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Thursday, October 13, 2016

निषिद्ध होने लगा शरणार्थी,रंगभेदी अभियान में प्रियंका चोपड़ा भी शामिल? इसके उलट डोनाल्ड ट्रंप के रंगभेद के खिलाफ छह नोबेल विजेताओं ने जारी किया बयान Amid debate, all 2016 American Nobel laureates are immigrants पलाश विश्वास


निषिद्ध होने लगा शरणार्थी,रंगभेदी अभियान में प्रियंका चोपड़ा भी शामिल?

इसके उलट डोनाल्ड ट्रंप के रंगभेद के खिलाफ छह नोबेल विजेताओं ने जारी किया बयान

Amid debate, all 2016 American Nobel laureates are immigrants

पलाश विश्वास

डोनाल्ड ट्रंप के रंगभेदी चुनाव अभियान में आप्रवासियों,शरणार्थियों और बाहरी लोगों के खिलाफ जारी घृणा अभियान के खिलाफ 2016 के अमेरिका के सभी छह नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने बयान जारी किया है ,जिनमें से किसी का जन्म अमेरिका में नहीं हुआ है।गौरतलब है कि अमेरिका में सन 2000 से लेकर जिन 71 लोगों ने नोबेल पुरस्कार जीते,उनमें से चालीस ऐसे हैं,जिनका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ है।

इन छह नोबेल विजेताओं के मुताबिक आप्रवासी नहीं होते तो अमेरिका बनता ही नहीं है।गौरतलब है कि अमेरिका और लातिन अमेरिका में मूलनिवासियों के ध्वंस पर इंग्लैंड से भगाये गये अपराधिक तत्वों ने कोलबंस के जलदस्युओं की फौज द्वारा इंका और माया सभ्यताओं के विनाश के बाद अश्वेतों को गुलाम बना लिया और रंगभेदी श्वेत वर्चस्व का सत्ता वर्ग खुद बाहरी होते हुए मूलतः अश्वेतों को आप्रवासी,बाहरी और शरणार्थी करार दे रहा है।

The Hill ने इस सिलसिले में खबर ब्यौरे वार छापी हैः

In a year in which Republican presidential nominee Donald Trump is proposing a crackdown on immigration, all six of the 2016 American Nobel laureates announced to date are immigrants.

"I think the resounding message that should go out all around the world is that science is global," Sir J. Fraser Stoddart, one of three laureates in chemistry, told The Hill on Monday.

Stoddart, born in Scotland, credited American openness with bringing top scientists to the country. He added, however, that the American scientific establishment will only remain strong "as long as we don't enter an era where we turn our back on immigration."

Stoddart said the United States should be "welcoming people from all over the world, including the Middle East."

Stoddart naturalized as a U.S. citizen in 2011, but said he would likely not vote on Nov. 8.

"I find it very difficult to handle the situation and certainly don't have much time to think about it between now and December when I go to Stockholm," said Stoddart, a researcher at Northwestern University, who won the prize in chemistry in collaboration with Jean-Pierre Sauvage and Bernard Feringa, French and Dutch researchers. They won their prize for "for the design and synthesis of molecular machines."

Trump has focused his campaign on immigration and the revocation of free trade deals, targeting globalization as a movement that "has left millions of our workers with nothing but poverty and heartache." The billionaire has proposed strengthening immigration laws and "extreme vetting" of potential immigrants from countries with a history of terrorism.

"It's particularly pertinent to have these discussions in view of the political climate on both sides of the pond at the moment," said Stoddart. "I think the United States is what it is today largely because of open borders."

Stoddart added that political leaders today are not "people of the times."


साभारः http://thehill.com/latino/300237-all-american-2016-nobel-prize-honorees-are-immigrants



यही किस्सा आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का है।पूरे अफ्रीका और लातिन अमेरिका,मध्य अमेरिका का है।

भारत विभाजन करने वाले लोग भारत में भी शरणार्थियों का सफाया करने में लगे हैं तो सीमापार से कहीं ज्यादा शरणार्थी जल जंगल जमीन से बेदखल इस देश के आदिवासी,दलित और पिछड़ों के साथ आम जनता है और यही मुक्त बाजार के सबसे अच्छे दिन हैं।

दक्षिण अफ्रीका के इस रंगभेद के खिलाफ अश्वेत जनता ने दशकों से आंदोलन जारी रखकर आजादी हासिल की है।

भारत में भी रंगभेदी वर्चस्व कुल मिलाकर विदेशी वर्चस्व है,जिसके तहत आम जनता को आजादी अभी हासिल नहीं हुई है और भारत में भी जल जंगल जमीन, आजीविका और नागरिकता से मूलनिवासी बहुसंख्य अश्वेत जनता बेदखल होते जा रहे हैं।शरणार्थी भारत में भी निषिद्ध हैं।

इसी बीच बालीवूड की तरह हालीवूड में धूम मचाने वाली हमारी प्यारी अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा में ने हाल में एक बड़ा धमाका कर दिया है।

एक प्रमुख लाइफस्टाइल मैगजीन के कवर पर वह जो टाप पहनकर प्रगट हुई हैं,उस पर चार शब्द लिखे हैं।शरणार्थी,आप्रवासी,बाहरी और सैलानी।सैलानी शब्द को छोड़कर बाकी तीनों शब्द लाल स्याही से काट दिये गये हैं।

प्रियंका ने Conde Nast Traveller के कवर पर छपी यह त्सवीर सोशल मीडिया पर शेयर किया है।गौरतलब है कि अमेरिका और ब्रिटेन में ये तीनों शब्द निषिद्ध होने को हैं तो भारत में भी शरणार्थी शब्द को निषिद्ध माना जाता है।

डोनाल्ड ट्रंप के रंगभेदी चुनाव अभियान के अलावा यह अमेरिका और इंग्लैंड में रंगभेदी श्वेत प्रभुत्ववाद के पक्ष में जा री एक कु क्लाक्स अभियान है,जिसमें प्रियंका जाने अनजाने शामिल हो गयी हैं।

ट्विटर पर यह तस्वीर जारी करने के बाद प्रियंका को बड़ी संख्या में लोग इलीटिस्ट,आफेनसिव और इनसेनसिटिव कह रहे हैं।

दरअसल शरणार्थियों के खिलाफ यह रंगभेदी कुलीनत्व,आक्रामक रवैया और संवेदनहीनता दुनियाभर में सामंती और साम्राज्यवादी रंगभेदी सत्ता वर्चस्व का चरित्र है,जो पहले युद्ध,गृहयुद्ध और आतंकवाद के जरिये शरणार्थी पैदा करता है और फिर उनके सफाये को लिए कोई कसर नहीं छोड़ता।

अब प्रियंका की सफाई आने से पहले उस पत्रिका की ओर से कहा गया है कि वह दरअसल इन तीन शब्दों को लेकर मचे बवाल के उलट सीमाओं की सारी दीवारें तोड़ने की मुहिम में शामिल हैं।

गौरतलब है कि सीमाओं को खत्म करना मार्क्सवादी एजंडा रहा है तो राष्ट्र व्यवस्था को सर्वशक्तिमान करके नागरिकता, मनुष्यता और प्रकृति को तहस नहस करके,उत्पादन प्रणालियों और अर्थ व्यवस्थाओं पर काबिज वैश्विक मुक्तबाजार भी सीमाएं नहीं चाहता,बाजार पर राष्ट्र का नियंत्रण नहीं चाहता,संविधान और कानून का राज नहीं चाहता,क्रय क्षमता ही इस मुक्तबाजारी उदारवाद के लिए न्याय और समता है।

गौरतलब है कि  अपने चुनाव अभियान की शुरुआत से ही ट्रंप मुसलमानों और सीरियाई शरणार्थियों के अमेरिका में प्रवेश पर पाबंदी की मांग करते रहे हैं।अमेरिका के राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन दावेदार डोनाल्ड ट्रंप के बेटेडोनाल्ड ट्रंप जूनियर ने सोमवार रात एक तस्वीर ट्वीट किया, जिसमें सीरियाईशरणार्थियों की तुलना स्किटल्स (फलों के स्वाद वाली कैंडी) से की गई है।

गौरतलब है कि अमेरिकी चुनाव के पहले राष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प और हिलेरी क्लिंटन के बीच दूसरी टीवी डिबेट समाप्त हो चुकी है। इस डिबेट में ट्रंप और हिलेरी ने एक दूसरे को ई-मेल्स, सेक्स कांड, सीरिया, रूस और आईएस जैसे मुद्दों पर जमकर घेरा। सेंट लुईस की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में डिबेट शुरू होने से पहले जब दोनों नेता मंच पर आए तो उस वक्‍त दोनों ने हाथ तक नहीं मिलाया। ट्रंप ने अपनी भाषण की शुरुआत करते ही कहा कि हिलेरी के दिल में उनके लिए हद से ज्यादा नफरत है। वहीं हिलेरी ने भी ट्रंप को लेकर कहा कि वो राष्‍ट्रपति बनने लायक नहीं है।

ट्रंप ने मांग की कि हिलेरी 33000 ईमेल डिलीट कर देने पर माफी मांगें। हिलेरी पर आरोप है कि उन्होंने वर्ष 2009-2013 के दौरान ओबामा की प्रमुख राजनयिक रहते हुए निजी ईमेल का इस्तेमाल किया और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला। कुल 90 मिनट की बहस में हिलेरी ने जोर देकर कहा कि उन्होंने ईमेल के मुद्दे पर गलती की है और वह इसकी जिम्मेदारी लेती हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति पद की डेमोकेट्रिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिका में मुस्लिमों का प्रवेश प्रतिबंधित करने की डोनाल्ड ट्रंप की योजना को लेकर आज उन्हें आड़े हाथों लिया और कहा कि (मुस्लिम) समुदाय के बारे में उनकी 'भड़काऊ भाषणबाजी' में उलझना 'अदूरदर्शी' और 'खतरनाक' होगा।

मैडम हिलेरी ने कहा कि राष्ट्रपति बनने पर वह ऐसे किसी व्यक्ति को देश में नहीं रहने देंगी, जो उनके हिसाब से अमेरिका के लिए खतरा होगा लेकिन बहुत से शरणार्थियों को…जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे होते हैं…उन्हें सिर्फ इस आधार पर अमेरिका में प्रवेश देने से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे मुस्लिम हैं। उन्होंने कहा, 'लेकिन हम जांच करवाएंगे। हमारे पेशेवरों, खुफिया जानकारी के विशेषज्ञों और अन्य की ओर से इस जांच को जितना कड़ा करने की जरूरत होगी, इसे किया जाएगा।


अमेरिका सीमाओं के आर पार आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ है और  पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक को अमेरिकी विदेश विभाग जायज बता रहा है।तो पाकिस्तान ने अमेरिकाको पतनशील साम्राज्यवाद कहा है।इस कूटनीतिक लड़ाई में अमेरिका किस हद तक भारत का साथ देगा,यह समझने वाली बात है।

अमेरिकी विदेश विभाग के हालिया बयान भारत पाक युद्ध परिस्थितियों को युद्धोन्माद में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।दुनियाभर में अमेरिकी की इस पुलिसिया विदेश नीति की असली वजह उसकी युद्धक अर्थव्यवस्था है,जो संकट में है और दुनियाभर में हथियारों के बाजार में कड़ी प्रतिद्वंद्विता से अमेरिका मंदी की चपेट से अभी निकला नहीं है।उसकी अर्थव्यवस्था अभी तेलकुंओं में फंसी है।

अब हम उनके आर्थिक हितों के लिए उनकी मर्जी से अपने पड़ोसी के साथ सीधे युद्ध शुरु करें तो भारत पाक युद्ध का नतीजा चाहे कुछ हो,उससे अमेरिका को सबसे ज्यादा फायदा होना है।

अमेरिकी विदेश नीति भी उसकी अर्थ व्यवस्था की तरह युद्धक है,जो दुनियाभर में शरणार्थी समस्या की असल वजह है।

मजे की बात है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा वहां की शरणार्थी आबादी है तो यूरोपीय समुदाय से बाहर निकलने के लिए ब्रिटेन के ब्रेक्सिट का विकल्प अपनाने के पीछे भी इंग्लैंड समेत समूचे यूरोप में शरणार्थी सैलाब है।

डोनाल्ड ट्रंप जीते या फिर मैडम हिलेरी,अमेरिका में आप्रवासी जनता के खिलाफ रंगभेदी हिंसा का सिलसिला तेज होना है तो इंग्लैंड के यूरोपीय समुदाय से बाहर निकलने के बाद दुनियाभर में तमाम सीमाएं शरणार्थियों के लिए सीलबंद होना है।

दूसरी तरफ,इन्हीं ब्रिटेन और अमेरिका की अगुवाई में समूचे मध्यपूर्व,दक्षिण पूर्व एशिया,मध्य और लातिन अमेरिका,अफ्रीका,पूर्व और पश्चिम एशिया में युद्ध और गृहयुद्ध के खेल और कारोबार का वैश्विक मुक्तबाजारी वसंत की वजह से दुनियाभर की तमाम देशों में सीमाओं के आर पार नक्शों में भारी उथल पुथल,बंटवारा,विखंडन और प्राकृतिक संसाधनों की अबाध लूटपाट और इस विध्वंस को अंजाम देने के लिए दुनियाभर में अमेरिकी सुनियोजित आतंकवादी हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की अबाध पूंजी प्रवाह से पल दर पल मनुष्यता शरणार्थी में तब्दील हो रही है।

जाहिर है,तमाम देशों में शरणार्थियों के लिए सीमाएं सीलबंद कर देने से शरणार्थी समस्या सुलझने वाली नहीं है।बेदखली,लूटपाट,आतंकवाद,युद्ध और गृहयुद्ध का कारोबार अब विश्वव्यवस्था है तो जब जब प्रकृति का विध्वंस होना है,जब जब मनुष्यता सीमाओं के आर पार लहूलुहान होनी है,शरणार्थी सुनामी तेज होनी है,जिससे अब अमेरिका और इंग्लैंड की भी रिहाई असंभव है।


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