बंपर मुनाफा के बावजूद सरकारी नीतियों ने भारतीय स्टेट बैंक की हालत पतली!एसबीआई की दुर्गति को उद्योग जगत को राहत देने का बहाना बनाया जा रहा है!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अब एसबीआई की दुर्गति को उद्योग जगत को राहत देने का बहाना बनाया जा रहा है, जिससे एसबीआई और दूसरे सरकारी बैंकों की हालत और खराब होनी है। कहा यह जा रहा है कि एसबीआई का मामला मंदी के गहराने का संकेत दे रहा है।दूसरी तरफ, राजस्व नीति को चूना लगाते हुए बाजार में कालाधन खपाने का चाकचौबंद इंतजाम हो रहा है।बंपर मुनाफा के बावजूद सरकारी नीतियों ने भारतीय स्टेट बैंक की हालत पतली कर दी है, जिसे विनिवेश लक्ष्य पर शुरू से टाप पर रखा गया है, महज इसलिए कि यह सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में यह सबसे कमाऊ पूत है।साल के अंत तक एसबीआई का एनपीए बढ़कर 6 फीसदी के स्तर पर रहने की आशंका है। देश के सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का शुद्ध लाभ 30 जून, 2012 को समाप्त हुई तिमाही में एक साल पहले की तुलना में 137 प्रतिशत बढ़कर 3752 करोड़ रुपये हो गया। हालांकि बैंक की बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) चिंता की वजह हैं। शुक्रवार को बैंक का शेयर 4.26 प्रतिशत लुढ़क गया जबकि बेंचमार्क सूचकांक सपाट रहा। सरकारी खर्च बढाने की बात हो या फिर कर्ज माफी व उद्योग जगत को छूट, सामाजिक क्षेत्र की योजना हो या आईपीओ और हिस्सेदारी की नीलामी, गाज हमेशा एस बी आई पर गिरती है।अमेरिकीकरण की अंधी दौड़ में खुले बाजार नीतियों के तहत आर्थिक प्रबंधन का यह नजारा है।बैंक ने 2011-12 की अप्रैल-जून तिमाही में 1,583 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था। समीक्षाधीन तिमाही में बैंक की कुल गैर निष्पादित आस्तियां यानी समय से वसूल नहीं हुआ कर्ज बढ़कर उसके ग्राहकों पर बकाया कुल ऋण राशि के 2.22 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वित्त वर्ष की इसी अवधि में एनपीए 1.61 प्रतिशत थी।कमजोर विदेशी संकेत और एसबीआई के नतीजों से बाजार निराश नजर आए। सीमित कारोबार के बीच सतर्कताभरे माहौल में बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स तीन अंक के नुकसान के साथ बंद हुआ। कंपनियों के कमजोर नतीजों को लेकर बाजार में सतर्कता का रुख है। गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बढ़ने की आशंका में भारतीय स्टेट बैंक का शेयर 4 प्रतिशत लुढ़क गया। कारोबार के दौरान 17471.37 अंक से 17590.61 अंक के सीमित दायरे में नीचे-ऊपर होने के बाद अंत में सेंसेक्स 3.13 अंक की गिरावट के साथ 17557.74 अंक पर बंद हुआ।
मजे की बात तो यह है कि नया कार्यभार संभालने के महज़ कुछ ही दिनों बाद वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम, भारत की कर नीति पर निवेशकों के डर को शांत करने के लिए कदम उठाते प्रतीत हो रहे हैं।बतौर वित्तमंत्री अपने शुरुआती फैसलों में एक में श्री चिदम्बरम ने आर.एस.गुजराल, मंत्रालय के प्रमुख नौकरशाह और राजस्व प्रभारी, के पद में फेरबदल कर दिया है। श्री गुजराल अब मंत्रालय के व्यय विभाग को देखेगें।इसीके तहत गार को कत्म करने की कवायद जोरों पर है।विवादास्पद सामान्य कर परिवर्जन रोधी नियम (गार) से जुड़े सभी मुद्दों की जांच परख के लिये गठित विशेषज्ञ समिति अपनी सिफारिशों का मसौदा 31 अगस्त तक और अपनी अंतिम रिपोर्ट 30 सितंबर तक सरकार को सौंप सकती है। समिति के अध्यक्ष पार्थसारथी शोम ने यह जानकारी दी है।शोम ने कहा गार से संबंधित सिफारिशों का मसौदा 31 अगस्त तक सौंप दिया जायेगा। उसके बाद हम विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू करेंगे। मुझे उम्मीद है कि उसके बाद 30 सितंबर तक हम अपनी रिपोर्ट सौंप देंगे। हालांकि, उन्होंने कहा कि इसके क्रियान्वयन की समय सीमा नीति निर्माताओं पर छोड़ दी गई है। वर्ष 2012-13 के बजट में गार का प्रस्ताव किया गया था। इसका मकसद कर चोरी को रोकना था। लेकिन विदेशी निवेशकों की तरफ से इसका कड़ा विरोध किये जाने के बाद इस पर अमल अगले साल अप्रैल तक टाल दिया गया।
इसी के मध्य वैश्विक वित्तीय संस्थान सिटी ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर पांच प्रतिशत से नीचे रह सकती है। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट तथा कमजोर मानसून के चलते इसमें कमी आ सकती है।सिटी ने 'इंडिया मैक्रो फ्लैश' नाम से जारी रिपोर्ट में कहा है कि औद्योगिक उत्पादन में गिरावट का असर चालू वित्त वर्ष 2012-13 में पहली तिमाही की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के आंकड़ों पर पड़ेगा।इसके अलावा कमजोर मानूसन तथा सेवा क्षेत्र में गिरावट के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि 5 प्रतिशत से कम रह सकती है।औद्योगिक उत्पादन के गुरुवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून तिमाही में इसमें 0.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई जबकि एक साल पहले इसी तिमाही में इसमें 6.9 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। जून महीने में औद्योगिक उत्पादन में 1.8 प्रतिशत की गिरावट आई है।इसके अलावा जून-जुलाई में बारिश 20 प्रतिशत कम रही है जिससे खरीफ फसल खासकर मोटे अनाज तथा दालों पर असर पड़ा है। कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में सूखे जैसी स्थिति है।इससे पहले, क्रिसिल, सीएलएसए तथा रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी देश की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाया है।मौसम विभाग ने पिछले सप्ताह कहा कि दीर्घकालिक औसत के हिसाब से इस साल मानसून की बारिश सामान्य से 9 से 10 प्रतिशत तक कम रह सकती है। देश के कृषि क्षेत्र में मानसून की अहम भूमिका है।खराब मौसम (यूएस में पड़े सूखे से लेकर रशिया की भीषण गर्मी और ब्राज़ील की तेज़ बारिश) वैश्विक खाद्य श्रंखला पर दबाव बना रहा है और विश्वभर में खाद्य पदार्थों के दामों में इसके चलते इज़ाफा हो रहा है।
बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने कहा कि वैश्विक खाद्य दामों के लिए उसके सूचकांक में जुलाई में 6 फीसदी की बढो़तरी हुई, जो नवबंर 2009 से अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि रही। सूचकांक, जो खाद्य निर्यात मूल्य को मापता है, अपने फरवरी 2010 के रिकॉर्ड से 10 फीसदी नीचे रहा।
भारत वर्तमान वित्तीय वर्ष के उत्तरार्ध में वित्तीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 5.1 फीसदी तक सीमित रखने के लक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन करेगा, वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम ने बृहस्पतिवार को कहा।वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का वर्ष के मध्य में होने वाली समीक्षा में पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा, जो व्यय की गति और सरकार के संसाधन की स्थिति पर निर्भर होगा," श्री चिदम्बरम ने राज्यसभा में सांसदों को जवाब देते हुए कहा।31 मार्च को खत्म हुए पिछले वित्तीय वर्ष में घाटे (जीडीपी का 5.75 फीसदी) ने सरकार के 4.6 फीसदी के शुरुआती लक्ष्य को पार कर लिया था, जो ईंधन में भारी सब्सिडी के परिणामस्वरूप था; विश्लेषक इस पर रोक लगाने की पुरज़ोर वकालत करते हैं।नई दिल्ली का लक्ष्य है, संघीय सब्सिडी पर व्यय को नियंत्रित करना, वित्त मंत्री ने कहा। "वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए आने वाले वर्षों में इसी तरह के कदम उठाए जाने की अपेक्षा है, उन्होंने कहा।
सरकार पहले ही खर्चों में कटौती के लिए कदम उठा चुकी है। मई के आखिर में, वित्त मंत्रालय ने वर्तमान वित्तीय वर्ष में सरकारी विभागों से गैर-योजनाबद्ध खर्चों (वो खर्चे जिनसे लंबी अवधि में परिसंपत्ति निर्माण नहीं होता) को 10 फीसदी तक कम करने को कहा, ऐसा वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने की उसकी कवायद के प्रयासस्वरूप किया गया।
वैश्विक बाजार में छाई मंदी को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के दौरान देश का निर्यात कारोबार 300 अरब डॉलर से कम रह सकता है। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम के एक अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है।पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत का निर्यात 304 अरब डॉलर था।उद्योग संगठन ने सुझाव दिया है कि विश्व बाजार की मौजूदा परिस्थितियों में निर्यात कारोबार से जुड़े श्रम प्रधान क्षेत्रों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है।अध्ययन के अनुसार, यदि हम रत्न एवं आभूषण और हस्तशिल्प जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों में रोजगार सुरक्षित रखना चाहते हैं तो निर्यात क्षेत्र को अधिक से अधिक प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है।
एनपीए में इस तरह की वृद्धि से साफ लगता है कि बैंक के ऋण कारोबार पर अर्थव्यवस्था की नरमी और वित्तीय प्रबंधन का असर पड़ा है। बैंक की कुल आय 30 जून, 2012 को समाप्त हुई तिमाही में 16.89 प्रतिशत बढ़कर 32,415 करोड़ रुपये पर पहुंच गई, जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 27,732 करोड़ रुपये थी। एसबीआई के वित्तीय नतीजे जारी होने के बाद बंबई शेयर बाजार का इसका शेयर भाव 1,900 रुपये के आसपास रहा।मूल्य के लिहाज से एसबीआई की शुद्ध गैर निष्पादित आस्तियां जून तिमाही में बढ़कर 20,324 करोड़ रुपये पर पहुंच गईं, जो ग्राहकों पर बकाया ऋण का 2.22 प्रतिशत है। बीते वित्त वर्ष की समान तिमाही में बैंक का एनपीए 12,435 करोड़ रुपये (1.61 प्रतिशत) थीं।इसी तरह, बैंक की सकल एनपीए समीक्षाधीन तिमाही में बढ़कर 47,156 करोड़ रुपये पर पहुंच गईं, जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 27,768 करोड़ रुपये (3.52 प्रतिशत) थीं।सरकारी तौर पर सफाई यह दी जा रही है किएनपीए में तेज उछाल आने का मुख्य कारण यह हो सकता है कि अर्थव्यवस्था में नरमी के चलते कंपनियों एवं दूसरे तरह के कर्जदार कर्ज की किस्तें समय से नहीं चुका पा रहे हैं।समीक्षाधीन तिमाही में एसबीआई की शुद्ध ब्याज आय 14.63 प्रतिशत बढ़कर 11,119 करोड़ रुपये पहुंच गई, जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 9,699 करोड़ रुपये थी।समेकित आधार पर, एसबीआई को 30 जून, 2012 को समाप्त हुई तिमाही में 4,874.7 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ, जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में हुए 2,512.47 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के मुकाबले 94 प्रतिशत अधिक है।समीक्षाधीन तिमाही में बैंक की समेकित शुद्ध आय बढ़कर 46,839 करोड़ रुपये पर पहुंच गई, जो बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 39,126 करोड़ रुपये थी।
केंद्र सरकार ने पंजाब और हरियाणा के किसानों के ऋणों का पुनर्निर्धारण करने के साथ कम बारिश से प्रभावित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का फैसला किया है।
कृषि मंत्री शरद पवार ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, मैंने नाबार्ड को उन किसानों के फसल ऋण के लिए पुननिर्धारण कार्यक्रम तैयार करने का निर्देश दिया है जो कमजोर बारिश के कारण प्रभावित हुए राज्यों में ऋण लिए हैं और इसमें पंजाब और हरियाणा शामिल हैं।उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में मानसून क्रमश: 68 प्रतिशत और 71 प्रतिशत कम रही है।
पवार के साथ ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश भी थे। पवार ने इन दो राज्यों को कृषि क्षेत्र के लिए अधिक बिजली की जरूरत के मद्देनजर हुए खर्च को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता का भी आश्वासन दिया।
पवार ने दोनों राज्यों के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद कहा, हमें किसानों तथा पंजाब और हरियाणा सरकार को मदद देने के संदर्भ में फैसला करना है। हमें बस राजस्थान से सूचना लेनी है। हमारी इच्छा सात दिनों से ज्यादा निर्णय में देर करने की नहीं है।
इसके अलावा केन्द्र सरकार ने दोनों राज्यों के लिए मनरेगा योजना के तहत पेयजल तथा समेकित जलसंभरण योजना के लिए अधिक धन देने की घोषणा करने का फैसला किया है।
इस बीच पंजाब और हरियाणा सरकार ने क्रमश: 5,112 करोड़ रुपये तथा 4,050 करोड़ रुपये का केन्द्रीय पैकेज मांगा ताकि इन दोनों राज्यों में सूखे जैसी स्थिति से निपटा जा सके।
पवार ने कहा कि दोनों राज्यों में बरसात की भारी कमी के बावजूद किसानों के सराहनीय प्रयासों तथा दोनों राज्य सरकारों के प्रयासों के कारण खरीफ फसलों की बुवाई अधिक प्रभावित नहीं हुई है।
पवार ने कहा कि दोनों सरकारों ने केवल फसलों को बचाने के लिए खुले बाजार से बिजली खरीदी है।
पवार ने कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकार ने हमारे संज्ञान में लाया है कि मानसून में देर के कारण पशुचारा फसलें भी प्रभावित हुई है तथा दोनों ही राज्य दूध के बड़े आपूर्तिकर्ता राज्य हैं तथा अगर हमने मवेशियों के स्वास्थ्य की अनदेखी की तो अंतत: इससे दूध आपूर्ति प्रभावित होगी।
उन्होंने कहा कि इसी कारण से हमने दोनों राज्यों को वित्तीय सहायता देने का फैसला किया है, हम उसके बारे में विचार करेंगे और हम उनके प्रस्ताव पर विचार करेंगे तथा पशुचारा विकास योजना के तहत कुछ वित्तीय सहायता भी देंगे।
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