अंग्रेजी राज के दिन याद आ गये
By नैनीताल समाचार on December 6, 2010
अरविन्द मुदगल/जगमोहन डांगी
लगभग अढ़ाई महीने की भीषण बरसात के तांडव से उत्तराखण्ड का कोई हिस्सा अछूता न रहा। कई जानें गई, लोगों के पुश्तैनी आशियाने टूटे, ग्रामीणों को गाँव छोड़ पुनः जंगल तक का रुख करना पड़ा, बंद रास्तों और ठप्प पड़ी संचार व्यवस्था से दूरस्थ क्षेत्रों के बाशिन्दे अलग-थलग पड़ गये। रोजमर्रा की वस्तुओं को पीठ पर लाद कर मीलों पैदल चलना पड़ा और वापिस उसी पैदल मार्ग की ओर रुख करना पड़ा, जो वर्षों से इंसानी उपेक्षा के चलते बदहाल था।
कल्जीखाल ब्लाक के 80 वर्षीय भरोसानन्द को अंग्रेजों के समय की याद आ गयी, जब ग्रामीण मरसा या चौलाई के बदले दुगड्डा से अपने लिये नमक, सीरा, गुड़ और कपड़े इत्यादि अपनी पीठ या खच्चरों पर लाद कर लाते थे। नजीबाबाद के बाद मुख्य मंडी दुगड्डा हुआ करती थी और ढाकर लाने वाले ढाकरियों के रात्रि विश्राम के लिये डाडामंडी, हनुमति, द्वारीखाल, बांघाट, कलेथ, अदवानी, गंगोटी और कंडोलिया पैदल मार्ग के मुख्य पड़ाव हुआ करते थे।
ब्रिटिश काल में इस पैदल मार्ग को पैदल राष्ट्र मार्ग का दर्जा हासिल था और यही मार्ग पौड़ी जिले के दूरस्थ इलाकों को मैदानी इलाकों और आपस में जोड़ने का एकमात्र विकल्प था। ढाकरी सुरक्षा के मद्देनज़र समूह में व्यापार को जाते थे और इसी मार्ग से जिले में डाक भी पहुँचा करती थी। इस पैदल मार्ग से सारा व्यापार होता था तो मालगुजारी वसूलने आये अंग्रेजों के लिये भी इस मार्ग पर डाक बंगले भी बनाये गये थे, जिनके अवशेषों को देख बुजुर्गों की कहानियों का एहसास किया जा सकता है।
ब्रिटिश काल में डाक विभाग में कार्यरत 82 वर्षीय प्रेम सिंह रावत, ग्राम डांगी (कल्जीखाल) ने अपने सेवा कार्यकाल में अक्सर इस मार्ग को पैदल नापा है और इतने वर्षों बाद आपात स्थिति में इस पैदल मार्ग को एक बार फिर लोगों की जीवनरेखा बनते देख वे इन रास्तों की हालत में सुधार को अब क्षेत्र की जरूरत समझते हैं। प्रकृति के कहर के आगे बौना दिखने वाला प्रशासन भी यदि क्षेत्र में पैदा हुई आपात स्थिति से कोई सबक लेता है तो शायद इस ब्रिटिशकालीन पैदल राष्ट्र मार्ग और मौजूदा दौर में आपातकालीन मार्ग को भविष्य में पुनः ठीक करने की जरूरत महसूस करे।
संबंधित लेख....
- आपदा और राजधानी
उत्तराखंड में अतिवृष्टि को समाप्त हुए दो सप्ताह के लगभग हो गया है, किन्तु अभी तक जन-धन हानि, घरों के... - आपदायें रोक लेती हैं विकास का पहिया
संतोष भट्ट बाढ़, भूस्खलन व भूकंप जैसी घटनाओं के बाद इस बार अतिवृष्टि ने जनपद के विकास का पहिया जाम... - आपदा मंच के प्रस्ताव
29 सितम्बर 2010 को देहरादून में उत्तराखण्ड के नागर समाज, जन सरोकारों से जुडे रचनाधर्मियों एवं सामाजि... - सड़क के मलबे ने लील लिया रमोला गाँव
नवीन चन्द्र कफल्टिया नैनीताल जिले के सुदूरवर्ती ब्लॉक ओखलकांडा से 12 किमी. दूर रमोला गाँव प्रकृति... - सम्पादकीय : उत्तराखंड में हुई तबाही का पूरा अनुमान है ??
आपदा के असर से प्रदेश उबर आया हो, ऐसा तो नहीं है। मगर इतना जरूर है कि लोग आपदा के सदमे से उबर गये है...
Posted in आपदा, विविध | Tagged disaster-management, natural disaster, rain menace in uttarakhand,आपदा | Leave a response
Other Articles From This Edition
- सोमेश्वर क्षेत्र में भी हुई तबाही
- सुमगढ़ से हमने क्या सीखा ?
- आपदा मंच के प्रस्ताव
- सड़क के मलबे ने लील लिया रमोला गाँव
- इस बार ! : दिनेश कर्नाटक का सम्मान
- अंग्रेजी राज के दिन याद आ गये
- आपदा और राजधानी
- आपदायें रोक लेती हैं विकास का पहिया
- गिरदा की स्मृति में विचार गोष्ठी
- अभी बची हुई हैं आस्थायें
- चिट्ठी–पत्री : बबीता अकेली नहीं होगी…
- विदर्भ और बुन्देलखंड की राह पर उत्तराखंड के किसान
- सम्पादकीय : उत्तराखंड में हुई तबाही का पूरा अनुमान है ??
- राजनीति का अमानवीय चेहरा
- कोसी की कहानी
- इसके बावजूद जिन्दगी आगे बढ़ रही है
- खिराज़ - ए - अकीदत
- गिरदा हमारे वजूद, हमारी पहचान में मौजूद हैं...
--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
No comments:
Post a Comment