कोयले की आपूर्ति में रिकॉर्ड 11 फीसदी का इजाफा, लेकिन कोल इंडिया का एकाधिकार खत्म करने के लिए हरसंभव कोशिश जारी!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
वर्ष 2012-13 के दौरान देश की सबसे बड़ी कोयला कंपनी कोल इंडिया बिजली क्षेत्र को की जाने वाली कोयले की आपूर्ति में रिकॉर्ड 11 फीसदी का इजाफा कर चुकी है और इसके अलावा बिजली वितरण इकाइयां राज्यों में बिजली की दरों में भी इजाफा कर चुकी है लेकिन इसके बावजूद बिजली कंपनियों की चिंता बरकरार है।अपने संकट से जूझते हुए कोयला आपूर्ति की शर्तें पूरी करके बिजली कंपनियों की मांग पूरी करने में कोल इंडिया की इस कामयाबी से लेकिन कोल इंडिया के प्रति सरकारी नजरिये में कोई फर्क नहीं आ रहा है। विनिवेश और निजीकरण के जरिये कोल इंडिया का एकाधिकार खत्म करने के लिए हरसंभव कोशिश जारी है।
विडंबना है कि कोलइंडिया अपने वजूद की लड़ाई में खुद अकेली लड़ रही है। उसके साथ कोई खड़ा नहीं है। कोयला ब्लाकों के आबंटन में जो घोटाला हुआ, उसके लिए कोलइंडिया के कर्मचारी या अधिकारी दोषी नहीं है। यह घोटाला राजनीति के सर्वोच्च स्तर पर हुआ। क्योंकि आबंटित खानों में नियमानुसार आबंटन हुआ रहता तो अब तक उत्पादन जोरों पर होता, जिससे कोयला आपूर्ति के अतिरिक्त दबाव से राहत मिल जाती कोल इंडिया को । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसका खामियाजा भुगत रही है कोल इंडिया। कोयला खानों में लगी आग की वजह से अरबों का बेशकीमती कोकिंग कोयला राष्ट्रीयकरण के बाद से लगातार जलता रहा है, लेकिन इस सिलसिले में भूमिगत आग बुझाने के लिए और प्रभावित इलाकों को खाली कराने की जो राजनीतिक इच्छा होती है, उसका सिरे से अभाव है। बीसीसीएल और ईसीएल में ओपन कास्ट माइनिंग के जरिये तेजी से उत्पादन बढ़ाया जा सकता था, लेकिन इसके लिए मशीनें रखने की जमीन तक नहीं मिल रही है कोल इंडिया को।
राजनीति की वजह से कोयला उत्पादन में जो कमी आयी है, खोयला घोटालों के कारण जो कोयला ब्लाक बंजर बना दिये गये, उसके लिए किसी को सजा नहीं मिलने वाली। लेकिन आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं के समाधान के इलाज बतौर कोल इंडिया के एकाधिकार खत्म करके बिजली की तरह कोयला सेक्टर को भी निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी है।
कोयला माफिया हो या अवैध खनन, कानून व व्यवस्था के मामले राज्य सरकारों के हैं, लिकिन इसका ठिकरा भी कोल इंडिया के मत्थे फोड़ा जाता है। मानों राजनीति नहीं, बल्कि कोल इंडिया माफिया और तस्करों को संरक्षण देती है और कोयला तस्करी इसी वजह से जारी है।
राजनीति से ही जुड़ी है ट्रेड यूनियनें, जिन्हें कोल इंडिया के एकाधिकार खत्म करने की कोशिशों केबारे में बखूब मालूम हैं, पर इस मुद्दे पर कोळइंडिया के साथ खड़े होने के बजाय मजदूर यूनियनों का एकमात्र काम किसी न किसी बहाने कोयला उत्पादन बाधित करने का है।वेतनमान को लेकर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। सवाल है कि जब कोल इंडिया के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग गया है तब कबतक वेतनमान मिलता रहेगा और किसकेखिलाफ आंदोलन से कोयलांचल में राजनीति होती रहेगी?
गौरतलब है कि निजी उपयोग के लिए कोयले का खनन करने वाले आवंटित ब्लॉकों से उत्पादन करने की प्रतिबद्घता को पूरा करने में नाकाम रही है सरकार खुद, कोल इंडिया इसके लिए जिम्मेदार नहीं है।अंतर मंत्रालयी समूह (आईएमजी) ने कोयला खदान आवंटित 32 कंपनियों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए कोयला मंत्रालय से सिफारिश की। जिन 32 कंपनियों को नोटिस भेजा जाना है उनमें टाटा, बिड़ला, जायसवाल और जिंदल ग्रुप शामिल हैं।लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया में यह पहला कदम है। खास बात यह है कि सबसे ज्यादा कारण बताओ नोटिस जिंदल ग्रुप को भेजे जाने हैं। नवीन जिंदल ग्रुप को कुल 11 ब्लॉक आवंटित किए गए थे।
मंत्रालय के सूत्र ने बताया कि कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने की सिफारिश करने के पीछे कंपनियों द्वारा उत्पादन में कमी रहना है।सरकार ने जुलाई 2012 में आईएमजी का गठन किया था ताकि जिन कंपनियों को सीमित उपयोग के लिए कोयला खदानें आवंटित की गई हैं उनके कार्य की प्रगति पर नजर रखी जा सके।
इस बीच 58 खदानों को तय समयसीमा के अंदर खदानों का विकास न करने की वजह से कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है।इससे पहले सरकार ने आईएमजी द्वारा 13 खदान आवंटनों को रद्द किए जाने तथा 14 कोयला खदान आवंटित कंपनियों की बैंक गारंटी घटाए जाने की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था।
अगर कोयला ब्लाकों के आबंटन में घोटाला है और इस वजह सेकोयला उत्पादन बाधित हुआ है तो इसके लिए जिम्मेदार हैं कोयला मंत्रालय और भारत सरकार। अब शीर्ष राजनीति में निरंकुश भ्रष्टाचार की वजह से उत्पन्न आपूर्ति घाटा पूरा करने के लिए कोल इंडिया पर दबाव का कैसाऔचित्य है और कैसी नैतिकता। राजनीति और ट्रेड य़ूनियनें इस बुनियादी मुद्दे पर खामोश है। कोलगेट को लेकर प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग करने में न अघाने वाले लोगों को यह होश भी नहीं है कि इस घोटाले की वजह से कोयला उत्पादन कितना बाधित हुआ और किस तरह इसी बहाने कोल इंडिया का भट्टा बैठाया जा रहा है। कोयला ब्लाकों के आबंटन से बड़ा घोटाला तो इस तरह जहर पिलाकर कोल इंडिया जैसी कंपनी का काम तमाम करने का उद्यम है।निजी बिजली और स्टील कंपनियां करीब सालाना 3.6 करोड़ टन कोयले के उत्पादन के ढेर पर बैठी हुई है जबकि लक्ष्य 10 करोड़ टन कोयले के उत्पादन का था।
इसके अलावा पर्यावरण हरी झंडी न मिलने से भी कोल इंडिया क उत्पादन प्रभावित हो रहा है क्योंकि नयी परियोजनाएं शुरु ही नहीं हो पा रही हैं। कोल इंडिया ने पर्यावरणीय मंजूरी मिलने में उम्मीद से कहीं अधिक देरी का आरोप लगाते हुए कहा कि इसके कई खदान पर्यावरणीय मंजूरी की सीमा तक पहुंच चुके हैं।कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान 45.2 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया जो कि वर्ष 2011-12 के करीब 43.5 करोड़ टन से करीब चार फीसदी अधिक है। 15 मार्च तक सीआईएल की नई खनन परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरियों की वजह से रोकना पड़ा और इसके बावजूद भी कंपनी उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब रही। अतिरिक्त 50 लाख टन का उत्पादन वन्य मंजूरियों की वजह से अटक गया। चूंकि अब बड़ी खनन परियोजनाओं को निवेश पर गठित मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीआई) तेजी से मंजूरी प्रदान कर रही है इसलिए निकट भविष्य में कोयले के उत्पादन में सुधार होने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि कोयला घोटाले पर संसदीय समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की गई है। समिति के अध्यक्ष कल्याण बनर्जी ने संसद में रिपोर्ट पेश की है।रिपोर्ट में उन निजी कंपनियों को दिए खदानों का आवंटन रद्द करने की सिफारिश गई है जहां कोयले का उत्पादन नहीं हुआ।
समिति ने सवाल उठाया है कि कोयला खदानों का आवंटन नीलामी से नहीं हुआ। जिन प्रक्रियाओं से आवंटन किया गया उससे सरकार को कोई फायदा नहीं मिला।हालांकि, घाटे का अनुमान लगाना मुश्किल है, ये बात भी संसदीय समिति की रिपोर्ट में कही गई है।
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है जिन लोगों की भूमिका कोयला खदानों के आवंटन में रही है उनकी जांच होनी चाहिए।अब सवाल यह है कि क्या जांच के दायरे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आएंगे क्योंकि वो नवंबर 2006 से मई 2009 तक कोयला मंत्री का काम देख रहे थे।
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