---------- Forwarded message ----------
From: dilip mandal <dilipcmandal@gmail.com>
Date: Tue, Oct 19, 2010 at 11:53 AM
Subject: Murder of a dalit student in Delhi/edit page write up.
To:
From: dilip mandal <dilipcmandal@gmail.com>
Date: Tue, Oct 19, 2010 at 11:53 AM
Subject: Murder of a dalit student in Delhi/edit page write up.
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regards
dilip
दिलीप मंडल अक्षय प्रकाश जीवित होता तो कॉमनवेल्थ खेलों के बाद अपना कोर्स कवर करने की हड़बड़ी में होता। अक्षय के पिता की आंखों में चुभी कामयाबी अक्षय के पिता अगर उसे न पढ़ाते तो वह आज जिंदा होता। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे किसी छोटे-मोटे काम में लगा देते, तो भी वह इस तरह न मरता। अक्षय अगर किसी करेस्पॉन्डेंस कोर्स लेकर पढ़ाई पूरी कर रहा होता, तो भी उसकी जिंदगी को खतरा न होता। दब्बू छात्र बनकर रहता तो वह अपने कॉलेज में भी जिंदा रह लेता। लेकिन अक्षय जमाने के नियमों को तोड़ रहा था। वह पढ़ रहा था। एक अच्छा कोर्स कर रहा था। कामयाबी के लिए ट्यूशन भी पढ़ रहा था। कॉलेज में दबकर रहना उसे मंजूर नहीं था। जातिसूचक गालियां वह सिर झुकाकर सहने को तैयार नहीं था। और तो और, वह कॉलेज छात्र संघ की कार्यकारी परिषद का सदस्य भी बन गया था। ऐसे अक्षय को तो मरना ही था। कॉमनवेल्थ खेलों के नशे में डूबी दिल्ली को उसकी मौत की परवाह भला क्यों हो। पुलिस की आनाकानी अक्षय का कॉलेज भी दिल्ली के बाकी कॉलेजों से थोड़ा अलग है। सत्यवती इवनिंग कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय का शायद अकेला कॉलेज है जहां दलित छात्रों का दमखम नजर आता है। 2005 और 2006 में यहां छात्र संघ के अध्यक्ष दलित छात्र वासु रुक्खड़ रहे। वासु दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ चुके हैं और 7,500 से ज्यादा वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। सत्यवती इवनिंग कॉलेज के वर्तमान छात्र संघ में भी दलित छात्र बहुमत में हैं। अक्षय की हत्या के आरोप में नामजद प्रशांत त्यागी छात्र संघ का अध्यक्ष था, जिसे अब कॉलेज से निकाल दिया गया है। उसे गिरफ्तार किया जा चुका है। अक्षय के साथ जिस दूसरे दलित छात्र ललित कुमार की पिटाई की गई थी, वह बौद्ध अध्ययन में विश्वविद्यालय का टॉपर है। सत्यवती इवनिंग कॉलेज के दलित छात्रों ने प्रिंसिपल को लिखकर शिकायत की है कि कुछ दबंग छात्र दलित छात्रों को जातिसूचक गालियां देते थे। इसे लेकर कॉलेज में काफी समय से तनाव था। प्रिंसिपल का कहना है कि यह शिकायत पुलिस उपायुक्त को भेज दी गई है। आश्चर्यजनक है कि शिकायत के बावजूद अभियुक्तों के खिलाफ दलित उत्पीड़न निरोधक कानून के तहत मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। ललित की शिकायत पर दर्ज एफआईआर में भी दलित उत्पीड़न की बात को हटा दिया गया है। देश की राजधानी में दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज करने में पुलिस जिस तरह आनाकानी कर रही है , उससे दूर दराज के इलाकों की हालत जानी जा सकती है। 11 अक्टूबर तक इस मामले में पुलिस ने न तो अक्षय के परिवार के लोगों के बयान लिए थे , न ही उनसे बातचीत की थी। राज्य सरकार की तरफ से कोई अधिकारी इस परिवार के प्रति संवेदना जताने भी नहीं पहुंचा था। ऐसे मुआवजा तो दूर की ही बात है। विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से भी इस मामले में न तो कोई कार्रवाई की गई है और न ही आगे ऐसी घटनाओं को रोकने के बारे में कुछ कहा गया है। इस मामले में न्याय की लड़ाई लड़ने का पूरा बोझ मृतक के परिवार और उसके दोस्तों पर है। न तो सरकार और न ही विश्वविद्यालय की तरफ से उन्हें किसी तरह की मदद का आश्वासन दिया गया है। सबसे चिंता की बात यह है कि अक्षय दिल्ली की जिस कॉलोनी संगम पार्क में रहता था , वहां भारी दहशत है। अक्षय के पड़ोसी कहने लगे हैं कि इस तरह बच्चा मर जाए उससे तो बेहतर है वह अनपढ़ ही रहे। समाज को पीछे ले जाने वाली ताकतें अगर इस लड़ाई में जीतती हैं , जिसके आसार कम ही हैं , तो यह शासन ही नहीं शिक्षा क्षेत्र के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण होगा। अच्छा शैक्षणिक माहौल बनाना आखिरकार विश्वविद्यालय का दायित्व है। अक्षय की हत्या का मामले में खामोश रहने का विकल्प विश्वविद्यालय के पास नहीं है। उससे मुखर होने और शैक्षणिक वातावरण के पक्ष में खड़े होने की उम्मीद की जाती है। उभार और प्रतिक्रिया दलित उभार की हर घटना भारत में तीखी जातिवादी प्रतिक्रिया साथ लेकर आती है। पश्चिम बंगाल या उड़ीसा जैसे राज्यों में , जहां दलितों का उभार नहीं है , दलित उत्पीड़न भी घटनाएं भी कम होती है। महाराष्ट्र के खैरलांजी की बात हो या हरियाणा के गोहाना या मिर्चपुर की , हर जगह दलितों के आगे बढ़ने की कोशिशों को हिंसा के सहारे कुचलने की कोशिश हुई है। खैरलांजी का दलित परिवार शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था तो गोहाना में दलितों ने गंदगी उठाने का काम छोड़कर दूसरे रोजगार अपना लिए थे। मिर्चपुर में जिस लड़की को जलाकर मार डाला गया वह लोक प्रशासन की पढ़ाई कर रही थी। इस संदर्भ में सत्यवती कॉलेज की घटना अलग - थलग नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि यह संसद भवन से बमुश्किल 20 किलोमीटर दूर घटित हुई है। इस आर्टिकल को ट्वीट करें। |
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
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