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Friday, February 3, 2017

बजट अभी समझ से बाहर है तो तमाम बुरी खबरों के मध्य अच्छी खबर है! तेज तर्रार पत्रकार जगमोहन फुटेला अब ठीक हैं और सक्रिय भी हो रहे हैं! पलाश विश्वास


बजट अभी समझ से बाहर है तो तमाम बुरी खबरों के मध्य अच्छी खबर है!

तेज तर्रार पत्रकार जगमोहन फुटेला अब ठीक हैं और सक्रिय भी हो रहे हैं!

पलाश विश्वास

करीब 36 साल तक बजट के दिन मैं बिना नागा अखबार के दफ्तर में काम करता रहा हूं।मेरा अवकाश भी रहा होगा कभी कभी,तब भी मैंने बजय को कभी मिस नहीं किया है।36 सा बाद जब बजट पेश हो रहा था,मैं न अखबार के डेस्क पर था और न अपने घर टीवी के सामने।बजट से पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण और आर्थिक समीक्षा से पहले मैं गांव निकल गया।दक्षिण बंगाल के देहात में।

टीवी वहां भी था,लेकिन टीवी पर बजट लोग नहीं देख रहे थे।क्योंकि आटकर छूट से देहातवालों को कोई मतलब नहीं था और उनके हिस्से में क्या आया,वे समझ नहीं पा रहे थे।

इस बीच अखबारों में बजट के बाद नये सिरे से नोटबंदी को जायज बताने की मुहिम चल पड़ी है और बजट को राजनीतिक आर्थिक सुधारों का खुल्ला खजाना बताने वाली अखबारी सुर्खियों से आम जनता के साथ मेरा भी सामना हुआ है।आम जनता की तरह यह बजट अब तक हमारी समझ से बाहर है।

इसी बीच ट्रंप महाराज के हिंदुत्व से आईटी सेक्टर का बाजा भी जब गया है।बजट की खबरों से वि्त्तीय प्रबंधन का अता पता नहीं लगा है।

नोटबंदी से पैदा हुए नकदी संकट की वजह से बेहाल बाजार को उबारने के लिए बेतहाशा सरकारी खर्च के मध्यवर्गीय जनता को खुश करने वाले प्रावधान जरुर दीखे हैं।

बजट अभी पढ़ा नहीं गया है।बच्चों और स्त्रियों पर मेहरबानी की खबर चमकदार है। कमजोर तबकों को,अनुसूचितों को क्या मिला इसका हिसाब किताब नहीं दिखा है।पिछड़े राज्यों को क्या मिला है,वह तस्वीर भी साफ नहीं है।एक करोड़ लोगों को घर देने का वायदा है और शायद हम जैसे बेघर लोगों की लाटरी भी लग जाये।

कारपोरेट को खास फायद नहीं है और चनाव के समीकरणकी परवाह किये बिना अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का योगाभ्यास भी गया है।लेकिन वह पटरी भी हवा हवाई है सुनहले दिनों के ख्वाबों की तरह।किस्सा अभी बाकी है।

मसलन अंधाधुंध निजीकरण की पटरी पर सरपट दौड़ रही बुलेट सरीखी भारतीय रेल का क्या बना,यह भी देखना बाकी है।आहिस्ते आहिस्ते पढ़ देखकर जो समझ में आयेगा ,उसे थोड़ी देर में शेयर करेंगे।

इंफ्रास्ट्रक्चर के डिडिटल कैशलैस इंडिया की लाटरी किस किसके नाम खुली है,खुलासा अभी हुआ नहीं है।आंकड़ों के पीछे सनसनाहट में क्या है,मालूम नहीं है।

बेजरोजगारी,भुखमरी और मंदी से निबटने की दिशा कहां है,पता चलातो आपको बी बतायेंगे।रोजगार सृजन की जमीन फिलहाल दीख नहीं रही है।

नोटबंदी और कायदा कानून को ताक पर रखकर राजकाज और वित्तीय प्रबंधन के झोला छाप विशेषज्ञों से भी ऊंचा उछल रहा है शेयर बाजार और मीडिया बल्ले बल्ले है।आंकडो़ं के कल में माहिर बाजीगर ख्वाबी पुलाव खूब पका रहे हैं।जायका ले लें।

अर्थशास्त्रियों की राय हो हल्ले में सिरे से गायब हैं या फिर वे सत्ता समीकरण के मुताबिक न होने से हाशिये पर हैं।झोलाछाप स्रवत्र हावी हैं।

बहरहाल मुझे चमत्कारों पर यकीन नहीं है।पिछले अप्रैल 2013 के हमारे खास दोस्त और तेज तर्रार पत्रकार जगमोहन फुटेला को ब्रेन स्ट्रोक हो गया था।

अगस्त तक फुटेला बोलने की हालत में नहीं थे।वे विकलांगता के शिकार होकर बिस्तर में कोमा जैसी हालत में निष्क्रिय पड़े रहे पिछले तीन साल से।

इस बीच हाल में मैं पालमपुर के रास्ते चंडीगढ़ और जालंधर में थे,तो उस वक्त भी किसी से फुटेला के बारे में कोई खबर नहीं मिली थी।

अगस्त,2013 में फुटेला के बेटे अभिषेक से बात हुई थी,तो उसके बाद से उनसे फिर बात करने की हिम्मत भी नहीं हुई। अभिषेक और परिवार के लोगों ने जिस तरह फुटेला को फिर खड़ा कर दिया है,उससे हम इस काबिल बेटे और परिजनों के आभारी है कि उनकी बेइंतहा सेवा से हमें अपना पुराना दोस्त वापस मिल गया है।

पहली जनवरी को फुटला ने चुनिंदा मित्रों को फोन किया।मुझे बी पोन किया ता लेकिन यात्रा के दौरान वह मिसकाल हो गया।

कल रात मैसेज बाक्स में फुटेला का संदेश मिल गया और तुरंत उसके नंबर पर काल किया तो तीन साल बाद फुटेला से बातचीत हो पायी।यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।हम फुटेला के पूरीतरह ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं।आप भी करें तो बेहतर।

जनसत्ता में हमारे सहयोगी मित्र जयनारायण प्रसाद को भी ब्रेन स्ट्रोक हुआ था पिछले साल नासिक में ,जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत भी घोषित कर दिया था।आनन फानन उन्हें कोलकाता लाया गया और वे जिंदा बच निकले।

जाहिर है कि जिंदगी और मौत भी अस्पतालों की मर्जी पर निर्भर है जो क्रय क्षमता से नत्थी है शिक्षा की तरह।बुनियादी जरुरतों और सेवाओं की तरह।

जयनारायण की भी आवाज बंद हो गयी थी और वे भी विकलांगता के शिकार हो गये थे।लेकिन महीनेभर में वे सही हो गये।आवाज लौटते ही उनने फोन किया। महीनेभर बाद से वे फिर जनसत्ता में काम कर रहे हैं।

फुटेला के ठीक होने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा।

कल उसने कहा कि तीन चार महीने और लगेंगे पूरी तरह ठीक होने में और उसके बाद फिर मोर्चे पर लामबंद हो जायेंगे।

जिन मित्रों को अभी खबर नहीं हुई ,उनके लिए यह बेहतरीन खबर साझा कर रहे हैं।तमाम बुरी खबरों के बीच इस साल की यह शायद पहली अच्छी खबर है।

तीन साल से देश दुनिया से बेखबर रहने के बाद फुटेला के इस तरह सक्रिय हो जाने से बहुत अच्छा लगा रहा है।आज इतना ही।

बाकी जीने को मोहलत मिलती रही तो आपकी नींद में खलल भी डालते रहेंगे।


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