मनोज मिश्र नई दिल्ली। भाजपा के प्रधानमंत्री के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रोहिणी के जापानी पार्क में सभा होने से चार दिन पहले से कांग्रेस ने विधिवत दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया शुरू करके दिल्ली में राजनीतिक गर्मी बढ़ाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने 30 सितंबर तक टिकट चाहने वाले नेताओं से फार्म भरवाने शुरू किए हैं। इस तरह के प्रयोग पहले भी होते थे लेकिन इस बार सारी प्रक्रिया सीधे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की देख-रेख में किया जा रहा है। दिल्ली की चुनाव समिति ने पिछले मंगलवार की बैठक में यह फैसला किया। फार्म भी सामान्य नहीं है। उस पर वे सारी बातें लिखनी है जिसके आधार पर टिकट तय होते हैं। कांग्रेस की ओर से टिकट पाने वालों के लिए भी सर्वे करवाए गए हैं। भाजपा में तो सर्वे का अंतहीन सिलसिला बंद होने का ही नाम नहीं ले रहा है। बताया जा रहा है कि अब सर्वे में सीधे मीडिया के लोगों को शामिल किया गया है। इस बार भाजपा में ज्यादा घमासान दिख रहा है। इसी के चक्कर में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की तो घोषणा हो गई लेकिन अभी तक दिल्ली में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार घोषित नहीं हो पाए हैं। परंपराओं से उलट इस बार कांग्रेस में सभी कुछ तय समय पर हो रहा है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल में से किसी को भी न बदल कर कांग्रेस नेतृत्व ने एक जुआ खेलने का काम किया है। इसलिए लगता यही है कि कांग्रेस में भी टिकट आसानी से तय नहीं हो पाएगें। उम्मीदवार विशेष के बजाए सामान्य चीजों पर तो दोनों नेता सहमत हैं ही। अब तक जो दिखा है उसके हिसाब से प्रभारी शकील अहमद भी ज्यादा हस्तक्षेप करने वाले नहीं हैं। जुलाई में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर उम्मीदवार तय करने वाली छानबीन समिति (स्क्रीनिंग कमेटी) की पहली बैठक हुई। केंद्रीय मंत्री नारायण स्वामी की अगुआई में बनी कमेटी में कांग्रेस महासचिव भूनेश कालिया सदस्य हैं। इनके अलावा दिल्ली के प्रभारी महासचिव डा. शकील अहमद, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल इस कमेटी के सदस्य हैं। कमेटी ने आरंभिक बैठक में पिछले विधानसभा चुनाव में पांच हजार से कम मतों से जीते उम्मीदवार और पांच हजार से कम मतों से हारे उम्मीदवारों को टिकट देने पर अलग से चर्चा करना तय किया है। दिल्ली विधानसभा के चुनाव साल के आखिर में होने वाले हैं। पिछले चुनाव में 70 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस के 41 सदस्य चुनाव जीते थे और 12 उम्मीदवार पांच हजार से कम मतों के अंतर से चुनाव हारे थे। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि दिल्ली के माहौल भले ही कांग्रेस के ज्यादा अनुकूल न हों लेकिन समीकरण अनुकूल बनाए जा सकते हैं। दिल्ली और केंद्र सरकार के होने का पार्टी लाभ उठाने में लगी है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्म दिन 20 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली में अन्न सुरक्षा कानून लागू करने के बाद 10 सितंबर को राहुल गांधी ने पुनर्वास बस्तियों में मालिकाना हक देने की शुरुआत की थी। विपरित माहौल में भी गैर भाजपा मतों में बड़े बंटवारे के बिना कांग्रेस को हराना कठिन है। इसीलिए कांग्रेस ने अपने समर्थक मतदाताओं को अपने पक्ष में बनाए रखने के पुख्ता इंतजाम किए हैं। पूर्वांचल और अल्पसंख्यक मतदाताओं को संदेश देने के लिए बिहार मूल के डा. शकील अहमद को ठीक विधानसभा चुनाव से पहले प्रभारी बनाने के बाद जामिया के कुलपति डा. नजीब जंग को दिल्ली का उपराज्यपाल बना दिया गया। दिल्ली में अल्पसंख्यक (मुसलिम) आबादी का औसत 10 फीसद था अब यह बढ़कर 15 हो गया है। 70 में से 46 सीटें ऐसी है जिनमें मुसलिम वोट पांच फीसद से ज्यादा हैं। इसमें दलित वोट जुड़ते ही यह 20 फीसद से ज्यादा हो जाते हैं। इसी के चलते ही 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 3.45 फीसद के अंतर से चुनाव जीत गई। इससे पहले 2003 में कांग्रेस ने 12.91 फीसद के अंतर से और 1998 में 13.74 फीसद के अंतर से भाजपा को पराजित किया था। जबकि 1993 में भाजपा ने 8.3 फीसद के अंतर से कांग्रेस को हराया था। कांग्रेस के नेता इस समीकरण को और मजबूत बनाने में लगे हुए हैं। नगर निगम के चुनाव में हार का कारण ही सीटें छोटी होना माना गया। स्क्रीनिंग कमेटी के नेताओं की तैयारी उन्हीं सीटों को जीतने की है जहां कांग्रेस मजबूत है और गलत टिकट देने से कांग्रेस के उम्मीदवार की हार हुई। 2012 के निगम चुनाव में 68 विधानसभा सीटों में से 47 पर भाजपा, 17 पर कांग्रेस और एक-एक सीट बसपा, एनसीपी, इनेलोद और अन्य को सफलता मिली थी। विधानसभा की दो सीटों में से एक नई दिल्ली एनडीएमसी इलाका होने और दूसरी दिल्ली छावनी बोर्ड का इलाका होने के चलते वहां निगम चुनाव नहीं होते हैं। कांग्रेस ने 2008 के विधानसभा में जीती दो सीटें द्वारका और ओखला उप चुनाव हार गई। बावजूद इसके उसे टिकटों पर माथापच्ची कम ही सीटों पर करनी है। 41 में से 14 सीटें ऐसी हैं जहां जीत पांच हजार से कम वोट से हुई लेकिन लगता नहीं कि उसमें से ज्यादातर के टिकट कट पाएं। इसी तरह 12 सीटें ऐसी हैं जहां हार पांच हजार से कम वोटों की हुई है उनमें भी कई टिकट पा जाएंगे यानि कांग्रेस को नए सिरे से 17-18 सीटों के लिए ज्यादा चर्चा करनी होगी। एक बसपा और एक राजद के विधायक कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। विधायकों के ज्यादा टिकट न कटने के संकेत मुख्यमंत्री काफी समय से देती रही हैं। जिस तरह से राहुल गांधी ने कमान खुद अपने हाथ में ले ली है उससे तो यह भी लगता है कि पैरवी भी ज्यादा नहीं चलेगी। कांग्रेस की ओर से अल्पसंख्यक और दलितों को साधने के अलावा प्रवासी मतदाताओं को प्राथमिकता देने की रणनीति कांग्रेस की प्रतिद्वंद्वी भाजपा को इस चुनाव में बड़ी चुनौती पेश करने वाली है। दूसरी तरफ दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित अपने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए दनादन घोषणाएं कर रही हैं। चुनावी माहौल खुद कांग्रेस बनाने में लग गई हैं। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/52152-2013-09-26-03-39-29 |
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