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Monday, August 10, 2015

भगाना के दलित इंसाफ माँगा था, इस्लाम मिला !


   

भगाना के दलित

                            इंसाफ माँगा था, इस्लाम मिला !

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लगभग 4 माह तक उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया ,आर्थिक नाकेबंदी हुयी ,तरह तरह की मानसिक प्रताड़नाएँ दी गयी | गाँव में सार्वजनिक नल से पानी भरना मना था ,शौच के लिए शामलात जमीन का उपयोग नहीं किया जा सकता था ,एक मात्र गैर दलित डॉक्टर ने उनका इलाज करना बंद कर दिया ,जानवरों का गोबर डालना अथवा मरे जानवरों को दफ़नाने के लिए गाँव की भूमि का उपयोग तक वे नहीं कर सकते थे | उनका दूल्हा या दुल्हन घोड़े पर बैठ जाये ,यह तो संभव ही नहीं था| जब साँस लेना भी दूभर होने लगा तो अंततः भगाना गाँव के 70 दलित परिवारों ने 21 मई 2012 को अपने जानवरों समेत गाँव छोड़ देना ही उचित समझा| वे न्याय की प्रत्याशा में जिला मुख्यालय हिसार स्थित मिनी सचिवालय के पास आ जमें ,जहाँ पर उन्होंने विरोध स्वरुप धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया| भगाना के दलितों ने ग्राम पंचायत के सरपंच से लेकर देश के महामहिम राष्ट्रपति महोदय तक हर जगह न्याय की गुहार लगायी ,वे तहसीलदार के पास गए ,उपखंड अधिकारी को अपनी पीड़ा से अवगत कराया ,जिले के पुलिस अधीक्षक तथा जिला कलेक्टर को अर्जियां दी| तत्कालीन और वर्तमान मुख्यमंत्री से कई कई बार मिले| विभिन्न आयोगों ,संस्थाओं एवं संगठनों के दरवाजों को खटखटाते रहे ,दिल्ली में हर पार्टी के अलाकमानों के दरवाजों पर दस्तक दी मगर कहीं से इंसाफ की कोई उम्मीद नहीं जगी| उन्होंने अपने संघर्ष को व्यापक बनाने के लिए हिसार से उठकर दिल्ली जंतर मंतर पर अपना डेरा जमाया तथा 16 अप्रैल 2014 से अब तक दिल्ली में बैठ कर पुरे देश को अपनी व्यथा कथा कहते रहे ,मगर समाज और राज के इस नक्कारखाने में भगाना के इन दलितों  की आवाज़ को कभी नहीं सुना गया| हर स्तर पर ,हर दिन वे लड़ते रहे ,पहले उन्होंने घर छोड़ा ,फिर गाँव छोड़ा ,जिला और प्रदेश छोड़ा और अंततः थक हार कर धर्म को भी छोड़ गए ,तब कहीं जाकर थोड़ी बहुत हलचल हुयी है लेकिन अब भी उनकी समस्या के समाधान की बात नहीं हो रही है| अब विमर्श के विषय बदल रहे है ,कोई यह नहीं जानना चाहता है कि आखिर भगाना के दलितों को इतना बड़ा कदम उठाने के लिए किन परिस्तिथियों  ने मजबूर किया ?

भगाना हरियाणा के हिसार जिला मुख्यालय से मात्र 17 किमी दूर का एक पारम्परिक गाँव है| जिसमे 59 % जाट ,8 % सामान्य सवर्ण {ब्राह्मण ,बनिया ,पंजाबी } 9 % अन्य पिछड़ी जातियां { चिम्बी ,तेली ,कुम्हार ,लौहार व गोस्वामी }तथा 24 % दलित { चमार ,खटिक ,डोमा ,वाल्मीकि एवं बैगा } निवास करते है| वर्ष 2000 में यहाँ पर अम्बेडकर वेलफेयर समिति बनी ,दलित संगठित होने लगे| उन्हें गाँव में अपने साथ होने वाले अन्याय साफ नज़र आने लगे ,वे अपने नागरिक अधिकारों को प्राप्त करने के प्रयास में एकजुट होने लगे ,जिससे यथास्थितिवादी ताकतें असहज होने लगी| दलितों ने अपने लिए आवासीय भूमि के पट्टे मांगे तथा गाँव की शामलाती जमीन पर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की मांग उठाई| संघर्ष की वास्तविक शुरुआत वर्ष 2012 में तब हुयी जबकि दलितों ने गाँव में स्थित चमार चौक का नाम अम्बेडकर चौक करने तथा वहां पर अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने की मांग शुरू की| दरअसल यह चौक दलित परिवारों की आबादी के पास स्थित है ,जहाँ पर कई दलितों के घरों के दरवाजे खुलते है ,मगर गाँव के दबंगों को यह गवारा ना था कि इस चौक पर दलितों का कब्ज़ा हो| इतना ही नहीं बल्कि गाँव में दलितों को आवासीय भूखंड देने के लिए बनायीं गयी महात्मा गाँधी बस्ती विकास योजना के तहत प्लॉट्स का पंजीकरण और आवंटन भी उन्हें स्वीकार नहीं था| गाँव की शामलाती जमीन पर दलितों की आवाजाही भी उन्हें बर्दाश्त नहीं थी.कुल मिलाकर भगाना स्वाभिमानी दलितों के लिए नरक बन चुका था ,ऐसे में दलितों के लिए गाँव छोड़कर चले जाने तथा इंसाफ के लिए आवाज़ उठाने के अलावा  कोई चारा ही नहीं था| इस तरह यह लडाई चलती रही| विगत तीन वर्षों से यह जंग बहुत सघन और मज़बूत हो गयी ,पहले हिसार के मिनी सचिवालय के बाहर और अंततः जंतर मंतर पर यह संघर्ष जारी रहा| 2014 से जंतर मंतर को ठिकाना बना कर लड़ रहे इन दलितों को कोई न्याय नहीं मिल पाया ,ऊपर से चार दलित नाबालिग लड़कियों का भगाना गाँव में अपहरण और सामूहिक दुष्कर्म का मामला और हो गया ,जिसमे भी पुलिस की भूमिका संतोषजनक नहीं रह पाई ,इससे भी आक्रोश बढ़ता गया| हरियाणा की पिछली सरकार ने संघर्षरत दलितों से न्याय के कई वादे किये मगर वे सत्ता से बाहर हो गए ,भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री खट्टर से भी भगाना के पीड़ित चार बार मिलकर आये ,मगर कोई कार्यवाही नहीं हुयी ,लम्बे संघर्ष के कारण दलित संगठनों के रहनुमाओं ने भी कन्नी काट ली ,जब कोई भी साथी नहीं रहा ,तब भगाना के दलितों को कोई ना कोई तो कदम उठाना ही था ,इसलिए उन्होंने संसद के सत्र के दौरान एक रैली का आह्वान करता हुआ पर्चा सबको भेजा ,यह रैली 8 अगस्त 2015 को आयोजित की गयी थी ,इसी दौरान करीब 100 परिवारों ने जंतर मंतर पर ही कलमा और नमाज पढ़कर इस्लाम कुबूल करने का ऐलान कर दिया ,जिससे देश भर में हडकंप मचा हुआ है| भगाना में इसकी प्रतिक्रिया में गाँव में सर्वजाति महापंचायत हुयी है जिसमे हिन्दू महासभा ,विश्व हिन्दू परिषद् तथा बजरंग दल के नेता भी शामिल हुए ,उन्होंने खुलेआम यह फैसला किया है कि –" धर्म परिवर्तन करने वाले लोग फिर से हिन्दू बनकर आयें ,वरना उन्हें गाँव में नहीं घुसने देंगे| " विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय महामंत्री डॉ सुरेन्द्र जैन का कहना है कि – " यह धर्मांतरण पूरी तरह से ब्लेकमेलिंग है ,इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा| "  हिन्दू महासभा के धर्मपाल सिवाच का संकल्प है कि –" भगाना के दलितों की हर हाल में हिन्दू धर्म में वापसी कराएँगे|" जो दलित मजहब बदल कर गाँव लौटे है उन्हें हिंदूवादी नेताओं ने समझाने के नाम पर धमकाने की कोशिश भी की है वहीँ दूसरी और देश और प्रदेश की हिंदूवादी सरकारों ने सत्ता का कहर भी ढाना  प्रारम्भ कर दिया है | धर्मांतरण के तुरंत बाद ही शुक्रवार की रात को हिसार के मिनी सचिवालय के बाहर विगत तीन वर्षों से धरना दे रहे दलितों को हरियाणा पुलिस ने जबरन हटा दिया और टेंट फाड़ दिए है| दिल्ली जंतर मंतर पर भी 10 अगस्त की रात को पुलिस ने धरनार्थियों पर धावा बोल दिया ,विरोध करने पर लाठी चार्ज किया गया ,जिससे 11 लोग घायल हो गए है.यहाँ से भी इन लोगों को खदेड़ने का पूरा प्रयास किया गया है| अब स्थिति यह है इस्लाम अपना चुके लोगों का गाँव में बहिष्कार किया जा चुका है,हालाँकि यह भी सच है कि इनका पहले से ही ग्रामीणों ने सामाजिक बहिष्कार किया हुआ था| हिसार से उन्हें भगाया जा चुका है और जंतर मंतर से भी वो खदेड़े गए है ,ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि भगाना के इतने लम्बे आन्दोलन का आखिर भविष्य क्या होगा ? क्या यह आगे भी चल पायेगा या यही ख़त्म हो जायेगा ? यह सवाल मैंने आन्दोलन से बहुत नज़दीक से जुड़े हुए तथा धर्मान्तरण कार्यक्रम के मुख्य योजनाकार अब्दुल रज्जाक अम्बेडकर से पूंछा ,उनका कहना है कि – " जालिमों के खिलाफ यह लड़ाई जारी रहेगी| जंतर मंतर पर धरना जारी है और आईंदा भी जारी रहेगा ,जहाँ तक गाँव की सर्वखाप पंचायत के फैसले की तो हम उससे नहीं डरते ,हम लोग जल्दी ही भगाना जायेंगे ,यह हमारा लोकतान्त्रिक अधिकार है " | रज्जाक अम्बेडकर का कहना है कि –' हमें मालूम था कि इस धर्मांतरण के बाद हमारी मुश्किलात बढ़ेगी ,क्योंकि साम्प्रदायिक संगठन इसे हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा बना रहे है ,पर जिन दलितों ने इस्लाम कुबूल कर लिया है ,वो इस्लाम में रह कर ही इंसाफ की लडाई लड़ेंगे|' 9 अगस्त की  रात में हुए हमले में पुलिस के निर्दयी लाठीवार में रज्जाक को भी गंभीर चौटें पंहुची है ,मगर उनका हौंसला बरक़रार है ,वे बताते है कि –' धर्मान्तरित दलित जानते है कि अब उनका अनुसूचित जाति का स्टेट्स नहीं बचेगा ,मगर उन्हें यह भी उम्मीद है मुस्लिम बिरादरी उनके सहयोग में आगे आएगी|'

जिन दलितों ने धर्म बदला है ,उनका मनोबल चारों तरफ से हो रहे प्रहारों के बावजूद भी कमजोर नहीं लगता है| नव धर्मान्तरित सतीश काजला जो कि अब अब्दुल कलाम अम्बेडकर है ,कहते है कि-' हम हर हाल में अब मुसलमान ही रहेंगे , जो कदम हमने उठाया ,वह अगर हमारे पूर्वज उठा लेते तो आज ये दिन हमको नहीं देखने पड़ते|' इसी तरह पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले भगाना निवासी धर्मान्तरित वीरेन्द्र सिंह बागोरिया का कहना है कि –'हम पूरी तरह से इस्लाम अपना चुके है और अब किसी भी भय ,दबाव या प्रलोभन में वापस हिन्दू नहीं बनेंगे|' अन्य दलित व अति पिछड़े जिन्होंने इस्लाम कबूला है ,वो भी अपने फैसले पर फ़िलहाल तो मजबूती से टिके हुए है .भाजपा ,संघ ,विहिप ,बजरंग दल तथा हिन्दू महासभा अपना पूरा जोर लगा रही है कि धर्मान्तरित लोग अपने मूल धर्म में लौट आये ,मगर भगाना के पीड़ित दलितों ने अपना सन्देश स्पष्ट कर दिया है कि अगर हिन्दुओं को दलितों की परवाह नहीं है तो दलितों को भी हिन्दुओं की रत्ती भर भी परवाह नहीं है| एक ऐसे वक़्त में जबकि एक दक्षिणपंथी हिन्दू शासक दिल्ली की सल्लतनत पर काबिज़ है ,ऐसे में उसकी नाक के नीचे खुलेआम ,चेतावनी देकर ,पर्चे बाँट कर ,ऐलानिया तौर पर पीड़ित दलित इस्लाम कुबूल कर रहे है तो यह वर्ष 2020 में बनने वाले कथित हिन्दू राष्ट्र के मार्ग में गति अवरोधक बन सकता है| भगाना के दलितों ने लम्बे समय तक सोच कर यह निर्णय लिया है ,एक माह पहले जब मैं उनके धरने में गया तब मुझे इसका अहसास होने लगा था कि उनका रुख मजहब बदलने की तरफ है और वे शायद इस्लाम का दामन थामेंगे|   

  एक लोकतान्त्रिक देश में कोई भी नागरिक किसी भी धर्म को स्वीकारे या अस्वीकार करे ,यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा है और कानूनन इसमें कुछ भी गलत नहीं है ,इसलिए भगाना के दलितों द्वारा किये गए इस्लाम को कुबूलने के निर्णय से मुझे कोई आपति नहीं है ,मैं उनके निर्णय का आदर करता हूँ ,हालाँकि मेरी व्यक्तिगत मान्यता यह है कि धर्मान्तरण किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता है क्योंकि यह खुद ही एक समस्या है| संगठित धर्म के आडम्बर और पाखंड तथा उसकी घटिया राजनीती सदैव ही  धर्म का सक्षम तबका तय करता है ,भारत के जितने भी धर्म है ,उन सबमें जातियां पाई जाती है तथा कम ज्यादा जातिगत भेदभाव भी मौजूद रहता है ,इस्लाम भी इससे अछुता नहीं है.जैसा कि दलित चिन्तक एस आर दारापुरी का कहना  है कि-" धर्मपरिवर्तन दलित उत्पीडन का हल नहीं है ,दलितों को संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए ,हाँ अगर धर्म बदलना ही है तो बौद्ध धर्म अपनाना चाहिए जिसके सिद्धांत और व्यव्हार में अंतर नहीं है जबकि भारतीय इस्लाम ,इसाई और सिख धर्म में यह अंतर पाया जाता है | " वाकई यह एक विचारणीय प्रश्न है कि क्या हिन्दू धर्म का त्याग करके किसी और धर्म को अपना लेने मात्र से कोई व्यक्ति जातिगत घृणा से मुक्त हो जाता है या धार्मिक नफरत का भी शिकार होने लगता है| जैसा कि भगाना के धर्मान्तरित दलितों के साथ होने लगा है कि धर्म बदलते ही उनके प्रति राज्य और समुदाय दोनों का व्यवहार अत्यंत क्रूर हो गया है| फिर यह भी देखना होगा कि क्या आज मुसलमान खुद भी स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है ,जिस तरीके से बहुसंख्यक भीड़ के हमले उन पर बढ़ रहे है ,गुजरात ,मुज्जफरनगर ,अटाली जैसे हमले इसके उदहारण है ,ऐसे में भले ही दलित उनका दामन थाम रहे है ,मगर उनका दमन थमेगा ,इसकी सम्भावना बहुत क्षीण नजर आती है .

अंतिम बात यह है कि अब भगाना  के दलितों की आस्था बाबा साहेब के संविधान के प्रति उतनी प्रगाढ़ रह पायेगी या वो अपनी समस्याओं के हल कुरान और शरिया तथा अपने बिरदाराने मुसलमान में ढूंढेगे ? क्या लडाई के मुद्दे और तरीके बदल जायेंगे ,क्या अब भी भगाना के दलित मुस्लिम अपने गाँव के चमार चौक पर अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने हेतु संघर्ष करेंगे या यह उनके लिए बुतपरस्ती की बात हो जाएगी ,सवाल यह भी है कि क्या भारतीय मुसलमान भगाना के नव मुस्लिमों को अपने मज़हब में बराबरी का दर्जा देंगे या उनको वहां भी पसमांदा के साथ बैठ कर मसावात की जंग को जारी रखना होगा ? अगर ऐसा हुआ तो फिर यह  खाई से निकलकर कुएं में गिरने वाली बात ही होगी| भगाना के दलितों को इंसाफ मिले यह मेरी भी सदैव चाहत रही है ,मगर उन्हें इंसाफ के बजाय इस्लाम मिला है ,जो कि उनका अपना चुनाव है ,हम उनके धर्म बदलने के संवैधानिक अधिकार के पक्ष में खड़े है ,कोई भी ताकत उनके साथ जोर जबरदस्ती नहीं कर पायें और जो भी उनका चयन है ,वे अपनी चयनित आस्था का अनुपालन करे,यह सुनिश्चित करना अब भारतीय राष्ट्र राज्य की जिम्मेदारी है ,मगर अब भी मुझे दलित समस्याओं का हल धर्म बदलने में नहीं दिखाई पड़ता है| आज दलितों को एक धर्म छोड़कर दुसरे धर्म में जाने की जरुरत नहीं है ,उन्हें किसी भी धर्म को स्वीकारने के बजाय सारे धर्मों को नकारना होगा ,तभी मुक्ति संभव है ,संभवतः सब धर्मों को दलितों की जरुरत है ,मगर मेरा मानना है कि दलितों को किसी भी धर्म की जरुरत नहीं है .धर्म रहित एक लोकतंत्र जरुर चाहिए ,जहाँ पर  समता ,स्वतंत्रता और भाईचारा से परिपूर्ण जीवन जीने का हक सुनिश्चित हो|

-    भंवर मेघवंशी

{ लेखक राजस्थान में मानव अधिकार के मुद्दों पर कार्यरत स्वतंत्र पत्रकार है }

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