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Wednesday, April 2, 2014

अगले साल फिर मिलेंगे 10 साल के प्रतिरोध का जश्न मनाने- अशोक चौधरी

3rd Day , 9th Gorakhpur Film Festival, March 30, 2014
By Cinema of Resistance
10 photos
गोरखपुर फिल्मोत्सव : तीसरा दिन
अगले साल फिर मिलेंगे 10 साल के प्रतिरोध का जश्न मनाने- अशोक चौधरी

फिल्म समारोह के आखिरी दिन समापन करते हुए जसम के स्थानीय संयोजक अशोक चौधरी ने कहा कि हम अगले साल फिर मिलेंगे। 10 साल के प्रतिरोध का जश्न मनाने, नए सपनों और नए जोशो-खरोश के साथ। उन्होने कहा कि दलालों-हत्यारों के समाज में प्रतिरोध की अलख जगाने का काम गोरखपुर फिल्म उत्सव से शुरू हुआ और अब यह कारवां बढ़ रहा है। उन्होने कहा कि आसन्न फासीवादी खतरे के खिलाफ गोलबंद होने की जरूरत है क्योंकि कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ मिलकर सत्ता वर्ग बेशर्मी से हिंदुस्तान को बुरी तरह लूट-खसोट रहा है। व्यवस्था के कार्पोरेटीकरण के साथ ये ताकतें दिमाग पर हमला कर रही हैं। इनसे जूझने-लड़ने के लिए कला का इस्तेमाल एक हथियार की तरह करना होगा।

आज गोरखपुर फिल्मोत्सव ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ के तीसरे दिन समारोह की शुरुआत की फिल्मकार संजय मट्टू ने। मट्टू ने बच्चों के साथ गुफ्तगू-बतकही करते हुए उनके लिए कहानियाँ सुनाईं और इस तरह से उनके साथ बराबरी का व्यवहार करते हुए उनमें आत्मविश्वास जगाया। आमतौर पर बच्चों को खामोश कराने वाके समाज में ऐसे कार्यक्रम बच्चों के लिए बेहद जरूरी और प्रासंगिक है। संजय मट्टू की इस प्रस्तुति ने गोरखपुर फिल्मोत्सव के एक नए आयाम को विकसित किया।

समारोह की दूसरी फिल्म थी, चर्चित दस्तावेजी फिल्मकार सुरभि शर्मा की ‘बिदेशिया इन बम्बई ’। ‘जहाजी म्यूजिक’, ‘जरी-मरी’ जैसी फिल्मों की निर्देशक सुरभि शर्मा खुद भी दर्शकों से बातचीत करने के लिए मौजूद थीं। यह फिल्म बंबई में बसे आप्रवासी हिन्दी भाषी लोगों की कहानी संगीत की भाषा में कहती है। बिदेशिया की पुरानी कहानी को नए सिरे से नई दुनिया में यह फिल्म दिखाती है। दर्शकों से बात करते हुए सुरभि शर्मा ने कहा कि यह फिल्म बंबई में बसे हिंदीभाषियों की जिंदगी को चित्रित करने के लिए बनी है इसलिए भोजपुरी संगीत की शानदार परंपरा में जाने की बजाय वे मौजूदा दौर में गाये जाने वाले गीतों को ही फोकस कर रही थी। दर्शकों ने सुरभि शर्मा से भोजपुरी संगीत की परंपरा, जड़ों और विरासत के बारे में अर्थपूर्ण सवाल पूछ कर बहस को जीवंत बना दिया।

इसके बाद दिखाई जाने वाली फिल्म थी ‘काफल’। वैसे तो बतुल मुख्तियार की यह फिल्म बच्चों के लिए है, पर यह बड़ों के लिये भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हिन्दी के मुख्यधारा बालीवुडिया सिनेमा में आए पहाड़ अकसरहां फूहड़ सौंदर्य दिखाते हैं, इसके बरक्स यह फिल्म पहाड़ की जिंदगी की हकीकत उजागर करने में पूरी तरह सफल होती है।


इसके बाद दो छोटी-छोटी फिल्में दिखाई गईं। पहली थी मारुति कंपनी के मजदूरों का संघर्ष। इस फिल्म में मारुति कंपनी में मजदूरों के शोषण की व्यथा कथा के साथ उनके प्रतिरोधी तेवर और संग्राम देखने को मिला। दूसरी फिल्म में ओड़ीशा में चल रही कारपोरेट लूट को गहराई से उजागर किया गया।


दस्तावेजी सिनेमा में मील के पत्थर की हैसियत वाले आनंद पटवर्धन के फिल्म-जीवन पर आधारित फिल्म ‘हिंदुस्तान हमारा’ समारोह में दिखाई जाने वाली अगली फिल्म थी। आर वी रमनी निर्देशित यह फिल्म न सिर्फ एक फिल्मकार के बतौर आनंद पटवर्धन के संघर्षों को दिखाती है बल्कि इस बहाने भारतीय राजनीति और समाज की क्रूरताओं की शिनाख्त करती है। आर वी रमनी के साथ दर्शकों ने बातचीत भी करी और इसी बातचीत के क्रम में उन्होंने अपनी फिल्मों के हिंदी भाषी संस्करण बनाने का वायदा भी किया .

समारोह की आखिरी प्रस्तुति में नज़्मों और गजलों में गुफ्तगू करते हुए डॉ. अजीज अहमद ने उर्दू शायरी के विख्यात शायरों के कलामों के जरिये श्रोताओं से दिलचस्प बातचीत की। दर्शकों की सक्रिय भागीदारी से यह सत्र जीवंत और सरगर्म बन गया।


मनोज सिंह, सचिव, गोरखपुर फिल्म सोसाइटी द्वारा जारी
फोन : 09415282206 , मेल : manoj.singh2171@gmail.com




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