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Saturday, May 18, 2013

कागजों में चल रहा है कृषि विज्ञान केन्द्र जाखधार

कागजों में चल रहा है कृषि विज्ञान केन्द्र जाखधार

कागजों में वर्मी कम्पोस्ट तो फाइलो में उग रही हैं विशिष्ट सब्जियाँ। ऐसा विचित्र कारनामा कर दिखाया है कृषि विज्ञान केन्द्र जाखधार के वैज्ञानिकों ने। लोगों को बेहतर काश्तकार बनाने का दावा करने वाले वैज्ञानिकों के कौशल की बानगी इसी बात में देखी जा सकती है कि पॉलीहाउस क्षतिग्रस्त पड़ा है, इसके अन्दर कोई सब्जी नहीं, लेकिन हर तरह की जरूरत उपलब्ध हो जाती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के सहयोग से 1 अप्रैल 2004 को इस केन्द्र की स्थापना की गयी थी। केन्द्र के उद्देश्यों में नयी कृषि तकनीकी को किसानों, राज्य स्तरीय कृषि पशुपालन विभाग एवं गैर सरकारी संस्थाओं के प्रसार कार्यकर्ताओं के बीच प्रदर्शित करना तथा फसलोत्पादन की बाधाओं के निराकरण के लिये किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के अनुसार नयी कृषि तकनीकी का परीक्षण तथा सुविधानुसार रूपान्तरण करना, बिभिन्न प्रकार की फसलों, सब्जियों एवं फलों के उन्नत बीजों का उत्पादन तथा विक्रय करना शामिल था। मगर वैज्ञानिको ंकी लापरवाही के चलते इन उद्देश्यों का दस फीसदी भी प्राप्त नहीं हो पा रहा है। केन्द्र की वैज्ञानिक सलाहकार समिति से उपलब्ध जानकारी के अनुसार इन वैज्ञानिकों ने सैकड़ो लोगों को काश्तकार बनाया है, जो आज सब्जी उत्पादन में अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। मगर हकीकत यह है कि कृषि विज्ञान केन्द्र एक भी व्यक्ति को वह ज्ञान नहीं दे पाया, जिसकी उसे दरकार थी। काश्तकार सैकड़ों बार बुला चुके हैं, लेकिन मोटी पगार लेने वाले ये वैज्ञानिक दूरस्थ गाँवो में जाने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं होते। काश्तकार यदि केन्द्र में इन्हें मिलने के लिये जाते हैं तो वे यहाँ भी कम ही उपस्थित रहते हैं। कागजों में इस केन्द्र ने कई गाँवों को कागजों में अचार, मुरब्बा, जैम, जैली, चटनी बनाने आदि का प्रशिक्षण दिया है, लेकिन हकीकत में ग्राम पंचायत नाला के अन्तर्गत ह्यूण गाँव में विलुप्तप्राय कुटकी के संरक्षण एवं उत्पादन तकनीकी तथा हरी मिर्च का अचार बनाने का दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें कुल 20 लोगों ने प्रतिभाग किया। मजेदार बात तो यह है कि इस प्रशिक्षण में 10 अनूसचित जाति के लोगों का भाग लेना दिखाया गया, जबकि इस गाँव में अनूसूचित जाति के लोग रहते ही नहीं। तत्कालीन ग्राम प्रधान नाला वीरेन्द्र असवाल ऐसा कोई प्रशिक्षण होने से इन्कार करते हैं।

कृषि विज्ञान केन्द्र में काश्तकारों को प्रशिक्षण देने के उददेश्य से दो वर्मी कम्पोस्ट पिट बनाये गये हैं, लेकिन दोनो पिटों में बरसात का पानी भरा है। यहाँ केंचुए तो दूर, उनके रहने के लिये गोबर भी नहीं है। डेमो दिखाने तक के लिये एक केंचुआ उपलब्ध नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि सम्बन्धित विषय का वैज्ञानिक न होने के कारण यह समस्या आ रही है। वर्ष 2009-10 में उन्नत नस्ल की गाय पालने से सम्बन्धित जानकारी देने के लिये केन्द्र ने डिमोस्ट्रेशन यूनिट का निर्माण किया, लेकिन चारों ओर उगी घास के कारण यह यूनिट भुतहा लगती है। गेट पर ताला लटका पड़ा है। वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देते हैं कि अभी यूनिट को विद्युत तथा पानी के कनेक्शन से नहीं जोड़ा गया है। वर्ष 2007-08 में निर्मित पॉलीहाऊस घास-फूस से अँटा है। अब तो यह बरसात के कारण जमींदोज भी हो चुका है।

जिलाधिकारी नीरज खैरवाल और जिला पंचायत अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट कहते तो हैं कि काश्तकारों को कृषि तथा पशुपालन सम्बन्धी जानकारियों के लिये कृषि विज्ञान केन्द्र से सहयोग लेना चाहिये तथा काश्तकारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, मगर केन्द्र की सेहत सुधरने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती।

http://www.nainitalsamachar.in/agriculture-institute-only-on-papers/

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