিষ্ট করা হয়েছে। ১৯৪৯ সালের ২৬ নভেম্বর গণপরিষদে গৃহীত হওয়ার পর ১৯৫০ সালের ২৬ জানুয়ারি থেকে এই সংবিধান কার্যকরী হয়।[১]উল্লেখ্য, ১৯৩০ সালের ২৬ জানুয়ারি জাতীয় কংগ্রেসের ঐতিহাসিক স্বাধীনতা ঘোষণার স্মৃতিতে ২৬ জানুয়ারি তারিখটি সংবিধান প্রবর্তনের জন্য গৃহীত হয়েছিল। সংবিধানে ভারতীয় রাজ্যসংঘকে একটি সার্বভৌম,সমাজতান্ত্রিক, ধর্মনিরপেক্ষ গণতান্ত্রিক প্রজাতন্ত্র রূপে ঘোষণা করা হয়েছে; এই দেশের নাগরিকবৃন্দের জন্য ন্যায়বিচার, সাম্য ও স্বাধীনতা সুনিশ্চিত করা হয়েছে এবং জাতীয় সংহতি রক্ষার জন্য নাগরিকদের পরস্পরের মধ্যে ভ্রাতৃভাব জাগরিত করে তোলার জন্য অনুপ্রাণিত করা হয়েছে। "সমাজতান্ত্রিক", "ধর্মনিরপেক্ষ" ও "সংহতি" এবং সকল নাগরিকের মধ্যে "ভ্রাতৃভাব" – এই শব্দগুলি ১৯৭৬ সালে একটি সংবিধান সংশোধনীর মাধ্যমে সংবিধানের সঙ্গে যুক্ত করা হয়।[২] সংবিধান প্রবর্তনের স্মৃতিতে ভারতীয়রা প্রতি বছর ২৬ জানুয়ারি তারিখটি প্রজাতন্ত্র দিবস হিসেবে উদযাপন করেন।[৩] ভারতের সংবিধান বিশ্বের সার্বভৌম রাষ্ট্রগুলির মধ্যে বৃহত্তম[৪] লিখিত সংবিধান। এই সংবিধানে মোট ২৪টি অংশে ৪৪৮টি ধারা, ১২টি তফসিল এবং ১১৩টি সংশোধনী বিদ্যমান।[৫] ভারতের সংবিধানের ইংরেজি সংস্করণে মোট শব্দসংখ্যা ১১৭,৩৬৯। এই সংবিধানের প্রবর্তনের সঙ্গে সঙ্গে পূর্বপ্রচলিত ১৯৩৫ সালের ভারত শাসন আইনের অবসান ঘটে। দেশের সর্বোচ্চ আইন হওয়ার দরুন, ভারত সরকার প্রবর্তিত প্রতিটি আইনকে সংবিধান-অনুসারী হতে হয়। সংবিধানের খসড়া কমিটির চেয়ারম্যান ড. ভীমরাও রামজি আম্বেডকর ছিলেন ভারতীয় সংবিধানের প্রধান স্থপতি।
পরিচ্ছেদসমূহ
[আড়ালে রাখো][সম্পাদনা]পটভূমি
- মূল নিবন্ধ: ভারতের স্বাধীনতা আন্দোলন
১৮৫৮ থেকে ১৯৪৭ সাল পর্যন্ত ভারতীয় উপমহাদেশের অধিকাংশ অঞ্চলই ছিল ব্রিটিশ রাজশক্তির প্রত্যক্ষ শাসনাধীনে। এই সময় দেশকে বিদেশি শাসকদের হাত থেকে মুক্ত করতে এক জাতীয়তাবাদী আন্দোলনের সূত্রপাত ঘটে। ১৯৪৭ সালের ১৫ অগস্ট ভারত অধিরাজ্য ও পাকিস্তান অধিরাজ্যেরস্বাধীনতা অর্জনের মাধ্যমে এই আন্দোলনের পরিসমাপ্তি ঘটে। ১৯৫০ সালের ২৬ জানুয়ারি ভারতের সংবিধান গৃহীত হলে ভারতকে একটি সার্বভৌম গণতান্ত্রিক প্রজাতন্ত্র রূপে ঘোষণা করা হয়। স্বাধীনতা অর্জনের পরে ভারত শাসনের জন্য প্রয়োজনীয় আইনের নীতি ও রূপরেখাগুলি এই সংবিধানে ঘোষিত হয়। সংবিধান কার্যকরী হওয়ার দিন থেকে ভারত ব্রিটিশ রাজশক্তির অধিরাজ্যের পরিবর্তে পূর্ণ সার্বভৌম রাষ্ট্রে পরিণত হয়।
- ( सर्व शिक्षा मात्री भाषामा नहुनु सुक्ष्म गतिमा दास हुनु हो |)
- ( माताको दुध शिशुलाई शिक्षा मात्री भाषामा प्रभाव पर्छ सृष्टिलाई प्रकाशको गतिमा |)
[সম্পাদনা]সংবিধানের বিবর্তন
[সম্পাদনা]১৯৩৫ সালের পূর্ববর্তী ব্রিটিশ পার্লামেন্টের আইনসমূহ
১৮৫৭ সালের মহাবিদ্রোহের পর ব্রিটিশ পার্লামেন্ট ভারতের শাসনভার ব্রিটিশ ইস্ট ইন্ডিয়া কোম্পনির হাত থেকে স্বহস্তে তুলে নেয়। এর ফলে ব্রিটিশ ভারত ব্রিটিশ রাজশক্তির প্রত্যক্ষ শাসনাধীনে আসে। ১৮৫৮ সালের ভারত শাসন আইন বলে ব্রিটিশ পার্লামেন্ট ভারতে ব্রিটিশ সরকারের রূপরেখাটি চূড়ান্ত করে। ইংল্যান্ডে ভারত সচিব বা সেক্রেটারি অফ স্টেট ফর ইন্ডিয়ার পদটি সৃষ্টি করা হয়। এঁর মাধ্যমে ব্রিটিশ পার্লামেন্ট ভারত শাসন করত। সেক্রেটারি অফ স্টেটকে সহায়তা করত ভারতীয় কাউন্সিল (কাউন্সিল অফ ইন্ডিয়া)। ভারতের গভর্নর-জেনারেলের পদটিও সৃষ্টি করা হয় এই সময়। সেই সঙ্গে ব্রিটিশ সরকারের উচ্চ পদাধিকারীদের নিয়ে ভারতে একটি কার্যনির্বাহী পরিষদও (এক্সিকিউটিভ কাউন্সিল) সৃষ্টি করা হয়। ১৮৬১ সালের ভারতীয় কাউন্সিল আইন বলে কার্যনির্বাহী পরিষদের সদস্য ও অ-পদাধিকারী সদস্যদের নিয়ে আইন পরিষদ বা লেজিসলেটিভ কাউন্সিল স্থাপিত হয়।১৮৯২ সালের ভারতীয় কাউন্সিল আইন বলে দেশে প্রাদেশিক আইনসভা প্রতিষ্ঠিত হয় এবং আইন পরিষদের ক্ষমতা বৃদ্ধি করা হয়। এই সকল আইন বলে সরকার ব্যবস্থায় ভারতীয়দের অংশগ্রহণ বৃদ্ধি পেলেও তাঁদের ক্ষমতা ছিল সীমিতই। ১৯০৯ ও ১৯১৯ সালের ভারত শাসন আইন দুটি সরকার ব্যবস্থায় ভারতীয়দের অংশগ্রহণের সুযোগ আরও প্রসারিত করে।
[সম্পাদনা]ভারত শাসন আইন, ১৯৩৫
- মূল নিবন্ধ: ভারত শাসন আইন, ১৯৩৫
১৯৩৫ সালের ভারত শাসন আইনের সম্পূর্ণ প্রয়োগ না ঘটলেও পরবর্তীকালে ভারতের সংবিধানে এই আইনের প্রভাব অপরিসীম। সংবিধানের বহু বিষয় সরাসরি এই আইন থেকে গৃহীত হয়। সরকারের যুক্তরাষ্ট্রীয় গঠন, প্রাদেশিক স্বায়ত্তশাসন, যুক্তরাষ্ট্রীয় পরিষদ ও রাজ্যসভা নিয়ে দ্বিকক্ষীয় আইনসভা, কেন্দ্রীয় ও প্রাদেশিক সরকারগুলির মধ্যে আইনবিভাগীয় ক্ষমতাবণ্টনের মতো বিষয়গুলি উক্ত আইনের এমন কতকগুলি বিষয় যা বর্তমান সংবিধানেও গৃহীত হয়েছে।
[সম্পাদনা]ক্যাবিনেট মিশন পরিকল্পনা, ১৯৪৬
- মূল নিবন্ধ: ভারতে ক্যাবিনেট মিশন, ১৯৪৬
১৯৪৬ সালে ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী ক্লিমেন্ট এটলি ভারতে একটি ক্যাবিনেট মিশন প্রেরণ করেন। এই মিশনের উদ্দেশ্য ছিল ভারতের শাসনভার ব্রিটিশ রাজশক্তির হাত থেকে ভারতীয় নেতৃবর্গের হাতে তুলে দেওয়ার বিষয়ে পরিকল্পনা গ্রহণ ও চূড়ান্তকরণ এবং কমনওয়েলথ অফ নেশনসে একটি অধিরাজ্যের মর্যাদায় ভারতকে স্বাধীনতা প্রদান।[৬][৭] এই মিশন সংবিধানের রূপরেখা নিয়েও আলোচনা করে এবং সংবিধান খসড়া কমিটি স্থাপনের জন্য প্রাথমিক কয়েকটি নির্দেশিকাও চূড়ান্ত করা হয়। ১৯৪৬ সালের অগস্ট মাসে ব্রিটিশ ভারতীয় প্রদেশগুলির মোট ২৯৬টি আসনে নির্বাচন সমাপ্ত হয়। ১৯৪৬ সালের ৯ ডিসেম্বর ভারতের গণপরিষদের প্রথম সভা অনুষ্ঠিত হয় এবং এই দিনই সংবিধান রচনার কাজ শুরু হয়।[৮]
[সম্পাদনা]ভারতীয় স্বাধীনতা আইন, ১৯৪৭
- মূল নিবন্ধ: ভারতীয় স্বাধীনতা আইন, ১৯৪৭
১৯৪৭ সালের ১৮ জুলাই ভারতীয় স্বাধীনতা আইন কার্যকরী হয়। এই আইনবলে ব্রিটিশ ভারতকে দ্বিখণ্ডিত ভারত ও পাকিস্তান রাষ্ট্রের সৃষ্টি করা হয়। স্থির হয়, সংবিধান প্রবর্তন পর্যন্ত এই দুই রাষ্ট্র কমনওয়েলথ অফ নেশনসের দুটি অধিরাজ্যের মর্যাদা পাবে। এই আইনবলে ব্রিটিশ পার্লামেন্ট ভারত ও পাকিস্তান সংক্রান্ত বিষয়ে অব্যহতি দেওয়া হয় এবং উভয় রাষ্ট্রের উপর সংশ্লিষ্ট গণপরিষদের সার্বভৌমত্ব মেনে নেওয়া হয়। ১৯৫০ সালের ২৬ জানুয়ারি সংবিধান প্রবর্তিত হলে ভারতীয় স্বাধীনতা আইন প্রত্যাহৃত হয় এবং ভারত ব্রিটিশ রাজশক্তির অধিরাজ্যের বদলে সার্বভৌম গণতান্ত্রিক প্রজাতন্ত্রের মর্যাদা অর্জন করে। ১৯৪৯ সালের ২৬ জানুয়ারি ভারতের জাতীয় আইন দিবস হিসেবেও পরিচিত।
[সম্পাদনা]গণপরিষদ
- মূল নিবন্ধ: ভারতের গণপরিষদ
প্রাদেশিক আইনসভার নির্বাচিত সদস্যদের নিয়ে গঠিত ভারতের গণপরিষদ সংবিধানের খসড়াটি রচনা করে।[৮] জওহরলাল নেহেরু, চক্রবর্তী রাজাগোপালাচারী, রাজেন্দ্র প্রসাদ, সর্দার বল্লভভাই প্যাটেল, মৌলানা আবুল কালাম আজাদ, শ্যামাপ্রসাদ মুখোপাধ্যায় ও নলিনীরঞ্জন ঘোষ প্রমুখেরা ছিলেন এই গণপরিষদের প্রধান ব্যক্তিত্ব। তফসিলি শ্রেণীগুলি থেকে ৩০ জনেরও বেশি সদস্য ছিলেন। ফ্র্যাঙ্ক অ্যান্টনি ছিলেন অ্যাংলো-ইন্ডিয়ানসম্প্রদায়ের, এবং এইচ. পি. মোদী ও আর. কে. সিধওয়া ছিলেন পারসি সম্প্রদায়ের সদস্য। সংখ্যালঘু কমিটির চেয়ারম্যান ছিলেন হরেন্দ্রকুমার মুখোপাধ্যায়; তিনি ছিলেন একজন বিশিষ্ট খ্রিষ্টান এবং অ্যাংলো-ইন্ডিয়ান ব্যতীত অন্যান্য ভারতীয় খ্রিষ্টানদের প্রতিনিধি। অরি বাহাদুর গুরুং ছিলেন গোর্খা সম্প্রদায়ের প্রতিনিধি। বিশিষ্ট জুরি আল্লাদি কৃষ্ণস্বামী আইয়ার, বি. আর. আম্বেডকর, বেনেগাল নরসিং রাউ এবং কে. এম. মুন্সি, গণেশ মভলঙ্কারপ্রমুখেরাও গণপরিষদের সদস্য ছিলেন। বিশিষ্ট মহিলা সদস্যদের মধ্যে উল্লেখযোগ্য সরোজিনী নাইডু, হংস মেহেতা, দুর্গাবাই দেশমুখ ও রাজকুমারী অমৃত কৌর। সচ্চিদানন্দ সিনহা ছিলেন গণপরিষদের প্রথম সভাপতি। পরে রাজেন্দ্র প্রসাদ এর নির্বাচিত সভাপতি হন।[৮]
[সম্পাদনা]খসড়া রচনা
১৯৪৭ সালের ১৪ অগস্ট পরিষদের অধিবেশনে একাধিক কমিটি গঠন করার প্রস্তাব দেওয়া হয়। এই কমিটিগুলির মধ্যে উল্লেখযোগ্য ছিল মৌলিক অধিকার কমিটি, কেন্দ্রীয় ক্ষমতা কমিটি ও কেন্দ্রীয় সংবিধান কমিটি। ১৯৪৭ সালের ২৯ অগস্ট ড. বি. আর. আম্বেডকরের নেতৃত্বে খসড়া কমিটি গঠিত হয়। ড. আম্বেডকর ছাড়াও এই কমিটিতে আরও ছয় জন সদস্য ছিলেন। কমিটি একটি খসড়া সংবিধান প্রস্তুত করে সেটি ১৯৪৭ সালের ৪ নভেম্বরের মধ্যে গণপরিষদে পেশ করেন।
গণপরিষদ সংবিধান রচনা করতে ২ বছর ১১ মাস ১৮ দিন সময় নিয়েছিল। এই সময়কালের মধ্যে ১৬৬ দিন গণপরিষদের অধিবেশন বসে।[৩]একাধিকবার পর্যালোচনা ও সংশোধন করার পর ১৯৫০ সালের ২৪ জানুয়ারি গণপরিষদের মোট ৩০৮ জন সদস্য সংবিধান নথির দুটি হস্তলিখিত কপিতে (একটি ইংরেজি ও একটি হিন্দি) সই করেন। দুই দিন বাদে এই নথিটি ভারতের সর্বোচ্চ আইন ঘোষিত হয়।
পরবর্তী ৬০ বছরে ভারতের সংবিধানে মোট ১১৩টি সংশোধনী আনা হয়েছিল।
[সম্পাদনা]গঠন
বর্তমানে ভারতের সংবিধান একটি প্রস্তাবনা, ২৪টি অংশে বিভক্ত ৪৪৮টি ধারা, ১২টি তফসিল, ৫টি পরিশিষ্ট[৯] ও মোট ১১৩টি সংশোধনী নিয়ে লিখিত।[১০]
[সম্পাদনা]অংশ
সংবিধানের পৃথক পৃথক অধ্যায়গুলি অংশ নামে পরিচিত। প্রত্যেকটি অংশে আইনের এক একটি ক্ষেত্রে আলোচিত হয়। অংশের ধারাগুলির উপজীব্য হল নির্দিষ্ট বিষয়গুলি।
- প্রস্তাবনা
- প্রথম অংশ[১১] - ইউনিয়ন ও তার এলাকাসমূহ।
- দ্বিতীয় অংশ[১২] - নাগরিকতা.
- তৃতীয় অংশ – মৌলিক অধিকার।
- চতুর্থ অংশ[১৩] - নির্দেশমূলক নীতি ও মৌলিক কর্তব্য।
- পঞ্চম অংশ[১৪] - কেন্দ্র।
- ষষ্ঠ অংশ[১৫] - রাজ্য।
- সপ্তম অংশ[১৬] - প্রথম তফসিলের খ শ্রেণীর রাজ্য (প্রত্যাহৃত)।
- অষ্টম অংশ[১৭] - কেন্দ্রশাসিত রাজ্য।
- নবম অংশ[১৮] - পঞ্চায়েত ও পৌরশাসন ব্যবস্থা
- দশম অংশ – তফসিলি ও আদিবাসী এলাকা।
- একাদশ অংশ – কেন্দ্র-রাজ্য সম্পর্ক।
- দ্বাদশ অংশ – অর্থ, সম্পত্তি, চুক্তি ও মামলা।
- ত্রয়োদশ অংশ – আভ্যন্তরীণ ব্যবসা ও বাণিজ্য।
- চতুর্দশ অংশ – কেন্দ্র, রাজ্য ও ট্রাইব্যুনালের অধীনস্থ কৃত্যক।
- পঞ্চদশ অংশ - নির্বাচন।
- ষোড়শ অংশ – কিছু সামাজিক শ্রেণীর জন্য বিশেষ ব্যবস্থা।
- সপ্তদশ অংশ – ভাষা।
- অষ্টাদশ অংশ – জরুরি অবস্থা।
- ঊনবিংশ অংশ – বিবিধ।
- বিংশ অংশ – সংবিধান সংশোধন
- একবিংশ অংশ – সাময়িক, পরিবর্তনশীল ও বিশেষ ব্যবস্থা
- দ্বাবিংশ অংশ - ক্ষুদ্র শিরোনাম, শুরুর তারিখ, প্রামাণ্য হিন্দি সংস্করণ ও প্রত্যাহারসমূহ
- ত্রয়োবিংশ অংশ - সাময়িক, পরিবর্তনশীল ও বিশেষ ব্যবস্থা
- চতুর্বিংশ - সাময়িক, পরিবর্তনশীল ও বিশেষ ব্যবস্থা
[সম্পাদনা]তফসিল
সরকারের আমলাতান্ত্রিক কাজকর্ম ও নীতিগুলির বর্গবিভাজন ও সারণিকরণ করা হয়েছে তফসিলগুলিতে।
- প্রথম তফসিল (ধারা ১ – ৪) — রাজ্য ও কেন্দ্রশাসিত অঞ্চল – এখানে ভারতের রাজ্য ও কেন্দ্রশাসিত অঞ্চলগুলির তালিকা দেওয়া হয়েছে। সীমান্তে কোনো পরিবর্তন বা যে আইনের দ্বারা পরিবর্তন সাধিত হয়েছে, তারও তালিকা এখানে রয়েছে।
- দ্বিতীয় তফসিল (ধারা ৫৯, ৬৫, ৭৫, ৯৭, ১২৫, ১৪৮, ১৫৮, ১৬৪, ১৮৬ ও ২২১) — উচ্চপদস্থ আধিকারিকদের বেতন – সরকারি কার্যালয়ের আধিকারিক, বিচারপতি ও ভারতের কন্ট্রোলার ও অডিটর-জেনারেলের বেতনের তালিকা এখানে রয়েছে।
- তৃতীয় তফসিল (ধারা ৭৫, ৯৯, ১২৪, ১৪৮, ১৬৪, ১৮৮ ও ২১৯) — শপথ – নির্বাচিত আধিকারিক ও বিচারপতিদের শপথ।
- চতুর্থ তফসিল (ধারা ৪ ও ৮০) — রাজ্য ও কেন্দ্রশাসিত অঞ্চল অনুসারে রাজ্যসভার আসন সংখ্যা।
- পঞ্চম তফসিল (ধারা ২৪৪) — তফসিলি এলাকা[Note ১] ও তফসিলি উপজাতি [Note ২] প্রশাসন ও নিয়ন্ত্রণ (প্রতিকূল পরিস্থিতির জন্য যেসকল এলাকা ও উপজাতির বিশেষ সুরক্ষা প্রয়োজন, সেই সব ক্ষেত্রে)।
- ষষ্ঠ তফসিল (ধারা ২৪৪ ও ২৭৫) —অসম, মিজোরাম, ত্রিপুরা ও মেঘালয়ের উপজাতি-অধ্যুষিত অঞ্চলের প্রশাসন।
- সপ্তম তফসিল (ধারা ২৪৬) — কেন্দ্রীয়, রাজ্য ও যুগ্ম দায়িত্ব তালিকা।
- অষ্টম তফসিল (ধারা ৩৪৪ ও ৩৫১) — সরকারি ভাষাসমূহ।
- নবম তফসিল (ধারা ৩১-খ) — ভূমি ও ভূম্যধিকারী সংস্কার; সিক্কিমের ভারতভূক্তি। এটি আদালত কর্তৃক পর্যালোচিত হতে পারে।[১৯]
- দশম তফসিল (ধারা ১০২ ও ১৯১) — সাংসদ ও বিধায়কদের "দলত্যাগ-রোধ" সংক্রান্ত বিধি।
- একাদশ তফসিল (ধারা ২৪৩-ছ) — পঞ্চায়েত বা গ্রামীণ স্বায়ত্বশাসন।
- দ্বাদশ তফসিল (ধারা ২৪৩-প) — পৌরসভা।
[সম্পাদনা]সরকার ব্যবস্থা
ড. আম্বেডকরের মতে, ভারতীয় সংবিধানে বর্ণিত কেন্দ্রীয় সরকারের মূল রূপটি নিম্নরূপ:
" A democratic executive must satisfy three conditions:
1. It must be a stable executive, and
2. It must be a responsible executive.
3. It must be impartial to all religion, caste and community. Unfortunately, it has not been possible so far to devise a system which can ensure both conditions in equal degree. ..... The daily assessment of responsibility, which is not available in the American system is, it is felt, far more effective than the periodic assessment and far more necessary in a country like India. The Draft Constitution in recommending the parliamentary system of Executive has preferred more responsibility to stability.[২০]" [সম্পাদনা]যুক্তরাষ্ট্রীয় কাঠামো
ভারতের সংবিধানে কেন্দ্রীয় ও রাজ্য সরকারগুলির মধ্যে ক্ষমতা বণ্টন করে দেওয়া হয়েছে।
সংসদ ও রাজ্য বিধানসভাগুলির ক্ষমতাগুলিকে শ্রেণীবিভক্ত করে তিনটি তালিকার অন্তর্ভুক্ত করা হয়েছে। এই তালিকাগুলি হল কেন্দ্র তালিকা, রাজ্য তালিকা ও যুগ্ম তালিকা। জাতীয় প্রতিরক্ষা, বিদেশনীতি, মুদ্রাব্যবস্থার মতো বিষয়গুলি কেন্দ্র তালিকার অন্তর্গত। আইনশৃঙ্খলা রক্ষা, স্থানীয় সরকার ও কয়েকটি করব্যবস্থা রাজ্য তালিকাভুক্ত। ব্যতিক্রমী পরিস্থিতি ব্যতিরেকে কেন্দ্রীয় সরকার রাজ্য তালিকায় আইন প্রণয়ন করতে পারে না। আবার শিক্ষা, পরিবহণ, অপরাধমূলক আইনের মতো কয়েকটি বিষয় যুগ্ম তালিকাভুক্ত। এই সব ক্ষেত্রে কেন্দ্র ও রাজ্য উভয়েই আইন প্রণয়ন করতে পারেন। অবশিষ্ট ক্ষমতা ভারতের সংসদের হাতে ন্যস্ত।
ভারতীয় সংসদের উচ্চকক্ষ রাজ্যসভা, যা রাজ্যের প্রতিনিধিদের নিয়ে গঠিত, তাও ভারতের যুক্তরাষ্ট্রীয় প্রবণতার একটি নিদর্শন।
[সম্পাদনা]সংসদীয় গণতন্ত্র
ভারতের রাষ্ট্রপতি জনগণ কর্তৃক প্রত্যক্ষভাবে নির্বাচিত হন না, তিনি সংসদ ও রাজ্য বিধানসভাগুলির সদস্যদের ভোটে নির্বাচিত হন। রাষ্ট্রপতি রাষ্ট্রের প্রধান। শাসনবিভাগের সকল কাজের সম্পাদনা ও সংসদের প্রত্যেক আইন পাস তাঁর নামে হয়ে থাকে। অবশ্য এই সকল ক্ষমতা নামসর্বস্ব। রাষ্ট্রপতিকেপ্রধানমন্ত্রী ও মন্ত্রিপরিষদের পরামর্শ অনুযায়ী চলতে হয়।
ভারতীয় সংসদের নিম্নকক্ষ লোকসভার সদস্যরা প্রত্যক্ষভাবে জনগণ কর্তৃক নির্বাচিত হন। প্রধানমন্ত্রী ও মন্ত্রিপরিষদ ততক্ষণই ক্ষমতাসীন থাকেন, যতক্ষণ তিনি লোকসভার সংখ্যাগরিষ্ঠ অংশের সমর্থন লাভে সক্ষম হন। মন্ত্রীরা সংসদের উভয় কক্ষের কাছে জবাবদিহি করতে বাধ্য থাকেন। তাছাড়া সংসদের কোনো একটি কক্ষের নির্বাচিত সদস্যরাই মন্ত্রিত্বের পদ গ্রহণ করতে পারেন। এইভাবে ভারতে আইনবিভাগ শাসনবিভাগকে নিয়ন্ত্রণ করে থাকে।
রাজ্যের সংসদীয় কাঠামোটিও একই প্রকার। এখানে বিধানসভার সদস্য বা বিধায়কেরা প্রত্যক্ষভাবে নির্বাচিত হন। মুখ্যমন্ত্রী ও রাজ্য মন্ত্রিসভার উপর বিধানসভার কর্তৃত্ব বজায় থাকে।
[সম্পাদনা]স্বাধীন বিচারব্যবস্থা
ভারতের বিচারব্যবস্থা শাসনবিভাগ বা সংসদের নিয়ন্ত্রণ থেকে সম্পূর্ণ মুক্ত। বিচারবিভাগ শুধুমাত্র সংবিধানের ব্যাখ্যাকর্তাই নয়, দুই বা ততোধিক রাজ্য অথবা কেন্দ্র-রাজ্য বিবাদের ক্ষেত্রে মধ্যস্থতাকারীর ভূমিকাও পালন করে থাকে। সংসদ বা বিধানসভা থেকে পাস হওয়া যে কোনো আইনের বিচারবিভাগীয় পর্যালোচনা হয়ে থাকে। এমন কি বিচারবিভাগ যদি মনে করে যে, কোনো আইন সংবিধানের কোনো আদর্শের পরিপন্থী, তবে তারা সেই আইনকে অসাংবিধানিক বলেও ঘোষণা করতে পারে।
ভারতের সংবিধানে ঘোষিত কোনো নাগরিকের মৌলিক অধিকার সরকার কর্তৃক লঙ্ঘিত হলে হাইকোর্ট ও সুপ্রিম কোর্টে সাংবিধানিক প্রতিবিধান পাওয়া যায়।
[সম্পাদনা]তথ্যসূত্র
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[সম্পাদনা]বহিঃসংযোগ
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ভ্রমণ নির্দেশিকা, উইকিভয়েজ হতে
সংবাদ, উইকিসংবাদ হতে- Original Unamended version of the Constitution of India
- Ministry of Law and Justice of India - The Constitution of India Page
- Constitution of India as of 29 July 2008
- Constitutional predilections
- Commonwealth Legal Information Institute - Online Copy
- Online version of Constitution of India, 1949
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