Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Zia clarifies his timing of declaration of independence

What Mujib Said

Jyoti basu is DEAD

Jyoti Basu: The pragmatist

Dr.B.R. Ambedkar

Memories of Another Day

Memories of Another Day
While my Parents Pulin Babu and basanti Devi were living

"The Day India Burned"--A Documentary On Partition Part-1/9

Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Tuesday, August 30, 2016

यह आतंकवादी केसरिया सुनामी ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान है और हिंदुत्व का अवसान है।


यह आतंकवादी केसरिया सुनामी ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान है और हिंदुत्व का अवसान है।

राष्ट्रवादी देश भक्त तमाम ताकतों को एकजुट होकर हिंदुत्व के नाम जारी इस नरसंहारी अश्वमेध के घोड़ों को लगाम पहनाने की जरुरत है।वरना देश का फिर बंटवारा तय है।

यह बेशर्म रंगभेद ब्राह्मणधर्म की मनुस्मृति राज की बहाली का फासिज्म है।हिंदुत्व का पुनरुत्थान किसी भी सूरत में नहीं है।हिंदु बहुसंख्य और भारत के गैर ब्राह्मण तमाम समुदाय इसे अच्छी तरह समझ लें तो देश और हिंदुत्व दोनों का कल्याण है।इस लिहाज से हिंदुत्व के हित में यही है कि ब्राह्मण धर्म के एकाधिकारी कारपोरेट मुक्तबाजारी पुनरुत्थान के मुकाबले हिंदुत्व की बुनियाद तथागत के धम्म की ओर लौटा जाये।


हमलावरों ने सिंधु सभ्यता,उसके इतिहास और भूगोल का जो विनाश किया वह सिलिसिला उस सभ्यता के वंशजों किसानों और मेहनतकशों के नरसंहार का कार्यक्रम है और ये तमाम समुदाय कभी इस हमवलावर नरसंहारी संस्कृति का प्रतिरोध नहीं कर सके सिर्फ इसलिए कि उत्पादक और मेहनकश तमाम समुदाय हजारों जातियों और लाखों उपजातियों में तबसे लेकर अब तक बंटे हुए हैं और सत्तावर्ग के खिलाफ उनका वर्गीयध्रूवीकरण हुआ नहीं है,जिसके लिए जाति उन्मूलन अनिवार्य है।इसलिए तथागत गौतम बुद्ध के धम्म के मार्फत जाति का विनाश और वर्गीय ध्रूवीकरण से ही मुक्ति और मोक्ष दोनों संभव है।


पलाश वि श्वास

कल रात डेढ़ बजे के करीब 1975 से हमारे मित्र लखनऊ के विनय श्रीकर और भडा़सी बाबा यशवंत का फोन आया और उनका आदेश है कि भड़ासी सम्मेलन में नई दिल्ली पहुंचु।इससे पहले हमारे फिल्मकार मित्र राजीव कुमार दिल्ली जाने का न्यौता दे चुके हैं।ब्राह्मणवादी कारपोरेट मीडिया में पीड़ित वंचित पत्रकारों को संगठित करने का ऐतिहासक काम भड़ासी यशवंत ने किया है और आज अगर देशभर के वंचित उत्पीड़ित पत्रकार जन प्रतिबद्धता के मोर्चे पर गोलबंद हो जाये तो बहुत कुछ हो सकता है।


छात्रों,युवाओं और महिलाओं की मोर्चाबंदी से फासिज्म के राजकाज के प्रतिरोध की जो जमीन बनी है,वह पत्रकारिता के मोर्चे से और पकने लगेगी,इसकी पूरी संभावना है।


मुश्किल है कि इतना कम वक्त रह गया है कि टिकट का इंतजाम मुश्किल लग रहा है।हो गया तो नई दिल्ली में पुराने मित्रों के साथ रिटायर हो जाने के बाद पहली बार बैठकी का मौका मिलेगा।फिर मौका मिले न मिले,कह नहीं सकते।यशवंत कितना गंभीर है ,इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है हालांकि उसमें नेतृत्व और संगठन की अद्भुत क्षमता है।पत्रकारिता की वानरसेना केसरिया सुनामी के मुकाबले के लिए गोलबंद हो तो इससे बेहतर कुछ हो नहीं सकता।फिलहाल हम सभी अकेले हैं।


सुबह हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी जी का फोन आया और उन्होंने सूचित किया कि वे हरस्तक्षेप के लिए पैसा भेज रहे हैं और अमलेंदु से बात करेंगे।गुरुजी ने पैसे भेजने का वायदा बहुत पहले किया है लेकिन अबतक भेजा नहीं है।हमने निवेदन किया कि उनका आशीर्वाद हमारे लिए काफा हैं।वे सिर्फ अपने शिष्यों को अपने इस गुरुभाई की मुहिम में शामिल होने का निर्देश जारी कर दें तो हमारी मुश्किलें आसान हो सकती हैं।


फिर बौद्ध संगठनों की समन्वय समिति के संयोजक आशाराम गौतम से अलग से बात हुई।उनसे होने वाली बातचीत का ब्यौरा हम बाद में देते रहेंगे।


गुरुजी ने आश्वस्त किया कि हम सही दिशा में जा रहे हैंं।

उनका मानना है कि हस्तक्षेप की बड़ी भूमिका बदलाव की जमीन तैयार करने में हैं और वे हमारे साथ हैं।


गुरुजी ने भी माना कि मौजूदा अंध राष्ट्रवाद की आतंकवादी केसरिया सुनामी का हिंदुत्व से कुछ लेना देना नहीं है और दरअसल यह ब्राह्मणधर्म पुनरुत्थान है और हिंदुत्व का अवसान है।


हमारे गुरुजी का मानना है कि राष्ट्रविरोधी राजकाज और राजधर्म को हिंदुत्व कहना आत्मघाती है और हिंदुत्व विरोधी मुहिम धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील मुहिम से हम ब्राह्मणवादियों के हाथ मजबूत कर रहे हैं।


इससे पहले हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े से भी हमारी इस सिलसिले में विस्तार से बातें हुई हैं।


गुरुजी और आनंद दोनों मौजूदा मनुस्मृति फासिज्म के खिलाफ तथागत गौतम बुद्ध के धम्म को अधर्म के धतकरम की सुनामी पर अंकुश लगाने का एकमात्र विकल्प मानते हैं।हमारे बाकी साथी इस मुहिम में हमारा साथ देंगे,उम्मीद यही है।


गुरुजी ने हस्तक्षेप मे लगे उनके पुराने आलेख का हवाला देकर बताया कि राष्ट्रवादी देश भक्त तमाम ताकतों को एकजुट होकर हिंदुत्व के नाम जारी इस नरसंहारी अश्वमेध के घोड़ों को लगाम पहनाने की जरुरत है।


उनने फिर कहा कि इतिहास में भारत में एकीकरण बार बार होता है और फिर संक्रमणकाल में देश के बंटवारे के हालात हो जाते हैं।उनके मुताबिक हम उसी संक्रमण काल से गुजर रहे हैं और वक्त रहते अधर्म के इस बंदोबस्त के खिलाफ हम सारे देशवासियों को गोलबंद न कर सकें तो भारत का टुकड़़ा टुकड़ा बंटवारा तय है।


गुरुजी ने भी माना कि तथागत गौतम बुद्ध का समता और न्याय का आंदोलन और सत्य, अहिंसा, करुणा ,बंधुत्त, मैत्री ,सहिष्णुता,पंचशील,अहिंसा की सम्यक दृष्टि और प्रज्ञा से हम मौजूदा चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।उन्होंने दो टुक शब्दों में कहा कि गौतम बुद्ध का धम्म धर्म नहीं है,सामाजिक क्रांति है और इसके राजनीतिक इस्तेमाल के खिलाफ भी उन्होंने सचेत करते हुए जाति धर्म नस्ल निर्विशेष भारतरक्षा के लिए मानवबंधन का एकमात्र रास्ता बताया।


राजकाज में केसरिया आतंक के वर्चस्व और अलगाववादी और उग्रवादी गतिविधियों को राजकीय समर्थन को गुरुजी ने बंटवारे का सबसे बड़ी खतरा बताया।


गुरुजी ने कहा कि उत्पादक मेहनतकश शक्तियों को शूद्र और अस्पृश्य बनाने की मनुस्मृति व्यवस्था की बहाली के कार्यक्रम को वे हिंदुत्व का एजंडा मानने को तैयार नहीं हैं।उनके मुताबिक यह हिंदुत्व के सत्यानाश का एजंडा है और इसे नाकाम रने के लिए बहुसंख्य हिदू ही पहल करें तो देश को फिर फिर बंटवारे से बचाया जा सकता है।


हिंदुत्व के नाम अधर्म का यह पूरा कार्यक्रम इतिहास और विरासत के खिलाफ है और इसका अंजाम देश का फिर फिर बंटवारा है और केंद्र में फासिज्म के राजकाज से हम विध्वंस के कगार पर हैं,इसलिए तथागत गौतम बुद्ध की समामाजिक क्रांति के तहत धम्म के अनुशीलन और पंचशील की बहाली से जाति उन्मूलन के जरिये हम इस रंगभेदी नरसंहार का सिलसिला रोक सकते हैं और इसलिए ब्राह्मणवाद विरोधी सभी शक्तियों के एकजुट होने की अनिवार्यता है।


गुरुजी का आदेश शिरोधार्य है और हम अपनी कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।


कश्मीर,दंडकारण्य और पूर्वोत्तर में सैन्यराष्ट्र के रंगभेदी दमन,उग्रवादियों को असम और पूर्वोत्तर के बाद बंगाल में भी सत्ता समर्थित ब्राह्मणी नारायणी सेना को भारतीय सेना में शामिल करने जैसे संघी उपक्रम से बेपर्दा है तो दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, किसानों,मेहनतकशों और स्त्रियों के खिलाफ अतयाचार,उत्पीड़न के रोजनामचे के मद्देनजर हमें हकीकत की जमीन पर खड़ा होना ही चाहिए।


तमाम सामाजिक उत्पादक शक्तियों की व्यापक एकता के बिना हम इस फासिज्म के मुकाबले की स्थिति में कहीं भी,किसीभी स्तर पर नहीं है और न हो सकते हैं।जबकि उसकी सारी रणनीति मिथ्या हिंदुत्व के नाम पर आम जनता का ध्रूवीकरण की है।हम उलटे वर्गीयध्रूवीकरण का रास्ता छोड़कर जाति युद्ध का विकल्प चुनकर हिंदुतव के इस मिथ्या तिलिस्म में कैद हो रहे हैं और मुक्ति की राह खो रहे हैं।ब्राह्मण धर्म के खिलाफ सभी गैर ब्राह्मणों का वर्गीय ध्रूवीकरण मुक्ति का इकलौता रास्ता है।


इसी सिलसिले में भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो के अवसान के बाद आज के हिंदुत्व के सफर पर गौर करना जरुरी है।इस पर आप चाहेंगे तो हम सिलसिलेवार ब्यौर भी पेश करते रहेंगे।


वैदिकी सभ्यता में मूर्ति पूजा और धर्मस्थलों का कोई उल्लेख नहीं है।तथागत गौतम बुद्ध के धम्म प्रवर्तन के बाद जो संघीय ढांचा संघम् शरणं गच्छामि से बना,उसके तहत ही मूर्तियों और उपासनास्थलों की रचनाधर्मिता के साथ साथ ब्राह्मणधर्म का जनवादी कायाकल्प ही हिंदुत्व है,जिसके तहत अभिजातों के धर्म अधिकार की तर्ज पर प्रजाजनों की आस्था और उपासना के अधिकार को मान्यता दी गयी और पुरोहितों ने इसके एवज में उन्हें अपना जजमान बना दिया और धार्मिक कर्मकांड के एकाधिकार को उपसना स्थलों,धर्म स्थलों,मंदिरों से लेकर कुंभ मेले तक के आयोजन के तहत कठोर मनुस्मृति अनुशासन के तहत कमोबेश लोकतांत्रिक बना दिया लेकिन शूद्रों, महिलाओं और अछूतों को शिक्षा के अधिकार के साथ ही धर्म के अधिकार से वंचित ही रखा।


मूर्ति पूजा और मंदिरों के दूर से दर्शन के पुरोहित तंत्र के तहत उनका हिंदुत्वकरण कर दिया और इसी क्रम में गौतम बुद्ध की सांस्कृति क्रांति को प्रतिक्रांति में तब्दील कर दिया।इसके साथ ही पितरों को पिंडदान का अनुष्ठान के जरिये एकाधिकारी पितृसत्ता की तरह स्त्री को दासी और शूद्र और फिर क्रय विक्रय योग्य उपभोक्ता सामग्री में तब्दील करके उसकी हैसियत और आजीविका संस्थागत वेश्यावृत्ति में तब्दील कर दी और पितृतंत्र में मिथ्या देवीत्व थोंपकर सत्तावर्ग की महिलाओं को गुलाम बना दिया।तबसे सामाजिक रीति रिवाज,संस्कृति और धर्म के नाम पर स्त्री आखेट जारी है और भारत में जाति धर्म निरपेक्ष स्त्री उत्पीडन का महिमामंडन धर्म है।


हिंदुत्व का यह तामझाम न वैदिकी संस्कृति है और न धर्म और भारतीय दर्शन परंपरा के आध्यात्म के मुताबिक भी यह दासप्रथा,देवदासी प्रथा नहीं है।यह सीधे तौर पर एकाधिकारवादी ब्राह्मणधर्म का विस्तार है,जिसका चरमोत्कर्ष मुक्तबाजार है।


वैदिकी संस्कृति के अवसान के बाद वर्ण व्यवस्था केंद्रित ब्राह्मण धर्म के जरिये सत्तावर्ग ने उत्पादक समुदायों के साथ महिलाओं को जो अछूत और शूद्र बनाकर रंगभेदी राष्ट्र और समाज का निर्माण किया उसके खिलाफ गैरब्राह्मणों की गोलबंदी का आंदोलन ही धम्म प्रवर्तन है और इस आंदोलन में क्षत्रिय राजाओं की बड़ी भूमिका थी।जिन्होंने बुद्धमय भारत बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई।गौतम बुद्ध के धम्म को दलित आंदोलन में तब्दील करके हम गैरब्राह्मणों के वर्गीय ध्रूवीकरण के आत्म धवंस में निष्णात हैं और सामाजिक क्रांति में अवरोध बने हुए हैं।


गणराज्य कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ के बुद्धत्व और उनके धम्म को राजधर्म सम्राट अशोक और कनिष्क जैसे राजाओं ने बनाया तो भारत बौद्धमय बना।सामाजिक गोलबंदी के इस इतिहास को हमने नजरअंदाज किया।इसी इतिहास विस्मृति की वजह से न हम वीपी सिंह के मंडल आयोग लागू करते वक्त उनका साथ दे सकें और न अर्जुन सिंह के साथ खड़े हो सकें।गैरब्राह्मणों के वर्गीय ध्रूवीकरण का राकस्ता बंद करके बहुजनों ने ही ब्राह्मणधर्म के इस पुनरूत्थान का मौका बनाया और आखिरकार बहुजन ही इस ब्राह्मणी नरमेधी अश्वमेध की वानरसेना और शिकार दोनों हैं।


फिरभी,इन विसंगतियों के बावजूद सच यह भी है कि गौतम बुद्ध के धर्म प्रवर्तन के बाद उन्हीं के मूल्यों को आत्मसात करके हिंदुतव की सहिष्णु विरासत बनी और धम्म की नींव पर हिंदू धर्म का आधुनिकीकरण और एकीकरण हुआ।रंगभेद और विभाजन की यह नरसंहारी संस्कृति हिंदुत्व की विकास यात्रा और इतिहास के खिलाफ है।मूर्तियां सबसे प्राचीन बौद्ध हैं और उपासना स्थल भी प्राचीनतम बौद्ध बिहार,स्तूप और मठ हैं।


यही नहीं, वैदिकी देवताओं के स्थान पर इंद्र,वरुण,रुद्र,अग्नि जैसे वैदिकी देवताओं के स्थान पर हिंदुत्व का पूरा देवमंडल भारत की विविधता और बहुलता की विरासत है।आदिदेव शिव अनार्य है और इसमें कोई विवाद नहीं है।वैदिकी काल में अदिति को छोड़कर किसी देवी का उल्लेख नहीं मिलता और हिंदुत्व देवमंडल में दुर्गा काली से लेकर तमाम देवियां जनजाति,द्रविड़,अनार्य,खश देवियों का हिंदुत्वकरण चंडी अवतार में हैं। कालीघाट को सतीपीठ में तब्दील करने से लेकर तमाम सतीपीठ बौद्ध बंगाल में होने का मतलब एकीकरण की यह परंपरा तीन सौ चार सौ साल पहले तक चली है।तो पुराण सारे के सारे इसी देवमंडल को प्रतिष्ठित करने के लिहाज से लिखे गये हैं।


गौरतलब है कि विष्णु का अवतार तथागत गौतम बुद्ध नहीं हैं बल्कि इसका उल्टा है कि तथागत गौतम का अवतार विष्णु है।बोधगया में विष्णुपद की प्रतिष्ठा भी बौद्धमय भारत में हिंदुत्व की नींव होने का प्रमाण है।विष्णुपद की गया में प्रतिष्ठा के तहत ही तथागत गौतम बुद्ध की सामाजिक क्रांति पिंडदान में तब्दील है। पुरात्तव पर ब्राह्मणों का एकाधिकार होने के कारण पुराअवशेषों की सारी व्याख्याएं ब्राह्मणवादी है।


इसी तरह साकेत अयोध्या में तब्दील है तो हड़प्पा और सिंदधु घाटी की सभ्यता का हिंदुत्वकरण हुआ है।पुराअवशेषों को ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक विरासत बताने के उपक्रम का खंडन अभीतक नहीं हुआ है जैसे बुद्ध काल की प्रतिमाओं को हिंदू देवमंडल में शामिल करने की मिथ्या को हम इतिहास बताते हैं जबकि बौद्धमय भारत से पहले ब्राह्मण धर्म के समय भी उन देव देवियो का कोई अस्तित्व ही नहीं रहा है।


हड़प्पा और मोहनजोदोड़ो के हिंदुत्वकरण का सिलसिला अब भी जारी है।मसलन बंगाल में शैव और कापालिक अनार्य द्रविड़ सभ्यता की विरासत है और अब उन्हें हम हिंदू बता रहे है।एकदम ताजा उदाहरण वैदिकी कर्म कांड,ब्राह्मणवाद और पुरोहित तंत्र के खिलाफ बंगाल में दो सौ साल का पहले शुरु हुआ मतुआ आंदोलन का हिंदुत्वकरण है।हरिचांद ठाकुर भी अब परमब्रह्म हैं।तथागत का अवतार,या बोधिस्तव बताते,तो हमें अपनी विरासत की जमीन से जुड़ने का मौका मिलता।यही हश्र संत रविदास का हिंदुत्व है।बाकी देवत्व विरोधी संत परंपरा का भी इसीतरह ब्राह्मणीकरण हुआ जबकि वे सारे संत ब्राहम्मण दर्म के खिलाफ ही तजिंदगी लड़ते रहे।यही हमारी विरासत है।


बंगाल में 1911 की जनगणणा में भी शूद्र और अटूतों की गिनती हिंदुओं से अलग हुई थी,लेकिन मतुआ आंदोलन के हिंदुत्वकरण से यह पूरी आबादी हिंदू दलित और अछूत में तब्दील हो गयी और उनके रंगभेदी सफाये के तहत ही भारत विभाजन हुआ क्योंकि भारत में बहुजन आंदोलन की कोख की तरह द्रविड़़ अनार्य बंगाल की बौद्धमय विरासत है।भारत के विभाजन के लिए ही बंगाल विभाजन हुआ।बंगाल का हिंदुत्वकरणा हुआ और बंगाल में तबसे लेकर ब्राह्मणवादी एकाधिकार जीवन के हर क्षेत्र में है।मतुआ आंदोलन भी ब्राह्मणधर्म के शिकंजे में कैद वोटबैंक है अब।


अब जैसे भारत विभाजन के लिए बंगाल विभाजन का प्रस्ताव बंगाल के ब्राह्मणवादी जमींदारों का कारनामा है और दो राष्ट्र के सिद्धांत के तहत ब्राह्मणवादियों के साथ सत्ता में भागेदारी के लिए मुसलमानों का बहुजन समाज से अलगाव के तहत भारत विभाजन और बंगाल के द्रविड़वंशज अनार्य असुर शूद्रों और अछूतों के सफाये की निरंतरता है,उसीके आधार पर विश्वव्यापी द्रविड़ नृवंश के इतिहास भूगोल से सफाये के लिए बंगाल विधानसभा में बंटवारे का फिर निर्णायक प्रस्ताव पूर्वी बंगाल की बंगभूमि को इतिहास और भूगोल से मिटाने का उपक्रम बंगाल नामकरण पश्चिम बगाल का पश्चिम बंगाल विधान सभा का प्रस्ताव है।फिर संविधान संशोधन की प्रकिया पूरी होने का इंतजार बिना इतिहास और भगोल का यह बंटवारा है।


यह बेशर्म रंगभेद ब्राह्मणधर्म की मनुस्मृति राज की बहाली का फासिज्म है।हिंदुत्व का पुनरुत्थान किसी भी सूरत में नहीं है।हिंदु बहुसंख्य और भारत के गैर ब्राह्मण तमाम समुदाय इसे अच्छी तरह समझ लें तो देश और हिंदुत्व दोनों का कल्याण है।इस लिहाज से हिंदुत्व के हित में यही है कि ब्राह्मण धर्म के एकाधिकारी कारपोरेट मुक्तबाजारी पुनरुत्थान के मुकाबले हिंदुत्व की बुनियाद धम्म की ओर लौटा जाये।


इसे समझने के लिए इतिहास की यह बुनियादी समझ जरुरी है कि भारतवासियों के धार्मिक विश्वास अनुष्ठानों की विरासत तीसरी दूसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व की सिंधु सभ्यता,मोहनजोदाड़ो हड़प्पा की संस्कृति के पुरात्तव अवशेषों से शुरु होती है,जो कुल मिलाकर इस भारत तीर्थ में विभिन्न न्सलों की मनुष्यता की धाराओं के विलय की प्रक्रिया की निरंतरता है,जैसे अछूत बहिस्कृत महाकवि रवींद्र नाथ टैगोर नें भारतीय राष्ट्रीयता की सर्वोत्तम व्याख्या अपनी कविता भारत तीर्थ में की है।


तीसरी दूसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व की सिंधु सभ्यता,मोहनजोदाड़ो हड़प्पा की संस्कृति के विभाजन की बात हम बारा बार करते हैं तो इसका आशय यह है कि ब्राह्मण वर्गीय आधार पर एकाधिकारवादी संरचना में संस्थागत तौर पर संगठित है और राष्ट्रीय स्वयं संघ इसी रंगभेदी संरचना का उत्तर आधुनिक संस्थागत स्वरुप है।


इसके विपरीत भारत में बहुसंख्य गैरब्राह्मणों का वर्गीय ध्रूवीकरण हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो के अवसान के बाद किसी भी कालखंड में नहीं हुआ है तो ब्राह्मण वर्चस्व और एकाधिकार के सत्तावर्ग के खिलाप बाकी प्रजाजनों का कोई वर्ग कभी बना नहीं है और ऐसा कभी न बने इसके लिए तमाम गैरब्राह्मण हजारों जातियों,लाखों उपजातियों और गोत्रों में बांट दिये गये हैं और प्रजाजन हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो के बाद से लगातार जाति युद्ध में एक दूसरे को खत्म करने पर आमादा रहे हैं और सहस्राब्दियों से भारत राष्ट्र का रंगभेदी स्वरुप तथागत गौतम बुद्ध की सामाजिक क्रांति के बावजूद जस का तस है क्योंकि इतिहास में हम कभी जाति के तिलिस्म को तोड़ नहीं पाये हैं।


गौरतलब है कि सिंधु सभ्यता,मोहनजोदाड़ो हड़प्पा की संस्कृतिकृषि आधारित उन्नततर सभ्यता की नींव पर वैश्विक वाणिज्य और विश्वबंधुत्व के रेशम पथ पर उन्नीत सभ्यता रही है.जिसने कांस्य और विविध धातुकर्म और अन्यशिल्पों के विकासके साथ साथ पकी हुई ईंटों के नगरों का निर्माण कर लिया था।


खानाबदोश यूरेशिया से आनेवाले हमलावर असभ्य और बर्बर थे उनकी तुलना में और वे पढ़ना लिखना भी नहीं जानते थे।इसके विपरीत सिंधु सभ्यता में लेखन कला उत्कर्ष पर थी।


हमलावरों ने सिंधु सभ्यता,उसके इतिहास और भूगोल का जो विनाश किया, वह सिलिसिला उस सभ्यता के वंशजों किसानों और मेहनतकशों के नरसंहार का कार्यक्रम है और ये तमाम समुदाय कभी इस हमवलावर नरसंहारी संस्कृति का प्रतिरोध नहीं कर सकी सिर्फ इसलिए कि उत्पादक और मेहनकश तमाम समुदाय हजारों जातियों और लाखों उपजातियों में तबसे लेकर अब तक बंटे हुए हैं और सत्तावर्ग के खिलाफ उनका वर्गीयध्रूवीकरण हुआ नहीं है,जिसके लिए जाति उन्मूलन अनिवार्य है।इसलिए तथागत गौतम बुद्ध के धम्म के मार्फत जाति का विनाश और वर्गीय ध्रूवीकरण से ही मुक्ति और मोक्ष दोनों संभव है।


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment