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Friday, April 10, 2015

मुड़ मुड़के न देख,मुड़ मुड़के अब इस सोने की चिड़िया का वर्तमान और भविष्य शेयर बाजार

मुड़ मुड़के न देख,मुड़ मुड़के

अब इस सोने की चिड़िया का वर्तमान और भविष्य शेयर बाजार

भारतीय लोक गणराज्य और इसकी अर्थव्यवस्था विदेशी रेटिंग एजंसियों के हवाले,वही नीतियां बना रही हैं,बिगाड़ रही हैं-मोदी उनकी अश्वशक्ति है

बेईमानों के मुकाबले गिने चुने ईमानदार और देश भक्त लोग ही कयामत का मंजर बदल सकते हैं बशर्ते कि वे तमाम लोग चट्टानी मजबूती से जनपक्षधर माध्यमों को मुख्यधारा बनाने की मुश्किल कवायद पूरी करके कारपोरेट जनविरोधी जनविध्वंसी तत्वों को हाशिये पर फेंकने की चुनौती मंजूर करें।हमें फासीवाद पर बहस नहीं करनी है।फासीवाद का रेशां रेशां उघाड़कर उसे उखाड़ फेंकना है।

जो घर फूंके आपणा,चले हमारे साथ।


पलाश विश्वास




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मुड़-मुड़के ना देख मुड़-मुड़के

मुड़-मुड़के ना देख मुड़-मुड़के

ज़िंदगानी के सफ़र में तू अकेला ही नहीं हैं

हम भी तेरे हमसफ़र हैं

मुड़-मुड़के ना देख मुड़-मुड़के

आए-गए मंज़िलों के निशाँ

लहराके झूमा, झुका आसमाँ

लेकिन रुकेगा न ये कारवाँ

मुड़-मुड़के ना देख मुड़-मुड़के …

नैनों से नैना जो मिलाके देखे

मौसम के साथ मुस्कुराके देखे

दुनिया उसीकी है जो आगे देखे

मुड़-मुड़के ना देख मुड़-मुड़के

दुनिया के साथ जो बदलता जाए

जो इसके साँचे में ही ढलता जाए

दुनिया उसीकी है जो चलता जाए

मुड़-मुड़के ना देख मुड़-मुड़के …

Shree 420 - Mud Mud Ke Na Dekh - Manna Dey - Asha ...

Video for श्री 420 मुड़ मुड़के न देख,मुड़ मुड़के▶ 5:36

www.youtube.com/watch?v=R3D3YNmg-Ak

Jul 19, 2010 - Uploaded by Shemaroo

Movie : Shri 420 Music Director: Shankar-Jaikishan Singers: Asha Bhosle, Manna Dey Director: Raj Kapoor …

श्री 420 (1955) बॉलीवुड फिल्म राज कपूर द्वारा निर्मित, राज कपूर और नरगिस अभिनीत व राज कपूर के निर्देशन में बनी है। संख्या 420 धोखाधड़ी के अपराध के लिए सजा का प्रावधान है जो भारतीय दंड संहिता की धारा 420 को संदर्भित करता है, इसलिए, "श्री 420" एक बेईमान के लिए एक अपमानजनक शब्द है। फिल्म में राज व उसके सफलता के सपनों के साथ बंबई में आने पर बनी है, जो एक गरीब लेकिन शिक्षित अनाथ पर केंद्रित है। कपूर का किरदार भारी चार्ली चैपलिन की 'थोड़ा आवारा " से ज्यादा प्रभावित है, अपनी फिल्म आवारा (1951) में कपूर के किरदार की तरह ही हैं। यह ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा रचित तथा संगीत शंकर जयकिशन की टीम द्वारा रचा गया था। गीत शैलेन्द्र द्वारा लिखे गए थे।

मुख्य कलाकार



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ड़ी खबरें

सुस्त होकर बंद सेंसेक्स-निफ्टी, स्मॉलकैप में दिखा जोश

कल की तेजी के बाद बाजार आज सुस्ती के मूड में दिखाई दिए। दिनभर सेंसेक्स-निफ्टी की चाल सुस्त ही नजर आई।

50 से कम भाव के शेयरों में क्या करें निवेशक  

सौदा आपका में हम फोकस कर रहे हैं कुछ ऐसे शेयरों पर, जिनके भाव 50 रुपये से कम हैं।

चौथी तिमाही नतीजों से पहले क्या खरीदें  

सीएनबीसी आवाज़ अनुमान लगा रहा है कि अलग अलग सेक्टर में कंपनियों के नतीजे कैसे रहेंगे।

http://hindi.moneycontrol.com/news/



श्री 420 के इस गाने पर हमारा ध्यान अस्सी के दशक के मध्य हमारे बड़े भाई नीलाभ ने दूरदर्शन पर  प्रदर्शित अपने चार टुकड़ों के सीरियल में खींचा था। फिल्म श्री 420 में 'मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के'डांस सीन में जो गाउन नादिरा ने पहना था, उसकी डिजाइन भानु ने की थी। फिल्म इंडस्ट्री में इस गाने के साथ भानु भी लाइम लाइट में आ गई। 1955 में जब यह फिल्म रिलीज हुई,उस वक्त मेरा गांव बसंतीपुर बसा भी न था।1956 में हुए शरणार्थी आंदोलन की फसल है बसंतीपुर जो आज भी लहलहाये है।उस गांव के बसने के पहले साल में मेरा जन्म हुआ।लेकिन यह फिल्म और यह गाना भारतवर्ष में मुनाफावसूली के शेयरबाजारु सत्ता वर्ग का बेहतरीन फिल्मांकन है।


राजकपूर की फिल्म श्री 420 का यह गाना  आज के भारत के जनमानस को जितना सही तरीके से अभिव्यक्त करता है,वैसा कोई विश्लेषण नहीं कर सकता।जिस शेयर बाजार के लूटखसोट को श्री 420 का कथा परिदृश्य बानाया था  बालीवूड के सबसे बड़े शोमैन ने ,आज वह शेयर बाजार ही इस सोने की चिड़िया का वर्तमान और भविष्य है।


नाचती गाती दिलकश नादिरा अब भारत की सत्ता है,जो आम जनता को मुड़ मुड़कर देखने की इजाजत नहीं देती और देश की आत्मा को  इसतरह कयामती बेरहमी से कुचल दिया जा रहा है।


भारतीय लोक गणराज्य और इसकी अर्थव्यवस्था विदेशी रेटिंग एजंसियों के हवाले,वही नीतियां बना रही हैं,बिगाड़ रही हैं-मोदी उनकी अश्वशक्ति है।



डॉ योगेन्द्र ने अपने फेसबुक वाल पर एकदम सही लिखा हैः


देश के लिए मुद्दा अरविंद केजरीवाल ,योगेन्द्र यादव,प्रशांत भूषण ,नरेन्द्र मोदी,राहुल गॉधी,लालू यादव,मुलायम सिंह यादव या नीतीश कुमार नहीं हैं,देश के लिए मुद्दे हैं- आत्महत्या करते किसान,भूखों मरते आदिवासी,करोड़ों बेरोज़गार,अर्थहीन होती शिक्षा,विदेशी कंपनियों का देश में अनर्थकारी दखल,विकास के नाम पर पूजीपतियों का विकास,नृशंस होती चेतना,हर महकमे में फैला भ्रष्टाचार ,देश का धर्म-व्यवसायी।

इन मुद्दों के समाधान के लिए किसके पास नीतियाँ हैं?नहीं हैं तो उन नीतियों को बनाने और व्यवहारिक धरातल पर उतारने की चुनौती है।यह चुनौती पढ़े-लिखे लोगों,किसानों,छात्रों ,नौजवानों को स्वीकार करनी पड़ेगी।किसी के पीछे ढोल बजाने की ज़रूरत नहीं है।


हस्तक्षेप पर लगे आनंदस्वरुप वर्मा का आलेख एक ख़ास तरह के अंधराष्ट्रवाद के शिकार थे राजेन्द्र माथुर

(http://www.hastakshep.com/%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE/%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%BE/2015/04/10/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A5%81%E0%A4%B0-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A5%99%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%A4%E0%A4%B0) तुरंत खोलकर पढ़ लें।


यह समझने की बेहद जरुरत है कि अंध राष्ट्रवाद पर संघ परिवार का एकाधिकार नहीं है,तमाम माध्यमों पर अब तक जिनका दखल रहा है,जो उन माध्यमों के घोषित अघोषित मसीहा वृंद रहे हैं, अंध राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की धर्मनिरपेक्षता के जरिये भारतीय जनमानस को मुक्तबाजारी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के शिकंजे में फंसाने की सारी उपलब्धि उनकी है।


संघ परिवार को उनका आभार मानना चाहिए।


हमारा चूंकि भाषा,साहित्य,कला और तमाम माध्यमों,विधायों में उन महामहिमों के फतवों, नियमतों,रहमतों,सौदर्यशास्त्र और व्याकरण से कुछ लेना देना नहीं है,चूंकि हम नैनीताल में इस दुनिया के सबसे खूबसूरत स्त्री पुरुषों से जनपक्षधर साहित्य कला भाषा का पाठ लेते रहे हैं,इसलिए हमें उभयलिंगी पाखंडी शिखंडी मौकापरस्त हस्तीमुखी गैंडाचर्मी हस्तमैथुन विशेषज्ञों के खिलाफ खुले युद्ध से कोई परहेज नहीं है।


चाहे कोई नाराज हो या खुश हम सच को सच कहेंगे।


हम बार बार जनपक्षधर ताकतों और जनपक्षधर मीडिया के साथ खड़े होने की बात कर रहे हैं।


ग्रीन पीस के लाइसेंस निलंबित हो जाने पर भी हमारे मित्रों को होश नहीं है कि भारत में अब पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर चर्चा राष्ट्रद्रोह माना जा रहा है और सैन्यराष्ट्र के मुकाबले हममें से किसी की औकात इस मुक्तबाजार के खिलाफ अकले लड़ने की नहीं है।


जितनी जल्दी हम इसे मान लें और जितनी जल्दी हम गोलबंद होने की हरसंभव पहल अपनी तरफ से करें,उतना ही बेहतर है।


अब वैकल्पिक मीडिया की सीधी लड़ाई कारपोरेट मीडिया से है।


अब तय करना ही होगा कि कौन जनपक्षधर है और कौन अपनी मसीहाई की आड़ भारतीय पत्रकारिता को चकलाघर बनाता रहा है,उन उजले चेहरों को बेनकाब करने की हमारी मुहिम अब किसी कीमत पर रुकने वाली नहीं है।


बेईमानों के मुकाबले गिने चुने ईमानदार और देश भक्त लोग ही कयामत का मंजर बदल सकते हैं बशर्ते कि वे तमाम लोग चट्टानी मजबूती से जनपक्षधर माध्यमों को मुख्यधारा बनाने की मुश्किल कवायद पूरी करके कारपोरेट जनविरोधी जनविध्वंसी तत्वों को हाशिये पर फेंकने की चुनौती मंजूर करें।हमें फासीवाद पर बहस नहीं करनी है।फासीवाद का रेशां रेशां उघाड़कर उसे उखाड़ फेंकना है।


जो घर फूंके आपणा, चले हमारे साथ।


देश और जनमानस कैसे सिरे से बदल गया है,उसको समझाने के लिए यह आप बीती।


मैं सात को गांव केउटिया जाकर अपने बुआ के परिवार में दो दिनों तक रहा और वहां शेयर बाजार के अलावा कुछ भी न देखा।कुछभी नहीं।बाकी देश का नजारा भी कमोबेश यही हो गया है।


मेरे पिता,मेरे ताउ और मेरे चाचा ही हमारे खानदान में शरणार्थी बने हैं।यानी हमारे चार दादाओं में से तीसरे उमेश विश्वास के तीनों बेटे शरणार्थी बने।मेरे पिता भारत विभाजन से पहले तेभागा आंदोलन के सिलसिले में सीमापार आ गये थे और विभाजन के वक्त हमारे ताउ और चाचा बंगाल पुलिस में सेवारत थे।फिर भी तीनों राणाघाट शरणार्थी शिविर में पहुंचकर शरणार्थी सैलाब में कैसे पहुंच गये,यह बिखरी हुई कड़ियों की कथा है।


बाकी तीनों दादाओं की संतानें उस पार जैशोर के नड़ाइल इलाके की पुश्तैनी संपत्ति के बदले उत्तर 24 परगना के विभिन्न इलाकों में जमीन और घर खरीदकर बस गयीं।


हमारी बुआ श्रीमती भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं। वे अपने परिवार के साथ नैहाटी के पास केउटिया गांव जो महान साहित्यकार बंकिम चंद्र के ससुराल नारायणपुर का हिस्सा है,में बस गयीं और उनके एकमात्र पुत्र निताई सरकार हमारे बड़े भाई साहेब हैं।


जब मैं तीसरी में पढ़ता था,तभी रोजाना खबार पढ़ने की लत लग जाने और चाचा के दिखाये मार्ग पर विश्व साहित्य में रम जाने और पिता के जनपक्षधर सामाजिक सक्रियता की वजह से सामाजिक यथार्थ से टकराते रहने की आदत से भयंकर पढ़ाकू हो गया था।


मैं पेड़ पर बैठकर या भैंस की सवारी करते हुए किसी भी हालत में पढते रहने की आदत से मजबूर था।


जब पढ़ने को कुछ न मिलता था,तब बांग्ला पंजिका के पुराने सारे अंक के तिथि नक्षत्र का विवेचन भी पढ़ लेता था।


उसी बीच तब तीसेक साल के हमारे दादा निताई सरकार बंसतीपुर पहुंचे।


मैं चूंकि अपनों से पढ़ने के लिए किताबें मांगता रहता था और घर आने वाले तमाम सज्जनों के दिये पैसों,छात्रवृत्ति परीक्षाएं पास करते रहने से मिले पैसों और थोड़ा बहुत जेब खर्च के लिए दिये गये पैसों से किताबें ही खरीदता था,तो भाई साहेब से भी मैंने किताबें खरीद देने के लिए कहा।


तो उनने हैरतअंगेज ढंग से मेरे सामने चुनौती खड़ी कर दी रवींद्रनाथ पढ़ने से क्या होगा अगर तुम रवींद्र नाथ बन नहीं सकते।इतना पढ़ते रहते हो  तो लिखा भी करो।


इसतरह मेरे लिखने की शुरुआत हो गयी।


दादा निताई सरकार ने भीरी संघर्ष किये। वे शरणार्थी न थे और न उनने पारिवारिक संपत्ति के बदले संपत्ति अर्जित की।उन्होंने पूरी जवानी मजदूरी करते बितायी।


कोलकाता के बड़ा बाजार में इसी दरम्यान शेयर बाजार में सक्रिय कुछ कारोबारी उनके मित्र बने।साठ के दशक से वे शेयर बाजार में सक्रिय हैं।बंगाल में नर्सरी और हैचरी व्यवसाय शुरु करने वाले वे पहली पीढ़ी के कारोबारी हैं।आठवें दशक तक वे जूट का कारोबार करते थे और केउटिया में उनके घर जूट का वह गोडाउन अब भी है।


मेहनत मजदूरी और कारोबार के साथ साथ कविता और गीत लिखना दादा की रचनात्मक अवदान है।


हम जब 1980 में धनबाद पहुंचे तो छुट्टी मिलते ही बसंतीपुर जाना असंभव देख केउटिया चला आता था।


हमारी भाभी अविभाजित बंगाल के सबसे लोकप्रिय लोककवि विजय सरकार की पोती हैं।विजय सरकार भी नड़ाइल जैशोर के हैं।


लोककवि विजय सरकार भी नड़ाइल छोड़कर केउटिया आ बसे और आखिरी सांस तक रचनात्मक बने रहे।


अस्सी के दशक में अचानक जूट संकट पैदा हो जाने से किसानों को भुगतान करते हुए दादा की हालत बेहद खराब हो गयी।


तब पड़ोस के गांव के ईसप मियां अपने खेत की सब्जियों से लेकर राशन पानी तक भाभी की रसोई में पहुंचा जाते थे,यह मैंने सालोंसाल देखा है।


ईसप भाई साहेब अब नहीं हैं,जिनके घर और उनके परिजनों के बीच मैं दादा के साथ जाता रहा हूं।तो दादा की संघर्ष यात्रा में केउटिया के मसजिदपाड़ा के अजहर का रात दिन का साथ रहा है।


दादा ने बच्चों को हिदायत दे रखी है कि वे रहे न रहे,अजहर को हमेशा परिवार का हिस्सा मान लिया जाये।उस घर के सारे फैसले अजहर की सलाह से तय होते रहे हैं।अजहर को वीटो मिला हुआ है।


अजहर आज भी उस परिवार में शामिल है।जबकि उसका अपना परिवार और उसके बच्चे सुखी और संपन्न हैं।सारे बच्चे प्रतिष्ठित हैं।


लोककवि निताई सरकार को आप किसी भी कोण से धर्मोन्मादी नहीं कह सकते।कवि विजयसरकार इस पार के हिंदुओं से कहीं ज्यादा उसपार के मुसलमानों में लोकप्रिय है,जिन्हें मरणोत्तर हमारे भारत रत्न के बराबर एकुशे पदक दिया गया है।


विजयसरकार के जन्मोत्सव पर उस पार बंगाल के सारे लोककवि,साहित्यकार केउटिया चले आते हैं।


विजय सरकार पर बांग्लादेश में निरंतर शोध और शोध पर शोध हो रहा है।बंगाल में कुछ भी नहीं हो रहा है।


ममता दीदी को शायद ही लोककवि विजय सरकार के बारे में कुछ मालूम हो।


वही निताई दादा ने साबित कर दिया कि अब तक देश में कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ,असली प्रधानमंत्री अब हुआ है,जिसने बाजार से मुनाफावसूली के सारे रास्ते खोल दिये हैं।


उन्हें अफसोस है कि कंप्यूटर और इंटरनेट इतना लेट आये उनके जीवन में कि वे उन्हें साध नहीं सकते।वे अंग्रेजी नहीं जानते,लेकिन अंग्रेजी के सारे बिजनेस चैनल दिनभर देखते हैं तो बच्चे हिंदी के बिजनेस चैनल देखते हैं।दादा अंग्रेजी अखबारों के ग्राफिक्स देखकर बाजार की चाल भांपते हैं।


घर में सारे कमरों में टीवी पर बिजनेस चैनल के अलावा कुछ नहीं होता।


आलम यह है कि सुचित्रा उत्तम जोड़ी की फैन हमारी भाभी बरसों से कोई फिल्म देख नहीं पायी है।तो हमारी बहुएं भी सीरियल वगैरह नहीं देखतीं।दिनभर बाजार का मिजाज रसोई चौके के साथ साथ बच्चों की पढ़ाई लिखाई की उलझनों के साथ साथ समझने की कवायद करती रहती हैं।


दो दिनों तक बाजार के अलावा उस घर में हमने कुछ भी न देखा।


गनीमत यह है कि दादा को अब थोड़ा बहुत क्रिकेट का शौक भी लगा है और वे अस्वस्थ हैं तो मैं उनेका साथ ही ज्यादा वक्त बिता रहा था तो वे बीच बीच में समाचारों पर नजर रख रहे थे,बाजार की हलचल के मध्य। आईपीएल का पहला मैच भी हमने उनके साथ देखा और हर ओवर के अंतराल में बिजनैस चैनल चलता रहा।


दादा किसान हैं और आर्थिक सुधारों के जबर्दस्त समर्थक हैं।


वे जोतदार भी रहे हैं और सत्तर के दशक में वाम निशाने पर भी रहे हैं।वे वामविरोधी रहे हैंं और उनका पूरा परिवार ममता का सर्थक रहा है क्योंकि ममता धुर वाम विरोधी हैं।


मैं सावधानी से भी ममता की आलोचना कर रहा होता तो दादा गुस्से में आ जाते थे।


अब वहीं दादा ममता बनर्जी के निर्मम आलोचक हैं और मोदी के अंध विरोध के लिए बंगाल का कितना बड़ा सर्वनाश हो रहा है और बिना रोजगार के बंगाल के सारे लोग कैसे मजदूर बनते जा रहे हैं,इसका वे सिलसिलेवार विश्लेषण करते रहते हैं।


मेरे छोटे भतीजे का इकलौता बेटा अभी पांचवीं में पहुंचा है तो दादा और मेरे बड़े भतीजे ने उससे पूछा कि आपको क्या चाहिए,घर के माहौल के मुताबिक उसने अपने जन्मदिन पर शेयर सौ शेयर मांगे तो उसके लिए ब्लूचिप के सौ शेयर खरीद लिये गये।


दादा मानते हैं कि कृषि से अब देश का विकास नहीं हो सकता और विदेशी पूंजी और मुक्तबाजार में ही भारत का भविष्य है।मोदी चूंकि मुक्त बाजार के लिए सारी खिड़कियां खोल रहे हैं तो दादा उन्हें भारत भाग्यविधाता मान रहे हैं।


मजे की बात है कि वे बजरंगी ब्रिगेड के हिंदुत्व के सख्त खिलाफ रहे हैं।अब भी वे मानते हैं कि मोदी जिस विकासकी बात करते हैं,उसमें बाधक संघ परिवार का हिंदुत्व एजंडा है।इसलिए वे वोट भी भाजपा को देते नहीं है।


मोदी की नीतियों के प्रबल समर्थक और दीदी के प्रबल आलोचक होने के बावजूद वे वोट अब भी तृणमूल कांग्रेस को देते हैं।


बुआ की मृत्यु के बाद उस घर में बढ़ते हुए शेयर बाजार के परिवेश में मुझे खुद को बेहद अवांछित महसूस होता है।इसलिए कोलकाता में होने के बावजूद केउटिया आना जाना हो नहीं पाता।


दादा की निरंतर अस्वस्थता की वजह से इस बार लंबे अंतराल के बाद मैं वहां गया तो जैसे अपने बदलते हुए देश के मुखातिब हो गया मैं।इस देश के किसान और लोकजड़ों से जुड़े लोग भी अब कृषि में अपना भविष्य नहीं देखते,वे बाजार को अपनी नियति मानने लगे हैं।


हरित क्रांति के बाद पंजाब में यह कायाकल्प हुआ,जब खेती से निकलने की छटफटाहट ने पंजाब के लिए खुदकशी का रास्ता तैयार कर दिया।


मुक्तबाजार में यह आस्था भारतीय किसानों की सामूहिक आत्महत्या की नियति के सिवाय क्या है,समझ में नहीं आ रहा है।


हमारे बाजार विशेषज्ञ भतीजों के मुताबिक मुनाफावसूली के लिए सबसे उपजाऊ होने जा रहा है डिफेंस सेक्टर जबकि बेैंकिंग में निवेश डूबने का खतरा है।


प्रधानमंत्री मोदी ने युनेस्कों मेमन की बातें बहुत तरकीब से की हैं।यूनेस्को में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन शुरू हो चुका है. मोदी ने कहा कि यूनेस्को में संबोधन गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि यूनेस्को में समय के साथ प्रगति हुई है। दुनिया में शांति बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। भारत यूनेस्को का सम्मान करता है। हमारा लक्ष्य विश्व शांति का होना चाहिए। दुनिया को बेहतर बनाने के लिए यूनेस्को काम कर रहा है। हर बच्चे का विकास जरूरी है। हमें उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करना होगा। मोदी ने कहा कि दुनिया में हर बच्चा शिक्षित हो और हर बच्चा हुनरमंद हो। हमारी संस्कृति में शिक्षा का अहम स्थान है। विकास तब होता है जब निचले तबके का विकास …


इसके विपरीत प्रधानमंत्री की यह विदेश यात्रा का असली मकसद भारत में डिफेंस सेक्टर में अबाध विदेशी पूंजी का प्रत्यक्ष निवेश और लंबित अरबों बिलियन डालर के रक्षा सौदों के हरी झंडी देना है।


भारत पर ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों का भरोसा बढ़ गया है। दिग्गज रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत का आउटलुक स्टेबल से बढ़ाकर पॉजिटिव कर दिया है। साथ ही मूडीज ने भारत की बीएए3 रेटिंग भी बरकरार रखी है।

मूडीज के मुताबिक भारत सरकार से एक्शन की उम्मीद है और ग्रोथ बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाएंगे। भारत की स्थिति दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले काफी मजबूत है। हालांकि मूडीज ने बैंकों की एसेट क्वालिटी पर चिंता जताई है और लोन रिकवरी को काफी कमजोर बताया है।

अपने कस्टमर्स को घर तक डिलिवरी के लिए ई-रिटेलर कंपनी फ्लिपकार्ट ने मुंबई के डब्बावालों की मदद ली है। डब्बावाले 120 सालों से अधिक समय से लंच बॉक्स डिलिवर करने के धंधे में लगे हुए हैं।

मोदी सरकार अब कृषि कार्य में लगे लोगों को मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर में ले जाना चाहती है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि कार्य में लगे भारत के मजदूरों की करीब आधी संख्या को मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर में शिफ्ट करने की जरूरत है।

दूसरी ओर,सुप्रीम कोर्ट किसानों के संगठनों की उस याचिका पर सोमवार को सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है, जिसमें इन संगठनों ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश फिर जारी किए जाने की वैधता का चुनौती दी है। किसानों के संगठनों की ओर से पैरवी करने वाली सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह द्वारा याचिका पर तुरंत सुनवाई के लिए कहे जाने पर चीफ जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा, 'हम इस पर सोमवार को सुनवाई करेंगे।'

पनगढ़िया ने कहा, 'अगर आप इस जनसंख्या को गरीबी में नहीं छोड़ना चाहते हैं तो लंबे समय के लिए आपको खेती मजदूरों को खेती कार्य से मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर की जॉब में शिफ्ट करना होगा।'

उन्होंने कहा कि आर्थिक परिवर्तन की रणनीति बनानी होगी। उन्होंने यह कहा कि कृषि कार्य में लगे करीब 49 फीसदी लोग जीडीपी में सिर्फ 14 फीसदी योगदान ही देते हैं। उन्होंने कहा, 'आय के लिए इस सेक्टर पर 49 फीसदी लोग आश्रित हैं और सिर्फ 14 फीसदी ही आय कर पाते हैं। अगर आप गरीबों को तुरंत राहत पहुंचाना चाहते हैं तो कृषि के लिए कुछ अच्छे काम करने होंगे।'


उन्होंने विचार व्यक्त किया कि फार्म सेक्टर पर अधिक निर्भरता सरकार के लिए भी समस्या पैदा करती है क्योंकि जब ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदा फसलों को तबाह कर देती है तो इसकी क्षमता को भी चुनौती मिलती है।

इसी बीच,आरबीआई गवर्नर की फटकार और सीएनबीसी-आवाज़ की मुहिम के बाद बैंकों ने लोन सस्ता करना शुरू कर दिया है। आरबीआई के कहने के बाद ही सही, देश के बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दी है।

देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई बैंक ने बेस रेट में 0.25 फीसदी की कटौती कर दी है। अब आईसीआईसीआई बैंक का बेस रेट 9.75 फीसदी हो गया है। इसके पहले कर्ज घटाने की शुरुआत एसबीआई ने की। एसबीआई ने बेस रेट में 0.15 फीसदी की कमी का ऐलान किया है और बैंक का बेस रेट 9.85 फीसदी हो गया है। वहीं एचडीएफसी बैंक ने भी बेस रेट में 0.15 फीसदी की कटौती की है। एचडीएफसी बैंक का बेस रेट 9.85 फीसदी हो गया है।


मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के जॉइंट एमडी रामदेव अग्रवाल का कहना है कि वित्त वर्ष 2015 के रिटर्न या प्रदर्शन को वित्त वर्ष 2016 में दोहराना शायद मुश्किल हो सकता है। बाजार में मौजूदा स्तरों से गिरावट का खतरा काफी कम है। ज्यादा से ज्यादा 10 फीसदी की गिरावट मुमकिन है जबकि तेजी के दौर में बाजार 100 फीसदी तक बढ़ सकता है। अगले 3 से 5 साल में बाजार में पैसा बनाने के बेशुमार मौके मिलेंगे। बस सही मौकों को पहचानकर अभी से बाजार में निवेश करने की जरूरत है। ग्रोथ में सुधार होने पर बड़ी तेजी की उम्मीद है।

बाजार की आगे की तेजी के लिए जो ट्रिगर हैं उनमें कंपनियों के मुनाफे में सुधार, ग्लोबल संकेत और ब्याज दरों में कमी मुख्य हैं। अगर ये सब कारण मिल जाएं तो बाजार शानदार ऊंचाई पर जा सकते हैं। हालांकि छोटी अवधि में कंपनियों के मुनाफे में बड़े सुधार की उम्मीद नहीं है।


दूसरी ओर,आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर इंडिया इंक का मोदी सरकार सेमोहभंग होने लगा है।टाइम्स न्यूज नेटवर्क के मुताबिक मोदी सरकार की चमक फीकी पड़ रही है और आज चुनाव होते तो एनडीए को 200 सीटें भी मुश्किल से मिलतीं।  ऐसा कोई मोदी विरोधी नहीं बल्कि उस उद्योग जगत का नुमाइंदा कह रहा है, जिसके लिए केंद्र सरकार न सिर्फ खूब सारी नीतियां लेकर आई है बल्कि विपक्ष का यह आरोप भी झेल रही है कि मोदी सरकार उद्योगपतियों की सरकार है।


4600 करोड़ रुपये के विशाल मैरिको ग्रूप के चेयरमैन हर्ष मरीवाला कहते हैं कि मोदी सरकार की चमक उतर रही है। मंगलवार को उन्होंने दो ट्वीट किए। पहले में उन्होंने कहा, 'नतीजे हासिल करके दिखाने और वादे निभाने जैसी मोदी सरकार की चमक उतर रही है। रफ्तार बढ़ानी होगी। उम्मीद है कि ब्याज दरें आज कम होंगी।'


इसके कुछ ही देर बाद उन्होंने एक और ट्वीट करके एक विस्फोटक खुलासा किया। उन्होंने कहा, 'एक बड़े नेता से सुना कि अगर आज चुनाव होते तो एनडीए को मुश्किल से 200 सीट जीत पाता।'


उद्योग जगत ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर जमकर जश्न मनाया था लेकिन अब बहुत से उद्योगपति हैं जो सरकार से निराश हैं। कहा जा रहा है कि कंपनियों के बोर्ड रूम्स में बातचीत बदल रही है। इंडिया इंक सिर्फ इसी बात से परेशान नहीं है कि मंजूरी मिलने में देर हो रही है। दबी जबान में ही सही लेकिन उद्योग जगत के सेनापति और कई समस्याओं का जिक्र करने लगे हैं। कइयों को हाल ही में टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिसों ने परेशान किया है तो हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर मच रहा है हल्ला भी उद्योग जगत को रास नहीं आ रहा है।


आरपीजी ग्रूप के चेयरमैन हर्ष गोयंका ने कहा, 'जब तक मुद्दों को निष्पक्षता से हल किया जाएगा, तब तक उद्योग जगत को परेशान होनी की जरूरत नहीं है। लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में हमें हर तरह की कट्टर गतिविधि से बचना चाहिए। इधर-उधर से आ रहे फासीवादी बयान समाज के सांप्रदायिक तानेबाने को तोड़ते हैं। इनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।'


एक अन्य टॉप बैंकर ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि वह हैरान हैं कि मोदी इन लोगों पर सख्ती क्यों नहीं दिखा रहे हैं।



 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर हैं। इस यात्रा पर पूरे अंतर्राष्ट्रीय जगत की नजरें हैं। इसकी वजह है लड़ाकू विमान राफेल जिसे लेकर भारत और फ्रांस अब तक आखिरी समझौते तक नहीं पहुंच सके हैं। उम्मीद की जा रही है कि करीब 12 अरब डॉलर का ये सौदा इस बार परवान चढ़ सकता है। मोदी और फ्रांस्वां ओलांद के बीच इसे लेकर महत्वपूर्ण बातचीत होनी है। 2012 का ये सौदा अब तक क्यों लटका हुआ है और क्या है राफेल की खासियतें, जानने की कोशिश करते हैं।


आईबीएन लािव के मुताबिक कीमत पर है पेंच

अरबों डॉलर का राफेल सौदा लागत संबंधी मतभेदों को लेकर अटका पड़ा है जिसके तहत भारत को 126 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति की जानी है। 50 हजार करोड़ रुपये के 126 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में फ्रांसीसी कंपनी से भारत का पेंच 'कीमत' को लेकर है। भारत की ओर से जारी अंतर्राष्ट्रीय निविदा में निर्माता कंपनी ने प्रति विमान जो कीमत लगाई थी, सौदे को अंतिम रूप दिए जाने से ठीक पहले उसमें बढ़ोत्तरी करने के चलते मामला फंस गया।


फ्रांसीसी कंपनी ने दलील दी कि उसने जो कीमत निविदा में दी थी, उसमें तकनीकी हस्तांतरण की कीमत नहीं जोड़ी गई थी। कंपनी इसे जोड़कर ही करार पर मुहर लगाने को राजी थी। लेकिन रक्षा मंत्रालय को इस पर आपत्ति है। मंत्रालय का कहना है कि निविदा में घोषित कीमत से ज्यादा नहीं दी जाएगीष दोनों पक्ष इसी को लेकर अड़े रहे।


रक्षा मंत्रालय ने यूपीए सरकार के दौरान 31 जनवरी 2012 को राफेल को चुने जाने की घोषणा की थी। भारतीय वायु सेना ने कड़े मूल्यांकन के बाद दुनिया के छह जांबाज लड़ाकू विमानों में से यूरोफाइटर टाइफून और फ्रांस की कंपनी डशॉ के विमान राफेल पर मुहर लगाई थी। लेकिन जल्द ये सौदा कीमत को लेकर उलझ गया। मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान इस पर मुहर लगने की संभावना है।


क्या है राफेल

डेसॉल्ट राफेल फ्रांस का 2 इंजन वाला मल्टीरोल फाइटर एयर क्राफ्ट है। इस डिजाइन और निर्माण डेसाल्ट एविएशन ने किया है। 1970 में फ्रांसीसी सेना ने अपने पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमानों को बदलने की मांग की। इसी क्रम में फ्रांस ने 4 यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान की परियोजना पर काम शुरू कर दिया। बाद में साथी देशों से मतभेद उभरने के बाद फ्रांस ने इस पर अकेले ही काम शुरू कर दिया।


हालांकि इस पर काम 1986 में ही शुरू हो गया था, लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद बदले समीकरणों में बजट की कमी और नीतियों में अड़ंगों के चलते ये परियोजना लेट हो गई। 1996 में पहला विमान फ्रांसीसी वायुसेना में शामिल होना था लेकिन ये 2001 में शामिल किया जा सका। यह लड़ाकू विमान तीन संस्करणों में उपलब्ध है। इसमें राफेल सी सिंगल सीट वाला विमान है जबकि राफेल बी दो सीट वाला विमान है। वहीं राफेल एम सिंगल सीट कैरियर बेस्ड संस्करण है।


राफेल को फ्रांसीसी वायुसेना और जलसेना में 2001 में लिया गया। बाद में बिक्री के लिए इसका कई देशों में प्रचार भी किया गया, लेकिन खरीदने की हामी सिर्फ भारत और मिश्र ने भरी। राफेल को अफगानिस्तान, लीबिया, माली और इराक में इस्तेमाल किया जा चुका है। इसमें कई अपग्रेडेशन कर 2018 तक इसमें बड़े बदलाव की भी बात कही जा रही है।


राफेल की खासियत

ये एक मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट है। अक्टूबर 2014 तक 133 विमानों का निर्माण किया जा चुका है। इस प्रोजेक्ट की लागत 62.7 बिलियन है। एक विमान की लागत 70 मिलियन आती है। इसकी लंबाई 15.27 मीटर है और इसमें एक या दो पायलट बैठ सकते हैं।


इसके विंग्स की लंबाई 10.8 मीटर, ऊंचाई 5.34 मीटर है। इसका खाली वजन 9500 किलोग्राम जबकि भरा हुआ वजन 14 हजार किलोग्राम पहुंच जाता है। इसकी अधिकतम भार उठाकर उड़ने की क्षमता 24500 किलोग्राम है जबकि ईंधन क्षमता 4700 किलोग्राम है।


राफेल की अधिकतम रफ्तार 1912 किलोमीटर प्रति घंटा है। और ये 3700 किलोमीटर तक जा सकता है। इसमें 1*30 mm की एक गन लगी होती है जो एक बार में 125 राउंड निकाल सकती है। इसके अलावा इसमें घातक एमबीडीए मीआईसीए (MBDA MICA), एमबीडीए मेटेओर (MBDA Meteor), एमबीडीए अपाचे (MBDA Apache), स्टोर्म शैडो एससीएएलपी (Storm Shadow-SCALP EG) मिसाइलें लगी रहती हैं। इसमें थाले आरबीई2 (RBE2) रडार और थाले स्पेक्ट्रा वारफेयर सिस्टम लगा होता है। साथ ही इसमें ऑप्ट्रॉनिक सेक्योर फ्रंटल इंफ्रा-रेड सर्च और ट्रैक सिस्टम भी लगा है।

http://khabar.ibnlive.in.com/news/139575/1ट






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