वन विभाग की शह पर होती है तस्करी
विनोद अरविन्द
पहाड़ों में अब लकड़ी की तस्करी आम बात हो गयी है। इसे अंजाम देने के नये-नये तरीके निकाले जाते रहे हैं। जंगलों से वन विभाग की मिलीभगत से पेड़ काटना आसान है पर उस कटे माल को मंडी तक ले कर जाना कठिन होता है। इसलिए अवैध लकड़ी को आसपास के गाँवों, शहरों व निर्माणाधीन रिर्सोटों तक सप्लाई किया जाता रहा है। जहाँ पर उसके बहुत ऊंचे दाम नहीं मिल पाते। ऊँचे दामों के लिए हल्द्वानी जैसी किसी मंडी तक पहुँचाना जरूरी होता है। 12 अप्रेल को घटी एक घटना से यह पता चलता है कि हल्द्वानी तक बेरोकटोक पहुँचाने के लिए एक नायाब तरीका खोज निकाला गया है। हालांकि रानीखेत से लेकर हल्द्वानी तक वन विभाग के कई चैक पोस्ट पड़ते हैं परन्तु ये चैक पोस्ट मात्र अपना हिस्सा वसूल कर इन अपराधों को अंजाम देने में हमेशा सहायक की भूमिका अपनाते रहे हैं। कहा यह भी जाता है कि अब पुलिस थानों की ही तर्ज पर वन विभाग के चैक पोस्ट की तैनाती बिकती है, जाहिर है कि ऐसे कामों में उच्च अघिकारियों की संलिप्तता रहती है।
12 अप्रैल को रात 11 बजे वन विभाग, कुमाऊँ के मुख्य वन संरक्षक परमजीत सिंह ने भवाली- अल्मोड़ा मोटर मार्ग पर लकड़ी से लदे दो ट्रकों को जाँच के लिए रोकना चाहा तो ट्रक के ड्राइवर ने उन्हें रौंद ही दिया था। बाद में जब उनके द्वारा भवाली राजि में कार्यरत आई.एफ.एस. प्रशिक्षु कोको रोजे की सहायता से ट्रकों को निगलाट के करीब रोक कर जाँच की गई तो मामला बहुत सामान्य सा लगा। ट्रकों के पास वन निगम का रवन्ना था और उस पर रानीखेत रेंज के रेंजर की मुहर व हस्ताक्षर थे। साथ ही लकड़ी में लगने वाला संपत्ति चिन्ह रवन्ने में लगा था लेकिन लकडि़यों में नहीं लगा था पर ट्रक ड्राइवरों के असमान्य व्यवहार के कारण परमजीत सिंह ने उन्हे अगली जाँच तक के लिए भवाली में रोक दिया। दूसरे दिन जब वन निगम के अधिकारियों को भी जाँच में सहयोग के लिए बुलाया गया तो उन्होंने प्रथम दृष्टि में ही यह लकड़ी व रवन्ना वन निगम का होने से इंकार कर दिया। रवन्ना वन निगम के रानीखेत में चल रहे कटान लौटों के रवन्ने की जाली प्रति था। तब पहली बार यह तथ्य सामने आया कि यह काम किसी बड़ी साजिश के तहत हो रहा है। यानी सारा काम फर्जी था और फर्जी रवन्ने से लकड़ी की तस्करी की जा रही थी। ताकि कहीं भी रास्ते में यदि कोई कागजात की जाँच करे तो वे ठीक लगें और माल हल्द्वानी में आसानी से ठिकाने लगाया जा सके। रानीखेत के लकड़ी के कारोबार से जुड़े दो व्यक्तियों- नंदन सिंह अधिकारी व नवीन सिंह के हैं। इसमें से नंदन सिंह वन निगम के लौटों में विभागीय रूप से मजदूर उपलब्ध करवाता है व नवीन सिंह की आरा मशीन व ट्रक हैं।
जंगलों की तस्करी अब इतनी आम हो गयी है कि ऐसी खबरें आम आदमी को विचलित नहीं करती हैं। वनोपज की तस्करी के विषय में विरोधाभास यह भी है कि वनों में निरीक्षण व वनोपज के वाहनों की जाँच आदि का अधिकार वन विभाग के ही पास है इसलिए अधिकांश मामलों में ऐसे अपराधों को ले-दे कर रफा-दफा कर दिये जाने के समाचार भी मिलते रहते हैं। इस घटना से कई प्रश्न व आशंकाएं पैदा होती हैं
1. इन जाली रवन्नों का क्रमांक 24 व 25 था जिससे पता चलता है कि इसी तरह के कम से कम 23 रवन्नों से 23 ट्रक चोरी किये जा चुके थे। इस प्रकार यह बहुत बड़े रैकेट का हिस्सा है।
2. यह भी संभव है कि यह प्रणाली लंबे समय से चल रही हो और इसका पता अभी चल पाया क्योंकि यह धरपकड़ परमजीत सिंह जैसे एक ईमानदार व जुझारू अधिकारी के द्वारा की गई। अन्यथा संभव है कि यह मामला भी रफा-दफा कर दिया जाता।
3. ऐेसी भी खबर है कि ट्रकों को पकड़ने के तुरंत बाद ही प्रदेश के बड़े पदों पर आसीन नेताओं के फोन वनाधिकारियों के पास आने लगे थे कि मामले को मामूली सा दिखाया जाय। संभवतः ऐसा ही किया भी गया।
4. प्रथमदृष्टि में ही यह एक बहुत बड़ा रैकेट नजर आता है पर इस अपराध पर मामूली सी धाराएं लगायी गई जिससे ट्रक ड्राइवरों की तुरंत जमानत हो गयी। ट्रक मालिकों व अन्य संदिग्धों की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।
5. वे कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनसे वन विभाग जिसका कार्य वन व वनोपज की रक्षा करना है पूरी तरह पंगु नजर आ रहा है।
6. इतने अधिक समाचार पत्र व समाचार चैनल होने के बाद भी यह खबर समुचित स्थान क्यों नहीं पा सकी।
7. यदि वन विभाग गंभीर होता तो इस तंत्र के सहारे पहाड़ों से लेकर मंडियों तक के तस्करी के तंत्र को तोड़ सकता था पर इसे एक मामूली घटना क्यों माना गया।
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