Thursday, October 9, 2025
संपादकों का सफाया
संपादकों का सफाया
पलाश विश्वास
पत्रकारिता का पतन तब से हुआ, जब एक कार्पोरेट बहुत बड़े अखबार ने बाजार की पत्रकारिता के लिए प्रशिक्षण शुरू किया। एम के अकबर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने बाजारू पत्रकारों की लाइन लगा दी।
बांग्ला और अंग्रेजी के एक बड़े समूह ने सत्ता के गलियारे में अच्छी पहुंच वाले पत्रकारों को बेहतरीन संपादकों को हटाकर संपादक बनाने का सिलसिला शुरू किया।
कभी अज्ञेय, रघुवीर सहाय, सागरमय घोष, विवेकानंद मुखोपाध्याय, प्रभाष जोशी, धर्मवीर भारती जैसे लोग संपादक होते थे।
संपादकीय टीम के लोग कई भाषाओं के विद्वान होते थे।
हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत और अपनी भाषा के अलावा। उर्दू फारसी भी जानते थे।उनका अध्ययन जबरदस्त होता था। संपादन के अलावा साहित्य, खेल, संगीत, कला माध्यमों, अर्थशास्त्र, इतिहास,भूगोल में उनकी गहरी पैठ होती थी।वे हर मुद्दे पर स्टैंड ले सकते थे।
सबसे पहले स्टैंड लेने वाले संपादकों का सफाया हो गया। फिर मालिकों के हित साधने वाले सत्ता के नाभिनाल से जुड़े संपादकीय अनुभव शून्य संवाददाताओं को, अपराध संवादाताओं को भी संपादक बनाया जाने लगा। डिजिटल क्रांति के बाद असल संपादक तो विज्ञापन मैनेजर होने लगे।
संपादक भी कॉरपोरेट मैनेजर हो गए।
उनकी बोल चल, वेश भूषा, रहना शान कॉरपोरेट हो गए।
वे राजनीति में भी आए। सांसद,मंत्री भी बनाए गए।
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