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Partition of India - refugees displaced by the partition

Tuesday, August 6, 2013

सेक्सी डियोड्रेंट की तरह लेकिन महक रहा है निरंकुश राष्ट्रवाद।

सेक्सी डियोड्रेंट की तरह लेकिन

महक रहा है निरंकुश राष्ट्रवाद।


पलाश विश्वास


1


देश उबल रहा है।अंदर से भी।

और बाहर से भी उबल रहा है देश।

बहुत उपयुक्त समय है सुधारों का

कि आपरेशन टेबिल पर सजा दिया है देश।


बहुत माहिर हैं शल्य चिकित्सक सारे।

क्या तो उनका रुप है अवतार सरीखा,

ईश्वर के  ही प्रतिरुप सारे के सारे!

और हम भी तो हुए धर्मोन्मादी सारे के सारे!


सीमाएं लहूलुहान हैं,शहीद हो रहे हैं जवान।

इतने हो गये रक्षा घोटाले,इतनी तैयारियां।

और आतंकविरोधी युद्ध पारमाणविक गठजोड़।

चंद्र और मंगल अभियान का शोर कर्णतोड़।


सत्तादल ने मुहर लगा दी तेलंगाना पर

लेकिन सरकार बदलेगी,चुनाव होंगे

तभी बनेगा नया राज्य।दशों दिशाओं में

लेकिनअलग राज्य का नारा है अब।


चारों तरफ क्षेत्रीय अस्मिता दावानल है अब।


कसर जो रह गयी बाकी,प्रतिरक्षा संकट

ने कर दी है पूरी और क्षेत्रीय अस्मिता

एकाकार है अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद में।


कोई नहीं पूछ रहा सवाल कि

राष्ट्र का सैन्यीकरण क्यों आखिर।

सीमाएं  क्यों हैं इसतरह अरक्षित

और हमले के जवाब में क्यों है सन्नाटा।


कोई नहीं पूछता कि इजराइल और अमेरिकी नेतृत्व में

सैन्यगठबंधन का क्या हुआ

वाशिंगटन से निरंतर फीडबैक का क्या हुआ

देश में सुरक्षा जो सीआईए और मोसाद के हवाले है,

उसका क्या हुआ।


कोई नहीं पूछता कि क्या आखिर

लोकसभा चुनाव से पहले फिर क्या किसी कारगिल की तैयारी है

ताकि सुनिश्चित हो जाये जनादेश भी

ऐर बनी रहें आर्थिक नीतियों और

कारपोरेट नीति निर्धारण की निरतंरता भी

निवेशकों की आस्था बनी रहें

और कालाधन का प्रवाह भी अबाध रहे।


कोई नहीं पूछता कि

रक्षा बाजार में क्या है नयी खरीद की तैयारी

और किस किस कंपनी से वायदा करेक लौटे हैं

चिदंरम और उपराष्ट्रपति बिडन से गुपचुप वार्ता का भी तो हो खुलासा।

कश्मीर है सबसे तेज हैं सैन्य हलचलें

अबाध है मानवाधिकार हनन जहां तहां

तालिबान पर नजर है अमेरिकी

तैनात है उपग्रह सारे

इतना शोर है रक्षा सौदों का

और फिर भी शहीद हो रहे हैं जवान


कोई नहीं पूछ रहा कि रक्षा बजट

का क्या किया है सरकार ने

या उन रक्षा सौदों से क्या हुआ हासिल

जिनके घोटाले अब किस्से हैं

स्टिंग आपरेशन के हिस्से हैं

यह भी नहीं पूछता कोई कि बायोमेट्रिक डिजिटल हुआ देश

निजता की तिलांजलि देकर

संप्रभुता को गिरवी रखकर

फिर भी इतनी नाजुक क्यों है प्रतिरक्षा और क्यों डावांडोल है राजनय

कि न इजराइल बोल रहा है और न

बोल रहा है अमेरिका

क्यों फिजूल नाटो से नत्थी हो गये हम और

आखिर किसके लिए यह परमाणु समझौता


कोई नही पूछ रहा कि रक्षा क्षेत्र में

विदेशी पूंजी की घुसपैठ से

आखिर कितना सुरक्षित हुआ देश


कोई नही पूछ रहा आंतरिक सुरक्षा

के बहाने सैन्यबलों के निरंतर

बढ़ रहे कारपोरेट इस्तेमाल के विरुद्ध

कोई सवाल और लोकतंत्र है अबाध

कि सवाल पूछने की कोई आअजादी है ही नहीं।

सारे सवाल प्रायोजित है इन दिनों

बिना नकद भुगतान सवालों का वजूद है ही नहीं कहीं।


संसद का सत्र चालू है और बागी कलम

पर रंगीन कंडोम का आवरण है

सेक्सी डियोड्रेंट की तरह लेकिन

महक रहा है निरंकुश राष्ट्रवाद।


2


कुछ आपको याद हो तो बतायें

कि बहुत पहले लिखा था मैंने

सबसे जरुरी है पासपोर्ट इन दिनों

गांव तक पहुंचने के लिए।


अब हालत है कि उंगलियो की छाप

और पुतलियों की तस्वीर

सौंपने की अंधी दौड़ है

सफर में हर मोड़ पर साबित करें

अपनी पहचान,अपनी नागरिकता

कि डिजिटल हुए हम

और डिजिटल हो गया देश


जहां जापानी तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है।


पोर्न कारोबार थ्रीजी फोर जी है इन दिनों।

डियोड्रेंट में  परोसा जाता सेक्स।

कास्टिंग काउच और यौन उत्पीड़न

की कथा व्यथा एकमात्र कथ्य है।


इमोशनल अत्याचार है

याफिर सत्यमेव जयते।

फिल्मों में नशा है।

अवयस्कों के लिए वयस्क

परिप्रेक्ष्य है तमाम।


वैश्विक पूंजी की तरह अश्लीलता भी

अबाध है इन दिनों।

लेकिन विडंबना बस इतनी सी है कि

नदियां जैसी बंध गयी हैं

भाषाएं भी बांध दी गयी है।

बगावत पर लूप लगा है।

बागी जुबान तालाबंद है

और सच बोलना मना है।


लेकिन विडंबना बस इतनी सी है कि

सीमा पर कोई पहरा नहीं है।

हुक्मरानों को अखबारों से मालूम होता

विदेशी सेनाओं की घुसपैठ

मजा तो यह है कि सीमा आरपार

तस्करों का राज है।

जीवित मांस की दुकानें हैं।

विदेशी मुद्राएं बहती हैं।

मादक द्रव्य का भी अबाध कारोबार।



लेकिन विडंबना बस इतनी सी है कि

सीमाओं पर कोई हलचल है नहीं

लेकिन देश के चप्पे चप्पे पर

इन दिनों पहरा है।


3


आक्रांताओं से कोई खतरा नहीं।

लेकिन हर नागरिक पर पहरा है।


लेकिन विडंबना बस इतनी सी है कि

हर विज्ञापन जायज है इन दिनों।

खबरें अंदर होती हैं और नहीं भी होती हैं

जैकेट में बंद हैं अखबार।


न्यूज अब पेइड है,बहुत चर्चा हो चुकी।

व्यूज भी अब पेइड है,कोई लेकिन बोल नहीं रहा।

मत है सर्वसम्मत पर

न सहमति का विवेक है

और न साहस है असहमति का।


शोर है बहुत ज्यादा रात दिन सातों दिन

बाइट से लबालब है हर चैनल।

प्रबुद्धजनों के उच्च विचार हैं।

राजनेताओं के उद्गार हैं।


अल्पमत सरकार की रणहुंकार है कि हर कीमत

पर जारी रहेगे सुधार।

सीनाजोरी है कि विनिवेश होकर रहेंगे।

बेच दी जायेगी हिस्सेदारी।


नियुक्तियां नही होंगी और न रोजगार होंगे और न होगी कोई आजीविका। सिर्फ परिभाषा में शामिल बीपीएल के लिए होगी

खाद्यसुरक्षा का इंतजाम। शिक्षा नहीं होगी।


निजी प्रतिष्ठानों में सजी होंगे शापिंग माल

चाहे शिक्षा हो या चिकित्सा हो  य़ा फिर जीवन रक्षक दवाइयां

या फिर पेयजल या रोशनी के लिए ईंधन

या सांसों के लिए आक्सीजन

या परिवहन, खुले बाजार में सबकुछ उपलब्ध हैं।


सारोगेट माताएं हैं कतारबद्ध

कोख बेचने के लिए।

बच्चे भी खरीद सकते हैं

तो बाघों और हाथियों को भी गोद ले सकते हैं इन दिनों।


इस निर्वीर्य देश में हर दरवजे पर

विकी डोनर सेवा में हाजिर है

मां बाप चाहे तो गोद ले लो।निःशुल्क होमडेलीवरी है।

करोड़पति बनने का सारे रास्ते खुले हैं।

मसलन रियेलिटी शो। काल करें और

लखपति हो जाइये।

अपने अपने आइकन के लिए एसएमएस करते जाइये।

या फिर शेयरों पर पैसा लगाइये।


पूरा देश अब कैसीनो है

और डब्लू एफ एफ

सबसे लोकप्रियखेल

बल्कि वही एकमात्र खेल है।


राजनीति हो या क्रिकेट या मीडिया

या साहित्य

नाम से कुछ आता जाता है नहीं।

डब्लू एफ एफ है सबकुछ इन दिनों।


4


जनपद हुए तबाह तो क्या

घर परिवार हुए खतम तो क्या

हरित क्रांति है, लेकिन हरियाली नहीं

सारे बीज जैविकी है और इंसान भी हाईब्रिड

जिसका कोई चेहरा होताइच नहीं।


लेकिन विडंबना बस इतनी सी है कि

कोई बोल नहीं रहा कि हर तूफान प्रायोजित है।

प्रायोजित है सारी आपदाएं। मानव निर्मित।


मानवविरोधी है, प्रकृति और पर्यावरण का विरोधी

और जलवायु का भी विरोधी। हिमालय और सुंदरवन का विरोधी

भी है यह समुंदरविरोधी देहात जनपद जन विरोधी

सर्वशक्तिमान कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज निरंकुश।


प्रायोजित जलप्रलय।

प्रायोजित है भूकंप।

और भूस्खलन भी।


प्रायोजित प्रदूषण है।

प्रायोजित है गैस त्रासदी।


सिखों का संहार प्रायोजित।

प्रायोजित मरीचझांपी।

प्रायोजित बाबरी विध्वंस

और प्रायोजित गुजरात नरसंहार भी।


प्रायोजित उग्रवाद

और प्रायोजित है माओवाद भी।

प्रायोजित सारे आंदोलन।


किसी की हिम्मत नही बोलने की कि

कारपोरेट चंदे से चलती राजनीति की तरह

प्रायोजित हैं अस्मिताएं तमाम,

प्रायोजित जाति विमर्श और गरीबी हटाओ भी।


प्रायोजित कारपोरेट योजनाएं हैं सारी

सामाजिक योजनाएं

और पर्यावरण आंदोलन भी।


सारे घटनाक्रम आर्थिक सुधार हैं इन दिनों।

दुर्घटनाएं भी आर्थिक सुधार हैं इन दिनों।


बाजार की शक्तियां तय करती हैं सारे समीकरण।

जनता के विकल्प नहीं होते।

सारे विकल्प बाजार के हैं।


बाजार के लिए ही बजट

और रक्षा बजट भी।


न देश प्राथमिकता में कहीं है

और न जनगणमन।


सब अधिनायक हैं साम्राज्यवादी।

लोकतंत्र की भाषा बोलने वाले सारे के सारे तानाशाह।

लोकतंत्र का कोई वजूद है ही नहीं इस देश में।


और प्रायोजित सत्ता में भागेदारी भी।

अकूत संपत्तियां हैं बेहिसाब

कुछ तो रिटर्न देना होता है।


रक्षा प्रतिरक्षा में कमीशन के

बिना कहां कोई सौदा पटता है,

कोई बता दें।


मेरे दोस्तों,दलित विमर्श भी अब प्रायोजित है

और प्रायोजित है बहुजन आंदोलन भी।

सबकुछ विनिवेश मंत्रालय के अधीन हैं।

हर शख्स अब बाजार का दल्ला है या फिर एजंट।


घर भी अब बाजार है।

दांपत्य,प्रेम,संबंध सबकुछ बाजार।

लोक बाजार और संस्कृति भी बाजार।


इसीलिए कहीं कोई विरोध का स्वर नहीं है

इस आखेटगाह में,

इस वधस्थल में कहीं कोई प्रतिवाद नहीं है।


सिर्फ बिना शर्त आत्मसमर्पण है।

या खामोश गठबंधन हैं।


फ्लोर एडजस्टमेंट है।

नपुंसक सर्वसम्मति है।

राजसूययज्ञ अबाध है।


5


हर जुबान पर तालाबंद है।

हर शख्स पर है प्रिज्मिक खुफिया नजर इनदिनों।


उंगलियों की छाप और पुतलियों की तस्वीरें देकर

नागरिक सेवाएं बहाल हो तो गयीं सारी,

लेकिन बिग बास के कैमरों में केद होने लगी जिंदगी सारी।


निजता के प्रसारण में बहुत मजा आने लगा है।

अश्लीलता सार्वजनिक आचरण है।

अश्लीलता का अबाध कारोबार।

नारी देह विज्ञापन है।


नदियां कैद हैं इन दिनों।

घाटियां भी बंधक हैं।

सारे जनपद बंधुआ हैं

या फिर ठेके पर कामगार

या ठेके पर सफेदपोश इतराते।


भूगोल अस्पृश्य है।

पूरा देश दंडकारण्य है।

और सर्वत्र मरीचझांपी का आयोजन।


अपनी ही जनता के विरुद्ध

अद्भुत घृणा अभियान है।

निर्मम बहिस्कार है।


प्रतिनियत दमन है।

उत्पीड़न है।

अत्याचार हैं।


और प्रकृति से अबाध बलात्कार है।

ताकि जारी रहे अबाध पूंजीप्रवाह।

ताकि हो सके भारत निर्माण।

ताकि भुगतान हो संतुलित।

ताकि वित्तीयघाटा नियंत्रित रहे।


विदेशी मुद्राओं का राज है ताकि

अपने मरमासण्ण रुपये पर।

ताकि आयात निर्यात के खेल में

हो हमारा काम तमाम।


मंहगाई का जहर सर पर हो सवार।

मुंह से बहता हो खून।


चुनिंदों को केंद्र समान वेतनमान

और समय समय पर मंहागाई भत्ता।


आरक्षण पर नौकरियां

और पदोन्नति।


मुद्रास्फीति का यही इलाज है।

यहू विकास,उन्नयन है।

और अनंत विस्थापन है।


6

सीमांत बेआवाज है।

हाशिये पर हुए लोग मूक हैं

वधिर भी।धर्मभीरु है वे सारे।


अपने अपने कर्म फल का भोगते।

प्रायश्चित्त करते और करते तीर्थाटन में

पाप स्खलन।


पवित्र स्नान से मोक्ष लाभ है।जलाभिषेक से मुक्ति है।

वे अंध भक्त समूह हैं परस्परविरोधी।


अपनों के ही विरुद्ध लड़ रहे अविराम।

आत्मघाती इस महाभारत के लिए अमोघ गीता के उपदेश हैं।


हर दावानल के लिए नैसर्गिक ईंधन हैं।

हिंसा के लिए औद्योगीकरण है।

और शहरी करण भी।


सेज पर सजा देश है और हर रात

सुहाग रात है।देश अब परमाणु संयंत्र है

या फिर ऊर्जा प्रदेश।


और पांच हजार लोगों की गुमशुदगी की

फिर कहीं कोई चर्चा हो ही नहीं होती।


लावारिश गांवों और बेदखल खेतों से

किसान आत्महत्याओं के जनपदों से

कहीं न गूंजे कोई आवाज विकास दर के विरुद्ध

पुख्ता इतजामात हैं इसके भी।


ताकि परिभाषाएं बदलती रहें

पैमाने छलकते रहे।

संसदीय सत्र चलता रहे।


और चूंती हुई अर्थव्यवस्था से

अमीरी चूंकर गिर जाये हमारी थाली में।


संप्रभु नागरिकों के बदले

भिखारियों का देश है यह अब।


जहां सिर्फ मदारी,मसखरों,जादुगरों

और धर्मप्रभुओं की सुनते हैं लोग।


जहां प्रवचन सबसे ज्यादा मनोरंजक है

और योगाभ्यास

मानव अस्थियों का अबाध कारोबार।


7


खेत हो गये तबाह।

कल कारखाने हो गये बंद।


शून्य पर है कृषि विकास।

और औद्योगिक उत्पादन भी शून्य।

अब वही कहते हैं कि जिन सेवाओं पर टिका दी

अर्थव्यवस्था के सारे पांव,

उनके विकास में भी निरंतर गिरावट है।


लेकिन कोई सवाल पूछना मना है।

फेस बुक पर स्टेटस लिखना प्रतिबंधित हैं।


पत्र हो गये अंधकार के स्मृति समान।

तार का भी हुआ अवसान।


अब या मोबाइल है

या फिर नेट है।

जिस पर पलप्रतिपल निगरानी।


डिजिटल है सेट टाप बाक्स भी।

टीवी पर जो आप देखते हैं जनाब,

उसका लेखा जोखा भी हो रहा है दर्ज।


डिजिटल देश में अब

विचारों पर पहरा है।

मनोरंजन है लेकिन अबाध।


चूं भी किया नहीं तो कंवल भारती का हश्र देख लो।

दलित चिंतक होकर भी बच नहीं सकते।


अगर भूल से बोल दिये

कारपोरेट हितों के विरुद्ध

तो  किसी की भी खैर नहीं है,अब।

सत्ता सर्वत्र है सर्वशक्तिमान।


संदेश आ रहे हैं हितैषियों के खूब।

अंबरीश महापात्र को देख लिया।

देख लिया भारती जी का भी हश्र

अब तो प्यारे संभल जाओ।


8


मीडिया में हर संपादक मृत है इन दिनों।

कहीं कोई संपादनकर्मी नही हैं इन दिनों।


कोई कला नहीं है और न लोककला है।

विधायें लापता हैं या फिर कारोबार हैं।

अखबारों की तरह।


सीईओ ईश्वर है।

और विचार अस्पृश्य है।


सारे माध्यम अदृश्य है।

बिंब संयोजन करते जाइये।


तकनीक का वैज्ञानिक

चमत्कार करते जाइये।


बस, अपना अपना चैनल चुन लीजिये।

डियोड्रेंट से सराबोर हो जाइये।


और खूब इस्तेमाल करें जापानी तेल।

असली ब्रांड के कंडोम लीजिये

और खुले बाजार में

खुला सेक्स का मजा लीजिये।


सिर्फ बोलना मना है।

बोलें भी तो लिखना मना है।


अनर्गल बहस चाहे खूब करो।

स्टेटस में बहस भी खूब करो।


एक दूसरे पर खूब उछालो कीचड़।

जलसरोकार के मुद्दे पर बोलना मना है।


धर्म की स्वतंत्रता है और

यही लोकतंत्र है।


खूब गिराते रहो धर्म स्थल।

धर्म के नाम करो हर अपराध।


चाहे तो कर लो नरसंहार।

क्या पता कि कभी प्रधानमंत्रित्व के भी हो जाओगे दावेदार।


धार्मिकता की आंधी में

हर किस्म का घृणा अभियान जायज है।

हो सकें तो सत्ता की जुबान में बोलना सीख लो।

आस्था की चादर ओढ़ लो।


यात्राएं करते रहो खूब

धर्म के नाम पर।


आजीविका के लिए अपने प्रांत से बाहर गये

तो घुसपैठिया कहलाओगे।


और अब हर जनपद कोई न कोई प्रांत है।

हर गांव इन दिनों आखिरी सीमांत है।


सीमारेखा से हुए बाहर और जरा भी चूं की

तो माओवादी आतंकवादी जैसा कुछ भी

घोषित कर दिये जाओगे।

बेमौत मुठभेड़ में मार दिये जाओगे।


9


नाकेबंदी के बीच खूब सुरक्षित है

मोमबत्ती जुलूस इन दिनों।


विरोध धरना भी प्रायोजित है इन दिनों।

पन्ने दर पन्ने रंगे होते हैं विज्ञापनों से ।

लेकिन संपादकीय पत्र में भी प्रतिरोध निषेध हैं।


विशिष्ट जनों को खूब मालूम हो तेल का कारोबार।

खूब जानते वे राजमार्ग की गहराइयां।

सीढ़ियों की हर आहट से वाकिफ हैं वे।


सबसे बेहतरीन इस्तमेमाल करते वे डियोड्रेंट का

और कंडोम के इस्तेमाल में भी गजब के उस्ताद हैं वे।


आइकन हैं वे और खुले बाजार के ।

माडल भी वे ही तो।


नाप तौल कर बोलते हैं वे

सुरक्षित बययानबाजी में सबसे आगे वे।

सबसे बड़े बाइटखोर वे ।

रील की रील चबा जाते वे।


सर्वत्र उन्हींकी कलाबाजी की चर्चा

और असली मुद्दे हाशिये पर।


सर्वत्र केदार में पूजा आयोजन।

जो पांच हजार लापता हैं

उनकी चर्चा तक नहीं है कहीं।


10


धर्मोन्माद तो था ही आर्थिक सुधारों का आयोजन।

रथयात्राएं थीं ही अश्वमेध के लिए।


जातीय अस्मिता भी प्रबल

उससे भयंकर सोशल इंजीनियरिंग।


नरसंहार में सबसे दक्ष है राजकाज इन दिनों।

अस्पृश्य भूगोल में

सन अठावन से जारी है

सशस्त्र सैन्यबल अधिनियम।


यौन उत्पीड़न के विरुद्ध कानून बना झटपट।

सोनी की योनी में जिनने पत्थर डालें,

फिर उन्ही को शौर्यपदक।


सामाजिक न्याय का अजब समां है।

समता की गजब बीमा है।


सबकुछ अब शेय़र बाजार हवाले है।

वेतन ,ग्रेच्युटी, बैंक खाते,

पेंशन बीमा सबकुछ।

यहां तक कि भविष्यनिधि भी।


जनता तो बुरबक है ही

हम जैसे अपढ़ अधपढ़

इतना शोर मचाते हैं

पर विशेषज्ञ विद्वतजनों की

हर पल प्रतिपल फटती क्या रहती है,समझ से परे है।


सरस्वती के वे वरदपुत्र कहां हैं,


                 किस कंदरा में छुपे हैं वे, बता दें कोई।


कहां हो रही है उनकी तपस्या

और किस किस मेनका की गोद में हैं वे,

इस पर हो जाये कोई स्टिंग आपरेशन।


कहां हैं सारस्वत वे तमाम, बता दें कोई।

हर क्षेत्र पर जिनका एकाधिकार।


जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता के

खिलाफ न सही, दुर्गाशक्ति के उत्पीड़न पर मुखर वे लोग

देश की प्रतिरक्षा पर भी बोलें।


पूछें कि क्यों बेच रहे हैं देश हमारे।

और पूछें कि किसी बिके हुए देश की

रक्षा प्रतिरक्षा भी कैसी।


लोकतंत्र के जिहादी

अपना जुबान पर लगे ताला भी खोलें।


व्यक्तियों की खाल निकालने के बजाय

कारपोरेट राज के खिलाफ भी कुछ बोलें।


कुछ नहीं तो मीडिया में जो भुखमरी है,

अपनों अपनों को रेवड़ियों का जो बेशर्म इंतजाम है,

मीडिया में जो कास्टिंग काउच है, उसपर भी कुछ बोलें।


हिम्मत हो ते बोलकर देखें सीईओ के खिलाफ

या नहीं तो मजीठिया के लिए लगाये गुहार।


तभी न बूझेंगे कि लोकतंत्र है

और सबकुछ ठीकठाक है


11

हकीकत तो यह है कि कुछ भी नहीं है ठीठाक

सबकुछ है इनदिनों ठोंक ठाक।


सबकुछ है जुगाड़ इन दिनों।

जुगाड़ हुआ तो सबकुछ ठीकठाक।

एकदम चाकचौबंद।


भाषा सबकी वर्तनी विशुद्ध।

अपने ऊंचे कुल वंश की तरह।


युक्तियां अप्रतिम।

सिर्फ वे निष्पक्ष हैं।


और जनगण के पक्ष में हरगिज नहीं है।

घटाटोप बांध रहे हैं वे बेहद खतरनाक।


इस मानसून के दरम्यान भी

पहाड़ों के अलावा मैदानों में भी

जलप्रलय तय है।


तय हैं रंग बिरंगी आपदाएं।


हिंसा के धमाके भी प्रायोजित हो गये हैं।

सबकुछ हैं सूचीबद्ध।

बाकायदा प्राथमिकता के हिसाब से।


और शोर भी खूब होगा प्रायोजित।

होगा हंगामा अनवरत।


आरोप प्रत्यारोप होंगे।

घोटालों का चीरहरण भी होगा।


होगा बहिर्गमन।

स्थगन होगा बार बार।


और अंततः

सारे विधेयक जनविरोधी

बिना बहस पारित होंगे।


किसी को कानोंकान खबर न होगी।

ऐसा होगा राजकाज।


राज्य नही बनने वाला।

लालीपाप दिखाकर

पूरे देश को कर दिया आग के हवाले।


अब जो बोले

जो भी सच का राज खोले,

उनकी अब खैर नहीं।


अपनी अपनी खैर मनाइये।

खतरनाक जो लोग हैं मुखर,

हो सकें तो उनसे डीफ्रेंजड हो जाइये।


हरगिज लाइक न करना।

और शेयर कर दिया तो भी बुरे ।

फंसोगे अंबिकेश महापात्र की तरह।


खूब लगाओं फिल्में, गाने।

अद्भुत सुंदर तस्वीरें।


आस्था का गुणगान कीजिये।

धर्म का प्रसार कीजिये।

धर्मोन्माद का भी।


न अश्लीलता पर रोक है

और न घृणा प्रतिबंधित है।

हिंसा की जयजयकार करें।


युद्ध अपराध के पक्ष में लगातार चलाये मुहिम।

अपना अपना प्रधानमंत्री पोस्ट करें।


अपने अपने अवतार ,अपने अपने ईश्वर

का खूब करें महिमामंडन।

संसाधन जुटाने का कारोबार चलायें खूब।


खूब करें साइबर जालसाजी,हैकिंग।

यौन उत्पीड़न और भयादोहन भी मना नहीं है

इस सूचना महामार्ग पर।


सिर्फ ख्याल रखे हर मोड़ पर प्रिज्म है।

दृश्यों पर कोई सेंसर नही है कहीं।

चाहे बह रही हो रक्त नदियां भी।


सिर्फ विचारों पर प्रतिबंध है

और प्रतिबंधित हैं जनसरोकार।






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