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Saturday, August 8, 2015

ख्वाबों में मोहनजो दोड़ो या फिर हड़प्पा वीरानगी फिर वही तन्हाई कयामत लेकिन दिल में टोबा टेकसिंह फिर वही नफरत कभी नहीं जीतती कोई जंग मुहब्बत के खिलाफ। पलाश विश्वास

ख्वाबों में मोहनजो दोड़ो या फिर हड़प्पा

वीरानगी फिर वही तन्हाई कयामत

लेकिन दिल में टोबा टेकसिंह फिर वही

नफरत कभी नहीं जीतती कोई जंग मुहब्बत के खिलाफ।

पलाश विश्वास

ख्वाबों में मोहनजो दोड़ो या फिर हड़प्पा

वीरानगी फिर वही तन्हाई कयामत

लेकिन दिल में टोबा टेकसिंह फिर वही


बचपन से हम पानियों के वाशिंदा हैं।

बचपन से हम ख्वाबों में जी रहे हैं।


बचपन से हम हवाओं के हम सफर हैं।

बचपन से हम डूब हैं मुकम्मल।


बचपन से हम मलबे के मालिक भी हैं

क्योंकि जनमजात हम फिर वही टोबा टेक सिंह हैं।


बंटवारे के हम वारिशान लावारिश हैं।

हम दर्द के वारिशान हैं।


हम महब्बत के वारिशान हैं।

तमाम साझा चूल्हों के वारिशान हैं हम।


देश जो तोड़े हैं,देश जो बेचे हैं,होंगे वाण अनेक उनके तुनीर में भी।


होंगे परमाणु बम उनके भी,सारे पहाड़ फिर भी हमारे हैं।


होगी मिसाइलें,युद्ध गृहयुद्ध के अनुभव हथियार संस्थागत जिहादी।

हम भी देश दुनिया जोड़ने पर आमादा हैं।


हम भी आखिर परिंदे हैं आग के

आग से जलकर भी जीनेवाले लोग हैं हम

हमरारे जख्मों के पूल जो चुनै हैं,बहारों का जलवा वे क्या जानै हैं


हम भी इंसानियत के नक्शे को मुकम्ल बनायेंगे यकीनन

दहशतगर्दी के भूगोल और इतिहास के खिलाफ यकीनन


हाथ जो बढ़ायें ,साथी होंगे वे तमाम हमसफर इस सफर में

कांरवा कहीं न कहीं से शुरु हो ही जाना है, बहुत देर भी नहीं है


होगा मुकम्मल बंदोबस्त फिर जनता बोलेगी कभी न कभी

जनता जब बोलेगी तब सारे स्पीकर लाउ़स्पीकर बद होंगे


जनता बोलेगी और हजारों साल पुरानी वे जंजीरें टूटेंगी यकीनन।


ख्वाबों में मोहनजो दोड़ो या फिर हड़प्पा

वीरानगी फिर वही तन्हाई कयामत

लेकिन दिल में टोबा टेकसिंह फिर वही



सबसे पहले,आप हमें माफ कर दें कि बेअदब भी हूं और बदतमीज भी हूं।देहाती हूं सर से पांव तलक।

बिना जाने बूझे,कोई भी जुबां देहातियों की जुबां होती है।


उन्हें न उच्चारण की परवाह होती है और न वर्तनी की तमीज।

सिर्फ दिल की जुबां होती हैं उनकी।हम उसी जुबं में बात करै हैं।


फर्क यह है कि वे बेहद कम बोलते हैं।

बल्कि खामोशी ही उनका असल मुल्क है।

लेकिन खामोशी जब भी टूटे उनकी,यूं समझिये कि कयामत आ जावै है।उस कयामत से डरियो।जो आने ही वाली है।


मेरे लिखे का मजमूं पर गौर करें,मुद्दों पर सोचें और मसलों को समझें,सिर्फ यही गुजारिश है।

हमें कोई कार न समझें बेकार।


कार से मुझे कोई खास मुहब्बत नहीं है और महानगरों में आवाजाही होती है जरुर,पेट के कातिर ,रोटी रोजी के वास्ते गैर मुल्क गैर देस में भी यूं घूमना फिरना होता है लेकिन हम लोगों के लिए देश बहुत भारी चीज है चूंकि हम लोग दरअसल देस के भदेस मधेशी लोग हैं।


अर्ज है कि जो कला साहित्य माध्यम गोमाता ब्राडिंग हुआ जाये,गाय से दिल का वास्ता होने के बावजूद उसमें हमारी कोई खास दिलचस्पी नहीं है और न हम लोग अंडे सेते लोग हैं।


गोमाता ब्रांडिंग अगर देहात और खेत खलिहान की गूंज हो कहीं,हमसे खुश दरअसल कोई हो सकै नहीं हैं।

उसी गोमाता की बदौलत हम इतना जो पादै हैं।


मुश्किल यह है कि जिसे वे आका तमामोतमाम कला साहित्य संस्कृति माध्यम विधा वगैरह वगैरह कह रहे हैं,गोमाता ब्रांडिंग के बाद वे सिर्फ वनस्पति घी है,घी की नदियां हर्गिज नहीं है।


पता नहीं,ससुरे क्या क्या मिलाते हैं।मिलावट वह जहर है,समझो।वह गोबर से पाथे हैं,वह भी जहर है।


वे बेहद खतरनाक लोग हैं

जिनके आस्तीं में सांप के सिवा कुछ होता नहीं है।


उन्हें खबर भी नहीं है कि हम भी सपेरे हैं निराले

जो जहरदांत भी खूब तोड़ना जाने हैं।


बाकी वे जो हगे मूतै पेजोपेज सचित्र

वह गुड़गोबर है ही,जहर भी है।


अंजे सेते लोगों के खिलाफ जिहाद हमारा है

क्योंकि सारां जहां हमारा है।


सारी जुबां हमारी है।

इंसानियत का नक्शा हमारा है।

हमीं हैं कायनात के रखवाले।


हम अंडे सेते लोग नहीं है यकीनन।

अंडे जो सेते हैं,उन्हें खूब जानै हैं हम।

अंडे का आमलेट बनाते हैं,खाते हैं हम।


हमरा ख्वाब में मोहनजोदोड़ो हड़प्पा है तो जान लो कि इंसानियत का भूगोल हमारा है।


बदला होगा इतिहास,बदल भी रहा होगा इतिहास,हम फिर इतिहास बनाने वाले लोग हैं।


पुरखों से हो गयी होगी गलती कि भूगोल सेे हुआ छेड़छाड़।

पुरखों से हो गयी होगी गलती कि आपस में हो गयी रंजिशें

और बंटवारा भी हकीकत है यारों।


पुरखों से हो गयी होगी गलती कितमाम साझा चूल्हे किरचियों में बिखरै हैं।सबसे पहले उन्हें जिंदा करने की दरकार है यारों।


पर समझ लो कि हमारे लोग अगर सो नहीं रहे होंगे अब भी।

समझ लो कि सहर हुआ नहीं है अभीतलक बस।


दिशाओं से रोशनी के तार कभी न कभी खुलेंगे।

उनींदी में जागने का अहसास जिन्हें न हो,वे भी जागंगे।

अंधियारों के तारों से रोशिनयों के तार भी अलग होंगे।


आगे बंटवारे की इजाजत नहीं है,नहीं है,नहीं है।

नफरत क सदागरों ,बाजीगरों,तुम्हें मालूम नहीं,हम बेजुबान लोग हर जुबां में बोल सकै हैं।जब बोल सकबो तभै,जमाना बदल जावै है।


हम जब चीखेंगे एक मुश्त तो फर फर फुर्र होगी तुम्हारी सुनामी।

तुम्हारी सुनामियों की असलियत भी हम जानै हैं।

अब हम फर फर हर जुबां में बोलेंगे,सारे राज खोलेंगे।


तहस नहस भले हुआ हो मोहनजोदोड़ो,

तहस नहस भले ही हुआ हो हड़प्पा,

न मरा है मोहनजोदोड़ो,

और न मरा है हड़प्पा।

नफरत कभी नहीं जीतती कोई जंग मुहब्बत के खिलाफ।

ख्वाबों में मोहनजो दोड़ो या फिर हड़प्पा।


वीरानगी फिर वही तन्हाई कयामत।

लेकिन दिल में टोबा टेकसिंह फिर वही।


सबसे खतरनाक मिलावट सियासती है।

सबसे खतरनाक मिलावट मजहबी दहशतगर्दी है।


इस गोमाता ब्राडिंग से बुरबक देहात को कोई बना भी लें तो कोई बात नहीं।ब्रांडेड गोमाता फिरभी गोमाता नहीं है।


न जो गोबर हासिल है,वह कोई पवित्र विशुद्ध चीज है।

वह हलाहल है विशुद्ध और अब मोहनजोदोड़ो या हड़प्पा के गर्भ से कोई असली नीलकंठ निकलने वाला नहीं है।


गोबर के मालिक बहुतै हैं।जो फतवा ठोंके हैं कि सोशल नेटवर्किंग पर इस्टैंट राइटिंग से बहुत नुकसान हुवै है।


समलय से पादै रहै जो संपादक आलोचक विशेषज्ञ किस्म के जीव हैं भांति भांति वे भी किसी मौलवी पुरोहित से कम नहीं है,खासकर वे जो भरपूर मुनाफावसूली मशहूर अब बैठे ठालै हैं।फतवा भी पादै हैं।


जिनगी उनकी बाजार से वसूली में बीतै हैं और हमसे बेहतर  कोई नहीं जानै हैं कि वे कहां कहां क्या क्या वसूलै हैं।कहां कहां कैसे कैसे घोड़े और सांढ़ दौड़ाये हैं।कहां कहां खजाना लूटै हैं।


समताल से जो पादै प्रजाति हैं,उनसे विनम्र निवेदन है कि फतवा जारी करै नहीं कि वर्तनी शुध हो तभी लिखें।

अबे हरामखोरों,तुम्हीं कहते हो अशुध खूनै है हमारा।


अशुध खूनै है तो तत्सम काहे को हो भाखा हमारी,हम तो खुदैखुद अपभ्रंश हैं तो तुम्हारे वर्तनी व्याकरण की तो ऐसी की तैसी।

तुम्हारा सौंदर्यशास्त्र हमारे ठेंगे पर।


समझा भी करो जानम,जुबां हो न हो,

हम अपभ्रंश हैं,मुकम्मल सर्पदंश हैं हम।


विशुद्ध खून उनका सारस्वत हैं हम जाने हैं और हरफों पर हकहकूक उनका सारा है,हम जाने हैं।


साहित्यकला माध्यम विधा इत्यादि उन्हीं की जागीर हैं,सो हम जाने हैं।भुगते भी हैं खूबै।हमारा भुगतान बस बाकी है।


हमारी औकात भी तनिकों समझा करैं कि जब हम अपनी पर उतरै हैं,तो किसी की न सुनै हैं हम,अपनी भी नहीं।


सरेबाजार नंगई का शौक न हों तो हमें जुबां की तमीज सिखाने से बाज आवै तो बेहत है,वरना हम खालिस लफ्फाजों को बख्शते नहीं हैं।जिनकी रीढ़ नहीं है कोई,जो न मुद्दों से टकराये,न मसलों से जिनके कोई सरोकार हैं,न जनसुनवाई की परवाह जिन्हें कोई,हमारे हस्तक्षेप से वे ही खास तिलमिलाये हैं।


हम भी देहाती हैं भइया और लाहौर भले छूट गया हो या छूट गया हो नोवाखाली चटगांव,हमारी आदत भी रघुकुल रीत से कम नहीं है।


हमारे ख्वाबों में अब भी है मोहनजोदोड़ो तन्हा तन्हा।

हमारे ख्वाबों में अब भी है मोहनजोदोड़ो तन्हा तन्हा।


वीरानगी के वारिशान हैं हम हजारों हजार सालों से।

तन्हाई के लवारिशान हैं हम हजारों हजार सालों से।

मुकम्मल खामोशी के वारिशान हैं हम वह भी हजारों सालों से।


खूब सुनते रहे हैं हम तुम्हारी हजारों सालों से।

बहुतै बोले हो तुम हजारों सालों से।

अब हम बोलै हैं जो हमारा दिल बोले हैं।


साजिशों और नफरतों और जिहादों का धंधा नहीं हमारा कोई।

हम मुहब्बत के परवाने हैं।

दिलों में है आग तो हम आग के परिंदे हैं।


परिंदे जब आखिर बोले हैं तो जुबां की कोई लक्ष्मण रेखा होती नहीं है।


परिंदे जब आखिर बोले हैं तो मजहबी सियासती तिलस्मों का आखिर टूटना है।


किलेदारों,सूबेदारों और मनसबदारों,सिपाहसालारों की परिंदे कभी न सुने हैं और न उनका कोई सरहद कहीं होवै है।


आखिरकार हम तो वे ही लोग हैं जो गुफाओं में तस्वीरें बनाते रहे हैं या फिर कथरी चटाई कपड़ा में कलाकारी करते रहे हैं।

यही हमारी विरासत है और इस विरासत से कोई कहीं आगे नहीं है।


हम अब भी संगदिलों के सीने पर तारीख लिखने का जोखिम उठा रहे हैं।ज संग दिल न हों,वे ही बूझै हैं हमारी जुबां।


ऐसा प्रतीत होता है कि नगा समझौते पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, क्योंकि असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों ने इस संबंध में उनसे संपर्क नहीं करने को लेकर केंद्र पर हमला बोला और घोषणा की कि वे अपनी एक इंच जमीन नहीं देंगे।


फ़र्ज़ी संतों-शंकराचार्यों की हो CBI जांच:हिंदू महासभा

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teesrijungnews.comलखनऊ।स्वयंभू देवी राधे मां का विवाद और अभी हाल ही में शराब कारोबारी को महामंडलेश्वर बनाया जाना हिंदू संगठनों को अखर गया है।अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने ऐसे फर्जी साधु-संतों …

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Makbool Veeray

Chief Editor at Daily Kashmiriyat & Sach News

SOUTUL AWLIYA CONFERENCE will be held at EID GAH QAZIGUND on Tuesday 11 August 2015 : CHIEF GUEST AMIRI ALA TEHREEKI SOUTUL AWLIYA ABDUL RASHID DAVOODI SAHAB: Speakers : MAULANA GHULAM RASOOL HAMI SAHAB MAULANA MUSHTAQ AHMAD KHAN SAHAB MOULANA FAYAZ AHMAD RIZVI SAHAB MOULANA PARWAIZ AHMAD BAKSHI SAHAB MAULANA MUHAMMAD ISAQ NIZAMI SAHAB....AND MANY MORE ULEMAAS OF AHLI SUNNAH WAL JAMAAT..... SO ALL MUSLIMS ARE INVITED... Syed Sujeel Nadeem to Sachnews Jammu Kashmir :



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