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Monday, May 3, 2010

वेदांता को आई लव यू

वेदांता को आई लव यू

नीरज, रायपुर से

http://raviwar.com/

 

छत्तीसगढ़ में तकरीबन 50 मजदूरों को अपनी चिमनी में दबा कर मार डालने के आरोपों का सामना कर रही वेदांता के साथ राज्य के कई मंत्रियों का प्रेम चरम पर है. यह अलग बात है कि दुनिया के कई देशों में बदनाम वेदांता के खिलाफ एमनेस्टी इंटरनेशल जैसी संस्थाओं ने भी गंभीर आरोप लगाए हैं. केंद्र सरकार की कमेटियां भी मानती हैं कि लंदन की इस विदेशी कंपनी वेदांता का देश के कायदे-कानून का पालन करने में यकीन नहीं है. लेकिन 1,800 एकड़ सरकारी जमीन पर वेदांता के बरसों से अवैध कब्जे को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार के कई मंत्री 8 बिलियन डॉलर की टर्न ओवर वाली कंपनी वेदांता रिसोर्सेस की तरफदारी में लगे हुए हैं.

वेदांता


वैसे वेदांता को अस्पताल बनाने के लिये छत्तीसगढ़ की नई राजधानी में केवल एक रुपये में 20.23 हेक्टेयर ज़मीन दिये जाने को लेकर भी खूब शोर मचा था, हालांकि यह मामला शांत हो गया है. लेकिन जमीन कब्जे के मामले को लेकर लोगों की निगाहें सरकार पर ठहरी हुई है.हालांकि जिस तरह से भाजपा सरकार के मंत्री वेदांता के प्रेम में हैं, उसमें उम्मीद कम ही है कि मंत्रियों की बात टाली जाये.

लगभग 1700 एकड़ से अधिक की सरकारी जमीन पर वेदांता ने न केवल अवैध तरीके से कब्जा जमा कर रखा है, बल्कि उस पर कई निर्माण भी कर लिए हैं. इसके अलावा उस पर इस जमीन के पेड़ों को भी काट देने का आरोप है.

इधर सप्ताह भर पहले ही इन अवैध कटाइयों को लेकर उच्चतम न्यायालय ने अदालती आदेश की अवमानना संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय विशेषाधिकार प्राप्त समिति को जांच कर रिपोर्ट देने का आदेश जारी किया है. आरोप है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया गया है.

कब्जा दर कब्जा
छत्तीसगढ़ के राजस्व मंत्री अमर अग्रवाल ने विधानसभा में जो बयान दिया है, उसके अनुसार 1971 में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारतीय एल्युमिनयम कंपनी यानी बालको को 937 एकड़ जमीन दी गई थी. इसके अलावा 1,136 एकड़ जमीन इस शर्त पर अग्रिम आधिपत्य में दी गई थी कि राज्य शासन द्वारा मांग की जाने वाली राशि का भुगतान करना होगा. इस 1,736 एकड़ जमीन के अलावा बालको ने 600 एकड़ से अधिक जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है. इस तरह बालको के कब्जे में 2,700 एकड़ जमीन है.

बालको द्वारा जमीन कब्जे का मामला 1996 में पहली बार तब विवादों के घेरे में आया, जब उसे राज्य शासन ने कब्जे वाली जमीन का प्रीमियम और भू-भाटक की रकम अदा करने का आदेश जारी किया. उस समय बालको भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम था.

मामला राज्य और केंद्र सरकार के बीच मंथर गति से चलता रहा. 2001 में सार्वजनिक क्षेत्र के इस उपक्रम को बहुत चालाकी के साथ विनिवेश के लिए खोल दिया गया. यह किसी भी बड़े सार्वजनिक उपक्रम में पहला विनिवेश था और तब यहां के तकरीबन 7000 श्रमिकों ने दो महीने तक हड़ताल की थी और इसमें तमाम मजदूर संगठन एकजुट थे. लेकिन सारे विरोध धरे रह गये और वेदांता ने 551.5 करोड़ में इसके 51 प्रतिशत शेयर खरीद कर इसे अपने कब्जे में कर लिया.

मंत्री की नहीं, वेदांता की चली
2006 में भाजपा सरकार के वन मंत्री ननकीराम कंवर ने वेदांता द्वारा जमीन कब्जे का मामला उठाया और पूरी नाप-जोख करा कर 1,036 एकड़ जमीन पर स्टरलाईट वेदांता के अतिक्रमण का मामला उन्होंने सामने लाया. लेकिन वेदांता पर कार्रवाई के मामले में ननकीराम कंवर की एक नहीं चली, उलटा उन्हें ही मंत्रिमंडल से चलता कर दिया गया.

वेदांता द्वारा शासकीय भूमि पर कब्जा करने के मुद्दे को लेकर कोरबा के तहसीलदार द्वारा 2004-2005 में छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 248 के तहत सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के 10 मामले दर्ज किए गए थे. इसके अलावा तत्कालीन विधायक भूपेश बघेल की शिकायत पर भी प्रबंधन के खिलाफ 3 मामले दर्ज किए गए थे.

वेदांता द्वारा जमीन कब्जे के इस मुद्दे को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन सरकार की ओर से किसी वरिष्ठ अधिवक्ता या महाधिवक्ता के पेश नहीं होने के कारण सरकार का पक्ष सही तरीके से नहीं रखा जा सका. नतीजतन हाईकोर्ट ने वेदांता प्रबंधन के पक्ष में फैसला दिया कि कोरबा में वेदांता के कब्जे में जितनी जमीन है, उसे अतिक्रमण न माना जाए. उच्च न्यायालय ने 6 फरवरी 2009 को 1,804 भूमि पर वेदांता यानी बालको प्रबंधन का कब्जा अवैधानिक न माने जाने का आदेश दिया, जिसे 25 फरवरी 2010 को उच्च न्यायालय की डबल बैच ने भी मान्य रखा.  
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पहला पन्ना
 

 
 मुद्दा : समाज 

खाप के खिलाफ
ऐसी उम्मीद थी कि जैसे-जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों और राष्ट्रीय आदर्शों का सम्मान व प्रभाव बढ़ेगा, दकियानूसी परंपराओं और सोच का शिकंजा कमजोर पड़ता जाएगा. लेकिन इसके उलट इस समय भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया लगभग अवरूद्ध हो गई है. इसका मुख्य कारण है धर्म की राजनीति का सांस्कृतिक पैकेज, जिसका असली एजेंडा किसी भी तरह महिलाओं और दलितों का दमन है.
राम पुनियानी का विश्लेषण
 
 मुद्दा : अर्थ-बेअर्थ 

हमारा बीपीएल और उनका आईपीएल
हम सरकारी अनुदान हड़पने में किसानों और गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को दोषी ठहराते हैं, जबकि उद्योग और व्यवसाय जगत इनसे कई गुना ज्यादा अनुदान व कर छूट का लाभ उठाता है. 20 हजार करोड़ रुपये का आईपीएल का शहद अरबपतियों में बांट दिया गया है. विडंबना यह है कि यह सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है, जब सरकार खाद्य अनुदान राशि को घटाने पर अड़ी है.
खाद्य और कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का विश्लेषण
     
 मुद्दा : आतंकवाद 

फतवे की आड़ क्यों लेता है लादेन
दुनिया में कई आतंकी इस तरह के फतवों का इस्तेमाल अपनी लड़ाई के लिये कर रहे हैं. जिस तरह की बेवजह हिंसा आतंकवादी करते हैं, क्या वही है इस तरह के फतवों का सच ? डॉ. असगर अली इंजीनियर का विश्लेषण
 
 मुद्दा : समाज 

भुखमरी कैसे खत्म हो
ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक समिति ने सिद्ध किया कि 50 प्रतिशत ग्रामीण गरीब हैं. 76.8 प्रतिशत को पूरा पोषण नहीं मिलता है और 77 प्रतिशत लोग 20 रूपये प्रतिदिन से कम में गुजारा करते हैं. भोपाल से सचिन कुमार जैन का विश्लेषण
     
 बहस : छत्तीसगढ़ 

अपने अरण्य में 'युद्धबंदी'
बस्तर आज दो तरह के अतिवादी विचारों के निशाने पर है. दोनों ओर बंदूकें हैं. दोनों युद्ध को आमादा हैं. देश के पत्रकार और बुद्धिजीवी भी इस युद्ध को जायज ठहरा रहे हैं. अक्षय का विश्लेषण
 
 बहस : बात पते की 

दंतेवाड़ा के सवाल
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों द्वारा इतने बड़े पैमाने पर हत्या को मीडिया और संचार के दूसरे माध्यम बहुत हड़बड़ी और बचकानेपन के साथ नक्सल समस्या को परोस रहे हैं, वह चकित करता है. पलामू, झारखंड से शैलेद्र कुमार का विश्लेषण
 
     
 

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