दो शब्द श्रद्धांजलि के भी नहीं थे उनके लिये !
18 अप्रेल को अल्मोड़ा की पूर्व विधायिका रमा पंत का निधन 79 वर्ष की आयु में हो गया। उन्होंने सन 1974 से 77 तक विधायिका रहने के कारण कुमाऊँ विश्वविद्यालय की स्थापना व अल्मोड़ा पेयजल समस्या के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। अंग्रेजी, हिन्दी व उर्दू में उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। उनके पिता हरगोविन्द पंत प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। वे जीवनपर्यन्त अविवाहित रहीं। बाद में वे राजनीति के बजाय सामाजिक जीवन में अधिक सक्रिय रहीं। कई संस्थाओ से भी जुड़ी रहीं।
20 अप्रेल को नगरपालिका हाल में अल्मोड़ा की सर्वदलीय संघर्ष समिति द्वारा रमा पंत को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शोकसभा आयोजित की गई थी जिसकी घोषणा अखबारों में भी छपी। लेकिन शोकसभा में सिर्फ 8 लोग उपस्थित थे, जिनमें पी.सी. तिवारी, डॉ. जगदीश दुर्गापाल, पहरू के संपादक हयात रावत, उत्तराखंड लोक वाहिनी के पूरन चन्द्र तिवाड़ी, जंग बहादुर थापा व डॉ.दयाकृष्ण काण्डपाल थे। रमा पंत जीवन भर काग्रेस से जुड़ी रहीं, लेकिन वरिष्ठ कांग्रेस नेता शंकरदत्त पाण्डे के अलावा कोई भी कांग्रेसी शोकसभा में झाँकने नहीं आया, जबकि नगरपालिका हाल के सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की गाडि़याँ माइक लगाकर वोट मांगने के लिए लगातार दौड़ रही थीं।
सारा जीवन सामाजिक
कर्म करने का अब यह सिला मिलता है।
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