पलाश विश्वास मृत्यु उपत्यका है यह मेरा देश भारत वर्ष। बर्बर, रक्ताक्त समय है यह और चारों तरफ घूमते हत्यारे दस्ते खूंखार। राष्ट्रशक्ति, सम्प्रभुता-परतंत्र, प्रोमोटर, सुपारीखोर, कबूतरबाज एनआरआई बलात्कारी बैरंग नहीं लौटते कहीं से। सारी पृथ्वी अब रक्ताक्त योनि प्रदेश। भूमंडलीय उत्ताप में सर्वनाश का समय है यह। अब जल प्रलप से नहीं आयेगा कोई नया युग! देव संस्कृति का क्रिकेट कार्निवाल है यह अंग बलि का चरम मुहूर्त भी। संविधान की हत्या का समय है यह। आतंकवादी हमले से बच गयी संसद में अन्तर्घात का समय है यह। कोलकाता-71 के फिल्मकार को उन्नयन चाहिए। शहरीकरण के 'दखल' से बेदखल खेत के खिलाफ उस 'पार' खड़े है गौतम घोष। और मूक दर्शक तमाम प्रतिबध्द जनटीवी-कम्प्यूटर से चिपके वातानुकूल बहस में मशगूल। इस तरह नया सौन्दर्य शास्त्र गढ़ा जा रहा है, जिसे लागू करते जलेस, प्रलेस, अफसर, पत्रकार-साहित्यकार। नवी मुम्बई में साकार होता भारतीय बहुराष्ट्रीय स्वप्। कौन नहीं बनना चाहेगा दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी का शेयर होल्डर? घर-घर हॉकर और दलाल का जन्म दिन है यह समय। हत्यारों और व्यापारियों का उत्सव समय भी यह। भोपाल गैस त्रासदी पर्याप्त थी नहीं कभी। नदिया बंध गयीं या बिक गयी। पेयजल कोला, नापाक संस्कृति के लिए डो को बुलावा फिर। न्यौता है हत्यारे सलीम को फिर। क्यों खाली-पीली पीछे पड़े हैं क्वात्रोचि के? या दाउद के? पूंजी, विनिवेश का समय है यह। अनन्त पश्चिम के सारे दरवाजे खुल गये हैं और खुल गयी है चीन की दीवार भी, रेशमपथ भी उन्मुक्त है। पूंजी लगाओ, मुनाफा पाओ समय है यह घनघोर। रायगढ़ के जनविद्रोह में विदर्भ की आत्महत्याओं के चरमोत्कर्ष का समय है यह। सपनों की मौत से गन्धाता यह समय- घर से दफ्तर और दफ्तर से घर-फिर बीवी के साथ खामोश सो जाने का समय है यह। समय है शॉपिंग माल में खरीददारी का और मल्टीप्लेक्स में विनोदन का भी यह समय सलवा जुडूम का समय है यह और आदिवासियों के ताजा तरीन विद्रोह का समय भी महाविलाप का समय नहीं है यह बंधु, प्रतिरोध का समय है यह। महाश्वेता, मेघा, अरुन्धति, अपर्णा, शांवली का समय भी है यह दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यको और आदिवासियों के महाविद्रोह का समय भी है यह। जाग उठा है नन्दीग्राम भारतवर्ष को हत्यारों के खिलाफ लामबन्द करने लगा है नन्दीग्राम। नन्दीग्राम तुम्हें सलाम। द्वारा- श्रीमती आरती राय, गोस्टोकानन, सोदपुर, कोलकाता-700110 |
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