भ्रम फैला रही हैं यूजीसी व प्रदेश सरकार की वेबसाइटें
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अथवा यूजीसी वह संस्था है जो देश भर में चल रहे विश्वविद्यालयों के नियमन और नियंत्रण की जिम्मेदारी संभालती है। यह जानकारी भी देती है कि विश्वविद्यालयों में कौन से केन्द्रीय, कौन से राज्यस्तरीय व निजी विश्वविद्यालय हैं? फर्जी, नकली, प्रतिबंधित विश्वविद्यालयों की सूची भी यूजीसी अपनी वेबसाइट के जरिए छात्रों को देती है। यूजीसी के दावों के मुताबिक उसकी वेबसाईट यूजीसी.एसी.इन पर यह जानकारियाँ लगातार अपडेट की जाती हैं। लेकिन उत्तराखंड के मामले में यह दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
राज्य के निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों को तो छोडि़ए सरकार द्वारा स्थापित राज्य विश्वविद्यालयों को भी यूजीसी ने सूचना देने लायक नहीं माना। राज्य के नौ सरकारी विश्वविद्यालयों में से केवल छह विश्वविद्यालयों दून विश्वविद्यालय, जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय और उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय को ही यूजीसी ने अपनी वेबसाइट में स्थान दिया है जबकि आयुर्वेद विश्वविद्यालय, उत्तराखंड हॉर्टिकल्चर एवं फारेस्ट्री विश्वविद्यालय तथा श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय यूजीसी की वेबसाइट में नहीं है। साफ है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग न तो अपनी वेबसाइट को नियमित अपडेट करता है और न राज्यों से नए विश्वविद्यालयों की कोई सूचना लेता है। जिन विश्वविद्यालयों की सूचना यूजीसी की वेबसाइट में उपलब्ध है वह आधी-अधूरी व भ्रामक है।
दून विश्वविद्यालय को मोथरोवाला में निर्मित अपने नए मुख्य परिसर में शिफ्ट हुए कई सत्र बीत चुके हैं लेकिन यूजीसी की वेबसाइट में दून विश्वविद्यालय का पता आज भी 388/2 इंदिरा नगर देहरादून ही है। इसी तरह उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय का पता ए-12 सरस्वती विहार, लोअर अधोईवाला, देहरादून दर्ज है। जबकि तकनीकी विश्वविद्यालय बीते सत्र में ही अपने प्रेमनगर स्थित नए परिसर में शिफ्ट हो चुका है। यूजीसी की वेबसाइट देखकर अगर कोई छात्र या शोधार्थी पत्र-व्यवहार करेगा तो क्या होगा?
बेवसाइट में विश्वविद्यालयों के पते गलत होने के अलावा बाकी जरूरी जानकारियाँ हैं ही नहीं। यूजीसी ने राज्य विश्वविद्यालयों के फोन नंबर के साथ ही कुलपति और रजिस्ट्रार का फोन नंबर देने के लिए अलग-अलग तीन कॉलम बनाए हैं लेकिन उत्तराखंड के अधिकांश विश्वविद्यालयों के कॉलम खाली हैं। उत्तराखंड मुक्त विवि का पता तो लिखा है लेकिन विश्वविद्यालय का फोन नंबर, ईमेल और वेबसाइट वाले कॉलम खाली हैं। कुलपति से संपर्क करने के लिए कुलपति का नाम, फोन नंबर, फोन आवास, मोबाइल नंबर, फैक्स और ईमेल का कॉलम बना है जो खाली है। यूजीसी ने उत्तराखंड मुक्त विवि के कुलपति का नाम तक दर्ज नहीं किया है। रजिस्ट्रार के कॉलम में भी कोई सूचना दर्ज नहीं है।
राज्य के दो सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक कुमाऊँ विश्वविद्यालय की वेब एड्रेस के अलावा कुछ भी अपनी वेबसाइट में दर्ज नहीं किया है। जबकि गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि पंतनगर के मामले में यह बात उलट बैठती है। विवि के कुलपति और रजिस्ट्रार से लेकर विवि का फोन नंबर तक सारी जानकारी उपलब्ध कराई है। दून विवि के बारे में भी यूजीसी की वेबसाइट में जो जानकारी है उसके मुताबिक प्रो. गिरिजेश पंत आज भी विवि के कुलपति हैं जबकि उनको विदा हुए एक सत्र बीत चुका है और वर्तमान में प्रो. वीके जैन दून विवि के कुलपति हैं।
उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों के बारे में केवल यूजीसी ही बेपरवाह नहीं हैं बल्कि इनका गठन करने वाली राज्य सरकार का भी यही हाल है। इसकी वेबसाइट उत्तरा.जीओवी.इन के मुताबिक राज्य में केवल छह राज्य विवि- दून विवि, कुमाऊँ विवि, उत्तराखंड तकनीकी विवि, उत्तराखंड मुक्त विवि, जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि तथा उत्तराखंड फारेस्ट्री एवं हॉर्टिकल्चर विवि हैं। राज्य सरकार को स्वयं अपने तीन विश्वविद्यालयों की याद नहीं रही जिनमें न सिर्फ सत्र संचालित हो रहा है बल्कि सभी में नियमित कुलपतियों की नियुक्ति भी राज्य सरकार द्वारा की गई है। राज्य सरकार द्वारा 2005 में स्थापित उत्तराखंड संस्कृत विवि में एक हजार से अधिक छात्र पढ़ते हैं और कुलपति डॉ. सुधारानी पांडे के सेवानिवृत्त होने के बाद कुछ माह पूर्व ही राज्य सरकार ने प्रो. महावीर अग्रवाल को कुलपति नियुक्त किया है। लेकिन राज्य सरकार ने इसको अपनी वेबसाइट तक में जगह नहीं दी है। जबकि इस विवि को देवभूमि में संस्कृत के प्रसार और विकास के लिए स्थापित किया है।
राज्य सरकार ने आयुर्वेद के विकास के लिए आयुर्वेद विवि का गठन कर यहाँ नियमित कुलपति की नियुक्ति की है। इसका भवन भी बन रहा है लेकिन वेबसाइट में इस विवि का कोई पता-ठिकाना नहीं है। गढ़वाल विवि के केन्द्रीय विवि बनने के बाद अब वह दूरदराज के सैकड़ों कॉलेजों को सम्बद्धता नहीं दे सकता। लिहाजा गढ़वाल विवि से संबद्ध कॉलेजों को समबद्धता देने के लिए श्रीदेव सुमन समबद्धता विश्वविद्यालय का गठन किया है। अगले सत्र से इस विवि में हजारों छात्र होंगे। राज्य सरकार ने गढ़वाल विवि के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. यूएस रावत को इस विवि का कुलपति बनाया है लेकिन इसकी जानकारी अपनी वेबसाइट के जरिए छात्रों को नहीं दी है।
उत्तराखंड के नौ सरकारी राज्य विश्वविद्यालयों की सम्पूर्ण जानकारी न तो यूजीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध है और ना ही राज्य सरकार की वेबसाइट पर। जहाँ यूजीसी के मुताबिक राज्य में दून विवि, जीबी पंत विवि, कुमाऊँ विवि, उत्तराखंड मुक्त विवि, उत्तराखंड तकनीकी विवि और उत्तराखंड संस्कृत विवि हैं, वहीं राज्य सरकार की वेबसाइट के मुताबिक भी उत्तराखंड में छह सरकारी राज्य विश्वविद्यालय हैं लेकिन यहाँ जो विश्वविद्यालय दर्ज हैं वह यूजीसी की वेबसाइट से अलग हैं। राज्य सरकार की वेबसाइट पर अन्य के अलावा हार्टिकल्चर एवं फारेस्ट्री विवि राज्य विश्वविद्यालय के रूप में दर्ज हैं जबकि यूजीसी की वेबसाइट में इसके स्थान पर संस्कृत विवि है।
सूचना विभाग की वेबसाइट में भी इन विश्वविद्यालयों की कोई सूचना नहीं है। यूजीसी और राज्य सरकार तो इनके प्रति उदासीन हैं ही लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन भी विश्वविद्यालयों के प्रचार-प्रसार में फिसड्डी हैं। 9 राज्य विश्वविद्यालयों में केवल जीबी पंत विवि, कुमाऊँ विवि, मुक्त विवि, दून विवि और तकनीकी विवि ही ऐसे हैं जिनकी अपनी वेबसाइट फिलहाल वजूद में हैं। बाकी 4 विश्वविद्यालय अस्तित्व में भी हैं और गतिशील भी लेकिन वे इंटरनेट की ताकत को समझ पाने में फिलहाल चूक कर रहे हैं। लगभग दस साल की होने जा रही संस्कृत विवि की कोई वेबसाइट आज तक नहीं बन पाई जबकि नए बने विश्वविद्यालय भी इसकी पहल नहीं कर रहे हैं।
http://www.nainitalsamachar.in/wrong-info-in-governement-web-sites/
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