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Saturday, February 4, 2017

सिर्फ आयकर दाताओं को राहत का बजट और अंधाधुंध निजीकरणका किस्सा! पलाश विश्वास



सिर्फ आयकर दाताओं को राहत का बजट और अंधाधुंध निजीकरणका किस्सा!

पलाश विश्वास

देश की आबादी 133 करोड़ है।33 करोड़ लोगों के पास आधार कार्ड नहीं है।बजट के आंकड़ों के मुताबिक जनसंख्या 125 बतायी गयी है और इन 125 करोड़ में सिर्फ सवा तीन करोड़ लोग आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं।जिनमें से साढ़े पांच लाख लोग पांच लाख से ज्यादा आयकर जमा करते हैं।आयकर छूट की बाजीगरी से सरकार ने अपनी आय बढ़ाने का इंतजाम कर लिया है। एक हाथ से 15,500 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है, तो दूसरी ओर बड़ी आय वालों से कर वसूली में अधिभार जोड़े जाने पर 27,700 करोड़ सरकार के खाते में आने की उम्मीद बनी है। वित्त मंत्रालय ने रुपए की तरलता प्रणाली को सॉफ्टवेयर से जोड़ा है। इससे 25 लाख नए लोगों को आयकर प्रणाली से जोड़ा जाएगा। आयकर के दायरे में स्टार्ट अप कंपनियों की संख्या बढ़ेगी। साथ ही लघु और मझोले उद्योगों और छोटे कारोबारियों के बड़े वर्ग को आयकर के दायरे में लाने की तैयारी है।

अगर यह मान लें कि सवा तीन करोड़ लोग आयकर देते हैं,तो यह संख्या 133 करोड़ के मुकाबले कितनी है,पहले इसे समझ लीजिये और मध्यवर्ग के इस छोटे से हिस्से को आयकर में मामूली छूट से देश के गरीब  किसानों, मजदूरों, मेहनतकशों ,वंचितों और बहुजन सर्वहारा जनगण के गरीबी उन्मूलन के लिए कितनी दिशाएं खुलती हैं,उसका अंदाजा लगा लीजिये।

आयकर छूट के आइने से ही पढ़े लिखे समझदार लोग बजट को लेकर बल्ले बल्ले हैं।फिर एक करोड़ लोगों को घर दिलाने का वायदा है।बेघर लोगों को इससे कितनी राहत मिलेगी ,अभी कहना मुश्किल है।लेकिन इस पर जरुर गौर करें कि आवास का धंधा प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज है और अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण, स्मार्ट शहर, इत्यादि के बहाने महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बे में किसानों की बेदखली के बाद खेतों पर तमाम आवास परियोजनाएं बनी हैं,जहां गरीबों को कोई छत मिली नहीं है।

कोलकाता,मुंबई ,दिल्ली जैसे महानगरों में झुग्गी झोपड़पट्टी और फुटपाथों का भूगोल बदला नहीं है।गृह निर्माण के लिए सरकारी खजाना गरीबों के लिए कितना है और कितना प्रोमोटर बिल्डर माफिया के लिए है,इस पर चर्चा की जरुरत नहीं है।

हम चूंकि नैनीताल की तराई में पले बढ़े हैं और जन्म भी वहीं से है तो पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान समाज से हमारा नाभिनाल का संबंध है।हम बचपन से पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों के कृषि वैज्ञानिक समझते रहे हैं।आज पंजाब में भी गोवा के साथ वोट गिर रहे हैं।गौरतलब है कि इन विधानसभा चुनावों की कमान आरएसएस के स्वयंसेवकों के हाथ में है और उनका ट्रंप कार्ड हिदुत्व का एजंडा है।

गौरतलब है कि राममंदिर निर्माण अभियान के साथ डिजिटल कैशलैस मेकिंग इन इंडिया नत्थी सत्यानाश के मकसद से राजनीतिक आर्थिक सुधारों का केसरिया नक्शा यह आम बजट है जिसमें भारतीय रेल को समाहित करके रेलवे के निजीकरण का मास्टर प्लान है।

मजहबी सियासत के रामवाण के निशाने पर जो जनगण है,उनके लिए आर्थिक सुधारों का यह बजट समझ में नहीं आ रहा है,सही है।लेकिन जो बजट समझने का दावा कर रहे हैं और बजट की दिशा सही बता रहे हैं,वे भी ठीक से बता नहीं पा रहे हैं कि आखिर वह सही दिशा है क्या।

इसी बीच भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य जल्द शुरू होगा। रायपुर में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में योगी आदित्यनाथ ने संवाददाताओं से कहा कि यह भगवान राम का ननिहाल है और ज्योतिष मान्यता है कि जब भगवान राम ननिहाल में विराजमान हो जाएंगे तब अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

लेनदेन में पारदर्शिता का नजारा डिजिटल कैशलैस इंडिया है,जिसके तहत एटीएम में नकदी निकासी की हदबंदी खत्म होते न होते मीडिया वृंद गान चालू है नोटबंदी को जायज बताने का जबकि चूंचूं का मुरब्बा कुल मिलाकर इतना है कि कालेधन पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने 3 लाख रुपए से ज्यादा कैश लेन-देन पर रोक लगा दी है। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने साल 2017-18 के बजट में 3 लाख रुपए से ज्यादा के कैश ट्रांजैक्शन को बैन करने की घोषणा की थी।

इतना ही नहीं, अगर कोई 15 लाख रुपए से अधिक कैश रखना चाहेगा तो उसे इसके लिए आयकर आयुक्त से अनुमति लेनी होगी। कैश से लेन-देन को सीमित करने के लिए सरकार कानून भी बना सकती है। इस मामले में सरकार का कहना है कि जब 3 लाख रुपए से ज्यादा के कैश लेनदेन पर बैन लागू हो जाएगा तो ज्यादा कैश रखने का कोई लॉजिक नहीं रह जाता। सारा काम तो डिजिटल पेमेंट के जरिए ही होगा।

बहरहाल राहत यह बतायी जा रही है कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन पेमेंट पर सर्विस चार्ज की अधिकतम सीमा तय कर सकती है। सरकार का मानना है कि चेक पेमेंट पर खर्च ज्यादा आता है लेकिन इस पर सर्विस चार्ज नहीं लगता। इसे देखते हुए ई-पेमेंट पर ज्यादा सर्विस चार्ज लगाना वाजिब नहीं है।

डिजिटल लेनदेन के जोखिम से निबटने के इंतजाम किये बिना पूरी अर्थव्यवस्था को लाटरी में तब्दील करने की कवायद है।सुप्रीम कोर्ट,संसद और संविधान की कुली अवमानना के तहत हर अनिवार्य सेवा के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया जा रहा है और आधार के जरिये ही डिजिटल पेनमेंट की योजना है।जिसके जोखिम का खुलासा यह है कि  भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने व्यापक कार्रवाई करते हुए आधार से जुड़ी सेवाएं प्रदान कर रहीं 12 वेबसाइटों और गूगल प्लेस्टोर पर उपलब्ध 12 मोबाइल एप को बंद कर दिया है। गौरतलब है कि गैरकानूनी रूप से सेवाएं प्रदान कर रहीं इन वेबसाइट्स व एप्स पर लोगों से अधिक शुल्क भी वसूला जा रहा था।

यूआईडीएआई के सीईओ अजय भूषण पांडे ने बताया कि अधिकारियों को ऐसी 26 अन्य फर्जी और गैरकानूनी वेबसाइटों और मोबाइल एप्स को बंद करने का आदेश भी दिया है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई ऐसी अनधिकृत वेबसाइटों और मोबाइल एप्स को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।

हर खाते में पंद्रह लाख जमा कराने की तर्ज पर यूनिवर्सल इनकाम केतहत न्यूनतम सुनिश्चित आय योजना का बड़ा शोर था।वह बजट प्रावधान में ख्वाबी पुलाव साबित हो गया है।सुनहले दिनों के ख्वाब की तरह।

दूसरी तरफ,अर्थ व्यवस्था और तहस नहस उत्पादन प्रणाली,फर्जी विकास और विकास दर के फर्जीवाड़ा का नजारा यह है कि पंजाब जैसे खुशहाल सूबे में बेरोजगार जवान को चुनाव प्रचार के जरिये रोजगार तलाशने की जरुरत आन पड़ी है और चुनाव निबटने के बाद वे रोजगार खो बैठे हैं।अब देहात में चुनाव में ही बेरोजगार युवाजनों को घर बैठे कमाई का मौका मिलता है।यह हमारी आजादी है।यह हमारी तरक्की है।

भारत ही नहीं, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया से लेकर यूरोप के कोने कोने में जहां भी खेती होती है,वहां पंजाब के किसान  खेती करते हुए मिलेंगे।

खेती के संकट की वजह से पंजाब में अर्थव्यवस्था सिरे से बेहाल है और वहां पूरी की पूरी नई पीढ़ी नशाग्रस्त है तो दक्षिण भारत से लेकर पश्चिम भारत और पूर्वी भारत में किसान थोकदरों में आत्महत्या कर रहे हैं पहली और दूसरी हरित क्रांति के बावजूद।कृषि विकास दर शून्य के करीब पहुंच गयी है।

आंकड़ों के फर्जीवाड़े के मुताबिक गलत आधार वर्ष और गलत पद्धति से मनमर्जी मुताबिक विकास दर बताने वाले लोग फिरभी कृषि विकास दर दो ढाई प्रतिशत कुछ भी बताते रहे हैं।

अब कृषि संकट को निबटाये बिना जल जंगल जमीन से बेदखली का तांडव जारी रखते हुए बिल्डर प्रोमोटर मीफिया गिरोहों को खुल्ला छूट देते हुए बजट में कृषि विकास दर एक झटके से 4.1 तक बढ़ाने का दावा किया गया है।

इससे बड़ा सफेद झूठ पारदर्शिता के डिजिटल कैशलैस मेकिंग इन इंडिया में क्या क्या हैं,वह पता लगाना अभी बाकी है।

वित्तीय घाटा जस का तस बने रहने और बढ़ते जाने  की आशंका है।सरकारी खर्च में वृद्धि के जरिये निजीकरण और उदारीकरण को जायज ठहराने की कोशिश हो रही है।पटरियों पर बुलेट ट्रेनों की जगह कारपोरेट कंपनियों की ट्रेंनें दौड़ाने की तैयारी है तो भारतीय रेल के अलावा सारे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के विनिवेश का एजंडा है।

मसलन, सरकार ने विनिवेश के लिए कामकाज तेजी से शुरू कर दिया है। करीब आधा दर्जन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेची जाएगी, संभव है कि सरकार मार्च से पहले कई कंपनियों के विनिवेश का काम पूरा कर ले।

सरकारी कंपनियों में हिस्सा बेचने के लिए सलाहकारों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि सरकार कई कंपनियों में पूरी हिस्सेदारी बेचेगी।

सरकार बीईएमएल में 26 फीसदी हिस्सा मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ बेचेगी। वहीं पवन हंस में पूरा 51 फीसदी हिस्सा मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ बेचेगी। ब्रिज एंड रूफ कंपनी लिमिटेड का 99.35 फीसदी हिस्सा बिकेगा। भारत पंप्स एंड कम्प्रेशर्स में पूरी 100 फीसदी हिस्सेदारी बिकेगी। हिंदुस्तान फ्लोरोकार्बन में एचओसीएल का 56.43 फीसदी हिस्सा बिकेगा।

साथ ही सरकार की ओर से कंस्ट्रक्शन से जुड़ी 4 कंपनियों का भी विनिवेश किया जाएगा। हिंदुस्तान प्रीफैब, इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स लि., एचएससीसी इंडिया और नेशनल प्रोजेक्ट्स कंस्ट्रक्शन कॉर्प इन चारों कंपनियों में पूरी हिस्सेदारी बिकेगी। इन कंपनियों का सरकारी कंपनियों में विलय होगा।

जाहिर है कि देश के संसाधन बड़े पैमाने पर नीलाम करने की आगे तैयारी है।गौरतलब है कि बजट पेश करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विज्ञान भवन में सीआईआई, फिक्की और एसोचैम के अधिकारियों से मुलाकात की। बजट में किए गए कई एलानों को लेकर उन्होंने कारपोरेटइंडिया को सफाई भी दी।

गौर करें कि जेटली ने कहा कि 90 फीसदी एफडीआई ऑटोमैटिक रूट से आता है, एफआईपीबी को हटाने पर रोडमैप बनाया जाएगा जिस पर काम शुरु हो गया है।

जीएसटी पर वित्त मंत्री ने कहा कि आनेवाले कुछ महीनों में जीएसटी लागू हो जाएगा। एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इन बातों का ध्यान जीएसटी में रखा जाएगा।

इन सब के बीच वित्त मंत्री ने राजनीतिक पार्टियों के चंदे पर भी सफाई दी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा देने का विकल्प बेहतर है। उन्होंने ये भी कहा कि बॉन्ड को बैंक से खरीद सकते हैं और इसे इस्तेमाल करने के लिए कुछ ही दिन दिए जाएंगे। इलोक्टोरल बॉन्ड से पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता आएगी। इलेक्टोरल बॉन्ड को बैंक से खरीद सकते हैं। ये बॉन्ड चेक, कैश और डिजिटल पेमेंट से खरीदे जा सकते हैं। पार्टियों को चुनाव आयोग को एक अकाउंट दिखाना पड़ेगा और पार्टियां कुछ ही दिनों मे बॉन्ड को रिडीम कर पाएंगी।

सरकार अब मान भी रही है कि नोटबंदी का असर विकास दर पर होने लगा है।मगर पालतू मीडिया अब बजट से नोटबंदी नरसंहार को जायज साबित करने में लग गया है।सरकारी खर्च बहुत ज्यादा दिखाने के करतब के बावजूद सच यह है कि बजट में सामाजिक सुरक्षा की कोई दिशा नहीं है और रोजगार सृजन का कोई रास्ता बना है और आर्थिक विकास का नक्शा कहीं नहीं दीख रहा है।

हम अखबारी नौकरी की वजह से पिछले 36 साल से वातानुकूलित कमरे में कंप्यूटर और टेलीप्रिंटर फिर टीवी लाइव के जरिये बजट देखते रहे हैं।

इन 36 सालों में बजट को देखने समझने की पढ़ी लिखी जनता की दृष्टि बदली नहीं है।लोगों की हमेशा नजर आयकर छूट पर होती है और क्या सस्ता हुआ क्या महंगा,इसका हिसाब किताब जोड़ा जाता रहा है।इसके आगे लोग कुछ भी देखते नहीं हैं।

दूरी तरफ से आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्था में हलचल,उलटफेर,इन सबका आम जनता से कोई मतलब नहीं होता।

दरअसल आम लोगों की क्रय शक्ति इतनी कम होती है कि बाजार में बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं के अतिरिक्त कुछ खर्च करने का सामर्थ्य उनका होता नहीं है।सस्ता हो या मंहगा, जीने के लिए जरुरी चीजें और सेवाएं खरीदने की उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती है और इसलिए टैक्स का कोई हिसाब वे जोड़ते नहीं हैं।

अधिकतम सवा तीन करोड़ लोगों के अलावा बाकी करीब 130 करोड़ जन गण के लिए आयकर छूट भी बेमानी है।हम देशभर में सेक्टर दर सेक्टर कर्मचारियों से बजट पर एक दशक से ज्यादा समय चर्चा करते रहे हैं,वे भी आयकर छूट,सस्ता महंगा के अलावा बजट में घुसना नहीं चाहते।

अंग्रेजी अखबारों के विशेषांक और  बजट दस्तावेज निवेशकों के अलावा आम लोगों को पढ़ने की आदत भी नहीं है।वे दरअसल कारपोरेट और मार्केट का लोखा जोखा है।जिन्हें समझने की दक्षता आम जनता की होती नहीं है।जो अमूमन हिसाब जोड़ते भी नहीं है।जैसा हिसाब बता दिया,बिना जांच पड़ताल के चुका देने में ही उनको राहत है।

लक्ष्य और प्रावधान,सरकारी खर्च,योजनाओं का तिलिस्म,कर छूट कर माफी की हकीकत से बाकी जनता अनजान है।

मीडिया की नजर राजनीति की भी नजर होती है और ज्यादातर राजनेताओं को अपने भत्तों और कमाई,आयकर के अलावा सच में कोई दिलचस्पी होती नहीं है।  

इस बार पहली बार हम बजट के मौके पर राष्ट्रपति के अभिभाषण,आर्थिक समीक्षा और बजट को ठेठ देहात में बैठकर अपढ़ अधपढ़ जनता के साथ देख रहे थे।जिनमें पढ़े लिखे मामूली हिस्से को अखबारी सुर्खियों के अलावा आर्थिक मुद्दों में खास दिलचस्पी नहीं है।बजट की खबरें वे पढ़ते भी नहीं है।बजट लाइव भी देखते नहीं है।हालांकि हर घर में अब टीवी और मोबाइल दोनों है।

हम महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल के कर्मक्षेत्र नोहाटा मछलंदपुर इलाके में थे।महाप्राण भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के कानून मंत्री बने थे।पाकिस्तान के संविधान की मसविदा भी उन्होंने तैयार किया था।पूर्वी पाकिस्तान में दंगा रोक पाने में नाकाम होकर वे भारत चले आये तो इसी इलाके में मृत्यु तक सक्रिय रहे। यह वनगांव और रानाघाट चाकदह के बीच विशुध अनुसूचित किसानों का इलाका है,जिनमें नब्वे फीसद लोग मतुआ नमोशूद्र हैं।मतुआ केंद्र ठाकुर नगर भी इसी इलाके में है।इस इलाके से चुनाव लड़कर हारते रहे हैं महाप्राण।

आजादी के सत्तर साल बाद भी साम के बाद तमाम गांव अंधरे में घिरे होते हैं।कहीं कहीं पक्की सड़कें बनी है।उपजाऊ खेती का यह इलाका है।उसके पार पश्चिम दिशा में बर्दमान और हुगली के सबसे उपजाऊ इलाके हैं तो उत्तर में नदिया होकर मुर्शिदाबाद मालदह के उपजाऊ खेत हैं।पूर्व में देगंगा से लेकर भागड़ बशीर हाट हिंगलगंज के सीमावर्ती इलाके हैं।

यह सारा इलाका बहुजनों का है।जहां उपजाऊ खेती के बावजूद हर गांव से बच्चे और जवान भारत और भारत से बाहर खाड़ी देशों में मजदूरी करने को निकलते हैं। भारत में पांच साला योजनाओं और केंद्र राज्य सरकारों के सालाना बजट और विकास योजनाओं से मुक्तबाजार की अर्थव्यवस्था के मुताबिक मोटर साइकिल,मोबाइल,स्मार्ट फोन,टीवी के अलावा उनकी जिंदगी में कुछ भी बदला नहीं है।

यह किस्सा झारखंड छत्तीसगढ़ के पठारों के पार मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश ,बिहार और पंजाब हरियाण से लेकर सारे देश के केत खलिहानों का है,जहां किसानों की जरुरतें बाजार के मुताबिक बढ़ है तो खेती की लागत भी बढ़ी है।

नकदी के लिए खेत बेहिसाब हस्तांतरित हुए हैं तो बेदखली अटूट सिलसिला है।क्रयशक्ति है नहीं,खेती चौपट है और बच्चे आम तौर पर पढ़ लिख गये तो बेराजगार हैं और किसी तरह के आरक्षण और कोटे से उनकी जिंदगी बदली नहीं है।

आरक्षण और कोटे का लाभ जिन्हें मिला है,वे भी देश के महज दो करोड़ वेन भोगियों और पेंशन भोगियों में शामिल हैं और उनमें बड़ी संख्या आयकरदाताओं की भी हैं।बहुजनों में ओहदों का खास रुतबा है।

आईएएस पीसीएस आईआरएस आईपीएस तो बहुजनों में बहुत कम हैं और जो हैं,उनतक आम बहुजनों की पहुंच नहीं है।डाक्टर इंजीनीयर प्रोफेसर से लेकर ग्रुप डी के कर्मचारी भी बहुजन समाज के नेता हैं और उनका हिसाब किताब में आम जनता के लिए कोई जगह है नहीं।यह रुतबादार तबका कुछ लाख से भी ज्यादा नहीं है।

सरकारी कर्मचारियों, मध्यवर्ग और बहुजनों के रुतबेदार ओदेदार कामयाब पैसेवालों को खुश करने का गणित है बजट।इसी वजह से आयकर छूट के गणित से बजट को बहुत अच्छा बताया जा रहा है।

इस दलील से सियासत के खेमों में भी सन्नाटा है और हाशियें पर खड़ी जलजंगल जमीन के वंचित 133 करोड़ में 130 करोड़ आम जनता की सेहत का किसी को कोई परवाह नहीं है।

सरकार का मानना है कि ज्यादा कर वसूली और सरकारी उपक्रमों की हिस्सा बिक्री से उसे इतना राजस्व मिलेगा कि राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि अगले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य वास्तविक है और इसे हासिल कर लिया जाएगा। अगले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.2 फीसदी रखा गया है। वित्त मंत्री बजट बाद उद्योग व्यापार के प्रतिनिधियों से बातचीत कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने बजट से संबंधित दूसरे पहलुओं पर भी चर्चा की।

अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में जेटली ने खुलासा किया कि न केवल 2017-18 बल्कि इससे अगले साल के लिए तय 3 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य भी हासिल कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017-18 के बजट में बड़े नोटों बंद करने से हुए सभी फायदे पूरी तरह से शामिल नहीं हैं।

उन्होंने दावा किया  कि नोटबंदी के कारण अघोषित आय पर ज्यादा कर के रूप में सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा।

वित्त मंत्री ने कहा, 'जहां तक नोटबंदी का सवाल है तो हम यह ध्यान रखेंगे कि इससे जो भी राजस्व और अन्य लाभ होते हैं उनको पूरी तरह से इसमें शामिल नहीं किया गया है। पिछले दो साल मे कर राजस्व की वृद्घि दर 17 फीसदी रही है। लेकिन इस साल हमने इसे 12 फीसदी पर ही रखा है। जाहिर है इस लक्ष्य को हम पार कर लेंगे।'

उन्होंने कहा कि सरकार कर राजस्व में बढ़ोतरी से उत्साहित है। इसलिए उसने वर्ष 2017-18 के लिए जीडीपी का 3.2 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है जबकि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 3.5 फीसदी है। सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए इस घाटे को जीडीपी का 3 फीसदी रखने की भी योजना बनाई है।

वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने विनिवेश का लक्ष्य काफी ज्यादा रखा है। ज्यादा से ज्यादा सरकारी उपक्रम सूचीबद्घ कराए जाएंगे। इनमें सामान्य बीमा कंपनियां भी शामिल हैं। इसका मकसद उन्हें ज्यादा प्रतिस्पद्घी और पारदर्शी बनाना है। साथ ही सूचीबद्घता की जरूरतों के अनुसार सरकार को इन उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी भी घटानी है। जेटली को उम्मीद है कि सूचीबद्घता और हिस्सा बिक्री से सरकार को पर्याप्त राजस्व मिल जाएगा। जेटली ने कहा कि लालफीताशाही को कम करने के लिए विदेशी निवेश संवद्र्घन बोर्ड (एफआईपीबी) को खत्म करने का समय आ गया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि 90 फीसदी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश स्वत: मार्ग से आ रहा है। एफआईपीबी खत्म करने के लिए आने वाले दिनों में पूरी योजना पेश की जाएगी।




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