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Monday, August 27, 2012

खदान एवं खनिज (नियमन एवं विकास) विधेयक 2011 संसद में पारित होने तक कोयला ब्लाकों का आवंटन नहीं करने का निर्णय!वाम दलों ने भाजपा के खिलाफ लामबंद होकर, प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगने से इंकार करते हुए सबसे बड़ी राहत दी है।

खदान एवं खनिज (नियमन एवं विकास) विधेयक 2011 संसद में पारित होने तक कोयला ब्लाकों का आवंटन नहीं करने का निर्णय!वाम दलों ने भाजपा के खिलाफ लामबंद होकर, प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगने से इंकार करते हुए सबसे बड़ी राहत दी है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

 कोयला घोटाले को रफा दफा करने में लगी सरकार राजनीतिक कार्रवाई में जुटी है।सबसे मजे की बात है कि इस मामले में वाम दलों ने भाजपा के खिलाफ लामबंद होकर, प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगने से इंकार करते हुए सबसे बड़ी राहत दी है। लेकिन इस घोटाले से मचे बवंडर की वजह से प्रधानमंत्री कार्यालय ने खदान एवं खनिज (नियमन एवं विकास) विधेयक 2011 संसद में पारित होने तक कोयला ब्लाकों का आवंटन नहीं करने का निर्णय लिया है। इसमें खदानों का आवंटन नीलामी से करने का प्रावधान है।वाम दलों और तेदेपा ने सोमवार को देश के सभी 142 कोयला ब्लाकों का आवंटन रद्द करने और मामले की भलीभांति जांच करने की मांग की। साथ ही संवैधानिक संस्था भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के खिलाफ टिप्पणी के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना की।इन दलों ने इस मुद्दे पर सिंह के बयान को काफी बचाव की मुद्रा वाला करार देते हुए कहा कि बयान में कई बातें तोड़-मरोड़ कर की गयीं।

संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में माकपा, भाकपा, आरएसपी, फारवर्ड ब्लाक और तेदेपा ने कांग्रेस और भाजपा पर  मैच फिक्सिंग  का आरोप लगाते हुए कहा कि वह संसद की कार्यवाही बाधित कर रहे हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर कोई भी चर्चा दोनों ही पार्टियों की पोल खोल देगी।

माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि यह मैच फिक्सिंग का मामला लगता है। संसद की कार्यवाही बाधित होना दोनों को भाता है, क्योंकि वे इस मुद्दे पर चर्चा नहीं चाहते अन्यथा उनकी पोल खुल जाएगी।उन्होंने कहा कि भाजपा को संसद की कार्यवाही बाधित करने की अनुमति देकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। इससे पता चलता है कि दोनों की मिलीभगत है।

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने केंद्र सरकार से कहा है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने जिन कोयला ब्लॉक आवंटनों को दोषपूर्ण पाया है, वह उसे रद्द कर उनकी नीलामी करे। माकपा नेता सीतराम येचुरी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस दावे को भी खारिज किया जिसमें उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने कोयला ब्लॉक की नीलामी का विरोध किया था और उसके आवंटन की मांग की थी।येचुरी ने यहां मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा कि 2004 से जब से कांग्रेस सत्ता में आई है तब से लेकर अब तक जितनी भी निजी कम्पनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं, उन्हें रद्द किया जाए। "इनकी नीलामी की जा सकती है।" उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो भी कारण गिनाए उनमें इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि जून 2004 से इस साल के अगस्त तक क्यों नहीं पारदर्शी या प्रतियोगी नीलामी प्रक्रिया अपनाई गई। येचुरी ने कहा कि पश्चिम बंगाल ने जहां गत वर्ष वाम दलों का शासन था, ने कभी भी कोयला ब्लॉक नीलामी का विरोध नहीं किया बल्कि उसने इस बात पर जोर दिया कि राज्य के हितों को कोई नुकसान न पहुंचे। उन्होंने सरकार के उस दावे को भी खारिज किया जिसमें कहा गया कि निजी कम्पनियों को कोयला ब्लॉक आवंटन से कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में भी ऐसे ही तर्क दिए थे। उनके मुताबिक सरकार को चाहिए कि वह सभी आवंटनों को रद्द करे और नए सिरे से नीलामी की प्रक्रिया शुरू करे।



खान राज्यमंत्री दिनशा पटेल ने यहां एक समाचार चैनल से यह बात कही। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस बारे में एटार्नी जनरल के विचार भी लेगा। कोयला ब्लाक आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक  (कैग) की हाल ही में संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला ब्लाकों की नीलामी नहीं किये जाने से सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी इसके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है जो कुछ समय तक कोयला मंत्रालय भी संभाले हुए थे।संसद के दोनों सदनों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि इसमें बताए गए सभी आंकड़े गलत हैं। रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार के कारण राजकोष को 1.86 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान हुआ है। हालांकि प्रधानमंत्री का जवाब विपक्षी दलों को शांत नहीं कर पाया। कोयला ब्लाक आवंटन पर चौतरफा घिरी सरकार के बचाव के लिए प्रधानमंत्री जब लोकसभा में खड़े हुए तो उनके निशाने पर विपक्षी पार्टियों से ज्यादा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] थे। 'प्रधानमंत्री गद्दी छोड़ो' के नारे व भारी शोर-शराबे के बीच मनमोहन ने कोयला ब्लाक आवंटन पर कैग की रिपोर्ट के एक-एक आरोप को गलत, आधारहीन और त्रृटिपूर्ण बताया।भाजपा अब भी उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ी हुई है। पार्टी ने कहा है कि इस कथित घोटाले से कांग्रेस ने 'मोटा माल' कमाया है। प्रधानमंत्री का जवाब विपक्षी दलों को शांत नहीं कर पाया। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार ने प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन में पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने में जानबूझकर देर की जिससे उसे राजनीतिक कोष जुटाने में मदद मिली।प्रधानमंत्री के मुताबिक रिपोर्ट में 1.86 लाख करोड़ रुपये के घोटाले का आकलन गलत है। और रिपोर्ट में बिना तथ्यों के ही सरकार पर आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि आवंटन तो हुए लेकिन खदानों से कोयला निकला ही नहीं।यही नहीं, मनमोहन सिंह ने सफाई दी कि आवंटन से जुड़े सभी फैसले राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ सलाह के बाद ही लिए गए। विपक्ष के भारी हंगामे की वजह से लोकसभा को मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।

प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में कोयला आवंटन मामले पर सफाई देते हुए कहा कि कोयला मंत्रालय के लिए सभी फैसलों की जिम्मेदारी लेने को वो तैयार हैं।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद से बाहर आकर संवाददाताओं के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत आलोचना का जवाब देने की आदत नहीं है, लेकिन इस बात का दुख है कि बीजेपी संसद को चलने नहीं दे रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोयला आवंटन मामले में सीएजी के दावे विवादास्पद हैं।

कोयला घोटाले पर संसद में हंगामा जारी रहने की वजह से जिंदल स्टील, अदानी पावर, मोनेट इस्पात 5-2 फीसदी टूटे। रिलायंस पावर 3 फीसदी और जीएमआर इंफ्रा 5 फीसदी लुढ़के।खराब विदेशी संकेतों और रुपये में कमजोरी ने बाजार पर दबाव बनाए रखा। सेंसेक्स 104 अंक गिरकर 17679 और निफ्टी 36 अंक गिरकर 5350 पर बंद हुए।दिग्गजों के मुकाबले मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में ज्यादा बिकवाली आई। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर 1.5-1 फीसदी टूटे।रियल्टी शेयर 2.5 फीसदी लुढ़के। बैंक, कैपिटस गुड्स, मेटल, पावर, आईटी शेयर 2-1 फीसदी टूटे। तकनीकी, पीएसयू, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटो 0.75-0.5 फीसदी गिरे।

कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले पर संसद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सफाई पर प्रहार करते हुए बीजेपी ने कहा है कि अगर कोयला खदानों से देश को कोई नुकसान नहीं हुआ है तो देश में विकास और बिजली कहां है। बीजेपी के मुताबिक कांग्रेस ने कोयला ब्लॉक आवंटन की नीति वर्ष 2004 में बनाए, लेकिन नीतियों को लागू करने में उन्होंने 8 वर्ष लगा दिए। देश में बिजली उत्पादन के लिए आज पर्योप्त कोयला मौजूद नहीं है, फिर खदानों से निकाले गए कोयलों से हासिल राजस्व कहां गया।

निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटन पर फंसी केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक [आरबीआइ] ने सलाह दी है कि उन कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जाए जो समय रहते खदानों से कोयला नहीं निकालती हैं। आरबीआइ ने कहा है कि कोयला ब्लॉक आवंटन की नीति पूरी तरह से पारदर्शी होनी चाहिए, लेकिन यह काम जल्दबाजी में नहीं होना चाहिए। केंद्रीय बैंक का मानना है कि भारत को भी सिंगापुर की तर्ज पर ही कोयला ब्लॉक आवंटन का तरीका अपनाना चाहिए।ऐसे समय जब केंद्र सरकार कोयला ब्लॉक आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की रिपोर्ट को लेकर काफी मुश्किल में है, रिजर्व बैंक की यह टिप्पणी काफी प्रासंगिक है। तीन रोज पहले ही केंद्रीय बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कोयला ब्लॉक आवंटन को लेकर उक्त टिप्पणी की है। रिजर्व बैंक ने कोयला ब्लॉक हासिल करने वाली कंपनियों को भी सलाह दी है कि उन्हें इस क्षेत्र के महत्व को समझते हुए प्रतिस्प‌र्द्धी माहौल को समझना चाहिए और सामान्य मुनाफा ही अर्जित करना चाहिए। कंपनियों को नियमों को तोड़ने या कमजोर नियमों का फायदा उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।रिजर्व बैंक ने देश में 114 अरब टन का कोयला भंडार होने के बावजूद सात करोड़ टन कोयला आयात करने की घटना को विसंगतिपूर्ण बताया है। केंद्रीय बैंक यह मान रहा है कि 12वीं योजना के लक्ष्य के मुताबिक, कोयला निकालना काफी मुश्किल काम होगा। सरकार विदेशी निवेश को बढ़ाकर यह काम तो कर सकती है, लेकिन इसके लिए मौजूदा नियमों को काफी पारदर्शी बनाना होगा। फिलहाल आरबीआइ ने चेतावनी दी है कि ये फैसले जल्दबाजी में भी नहीं होने चाहिए। इस संदर्भ में सिंगापुर में कोयला ब्लॉक आवंटन करने के नियम का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां सारे संबंधित मंत्रालय एक साथ बैठते हैं और आवंटन के बारे में बिल्कुल पारदर्शी तरीके से फैसला करते हैं।

सरकार ने शुक्रवार को कहा कि लंबी प्रक्रिया को देखते हुए इस साल 54 कोल ब्लॉक्स की नीलामी नहीं हो पाएगी। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि कोयला खानों का बोली के जरिए आवंटन इस साल होना संभव नहीं है। उन्होंने कहा, 'हमारी सरकार पारदर्शिता से काम करने में यकीन रखती है। नीलामी के जरिए जिन कोल ब्लॉक्स का आवंटन होना है, उनकी पहचान कर ली गई है।'जायसवाल ने कहा जैसे ही क्रिसिल अपनी रिपोर्ट सौंप देगी, सरकार बोली प्रक्रिया शुरू कर देगी। मंत्रालय ने आवंटन के लिए जिन 54 कोयला खानों की पहचान की है, उनकी नीलामी के लिए क्रिसिल को आरक्षित मूल्य तय करने की प्रणाली बनानी है।कोयला मंत्री ने यह बात कैग की उस रिपोर्ट के संदर्भ में कही है जिसमें कैग ने 57 कोयला ब्लॉक्स का आवंटन बिना बोली लगाए कर देने से निजी कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रुपये का अनुचित लाभ होने का अंदाजा लगाया गया है।जायसवाल ने कहा कि कोयला मंत्रालय ने 54 कोल ब्लॉक्स की पहचान की है। इसमें 16 बिजली कंपनियों के लिए, 12 इस्पात संयंत्रों और 12 सरकारी कंपनियों के लिए होंगे। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इस मुद्दे पर कहा, 'क्रिसिल दस्तावेज तैयार कर रहा है। राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श करके बोली लगाने की प्रक्रिया के दस्तावेज तैयार किए जा रहे हैं। एक बार इन दस्तावेजों को अंतिम रुप देने के साथ ही नई नीति प्रभावी हो जाएगी, हम प्रक्रिया को जल्द से जल्द शुरू करना चाहते हैं।'

कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने विपक्ष पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि 57 कोयला ब्लॉकों के आवंटन की समीक्षा की जा रही है और गलत जानकारी देने की दोषी पाई जाने वाली कंपनी और अधिकारियों के विरुद्ध कडी कार्रवाई की जाएगी।जायसवाल ने कहा कि 2009 में दूसरी बार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार बनने के बाद ही कोयला ब्लॉकों के आवंटन की समीक्षा का काम शुरु कर दिया गया था तथा 26 ब्लॉकों का आवंटन रद्द किया गया तथा कई मामले में नोटिस जारी किया गया।

उन्होंने कहा कि इस समय 57 ब्लॉकों के आवंटन की जांच चल रही है। बहुत सी कंपनियों के मामले सामने आ रहे हैं और आवंटन रद्द भी किए जा सकते हैं लेकिन इस बारे में वह जांच पूरी होने के बाद ही कुछ कह सकेंगे।

जायसवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि गलत जानकारी देने वाली कंपनियों के साथ साथ उस जानकारी की सही ढंग से जांच नहीं करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।

कोयला मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान के बाद मामला पूरी तरह साफ हो गया है। सभी आवंटन राज्य सरकारों की सिफारिश पर किए गए तथा कोयला खानों वाले राज्यों के कडे विरोध के चलते कोयला ब्लॉकों का आवंटन नीलामी के जरिए करने की प्रक्रिया शुरु नहीं की जा सकी।

अगर हंगामे के चलते आज प्रधानमंत्री को संसद में बयान नहीं देने दिया जाता, तो प्रधानमंत्री देश को संबोधित कर सकते थे।विपक्ष के तेज विरोध के चलते पिछले 5 सत्र से संसद की दोनों सदनों में हंगामा हो रहा है। कोयला ब्लॉक आवंटन पर सीएजी की रिपोर्ट पर भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री का इस्तीफा चाहती है, जबकि सरकार इस रिपोर्ट पर संसद में बहस कराना चाहती है। बीजेपी की ओर से मोटा माल मिलने के आरोपों के बावजूद सत्ता पक्ष ने तय किया है कि कोल ब्लॉक आवंटन के मसले पर झुकती हुई नहीं दिखेगी। सरकार की ओर से जहा यह साफ कर दिया गया है कि कोई कोल ब्लॉक आबंटन रद नहीं किया जाएगा, वहीं यह भी संकेत दिया गया है कि सरकार लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है।लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, 'मोटा माल मिला है।' स्वराज ने कहा कि 1993 से 2006 के बीच 70 कोयला ब्लॉकों का आवंटन हुआ था जबकि 2006 और 2009 के बीच सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को 142 कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए।  कांग्रेस ने आज कोयला ब्लाक आवंटन मामले में पार्टी को 'मोटा माल' मिलने के भाजपा के आरोप को पूरी तरह से गलत और गैर जिम्मेदाराना बताया । पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यहां संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा, ''कल भाजपा ने आरोप लगाया था कि कोयला ब्लाक आवंटन राजनीतिक चंदे के एवज में किया गया है । आज फिर उस आरोप को घिनौने तरीके से दोहराया गया है । इससे गलत और गैर जिम्मेदाराना बात कुछ और नहीं हो सकती ।भाजपा ने जहां संकेत दिया है कि कोयला ब्लॉक के आवंटन में अनियमितताओं पर कैग की रिपोर्ट को लेकर वह प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग के चलते संसद में गतिरोध जारी रखेगी, वहीं सरकार सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाने का एक प्रयास करेगी, ताकि यह गतिरोध दूर हो सके।


भाकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने तो यहां तक आरोप लगा दिया कि प्रधानमंत्री ने कैग पर हमला कर संविधान का अपमान किया है, हालांकि उन्होंने इस बात से इंकार किया कि वह प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहे हैं।दासगुप्ता ने उच्चतम न्यायालय के एक वर्तमान न्यायाधीश की अध्यक्षता में मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की। उनकी सहयोगी पार्टी माकपा ने भी मामले की भलीभांति जांच की बात उठायी।


कोयला ब्लॉक आवंटन में विपक्ष और कैग के निशाने पर आए प्रधानमंत्री ने कहा, 'किसी मकसद से की जा रही मेरी आलोचना का जवाब मैंने कभी नहीं दिया है।' अपनी चुप्पी की वजह गालिब के लफ्जो में बयां करते हुए सिंह ने कहा, 'ऐसी आलोचनाओं पर मेरा रवैया कुछ ऐसा रहा है- हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखे।'
हालांकि कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार का रवैया दो बातों को लेकर बिल्कुल स्पष्ट था। पहली, संसद की कार्रवाई में कितना भी खलल हो, मॉनसून सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित नहीं किया जाएगा। दूसरी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मांग के आगे झुकने के बजाय सरकार मंगलवार को नियम 193 के तहत प्रधानमंत्री के बयान पर चर्चा कराएगी, जिसमें मतदान का प्रावधान नहीं हैं। संसद की सामान्य कार्रवाई जारी रखने के लिए देश भर में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान जैसे संस्थान बनाने का विधेयक मंगलवार को सदन में पेश किया जाएगा।

भाजपा भी संसद के मॉनूसन सत्र को चलने नहीं देने का दृढ़ निश्चय कर चुकी है। भाजपा नेताओं ने कहा, 'यह सत्र तो बेकार जाएगा। हमें संसद के अगले सत्र के लिए अपनी रणनीति की समीक्षा करनी होगी।'

कोयला आवंटन मामले पर सरकार खुलकर सामने आ गई है। वो डटकर विपक्ष के आरोपों का जवाब ही नहीं दे रही है, बल्कि वो उन पर भी आरोप लगा रही है।

कांग्रेस के 3 बड़े मंत्रियों ने एक बार फिर मीडिया के सामने आकर इस मुद्दे पर सफाई दी। वित्त मंत्री पी चिदंबरम, टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने एक बार फिर विपक्ष से अपील की है कि वो संसद चलने दे।

तीनों मंत्रियों ने मजबूती के साथ प्रधानमंत्री के बयान का समर्थन किया और कहा कि कोयला आवंटन देश की ग्रोथ के लिए जरूरी था और अगर पॉलिसी में कोई गड़बड़ी है तो इसकी जांच एनडीए के वक्त से होनी चाहिए।

वित्त मंत्री ने कहा है कि विपक्ष को इस मुद्दे पर बहस करनी चाहिए और सरकार सदन में हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार है।

कैग की रिपोर्ट आने के बाद यह पहली बार है जब सरकार ने कोयला ब्लॉक आवंटन पर अपना पक्ष रखा है। 1993 में कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1973 में संशोधन करने के बाद निजी क्षेत्र की कंपनियों को उनके इस्तेमाल के लिए कोयला ब्लॉकों के आवंटन की शुरुआत हुई थी। इस कदम का लक्ष्य निजी निवेश आकर्षित करना था। इसके अलावा, कोल इंडिया के लिए भी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था की कोयला जरूरत को अकेले पूरा कर पाना मुमकिन नहीं था।

कोयला आवंटन पर नजर रखने के लिए एक निगरानी समिति बनाई गई ती जिसमें कोयला ब्लॉक वाले राज्यों के प्रतिनिधि शामिल थे। जब प्रधानमंत्री और अन्य को लगा कि कोयला ब्लॉक का आवंटन ज्यादा प्रतिस्पर्धी तरीके से होना चाहिए और इसके लिए खुली नीलामी करनी चाहिए, तो तत्कालीन भाजपा सरकार वाले राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इससे असहमति जता दी थी। मुख्यमंत्रियों का कहना था कि इससे राज्य के प्राकृतिक संसाधन बाहर जाएंगे और राज्यों को नहीं के बराबर कमाई होगी।

भाजपा ने कहा कि सरकार ने निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉकों का आवंटन कौडिय़ों के मोल कर दिया और कंपनियों के बहीखाते में इन ब्लॉकों को 'परिसंपत्ति' की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए  यह कहना सही नहीं है कि इन आवंटनों की कोई कीमत नहीं है। राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा, 'इस आवंटन प्रक्रिया की जांच एसआईटी के जरिये ही कराई जा सकती है। ' जेटली ने कहा कि इन ब्लॉकों का आवंटन देश में बिजली उत्पादन और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ाने के लिए किया गया था। लेकिन पिछले 6 साल के दौरान इन 142 ब्लॉकों का जीडीपी में योगदान नहीं के बराबर रहा है। जेटली ने कहा, 'इस मसले पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सभी सहयोगी साथ हैं।' जेटली ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और संप्रग सरकार कैग जैसे संवैधानिक संस्थानों पर हमले कर रही हैं। प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर बरसते हुए कहा, 'मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी मत समझिए।'उसकी राज्य सरकारों की सिफारिशों के पीछे बदनीयत सामने आने पर बीजेपी सीबीआई जांच के लिए भी तैयार है। पार्टी ने इस मामले में नैतिक जिम्मेदारी और संवैधानिक जवाबदेही के आधार पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफा देने की मांग की है। बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने एक न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान कहा, 'अगर किसी कोयला ब्लॉक के आवंटन के पीछे गलत मंशा सामने आई है और सीबीआई जांच चल रही है तो हमने कभी नहीं कहा कि आगे मत बढ़िए और कार्रवाई न करिए। उन्होंने कहा कि कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर सिफारिश करना राज्य सरकारों का कर्त्तव्य है। राजनीतिक घमासान के बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने कोल ब्लॉक नीलामी का कभी विरोध नहीं किया था, बल्कि राज्य के उद्योगों की जरुरतों को पूरा किए बिना कोयला बाहर ले जाने की नीति का विरोध किया था। डॉ. सिंह ने कहा कि उन्हें 2004 में तत्कालीन खान मंत्री से एक पत्र मिला था, जिसमें कहा गया था कि कोल ब्लॉक नीलामी के जरिए दिए जाएंगे। इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने जवाब में लिखा था कि राज्य में ऊर्जा संयंत्रों, इस्पात संयंत्रों और सीमेंट-कारखानों को कोयले की बहुत जरुरत है।  

"मैं कहना चाहता हूं कि अनौचित्य से जुड़ा प्रत्येक आरोप निराधार है और तथ्य इससे अलहदा हैं," 17 अगस्त को कोयला-ब्लॉकों के आवंटन से जुड़ी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद पहली सार्वजनिक टिप्पणी में प्रधानमंत्री ने कहा।

लेखा परीक्षक के ये कहने कि सरकार ने 2004-2011 के बीच अपारदर्शी ढंग से नीलामी के ज़रिए जिन 57 कोयला-खनन ब्लॉकों को लाइसेंस आवंटित किए, उससे उसे 1.85 ट्रिलियन रूपए (33 बिलियन डॉलर) का नुकसान हुआ, के बाद से विपक्ष श्री सिंह के इस्तीफे की मांग करते हुए संसद में अवरोध उत्पन्न कर रहा है।

सरकार ने विपक्ष की मांग ये कहते हुए ठुकरा दी है कि नीलामी से कोयले की कीमत और ज्यादा बढ़ सकती थी और इस तरह बिजली की भी, क्योंकि भारत के ज्यादातर ऊर्जा-पैदा करने वाले संयत्र सूखे ईंधन से चलते हैं।

लेखा परीक्षक की रिपोर्ट ने कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के लिए और शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है, जो 2010 से लगातार भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही है, इनमें दूरसंचार लाइसेंसों के आवंटन में अनियमितता और एक अंतर्राष्ट्रीय खेल समारोह की मेज़बानी से जुड़े रिश्वतखोरी के आरोप भी शामिल हैं।

लेखा परीक्षक ने कहा कि अगर सरकार 25 कंपनियों को सीधे ब्लॉकों का आवंटन करने की बजाय प्रतिस्पर्धी ढंग से ब्लॉकों की नीलामी करती, तो उसे कितना धन प्राप्त होता, ये देखते हुए उसने नुकसान की गणना की है। गौरतलब है कि ये कोयला ब्लॉक एस्सार एनर्जी पीएलसी, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड, टाटा स्टील लिमिटेड, टाटा पावर लिमिटेड और जिंदल स्टील ऐंड पावर लिमिटेड को भी दिए गए।

प्रधानमंत्री ने गणना को विवादित बताते हुए कहा कि ये खोज "कई स्तरों पर त्रुटिपूर्ण है"। यहां तक कि अगर इसे ऐसे देखा जाता है कि फायदे जो निजी कंपनियों ने उपार्जित किए स्वीकार्य थे, लेखा परीक्षक की संगणना पर तमाम तरह के तकनीकी बिंदुओं के तहत प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है, उन्होंने कहा।

श्री सिंह ने कहा कि कोयला ब्लॉकों को निजी कंपनियों को आवंटित करने की प्रक्रिया गठबंधन सरकार के मोर्चा संभालने से पहले यानी 1993 से प्रचलन में थी और पिछली सरकार ने भी सीधे तौर पर कोयला ब्लॉकों का आवंटन किया था।

मुख्य विपक्षी दल के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, "देश प्रधानमंत्री के वक्तव्य से व्यथित है। ये केवल बहानों की सूचीमात्र है। वो तथ्य छिपा रहे हैं।"

"कम से कम, उन्होंने कोयला ब्लॉकों के आवंटन को मंजूरी देने की जिम्मेदारी तो ली, लिहाज़ा उन्हें अब इस्तीफा दे देना चाहिए," श्री जावड़ेकर ने कहा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में अपने भाषण में नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) की आलोचना नहीं की थी। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के सूत्रों ने स्पष्टीकरण में यह बात कही। प्रधानमंत्री कोयला ब्लॉक के आवंटन पर सीएजी की रिपोर्ट को खारिज करने के लिए आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं।

पीएमओ के सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सीएजी को नहीं बल्कि कोयला ब्लॉक के आवंटन में 1.86 लाख करोड़ के नुकसान के इसके आकलन को 'विवादास्पद एवं दोषपूर्ण' कहा था।

सूत्र ने कहा, ''प्रधानमंत्री ने संवैधानिक संस्था पर हमला नहीं किया। उन्होंने उस रिपोर्ट की आलोचना की थी।''
पीएमओ की तरफ से यह स्पष्टीकरण प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता लालकृष्ण आडवाणी एवं अरुण जेटली की आलोचना के बाद आया है। आडवाणी एवं जेटली ने प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा था कि वह संवैधानिक संस्था पर निशाना साध रहे हैं।

सूत्र ने कहा, ''प्रधानमंत्री का बयान अपनी सीमा में रहकर दिया गया था। उन्होंने सीएजी की रपट पर जो कहा है उसे सरकार कोयला आवंटन पर लोक लेखा समिति के समक्ष कहेगी।''

बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक इस बात में कोई संशय नहीं है कि कोयला ब्लॉक आवंटन में अपनाए गए पुराने तौर तरीकों की प्राथमिक जवाबदेही किसकी है। यह जिम्मेदारी केंद्र सरकार और अंतत: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की है जिनके पास उस वक्त कोयला मंत्रालय का प्रभार था। इस समाचार पत्र ने पहले भी कहा है कि डॉ. सिंह को यह स्पष्ट करना चाहिए कि कोयला ब्लॉक आवंटन में नीलामी जैसे बेहतर तरीके लाने में देरी क्यों हुई? वहीं मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस विषय पर संसद में बहस नहीं होने दे रही है और इस तरह वह देश के मतदाताओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही है जिनको अपनी मन:स्थिति तय करने के लिए ऐसी बहस की दरकार है। बहरहाल, अब धीरे-धीरे और जानकारी निकलकर आ रही है जिसने अनेक पर्यवेक्षकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भाजपा जो कदम उठा रही है वह केवल विरोध और सत्ता पक्ष को राजनीतिक रूप से घेरने से नहीं जुड़ा है बल्कि उसकी इच्छा ही यही है कि इस विषय पर किसी तरह की बहस नहीं होने पाए। उन राज्यों की भूमिका पर भी ध्यान केंद्रित हुआ है जो कोयला ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया में शामिल थे। ये कोयला ब्लॉक 2009 तक आवंटित किए गए। आवंटन का काम एक समिति ने किया जिसमें विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि और संबंधित राज्यों के मुख्य सचिव शामिल थे। निजी कंपनियों के लिए संबंधित राज्यों की सरकार ने अनुशंसा की और उसका आकलन समिति ने किया। स्पष्ट है कि इस व्यवस्था के साथ केंद्र और राज्य स्तर पर कभी भी छेड़छाड़ करना संभव था। वर्ष 2004 में जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने सत्ता संभाली तो इस समस्या की पहचान की जा चुकी थी और इसके साथ ही इसे बदलने की लंबी प्रक्रिया की शुरुआत भी हो गई। बहरहाल, जानकारी के मुताबिक कई राज्यों, खासतौर पर कोयले से समृद्घ राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल ने इस पर आपत्ति की। उस वक्त इन सभी राज्यों में उन दलों की सरकार थी जो आज विपक्ष में हैं। जाहिर है ऐसी आपत्तियों को खारिज करना केंद्र का काम है। भाजपा के अरुण जेटली ने केंद्र के निर्णय से संघीय ढांचे में टकराव जैसी स्थिति निर्मित होने की किसी भी आशंका को खारिज करते हुए कहा कि कोयले जैसा 'प्रमुख खनिज' राज्य का मसला नहीं है। शायद नहीं, लेकिन देश के मुख्य न्यायाधीश ने हाल ही में एक साक्षात्कार में याद दिलाया कि संभवत: जमीन की वजह से केंद्र सरकार रुक गई होगी। कोयला आवंटन में सुधार को लेकर संवैधानिक तौर पर जो भी सही-गलत हो लेकिन इन चिंताओं ने एक खुली बहस को और अधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया है। केवल प्रधानमंत्री को ही सफाई नहीं देनी चाहिए बल्कि भाजपा और अन्य राज्यों में सत्तारूढ़ दलों को भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्यों उनकी सरकारों ने ऐसा कदम उठाया जिसका बचाव मुश्किल साबित हो रहा है। अगर राज्य की सत्ता से संबंधित मसले इसमें शामिल हैं तो उन पर संसद में चर्चा होनी चाहिए। देश के मतदाताओं को यह जानना चाहिए कि क्यों अधिकांश बड़े राजनीतिक दल ऐसी व्यवस्था  पर सहमत थे जिसके दुरुपयोग का खतरा था। भाजपा के महत्त्वपूर्ण नेता भी ऐसे बिंदुओं की ओर संकेत कर रहे हैं। अरुण शौरी ने कहा है कि इस हंगामे में मंत्रिमंडलीय जवाबदेही का सिद्घांत गुम नहीं होने देना चाहिए और इसलिए डॉ. सिंह को स्पष्टीकरण देना चाहिए। वहीं भाजपा के नेतृत्व वाले विपक्ष को भी अतीत को लेकर अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए। अगर भारत को सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन का प्रभावी और पारदर्शी तरीका तलाश करना है तो राजनीतिक दल अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकते।

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