खिंसियानी बिल्ली खंभा नोंचे! क्या रेटिंग एजंसियों को चेताने से देश की माली हालत सुधर जायेगी, प्रधानमंत्री जी?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पूरे एक दशक से मानसून संकट चल रहा है। औद्योगिक और कृषि विकास दर का ग्राफ गिरता ही जा रहा है। किसान और मजदूर आत्महत्या करने को मजबूर है। पर सुधारों के बहाने बेदखली अभियान चलाते हुए बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज का वित्तीय प्रबंधन ही आज हकीकत है। वित्त मंत्रालय संभालते हुए न बाजार और न देश को अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने का भरोसा दिला पाये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और न ही सुधारों के जनक से कोई कारगर कदम उठाते बना।अब रेटिंग एजंसियों को चेता रहे हैं। क्या इससे देश की माली बदहाली सुधर जायेगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के विकास अनुमानों में कटौती करने के लिए शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है।बाजार को सर्वोच्च प्राथमिकता और काला धन घुमाने के लिए वक्ती मौद्रिक कवायद के बावजूद न बाजार संभल रहा है औरन अर्थ व्यवस्था पटरी पर आ रही है। तेजड़ियों का खेल प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री के बयानों से जरूर तेज हो जाता है। क्या वित्तीय प्रबंधन शेयर दलालों के हितों के मद्देनजर तय किये जायेंगे?न मंहगाई घट रही है। न मुद्रास्पीति पर अंकुश है।नियंत्रण हटाने से उत्पादन प्रणाली की बीमारी कहीं सुधरती हो, ऐसा मनमोहनजी के गुरु केइन ने भी कहा नहीं था। सब्सिडा घटाया जा रहा है अंधाधुंध, पर उद्योगपतियों को लगातार राहत देते रहने से राजस्व घाटा घट नहीं रहा। विदेशी पूंजी प्रवाह अबाध होने से कालाधन का कोरोबार और बाजार को आक्सीजन जरूर निकलता है, पर उससे न वित्तीय घाटा कम होनेवाला है और न भुगतान संतुलन की हालत सुधरती है और न विदेशी कर्ज कम होता है या उस पर दिया जानेवाला ब्याज। अमेरिका तक मंगल अभियान का अगला कदम उठाने के लिए दुविधा में है, पर हमने चंद्र और मंगल अभियान में बेशकीमती संसाधन खपा रहे हैं। सैन्यीकरम की वजह से अमेरिकी बहुसंख्य जनता के सामने भुखमरी संकट है और विश्व पर मंदी का साया मंडरा रहा है। पर अमेरिकीकरण की अंधी दौड़ में राष्ट्र का सैन्यीकरण जारी है। रक्षा सौदों से देश की राजनीति चलती है और इन्ही सौदों का कमीशन विदेशी बैंकों के खाते में जमा है, जिसके खिलाफ कभी अन्ना लीला तो कभी रामदेव लीला का नजारा देखने को मिलता है। इस दस्तूर को बदले बिना ,बुनियादी आर्थिक मसलों को सुलझाये बिना खिंसियानी बिल्ली की तरह क्यों खंभा नोंचने लगे प्रधानमंत्री, सुधारों के मसीहा?दूसरी ओर,कानूनी अनुमति के बगैर ही आम आदमी को अनुवांशिक रूप से संशोधित खाद्य वस्तुओं (जीएम फूड) को खिलाया जा रहा है। खास बात यह है कि इसकी पहुंच घर-घर में हो चुकी है, क्योंकि जीएम फूड किसी खास खाद्य पदार्थ के रूप में ना होकर खाद्य तेल, रिफाइंड, दूध और दुग्ध उत्पादों के जरिए पहुंच रहा है।इसकी उत्पत्ति बीटी कपास के तेल से हो रही है, जो सीधे खाद्य तेल व वनस्पति में खपाया जा रहा है। साथ ही इसकी खली पशुओं को खिलाए जाने से दूध व दुग्ध उत्पादों के रूप में इसकी पहुंच घर-घर में हो चुकी है। कृषि की संसदीय स्थायी समिति ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्टीकरण मांगा है।नरसंहार के अर्थ शास्त्र के लिए और क्या चाहिए?
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मानते हैं कि मूडीज का अर्थव्यवस्था के विकास का लक्ष्य घटाना चिंता का विषय है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि देश को जल्दबाजी में इस लक्ष्य घटाने का कोई अर्थ नहीं निकालना चाहिए। भारत में निवेश और बचत बाकी दुनिया के मुकाबले काफी अच्छी रही है।मनमोहन ने कहा कि अर्थव्यवस्था की विकास सम्भावनाओं के बारे में बेबुनियाद निष्कर्ष नहीं निकाले जाने चाहिए। उन्होंने कहा, "अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। दुनिया में हमारी बचत और निवेश दर सबसे ऊंची है।"मनमोहन ने राष्ट्रपति भवन में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के शपथ ग्रहण समारोह के इतर मौके पर कहा, "हमें बेबुनियाद निष्कर्ष नहीं निकालने चाहिए। इस वर्ष हमारी विकास दर पिछले वर्ष के 6.5 प्रतिशत से बेहतर होगी।"प्रधानमंत्री, वैश्विक रेटिंग एजेंसियों पर टिप्पणी कर रहे थे, जिन्होंने सुधार नीति के अभाव और विनिर्माण व निर्यात में गिरावट तथा औसत से कम मानसून का हवाला देते हुए हाल ही में वित्त वर्ष 2012-13 के लिए देश के विकास अनुमान में कटौती कर दी है।मूडी ने आठ अगस्त को जारी बयान में कहा था कि मंदी अनुमान से अधिक तेज और व्यापक हो गई है और अब अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों में प्रवेश कर गई है। इसके साथ ही उसने विकास दर अनुमान को घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया था।ज्ञात हो कि मार्च में समाप्त हुई तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर नौ वर्षो के निचले स्तर पर आकर 5.3 प्रतिशत हो गई थी। 2011-12 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर 6.5 प्रतिशत था, जो कि इसके पहले के वित्त वर्ष के 8.4 प्रतिशत से काफी कम था।
क्या विनिवेश, विनियमन और विदेशी पूंजी से आम जनता का भला हो रहा है, ाज यह सवाल कोई नहीं पूछता। न राजनीतिक दल और न सिविलसोसाइटी। कारपोरेट लाबिंग से सरकार और राजनीति चलती है, तो सिविल सोसािटी का एजंडा भी वहीं सेशुरु और खत्म होता है।हालत यह है कि बिजली के बाद अब पानी के भी निजीकरण की तैयारी है। शुरुात राजधानी दिल्ली से ही हो रही है।दिल्ली वासियों में अब पानी की ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। दिल्ली सरकार जल्द ही राजधानी में पानी की आपूर्ति को निजी कंपनियों के हवाले करने जा रही है। योजना आयोग से भी इसको मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि बिजली के निजीकरण से मिले अनुभवों से दिल्ली के लोग इस फैसले से खुश नहीं हैं।बिजली के बाद अब दिल्ली सरकार पानी का भी निजीकरण करने जा रही है। योजना आयोग ने भी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के इस फैसले को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। यही नहीं दिल्ली जल बोर्ड की बैठक में इस फैसले को पारित कर दिया गया है। योजना के तहत बिड जीतने वाली निजी कंपनी को दिल्ली के कुछ इलाकों में पानी का प्रबंधन, मेंटिनेंस और आपूर्ति का काम करेंगे। जिसके बदले लोगों से ऑपरेटर कंपनी ही पानी का बिल भी वसूल करेगी।अब तमाशा देखिये,टीम अन्ना की एक पूर्व सदस्य सुनीता गोदरा द्वारा यह कहे जाने से नयी हलचल पैदा हो गई है कि अन्ना हजारे इस भ्रष्टाचार निरोधी आंदोलन को राजनीतिक बनाये जाने के खिलाफ थे। टीम अन्ना की कोर कमेटी में शामिल रही सुनीता ने दावा किया कि हजारे ने किसी पर दबाव नहीं डाला था, लेकिन कहा था कि वे अपना रास्ता चुनने के लिये स्वतंत्र हैं। सुनीता ने कहा कि हजारे ने हमसे कहा था कि हम अभी भी राजनीतिक बिरादरी में शामिल होने के लिये तैयार नहीं है़।तो दूसरी ओर,बाबा रामदेव ने शनिवार शाम को अपनी रणनीति की घोषणा करने का दावा किया था लेकिन अब वो रविवार को अपने आंदोलन के लिए आगे की रणनीति का खुलासा करेंगे।सरकार ने अब तक इस आंदोलन की अनदेखी ही की है। इसके बाद शनिवार को बाबा ने नेताओं से समर्थन मांगा। रामलीला मैदान के मंच से शनिवार को उन्होंने कहा कि यूपीए के घटक दल उनके अभियान को समर्थन दें। उन्होंने कहा कि एनडीए के दल भी अपनी स्थिति साफ करें। बाबा ने दावा किया कि उनकी मांगों के समर्थन में सवा दो सौ से ज्यादा सांसदों का लिखा पत्र उनके पास है।अब बताइये, आम आदमी क्यों न खुदकशी करने को मजबूर हो?
हालत यह है कि दुनिया के दिग्गज ब्रोकिंग फर्मों का भारत की अर्थव्यवस्था पर भरोसा घटता जा रहा है। दिग्गज ब्रोकिंग फर्म सीएलएसए और सिटी ने भारत के जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटा दिया है।सीएलएसए ने भारत के जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6 फीसदी से घटाकर 5.5 फीसदी कर दिया है। सीएलएसए ने कृषि और कृषि संबंधित कारोबार में ग्रोथ सुस्त रहने के अनुमान से जीडीपी ग्रोथ के अनुमान में बदलाव किया है।वहीं सिटीग्रुप ने भारत के जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.4 फीसदी से घटाकर 5.4 फीसदी कर दिया है। सिटीग्रुप का कहना है कि सूखे के हालात और बिगड़े तो जीडीपी ग्रोथ 4.9 फीसदी तक गिर सकती है।सिटीग्रुप का मानना है कि खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों के कारण वित्त वर्ष 2013 में महंगाई दर 8 फीसदी के स्तर को छू सकती है।विनिर्माण और पूंजीगत वस्तुओं के क्षेत्र के निराशाजनक प्रदर्शन की वजह से इस वर्ष जून में औद्योगिक उत्पाद सूचकांक (आईआईपी) 1.8 प्रतिशत नेगेटिव रहा है। उत्पादन क्षेत्र के 22 उद्योगों में से 14 का प्रदर्शन नकारात्मक रहा। हालांकि देश के शेयर बाजारों में लगातार दूसरे सप्ताह तेजी रही। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स आलोच्य अवधि में 2.09 फीसदी या 359.81 अंकों की तेजी के साथ 17557.74 पर बंद हुआ। सेंसेक्स पिछले सप्ताह 2.13 फीसदी या 358.74 अंकों की तेजी के साथ शुक्रवार को 17197.93 पर बंद हुआ था।शेयर बाजार को अर्थ व्यवस्था का पर्याय मानने वाले नीति निर्धारको क्यों रेटिंग एजंसियों की परवाह करनी चाहिए?नये केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने, निवेशकों के अनुकूल माहौल बनाने, वित्तीय मजबूती और महंगाई को काबू में करने के लिए खाका पेश किया।उसका क्या होगा?
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर मूडीज के आकलन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टिप्पणी पर भाजपा ने जरूर कड़ा एतराज जताया है।पर बाहैसियत विपक्ष संसदीय राजनीति में नीति निर्धारण में भागेदारी तो भाजपा की भी है। क्या उसने अपना दायित्व बखूबी निभाया है? राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा है कि प्रधानमंत्री को इनकार की मुद्रा से बाहर आकर सच्चाई स्वीकार कर बदहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास करने चाहिए।जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री की टिप्पणी ठीक वैसी ही है, जैसे कोई मरीज यह मानने से इनकार कर दे कि वह बीमार है और उसे इलाज कराने की कोई जरूरत है। ऐसे में भला उस मरीज का इलाज कैसे हो सकता है। जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह बयान आश्चर्यचकित करने वाला है कि देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है।उन्होंने कहा कि इससे साफ है कि वे देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की सच्चाई को मानने से इनकार कर रहे हैं। भाजपा नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री को इनकार की मुद्रा से बाहर आना चाहिए। जेटली ने कहा कि आज देश-विदेश के अर्थशास्त्री लगातार कह रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था संकट में हैं, लेकिन प्रधानमंत्री इसे स्वीकार करने को तैयार ही नहीं हैं।
मनमोहन ने कहा कि अर्थव्यवस्था की विकास सम्भावनाओं के बारे में बेबुनियाद निष्कर्ष नहीं निकाले जाने चाहिए। उन्होंने कहा, "अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। दुनिया में हमारी बचत और निवेश दर सबसे ऊंची है।"
मनमोहन ने राष्ट्रपति भवन में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के शपथ ग्रहण समारोह के इतर मौके पर कहा, "हमें बेबुनियाद निष्कर्ष नहीं निकालने चाहिए। इस वर्ष हमारी विकास दर पिछले वर्ष के 6.5 प्रतिशत से बेहतर होगी।"
प्रधानमंत्री, वैश्विक रेटिंग एजेंसियों पर टिप्पणी कर रहे थे, जिन्होंने सुधार नीति के अभाव और विनिर्माण व निर्यात में गिरावट तथा औसत से कम मानसून का हवाला देते हुए हाल ही में वित्त वर्ष 2012-13 के लिए देश के विकास अनुमान में कटौती कर दी है।
मूडी ने आठ अगस्त को जारी बयान में कहा था कि मंदी अनुमान से अधिक तेज और व्यापक हो गई है और अब अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों में प्रवेश कर गई है। इसके साथ ही उसने विकास दर अनुमान को घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया था।
ज्ञात हो कि मार्च में समाप्त हुई तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर नौ वर्षो के निचले स्तर पर आकर 5.3 प्रतिशत हो गई थी। 2011-12 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर 6.5 प्रतिशत था, जो कि इसके पहले के वित्त वर्ष के 8.4 प्रतिशत से काफी कम था।
कृषि की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष वासुदेव आचार्य ने बताया कि देश में कपास को छोड़कर अन्य जीएम फसलों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। क्योंकि जीएम फूड का मानव जीवन पर पड़ने वाले असर संबंधी परीक्षण पूरे नहीं हुए हैं। इसके बावजूद बीटी कपास के तेल व इसकी खली की खपत हो रही है, जो कानूनी तौर पर सही नहीं है। पशुओं को बीटी कपास की खली खिलाने से उसके उत्पाद जैसे दूध व दुग्ध उत्पादों पर बीटी का प्रभाव होना स्वाभाविक है। सीधे तौर पर न सही लेकिन दुग्ध उत्पादों के रूप में जीएम फूड की खपत घर-घर में हो रही है। बीटी कपास के तेल का उपयोग वनस्पति में हो रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जब देश में 93 फीसदी उत्पादन बीटी कपास का हो रहा है तो न सिर्फ इसके खाद्य तेल बल्कि इसकी खली की खपत भी देश में ही हो रही है। इसका बुरा असर न सिर्फ पशुओं बल्कि मानव जीवन पर भी पड़ना तय है। व्यापक जांच के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि अभी तक इसका कितना असर हुआ है। लेकिन जिस तरह से बीटी कपास के बीजों को परीक्षण के तौर पर मेमनों को खिलाया गया और उसके घातक परिणाम सामने आए हैं। उससे साफ है कि बीटी कपास के तेल और अन्य उत्पादों का शरीर पर कहीं न कहीं असर हो रहा है।
फिलहाल समिति ने इस मामले पर उपभोक्ता मामले सहित सभी संबंधित मंत्रालयों को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्टीकरण मांगा है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने कहा है कि अक्तूबर से देश में खाद्य वस्तुओं की नई लेवलिंग नीति लागू हो रही है। इसके तहत खाद्य वस्तुओं पर अन्य आवश्यक चीजों के साथ ही यह लिखना भी अनिवार्य होगा कि अमुख खाद्य पदार्थ जीएम है या नहीं।
इंफोसिस के चेयरमैन केवी कामत तथा जीवीके समूह के उपाध्यक्ष संजय रेड्डी जैसे प्रमुख उद्योगपतियों ने शनिवार को कहा कि धीमी पड़ती आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए दीर्घकालिक नीतियों की जरूरत है।
उद्योगपतियों ने मौजूदा आर्थिक समस्याओं के लिए नीतियों में स्पष्टता का अभाव तथा उच्च ब्याज दर को जिम्मेदार ठहराया।
कामत ने कहा कि नीतिगत उपायों में देरी, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, उच्च ब्याज दर तथा नकदी चिंताओं के कारण तीव्र आर्थिक वृद्धि की संभावना नरम हुई है।
मिशिगन यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित इंडिया बिजनेस सम्मेलन में उन्होंने कहा, उच्च ब्याज दर बड़ी चुनौती है। जहां तक निवेश का सवाल है, वहां केवल ब्याज दर का ही मुद्दा नहीं है बल्कि जमीन अधिग्रहण की समस्या तथा पर्यावरण नीतियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
उन्होंने कहा, अगर इसमें सुधार नहीं होता है, आप निवेश नहीं करेंगे। इन चीजों में स्पष्टता होनी चाहिए या उद्योग के बीच यह विश्वास होना चाहिए कि इन मुद्दों से सही तरीके से सरकार निपटेगी।
इंफोसिस के संस्थापक और मुख्य संरक्षक एनआर नारायणमूर्ति ने विप्रो के प्रमुख अजीम प्रेमजी ने भी कुछ दिन पहले कहा था कि केंद्र को आर्थिक नीतियों को बढ़ाने में तेजी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2011-12 में आर्थिक वृद्धि दर घटकर 6.5 प्रतिशत पर आ गयी जो नौ साल का निम्नतम स्तर है। मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है।
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