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Partition

Partition of India - refugees displaced by the partition

Tuesday, October 1, 2013

हवाओं को पहले गुब्बारा बना उकसाया जाता फिर फिजां पर बरपता कहर और हम सारे लोग हम सारे निनानब्वे फीसद,कहीं भी चाहे इस ग्रह के वासी मनुष्य सारे,तेलयुद्ध में झुलसते या फिर सांप्रदायिकता में भुने जाते या रोस्ट होकर बनते शिक कबाब ओपन मार्केट नरसंहार में या कारपोरेट लोकतंत्र में निरंकुश अबाध पूंजी के अनंत जलप्रलय और रेडियोएक्टिव सुनामी में मारे जाते लोग तमाम,देश,काल,परिस्थिति निरपेक्ष डालर प्रजाजनों के लिए कयामत

हवाओं को पहले गुब्बारा बना उकसाया जाता

फिर फिजां पर बरपता कहर और हम सारे लोग

हम सारे निनानब्वे फीसद,कहीं भी चाहे

इस ग्रह के वासी मनुष्य सारे,तेलयुद्ध में

झुलसते या फिर सांप्रदायिकता में भुने जाते

या रोस्ट होकर बनते शिक कबाब

ओपन मार्केट नरसंहार में या कारपोरेट

लोकतंत्र में निरंकुश अबाध पूंजी के

अनंत जलप्रलय और रेडियोएक्टिव सुनामी

में मारे जाते लोग तमाम,देश,काल,परिस्थिति

निरपेक्ष डालर प्रजाजनों के लिए कयामत


पलाश विश्वास


The first use of an equals sign, equivalent to 14x + 15 = 71 in modern notation. From The Whetstone of Witte byRobert Recorde (1557).

सुनीता भास्कर
विदर्भ में सात एकड़ जमीन का मालिक पैंतीस वर्षीय किसान आज फिर आत्महत्या की भेंट चढ़ गया...जुलाई माह की बारिश ने उसकी सारी फसल चौपट कर दी.. उस पर बैंक की तीन लाख व साहूकार की दो लाख की कर्ज अदायगी थी..
वहीँ दूसरी खबर विदर्भ के किसानों ने दिल्ली में कृषि मंत्री शरद पवार के आवास पर प्रदर्शन किया ज्ञापन के साथ जली रोटी भी भेंट की..उन्होंने बताया कि 1995 में एक क्विंटल कपास की कीमत 2500 रुपये और सौ ग्राम सोने की कीमत 5000 रुपये थी.आज हालत यह है की 8 क्विंटल कपास बेचकर भी दस ग्राम सोना नहीं खरीदा जा सकता...

अंक युद्ध है सबसे खतरनाक इनदिनों

सबसे खतरनाक आंकड़ों का खेल

आंकिक समीकरण से सारे हित साधे जाते


अंकगणित से हवाओं को उकसाया जाता

फिर फिजां पर बरपता कहर और हम सारे लोग

हम सारे निनानब्वे फीसद,कहीं भी चाहे हों जहां


इस ग्रह के वासी मनुष्य सारे,तेलयुद्ध में

झुलसते या फिर सांप्रदायिकता में भुने जाते


या रोस्ट होकर बनते शिक कबाब

ओपन मार्केट नरसंहार में या कारपोरेट


लोकतंत्र में निरंकुश अबाध पूंजी के

अनंत जलप्रलय और रेडियोएक्टिव सुनामी


में मारे जाते लोग तमाम,देश,काल,परिस्थिति

निरपेक्ष डालर प्रजाजनों के लिए कयामत


पूरा माहौल ट्विस्टर में तब्दील यकायक

मेघ,नदियां,झीलें सर्वसंहारक जलस्तंभ में

तब्दील यकायक कहर बरपाते


कूट गणीतीय चिन्हों के वृहद जाल में

डैनाकटे पंछी की तरह फड़फड़ाते हम


और जो कुछ भी बहता है

हो जाता तब्दील खून


वृत्त अंधकार में ब्लैक होल के

सर्न में तब्दील जीवन यापन


जहां प्रयोग होते रहते कास्मिक

और हमे खबर ही नहीं होती


यह वैश्विक नरसंहार संस्कृति दरअसल

गणित युद्ध है और सारे समीकरण

रचे गये हैं हमारे विरुद्ध


सारे समीकरण हमारी समझ

के बाहर हैं इसीलिए कि

गणित के कूट संकेत

से अनजान हैं हम सभी



आसमान से जमीन तक

वृत्त ही वृत्त हैं


पृथ्वी जैसे गोल है

वृत्तीय है वैश्विक व्यवस्था


सत्ता वर्चस्व,रंग भेद, लोकतांत्रिक बंदोबस्त,

कारपोरेट राज,राजनीति,साहित्य,


संस्कृति और फिल्में तक

यहां तक तमाम विधाएं


सौंदर्यशास्त्र,व्याकरण,भाषाएं

और लोकभाषाएं तक

इसी वृत्त चक्र में


त्रिशंकु है आम आदमी हर कहीं

हर त्रिभुज त्रिशुल की तरह

शूली पर चढ़ा रहा हमें


सारे के सारे गणितीय सवाल

भूल पद्धति से रचे गये हैं


और उनके समीकरण भी

पहले से तय हैं


हर प्रमिति स्वयंसिद्ध हैं

सारे निष्कर्ष शाश्वत हैं

नियतिबद्ध और हम सभी


सारे सीमांत मनुष्य व्रात्यजन

नस्ली रंगभेद  के शिकार

कर्मफल के सिद्धांत से पीड़ित


गणित से भाग रहे हैं हम

इसीलिए अर्थ व्यवस्था पर

सत्ता वर्चस्व अभेद्य तिलिस्म

इसीलिए यह शोषण तंत्र अबूझ तिलिस्म


सारे पारमाणविक,रोबोटिक आयुध

गणित के हिसाब के मुताबिक


वोटबैंक गणित के हिसाब से

देशों और राज्यों का बंटवारा गणित के हिसाब से


बाढ़,भूस्खलन,भूकंप,जलप्रलयऔर सुनामी

यानी कि सारी प्राकृतिक आपदाएं


सारे युद्ध और गृहयुद्ध

घनघोर युद्ध है

और हम बिना लड़े पराजित


बच्चे अब गणित नहीं सीखते

सबसे मेधासंपन्न जो बच्चे हैं


आईआईटी और आईआईएम में

हुआ जिनका दाखिला


वे गणित को घाटे का

सौदा मानने लगे हैं अब

गणित से भागकर तकनीक कमा रहे हैं


तकनीक के पीछे अंधी दौड़ है

पर हर तकनीक के पीछे

है गणित का खेल


बचपन में हमने गणित के नशे के मारे

घर खेत के काम अक्सर भूल जाते थे


पीतांबर पंत ने जो लसप मसप

सिखा दिया एकबार हम

बचपन भर गणित के दीवाने थे


गणित के सवाल हल करते रहने के कारण

केती के काम में हुए चूक की वजह से

सबसे ज्यादा पिटे हम


फिर साहित्य की चाट ऐसी लगी कि

गणित को सिरे से भूल गये हम


मनचाही परिभाषाएं वे गढ़ते

निराधार विकासदरें घोषित करते वे


रेटिंग का आतंक रचते वे

राजस्व घाटा वित्तीय घाटा बताते


बिना हिचक लाखों करोड़

के निवेश का दावा करते


लाखों करोड़ का गबन करते सुरक्षित

हम सिर्फ बुरबक की तरह अबूझ

संख्याओं को टटोलते


हर वक्तव्य के साथ उन्हीं

फर्जी आंकड़ों को दोहराते


जुगाली करते विकास की

हजनाते अपना सत्यानाश


कूट संकेत हमारे पल्ले नहीं कुछ

समीकरण भी हम नहीं समझते कुछ


हमसे तो बेहतर हैं नियमागिरि के

कौंध आदिवासी जो जिंदाबान के सिवाय

कुछ भी नहीं जनाते


और मजा देखिये एक जिंदाबान

सारे कूट संकेतों पर

सारे समीकरण,प्रमितियों पर भारी


हमारी तमाम समस्याओं की निर्माण के

पीछे राज यही है कि हर कर्मकांड

हर संस्कार के पीछे गणित है


गणित परिस्कार

माझा बहिस्कार

माझा तिरस्कार


हा देश माझा देश नाही

मी स्वदेश मध्ये विदेशी


सांगले का कि काय  विदेशी

बोलते का,थांबा रथी

थांबा महारथी


बोलते का सुधारविरुद्धे शंप

बोलते का विनिवेश विरुद्ध शंप

बोलते का जनविरुद्ध बजट निषेध

बोलते का जनविरुद्ध योजना निषेध


बोलताइच नको आम्ही

बोलताइच नको तुम्ही

नको नको नको


सांगले का,मी हिसाब मांगतो

माझा हिसाब दो

नको नको नको


जय हो जय जयहो


अंध भक्त सारे

आशाराम बापू के


निषिद्ध किंतु विवेक

आस्था प्रबलतम बस स्थानक

अधंकार अभिमुखे


हमारे खिलाफ अमोघ गणित

सारे के सारे कूट मंत्र बीजमंत्र हैं

हम जापते रहते हैं



बिना समझे हम अपने

सर्वनाश का संकल्प करके

करते हैं पुण्यस्नान


यह भी गणित है कि किसे

सत्ता में लाना है

किसे धूल चटवाना है


कैसे क्या कानून बनाने हैं

कैसे होंगे नीति निर्धारण


किसे उठाना है और किसे गिराना है

किसे बकरा बनाकर बलि पर चढ़ाना है


कैसे न्याय और समता को निपटाना है

कैसे लेकतंत्र के बहाने

सदैव सत्ता वर्ग का वर्चस्व बहाल रखना है


कैसे समता सामाजिक आंदोलन

को बाट लगा देना है


सबकुछ गणित का खेल है


अपराधी सजाकर किसी को

सारे अपराधी जो बच निकलते हैं

उसमें भी गणित है


योजनाओं में गणित है

शेयर बाजार के हर उतार चढ़ाव

में विशुद्ध गणित है


गणित का अभ्यास किये बिना

हम शेयर बाजार में हो रहे दाखिल

हर शेयर का गणित

लेकिन हमारे विरुद्ध है


विकास के गणित सबसे जहरीले

उसके रसायन से बचना सबसे मुश्किल


केंद्र राज्य समान साझेदार

वाम दक्षिण समान साझेदार


धर्मोन्मादी और धर्मनिरपेक्ष

बराबर के साझेदार


समीकरण सधे हुए हैं

तेल अबीब,वाशिंगटन

नयी दिल्ली के त्रिभुज में


योग वियोग गुणा भाग

कैसे भी करो हल सवाल


हर सवाल हमारे विरुद्ध है

हर हल हमारे विरुद्ध है


हर प्रतिफल हमारे विरुद्ध है

हर गणित हमारे विरुद्ध है

हर समीकरण हमारे ही विरुद्ध


अंधेर नगरी है यह

फांसी की रस्सी माफिक बैठेगी

जिसके गले में उसीको फांसी है


हर मोटी गरदन, मुलायम गरदन को

बचा लेने और आपके हमारे सर

कलम करने के गणित हैं


गणित हैं हर फर्जी मुठभेड़ के

हर रैली के गणित हैं


गणित हैं हर गठजोड़ के

हर राजनीतिक फैसले के


हर हिंसा ,हर आतंक,हर दंगे के पीछे

बिखरे हैं तमाम कूट संकेत


तमाम समीकरण बारुदी सुरंगें बिछी हैं

आपके हमारे सफाये के लिए


आप हम जूझते रहे एक दूसरे से

मार काट करें आपस में

आपस में ही लड़ मरें


अपने ही खून से रंगे अपने हाथ

स्वजनों के खून से होली खेलें


कभी न मिलें

आपके और हमारे हाथ


कभी न हों हम साथ साथ

चाकचौबंद इंतजामात ये सारे

विशुद्ध गणित हैं


और हम हैं कि समीकरण देखते ही

चित्त हो जाते हैं ठुकवाने खातिर


सवालों से वास्ता नहीं कोई हमारा

सवाल हमें डराते हैं और उत्तेजित

भी करते हैं


हम रकम समझते हैं

अनुदान समझते हैं हम


हम वेतनमान समझते हैं

हम मंहगाई भत्ता समझते हैं


हम अनुग्रह राशि समझते हैं

और बेहद कामोत्तेजित हो जाते हैं


फौरन आर देखा न पार

करे जाते हैं हनुमान जी का नाला पार


वृत्त में समाहित हो जाते हैं

या त्रिभुज के नीचे दब जाते हैं

राजमार्ग पर होने वाली दुर्घटनाओं की तरह


हम नहीं जानते कि कैसे होता है

करारोपण किसके विरुद्ध

और किसके विरुद्ध नहीं


हम यह भी कतई नहीं समझते कि

जिसे पकड़ा गया वह अपराधी है

या अपराधियों को कटघरे में खड़ा

करने की कीमत चुका रहा निरपराधी है


हम नहीं जानते कि राजस्व घाटा

का समीकरण क्या है


क्या बला है आखिर भुगतान

संतुलन और यह तो कतई नहीं समझते कि


आम आदमी की जब आती है शामत

तो हर गीदड़,भलू और सांढ़ क्यों भागता

है अंध शेय़र बाजार की तरफ


क्यों नीतियां बदलने पर

या फिर नीतियां बदलने के लिए


अध्यादेश जारी करने और जारी न करने के लिए

कानून बनाने और कानून बदलने के लिए


हर बार क्यों या तो शेयर बाजार गिरता है

या फिर शेयर बाजार उठता है


हम यह गणित भी नहीं जानते

नकारने के अधिकार मिलने के बाद भी

कोई ईवीएम नहीं निकालेगा कोई जनादेश


जनादेश पहले से गणित के सिद्धांत के

अनुसार रेडीमेड है और


मतदान की रस्म में

आत्मरति संपन्न होने के बाद


बस, उसे अंजाम तक पहुंचाना होता है

चुन चुनाकर थके हारे निवृत्त हम सेवा निवृत्त


तब कोई सांडे,जापीनी तेल

या डियोड्रेंट यावियाग्रा काम नहीं आता है


इस देश में शीघ्र पतन स्थायी भाव है

और कुंठासमग्र आध्यात्म है


हम बार बार बताने समझाने के बावजूद

समझने को कतई तैयार नहीं है कि


कंप्यूटर डाटा सेंटर का क्या

कारपोरेट तात्पर्य है


बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकता

का क्या गणीतीय समीकरण है कूट


हम बेदखली के हर कूट संकेत

को विकास के आंकड़े समझते रहे हैं


नरसंहार की संस्कृति को हम आर्थिक

सुधार मानकर हो रहे कामनिवृत्त

वृत्तीय उपनिवेश वृत्त


खुद को हर बार लंब समझकर

हम अंततः समाहित वृत्त


हमारा हर योग अंततः वियोग

हमारा हर गुणा अंततः भागफल


जैसे हमारा बीमा प्रीमियम

जैसे हमारा पीएफ,ग्रेच्युटी


जैसे हमारा पेंशन


जैसे मजीठिया वेतन आयोग


ऐरा गैरा नत्थू खैरा कोई भी आयोग

जैसे हमारा वेतनमान और

मलाईदार जीवन यापन


का समीकरण अंततः

हमारे बच्चों को सार्वभौमिक


सर्वांगीण तकनीकी विकास है

यना सर्वांगीण सत्याऩाश है

सार्वभौमिक अंधकार है


हम सर्विस के गणित को समझते हैं

उत्पादन के संगीत स्तब्ध करने का

जो गणित है,उसे कतई नहीं


कृषि को, भूमि को, ग्राम और देहात को

हिमालय को,पूर्वोत्तर को


आदिवासी अनुसूचित और

अल्पसंख्यक भूगोल को

युद्धबंदी बनाने का गणित


हम कतई नहीं समझते हैं

यकीनन नहीं समझते हैं


नहीं समझते कि कैसे उत्पादन के बजाय

भारतीय अर्थव्यवस्था


विशुद्ध अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह है

और विशुद्ध कालाधन प्रणाली है


नहीं समझते कि कैसे मुद्रास्फीति और

मंहगाई विदेशी व्यापार आईपीएल है


हम सिर्फ हर चौके पर

हर छक्के पर चियरिनों की

नंगी टांगो की संगत में


उछलते हैं,नाचते  और गाते हैं

अपने ही खून की चुस्की लगाते हैं


हम यह तकई नहीं कि रोजगार सृजन

के बिना हर योजना विशुद्ध सरकारी खर्च है


सरकारी खर्च से,हमारी सब्सिडी,हमारे टैक्स से

वोट समीकरण की प्रमिति है हर योजना


हम समझते नहीं कि बजट कैसे कारपोरेट

बैठकों में तय होता है


कैसे वैश्विक व्यवस्था के हितों के

मुताबिक बनता है बजट


गुलामों के चूतड़ दागे जाने पर भी

गुलाम गू चाटने की आदत से मजबूर


हमारे पिछवाड़े अगवाड़े

खुल्ले दरवज्जे


सर्वत्र लग गये हैं ठप्पे

ठप्पे  ही ठप्पे


हवा पानी और मौसम पर भी

लग गये हैं ठप्पे


हम यह गणित समझते ही नहीं हैं

नको नको नको


खूब उछल रहे हैं हमारे लोग देशभर में

खूब उछाल रहे हैं अपनी अपनी सरकारें

अपना अपना प्रधानमंत्री


हम यह गणित समझ ही नहीं रहे हैं

कि सरकारें हों,वित्तमंत्री हों,

या फिर प्रधानमंत्री हम उन्हें चुनते नहीं हैं


आलरेडी वे चुने गये हैं

हम सिर्फ अनुमोदित कर रहे हैं


सधे हुए समीकरण

सिद्ध प्रमिति साध रहे हैं हम

क्योंकि शुरु से गणित से भाग रहे हैं हम


ভোজবাজি,ইলিশে ইলিশ বাঙালি


পলাশ বিশ্বাস

সারা বিশ্ব জানে বাঙালি ভোজন রসিক

রাতদুপুরে ভোজ প্রব শেষ করে

আন্ডা বাচ্চা নিয়ে

ঘরে ফেরে বাঙালি

বাঙালি বলতে এমন জাতি

যারা শুধু খেতে আর

শুতে জানে


সাইক্লোন হলেও

থামবে না অসুর নিধন

উত্সব অসুরদেশে

সবাই আমরা উঁচু জাত

জাত পাতের উর্দ্ধে বাঙ্গালি

সামাজিক ন্যায় এটাই

মহিষমর্দিনী আরাধণায়

অসুরদের ভূমিকা

প্যান্ডেল দেখা পর্যন্ত সীমাবদ্ধ

অব্রাহ্মণের স্পর্শে

দেবীর ভোগ অপবিত্র


শ্রীনিকেতন সোদপুরে

মাছি গলা মুশ্কিল

গড়িয়াহাটে প্রচন্ড ভিড়

কলকাতা হাওড়া দুর্গাপুর

আসনসোল শিলিগুড়ি

বাঙালি উপনিবেশে

সর্বত্রই পুজোর ধূম


টিভিতে বিতর্ক প্যাণেল

হঠাত ভ্যানিশ

কেনা কাটা লেনদেন

খবরের কাগজে,টিভিতে

অনলাইন,দেশের যা হোক

তা হোক,গোল্লায় যাক্

বাংলা বাঙালির কি


পাসের বাড়ির খবর

রাখে না বাঙালি

প্রতিবত্সর নিয়ম মাফিক

নিম্নচাপ বাজার আগুন

বোনাসের ভোজবাজি চালু

মহার্ঘ ভাতায় স্টেটাস

তা যদি না হয়

কিস্তিতে বাজিমাত

সারা বছর নাক উঁচু


বাংলা খবরের কাগজে

অর্থনীতি নিয়ে কোনো

খবর হয় না

সামকালীন সমাজ বাস্তব

আলোচনার বিষয় নয়

ব্রাত্যরাই সবার আগে

রাজনীতির বলি উত্সবে

জলমগ্ন বাংলার ছবি হয় না


পুজো কভার করতে

কিন্তু বাংলা কাগজের

বাঘা বাঘা সাংবাদিক

পাড়ি দিচ্ছে সাগর পার

আমেরিকা ইউরোপ

বাঙালিয়ানার সর্বশ্রেষ্ঠ

অভিব্যক্তি উত্কর্ষ

অরনিধনে,অসুর বাঙালি

মজেছে অসুর নিধনে


বাংলায় একচেটিয়া

আধিপাত্যে অভ্যস্ত আমরা

বহুদিন বাদে রঙ বদলেছে

বাংলায়,রঙ্গ বদলায়নি বঙ্গে

সমাজে,জীবনে প্রতিটি ক্ষেত্রে

আমরা পুজারি অধীন

ব্রাত্য যযমান

দান দক্ষিণায়

বারো মাসে তেরো পার্বণ

আর্যাবর্ত পিছড়া

বৌদ্ধময় অসুর বাংলা

আর্যত্বে সর্বশ্রেষ্ঠ


অর্থব্যবস্থায় বহিস্কৃত

আমাদের কি আসে যায়

আমাদের ট্যাক্সে

ভোটব্যান্ক বিকিকিনি

আমাদের কি আসে যায়

আমরা শুধু ট্যাক্স গুনি

সুশান্ত নাগরিক সমাজ

আমরা,নাগরিক অধিকার

লক্ঙ্ঘিত হল কিনা

ধর্ষিতার পরিবারেও

চাকরির টোপ রামবাণ

টাকা পেলেই চলে ভুরি ভোজ

আন্দোলন শুধু কথার কথা

টিভিতে মুখ দেখানো

রাজনীতির আত্মঘাতী

নৈরাজ্য প্রাণ দিতে

পিছপা হই না

আবার সমতা ও সামাজিক

ন্যায়কে ঘৃণা করি প্রচন্ড


পতাকা তুলে দাঁড়িয়ে

সর্বত্র সবজান্তা বাঙালি

খবরের কাগজের গল্প পড়ে

সবজান্তা বাঙালি

পাড়ায় পাড়ায় রকে রকে

বৈপ্লবিক বিতর্কে

তুমুল আন্দোলিত বাঙালি

অথচ পার্টিবদ্ধ বাঙালি

মাতৃপুজায় নিষ্ণাত এমত যে

পার্টিবদ্ধ গুন্ডামি, বজ্জাতি,

জালিয়াতি,প্রোমোটারি,ধর্ষণ,নরহত্যা,

গণসংহার ক্ষমাসুন্দর চোখে দেখতেই

অভ্যস্ত বাঙালি,ঠিকঠাক দাম

পেলে কামদুনি বাঙালি

মরিচঝাঁপি গণহত্যা

তিন দশক পরেও

ভুলে আছে সেই বাঙালি


চলছে নবান্ন উত্সব

চলছে দুর্গোত্সব

মুসলিমদের কি করণীয়

বা মুলনিবাসীদের

কি করণীয় লিখলেই ব্রাত্য

মণীষী,অথচ ব্যাক্তি সম্মানে

বনিজের ভাগ বুঝে নিতে

কসুর করে না বাঙালি


রবীন্দ্র নাথের কিস্সা

কি কম দিলচস্প

অছুত ম্লেচ্ছ ব্রাহ্ম সন্তান

নোবেল পেতেই রাতারাতি বিশ্বকবি

আজও সমানে চলছঠে মাতামাতি

চন্ডালিকা মন্চণে গর্বিত বাঙালি

অথচ চন্ডালত্ব বহাল রাখতে

কসুর করে না বাঙালি

নরমেধ উত্সবে সংস্কৃতি

গৌরবে গর্বিত বাঙালি


নেতা মন্ত্রী সন্ত্রী সবাই

পার পেয়ে যায়

দেখেও দেখেনা বাঙালি

চোর ধরার ঝক্কির চেয়ে

ধরা পড়া চোর পেটানোয়

ওস্তাদ বাঙালি

ক্ষতিপূরণ যত্সমান্য

যাহোক চেক পেলেই ধন্য

ধন্য বাঙালি

চেক ত হলই সঙ্গে

হল ভুরি ভোজ


ইলিশে ইলিশ বাঙালি

আমরা প্রভুর পা চাটব

যেমন চেটেছি ইংরেজ আমলে

মোগল পাঠান জমানায়

নিজেরটা বুঝে নেব

নিজের পরিচয় গোপনে

সবার সেরা বাঙালি

সবাই উঁচু জাতি

পার্টি মিটিং যদি হয়

ব্রিগেড লাখো লাখ বাঙালি


অহন্কারে জমিতে পা পড়ে না

সবাউকে তুচ্ছাতিতুচ্ছ

মনে করে বাঙালি

সারা পৃথীবীর খবর রাখে

বাঙালি,ভিন রাজ্যের

খবর রাখে না বাঙালি

স্বজনদের পর করতে

সবার সেরা বাঙালি


পরের গুলামিতে

দিল্লীর গুডবুকে

করপোরেট একচেটিয়া

আক্রমণের প্রসঙ্গে

গুলামগিরিতে অভ্যস্ত

বাঙালি,উদ্বাস্তুদের

ভিন রাজ্যের অমনীষী

আম আদমিকে মানুষ

মনে করে না বাঙালি


আমরা একে অপরের সঙ্গে

আলোচনায় একতরফা

বক্তৃতায় অভ্যস্ত,

সংলাপে অনভ্যস্ত বাঙালি

মরব তাও ভালো

স্বজনদের সাথে

এক আসনে বসবে না

অস্মতের সম্মতি নিয়ে

মাথা ঘামাবে না বাঙালি

গণতন্ত্র এই বঙ্গে

নিখাদ নৈরাজ্য সন্ত্রাসের

মোত্সব,ভুরিভোজ নির্লজ্জ


সবকিছু জানে,বোঝে

শুধু সময় বুঝে

সমঝে চলে বাঙালি

বাঙালি,পার্টি লাইনের

বিরুদ্ধে একটি কথাও

বলবে না বাঙালি

যারা বাহুবলে জিতে

নেবে সবকিছু

তাঁদেরই জেতাতে

ভোট দেবে বাঙালি

পরাজিতের সম্মানে

অভ্যস্ত নয় বাঙালি

বিজিত বধে মেতে

আছে সর্বত্র সেই বাঙালি


বাংলাদেশে শহবাগ হোক

বাঙালির কিছু যায়

আসে না,ওপার বাংলার

ব্রাত্যজনেরা ভিনরাজ্যে

এমনকি বাংলার মাটিতে

মরুক বাঁচুক, বেপরোয়া বাঙালি

বাংলা বাংলাদেশ বলতে

অথচ মদহোশ বাঙ্গালি

বাঙালি জাতিয়তাবোধ

বলতে সার্বজনিন

ব্রাহ্মণত্ব সংস্কার

বাঙালির জাতিয়তাবোধ

বলতে শুধুর পদ্মার ইলিশ

ইলিশে ইলিশ বাঙ্গালি


বাঙালির ধর্মনিরপেক্ষতা

মুখ্যমন্ত্রীতকে দিয়ে

পাইকারি পুজো উদ্বোধন

দ্বিতীয়াতেও,পাড়ায় পাড়ায়

মন্ত্রীদের পুজো

মৌলবিদের ভাতা

ঈদে গোল টুপি পরে নামাজ

মুসলিম বেশে

ভোটের রাজনীতি

রাষ্ট্রপতি ভবনে মন্দির

রাষ্ট্রপতির চন্ডীপাঠ


ধুনিচের ধোঁয়ায

রংবাহারি পাজারি আলোয়

বাঙালির চোখে ধাঁধা

ঢাকের বাদ্যিতে

বাঙালি আজ

বলির পাঁঠা

ইলিসে ইলিশ বাঙালি


Reuters India
One in eight people around the world go hungry, says U.N. reporthttp://reut.rs/1eW6vNq

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प्रेस-कॉन्फ्रेंस/28 सितंबर 2013

सुषमा असुर ने आज झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपील की है कि दुर्गा पूजा के नाम पर असुरों की हत्या का उत्सव बंद होना चाहिए. असुर आदिम आदिवासी समुदाय की युवा लेखिका सुषमा ने कहा कि महिषासुर और रावण जैसे नायक असुर ही नहीं बल्कि भारत के समस्त आदिवासी समुदायों के गौरव हैं. वेद-पुराणों और भारत के ब्राह्मण ग्रंथों में आदिवासी समुदायों को खल चरित्र के रूप में पेश किया गया है जो सरासर गलत है. हमारे आदिवासी समाज में लिखने का चलन नहीं था इसलिए ऐसे झूठे, नस्लीय और घृणा फैलाने वाले किताबों के खिलाफ चुप्पी की जो बात फैलायी गयी है, वह भी मनगढंत है. आदिवासी समाज ने हमेशा हर तरह के भेदभाव और शोषण का प्रतिकार किया है. असुर, मुण्डा और संताल आदिवासी समाज में ऐसी कई परंपराएं और वाचिक कथाएं हैं जिनमें हमारा विरोध परंपरागत रूप से दर्ज है. चूंकि गैर-आदिवासी समाज हमारी आदिवासी भाषाएं नहीं जानता है इसलिए उसे लगता है कि हम हिंदू मिथकों और उनकी नस्लीय भेदभाव वाली कहानियों के खिलाफ नहीं हैं.


झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की सुषमा असुर ने कहा कि असुरों की हत्या का धार्मिक परब मनाना देश और इस सभ्य समाज के लिए शर्म की बात होनी चाहिए. सुषमा ने कहा कि देश के असुर समाज अब इस मुद्दे पर चुप नहीं रहेंगे. उसने जेएनयू दिल्ली, पटना और पश्चिम बंगाल में आयोजित हो रहे महिषासुर शहादत दिवस आयोजनों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की और असुर सम्मान के लिए संघर्ष को जारी रखने का आह्वान किया. सुषमा ने कहा कि वह सभी आयोजनों में उपस्थित नहीं हो सकती है पर आयोजकों को वह अपनी शुभकामनाएं भेजती है और उनके साथ एकजुटता प्रदर्शित करती है.


प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखड़ा की महासचिव वंदना टेटे भी उपस्थित थीं. उन्होंने कहा कि आदिवासियों के कत्लेआम को आज भी सत्ता एक उत्सव की तरह आयोजित करती है. रावण दहन और दुर्गा पूजा जैसे धार्मिक आयोजनों के पीछे भी एक भेदभाव और नस्लीय पूर्वाग्रह की मनोवृत्ति है.


सुषमा असुर

वंदना टेटे

झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा

Shabnam Hashmi added a new photo.

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Chaman Lal
दोषी करार दिए गए नेतावों के संधर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय प्रथम द्रष्टया स्वागत योग्य लगता है, लेकिन इस निर्णय के पीछे सुप्रीम कोर्ट का 'Judicious conscience' नहीं है बल्कि विदेशी ब्राह्मणों का देशीय लोगों (SC, ST, OBC AND MINORITIES) को ब्राह्मणों की न्याय व्यवस्था का दुरूपयोग करके उनको दोषी करार देकर षड्यंत्रपूर्वक सत्ताविहीन करके , मूलनिवासी नेतावों को ब्राह्मणों के ऊपर आश्रित करके समस्त मूलनिवासियों की गुलामी को धीर्गजीवी करने का षड़यंत्र है !

Dilip C Mandal
देश की राजनीति और अर्थनीति की जिन्हें थोड़ी-बहुत भी बुनियादी समझ है, वे जानते हैं कि देश के सबसे भ्रष्ट 100 नेताओं की लिस्ट में आने के लिए लालू प्रसाद को अपने भ्रष्टाचार का आकार दस गुना करना होगा. कांग्रेस के कई नेता ऐसे हैं जिनकी पेट में दस लालू प्रसादों का भ्रष्टाचार समा जाएगा. इसलिए निचली अदालत का एक फैसला हुआ है, तो उसे संयत होकर देखना चाहिए. ज्यादा फूं-फां करने और जमाने भर का मतलब निकालने की कोई जरूरत नहीं है.

साथ में यह भी पढ़िए

लालू यादव का क्या योगदान है? शुरुआत के तौर पर यह रहे मेरे फुटकर नोट. आगे आप जोड़ सकते हैं.

1. बिहार में पिछड़ी जाति के राजनीतिक उभार का जो सिलसिला जननायक कर्पूरी ठाकुर ने शुरू किया, उसकी स्वतंत्र सवारी की.
2. बिहार में दलित राजनीति के स्वतंत्र विकास को रोक दिया.
3. विकासहीनता यानी एंटी डेवलपमेंटिज्म को एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. विकासविरोध की हद तक का राजनीतिक सफर तय किया.
4. 15 साल तक मोटे तौर पर दंगामुक्त शासन दिया.
5. वामपंथी राजनीति को कमजोर किया. वामपंथी स्पेस को अपने साथ कर लिया
6. अंधविश्वास और पूजा-पाखंड में आकंठ डूबे रहे. वैज्ञानिक चिंतन विकसित करने के ऐतिहासिक कार्यभार को पूरा नहीं किया......

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जनज्वार डॉटकॉम
हर साल सैकड़ों की संख्या में सहरिया आदिवासी बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं. इन बच्चों के चेहरों पर भूख साफ दिखाई देती है. जन्म से ही शारीरिक कमजोरी की जकड़ में फंसे रहते हैं. सरकार इनके भूख व कुपोषण से न मरने की खबरों का खंडन कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं...http://www.janjwar.com/society/1-society/4379-dam-todta-masoom-bachpan-for-janjwar-by-babulal-naga— with Dayamani Barla.

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सुनीता भास्कर
सप्ताह के अंत में लन्दन एक बड़ी पार्टी में तब्दील हो जाता है.पब जोरदार बिजनेस कर रहे हैं. रेस्त्रां में जगह नहीं मिलती....लेकिन लन्दन के उत्तर में आगे बढ़ें तो 50 शहरों के एक चौथाई घरों में काम पर जाने वाला कोइ नहीं है.ग्लासगो के 30 फीसद घरों में कमाने वाला कोइ नहीं है..(दैनिक भास्कर में केविन रैफर्टी )..आगे लिखते हैं की ब्रिटेन में जीरो आवर नाम का एक नया कांट्रेक्ट ईजाद किया गया है यानि कर्मचारी काम पर तो है लेकिन कंपनी को उसे ऐसी कोइ गारंटी नहीं देनी है कि उसे सप्ताह या माह में कितने घंटे का काम मिलेगा.ब्रिटेन के एक बड़े हिस्से में यह आम हो गया है.56 फ़ीसद होमकेयर वर्कर,होटल रेस्त्रां के 20 फीसद वर्कर,हेल्थ केयर के 15 फीसद व शिक्षा क्षेत्र के 10 फीसद वर्कर इसी जीरो आवर कांट्रेक्ट के तहत काम कर रहे हैं. यहाँ तक की ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, मैनचेस्टर जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों तक के लेक्चरर तक जीरो आवर में काम कर रहे हैं.........भारत में भी यही हालत आ ही चुके हैं...विवि तक लगभग डेढ़ दशक से ठेके के शिक्षकों से चलाये जा रहे..बेसिक माध्यमिक शिक्षा भी शिक्षा मित्र व बन्धुवों के हवाले है..रोडवेज समेत तमाम विभाग भी आउट्सोर्सिंग एजेंसियों से ठेका मजदूर रखते हैं जिन्हें कब निकाला हो जाए उन्हें खुद पता नहीं रहता.रोजगार के नाम पर .इतनी अनिश्चतताओं के बीच हर कोइ जीने को विवश है..और दूजी तरफ मेक्डोनाल्ड, पब रेस्त्रां भी गुलजार हैं..कौन ईजाद कर रहा यह दो दुनियाएं...अमेरिका में तो एक फीसद अमीर लोग यह भी कहने लगे हैं कि उनके जीवनस्तर का सम्मान करते हुवे उन्हें आयकर में छूट दी जानी चाहिए..
Sanjay Khobragade
कहा जाता है १९ सप्टेम्बर से ४ अक्तूबर तक पितृमोक्ष अमावश्या है जिस समय कोई भी अच्छा काम नहीं किया जाता. पितृमोक्ष अमावश्या में पित्तर याने की पुर्वजोंको ब्राह्मणों के जरिये खाना खिलाया जाता है . ज़िंदा रहते हुवे माँ बाप को तकलीफ देनेवाले कई सद्गृहस्थ मरने के बाद खाना खिलाते हुवे दिख जायेंगे. गोदामों में पडा हुवा अनाज गरीब लोगोंके मुह तक नहीं पहुच पाने वाले देश में अन्ध्श्रध्हा और भोंदुगिरी के नाम पर पित्तरों को खाना खिलाने का रिवाज हमारी घटिया संस्कृति को दिखाता है. मंदिरों के अन्दर चढ़ाया गया फल, खाना, पैसा अगर बहार बैठे भिखारी तक नहीं पहुँच सकता तो यहाँ चढ़ाया गया दान और खाना उप्पर कैसे पहुचेंगा ? लोगोंको किसीभी तरीकेसे लुटाने की परंपरा का समर्थन वैज्ञानिक दृष्टीकोण रखने वाले इस देश के बहुजन किसी भी सूरत में नहीं कर सकते. जयभीम

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Equation

From Wikipedia, the free encyclopedia

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This article may be expanded with text translated from the corresponding article in the French Wikipedia. (February 2013)

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This article is about equations in mathematics. For the chemistry term, see chemical equation.

The first use of an equals sign, equivalent to 14x + 15 = 71 in modern notation. From The Whetstone of Witte byRobert Recorde (1557).

In mathematics, an equation is a formula of the form A = B, where A and B are expressionsthat may contain one or several variables called unknowns, and "=" denotes the equalitybinary relation. Although written in the form of proposition, an equation is not a statement, but a problem consisting in finding the values, called solutions, that, when substituted to the unknowns, yields equal values of expressions A and B. For example, 2 is the unique solutionof the equation x + 2 = 4, in which the unknown is x.[1] Historically, equations arose from the mathematical discipline of algebra, but later become ubiquitous. An equation may not be confused with identities which are presented with the same notation but have a different semantic: for example 2 + 2 = 4 andx + y = y + x are identities (which implies they are necessarily true) in arithmetic, and do not constitute any values-finding problem, even if include variables.

Equation may also refer to a relation between some variables that is expressed by the equality of some expressions of their values. For example the equation of the unit circle is x2 + y2 = 1, which means that a point belongs to the circle if and only if its coordinates are related by this equation. Most physical laws are expressed by equations. One of the most popular ones is Einstein's equation E = mc2.

The = symbol was invented by Robert Recorde (1510–1558), who considered that nothing could be more equal than parallel straight lines with the same length.

Centuries ago, the word "equation" frequently meant what we now usually call "correction" or "adjustment".[original research?] This meaning is still occasionally found, especially in names which were originally given long ago. The "equation of time", for example, is a correction that must be applied to the reading of a sundial in order to obtain mean time, as would be shown by a clock.

Contents

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Parameters and unknowns[edit]

See also: Expression (mathematics)

Equations often contain other variables than the unknowns. These other variables that are supposed to be known are usually calledconstants, coefficients or parameters. Usually, the unknowns are denoted by letters at the end of the alphabet, x, y, z, w, …, while coefficients are denoted by letters at the beginning, a, b, c, d, … . For example, the general quadratic equation is usually writtenax2 + bx + c = 0. The process of finding the solutions, or in case of parameters, expressing the unknowns in terms of the parameters is called solving the equation. Such expressions of the solutions in terms of the parameters are also called solutions.

A system of equations is a set of simultaneous equations, usually in several unknowns, for which the common solutions are sought. Thus a solution to the system is a set of one value for each unknown, which is a solution to each equation in the system. For example, the system

has the unique solution x = −1, y = 1.

Analogous illustration[edit]

Illustration of a simple equation; x, y, zare real numbers, analogous to weights.

The analogy often presented is a weighing scale, balance, seesaw, or the like.

Each side of the balance corresponds to each side of the equation. Different quantities can be placed on each side, if they are equal the balance corresponds to an equality (equation), if not then an inequality.

In the illustration, x, y and z are all different quantities (in this case real numbers) represented as circular weights, each of x, y, z has a different weight. Addition corresponds to adding weight, subtraction corresponds to removing weight from what is already placed on. The total weight on each side is the same.

Types of equations[edit]

Equations can be classified according to the types of operations and quantities involved. Important types include:

Identities[edit]

Main articles: Identity (mathematics) and List of trigonometric identities

An identity is a statement resembling an equation which is true for all possible values of the variable(s) it contains. Many identities are known, especially in trigonometry. Probably the best known example is: , which is true for all values ofθ.

In the process of solving an equation, it is often useful to combine it with an identity to produce an equation which is more easily soluble. For example, to solve the equation: where θ is known to be between zero and 45 degrees,

use the identity:  so the above equation becomes:

Whence:

Properties[edit]

Two equations or two systems of equations are equivalent if they have the same set of solutions. The following operations transform an equation or a system into an equivalent one:

  • Adding or subtracting the same quantity to both sides of an equation. This shows that every equation is equivalent to an equation in which the right-hand side is zero.

  • Multiplying or dividing both sides of an equation by a non-zero constant.

  • Applying an identity to transform one side of the equation. For example, expanding a product or factoring a sum.

  • For a systems: adding to both sides of an equation the corresponding side of another, equation multiplied by the same quantity.

If some functions is be applied to both sides of an equation, the resulting equation has the solutions of the initial equation among its solutions, but may have further solutions called extraneous solutions. If the function is not defined everywhere, (like 1/x that is not defined for x = 0) some solutions may be lost. Thus caution must be exercised when applying such a transformation to an equation. For example, the equation  has the solution  Raising both sides to the exponent of 2 (which means, applying the function  to both sides of the equation) changes our equation into , which not only has the previous solution but also introduces the extraneous solution,

Above transformations are the basis of most elementary methods for equation solving and some less elementary ones, like Gaussian elimination

For more details on this topic, see Equation solving.

See also[edit]

References[edit]

External links[edit]

  • Winplot: General Purpose plotter which can draw and animate 2D and 3D mathematical equations.

  • Mathematical equation plotter: Plots 2D mathematical equations, computes integrals, and finds solutions online.

  • Equation plotter: A web page for producing and downloading pdf or postscript plots of the solution sets to equations and inequations in two variables (x and y).

  • EqWorld—contains information on solutions to many different classes of mathematical equations.

  • EquationSolver: A webpage that can solve single equations and linear equation systems.

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ET NOW
#MarketsNow: Quick market update @ 4:15 pm, 1st Oct. On #ETNOW, get the news that moves the market.

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Abhishek Srivastava
आज शाम पांच बजे गांधी शांति प्रतिष्‍ठान में नियमगिरि आंदोलन की सफलता पर ''कॉरपोरेट पर आखिरी आदमी की जीत'' के नाम से हुए एक कार्यक्रम में कुल जमा 30 लोग थे। इनमें दसेक लोग आयोजक संगठन समाजवादी जन परिषद से थे, पांच पत्रकार थे, चार मंचस्‍थ नेता थे नियमगिरि आंदोलन के और हिंदी के वामपंथी लेखक तबके से मात्र एक व्‍यक्ति थे।

समाज-राजनीति में आम लोगों की अरुचि का संकट अकेले नरेंद्र मोदी का ही नहीं, उन सभी का है जो किसी न किसी स्‍तर पर पब्लिक डोमेन में कार्यरत हैं। मोदी अगर सबसे सफल और लोकप्रिय कॉरपोरेट समर्थित नेता हैं तो खनन विरोधी नियमगिरि का आंदोलन सबसे लोकप्रिय और सफल कॉरपोरेट विरोधी संघर्ष है। विडंबना देखिए कि दोनों को ही श्रोताओं का टोटा है।

अपनी-अपनी राजनीतिक आस्‍था से इतर एक सवाल पूछना चाहता हूं कि इस देश के पढ़े-लिखे लोग आखिर आजकल करते क्‍या हैं? प्‍लीज़, कोई इस पहेली को सुलझाए।— with Mahtab Alam and 8 others.
जनज्वार डॉटकॉम
देश की राजनीति पर चारा घोटाले में आये निर्णय का व्यापक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि विभिन्न राजनीति दल दागियों को प्रत्याशी बनाने से पहले हजार बार सोचेंगे. दागियों के विरूद्ध निर्णय आने की सूरत में सांसद या विधायक से हाथ धोना पड़ेगा, जैसा कि लालू प्रसाद और जगदीश शर्मा के मामले में हुआ...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4378-ab-koi-chara-n-bacha-by-rajiv-for-janjwar-jharkhand-bihar

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