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Tuesday, November 4, 2014

कौन-सा धर्म ? कौन-सी- संस्कृति ? कौन-सी क़ानून व्यवस्था ? कौन-सा राज्य ? कौन-सी पार्टी ? कौन-सा नेता ?


कौन-सा धर्म ? कौन-सी- संस्कृति ? कौन-सी क़ानून व्यवस्था ? कौन-सा राज्य ? कौन-सी पार्टी ? कौन-सा नेता ? एक जवान सॉफ्टवेयर मजदूर दिल्ली में एक दिन काम पर नहीं गया । अगले दिन उसपर आरोप लगा कि उसके नहीं आने से कम्पनी को पिछले दिन 80, 000 रुपये का घाटा हुआ । लड़का गुस्से में आ गया : "जाओ ! मैं नहीं आता ! एकदिन के 80, 000 बनाते हो और देते हो महीने में सिर्फ 25,000 !" यह क़ानूनी लूट है -- जिससे नेता, बाबू , पुलिस, अदालत, जेल , फ़ौज, मैनेजमेंट और कंपनियों का खर्च चलता है । चूँकि मूल्य का निर्माण विश्व-स्तर पर होता है इसीलिए दुनिया में जो भयानक और सुस्पष्ट अत्याचार और युद्ध होते हैं और हुए हैं जैसे अश्विट्स हिरोशिमा, वियतनाम एजेंट- ऑरेंज और नापाम बम, चीन-अमरीका-भारत के रक्षा बजट, अंतरिक्ष कार्यक्रम, इराक़ में अबू ग़रीब , मणिपुर में मनोरमा बलात्कार काण्ड, कश्मीर, आदिवासियों को उजाड़ना, प्रकृति का मानव इतिहास में सबसे बड़ा संहार. … इन सारे पापों की जड़ में हमारा मजदूर होना है । यह सब हमलोगों के नाम पर और हम से बिना पूछे होता है -- और होता आया है। इसीलिए ग़ैर-क़ानूनी लूट यानि " भ्रष्टाचार" तो इस व्यवस्था का सबसे छोटा हिस्सा है। इतने कम समय में धरती के इतिहास में हमारे समाज को सबसे हिंसक समाज ( स्त्रियों और बच्चों पर अनवरत अत्याचार ) बनने से हमको कौन रोक पाया ? कौन-सा धर्म ? कौन-सी- संस्कृति ? कौन-सी टेक्नोलोजी ? कौन-सी क़ानून व्यवस्था ? कौन-सा राज्य ? कौन-सी पार्टी ? कौन-सा नेता ? 
ये सब मिलकर आज तक कुछ नहीं रोक पाये सिर्फ़ मुंह देखते रहे बल्कि उनकी सक्रिय या मौन सहमति ही रही तो अगले बीस-पचास सालों में क्या रोक पायेंगें ?

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