Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Tuesday, April 12, 2016

शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश से बढ़ेंगे बलात्कार? दरअसल आतंकवाद है मुक्तबाजारी धर्मोन्मादी पितृसत्ता का यह अंध राष्ट्रवाद! बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है। हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैं जो जन्मजात कैदगाह हैं और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है। प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं। पलाश विश्वास

शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश से बढ़ेंगे बलात्कार?

दरअसल आतंकवाद है मुक्तबाजारी धर्मोन्मादी पितृसत्ता का  यह अंध राष्ट्रवाद!


बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है।


हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैं जो जन्मजात कैदगाह हैं और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है।


प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं।

पलाश विश्वास

आज ग्यारह अप्रैल २०१६ को ज्योति बा फुले की जयंती के अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा केन्द्र में आयोजित कार्यक्रम में तीन रचनाकारों - हेमलता महिश्वर, रजतरानी मीनू और रजनी तिलक की कविताओं पर बोलना था। उसी कार्यक्रम की तस्वीरें।

Sudha Singh's photo.


प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं।


हर साल की तरह इस बार भी महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया है।इससे पहले जनवरी में माता सावित्री बाई फूले का जन्मदिन भी हमने मना लिया है.अबकी दफा बाबासाहेब की 15वीं जयंती है जिसे बहुजनों के अलावा सत्तापक्ष की ओर से भी धूमधाम से मनाने की तैयारी है।


माफ कीजिये,अंबेडकरी आंदोलन की दशा दिशा के मद्देनजर हमें यह कहना पड़ रहा है कि अगर आरक्षण बहाल न रहा और सत्ता की चाबी अगर अंबेडकर की छवि न हो,तो कमसकम पढ़े लिखे बहुजन न अंबेडकर का नाम लेंगे और न फूले का।


क्योंकि हम बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे के खिलाफ हैं और जाति तोड़ने के बजाय जाति को ही मजबूत करते हुए हिंदुत्व का नर्क जी रहे हैं।


हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।


चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैंजो जन्मजात कैदगाह है और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।


यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है।

दिलीप मंडल का ताजा स्टेटस हैः

जब देश और समाज से जुड़ी किसी बात को समझने में दिक्कत हो तो मैं बोधिसत्व बाबा साहेब की किताब खोल लेता हूं.

राष्ट्र और राष्ट्र विरोधी कौन, यह समझने के लिए पढ़िए बाबा साहेब का संविधान सभा का अंतिम भाषण, 25 नवंबर, 1949.

उसमें उन्होंने लिखा है जाति है राष्ट्रविरोधी.

इतिहास बोध अनपढ़ संघियों से मत सीखिए, वह भी तब जब आपके पास देश के सर्वाधिक शिक्षित बाबा साहेब की किताबें मौजूद हैं.

हालांकि सरकारी पब्लिकेशन से बाबा साहेब की किताबों को गायब करने का एक खतरनाक षड़यंत्र भी इन दिनों चल रहा है. एनिहिलेशन ऑफ कास्ट सरकारी प्रकाशन से गायब है.


बाबासाहेब ने अपनी दृष्टि के मुताबिक हर भारतीय नागरिक के हितों,हक हकूक के बारे में सोचा है और देश के हर हिस्से ,हर समस्या पर उनका पक्ष रहा है और हिंदू कोड  लागू कराने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका है,जिसे हम नजरअंदज करते हैं।


हम सिर्फ दलितों और बहुजनों के मुद्दे पर बोलेंगे मौका देखकर और बाकी मुद्दों पर खामोश रहेंगे।


हम सिर्फ जाति देखकर सच और झूठ का फैसला करेंगे और पूरे समाज का नेतृत्व करने के लिए बाबासाहेब की तरह उठ खड़ा होने की सपने में भी नहीं सोचेंगे लेकिन बाबा साहेब की जय जयकार करेंगे और रस्म अदायगी के बाद हम वही करेंगे जैसा हिंदुत्व का एजंडा है।हमारी गुलामी कभी खत्म नहीं होने वाली है।


बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है।


हर पोस्ट में बाबासाहेब,महात्मा फूले,माता सावित्री बाई फूले और हरिचांद गुरुचांद ठाकुर की तस्वीर के साथ बुद्धं शरण् गच्छामि का जाप करने वाले लोग समझ लें कि गौतम बुद्ध की क्रांति की प्रेरण फिर वही पीड़ित मनुष्यता है।कष्ट है तो उसका निवारण है,यह वैज्ञानिक सोच है और समाधान पंचशील है।


गौतम बुद्ध की क्रांति,अंबेडकरी आंदोलन और कुल मिलाकर इस देश के किसान आदिवासी और बहुजन आंदोलन की परंपरा में सर्वजनहिताय का स्थाई भाव रहा है क्योंकि ये तमाम आंदोलन विशुद्धता या रंगभेद की पितृसत्ता के खिलाफ हजारों साल से जारी हैं और इन आंदोलन का खास मुद्दा हमेशा स्त्री की स्वतंत्रता का मुद्दा है,उसके और  मेहनकशों के हक हकूक का मुद्दा है।


यही वजह है कि अंबेडकर ने स्त्री के पक्ष में संवैधानिक प्रावधान बनाये तो महात्मा फूले और सावित्र बाई फूले ने स्त्री शिक्षा की ज्योति जलाई।बंगाल में भी मतुआ आंदोलन विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा के दो अहम मुद्दों को लेकर चल रहा था।


जाहिर है कि सत्ता पक्ष के लिए तो स्त्री भोग का सामान से बेहतर कोई चीज नहीं है।उसका धर्म,उसकी संस्कृति,उसकी राजनीति और अर्थव्यवस्था में स्त्री की सबसे बेहतर  हैसियत स्त्री की गोरी सुंदर से देह है।


अपनी उस देह पर स्त्री का कोई हक नहीं है।उस देह के वैध अवैध सौदे पर निर्भर है स्त्री का वजूद।


यही पितृसत्ता है।इस पितृसत्ता के विरोध के बिना स्वतंत्रता, मनुष्यता और सभ्यता के सारे आदर्श खोखले पाखंड हैं।


गौतम बु्द्ध की क्रांति,बाबासाहेब और महात्मा फूले ,माता सावित्री बाई और हरिचांद गुरुचांद के मतुआ आंदोलन के बावजूद सच यही है कि बहुजनों का हिंदुत्व भी स्त्री के विरुद्ध है।बहुजनों की मुक्ति की परिकल्पना में स्त्री का कोई स्थान है ही नहीं और हिंदुत्व एजंडा के स्त्रीकाल से भिन्न बहुजनों का कोई स्त्रीकाल नहीं है।


फिरभी गनीमत है कि बहुजनों में जिन आदिवासियों की गिनती करते नहीं अघाते बाबासाहेब के मिशन के नेता कार्यकर्ता ,वे आदिवासी बहुजन समाज में अपने को मानें या न माने,लेकिन आदिवासी समाज में स्त्री अब भी आजाद है।न दासी है और न शूद्र।


हिमांशु कुमार जी का स्टेटस देख लेंः


क्या आप अपनी मां से प्यार करते हैं ၊ सच बताइये क्या आपने जिंदगी में कभी अपनी मां की जय बोली है ၊ अगर अपनी मां से प्यार करने के लिये उसकी जय बोलने की ज़रूरत नहीं है तो अपने देश के लोंगों से प्यार करने के लिये भी किसी की जय बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है ၊ देश का एक महिला और मां के रूप में चित्रण करना और देश के करोड़ों आदिवासियों , दलितों और अल्पसंख्यकों को इंसान की बजाय एक संख्या और मृत वस्तु में बदल देना , असल में एक ही खेल का हिस्सा है ၊ ज़ोरदार तरीके से इन खूंखार भेड़ियों की हकीकत जनता को बताने का वख्त है ၊ अपने आस पास के स्कूल कालेजों , गावों में जाइये और भारत माता की आड़ में माल्या अदानी बच्चन और जिंदलों की सेवा करने वालो दलालों की हकीकत बताईये ၊ किसी भी कीमत पर ये लोग अब किसी भी चुनाव में जीतने नहीं चाहियें ၊


कोलकाता में अब लू चल रही है।तापमान 42 डिग्री के आसपास है और बाकी बंगल में तापमान 45 पार है।पचास तक जब यह तापमान होगा तो आसमान कितना धुंआ धुंआ होगा,यह देखने के लिए शायद ही हम जीवित रहे।


यहां इन दिनों लोकतंत्र का महोत्सव भी चल रहा है।राजनीतिक दलों का महाभारत जारी है और इंसान का बहता हुआ गर्म लहू बंजर होती जा रही जमीन का प्यास बुझाने लगा है।


करीब दो हजार शिकायतें हिंसा और चुनावों में धांधली के बावजूद चुनाव आयोग में कोई सुनवाई नहीं है और मतदान शांतिपूर्ण है।


जाहिर है कि जनादेश भी सत्तापक्ष का ही होगा।हमारे लिए तो खून का गंगास्नान है।स्वजनों के वध के लिए अश्वमेध है।महाभारत।


सुंदर लाल बहुगुणा ने अन्न छोड़ दिया है,पहाड़ों में जाना छोड़ दिया है गोमुख को रेगिस्तान में तब्दील होते देखकर।


कोलकाता के मुकाबले जैसलमेर का मरुस्थल भी इस व्कत ठंडा है।विकास का जो माडल मुनाफावसूली के लिए अबाध पूंजी है,उसे मनुष्यता और सभ्यता ,प्रकृति और पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है।यह विकास निरंकुश आतंकवाद है।जिसमें गंगा यमुना के मैदान को रेगिस्तान में तब्दील होने में शायद देर नहीं लगेगी।


नगरों और महानगरों का यह विकास असली भारत को रेगिस्तान में तब्दील करने लगा है और इसीलिए जलवायु मौसम सबकुछ बदलने लगा है।भूकंप के झटकों के जरिये प्रकृति की चेतावनी रोज रोज,सूखा और बाढ़,प्राकृतिक आपदाओं से घिरे हुए हैं हम।फिरभी सबकुछ खत्म हो जाने से पहले नींद में खलल नहीं पड़नी चाहिए।


पिछले साल भारत में पर्यावरण आंदोलन के नेता सुंदर लाल बहुगुणा से मुलाकात की थी हमने देहरादून जाकर।क्योंकि पर्यावरण वह मुद्दा है,जिसे तत्काल संबोधित किया जाना हमें बेहद जरुरी लगता है।पर्यावरण को दांव पर लगा दिया है मुक्तबाजार ने।


धर्म मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध नहीं होता।


विडंबना यह है कि धर्म के बुनियाद पर सत्ता का सारा तिसिस्म है,जो इस मुक्त बाजार के लिए मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध आपराधिक गतिविधियों को राजकाज और राष्ट्रवाद साबित करने लगा है जो दरअसल आतंकवाद है।


इसे समझने के लिए हिमांशु कुमार जी का यह ताजा स्टेटस जरुर पढ़ेः

आप मेहनत करने वालों को नीच जात मानते हों . आपके भगवानों में विश्वास ना करने वाले अपने ही देशवासियों को आप हीन और विधर्मी मान कर उनसे नफरत करते हों .

आप अपने देश के करोड़ों गरीबों की ज़मीने सरकारी सुरक्षा बलों के दम पर छीनने को जायज़ भी मानते हों . और राष्ट्र के आर्थिक विकास का मतलब आपके लिये बस अपनी बढ़िया गाड़ी , महंगे मकान और क्रिकेट मैच ही हो .

इसके बाद आप एक क्रूर आतंकवादी हत्यारे मोदी को अपना नेता भी चुन लें .

तो ऐसा कर के आप इस देश के अस्सी प्रतिशत आदिवासियों, दलितों और गाँव के गरीबों को क्या संदेश दे रहे हैं ? कभी सोचा है ?

यही है आपकी राष्ट्र में शन्ति रखने की योजना . यही है आपका राष्ट्रीय विकास क्यों ?

अगर आप आतंकवादी को अपना नेता चुनेंगे और आतंकवादी तरीकों से अपना विकास करेंगे तो बदले में आपको क्या मिलेगा आप ही मुझे समझा दीजिए ?

शनिमंदिर प्रवेश का मुद्दा स्त्री मुक्ति स्त्री विमर्श का फोकस बन गया है तो मंदिर प्रवेश आंदोलन अब स्त्री मुक्ति की दिशा तय करने वाला है जिससे विशुद्धता की धर्मरक्षा के लिए दुर्गावाहिनी और स्त्री मुक्त आंदोलन के एकाकर हो जाने की आशंका है।


तो दूसरी तरफ धर्मोन्माद का यह माहौल स्त्री के लिए कितना सुरक्षित है,उस पर शंकराचार्य की अभूतपूर्व टिप्पणी है।


गौरतलब है कि  शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने विवादित बयान दिया है। उनका कहना है कि इससे महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं बढ़ेंगी। उन्होंने कहा कि शनि की दृष्टि अगर महिलाओं पर पड़ेगी तो रेप की घटनाएं और बढ़ेंगी। शंकराचार्य का यह बयान शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की छूट मिलने के दो दिन बाद आया है।


स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश को लेकर खुशियां मनाने के बजाय महिलाओं को पुरुषों को नशीले पदार्थों के सेवन से रोकने के लिए कुछ करना चाहिए, जिसके कारण वे उनके खिलाफ बलात्कार तथा अन्य अपराध करते हैं।


यह इतना मूर्खता पूर्ण वक्तव्य है लेकिन इसका आशय मुकम्मल हिंदुत्व का एजंडा है।जो दुर्गावाहिनी घर घर से निकल रही है,उसमें शामिल हो रही स्त्री को अंततः समझना ही चाहिए कि पितृसत्ता के इस हिंदुत्व में उसके सतीत्व पर एकाधिकार के अलावा उसकी अस्मिता और उसके अस्तित्व की कितनी चिंता इस हिंदुत्व समय को है।


भारतीय समाज में स्त्री का सारा मूल्यांकन उसकी सती छवि के आधार पर है जबकि वही स्त्री मुक्त बाजार में खरीदी और बेची जानी वाली वस्तु के सिवाय कुछ भी नहीं है।


शंकराचार्य के कहे का जो आशय है,उसे थोड़ा विस्तार से समझने की जरुरत है।


कितना वीभत्स है स्त्री के बारे में बहुमत का मतामत,इसका एक नजारा अजय प्रकास ने अपने फेसबुक वाल पर पेश किया हैः

कल मैं सुप्रीम कोर्ट के वकील और मित्र रविंद्र गढ़िया के साथ एक बलात्कार पीड़िता से मिलने गया था। गांव में उसके घर पहुंचने से ठीक पहले रास्ते में मैंने महिला को लेकर कुछ लोगों से बात की...

1. एक अखबार का स्थानीय स्ट्रिंगर — वह कैरेक्टरलेस महिला है...बहुत ही ज्यादा...बहुत ही ज्यादा कैरेक्टरलेस...5—10 रुपए में किसी के साथ सो जाती है...आप किसी से पूछ लीजिए...एक—दो आदमी नहीं पूरा गांव इस सच का जानता है...बाजार वाले भी जानते हैं।

2. जिस बाजार में बलात्कार हुआ वहां का एक दूकानदार — पैसे के लिए वह करती रहती है गलत काम। उस दिन उसके साथ हो गया तो हल्ला हो गया, इसीलिए तो दरोगा जी ने मुकदमा नहीं दर्ज किया था। बाद में बड़े अधिकारी आए तो दर्ज हुआ।

3. पीड़िता के गांव में मिला ड्राईवर — वह गलत काम करने वाली महिला है। बलात्कार हो गया तो क्या हो गया।

4. पीड़िता की पड़ोसी महिला हंसते हुए — यह सच है कि इसके साथ गलत काम हुआ है पर मैं यहीं पली—बढ़ी लेकिन मैंने गलत काम होते किसी के साथ नहीं सुना। पता नहीं इसके साथ कैसे हुआ।

5. स्थानीय पुलिसकर्मी — आपने पूछा लोगों से। धंधा करने वाली की मदद सरकार करती फिरे क्या? उसके साथ जो अपराध हुआ मुकदमा दर्ज कर दिया गया है, अब उसको राशन कौन देगा हमें क्या पता।

और भी बहुत बातें लोगों से हुईं लेकिन इस बहुमत को समझने से पहले एक बार नीचे की तस्वीर देखिए। फिर फैसला कीजिए कि स्कील इंडिया, मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया के बीच विकसित हो रहे भारत में सक्षम हो रही यह कौन सी भारत माता है जिसका किचन देह बेचने के बाद भी हमारे नेताओं के जूठन के बराबर भी नहीं है। अधिकारियों के एक चाय के प्याली की कीमत भी नहीं है, यहां तक कि सबसे सस्ते रिचार्ज पैक के बराबर भी नहीं है।

सामने दिख रहे आटे और मिर्चे की चटनी से आज रात घर के पांच लोगों का पेट भरेगा। तो सवाल यह कि हम कैसे महान भारत में रह रहे हैं जहां इस भारत माता को सिर्फ 5—10 रुपए के लिए, सिर्फ इस चटनी और आटे के लिए अपने देह को बेचना पड़ रहा है और तंत्र है कि इस गुनाह की सजा भी उसी पर मुकर्रर कर रहा है।

और भी बहुत बातें हैं इस बारे में कहने के लिए जो किसी अगली रिपोर्ट में लिखूंगा पर अभी बस इतना कि जनमत बनाने के इस तरीके पर तगड़ी चोट करनी होगी। अन्यथा तंत्र तो पहले से फेल है, हम इंसानियत को भी फेल कर देंगे।

Ajay Prakash's photo.



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment