मेहनतकश जनता का कत्लेआम केसरिया कारपोरेट राष्ट्र के एजंडे पर सबसे टाप पर
श्रमसुधारों को संसद की मंजूरी
पलाश विश्वास
विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद लोकसभा में शुक्रवार को श्रम विधि संशोधन विधेयक 2014 के पारित होने के साथ ही इसे संसद की मंजूरी मिल गई।अब सिर्फ राष्ट्रपति का दस्तखत नये कानून को अमल में लाने के लिए बाकी है,जो कहना न होगा , महज औपचारिकता मात्र है।
मेहनतकश जनता का कत्लेआम केसरिया कारपोरेट राष्ट्र के एजंडे पर सबसे टाप पर,इसीलिए लोकसभा में श्रम कानूनों में सशोधन को हरी झंडी! संगठित और असंगठित मजदूरों में इन संशोधनों के बाद भारी समानता हो जायेगी,अच्छी बात यह है।आज मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स अधिनियम 1961, अंतर राज्यीय प्रवासी मजदूर (रोजगार और सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम 1976, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 आदि सहित सात नए कानून बन गए।
सरकार ने हाल ही में 'श्रमेव जयते' का नारा देकर श्रम कानूनों को सरल बनाने और इंस्पेक्टर राज को खत्म करने की बात कही थी।
लोकसभा ने तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय द्वारा सुझाए संशोधनों को खारिज करते हुए श्रम कानून (रिटर्न प्रस्तुति तथा कुछ प्रतिष्ठानों द्वारा रजिस्टरों को बनाए रखने से छूट) संशोधन विधेयक, 2011 को मंजूर कर लिया। राज्यसभा द्वारा मंगलवार को पारित किया गया विधेयक श्रम कानूनों (रिटर्न प्रस्तुति तथा कुछ प्रतिष्ठानों द्वारा रजिस्टरों को बनाए रखने से छूट) संशोधन तथा प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1988 में सुधार करता है।
जाहिर है कि मालिकान जब बहीखाता रखने को मजबूर न होंगे और किसी को कोई लेखा जोखा रिकार्ड दिखाने को बाध्य नहीं किये जा सकेंगे,लेबर कमीशन और ट्रेढ यूनियन के अधिकार भी खत्म है।
अयंकाली,नारायणराव लोखंडे और बाबासाहेब की विरासतें भी खत्म है और खत्म है शिकागो में खून से लिखी गयीं मजदूर दिवस की इबारतें।
पूरा देश अब आईटी उद्योग है और आउटसोर्सिंग है।
अमेरिका हो गये हैं हम।
न काम के घंटे तयहै और न पगार तय है।भविष्य में न वेतनमान होंगे न होंगे भत्ते।न होंगे पीएफ और न ग्रेच्युटि।श्रम को भी संघ परिवार ने विनियंत्रित कर दिया जैसे कृषि को कर दिया है और कारोबार को कर रहे हैं एफडीआई और ईटेलिंग मार्फत।
न किसान गोलबंद है,न मेहनतकश जनता।ने कारोबरी गोलबंद हैं और न कर्मचारी।
झंडे छोड़कर सभै मिलकर इस स्थाई बंदोबस्त के खिलाफ खड़े होंगे,इसके आसार भी नहीं है।
बिना लड़े लड़ीई की खुशफहमी में जीते हुए अपने किले हार रहे हैं हम।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति ने हाल ही में राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्तावित तीन श्रम संबंधी केंद्रीय कानूनों में बदलाव को मंजूरी दे दी जिससे अब राज्य में संशोधित श्रम कानून लागू होंगे। हालांकि इसे लेकर छिटपुट उत्साह देखने को मिल रहा है लेकिन यह बहुत प्रसन्न होने की बात नहीं है।
कारपोरेटखेमे की युक्ति है कि ऐसा लगता है मानो हम देश के किसी कोने में श्रम कानून में हुए मामूली से मामूली बदलाव पर भी खुशी मनाने को तैयार बैठे हैं जबकि जरूरत यह है कि इन कानूनों में देशव्यापी बदलाव हों।
संसद में श्रम कानूनों में संसोधन इसी कारपोरेट लाबिइंग की लहलहाती फसल है जिसक जहर अब हमारी जिंदगी है।
राजस्थान में जो बदलाव किए गए हैं उनमें सबसे अहम यह है कि अगर किसी कंपनी में 300 से कम कर्मचारी हैं तो उसे कर्मचारियों की छंटनी करने अथवा किसी उद्यम को बंद करने के लिए सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं होगी।
पहले इसकी सीमा 100 कर्मचारियों की थी।हालांकि दिलासा यह दिलाया जा रहा है कि अगर किसी कंपनी को यह सुविधा हासिल हो कि वह जरूरत के मुताबिक छंटनी कर सकती है तो उसके नए लोगों को भर्ती करने की संभावना भी बढ़ जाती है।ताजा नौकरियों,नियुक्तियों और भर्तियों का हाल क्या बयान करने की जरुरत है।
हम दस साल से अल अलग सेक्टरं में जाकर कर्मचारियों का प्रोजेक्शन के साथ कारपोरेटएजंडा समझाते रहे हैं और बजट का भी विश्लेषण करते रहे हैं और हम कुछ भी नहीं कर सकें।हिंदी ,बांग्ला और अंग्रेजी में निरंतर लिखते रहे चौबीसों घंटे और हम कुछ भी कर नहीं सकें।हमारे लोगों ने हमारी चीखों को सुनने की कोशिस ही नहीं की और नतीजा कितना भयावह है,इसका अंदाजा भी उन्हें नहीं है।
विडंबना यह है कि अस्मिताओं में खंड खंड भारतमाता के लिए आत्मरक्षा का कोी उपाय नहीं है जैसे फेसबुक पर चांदनी अपने को बेचने की पेशकश की,तो खलबली मची ङुई है और इस देश की राजनीति जो देश को ही बेच रही है,उससे हमें कोई फर्क पड़ता नहीं है।हम लोग राष्ट्रद्रोही करोड़पति अरबपति तबके के सत्ता वर्चस्व के खिलाफ खड़े होने का जोखिम उठाने के बजाये उनके फैंके टुड़े बीनने में गले हुए हैं।
विडंबना यह है कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने बिना आरक्षण,बिना कोटा,बिना मंत्रियों ,सांसदों,विधायकों, पढ़े लिखे बहुजनों की बेिंतहा फौज के प्रकृति,पर्यावरण और मनुष्यता के जो अधिकार सुनिश्चित किये,उसके वारिशान हम अपनी विरासत के बारे में सिरे से अनजान है और जयभीम,जयमूलनिवासी ,नमोबुद्धाय कहकर अपने को बाबा के सबसे बड़े भक्त साबित करने में लगे हैं ।
और हमें मालूम ही नहीं चल रहा है कि सत्तापक्ष की जनसंहारी कारपोरेट राजकाज और नीतियों की वजह से न सिर्फ कृषि जीवी जनता,पूरू कू पूरी महनताकश जमात के साथ साथ कारोबार में खपे हमारी सबबसे बड़ीआबादी का खातमा ही केशरिया कारपोरेट एजंडा है।
बाबासाहेब ने बाहैसियत ब्रिटिश सरकार के श्रम मंत्री और बाद में संविधान रचयिता बतौर मेहनतकश जनाते के लिए जो उत्पादन प्रणाली में जाति धर्म लिंग नस्ल भाषा क्षेत्र निर्विशेष जो श्रमकानून बना दिये,एक ओबीसी समुदाय के नाता को देश की बागडोर सौंपकर संघपरिवार उसे खत्म करते हुए विदेशी पूंजी का मनुस्मृति शासन लागू कर रहा है।वैदिकी सभ्याता का पुनरूत्तान हो रहा है नवनाजी जयनी कायाकल्प के साथ,जिसमें वर्ण श्रेष्ठ ब्राह्मणों की भी शामत आने वाली है कारपोरेट निरंकुश आवारा पूंजी के राज के लिए,करोड़पति अरबपति के नये वर्ण श्रेष्ट वर्ण के लिए,नये भूदेवताओं के लिए।
संघ परिवार की रमनीति के तहत अब बहुजन समाज एक दिवास्वप्न है क्योंकि बहुसंख्यओबीसी समुदाय के लोग ही संघ परिवारक के सबसे बड़े सिपाहसालार हैं केंद्र और राज्यों में और सारे क्षत्रप गरजते रहते हैं,बरसते कभी नहीं,कभी नहीं और किसी बंधुआ मजदूरसे बेहतर न उनकी हैसियत है और न औकात है।
शिक्षा,चिक्तिसा,आजीविका,जल जंगल हवा जमीन पर्यावरण नागरिकता से लेेकर खाद्य के अधिकार असंवैधानिक तौर तरीके से कारपरेटलाबिइंग के तहत खत्म किये जा रहे हैं एक के बाद एक।दुनियाभर में तेल की कीमतें कम हो रही हैं और भारत में सत्ता वर्ग ने तेल की कीमतें बाजार के हवाले कर दी हैं।
अब विदेशी पूंजी के हित में,विदेशी हित में निजीकरण,उदारीकरण,विनिवेश,प्रत्यक्ष निवेश,छंटनी,लाक आउट,बिक्री के थोक अवसरों के लिए तमाम श्रम कानून बदले जा रहे हैं और खबरों में कानून बदले जाने के वक्त कभी सकारात्मक पक्ष को हाईलाइट करने के अलावा उसके ब्यौरे या उसके असली एजंडे का खुलासा होता ही नहीं है।
हमारे लोगो को मालूम ही नहीं चला कि बाबासाहेब ने भारतीय महिलाओं और मेहनतकश जनता की सुरक्षा के लिए जो शर्म कानून बनाये उसे खत्म करने के लिए देश के सभी क्षेत्रों से चुने हुए करोड़पति अरबपति जनप्रतिनिधियों ने हरी झंडी देदी है।
मेहनकशों के जो झंडेवरदार हैं जुबानी जमाखर्च के अलावा सड़क पर उतरकर विरोध तक दर्ज कराने की औकात तक उनकी नहीं है और जो अंबेडकरी एटीएम से हैसियतों के हाथीदांत महल के वाशिंदे अस्मिता दुकानदार हैं,उन्हें तो संविधान दिवस मनाने की भी हिम्मत नहीं होती।
बाबासाहेब ने संविधान रचा है,बार बार इस जुगाली के साथ जयभीम,नमोबुद्धायऔर जयमूलनिवासी कहने वाले तबके के लोगों को मालूम है ही नहीं कि उस संविधान को कैसे खत्म किया जा रहा है और उसी संविधान को हमारी संसद और हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों के जरिये पूना समझौते की अवैध संतानें कैसे कैसे मनुस्मृति में बदल लगी हैं।
इसी वास्ते जनजागरण के लिए हमने देशभर में संविधान दिवस को लोकपर्व बनाने की अपील की थी।महाराष्ट्र में तो भाजपा सरकार ने ही संविधान दिवस का शासकीयआयोजन किया था,लेकिन भीमशक्ति को संविधान दिवस तक मनाने की फुरसत नहीं हुई तो बाबासाहेब की विरासत बचाने के लिए उनसे क्या अपेक्षा रखी जा सकती है।
रंग बिरंगे झंडो में बंटे हुए हैं इस देश के लोग और एक दूसरे के खिलाफ मोर्चाबंद है इस देश केलोग।सड़क से संसद तक इसीलिए कत्लेआम के खिलाफ सन्नाटा है और मौत के सौदागरों की महफिल में तवावफ को रोल निभा रहे हैं हम लोग।
अपनी फिजां को कयामत बना रहे हैं हमी लोग ही।
गौर तलब है कि लोकसभा में शुक्रवार को श्रम कानून संशोधित बिल, 2011 पास कर दिया गया। यह बिल 1988 के वास्तविक श्रम कानून में कुछ बदलावों के साथ पास किया गया। नए संशोधित बिल में छोटी यूनिट्स को रिटर्न फाइल करने, रजिस्टर मेंटेन करने जैसे काम में छूट दी गई है। साथ ही 7 नए एक्ट भी शामिल किए गए हैं।
असली मामला इन नये सात कानूनों का है जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजीकरण का खुल्ला केल फर्रऊकाबादी है और जो परदे के पीछे खेला जा रहा है।
सात नए एक्ट शामिल
इस संशोधित कानून में सात नए एक्ट शामिल किए गए हैं। इनमें मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट-1961, पेयमेंट ऑफ बोनस एक्ट-1965, इंटर स्टेट वर्कमेन एक्ट- 1979, और बिल्डिंग एंड अदर्स कंस्ट्रक्शन एक्ट 1996 को शामिल किया गया है।
यह हैं श्रम कानून में नए बदलाव
संशोधित बिल के मुताबिक 9 से 16 यानी छोटी यूनिट्स को रिटर्न देने या रजिस्टर व्यवस्थित नहीं करना होगा। छोटी यूनिट्स की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है। पहले लेबर लॉ के तहत छोटी यूनिट्स उन्हें माना जाता था जहां 19 लेबर्स होते थे, अब नई परिभाषा के मुताबिक 10 से 40 लेबर्स वालों को भी छोटी यूनिट के दायरे में माना जाएगा।
असली मजा तो यह है कि देशभक्त संघ परिवार अब भी स्वदेशी का अलख जगाकर विदेशी पूंजी और एफडीआई का कारपरेट राज चला रहा है और प्रचार यह दिखाने के लिए,हिंदुत्व की पैदल फौजों को काबू में रखने के लिए कि केंद्र की मोदी सरकार आर्थिक सुधारों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऐतराज को दरकिनार कर आगे बढ़ने की तैयारी में है। श्रम कानून में सुधार संबंधी बिल संसद से पास कराकर सरकार ने अपना पहला कदम बढ़ा भी दिया है।
खल यह है मनुस्मृति कारपोरेट राजकाज और राजकरण का कि आर्थिक सुधार के लगभग 6 मुद्दों पर अपनी आपत्ति जताने के बाद संघ ने निर्णय का अधिकार सरकार के विवेक पर छोड़ दिया है। मजा यह भी कि संघ के विभिन्न संगठनों ने बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने, श्रम कानून में सुधार, रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश, जीएम फसलों के ट्रायल जैसे मुद्दों पर अपनी आपत्ति जताई थी।
हालांकि सरकार ने आर्थिक सुधारों के मामले में तेजी से आगे बढ़ने का फैसला किया है। भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में शामिल एक नेता का कहना है कि सरकार को जनादेश मिला है इसलिए संघ ने भी कुछ मुद्दों पर आपत्ति जताने के बाद निर्णय का हक सरकार के विवेक पर छोड़ दिया है।
सविता बाबू को संगीत से फुरसत नहीं है और हमें हमीं से।
गृहस्थी रामभरोसे है।
हम लोग बाजार साथ साथ जा नहीं पाते।छुट्टी में भी कहीं निकल नहीं पाते।सामाजिक सारे संपर्क सविताबाबू के हवाले है।घर के ज्यादातर काम वही निपटाती है।
जाहिर है कि आम बंगालियों की तरह रोज सुबह लुंगी उठाकर हम बाजार में मछलियां और सब्जियां खरीदने नहीं जाते।लेकिन इस सोदपुर में पूरे तेईस साल बीता दिये।इतना वक्त तो हमने बसंतीपुर में भी नहीं बिताया लगातार।मेरठ में जरुर छह साल रहे हैं और धनबाद में चार साल।जाहिर है कि यहां के लोगों से आत्मीय संबंध भी बन गये हैं,जिससे भारी गड़बड़ी होने वाली हैक्योंकि रिटायर करने के बाद हम यहां रह नहीं सकेंगे और सिवात को यहां से निकाल पाना लगभग नामुमकिन है।अपने गांव की माटी में मिल जाना शायद इस जनम में संभव नहीं होगा।
सब्जी बाजार के तमाम दुकानदारों से लंबी आत्मीयता बन गयी है मौहल्ले वालों और बाजारों के छोटे दुकानदारों की तरहय़चारों तरफ बहुमंजिली इमारतों ने जनसंख्या का चरित्र बदल दिया है लेकिन अब भी घर से बाहर निकलता हूं किसी बहाने तो लोगों से बतियाते हुए वक्त कहां निकल जाता है ,होश सविता बाबू के फोन पर ही आता है।
आज अरसे बाद सब्जी बाजार जाना हुआ।हाट फिर भी नहीं जा सकें।जहां देहात के लोग अपने खेतों की पैदावर लेकर आते हैं सीमावर्ती गांवों से।खासकर सौ सौ मील की दूरी के दूर दराज के गांवों से आनेवाली मेहनतकश महिलाओं के जीने के संघर्ष और परिवार और समाज को बचाये रखने की उनकी संवेदनाओं से भींजता रहा हूं।
बहुतों के गांव घर बच्चों के बारे में जानता हूं जैसे मछलियां कााटने कूटने वाली महुलाएं अपनी दिहाड़ी से अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला रही हैं,उसे हर रोज सलाम करने का मन होता है।
मैं फिर भी लिखने के लिए कहीं जा नहीं पाता।लिखकर अगर उनकी कोई मदद कर पाया तो जीवन धन्य हो जाये।
मेरे लिखने का असली मकसद भी वही है अपनी मेहनतकश भारतमाताओंके हक हकूक के हक में खड़ा होने की कोशिश है यह,जो जबतक सांसे जारी हैं,जारी रहेगी यकीनन। लेकिन इसी वजह से मैं उन लोगों के बीच जा नहीं पाताय़जब जाता हूं तो उनके बेइंतहा प्यार में मुझे देशभर में बसंतीपुर का ही विस्तार मिलता है और इसी बसंतीपुर की जमीन में ,कीचड़में,गोबर में धंसकर मुक्तबाजारी नस्ली विध्वंसक सत्तावर्चस्व मोर्चाबंदी में हम आपके मन कीखिड़कियों और दिमाग के दरवाज्जे पर दस्तक देते रहने की बदतमीजियां करता रहता हूं।
लोग सवाल करते हैं कि इतना क्यों लिखते हो और लिखने से क्या होता है।मेरे लिए इससे बड़ा सवाल है कि मैं लिखने के अलावा कर ही क्या सकता हूं।इसी बेहद बुरी आदत के लिए मैं अपने स्वजनों से कभी ठीकठाक मिल नहीं पाता और कोई माफीनामा इसके लिए काफी नहीं है।
हमें इन्हीं लोगों की परवाह है।आज भी उन लोगों ने घेर लिया और सवालों से घिरे हम जवाब खोजते रहे लेकिन फिर बी यह खुलासा यकीनन नहीं कर सकें कि दरअसल माजरी क्या है।
संकट यही है कि आम जनता के सवालों का जवाब जाहिर है कि राजनीति और स्ता से नहीं मिलने वाला है।मीडिया को उन सवालों की परवाह नहीं है वह तो रोज अपनी सुविधा और कारपोरेटदिशा निर्देशन में सवाल औरमुद्दे गढञकर असली सवालों को हाशिये पर फेंकने का ही काम करता है।
जनता के सवालों के मुखातिब होकर उन सवालों का जवाब खोजने वाले लोगों की तलाश में भटक रहा हूं।
बहर हाल लोकसभा ने आज श्रम कानूनों को सरल बनाने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी। इस विधेयक राज्यसभा में इस सप्ताह की शुरुआत में ही पास किया गया था, जिसमें 40 तक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को रिटर्न दाखिल करने और दस्तावेजों का रखरखाव करने से छूट दी गई है। वर्तमान में यह सीमा 19 कर्मचारियों की है।
तृणमूल कांग्रेस की अगुआई में आम आदमी पार्टी, माकपा जैसे विपक्षी दलों ने विधेयक का विरोध किया और इसे मजदूर विरोध बताया। तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय द्वारा प्रस्तावित संशोधनों के खारिज होने के बाद सदन ने विधेयक को पास कर दिया।
श्रम राज्य मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने विपक्ष की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की और कहा कि सरकार मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन ज्यादा रोजगारों के सृजन के लिए सुधारों को भी आगे बढ़ाया जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी के (भाजपा) के हुकुम सिंह ने कहा कि नए कानून से 'इंस्पेक्टर राजÓ को खत्म करने में मदद मिलेगी, जिसके चलते देश भर में बड़ी संख्या में छोटे स्तर की वर्कशॉप बंद हो गई हैं।
लोकसभा में दवा, रक्षा समेत कई मुद्दे छाए रहे केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी देते हुए कहा कि वह दवाओं की कीमतों को कम करने के लिए प्रयासरत है। इसके साथ ही तमिलनाडु सरकार द्वारा मरीजों को रियायती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराने के फार्मूले जैसे ही कोई योजना लाए जाने पर विचार कर रही है।
Republican Proposal For Labor Law Reform 'A Disgrace ...
- www.huffingtonpost.com/2014/09/.../labor-law-reform_n_5838922.htm...
- Republican Proposal For Labor Law Reform 'A Disgrace,' Says Labor Leader. Posted: 09/17/2014 6:28 pm EDT Updated: 09/18/2014 11:59 am EDT ...
Govt introduces two labour reform Bills in Lok Sabha ... - Mint
- www.livemint.com/.../Govt-introduces-two-labour-reform-Bills-in-Lok-S...
- Aug 7, 2014 - ... two labour reforms Bills—the Factories (Amendment) Bill 2014 and the ... The draft laws were introduced by labour minister Narendra Singh ...
Rajasthan Assembly passes labour law changes | Business ...
- www.business-standard.com/.../rajasthan-assembly-passes-four-labour-re...
- Aug 1, 2014 - Saturday, November 29, 2014 | 07:04 AM IST ... The Contract Labour Act is now sought to be applicable only to companies that employ ... public works minister, said Rajasthan would now be known as a “labour reform state”.
RS Passes Labour Reforms Bill Amid Left Protest - The New ...
- www.newindianexpress.com/.../2014/...Labour-Reforms-Bill.../article254...
- 3 days ago - Last Updated: 26th November 2014 06:00 AM ... The Labour LawAmendment Bill 2011 aims to benefit establishments employing up to 40 ...
Budget 2014: Factories Act revamp may signal labour law ...
- timesofindia.indiatimes.com › Budget 2014
- Jul 8, 2014 - Budget 2014: Factories Act revamp may signal labour law reforms ... NEW DELHI: Just days before the 2014-15 Union Budget, the government ...
Key labour reforms get Central push | The Indian Express
- indianexpress.com/article/india/.../key-labour-reforms-get-central-push/
- The 54 amendments cleared in the Factories Act include increasing the limit of overtime for ... Written by Surabhi | New Delhi | Posted: July 31, 2014 1:58 am.
Labor Law Reform | UAW
- www.uaw.org/page/labor-law-reform
- 2014 UAW Community Action Program (CAP) · Latest UAW political news · Right ... The National Labor Relations Act (NLRA) was enacted in 1935 to protect the right ... Choice Act, has repeatedly said he will sign a labor law reform bill when it ...
Abbott's Political Agenda in Industrial Relations & Labor ...
- www.woroni.com.au › Australian Politics
- Sep 24, 2014 - On Wednesday, the 10th of August, the ANU College of Law hosted an ... behind the Abbott Government's industrial relations and labor law reforms. ... The Fair Work Amendment Bill 2014 will change the conditions for a ...
PM Modi Brings Labour Reforms To Ease Doing Business In ...
- trak.in › Business
- Oct 18, 2014 - In a view to make the already complicated labor laws work in harmony for a business setup, PM Modi announced some transformational labor reforms. ... From Oct 17th,2014, one labor compliance of 16 labor laws has kicked off. ... out that The Factories Act, 1948, Apprentices Act, 1961 and Labor Laws Act, ...
44 श्रम कानूनों का पुनर्गठन 5 श्रम कानूनों में किया जायेगा
- भारत सरकार श्रम कानूनों के पुनर्गठन पर विचार कर रही है तथा कुल 44 श्रम कानूनों को केवल 5 समन्वित कानूनों में समाहित करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार सभी 44 श्रम कानूनों पर पुनर्विचार करेगी तथा केवल 5 श्रेणी में इन्हें पुनगर्ठित कर सकती है। इस प्रकार सरकार शीघ्र ही श्रम सुधारों को त्वरित स्तर पर लागू करने का प्रयास कर रही है। सरकार ने 20002 में दी गई एक श्रम सुधार रिपोर्ट पर सफाई के साथ कार्य शुरू कर दिया है। सरकार का यह प्रयास है कि सभी प्रकार के श्रम कानूनों में श्रमिक की पहचान व उसकी परिभाषा समान है। इससे श्रमिकों को किसी प्रकार के विवाद होने पर उसको हल करवाने में भी सुविधा होगी। श्रम कानूनों में सुधार को लेकर मंत्रिमंडल ने एक समूह का गठन किया है। इसकी पहली बैठक शीघ्र ही आयोजित होने की सम्भावना है।
- दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग के सुझावों के आधार पर श्रम कानून के पांच कोड पर एक प्रारूप का निर्माण किया गया है और इसकी समीक्षा अब अन्त:मंत्रिमंडलीय समूह के द्वारा किये जाने का प्रस्ताव है ओर इसके बाद इस सम्बन्ध में अन्तिम नोट तैयार किया जायेगा। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इससे वर्तमान कानूनों में व्याप्त विसंगतियां समाप्त हो जाने की सम्भावना है क्योंकि सरकार एक समान परिभाषा तैयार कर रही है, यह प्रयास श्रमिकों के हितों को केन्द्र में रखकर ही किया जा रहा है तथा समान कोड को तैयार किये जाने के साथ 44 भिन्न-भिन्न कानूनों में व्याप्त अन्तर को समाप्त किया जा सकेगा।
श्रम सुधारों का गुजरात माडल
गुजरात |
श्रम सुधार
सरकार दृढ़ता से अनुभव करती है कि संकल्पना प्राप्ति के लिए विभिन्न स्तरों पर कुशल श्रमशक्ति की उपलब्धता और एक अनुकूल वैधानिक ढांचा दोनों के संदर्भ में एक प्रेरक श्रम वातावरण का होना अत्यंत आवश्यक है।
गुजरात सरकार इस तथ्य को भी स्वीकार करती है कि नियम, विनियम और प्रक्रियाए उपयुक्त रूप से सही दिशा में प्रयास करने के लिए दिशानिर्देशों के रूप में हों और ये किसी भी रूप में औद्योगिक विकास में बाधा डालने वाले औज़ार नहीं होने चाहिए। इसलिए, विद्यमान नियमों की समीक्षा और सरलीकरण की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। निरीक्षण प्रणाली में अधिक पारदर्शिता की दृष्टि से और उद्यमियों को व्यापार संबंधी प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाने हेतु स्व-प्रमाणन प्रणाली का समर्थन करते हुए एक साहसी कदम उठाया गया है। बेरोज़गारी के मुद्दे पर बात किए बिना श्रम सुधार प्रक्रिया अधूरी रहेगी। इसलिए सरकार निजी रोज़गार एक्सचेंज को प्रेरित करने की योजना भी बना रही है।
नियमों और प्रक्रियाओं का सरलीकरण
सरकार श्रम कानूनों में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है। जहां तक बीआरयू अधिनियम, बीआईआर अधिनियम, बम्बई दुकानें और स्थापनाएं अधिनियम आदि जैसे राज्य श्रम कानूनों का संबंध है, परिवर्तनशील वातावरण में इन अधिनियमों के औचित्य का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। श्रम विभाग स्वयं भी पहले ही अनेक प्रावधानों में संशोधन करने पर विचार कर रहा है।
विकास दौरे
श्रम विभाग पहले ही अपने नियंत्रणाधीन निरीक्षकों यथा श्रम अधिकारी, कारखाना निरीक्षक, बॉयलर निरीक्षक, रोज़गार अधिकारी, प्रशिक्षु सलाहकार आदि द्वारा किए जाने वाले सभी निरीक्षणों को तर्कसंगत बनाने का कार्य प्रारंभ कर चुका है। श्रम और रोज़गार विभाग ने अपने सकल संसाधनों के भीतर सहकार्य के मार्ग खोजने के लिए अपने नियंत्रणाधीन सभी प्रभागों की गतिविधियों पर सम्मेलनों की एक श्रृंखला भी आयोजित की है। अपने उत्तरदायित्व के दायरे में विभिन्न कानूनों के प्रवर्तन के लिए प्रत्येक प्रभाग द्वारा अलग-अलग कार्रवाई करने के बजाय, विभाग का संपूर्ण प्रतिनिधित्व करने के लिए सभी नियामक और गैर-नियामक प्रभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों की संयुक्त टीमें बनाने का निर्णय किया गया है। इन टीमों के दौरों को विकास दौरे कहा जाता है जिसमें सभी प्रभागों के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम विभिन्न इकाइयों का दौरा करेगी। इसमें भाग लेने वाले अधिकारियों में स्थानीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के प्रधानाचार्य, रोज़गार अधिकारी, प्रशिक्षु सलाहकार, कारखाना निरीक्षक, श्रम अधिकारी और बॉयलर निरीक्षक होंगे। इससे औद्योगिक इकाइयों को इनमें से प्रत्येक से अलग-अलग निपटने में होने वाली असुविधा में कमी आएगी। पारदर्शिता के लिए, वर्ष में केवल एक बार होने वाले दौरे की योजना का निर्णय स्थानीय वाणिज्य और उद्योग चैंबर के परामर्श से श्रम आयुक्तालय और रोज़गार एवं प्रशिक्षण निदेशालय के क्षेत्रीय प्रमुखों द्वारा किया जाएगा। दौरे का उद्देश्य आक्रामक निरीक्षण नहीं है अपितु इस सूचना का आदान-प्रदान करना कि स्थानीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के पास उद्योग को प्रस्तुत करने के लिए क्या है, रोज़गार अभ्यर्थियों के उपलब्ध ऑनलाइन डाटाबेस तक नि:शुल्क पहुंच को लोकप्रिय बनाना, आवंटित प्रशिक्षु सीटों के उपयोग के लिए इकाइयों को प्रेरित करना, एवीटीसी और एचटीटीसी में इकाइयों के श्रमिकों को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान करना, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के प्रशिक्षार्थियों के लिए अंत:संयंत्र प्रशिक्षण की व्यवस्था करना, श्रम कानूनों के अनुपालन संबंधी दिशानिर्देश आदि प्रदान करना है। यदि श्रम कानूनों का उल्लंघन अनजाने में हुआ है तो विभाग उनसे अनुपालन भी कराएगा, किंतु जानबूझकर उल्लंघन के मामले में कड़ी कार्रवाई की अनुशंसा की जाएगी। यद्यपि औद्योगिक सुरक्षा संबंधी कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाएगा क्योंकि किन्हीं संभावित औद्योगिक दुर्घटनाओं के शमन के लिए कोई छूट नहीं दी जा सकती है। इस प्रकार श्रम और रोज़गार विभाग के अधिकारी मित्रों और पथप्रदर्शकों के रूप में इकाइयों का दौरा करेंगे।
वार्षिक समेकित रिटर्न
उद्योगों से बार-बार प्राप्त होने वाली शिकायतों में से एक ढेर सारे कानूनी प्रावधानों और रिटर्न भरने की अनुपालना की आवश्यकता है। श्रम विभाग ने एक वार्षिक समेकित रिटर्न भरना निर्धारित किया है। यह पिछले एक वर्ष से लागू है। सरकार निरीक्षण नीति को तर्कसंगत बनाने पर सहमत है। श्रम कानूनों के कार्यान्वयन की लागत वहन करने के लिए बहुत बड़ी इकाइयों के पास आवश्यक संसाधन हैं। इसलिए बड़ी इकाइयों का वर्ष में केवल एक बार दौरा किया जा सकता है और उनकी वार्षिक समेकित रिटर्न ही पर्याप्त होनी चाहिए। जहां तक लघु और मध्यम उद्यमों का संबंध है, भारत सरकार ने स्व-प्रमाणन की एक धारा के साथ पहले ही एक विधेयक परिचालित कर दिया है। लघु और मध्यम उद्यमों के संबंध में भी सरकार वर्ष में केवल एक बार निरीक्षण की योजना बना रही है।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों/औद्योगिक पार्कों में श्रम कानूनों में छूट
गुजरात सरकार ने हाल ही में विशेष आर्थिक क्षेत्रों और औद्योगिक पार्कों की स्थापना के लिए एक अध्यादेश जारी किया है। इस अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार, औद्योगिक विवाद अधिनियम के अनुच्छेदों 5(क), 5(ख), 5(ग) और 5(घ) के अंतर्गत श्रम कानूनों के अनुपालन में कुछ छूट दी गई हैं। औद्योगिक इकाइयों और पार्कों जो अपने श्रमिकों के लिए आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करेंगे और इन अनुच्छेदों के अन्य प्रावधानों का ध्यान भी रखेंगे, को स्व-प्रमाणन के आधार पर श्रम विभाग की आवश्यकताओं के अनुसार रिटर्न दाखिल करने से छूट दी जाएगी।
प्रस्तावित अन्य नवीन कदम
सरकार कुछ नवीन कदम उठाने पर भी विचार कर रही है, जैसे:
स्व-प्रमाणन: इंस्पेक्टर राज की समाप्ति की दिशा में एक कदम
विभिन्न कानूनों और संवैधानिकताओं के अंतर्गत वैयक्तिक औद्योगिक इकाइयों द्वारा वांछित सभी तकनीकी मानदंडों के लिए स्व-प्रमाणन की अवधारणा को प्रारंभ किया जाएगा। कानून के विभिन्न प्रावधानों के लिए विभिन्न प्रकार के निरीक्षणों से उद्योगपतियों को बचाने के लिए, एक एकल व्यवसाय अधिनियम बनाने पर विचार किया जाएगा। इस एकल व्यवसाय अधिनियम में उद्योगों से संबंधित लगभग सभी आधारभूत कानूनों के सार को एक छत्र के अंतर्गत परिवृत करने का विचार है। इस उद्देश्य के लिए, कानून की आवश्यकतानुसार विशेष इकाइयों के निरीक्षण और आवश्यक प्रमाणपत्र जारी करने का कार्य करने हेतु संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञों सहित निजी एजेंसियों के एक पूल को मान्यता प्रदान की जाएगी। यद्यपि, विभिन्न विभागों के सरकारी निरीक्षकों की एक संयुक्त टीम वर्ष में केवल एक बार ही इकाई का निरीक्षण करेगी। गड़बड़ी करने वालों के साथ-साथ झूठे प्रमाणपत्र जारी करने वाली मान्यताप्राप्त एजेंसियों को लाइसेंस निरस्त करने सहित कड़े दंड दिए जाएंगे। स्व-प्रमाणन की प्रणाली सरकार और उद्योग दोनों के लिए सुखद स्थिति होगी क्योंकि यह सरकार के लिए प्रणाली में पारदर्शिता को सुनिश्चित करेगी और उद्योग के लिए यह उपयुक्त समयांतरालों पर पेशेवर निरीक्षण संव्यवहारों का मामला होगा। इस अवधारणा को समयबद्ध रूप में कार्यान्वित करने के लिए माननीय श्रम मंत्री की अध्यक्षता में एक अंतर-विभागीय समिति गठित की जाएगी।
उपरोक्त का संक्षिप्तिकरण करते हुए, उद्योगों का आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए निम्नलिखित नई पहलें सरकार के विचाराधीन हैं:
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जयंतीलाल भंडारी ने खूब लिखा हैः
बीते 17 नवम्बर को प्रकाशित बैंक ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर विदेशी निवेशकों और विदेशी संस्थागत निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.
स्थिति यह है कि शेयरों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. गौरतलब है कि इन दिनों प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से संबंधित कई वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों में यह तथ्य उभरकर आ रहा है कि भारत में अब एफडीआई बढ़ेगा.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऑस्ट्रेलिया में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन तथा म्यांमार में आयोजित 12वें भारत-आसियान सम्मेलन में भारत के आर्थिक, औद्योगिक और कारोबारी माहौल में सुधार लाने के लिए उठाए गए रणनीतिक कदमों का जो प्रभावी परिदृश्य प्रस्तुत किया गया, उससे एफडीआई की नई संभावनाएं दिखाई दे रही हैं. ऐसा ही प्रभावी संदेश प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के समय 'मेक इन इंडिया' के नारे के रूप में दुनिया भर में पहुंचा है. पिछले तीन महीनों में विदेश यात्राओं के दौरान मोदी ने विदेशी निवेशकों को भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में एफडीआई लाने का जो न्योता दिया है, उसके सार्थक परिणाम आने की संभावनाएं दिख रही हैं.
वस्तुत: इस समय देश को बुनियादी ढांचा निर्माण और उच्च विकास दर प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश की भारी दरकार भी है. लेकिन पिछले कुछ वर्षो से विदेशी निवेशक भारत से लगातार दूरी बनाए हुए हैं. देश में एफडीआई का प्रवाह 2013-14 के दौरान 24.3 अरब डॉलर रहा है. भारत में एफडीआई कितना निराशाजनक है, इसका अनुमान इससे लगा सकते हैं कि वर्ष 2008-09 की वैश्विक मंदी के दौरान भी भारत में 40.4 अरब डॉलर का एफडीआई आया था. विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-14 में जहां चीन को कुल वैश्विक एफडीआई प्रवाह का करीब आठ फीसद प्राप्त हुआ है, वहीं भारत के पास इसका केवल 0.8 फीसद ही आ पाया है.
विडंबना ही है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले कई महत्वपूर्ण आधार भारत के पास हैं, पर यहां एफडीआई बहुत कम है. भारत के पास विशाल शहरी और ग्रामीण बाजार, दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ मध्यवर्ग, अंग्रेजी बोलने वाली नई पीढ़ी के साथ-साथ विदेशी निवेश पर अधिक रिटर्न जैसे सकारात्मक पहलू मौजूद हैं. इतना ही नहीं, क्रयशक्ति क्षमता यानी परचेजिंग पॉवर पैरिटी (पीपीपी) के आधार पर अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. भारत के पास आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं.
इन अनुकूलताओं के बावजूद एफडीआई का प्रवाह न बढ़ पाने की तीन प्रमुख वजहें रही हैं. एक, भारत में प्रभावी नेतृत्व और मजबूत केंद्र सरकार का अभाव रहा है. देश का व्यावसायिक वातावरण उन विदेशी निवेशकों के लिए जटिल रहा है जो नीतिगत स्थिरता चाहते हैं. दो, भारत में कारोबार में आसानी की कमी रही है. मसलन सरकारी नीति का स्पष्ट न होना, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मसले, पर्यावरण मंजूरी मिलने में देरी. ईधन की आपूर्ति के लिए लिंकेज और परियोजनाओं के तीव्र क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियां. विश्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट 'डूइंग बिजनेस 2015' के अनुसार कारोबार करने में आसानी के लिहाज से 189 देशों की सूची में भारत 142वें पायदान पर है. तीन, भारत की टैक्स व्यवस्था जटिल बनी हुई है. भारत दुनिया के ऊंची टैक्स दरों वाले देशों में शामिल हैं.
लेकिन अब नई सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों और इंफ्रास्ट्रक्चर तथा अन्य क्षेत्रों में उठाए जा रहे कदम विदेशी निवेश के लिए उत्साह पैदा कर रहे हैं. भारत को बेहतर और आसान कारोबारी देश बनाने के लिए मोदी सरकार ने बीमा तथा रक्षा क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी है. रेलवे के बुनियादी ढांचे में 100 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी गई है. इनके अलावा सड़क, जहाजरानी, नागरिक उड्डयन समेत 10 क्षेत्रों की 20 परियोजनाओं में 100 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी गई है. पुराने और बेकार कानूनों को समाप्त करने के लिए सरकार आगे बढ़ी है. सरकार ने 287 ऐसे पुराने कानूनों की पहचान की है, जिन्हें संसद के शीतकालीन सत्र में रद्द कर दिया जाएगा. प्रवासी भारतीयों ने भी भारत में बड़ी मात्रा में एफडीआई के संकेत दिए हैं. इन सब कारणों से भारत में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.
देश में एफडीआई बढ़ने के इन सकारात्मक पहलुओं के अलावा एक और वैश्विक पहलू चीन के आर्थिक मॉडल में आ रहे बदलाव के कारण भी दिखाई दे रहा है. दुनिया का कारखाना कहा जाने वाला चीन अब सेवा क्षेत्र की ओर रुख करना चाहता है जहां बहुत अधिक विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं होती. इतना ही नहीं, चीन की आबादी बहुत तेजी से उम्रदराज हो रही है और कामकाजी युवा आबादी तेजी से कम हो रही है. ऐसे में अगले एक दशक में चीन में विदेशी पूंजी निवेश की दर में कमी आने की उम्मीद की जा रही है. इसकी बदौलत आगामी वर्षो में दुनिया भर में बहुत बड़ी मात्रा में सस्ती विदेशी पू़ंजी उपलब्ध होगी. भारत कम ब्याज दर वाले इस दौर का बड़ा लाभ ले सकता है, विशेष रूप से भारत के बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षेत्र को नए वैश्विक निवेश का बड़ा लाभ मिल सकता है.
निसंदेह विदेशी निवेशकों के कदम तेजी से भारत की ओर मोड़ने तथा देश की विभिन्न परियोजनाओं में एफडीआई की आवक को ऊंचाई देने के लिए हमें देश में आर्थिक, औद्योगिक और कारोबारी सुधारों को अमली जामा पहनाना होगा. औद्योगिक विकास और निवेश बढ़ाने के अभियान को सफल बनाने के लिए उद्योगों की अड़चनें दूर करना सबसे पहली जरूरत है. प्रधानमंत्री ने उद्योगों को इंस्पेक्टर राज से बचाने के लिए जो घोषणाएं की हैं, वे शीघ्र कार्यान्वित होनी चाहिए. वस्तुत: अब समय आ गया है कि सरकार औद्योगिक परिदृश्य सुधारे और उद्योगों में जान फूंकने के लिए नीतिगत फैसले ले.
उदाहरण के तौर पर कोयले के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं कि क्या निर्णय होने जा रहा है? कोल इंडिया का कहना है कि वह एक भी नए ब्लॉक का काम हाथ में नहीं ले सकती क्योंकि इसके लिए उसके पास मानव संसाधन की भारी कमी है. इसी तरह गैस कीमतों का फैसला भी बार-बार टलता जा रहा है. ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय नहीं होने से बिजली से लेकर उर्वरक जैसे कई क्षेत्रों के उद्योगों का भविष्य अधर में है. जमीन अधिग्रहण और श्रम जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सिंगल विंडो मंजूरी के साथ बेहतर अवसंरचना और आसान नियमों की जरूरत है. उद्योगों के लिए ब्याज दरों में कटौती से औद्योगिक उत्पादन सुधारने में मदद मिल सकती है.
कारोबार और उद्योगों के चमकीले विकास का सपना साकार करने के लिए सरकार को ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जिसके तहत गैर जरूरी कानून शीघ्रतापूर्वक हटाए जाएं. ऐसा होने पर देश की ढांचागत परियोजनाओं के लिए एफडीआई हेतु विदेशी निवेशक आगे बढ़ेंगे और उससे रोजगार अवसर बढ़ने के साथ देश के आर्थिक विकास को गति भी मिलेगी.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
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