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Monday, May 3, 2010

Fwd: [Hindi IWP] भटिण्डा में कैंसर के लिये यूरेनियम भी एक कारण हो सकता है



---------- Forwarded message ----------
From: Hindi Water portal <hindi@lists.indiawaterportal.org>
Date: 2010/5/3
Subject: [Hindi IWP] भटिण्डा में कैंसर के लिये यूरेनियम भी एक कारण हो सकता है
To: hindi@lists.indiawaterportal.org


रिसर्च आधारित रिपोर्ट

Author: 
प्रोफ़ेसर सुरिन्दर सिंह
प्रोफ़ेसर सुरिन्दर सिंहप्रोफ़ेसर सुरिन्दर सिंहपंजाब का एक प्रमुख जिला है भटिण्डा, जो कपास उत्पादन के लिये मशहूर है। पिछले कुछ वर्षों से इस जिले में मृत्यु दर में असाधारण वृद्धि देखी गई है। तलवण्डी साबो के गियाना, मलकाना और जज्जल गाँव सर्वाधिक प्रभावित हैं। विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं जैसे पब्लिक एनालिस्ट पंजाब, जन स्वास्थ्य और कल्याण विभाग पंजाब, पंजाब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, खेती विरासत, ग्रीनपीस इंडिया आदि ने अपना ध्यान इस क्षेत्र में लगाया क्योंकि सभी इस इलाके की जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिन्तित हैं। भटिन्डा के सिविल सर्जन ने

इस खबर के स्रोत का लिंक: 
जिस किसी को प्रोफ़ेसर सुरिन्दर सिंह की मूल रिपोर्ट (The Presence of Uranium in Excess in Bathinda Waters can be one of the Reasons of High Cancer Deaths in the District) देखनी हो, वे यहां से डाऊनलोड कर सकते हैं।



कीटनाशकों के शिकार होते पंजाब के किसान

Author: 
सेव्वी सौम्य मिश्रा
चार साल पहले पंजाब के मालवा अंचल ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और इसकी वजह थी यहां कैंसर के मामलों में अत्यधिक वृध्दि। अध्ययन में कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग और इस बीमारी के बीच का अंतर्सम्बन्ध उजागर हुआ। यहां की स्थिति अब भी जस की तस है।

कपास की पैदावार वाले मालवा अंचल में कीटनाशकों का बहुत ज्यादा उपयोग होता है। दशकों से कीटनाशकों का बेतहाशा उपयोग यहां कैंसर के मामलों में हो रही तेज वृध्दि का कारण है। 28 अगस्त 07 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार प्रांत की कुल कीटनाशक खपत का 75 प्रतिशत अकेला मालवा अंचल उपयोग करता है और देश की कुल खपत का 17 प्रतिशत अकेला पंजाब उपयोग करता है। हालांकि 2005-2006 में पिछले वर्ष की अपेक्षा कीटनाशकों के उपयोग में लगभग 13 प्रतिशत की कमी आई थी किंतु इस वर्ष कीट हमले के मद्देनजर इसके उपयोग में व्यापक वृध्दि होने की संभावना है।

इस खबर के स्रोत का लिंक: 
जिस किसी को 'कीटनाशकों की उपस्थिति पंजाब के लोगों के खून में'(Analysis Of Pesticide Residues In Blood Samples From Villages Of Punjab) सीएसई की 2005 में प्रकाशित रिपोर्ट देखनी हो, वे यहां से डाऊनलोड कर सकते हैं।


मालवा क्षेत्र में महामारी बन रहा कैंसर

वेब/संगठन: 
visfot.com
Author: 
उमेन्द्र दत्त, 20 मई 2009
हाल में पंजाब के मालवा क्षेत्र में महामारी बन रहे कैंसर रोग की चर्चा पंजाब विधानसभा चुनावों में हुई। अकाली दल और कांग्रेस दोनों ही मालवा क्षेत्र में कैंसर हस्पताल बनवाने का वायदा किया था। यह एक अच्छा कदम होगा,परंतु होगा अधूरा। अधूरा इसलिए कि कैंसर हस्पताल कैंसर रोगियों और उनके परिजनों को राहत और इलाज की सुविधा तो देगा परंतु कैंसर जिन कारणों से मालवा में मारक बना है, उन कारक तत्त्वों का समाधान नहीं देगा। वास्तव में कैंसर का यह प्रकोप पंजाब के समूचे पर्यावरण तंत्र के ध्वस्त होने का एक संकेत भर है। पंजाब जिस विकराल पर्यावरणीय स्वास्थ्य संकट में फंसा हुआ है कैंसर तो उसका एक पक्ष मात्र है। पर्यावरण में हुई उथल पुथल वातावरण में घुले रसायनों और लगातार प्रदूषित होते जल ने पंजाब की कमोबेश समूची भोजन श्रृंखला को ही विषाक्त बना दिया है। आज कैंसर के साथ-साथ आयुपूर्व बुढ़ापे के लक्ष्ण उभरना, हिड्डियों के रोग और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी रोग अपनी जकड़ में ले रहे हैं। इसलिए मुद्दा एक मात्र कैंसर नहीं वरण समूचा पर्यायवरणीय स्वास्थ्य का विषय है।

कैंसर को एक मात्र रोग मानकर उसके उपचार के वायदों को चुनावों में भुनाना पेचीदा समस्याओं के सरलीकरण करने की राजनीतिक आदत का प्रतीक है। हम समस्याओं की सतही समझ रखते हैं तो समाधान भी उथले होते हैं।

हरित क्रांति से कैंसरग्रस्त हुए पंजाबी पुत्तर

क्या आपको पता है कि हमारे देश में एक ट्रेन ऐसी भी चलती है, जिसका नाम 'कैंसर एक्सप्रेस' है? सुनने में यह बात हतप्रभ करने वाली है, पर यह सच है, भले ही इस ट्रेन का नाम कुछ और हो, पर लोग उसे इसी नाम से जानते हैं। यह ट्रेन कैंसर बेल्ट से होकर गुजरती है। यह ट्रेन भटिंडा से बीकानेर तक चलती है। इसमें हर रोज कैंसर के करीब 70 यात्री सफर करते हैं। जानते हैं यह यात्री कहाँ के होते हैं? पंजाब का नाम तो सुना ही होगा आपने?
इस खबर के स्रोत का लिंक: 


रिसर्च आधारित रिपोर्ट

भटिंडा का भूजल नाईट्रेट से प्रभावित

Author: 
ग्रीन पीस
पानी में जहरभारत में "हरित क्रान्ति" की शुरुआत से अर्थात 1960 से ही कृषि उत्पादन हेतु बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग प्रारम्भ किया गया। खेती का यह मॉडल तथा विभिन्न केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा रासायनिक उर्वरकों तथा इसकी फ़ैक्ट्रियों को दी जाने वाली सब्सिडी की वजह से देश के अधिकतर भागों में कृषि कार्य हेतु रसायनों का भारी मात्रा में उपयोग हुआ। उर्वरकों के इस अंधाधुंध उपयोग की वजह से जहाँ एक तरफ़ पर्यावरण को काफ़ी नुकसान पहुँचा, वहीं दूसरी तरफ़ प्राकृतिक संसाधनों, जल और मिट्टी के साथ-साथ यह खतरा अब मानव जीवन पर भी मंडराने लगा है। "ग्रीनपीस" की भारतीय शाखा ने नाईट्

भटिंडा सहित पंजाब के कई जिलों के पानी में नाईट्रेट का जहर

Source: 
द संडे पोस्ट
पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद चिंताजनक है। सूबे के तीन जिलों मुक्तसर, बठिंडा और लुधियाना में धरती के नीचे पानी में नाईट्रेट की मात्रा बेइंतहा बढ़ चुकी है। नाईट्रेट से जहरीले हुए पानी के इस्तेमाल से लोग कैंसर और अन्य घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यह खुलासा बेंगलुरु के एक गैर-सरकारी संगठन 'ग्रीन पीस इंडिया' ने किया है। ग्रीन पीस इंडिया की नवम्बर 2009 में प्रकाशित रिपोर्ट की प्रति भी संलग्न है। (यह रपट द संडे पोस्ट से ली गयी है।)

पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईट्रेट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती-पुत्र (किसान) सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों में फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईट्रेट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में

--  
Minakshi Arora
Chairperson
Water Community India
hindi.indiawaterportal.org
Delhi-91
91 9250725116

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Hindi mailing list
Hindi@lists.indiawaterportal.org
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