बांग्लादेश में हिंसा से ठप हुआ कारोबार, मुश्किल में छोटे कारोबारी!
बंगाल के अल्पसंख्यक संगठन तेजी से हिफाजते इस्लाम और जमायत के खिलाफ गोलबंद होने लगे हैं।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बांग्लादेश में अशांत माहौल की वजह से सीमा के इस पार उसपार के छोटे कारोबारियों की आफत आ गयी है। उनका कारोबार ठप पड़ गया है। सीमा पर बाधित है आयात निर्यात कारोबारी बांग्लादेश में राजनीतिक व सांप्रदायिक हिंसा के माहौल में कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते।सीमा सुरक्षा बल और सीमा शुल्क अधिकारियों के लिए भी बांग्लादेश के दिन प्रति दिन बिगड़ते हालात के मद्देनजर सुरक्षा के लिहाज से व्यापारिक केंद्रों क चालू रखने की कड़ी चुनौती है।गौरतलब है कि व्यापार असंतुलन में सुधार के लिए भारत ने बांग्लादेश से ब़डी संख्या में आने वाले उत्पादों को शुल्क मुक्त प्रवेश की अनुमति दी हुई है। द्विपक्षीय कारोबार बढ़ाने के सिलसिले में यह पहल भी अब बेकार होने लगी है। कुल मिलाकर हम बांग्लादेश को ज्यादा उत्पादों का निर्यात करते हैं और उससे कम वस्तुएं आयात करते हैं।इसलिए जाहिर है कि बांग्लादेस के मुकाबले भारत को इस व्यापारिक व्यवधान से ज्यादा नुकसान होना है।
भारत कपास, वाहन व उपकरण, अनाज, स्टील, खनिज ईंधन आदि बांग्लादेश को निर्यात करता है। वहीं, बांग्लादेश कच्चा जूट, जूट की वस्तुएं, मछली आदि मुख्य रूप से भारत को निर्यात करता है।
बंगाल में इसके अलावा एक और गंबीर समस्या उत्पन्न हो रही है और वह है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के समर्थन में चल रहे आंदोलन के खिलाफ बंगाल के अल्पसंख्यक संगठन तेजी से हिफाजते इस्लाम और जमायत के खिलाफ गोलबंद होने लगे हैं।12 मुसलिम संगठनों ने भारत सरकार से बांग्लादेश से सभी प्रकार के कुटनीतिक व वाणिज्यिक संबंध खत्म करने की अपील की है। जबकि अब भूमि आंदोलन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुख्य समर्थक अल्पसंख्यक मोर्चा के नेता ने भारत के सभी लोकतांत्रिक ताकतों से हसीना सरकार केखिलाप जमायत और हिफाजते इस्लाम को समर्थन करने की मांग की है। इन हालात में सीमा के आर पार तनाव लगातार बढ़ते जा रहे हैं।जिससे ऐसे माहौल में कारोबार चालू रखना लगभग असंभव हो गया है।दूसरी ओर,बांग्लादेश में तेजी से अराजकता फैल रही है। कट्टरपंथियों के प्रदर्शन और प्रदर्शन के दौरान हिंसा वहां आम बात हो गई है। कट्टर इस्लामी संगठन शेख हसीना सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि देश में धर्मनिरपेक्ष कानूनों की जगह इस्लामी नियम-कायदे लागू किए जाएं। ये संगठन मांग कर रहे हैं कि ऐसे लोगों को फांसी दी जाए जो नास्तिक और 'ईश' विरोधी हैं। शेख हसीना का कहना है कि बांग्लादेश के कानून में ईश निंदा करने वाले लोगों को सजा देने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। इसमें और संशोधन की कोई जरूरत नहीं है। इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने 21 जनवरी को अपने पहले निर्णय में कुख्यात युद्ध अपराधी अबुल कलाम को फांसी की सजा सुनाई। कलाम ने बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तानी फौज का खुलकर साथ दिया था।कलाम को विपक्ष की नेता बेगम खालिदा जिया का समर्थन प्राप्त है।अबुल कलाम को सजा सुनाए जाने के बाद एक और कुख्यात युद्ध अपराधी व जमायते इस्लामी के अध्यक्ष दिलावर हुसैन सहीदी को फांसी की सजा सुनाई गई। इसके तुरंत बाद पूरे बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों ने शेख हसीना की सरकार के खिलाफ हिंसा शुरू कर दी।
फिर मई में बांग्लादेश के एक विशेष प्राधिकरण ने कट्टरपंथी संगठन जमाते इस्लामी के दिग्गज नेता मुहम्मद कमरूजमा को 'मानवता के खिलाफ अपराध' के लिए मौत की सजा सुनाई जो उन्होंने वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ मुक्तियुद्ध के दौरान किए थे।अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय-2 के तीन न्यायाधीशों की पीठ के न्यायमूर्ति ओबैदुल हसन ने कहा, 'उसे मौत होने तक फांसी पर लटकाया जाए।' दोषी को भीड़ भरे अदालत कक्ष में कड़ी सुरक्षा के बीच कटघरे में लाया गया। कमरूजमा जमात का सहायक सचिव है। पाकिस्तानी सैनिकों का पक्ष लेने के लिए वर्ष 1971 के युद्धापराध मामले में वह ऐसा चौथा आरोपी है, जिसे दोषी ठहराया गया है। जमाते इस्लामी ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध किया था। जब फैसला आया तो विपक्ष ने लगातार दूसरे दिन हड़ताल रखी। कमरूजमा को ढाका केंद्रीय कारागार से एक सुरक्षा दस्ते के बीच लाया गया। 265 पन्ने के फैसले में कहा गया है कि सुनवाई के दौरान सामूहिक हत्या के पांच आरोप साबित हुए।
मुर्शिदाबाद के विख्यात आमों की सबसे ज्यादा खपत बांग्लादेश में होती है। इस बार आम का बंपर उत्पादन हो रहा है। घरेलू बाजार में कड़ी प्रतिद्वंद्विता है और दाम भी कम रहने के आसार है। अभी से बाजार में आम ही आम हैं। पर मुर्शिदाबाद के आम के कारोबारी मौजूदा हालत में कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं। वे बांग्लादेस के बजाय बाकी देस में खासकर नई दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा आम भेजने की कोशिस कर रहे हैं। लेकिऩ उत्तर भारत के बाजारों में उम्दा किस्म का मलीहाबादी दशहरा आम छाया होता है, जो बंगाल में भी हिमसागर का सीजन खत्म होने के बाद खूब बिकता है। ळेकिन दशहरा से पहले मुर्शिदाबाद की आम की फसल तैयार है और कारोबारी च्न्नई औरमहाराष्ट्र के आम के मुकाबले कमर कसकर उतर गये हैं। पत्थर छोड़ने की दूरी पर पद्मा के उस पार वे देख भी नहीं रहे हैं।
इसीतरह बंगाल और भारतीय बाजारों में बाग्लादेश से आयातित स्वादिष्ट ईलिश मछलियों की भारी मांग है। बंगाल सरकार खुद अपनी पहल से ईसिश के आयात का बंदोबस्त करती है। लेकिन अबकी दफा बांग्लादेश से ईलिश की आवक होने की संभावना कम हो गयी है। पश्चिम बंगाल के बंगालियों को अब लगता है कि कोलाघाट और चिल्का की ईलिश से ही अपनी जीभ को तृप्ति देनी पड़ेगी।
उद्योग मंडल बंगाल नेशनल चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने पहले ही चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में अगर मौजूदा राजनीतिक अशांति बनी रहती है, तो भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
बांग्लादेश के सांख्यकी ब्यूरो ने 17 मई को रिपोर्ट जारी कर कहा कि इस वित्तीय वर्ष में बंग्लादेश की जीडीपी की वृद्धि दर पिछले वर्ष से कम रही है। बांग्लादेशी अख़बार डेली प्रोथम आलो ने इस बारे में ख़बर की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वित्तीय वर्ष में बांग्लादेश की जीडीपी का लक्ष्य 7.20 प्रतिशत है। पर कृषि उद्योग व सेवा उद्योग की धीमी वृद्धि से जीडीपी में केवल 6.03 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। लेकिन उद्योग क्षेत्र की वृद्धि कुछ अधिक रही।
साथ ही बांग्लादेश के एक अर्थशास्त्री ने कहा कि उद्योग क्षेत्र में शायद 9.38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन देश में हुई हड़ताल, हिंसक संघर्ष आदि राजनीतिक अस्थिर वजहों से उद्योग की वृद्धि में बाधाएं भी मौजूद होंगी।
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, ह्यूमन राईट्स वॉच ने, 5-6 मई को 'हिफाजत-ए-इस्लाम' द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई मौतों की जांच किसी स्वतंत्र आयोग से कराने का बांग्लादेश से शनिवार को आग्रह किया। संगठन ने कहा है कि इस आयोग को देश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) के फैसले के बाद फरवरी, मार्च और अप्रैल में हुए प्रदर्शनों और जवाबी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा की भी जांच करनी चाहिए। इनमें दर्जनों लोग मारे गए थे।
पांच-छह मई के प्रदर्शन के दौरान मरने वालो की संख्या का सही आंकड़ा नहीं मिला है। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 11 बताई गई है, वहीं हिफाजत-ए-इस्लाम ने इसे हजारों में बताया है। स्वतंत्र समाचार सूत्रों ने लगभग 50 लोगों को मारे जाने की बात कही है। इसमें सुरक्षा कर्मियों की मौतें भी शामिल हैं।
ह्यूमन राईट्स वॉच के ब्रैड एड्म्स ने कहा कि बांग्लादेश को इस साल आईसीटी के फैसले की प्रतिक्रियास्वरूप हुए प्रदर्शनों के अलावा राष्ट्रीय चुनाव के दौरान हुए प्रदर्शनों की भी जांच करानी चाहिए|
मानवाधिकार संगठन ने विपक्षी पार्टियों- बांग्लादेश नेशनल पाटी (बीएनपी), जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे संगठनों से हिंसा की आलोचना करने की अपील की है। उसने सरकार से भी प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा संयम बरतने के लिए सार्वजनिक रूप से आदेश देने की अपील की।
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