तीन मुख्यमंत्रियों वाले जनपद जिला अस्पताल के बुरे हाल
हाल में हुए स्थानान्तरणों से 18 डाक्टरों वाले जिला अस्पताल पौड़ी के बेहाल हो गये हैं। भाजपा सरकार के समय यहाँ पर 8 चिकित्सक थे, किन्तु अब चार ही रह गये हैं। इनमें से यदि दो दूसरे स्थानान्तरित चिकित्सक भी रिलीव हो जाते तो यहाँ पर यह संख्या दो ही रह गई होती। जाने वाले तो गये, लेकिन आने वाले डाक्टर अभी नहीं आये हैं। जो बचे हैं, वे भी यहाँ से ट्रांस्फर की जुगाड़़ में हैं। उधर महिला चिकित्सालय में भी 6 के सापेक्ष एक ही डाक्टर है। वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर श्रीनगर से काम चलाऊ रूप से दो दिनों के लिये दो चिकित्सकों को यहाँ आने के लिये कहा गया है। इनमें एक सर्जन है। चिकित्सालय में अब कोई नियमित सर्जन नहीं है, जो यहाँ से गये वे भी पिछले साल चले आन्दोलन के बाद कामचलाऊ रूप में भेजे गये थे। मगर एक साल से भी कम समय में उन्होंने अपना स्थानान्तरण सुविधायुक्त मैदानी स्थान पर करा लिया।
ताजा स्थानान्तरणों के बाद दो लाख की आबादी के लिये बना यह जिला चिकित्सालय सफेद हाथी ही रह गया है। यहाँ ज्यादातर बेड खाली पड़े रहते हैं। मामूली से इलाज के लिये मरीज को श्रीनगर बेस अस्पताल या देहरादून के लिये रेफर कर दिया जाता है। 108 इमरजेन्सी सेवा के तहत लाये जाने वाले मरीज भी श्रीनगर ही जा रहे हैं। तत्काल इलाज न होने से अनेक मरीज मौत के मुँह में समा चुके हैं। पौड़ी के सारे नेता लम्बी तान कर सोये हैं। स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी इसी जिले से हैं। दो माह पहले इस अस्पताल का निरीक्षण करते समय उन्होंने इसे राज्य का सबसे उपेक्षित अस्पताल बताया था और इसे सुधारने का आश्वासन दिया था।
राज्य बनने के बाद लगातार इस अस्पताल की दुर्गत होती गई। 2011 में जून से दिसम्बर तक स्थानीय नागरिक संघर्ष समिति द्वारा यहाँ डाक्टरों की तैनाती के लिये आन्दोलन चलाया गया। मुख्यमंत्री निशंक के आश्वासन के बाद आन्दोलन स्थगित कर दिया गया। इसके तुरन्त बाद यहाँ पाँच डॉक्टर हरिद्वार व देहरादून से भेजे गये, जिनमें से कुछ ने अपना स्थानान्तरण रुकवा दिया गया। एक महिला डाक्टर तो विजिटर के तौर पर यहाँ आती रही। इन हालातों में नागरिक संघर्ष समिति ने आन्दोलन की दिशा बदलते हुए केन्द्रीय विश्वविद्यालय के तहत बनने वाले मेडिकल कालेज को पौड़ी में बनवाने की माँग शुरू कर दी, ताकि लोगों को बेहतर इलाज मिल सके और नगर के हालात भी सुधरें। समिति ने 200 दिनों तक धरना दिया। कालेज के लिये समिति ने निशुल्क जमीन का प्रस्ताव भी कुलपति को दिया। मुख्यमंत्री खण्डूरी के यह कहने पर कि मेडिकल कालेज मानकों के आधार पर बनेगा, यह धरना दिसम्बर में स्थगित कर दिया गया। समिति ने सांसद सतपाल महाराज के समक्ष भी अपनी बात रखी, किन्तु वे भी मौन हैं।
इस जनपद से तीन, खण्डूरी, निशंक व अब विजय बहुगुणा के होने के बावजूद उन्होंने कभी यहाँ के लिये उस तरह पहल नहीं की, जैसे मायावती ने अपने गाँव में या मुलायम सिंह ने इटावा व सैफई के लिये की। जनरल खण्डूरी का गाँव खण्डहर हो चुका है और निशंक का गाँव वीरान। उल्लेखनीय है कि 1994 में राज्य आन्दोलन का सूत्रपात पौड़ी से ही हुआ। लेकिन यहाँ से एक के बाद एक नेता पलायन करते चले गये। अब वे आज यहाँ की बात तक नहीं करते। स्थानीय विधायक मन्द्रवाल को इस बात को उठाना चाहिये था, लेकिन वे विधायक निधि बाँटने के विधायक हैं। देहरादून से पौड़ी आना उन्हें गवारा नहीं है। नगर की जनता पछता रही है कि क्यों उन्होंने मन्द्रवाल को चुना होगा।
हेमवतीनन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति व कुलसचिव भी पौड़ी को लेकर दुराग्रह से ग्रस्त लगते हैं। वे यहाँ जमीन नहीं मिलने का बहाना बना रहे हैं। वहीं विधायक श्रीनगर के मेडिकल कालेज को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाने की बात कर रहे है। श्रीनगर में पहले से ही मेडिकल विश्वविद्यालय बनाने का प्रस्ताव है और चिकित्सा शिक्षा मन्त्री हरकसिंह रावत यह बात दोहरा चुके है। परन्तु वे भी उस पौड़ी में मेडिकल कालेज बनाने के प्रति मौन बने हैं, जहाँ से उनकी राजनीतिक जीवन का सूत्रपात हुआ था। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के संस्थान वहीं पर बनते रहे हैं जहाँ पर कि कालेज का कैम्पस हो। लेकिन पौड़ी में इसे खोलने को लेकर यहीं के नेता राजनीति कर रहे हैं, जिसे लेकर जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
http://www.nainitalsamachar.in/bad-condition-of-pauri-hospital/
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