Friday, October 10, 2025
पत्रकारिता को व्यवसाय,कैरियर और सीढ़ी क्यों बना दिया?
क्या है #पत्रकारिता_का_मिशन?
पत्रकारिता को #व्यवसाय, #कैरियर और #सीढ़ी कैसे बनाया गया?
पत्रकारिता को मिशन मानकर जिन्होंने शुरुआत की उनके पास डिग्रियां नहीं थीं।
कोई व्यवसायिक प्रशिक्षण नहीं था।
यह मिशन आखिर क्या है?
जनता के मुद्दे पर स्टैंड कौन लेता है?
साहित्यकार,कलाकार, बुद्धिजीवी क्या स्टैंड लेते हैं?
हां,लेते थे।तभी मुक्तिबोध ने कहा था,किस ओर हो तुम?
तब पत्रकारिता और साहित्य को अलग करना मुश्किल था। कलाकार,बुद्धिजीवी और खिलाड़ी तक स्टैंड लेते रहे हैं।जनता के हक में लड़ते रहे हैं। उन सभी को हम जानते हैं। लेकिन वे अब आदर्श नहीं हैं।
यही #लड़ाई दरअसल #स्टैंड लेना है।
अखबारों और पत्रिकाओं के संपादकीय में यह स्टैंड होता था।आज है?
स्टैंड न लेकर पत्रकारिता करना, साहित्य और कला में कलावादी दृष्टिकोण और सभी विधाओं,माध्यमों, कलाओं का व्यवसायीकरण क्या जनता के हक में है?
आज #विश्वविद्यालयों और #जनसंचार संस्थानों, #मीडिया हाउस में थोक पैमाने पर #डिग्रियां बांटी जाती हैं।
विश्विद्यालयों और विभिन्न संस्थानों में कौन लोग पत्रकारिता पढ़ाते हैं? उन्होंने कितनी और कैसी पत्रकारिता की है?
निजी तौर पर छात्र जीवन से 1973 से मैं पत्रकारिता करता रहा हूं। 1980 से 2016 तक हमने बड़े अखबारों के संपादकीय में कम किया है।
पूरे छत्तीस साल हमने हर रात अखबारों के संस्करण निकाले हैं। इसमें #जनसत्ता में 25 साल तक।
हमने इन 36 सालों में हर खबर पर स्टैंड लिया है। इसके लिए अखबारों के #मालिकों, #मैनेजरों और #कॉरपोरेट प्रबंधन से टकराव मोल लिया है। नौकरियां छोड़ी हैं।
क्योंकि पत्रकारिता मेरी आजीविका और नौकरी जरूर थी, लेकिन व्यवसाय और कैरियर कभी नहीं था।
हजारों पत्रकारों के साथ काम किया है। कम से कम वे जानते हैं।
सिर्फ मैं क्या, #अस्सी_के_दशक तक लगभग सभी पत्रकारों के लिए पत्रकारिता मिशन था।व्यवसाय और कैरियर नहीं। इनमें से ज्यादातर के पास पत्रकारिता का कोई प्रशिक्षण नहीं था।डिग्रियां नहीं थीं।
व्यवसाय और कैरियर किन लोगों ने बनाया?
क्यों बनाया?
किनके हित में बनाया?
क्यों पत्रकारिता में #जनता_के_मुद्दे गायब हैं?
क्यों आज पत्रकार किसी मुद्दे पर स्टैंड नहीं लेते?
क्यों जनता के हक में पत्रकार नहीं लड़ते?
स्टैंड लेने वाले लड़ाकू पत्रकारों को हश्र क्या होता है?
#निविदा पर अस्थाई नियुक्ति के समय में यह सवाल बेकार है। लेकिन अंजाम हम देखते जरूर रहते हैं।
Thursday, October 9, 2025
संपादकों का सफाया
संपादकों का सफाया
पलाश विश्वास
पत्रकारिता का पतन तब से हुआ, जब एक कार्पोरेट बहुत बड़े अखबार ने बाजार की पत्रकारिता के लिए प्रशिक्षण शुरू किया। एम के अकबर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने बाजारू पत्रकारों की लाइन लगा दी।
बांग्ला और अंग्रेजी के एक बड़े समूह ने सत्ता के गलियारे में अच्छी पहुंच वाले पत्रकारों को बेहतरीन संपादकों को हटाकर संपादक बनाने का सिलसिला शुरू किया।
कभी अज्ञेय, रघुवीर सहाय, सागरमय घोष, विवेकानंद मुखोपाध्याय, प्रभाष जोशी, धर्मवीर भारती जैसे लोग संपादक होते थे।
संपादकीय टीम के लोग कई भाषाओं के विद्वान होते थे।
हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत और अपनी भाषा के अलावा। उर्दू फारसी भी जानते थे।उनका अध्ययन जबरदस्त होता था। संपादन के अलावा साहित्य, खेल, संगीत, कला माध्यमों, अर्थशास्त्र, इतिहास,भूगोल में उनकी गहरी पैठ होती थी।वे हर मुद्दे पर स्टैंड ले सकते थे।
सबसे पहले स्टैंड लेने वाले संपादकों का सफाया हो गया। फिर मालिकों के हित साधने वाले सत्ता के नाभिनाल से जुड़े संपादकीय अनुभव शून्य संवाददाताओं को, अपराध संवादाताओं को भी संपादक बनाया जाने लगा। डिजिटल क्रांति के बाद असल संपादक तो विज्ञापन मैनेजर होने लगे।
संपादक भी कॉरपोरेट मैनेजर हो गए।
उनकी बोल चल, वेश भूषा, रहना शान कॉरपोरेट हो गए।
वे राजनीति में भी आए। सांसद,मंत्री भी बनाए गए।
Tuesday, October 7, 2025
मीडिया में देश कहां है? खबरें कहां हैं?
#पत्रकारिता इतनी आसान है क्या?
अस्सी नब्बे के दशक तक तकनीकी रूप में पिछड़े देश में किसी भी अखबार को पढ़ते हुए पूरे देश की खबरें मिल जाती थी। तब भाषाई अखबार आठ या दस पेज के होते थे।विज्ञापन इतने नहीं होते थे। ऑफसेट मशीनें नहीं होती थीं।#कंप्यूटर,#इंटरनेट नहीं होते थे और न ही हर शहर से अखबार निकलते थे।खबरें टेलीप्रिंटर, टेलीग्राफ और हाथ की लिखी खबरें डाक से आती थीं।
आज सारी सुविधाओं से लैस मीडिया है। भाषाई अखबार भी रंगीन और बीस तीस पेज के होते हां।चार पांच पेज पहले पेज की तरह छापे जाते हैं। पहले पेज पर भी #विज्ञापन होते हैं। सैकड़ों #टेलीविजन_चैनल हैं।लाखों #यूट्यूबर हैं। आईफोन से,लैपटॉप और ड्रोन से
#एआई की मदद से पत्रकारिता होती है। कारों,हेलीकॉप्टर,विमानों से चलते हैं पत्रकार।
खबरें कहां हैं?
खबरों में देश कहां है?
देश के लोग खान हैं?
जल जमीन जंगल पहाड़ मरुस्थल रण द्वीप कहां हैं?
आज भी इस देश के लोग गांवों में रहते हैं।ज्यादातर लोग किसान हैं या मजदूर है।मुख्य आजीविका #कृषि है।
#मीडिया में खेती,किसान,मजदूर और गांव कहां हैं?
पहले अखबारों में एक पेज भी अपराध पर केंद्रित नहीं होता था। मनोरंजन और बाजार अखबारों में नहीं होते थे।
आज #राजनीति, #मनोरंजन और #अपराध के अलावा,नेताओं की खबरों के अलावा क्या है?
ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है देश।मीडिया में अर्थव्यवस्था कितनी है?
#सूचना_महाविस्फोट का दौर है।दुनिया एक गांव है। मीडिया में सूचनाएं कहां हैं?
पहले पढ़े लिखे लोग हर #अखबार के संपादकों के बन जानते थे।आज जितने संपादकों को लोग जानते हैं? #संपादक हैं ही कितने?
पहले संपादक सर्वेसर्वा होते थे,अब क्या हैं?
#सोनम #वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद सारी चर्चा वांगचुक को लेकर है।
#लद्दाख कहां है? लद्दाख के लोग कहां है?
पहले लाठीचार्ज या गोलीकांड की खबर बहुत बड़ी खबर होती थी।अब नरसंहार भी खबर है क्या? मुठभेड़ खबर है?
दुर्घटनाएं और आपदाएं बड़ी खबर बनती हैं।फॉलोअप कहां है?
#आंदोलनों की खबरें खूब छपती थीं।आंदोलन अब भी हो रहे हैं।देशभर में आंदोलन खूब हो रहे हैं। आंदोलन का दमन भी खूब हो रहा है।खबरें कहां हैं?
#राजकाज की खबरें और नीतियों की आलोचना कहां है?
महिमा मंडन और चरित्र हनन के अलावा सहमति का विवेक और असहमति का साहस कहां है?
पहले पत्रकारों की रीढ़ साफ नजर आती थी।
अब रीढ़ कहां है?
#असम में लाखों छात्र,युवा और आदिवासी सड़कों पर हैं।
खबरें कहां हैं?
यह पूरा उपमहाद्वीप आपदाओं के शिकंजे में हैं। रोजगार, आजीविका,खेती किसानी, कारोबार, छोटे और मंझौल उद्योग खत्म हैं। खबरें खान हैं।
भुखमरी, चिकित्सा, शिक्षा, जनसमस्याओं, जनसुनवाई की खबरें कहां हैं?
पहले पूरे जिले में इक्का दुक्का पत्रकार होते थे। जिले और राज्य छोटे हो गए हैं। गांव और कस्बे अब बाजार हैं।
हर गली,हर मोहल्ले में जितने नेता हैं,उतने ही पत्रकार हैं।
पत्रकार कहां हैं?
किसके साथ पत्रकार हैं?
पहले पत्रकार जनता के हक में पत्रकारिता करते थे।
अब किसके लिए होती है पत्रकारिता?
https://www.facebook.com/share/v/16TEYooUwF/
Subscribe to:
Comments (Atom)


