प्रकाश भाई! आर.एस.एस. के हावी होने का, तोगड़िया के हावी होने का, अशोक सिंघल के हावी होने का खतरा तो है ही. उस पर जिसके हवाई जहाज उड़ा रहे हो, वह फौकट के तो हैं नहीं. उनकी व्यवस्था करने वाला भी वसूल करेगा. मनमाने दामों पर प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी के लिए बाध्य करेगा. किसानों की जमीन पर कब्जा करेगा. गैस के दाम बढ़्वायेगा.
इससे भी घातक है, शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव. अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा. इतिहास का रूपान्तरण. मुरली मनोहर का जमाना देख चुके हैं. वैदिक गणित, वैदिक ज्योतिष, फलित ज्योतिष पर जोर.
एक बार भी नहीं कहा गया कि ठेके पर श्रमिकों की आपूर्ति नहीं होगी. बिचौलिया माल नहीं उड़ायेगा. लाला को और क्या चाहिये.
१९७७ में बड़े विश्वास के साथ जनता पार्टी का साथ दिया था. हुआ क्या? पन्तनगर में मजदूरी बढ़ाने की माँग कर रहे मजदूरों को पी.ए.सी. लगा कर गोली से उड़्वा दिया गया.
चाहे मोदी आये या कोई धोबी, तुम्हें और मुझे फर्क पड़्ने वाला नहीं है. चिन्ता तो शाम की रोटी के लिए अपने शरीर का रात दिन होम कर रहे, सरे बाजार नीलाम हो रहे आम भारतीय की है. जिसे पिछले पैंसठ साल से उल्लू बना कर वंशानुगतवाद या नव सामन्तवाद ने इस देश की राजनीति में गहरी जडें जमा ली हैं.
यदि मैं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अपने देश के सामान्य जनों के भविष्य के बारे में चिन्तित होता हूँ तो यह मेरे पिछले जीवन के अनुभवों का प्रतिफल है. मेरा सर्वस्व इस देश के आम आदमी के लिए है किसी दल के लिए नहीं. मेरी उम्मीद केजरीवाल के सपनों में है. वह नयी सोच भले ही अनुभवहीन और रोमानी हो, कल असफल भी हो जाय, पर कुछ तो है. सड़ी ऊमस में ताजगी की बयार तो है. युगान्तर का संकेत तो है. कोहरे को हटाने की कोशिश तो है. मेरा हाथ आम आदमी के धैं कस के साथ.
इससे भी घातक है, शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव. अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा. इतिहास का रूपान्तरण. मुरली मनोहर का जमाना देख चुके हैं. वैदिक गणित, वैदिक ज्योतिष, फलित ज्योतिष पर जोर.
एक बार भी नहीं कहा गया कि ठेके पर श्रमिकों की आपूर्ति नहीं होगी. बिचौलिया माल नहीं उड़ायेगा. लाला को और क्या चाहिये.
१९७७ में बड़े विश्वास के साथ जनता पार्टी का साथ दिया था. हुआ क्या? पन्तनगर में मजदूरी बढ़ाने की माँग कर रहे मजदूरों को पी.ए.सी. लगा कर गोली से उड़्वा दिया गया.
चाहे मोदी आये या कोई धोबी, तुम्हें और मुझे फर्क पड़्ने वाला नहीं है. चिन्ता तो शाम की रोटी के लिए अपने शरीर का रात दिन होम कर रहे, सरे बाजार नीलाम हो रहे आम भारतीय की है. जिसे पिछले पैंसठ साल से उल्लू बना कर वंशानुगतवाद या नव सामन्तवाद ने इस देश की राजनीति में गहरी जडें जमा ली हैं.
यदि मैं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अपने देश के सामान्य जनों के भविष्य के बारे में चिन्तित होता हूँ तो यह मेरे पिछले जीवन के अनुभवों का प्रतिफल है. मेरा सर्वस्व इस देश के आम आदमी के लिए है किसी दल के लिए नहीं. मेरी उम्मीद केजरीवाल के सपनों में है. वह नयी सोच भले ही अनुभवहीन और रोमानी हो, कल असफल भी हो जाय, पर कुछ तो है. सड़ी ऊमस में ताजगी की बयार तो है. युगान्तर का संकेत तो है. कोहरे को हटाने की कोशिश तो है. मेरा हाथ आम आदमी के धैं कस के साथ.
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