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Tuesday, May 5, 2015

बंगाल में लास वेगास के मुक्कों का मुकाबला जारी

बंगाल में लास वेगास के मुक्कों का मुकाबला जारी

मोदी दीदी पीपीपी विकास के राजमार्ग पर साथ साथ

तो धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण से अगले विधानसभा चुनावों में भी अपराजेय दीदी

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बंगाल में ममता बनर्जी का अंध विरोध करने वाले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की विदाई का मंच तैयार है और उनकी जगह सीबीआई क्लीन चिट धारक दीदी के कभी खासमखास रहे मुकुल राय की ताजपोशी तय है।इसी बीच संसद में मोदी की सरकार को तमाम जरुरी कानून पास कराने में निर्णायक मदद के बाद बंगाल के विकास का एजंडा लेकर आ रहे हैं मोदी और दीदी मोदी एक ही मंच से जनता को न केवल संबोधित करेंगे,बल्कि राज्य के विकास के लिए दीदी ने बाकायदा पत्र लिखकर मोदी के साथ एकांत में बैठक के लिए वक्त मांगा हुआ है।


वह वक्त भी तय हो गया है।


शारदा फर्जीवाड़ा मामले में जो सबसे ज्यादा आरोपों के घेरे में थे,वे मुकुलरायअब कलंकमुक्त हैं और वामदलों,कांग्रेस और चिटपुट विपक्ष के सफाये के लिए बंगाल के संपूर्म केसरियाकरण के लिए वे अमितशाह के सिपाहसालार होंगे।मंत्र मदन मित्र हालांकि महीनों से जेल में हैं लेकन उनका मंत्रित्व सही सलामत है।


सांसद कुणाल घोष और मदन मित्र के अलावा तृणमूल के बाकी अभियुक्तों के खिलाप मामला रफा दफा है और हाल में जो दीदी और उनके परिजनों को शारदा मामले में घेरा जा रहा था,निवेशकों को मुआवजा दिलाने का आंदोलन चल रहा था,वह सबकुछ शारदा कांड के साथ रफा दफा है।


गौरतलब है कि शारदा  चिटफंड घोटाले की सीबीआई जांच में तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं की गिरफ्तारी और कुछ से पूछताछ के बाद से मोदी और ममता के बीच दूरियां और बढ़ गई थी।


अब हालात पूरी तरह बदल गये हैं।कोलकाता नगर निगम और पालिका चुनावों में भाजपा को किसी नगर निगम या पालिका की सत्ता नहीं मिली लेकिन कखास कोलकाता में भाजपा को तीन की जगह सात सीटें मिल गयीं तो दीदी के पार्षद114 हैं।वामदलों की संख्या 15 तक सिमट गयी और पांच सीटें हासिल करके कांग्रेस पीछे छूट गयी।सबको इस धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण से नुकसान हो रहा है सिवाय तृणमूल और भाजपा के।


भाजपा के वोट और जनाधार बढ़ रहे हैं और बंगाल का केसरियाकरण अभूतपूर्व है।फिरभी भाजपा के नेता कार्यकर्ता और समर्थक  बेचैन हैं कि देश से लेकर विदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाहवाही हो रही है लेकिन पश्चिम बंगाल में नरेन्द्र मोदी का कोई जलवा नहीं है।उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि हिंदुत्व ब्रिगेड के रण हुंकार के बावजूद जिस पश्चिम बंगाल के लिए केंद्र सरकार से लेकर संघ परिवार और भाजपा की टीमें अलग अलग स्तर पर ऐड़ी चोटी की मेहनत कर रही थीं, वहां पार्टी का ऐसा हश्र क्यों है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि राज्य में आगे होने वाले विधानसभा में पार्टी का क्या हाल होगा? अभी के निकाय चुनाव के नतीजे को देखें तो साफ एहसास हो जाएगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के सामने बीजेपी टिक नहीं पाएगी।



बंगाल में रातोंरात केसरिया राजकाजअसंभव है। इसके बजाय प्राक्सी राजकाज जाहिर है, केसरिया एजंडा है


मोदी और दीदी की लड़ाई सुनहली मुलाकातों में बदलने लगी है क्योंकि पालिका चुनाव निबट गये हैं और विधानसभा चुनावों से पहले न वाम वापसी के संकेत हैं और कांग्रेस के अटूट बने रहने के।जाहिर है कि मुक्कों का मुकाबला फिलहाल स्टट्रैटिजिक टाइम आउट के दौर में है और पीपीपी विकास के मंच पर दीदी ममता साथ साथ हैं।


जाहिर है कि बंगाल में लास वेगास के मुक्कों का मुकाबला चल रहा है पिछले लोकसभा चुनावों के पहले से,जबसे अमितशाह ने बंग विजय अभियान का ऐलान किया हुआ है।लास वेगास का मुकाबला तो तुरंत खत्म हो गया है लेकिन बंगाल में दीदी मोदी का वेगास मुकाबला खत्म होने के आसार  नही है।हीरों से जड़ी बेल्ट आखिर किसके पास है,ऐसा कहा नहीं जा सकता।लेकिन मां मटी मानुष की सत्ता के मुकाबले फिलहाल कोई विपक्ष नहीं है।


गौरतलब है कि अमेरिकी शहर लास वेगास के एमजीएम ग्रैंड अरीना में सदी का सबसे बड़ा मुक्कों का मुकाबला। 16,500 लोगों ने इस अरीना में महा मुकाबले को देखा। लेकिन सबसे दिलचस्प है किसे कितना पैसा मिला, जो पहले से तय है। अमेरिका के फ्लायड मेयवेदर को मैच जीतने के बाद 1142 करोड़ मिले। हालांकि मैनी पैक्वे हार गए हैं फिर भी अच्छी खबर यह है कि उन्हें हारने के लिए 761 करोड़ रुपए मिलेंगे। वैसे, जीतने वाले को 6.34 करोड़ रुपए की हीरों से जड़ी एक बेल्ट भी मिलेगी। इस मुकाबले को देखने के लिए हॉलीवुड अभिनेताओं, गायकों और रसूखदारों में होड़ मची थी। इस महा जंग पर 20 हजार करोड़ का सट्टा भी लगा हुआ था।


घौरतलब है कि  लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ बढ़ी तकरार के बाद ममता बनर्जी का मोदी के साथ छत्तीस का आंकड़ा चल रहा था। तृणमूल के सांसद लोकसभा में केन्द्र सरकार का कड़ा विरोध कर रहे हैंऔर राज्यसभा में अगवाड़े पिछवाडे़ की घनघोर मौकापरस्त राजनीति के तहत तमाम कायदे कानून बदलने में निर्णायक मदद भी कर रहे हैं।


इससे पहले कई बार प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई बैठक में ममता ने शिरकत नहीं की थी। हालांकि एक बार दिल्ली में उन्होंने मोदी से मुलाकात की थी।


मीडिया की खबरों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति अपने रूख में बदलाव लाते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 9 मई को उनकी अगवानी को तैयार हो गई हैं। एयरपोर्ट पर सिर्फ अगवानी ही नहीं, बल्कि ममता बनर्जी उनके साथ बैठक भी करेंगी। उनके साथ दो कार्यक्रमों में शिरकत भी करेंगी। मोदी के दौरे के मद्देनजर ममता ने जिला दौरे के अपने कार्यक्रम को छोटा कर लिया है।


नवान्न (राज्य सचिवालय) सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी प्रोटोकॉल के अनुसार एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री की अगवानी करेंगी। उनके साथ दो कार्यक्रमों में शामिल होंगी।


मोदी के साथ बैठक का समय भी तय किया गया है।


नवभारत टाइम्स ने साफ साफ लिखा है कि तीन साल पहले 2012 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रोटोकॉल तोड़ दिया था। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोलकाता दौरे पर पहुंचे थे लेकिन ममता बनर्जी एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव करने नहीं पहुंची थीं। 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता पहुंचने वाले हैं लेकिन इस बार ममता बनर्जी उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंचेंगी। ममता और मोदी में राजनीतिक मतभेद के बावजूद दोनों के बीच एक नई केमिस्ट्री विकसित हो रही है। इस नई केमिस्ट्री के कारण तृणमूल कांग्रेस के बागी नेता मुकुल रॉय के लिए अब सीमित विकल्प बचे हैं।


ममता अब तक बीजेपी पर हमलावर थीं। दूसरी तरफ बीजेपी टीएमसी के बागी नेता मुकुल रॉय को काफी तवज्जो दे रही थी। टीएमसी सूत्रों का कहना है कि मुकुल बीजेपी के लिए अहम थे लेकिन ममता पार्टी की भीतर उनकी अहमियत कम करती गईं। अब ममता ने फैसला किया है कि वह बीजेपी सरकार को मुद्दों के आधार पर समर्थन देंगी। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि हम बीजेपी सरकार को बिल बाइ बिल और बॉल बाई बॉल समर्थन देंगे।


ममता इस बार कुछ ज्यादा करना चाहती हैं। पांच मई को ममता पांच दिनों के लिए आसनसोल जाने वाली थीं लेकिन उन्होंने पीएम की वजह से इस दौरे को कैंसल कर दिया। अब वह आसनसोल 10 मई को जाएंगी। कोल माइंस बिल और खान एवं खनिज बिल के जरिए ममता मोदी सरकार के करीब पहुंच रही हैं। ममता बनर्जी ने मोदी सरकार के अहम जीएसटी बिल का भी समर्थन किया है। ऐसा सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है। ममता भारत और बांग्लादेश के साथ रिश्ते सुधारने में अहम भूमिका अदा कर रही हैं। दोनों को एक दूसरे से फायदे हैं। मोदी को जो मदद चाहिए वह ममता कर रही हैं और ममता को बंगाल में जो मदद चाहिए वह मोदी कर रहे हैं।


बंगाल में मुकुल रॉय लगातार अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। उन्हें पार्टी से लेकर संसद तक में अपने पदों से हाथ धोना पड़ा। उन्हें तृणमूल कांग्रेस में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा। मुकुल नई पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं। बीजेपी के लोगों को भी इस बारे में पता है। बीजेपी के लिए भी अब मुकुल कोई मुद्दा नहीं हैं। पार्टी महासचिव और बंगाल के बीजेपी प्रभारी सिद्धार्थ नाथ सिंह एक बार भाग मुकुल भाग के स्लोगन से साथ दिखे थे। बीजेपी नेता चाहते हैं कि मुकुल किसी तरह चर्चा में रहें ताकि ममता को परेशान करने का मौका हाथ में रहे। मोदी सरकार यह भी नहीं चाहती कि मुकुल की वजह से ममता से जो समर्थन मिल सकता है उसे हासिल करने में कोई दिक्कत हो।

http://navbharattimes.indiatimes.com/state/other-states/kolkata/mamata-more-important-to-modi-than-mukul/articleshow/47164645.cms




मोदी-ममता एक दूसरे के भरोसेमंद : कांग्रेस

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक दूसरे के भरोसेमंद हैं। सीबीआई के आक्रमण से बचने के लिए ममता मोदी पर भरोसा कर रही हैं और संसद में जनविरोधी विधेयकों को पारित कराने के लिए प्रधानमंत्री तृणमूल कांग्रेस प्रमुख पर भरोसा कर रहे हैं। ममता-मोदी के बीच का रिश्ता दिन ब दिन गहराता जा रहा है। उन्होंने कहा कि इनके बीच काफी समानता देखी जा रही है। प्रधानमंत्री धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करते हैं तो ममता मौलवादी शक्तिओं को मजबूत बनाने की राजनीति करतीं हैं।


"यह सिर्फ प्रोटोकॉल"

तृणमूल कांग्रेस ने पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की ओर से मोदी की अगवानी किए जाने के बारे में टिप्पणी करने से मना कर दिया है। पार्टी का बस इतना कहना है कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का शामिल होना प्रोटोकॉल के सिवाय कुछ भी नहीं।


तृणमूल-भाजपा में गुप्त समझौता : वाम

वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस ने दावा किया कि तृणमूल और भाजपा के बीच गुप्त समझौता पहले से ही है। गत लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक दोनों पार्टियों के बीच की बयानबाजी महज दिखावा थी। वाम दलों को इसकी आशंका पहले से थी। एनडीए और भाजपा के बिना तृणमूल कांग्रेस की कोई गति नहीं है।


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