नक्सलियों के प्रति केंद्र उदार बने तो सम्भावनाएं शेष हैं
http://www.janatantra.com/news/2010/07/12/swami-agnivesh-article-on-naxal-peace-talks/दूसरी तरफ यह भी सच है कि समाज के कमजोर, शोषित और प्रताड़ित तबके के साथ लोकतांत्रिक और मानवीय बरताव करने की सदाशयता हमने आजादी के बाद से आज तक कभी दिखाई ही नहीं। किसी को भी जानना हो कि समाज का सबसे कमजोर व्यक्ति कौन है और उसकी शिनाख्त कैसे हो, तो महात्मा गांधी हमें उसका साफ-साफ पता ठिकाना बता गए हैं। बापू वह कसौटी भी दे गए हैं, जिसके आधार पर सरकार ही नहीं, समाज का हर अधिकार संपन्न व्यक्ति या वर्ग इस बात का परीक्षण कर सकता है कि वह जो कर रहा है, वह सही है या गलत। आजादी के बाद देश के हुक्मरां को लक्ष्य करते हुए गांधी जी ने कहा था- अपने देखे सबसे कमजोर, गरीब और असहाय आदमी का चेहरा ध्यान में लाना और फिर खुद से पूछना कि तुम जो कुछ भी करने जा रहे हो, क्या उससे उस आदमी की हालत में कोई सुधार आएगा। अगर तुम्हारी अंतरात्मा कहे कि हां, तो आगे बढ़ना, अन्यथा मान लेना कि यह करने जैसा काम नहीं है।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि देश के विकास की सारी परियोजनाएं आदिवासियों, गरीबों और असंगठित लोगों के जल, जंगल और जमीन को ही निशाने पर लेती हैं। अभी तक यह सुनने में नहीं आया कि किसी बड़े शहर में संपन्न लोगों का कोई रहवासी इलाका इसलिए खाली करवा लिया गया हो कि वहां विकास की कोई बड़ी परियोजना शक्ल ले रही है। हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र वहीं बनाए जा सकते हैं, जहां पानी का अक्षय स्रोत हो। सवाल है कि क्या हमारी सरकार मुंबई के नरीमन पॉइंट या जुहू इलाके में परमाणु संयंत्र लगाने के बारे में सोच सकेगी, जहां से समुद्र बिलकुल नजदीक है? उड़ीसा के जगतसिंहपुरा और कलिंगनगर में देशी-विदेशी कंपनियों की खैरख्वाह बनकर राजसत्ता वहां अपने ही लोगों के साथ जैसा बरताव कर रही है, वही वहां के लोगों को हिंसक प्रतिरोध के लिए बाध्य कर रहा है। हिंसा का रास्ता अमूमन किसी भी तबके की पहली पसंद नहीं होता। सामाजिक अन्याय और राजसत्ता की कपटपूर्ण नीतियां ही लोगों को इस रास्ते पर धकेलती हैं।
एक ओर पास्को जैसी कंपनियां आदिवासियों को बेदखल कर, उनकी वन संपदा पर कब्जा कर अरबों रुपये कमा रही हैं, वहीं आदिवासियों को पेट भर अन्न और तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं मिल रहा। उनके जल, जंगल और जमीन को देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों के हवाले करना आधुनिक विकास की अनिवार्यता माना जा रहा है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ के बारे में कहा है कि वहां लगभग आठ सौ गांवों के सत्तर हजार से ज्यादा आदिवासी विस्थापित हुए हैं, जिनका अब तक पुनर्वास नहीं हुआ। क्या ऐसा करके सरकार ने सत्तर हजार नए लड़ाके माओवादियों को नहीं सौंप दिए हैं?
हमारे आसपास पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश, सभी जगह गृहयुद्ध जैसी परिस्थितियां बनी हुई हैं। इनमें से अधिकांश की वजह आंतरिक है। जनता के वोट से चुने जाने वाले खुद को राजा मानकर राज चला रहे हैं। इसीलिए जनता की गाढ़ी कमाई का बेहिसाब पैसा पुलिस और सेना पर खर्च किया जा रहा है।
माओवादी नेता चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के एक कथित मुठभेड़ में मारे जाने से केंद्र सरकार और माओवादियों के बीच बातचीत की प्रक्रिया को धक्का जरूर लगा है, इसके बावजूद संभावनाएं अभी शेष हैं। क्योंकि माओवादियों की ओर से अपने नेता के मारे जाने के बावजूद कोई नकारात्मक बयान नहीं आया है। आजाद के मारे जाने के बाद माओवादियों ने ४८ घंटे के बंद का आह्वान जरूर किया, लेकिन उस दौरान हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। यानी अपने एक महत्वपूर्ण साथी के मारे जाने से नाराज और दुखी होने के बावजूद माओवादी संयमित हैं और सरकार के साथ बातचीत करना चाहते हैं।
इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि वह भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए आजाद के मारे जाने की घटना की न्यायिक जांच कराए। उसी से स्पष्ट हो जाएगा कि आजाद के मुठभेड़ में मारे जाने का आंध्र प्रदेश पुलिस का दावा सही है या नहीं। न्यायिक जांच का आदेश देकर सरकार अपनी भलमनसाहत का परिचय दे सकती है, लेकिन अफसोस की बात है कि वह अभी तक चुप है। ((अमर उजाला से साभार))
2 Responses for "नक्सलियों के प्रति केंद्र उदार बने तो सम्भावनाएं शेष हैं"
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
ये सही कही आपने स्वामी अग्निवेश। सरकार को उदारतापूर्वक इस मसले पर सोचना चाहिए। नक्सली कोई और नहीं अपने ही साथी हैं। इसी देश के लोग हैं। उनके नाम पर नरसंहार सही नहीं है। लेकिन मंशा सिर्फ़ सरकार की ही नहीं बल्कि आप जैसे बुद्धिजीवियों की भी साफ होनी चाहिए।
आप भी कमाल बात करते हैं। नक्सलियों से सहानुभूति किसलिए? उन्होंने ऐसा क्या किया है कि उन्हें छोड़ा जाए? वो देशद्रोही हैं। उनके साथ वैसा ही सलूक होना चाहिए जैसा किसी देशद्रोही के साथ होता है।